भारतीय अर्थव्यवस्था
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022
- 09 Aug 2022
- 10 min read
प्रिलिम्स के लिये:विद्युत संशोधन विधेयक, सातवीं अनुसूची मेन्स के लिये:पावर सेक्टर का महत्त्व, बिजली बिल के तहत संशोधन, सब्सिडी की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विरोध के बीच विद्युत (संशोधन) विधेयक 2022 को संसद में पेश किया गया और बाद में इसे आगे के विचार-विमर्श हेतु स्थायी समिति के पास भेजा गया।
- तमिलनाडु, तेलंगाना, राजस्थान और अन्य राज्यों में कई विद्युत इंजीनियरों ने इस विधेयक का विरोध किया।
विद्युत संशोधन विधेयक, 2022
- परिचय:
- विद्युत संशोधन विधेयक, 2022 का उद्देश्य कई अभिकर्त्ताओं को बिजली आपूर्तिकर्त्ताओं के वितरण नेटवर्क तक खुली पहुँच प्रदान करना और उपभोक्ताओं को किसी भी सेवा प्रदाता को चुनने की अनुमति देना है।
- निहितार्थ:
- विधेयक में विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
- प्रतिस्पर्द्धा को सक्षम बनाने, उपभोक्ताओं हेतु सेवाओं में सुधार करने और बिजली क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये वितरण लाइसेंसधारियों की दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से गैर-भेदभावपूर्ण "खुली पहुँच" के प्रावधानों के तहत सभी लाइसेंसधारियों द्वारा वितरण नेटवर्क के उपयोग को सुविधाजनक बनाना।
- वितरण लाइसेंसधारी के वितरण नेटवर्क तक गैर-भेदभावपूर्ण खुली पहुँच की सुविधा प्रदान करना।
- आयोग द्वारा अधिकतम सीमा और न्यूनतम प्रशुल्क के अनिवार्य निर्धारण के अलावा वर्ष में प्रशुल्क में श्रेणीबद्ध संशोधन का प्रावधान करना।
- दंड की दर को कारावास या जुर्माने से अर्थदंड में परिवर्तित करना।
- नियामकों द्वारा निर्वहन किये जाने वाले कार्यों को मज़बूत करना।
- विधेयक में विद्युत अधिनियम 2003 में संशोधन करने का प्रयास किया गया है:
विधेयक के खिलाफ विरोधकर्त्ताओं के तर्क:
- संघीय संरचना:
- संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची III के आइटम 38 के रूप में 'बिजली' को सूचीबद्ध करता है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति है।
- प्रस्तावित संशोधनों भारत के संविधान के संघीय ढाँचे एवं 'मूल ढाँचे' का उल्लंघन किया जा रहा है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची III के आइटम 38 के रूप में 'बिजली' को सूचीबद्ध करता है, इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति है।
- विद्युत सब्सिडी:
- किसानों और गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के लिये मुफ्त बिजली अंततः खत्म हो जाएगी।
- विभेदक वितरण:
- केवल सरकारी डिस्कॉम या वितरण कंपनियों के पास सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति दायित्व होंगे।
- इसलिये यह संभावना है कि निजी लाइसेंसधारी औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को लाभ वाले क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करना पसंद करेंगे।
- ऐसा होने पर सरकारी डिस्कॉम से मुनाफा वाले क्षेत्र छीन लिये जाएंगे और वह घाटे में चल रही कंपनी बन जाएगी।
- ऐसा होने पर सरकारी डिस्कॉम से मुनाफा वाले क्षेत्र छीन लिये जाएंगे और वह घाटे में चल रही कंपनी बन जाएगी।
- इसलिये यह संभावना है कि निजी लाइसेंसधारी औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं को लाभ वाले क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करना पसंद करेंगे।
- केवल सरकारी डिस्कॉम या वितरण कंपनियों के पास सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति दायित्व होंगे।
विधेयक का विद्युत कर्मचारियों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
- निजी आपूर्तिकर्त्ताओं का एकाधिकार:
- इससे सरकारी वितरण कंपनियों को बड़ा नुकसान होगा और अंततः देश के विद्युत क्षेत्र में कुछ निजी पार्टियों को एकाधिकार स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- परिचालन मुद्दा:
- आपूर्ति की लागत का लगभग 80% विद्युत खरीद में खर्च होता है, जो एक क्षेत्र में काम कर रहे सभी वितरण लाइसेंसधारियों के लिये समान होगी।
- अलग-अलग खुदरा विक्रेता होने से परिचालन संबंधी समस्याएँ बढ़ जाएंगी।
- अधिक खुदरा विक्रेताओं या वितरण लाइसेंसधारियों को लाने से सेवा की गुणवत्ता या कीमत में सुधार नहीं होगा।
- उपभोक्ताओं को नुकसान:
- यूके के लेखा परीक्षकों की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे दोषपूर्ण मॉडलों को अपनाने के कारण उपभोक्ताओं को 2.6 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान करना पड़ा।
- ऐसे अंतरण की लागत सामान्य उपभोक्ता से वसूल की जाती थी।
- जब निजी कंपनियाँ विफल होती हैं तो उपभोक्ताओं को सबसे अधिक नुकसान होता है।
- ऐसे अंतरण की लागत सामान्य उपभोक्ता से वसूल की जाती थी।
- यूके के लेखा परीक्षकों की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे दोषपूर्ण मॉडलों को अपनाने के कारण उपभोक्ताओं को 2.6 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान करना पड़ा।
विधेयक को लेकर सरकार का तर्क:
- सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि विधेयक में कोई प्रावधान विद्युत वितरण क्षेत्र को विनियमित करने, बिजली सब्सिडी का भुगतान करने के लिये राज्यों की शक्तियों को कम नहीं करता है।
- सरकार ने संकेत दिया है कि एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम पहले से मौज़ूद हो सकते हैं और विधेयक केवल प्रक्रिया को सरल बनाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रतिस्पर्द्धा बेहतर संचालन और सेवा सुनिश्चित करे।
- सरकार ने कहा है कि उसने हर राज्य और कई संघ राज्यों से लिखित में सलाह ली है, जिसमें कृषि मंत्रालय का एक अलग लिखित आश्वासन भी शामिल है कि बिल में किसान विरोधी कुछ भी नहीं है।
- यह बिल एक क्षेत्र में औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोगकर्त्ताओं से एकत्र की गई अतिरिक्त क्रॉस-सब्सिडी के उपयोग की अनुमति देता है ताकि अन्य क्षेत्रों में गरीबों को सब्सिडी दी जा सके।
- भारत ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 50% हासिल करने का लक्ष्य रखा है, सरकार का मानना है कि बिल में उल्लिखित नवीकरणीय खरीद दायित्वों (RPO) का बढ़ावा भारत की बिजली की मांग को बढ़ाएगा, जो पेरिस एवं ग्लासगो समझौतों के अनुसार निर्धारित हरित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आगे बढ़ते हुए अगले आठ वर्षों में दोगुना होने की उम्मीद है।
आगे की राह
- भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय होने के कारण विधेयक के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये राज्यों की सिफारिशों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- किसी भी प्रकार के भ्रम/संघर्ष को समाप्त करने के लिये सब्सिडी से संबंधित प्रावधान को विस्तृत तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
- अंतर-वितरण की स्थिति से बचने हेतु निजी कंपनियों के लिये नियम बनाए जाने चाहिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा वर्ष के प्रश्न (PYQs):निम्नलिखित में से कौन सरकार की ‘उदय’ योजना का एक उद्देश्य है? (2016)। (a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना। उत्तर: (d) व्याख्या:
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