अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-फ्राँस संबंध
प्रिलिम्स के लिये:गणतंत्र दिवस (26 जनवरी), हिंद-प्रशांत क्षेत्र, हिंद महासागर क्षेत्र, हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग कोष मेन्स के लिये:भारत-फ्राँस सहयोग, भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में फ्राँस के राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के अवसर पर भारत का दौरा किया, जहाँ दोनों देशों ने भारत-फ्राँस संयुक्त रक्षा अभ्यास की बढ़ती "सघनता तथा पारस्परिकता" पर संतोष व्यक्त करते हुए द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की।
भारत-फ्राँस द्विपक्षीय बैठक से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सहयोग की गहनता:
- दोनों देशों ने वर्ष 2020 तथा वर्ष 2022 में फ्राँसीसी द्वीप ला रीयूनियन (La Reunion) से संचालित संयुक्त अनुवीक्षण मिशनों का विस्तार करते हुए दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई।
- यह सहयोग संचार के रणनीतिक समुद्री मार्गों के प्रतिभूतिकरण में सकारात्मक योगदान देता है।
- हिंद-प्रशांत साझेदारी:
- दोनों पक्षों ने अपने संप्रभु तथा रणनीतिक हितों के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्व पर बल दिया।
- उन्होंने अपने साझा दृष्टिकोण के आधार पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही साझेदारी को बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई तथा संबद्ध क्षेत्र में अपनी बढ़ती सहभागिता की प्रकृति पर संतोष व्यक्त किया।
- रक्षा तथा सुरक्षा साझेदारी:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत और फ्राँस के बीच रक्षा तथा सुरक्षा साझेदारी को उनके सहयोग की आधारशिला के रूप में रेखांकित किया गया है।
- इस साझेदारी में विशेषकर हिंद महासागर क्षेत्र में, द्विपक्षीय, बहुराष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा संस्थागत पहलों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है।
- नेताओं ने तीनों सेनाओं/त्रि-सेवा के संयुक्त अभ्यास तथा विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में इसकी सहभागिता बढ़ाने पर चर्चा की।
- त्रिपक्षीय सहयोग:
- दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया के साथ पुनः त्रिपक्षीय सहयोग शुरू करने, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ सहयोग को सघन करने तथा संबद्ध क्षेत्र में नई त्रिपक्षीय साझेदारी तलाशने के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- जून 2023 में, भारत, फ्राँस तथा UAE समुद्री साझेदारी अभ्यास का पहला संस्करण ओमान की खाड़ी में आयोजित हुआ।
- दोनों देशों ने ऑस्ट्रेलिया के साथ पुनः त्रिपक्षीय सहयोग शुरू करने, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ सहयोग को सघन करने तथा संबद्ध क्षेत्र में नई त्रिपक्षीय साझेदारी तलाशने के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी:
- दोनों देशों ने संबद्ध क्षेत्र में सतत् आर्थिक विकास, मानव कल्याण, पर्यावरणीय स्थिरता, लचीले बुनियादी ढाँचे, नवाचार और कनेक्टिविटी का समर्थन करने के लिये संयुक्त एवं बहुपक्षीय पहल के महत्त्व को स्वीकार किया।
- उन्होंने हरित प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने की सुविधा के लिये हिंद-प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग कोष (Indo- Pacific Triangular Development Cooperation Fund) की शीघ्र शुरुआत करने का विचार रखा।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा (IMEC):
- नेताओं ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor- IMEC) के शुभारंभ को रेखांकित किया तथा इस बात पर सहमति व्यक्त की यह भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच वाणिज्य एवं ऊर्जा प्रवाह की क्षमता व लचीलेपन को बढ़ाने के लिये रणनीतिक रूप से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
- बहुपक्षवाद तथा संयुक्त राष्ट्र सुधार:
- दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए सुधार एवं प्रभावी बहुपक्षवाद का आह्वान किया।
- फ्राँस ने UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये पुनः अपना समर्थन व्यक्त किया।
- दोनों पक्षों ने बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा इस संबंध में प्रभावी सुझाव देने के लिये स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह (Independent Expert Group- IEG) की रिपोर्ट की सराहना की।
- उन्होंने आधिकारिक ऋण पुनर्गठन मामलों में पेरिस क्लब तथा भारत के बीच बढ़ते सहयोग के महत्त्व को उजागर किया।
- रक्षा उद्योग सहयोग:
- दोनों पक्षों ने दोनों देशों के रक्षा उद्योग के क्षेत्रों में एकीकरण को सघन करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने न केवल भारत के लिये बल्कि अन्य मित्र देशों के लिये भी रक्षा आपूर्ति के सह-डिज़ाइन, सह-विकास एवं सह-उत्पादन की संभावनाओं पर चर्चा की।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस समझौता:
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस ने नागरिक हेलीकॉप्टरों के विकास तथा विनिर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- टाटा और एयरबस पहले से ही गुजरात में C-295 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट बनाने के लिये सहयोग कर रहे हैं।
- औद्योगिक साझेदारी का लक्ष्य महत्त्वपूर्ण स्वदेशी और स्थानीयकरण घटक के साथ H125 हेलीकॉप्टर का उत्पादन करना है।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस ने नागरिक हेलीकॉप्टरों के विकास तथा विनिर्माण के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- शक्ति जेट इंजन सौदा:
- शक्ति जेट इंजन सौदे को लेकर भारत और सफरान के बीच चल रहीं वार्ता पर प्रकाश डाला गया। ये वार्ताएँ भारत की भविष्य की लड़ाकू जेट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विनिर्माण प्रौद्योगिकी के सरल हस्तांतरण से परे विशिष्टताओं को विकसित करने पर केंद्रित हैं।
- CFM इंटरनेशनल और अकासा एयर:
- फ्राँसीसी जेट इंजन निर्माता CFM इंटरनेशनल ने भी 150 बोइंग ओपन नए टैब 737 मैक्स विमानों को बिजली देने के लिये अपने 300 से अधिक LEAP-1B इंजन खरीदने के लिये भारत की अकासा एयर के साथ एक समझौते की घोषणा की।
- टाटा ग्रुप तथा एयरबस समझौता:
- दोनों पक्षों ने दोनों देशों के रक्षा उद्योग के क्षेत्रों में एकीकरण को सघन करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने न केवल भारत के लिये बल्कि अन्य मित्र देशों के लिये भी रक्षा आपूर्ति के सह-डिज़ाइन, सह-विकास एवं सह-उत्पादन की संभावनाओं पर चर्चा की।
- अंतरिक्ष सहयोग:
- दोनों देशों ने रणनीतिक अंतरिक्ष वार्ता शुरू की, रक्षा अंतरिक्ष सहयोग पर एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किये और उपग्रह प्रक्षेपण मिशन के लिये इसरो के न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited - NSIL) तथा फ्राँस के एरियनस्पेस के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- दोनों देशों ने संयुक्त उपग्रह अनुसंधान, उत्पादन और प्रक्षेपण सहित अंतरिक्ष सहयोग बढ़ाने का वादा किया।
भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?
- संबंध के स्तंभ:
- भारत और फ्राँस लंबे समय से सांस्कृतिक, व्यापारिक तथा आर्थिक संबंध साझा करते रहे हैं। वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित ‘भारत-फ्राँस रणनीतिक साझेदारी’ (India-France strategic partnership) ने समय के साथ महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की है और वर्तमान में गहन निकट बहुआयामी संबंध में विकसित हो गया है जो सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों तक विस्तृत है।
- दोनों देशों ने अपने संबंध में तीन स्तंभों पर सुदृढ़ता बनाए रखी है:
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- रणनीतिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता में दृढ़ विश्वास
- स्वयं की संधि और गठबंधन के दायरे में दूसरे को शामिल करने के मामले में संयम
- रक्षा साझेदारी:
- भारत-फ्राँस संबंधों के मूल में रक्षा साझेदारी है; अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में फ्राँस कहीं अधिक इच्छुक और उदार भागीदार के रूप में सामने आया है।
- राफेल सौदे से लेकर इस विमान के समुद्री संस्करण के 26 विमानों के नवीनतम अधिग्रहण तक, फ्राँस भारत को अपनी कुछ बेहतरीन रक्षा प्रणालियाँ सौंपने का इच्छुक बना रहा है।
- इस बीच, फ्राँस द्वारा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से पहले ही भारत को छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के निर्माण में मदद मिल चुकी है, जबकि नौसेना के लिये पनडुब्बियों की घटती संख्या को बढ़ाने के लिये तीन और पनडुब्बियाँ खरीदी जा रही हैं।
- संयुक्त अभ्यास: शक्ति (थल सेना), वरुण (नौसेना), गरुड़ (वायु सेना)।
- नाटो प्लस पर रुख में समानता:
- फ्राँस ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर रखी है कि वह नाटो प्लस ( North Atlantic Treaty Organisation- NATO+) भागीदारी योजनाओं को अस्वीकार करता है, जिसके तहत ट्राँस-अटलांटिक एलायंस का जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और यहाँ तक कि भारत के साथ प्रत्यक्ष संबंध बन जाएगा।
- भारत ने भी इस योजना को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया है कि नाटो ‘‘ऐसा टेम्पलेट या खाका नहीं है जो भारत पर लागू होता है”।
- आर्थिक सहयोग:
- दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में भारत से निर्यात 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर, 13.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के नए शिखर पर पहुँच गया।
- अप्रैल 2000 से जून 2022 के बीच 10.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश (भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह का 1.70%) के साथ यह भारत का 11वाँ सबसे बड़ा विदेशी निवेशक रहा।
- अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहयोग:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के साथ-साथ परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में प्रवेश के भारत के दावे का फ्राँस समर्थन करता है।
- जलवायु सहयोग:
- दोनों देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साझा चिंता रखते हैं, जहाँ भारत ने पेरिस समझौते में फ्राँस का समर्थन करते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रति अपनी प्रबल प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन पर अपने संयुक्त प्रयासों के तहत वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की शुरुआत की।
भारत-फ्राँस संबंधों के बीच क्या चुनौतियाँ हैं?
- FTA और BTIA निष्क्रियता:
- फ्राँस और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) का अभाव उनकी व्यापार क्षमता को बढ़ाने में बाधा उत्पन्न करता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत-EU व्यापक रूप से मुक्त व्यापार और निवेश समझौते (BTIA) पर धीमी प्रगति ने व्यापक आर्थिक सहयोग के लिये प्रोत्साहन की दिशा में चुनौतियों को और बढ़ा दिया है।
- भिन्न रक्षा एवं सुरक्षा प्राथमिकताएँ:
- एक मज़बूत रक्षा साझेदारी के बावजूद, प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में अंतर रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
- भारत का क्षेत्रीय केंद्र-बिंदु और इसकी "गुटनिरपेक्ष" नीति कभी-कभी फ्राँस के वैश्विक हितों के विरुद्ध हो सकती है।
- एक मज़बूत रक्षा साझेदारी के बावजूद, प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण में अंतर रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
- बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी चिंताएँ:
- फ्राँस ने भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों की अपर्याप्त सुरक्षा के बारे में चिंता जताई है, जिससे भारत के भीतर काम करने वाले फ्राँसीसी व्यवसायों पर असर पड़ रहा है। यह द्विपक्षीय व्यापार के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देने की चुनौती पेश करता है।
- व्यापार असंतुलन और रक्षा उत्पादों का प्रभुत्व:
- हालाँकि फ्राँस भारत का 11वाँ व्यापार भागीदार है, लेकिन वहाँ एक उल्लेखनीय व्यापार असंतुलन है।
- व्यापार संबंधों में रक्षा उत्पादों का प्रभुत्व विविधीकरण और अधिक संतुलित आर्थिक विनिमय प्राप्त करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- फ्राँस में भारतीय उत्पादों के लिये बाधाएँ:
- भारत को फ्राँस को अपने उत्पाद निर्यात करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपायों के संदर्भ में। यह फ्राँसीसी बाज़ार में प्रवेश करने वाले भारतीय उत्पादों को हतोत्साहित करने का कार्य कर सकता है।
- छात्र आवाजाही (Student Mobility):
- जबकि फ्राँसीसी राष्ट्रपति ने फ्राँस में 30,000 भारतीय छात्रों का स्वागत करने/प्रवेश देने की योजना की घोषणा की, वीज़ा प्रक्रियाओं और सांस्कृतिक एकीकरण सहित छात्रों की आवाजाही से संबंधित मुद्दे, इस लक्ष्य को साकार करने में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- मानव तस्करी की चिंताएँ:
- मानव तस्करी से जुड़े निकारागुआ उड्डयन मामले जैसे उदाहरण चिंताएँ बढ़ाते हैं और अंतर्राष्ट्रीय अपराधों को नियंत्रित करने एवं नागरिकों की सुरक्षा व भलाई सुनिश्चित करने में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
आगे की राह
- भारत और फ्राँस दोनों अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आयाम देने या यहाँ तक कि अन्य देशों को संतुलित करने में एक-दूसरे का समर्थन कर सकते हैं, जिन पर उनमें से एक बहुत अधिक निर्भर है।
- इंडो-पैसिफिक अवधारणा ने संपन्न फ्राँस-भारतीय संबंधों (Franco-Indian Relations) के लिये एक उपयोगी ढाँचा प्रदान किया है। हिंद महासागर में अपने विदेशी क्षेत्रों और सैन्य अड्डों/सीमाओं के कारण क्वाड साझेदारों की तुलना में फ्राँस की हिंद महासागर स्थिरता में अधिक प्रत्यक्ष रुचि है।
- दोनों के बीच इंडो-पैसिफिक फोरम रणनीतिक हितों और द्विपक्षीय सहयोग को सुनिश्चित करने के लिये सहायता करने में सक्षम होना चाहिये।
- निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि के साथ घरेलू/स्वदेशी हथियार उत्पादन का विस्तार करने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में फ्राँस महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- चर्चा में कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर-सुरक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहित सहयोग के उभरते क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. I2U2 (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका) समूहन वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति को किस प्रकार रूपांतरित करेगा? (2022) |
सामाजिक न्याय
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भपात की मंजूरी का आदेश वापस लिया
प्रिलिम्स के लिये:गर्भ का चिकित्सकीय समापन, गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT), संशोधन अधिनियम 2021, अनुच्छेद 21 का दायरा, सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन मामला, रो बनाम वेड मामला। मेन्स के लिये:भारत में गर्भ के चिकित्सकीय समापन की स्थिति, गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT), संशोधन अधिनियम 2021 की मुख्य विशेषताएँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने उस आदेश को वापस ले लिया है जिसमें 26 वर्षीय महिला को 29 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी।
- न्यायालय ने अब अजन्मे बच्चे के जीवन के अधिकार की वकालत करते हुए महिला को एम्स या किसी केंद्रीय या राज्य अस्पताल में प्रसव कराने का निर्देश दिया है।
भारत में गर्भ के चिकित्सीय समापन की स्थिति क्या है?
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: 1960 के दशक में, बड़ी संख्या में प्रेरित गर्भपात के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने देश में गर्भपात को वैध बनाने पर विचार-विमर्श करने के लिये शांतिलाल शाह समिति का गठन किया।
- इसकी सिफारिशों के परिणामस्वरूप गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971 अधिनियमित किया गया, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा और मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के लिये सुरक्षित तथा कानूनी गर्भपात की अनुमति दी गई।
- MTP अधिनियम और संशोधन: .
- MTP अधिनियम, 1971 लाइसेंस प्राप्त चिकित्सा पेशेवरों को महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये विशिष्ट पूर्व निर्धारित स्थितियों (जैसा कि कानून के तहत प्रदान किया गया है) में सुरक्षित तथा कानूनी गर्भपात करने की अनुमति देता है।
- इसमें गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT), संशोधन अधिनियम 2021 के माध्यम से बाद में संशोधन किया गया।
- MTP अधिनियम, 1971 लाइसेंस प्राप्त चिकित्सा पेशेवरों को महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा और मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये विशिष्ट पूर्व निर्धारित स्थितियों (जैसा कि कानून के तहत प्रदान किया गया है) में सुरक्षित तथा कानूनी गर्भपात करने की अनुमति देता है।
- गर्भ के समाप्ति के प्रावधान:
गर्भाधान के बाद से समय |
MTP अधिनियम, 1971 |
MTP (संसोधन) अधिनियम , 2021 |
12 सप्ताह तक |
एक चिकित्सक की सलाह पर |
एक चिकित्सक की सलाह पर |
12 से 20 सप्ताह |
दो चिकित्सकों की सलाह पर |
एक चिकित्सक की सलाह पर |
20 से 24 सप्ताह |
अनुमति नहीं |
विशेष श्रेणी की गर्भवती महिलाओं के लिये दो चिकित्सकों की सलाह पर |
24 सप्ताह से अधिक |
अनुमति नहीं |
भ्रूण में गंभीर असामान्यता के मामले में मेडिकल बोर्ड की सलाह पर अनुमति |
गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय |
गर्भवती महिला की जान बचाने के लिये यदि तुरंत आवश्यक हो तो किसी डॉक्टर की सलाह पर |
गर्भवती महिला की जान बचाने के लिये यदि तुरंत आवश्यक हो तो किसी डॉक्टर की सलाह पर |
नोट: MTP संशोधन अधिनियम, 2021 के तहत महिलाओं की विशेष श्रेणियों में बलात्कार पीड़िता, यौन शोषण की शिकार एवं अन्य कमज़ोर महिलाएँ जैसे दिव्यांग और नाबालिग शामिल हैं।
- MTP संशोधन अधिनियम, 2021 की अन्य मुख्य विशेषताएँ:
- गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के कारण गर्भपात: MTP अधिनियम ने विवाहित महिलाओं को गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है।
- MTP संशोधन अधिनियम ने अविवाहित महिलाओं के लिये भी अनुमोदन में वृद्धि की है।
- मेडिकल बोर्ड: बोर्ड महत्त्वपूर्ण भ्रूण असामान्यताओं के लिये 24 सप्ताह से अधिक के गर्भधारण का आकलन करेगा।
- इसमें स्त्रीरोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और रेडियोलॉजिस्ट जैसे विशेषज्ञ शामिल होने चाहिये तथा इसे सभी राज्य व केंद्रशासित प्रदेश सरकारों द्वारा स्थापित किया जाएगा।
- गोपनीयता उपाय: एक पंजीकृत चिकित्सक केवल विधि/कानून द्वारा अधिकृत व्यक्तियों को ही समाप्त गर्भपात के विवरण का खुलासा कर सकता है। उल्लंघन पर एक वर्ष तक की कैद, ज़ुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
- गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के कारण गर्भपात: MTP अधिनियम ने विवाहित महिलाओं को गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है।
- संवैधानिक रुख:
- हालाँकि संविधान में गर्भपात के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन कुछ मौलिक अधिकार प्रजनन अधिकारों और महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े हुए हैं।
- अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने प्रजनन स्वायत्तता और स्वास्थ्य देखभाल (सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन मामला, 2009) को सम्मिलित करने के लिये इसकी व्यापक रूप से व्याख्या की है।
- इसके अलावा, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अजन्मे बच्चे के अधिकारों को महिला के प्रजनन अधिकार के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
नोट: भारत में गर्भ की नैतिक स्थिति, विधिक स्थिति तथा सांविधानिक अधिकारों को लेकर अभी भी अनिश्चितता है। हालाँकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 20 के तहत गर्भधारण की स्थिति से भ्रूण के जीवन की सुरक्षा का प्रावधान है।
- वैश्विक रुझान:
- संपूर्ण विश्व में गर्भपात संबंधी कानूनों के उदारीकरण तथा गर्भपात सेवाओं तक पहुँच में बेहतरी की दिशा में कार्य करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
- 1990 के दशक की शुरुआत से विश्व स्तर पर लगभग 60 देशों ने गर्भपात कानूनों में ढील दी है, जिससे गर्भपात के लिये कानूनी आधार व्यापक हो गए हैं।
- विशेष रूप से केवल चार देशों- संयुक्त राज्य अमेरिका, अल साल्वाडोर, निकारागुआ तथा पोलैंड ने उक्त अवधि के दौरान गर्भपात प्रक्रिया में कानूनी आधार को हटाकर गर्भपात कानूनों को और सख्त कर दिया है।
- वर्ष 2022 में इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण विकास हुआ जब अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने गर्भपात के सांविधानिक अधिकार को समाप्त कर दिया (रो बनाम वेड मामला)।
- युग्मनज: निषेचन के दौरान शुक्राणु तथा अंड के संलयन से बनने वाली प्रारंभिक कोशिका।
- भ्रूण: निषेचन के क्षण से लेकर गर्भावस्था के लगभग 8वें सप्ताह तक विकास का प्रारंभिक चरण।
- गर्भ: प्रसवपूर्व विकास का बाद का चरण जो नौवें सप्ताह से शुरू होकर शिशु के जन्म को संदर्भित करता है। इसी दौरान शिशु के अंगों तथा प्रणालियों का विकास होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मॉस्किटोफिश
प्रिलिम्स के लिये:मॉस्किटोफिश, गंबूसिया एफिनिस, गंबूसिया होलब्रूकी, मच्छर जनित रोग, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, आनुवंशिक रूप से संशोधित OX5034 मच्छर, राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम। मेन्स के लिये:मॉस्किटोफिश के नकारात्मक प्रभाव, मच्छर और संबंधित रोग नियंत्रण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में मच्छरों के बढ़ते खतरे से निपटने के उपाय के रूप में स्थानीय जल निकायों में मॉस्किटोफिश (गंबूसिया) छोड़ी गई है।
- हालाँकि एक हालिया अध्ययन इस दृष्टिकोण के साथ अप्रत्याशित मुद्दों पर प्रकाश डालता है, जो जैविक नियंत्रण पद्धति में संभावित कमियों की ओर ध्यान दिलाता है।
मॉस्किटोफिश दृष्टिकोण और इसके संबंधित परिणाम क्या हैं?
- पृष्ठभूमि- मच्छर जनित रोगों का उदय:
- पिछली सदी में वैश्विक जलवायु और निवास स्थान में बदलाव के कारण मच्छर जनित बीमारियों का प्रसार बढ़ गया है, जिससे 150 से अधिक देशों में 500 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
- भारत में लगभग 40 मिलियन व्यक्ति प्रतिवर्ष इन बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जो दशकों से लगातार सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है।
- मॉस्किटोफिश दृष्टिकोण:
- दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के ताज़े पानी की मूल निवासी मॉस्किटोफिश, मच्छरों के लार्वा हेतु अपनी भूख के लिये जानी जाती है।
- वे प्रतिदिन 250 लार्वा तक खा सकते हैं, जिससे वे मच्छरों की आबादी के खिलाफ एक संभावित हथियार बन जाते हैं।
- मॉस्किटोफिश की दो प्रजातियाँ, गंबूसिया एफिनिस और गंबूसिया होलब्रूकी, को पर्यावरण के अनुकूल तथा टिकाऊ माना जाता था।
- फिर भी अनपेक्षित परिणाम यह हुआ कि अमेरिका से इन मछलियों का दुनिया भर में प्रसार हुआ, जिससे पारिस्थितिक बाधा उत्पन्न हुई।
- दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के ताज़े पानी की मूल निवासी मॉस्किटोफिश, मच्छरों के लार्वा हेतु अपनी भूख के लिये जानी जाती है।
- भारत में मॉस्किटोफिश:
- गंबूसिया (Gambusia) को भारत में पहली बार वर्ष वर्ष 1928 में ब्रिटिश शासन के दौरान तेज़ी से फैलने वाले मच्छरों की रोकथाम करने हेतु पेश किया गया था।
- इसके बाद भारत में सरकारी निकाय तथा निजी संगठनों ने सामूहिक रूप से गंबूसिया के माध्यम से मलेरिया से निपटने के प्रयास किया।
- प्रारंभ में गंबूसिया मछलियों के उपयोग का उद्देश्य मच्छरों के लार्वा को नियंत्रित करना था किंतु अंततः वे आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species) में बदल गईं।
- मॉस्किटोफिश के नकारात्मक प्रभाव:
- आक्रामक प्रकृति: पर्यावरणीय परिस्थितियों के परिवर्तनों के प्रति उनकी अनुकूलनशीलता तथा प्रबल सहनशीलता उनके व्यापक फैलाव में योगदान करती है जिससे वे अत्यधिक आक्रामक हो जाते हैं।
- मॉस्किटोफिश को वर्तमान में सौ सबसे हानिकारक आक्रामक विदेशी प्रजातियों में से एक माना जाता है।
- देशी मछली समुदायों का विघटन: उनकी प्रकृति आक्रामक होती है जिसके परिणामस्वरूप ये न केवल मच्छरों के लार्वा अपितु देशी मछली प्रजातियों के अंडों का भी भक्षण करते हैं।
- इससे स्थानीय प्रजातियाँ, विशेषकर छोटी, सुभेद्य मछलियाँ विलुप्त हो सकती हैं।
- विशेष प्रजातियों की हानि: उनके उपयोग से स्थानिक तथा पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछली प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है जिससे संभावित रूप से जैवविविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन को क्षति पहुँच सकती है।
- रिपोर्टों के अनुसार भारत में गंबूसिया के प्रयोग के शुरुआत के बाद माइक्रोहिला (Microhyla) टैडपोल (राइस फ्रॉग अथवा संकीर्ण मुखी मेंढक) की संख्या प्रभावित हुई है।
- आक्रामक प्रकृति: पर्यावरणीय परिस्थितियों के परिवर्तनों के प्रति उनकी अनुकूलनशीलता तथा प्रबल सहनशीलता उनके व्यापक फैलाव में योगदान करती है जिससे वे अत्यधिक आक्रामक हो जाते हैं।
- संबंधित महत्त्वपूर्ण कदम:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने वर्ष 1982 में मच्छर नियंत्रण हेतु गंबूसिया के प्रयोग की सिफारिश करना बंद कर दिया।
- वर्ष 2018 में भारत सरकार के राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority) ने जी.एफिनिस (G. Affinis) तथा जी.होलब्रुकी (G. Holbrooki) को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के रूप में नामित किया।
मच्छरों के नियंत्रण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग विधियाँ
- वर्ष 2003 में ऑस्टिन बर्ट द्वारा प्रारंभ की गई जीन ड्राइव टेक्नोलॉजी का उद्देश्य विशिष्ट जीन की विरासत को बदलकर मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करना है।
- यह विधि प्रोटीन के साथ मच्छरों के DNA में परिवर्तन करके मच्छरों को मलेरिया जैसी बीमारियों को फैलने से रोकती है।
- अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने वर्ष 2020 में फ्लोरिडा और टेक्सास में आनुवंशिक रूप से संशोधित OX5034 मच्छरों को पर्यावरण में छोड़ने का फैसला किया। यह मच्छर एक एंटीबायोटिक, टेट्रासाइक्लिन के प्रति संवेदनशील जीन के साथ विकसित हुआ है।
- इसमें एक स्व-सीमित जीन होता है जो मादा संततियों को जीवित रहने से रोकता है, जिससे मच्छरों की संख्या में कमी आती है।
मच्छरों एवं उनसे संबंधित रोग नियंत्रण के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- मच्छरों के नियंत्रण में चुनौतियाँ:
- जटिल वातावरण: भारत भर में विविध जलवायु, भूगोल और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ मच्छरों के विभिन्न प्रजनन प्रतिरूप को जन्म देती हैं।
- कीटनाशक प्रतिरोध: मच्छरों ने आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले कीटनाशकों और रिपेलेंट्स के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लिया है, जिसके लिये लगातार रोटेशन तथा नए विकल्पों के विकास की आवश्यकता होती है।
- अस्वच्छता: भारत में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में खुली नालियाँ, इकट्ठा किया गया कचरा तथा रुके हुए जल स्रोत प्रचुर मात्रा में प्रजनन स्थल प्रदान करते हैं।
- रोग नियंत्रण में चुनौतियाँ:
- रिपोर्टिंग के अंतर्गत: सटीक आँकड़े और केंद्रित हस्तक्षेप मच्छर जनित रोग के मामलों की बड़ी संख्या के कारण बाधित होते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जो दर्ज नहीं किये जाते हैं या गलत निदान किये जाते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- इसके अलावा, दूरदराज़ के इलाकों में उचित स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच से इलाज में देरी होती है और जटिलताएँ बढ़ जाती हैं।
- टीके की सीमाएँ: वर्तमान में सभी मच्छर जनित बीमारियों के लिये कोई प्रभावी टीका मौजूद नहीं है, जिससे रोकथाम मुख्य रूप से वेक्टर नियंत्रण और व्यक्तिगत सुरक्षा उपायों पर निर्भर हो गई है।
- रिपोर्टिंग के अंतर्गत: सटीक आँकड़े और केंद्रित हस्तक्षेप मच्छर जनित रोग के मामलों की बड़ी संख्या के कारण बाधित होते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जो दर्ज नहीं किये जाते हैं या गलत निदान किये जाते हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
आगे की राह
- बेहतर स्वच्छता और बुनियादी ढाँचा: कुशल अपशिष्ट संग्रहण और निपटान शहरी क्षेत्रों में प्रजनन स्थलों को ख़त्म कर सकता है।
- उचित जल निकासी प्रणालियाँ स्थिर जल संचय जो मच्छरों के प्रजनन का एक प्रमुख स्रोत होता है, को रोक सकती हैं।
- समुदायों को स्वच्छ जल भंडारण समाधान प्रदान करने से खुले कंटेनरों जो मच्छरों को आकर्षित करते हैं, पर निर्भरता कम हो सकती है।
- एकीकृत वेक्टर प्रबंधन (Integrated Vector Management- IVM): वेक्टर जनित रोग नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन को त्वरित कर मच्छर से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण लागू करने की आवश्यकता है जो जैविक नियंत्रण, कीटनाशक उपयोग और पर्यावरण प्रबंधन जैसी विभिन्न रणनीतियों का समावेश है।
- सामुदायिक जुड़ाव और शिक्षा: शैक्षिक अभियानों के माध्यम से मच्छर नियंत्रण में सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी को बढ़ावा देना, निवारक उपायों पर बल देना तथा सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) Q. 'वोलबैचिया पद्धति' का कभी-कभी निम्नलिखित में से किस एक के संदर्भ में उल्लेख होता है? (2023) (a) मच्छरों से होने वाले विषाणु प्रसार को नियंत्रित करना उत्तर: (a) मेन्स:Q. उन सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को पहचानिये जो स्वास्थ्य से संबंधित हैं। इन्हें पूरा करने के लिये सरकार द्वारा की गई कार्रवाई की सफलता की विवेचना कीजिये। (2013) Q. नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020) |
भारतीय राजनीति
सपिंड विवाह पर रोक
प्रिलिम्स के लिये:हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA), सपिंड विवाह पर प्रतिबंध, अनाचार का अपराध, घनिष्ठ रक्त संबंध मेन्स के लिये:सपिंड विवाह पर प्रतिबंध, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने नीतू ग्रोवर बनाम भारत संघ और अन्य, 2024 के मामले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act- HMA) की धारा 5 (v) की संवैधानिकता की चुनौती खारिज कर दी है, जो दो हिंदू लोगों के एक दूसरे के "सपिंड" होने की स्थिति में उनके विवाह पर रोक लगाती है।
- सपिंड विवाह विशिष्ट पारिवारिक निकटता साझा करने वाले व्यक्ति के बीच होता है।
कानून को चुनौती क्यों दी गई तथा इससे संबंधित न्यायालय का निर्णय क्या था?
- याचिकाकर्त्ता के तर्क:
- वर्ष 2007 में एक याचिकाकर्त्ता की शादी को शून्य घोषित कर दिया गया क्योंकि उसके पति ने सफलतापूर्वक सिद्ध किया कि उनका विवाह सपिंड विवाह था तथा महिला उस समुदाय से नहीं थी जहाँ ऐसे विवाह को एक प्रथा माना जाता था।
- याचिकाकर्त्ता ने सपिंड विवाह पर प्रतिबंध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि प्रथा का कोई साक्ष्य न होने पर भी सपिंड विवाह प्रचलित हैं।
- अतः धारा 5(v) जो सपिंड विवाह पर रोक लगाती है जब तक कि उनमें से प्रत्येक को शासित करने वाली प्रथा या प्रथा दोनों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देती, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है।
- याचिकाकर्त्ता ने यह भी तर्क दिया कि विवाह दोनों परिवारों की सहमति से हुआ था जो विवाह की वैधता को साबित करती है।
- दिल्ली न्यायालय का आदेश:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी दलीलों को अयोग्य ठहराया तथा कहा कि याचिकाकर्त्ता ने एक स्थापित प्रथा (सपिंड विवाह) का "उचित सबूत" प्रदान नहीं किया जो सपिंड विवाह को उचित ठहराने के लिये आवश्यक है।
- न्यायालय ने कहा कि विवाह में साथी का चुनाव विनियमन के अधीन हो सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्त्ता ने सपिंड विवाह पर लगाए गए रोक को समानता के अधिकार का उल्लंघन सिद्ध करने के लिये कोई "तर्कपूर्ण कानूनी आधार" प्रस्तुत नहीं किया।
सपिंड विवाह क्या है?
- परिचय:
- सपिंड विवाह उन व्यक्तियों के बीच होता है जो एक निश्चित सीमा के भीतर एक-दूसरे के निकट संबंधी होते हैं।
- सपिंड विवाह को HMA की धारा 3 के तहत परिभाषित किया गया है, क्योंकि दो व्यक्ति एक-दूसरे का "सपिंड" कहे जाते हैं यदि एक व्यक्ति सपिंड रिश्ते की सीमा में दूसरे का वंशज है या यदि उनमें से प्रत्येक के संदर्भ में सपिंड संबंध की सीमा के भीतर एक सामान्य वंशानुगत लग्न हो।
- रैखिक लग्न:
- HMA के प्रावधानों के तहत, मातृ पक्ष की ओर से एक हिंदू व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता जो "उर्ध्वाधर रेखा" में उनकी तीन पीढ़ियों के भीतर हो। पितृ पक्ष की ओर से, यह निषेध व्यक्ति की पाँच पीढ़ियों के भीतर किसी पर भी लागू होता है।
- व्यवहार में, इसका मतलब यह है कि अपनी मातृ पक्ष की ओर से कोई व्यक्ति अपने भाई-बहन (पहली पीढ़ी), अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी) या किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता है जो तीन पीढ़ियों के भीतर इस वंश को साझा करता हो।
- उनके पितृ पक्ष की ओर से यह निषेध उनके दादा-दादी और पाँच पीढ़ियों के भीतर इस वंश को साझा करने वाले किसी भी व्यक्ति तक लागू होगा।
- HMA के प्रावधानों के तहत, मातृ पक्ष की ओर से एक हिंदू व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता जो "उर्ध्वाधर रेखा" में उनकी तीन पीढ़ियों के भीतर हो। पितृ पक्ष की ओर से, यह निषेध व्यक्ति की पाँच पीढ़ियों के भीतर किसी पर भी लागू होता है।
- HMA 1955 की धारा 5(v):
- यदि कोई विवाह सपिंड विवाह होने की धारा 5(v) का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है और ऐसी कोई स्थापित प्रथा नहीं है जो इस तरह की प्रथा की अनुमति देती हो, तो इसे शून्य घोषित कर दिया जाएगा।
- इसका मतलब यह होगा कि विवाह शुरू से ही अमान्य था और ऐसा माना जाएगा जैसे कि यह कभी हुआ ही नहीं।
विवाह से संबंधित कानूनी प्रावधान:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार भी शामिल है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह करने तथा विवाह को रजिस्ट्रीकृत करने की अनुमति प्रदान करता है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह से संबंधित कई मामलों का निपटान किया है। जैसे-
- लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2006: न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है और माता-पिता अथवा समुदाय सहित कोई भी इसमें हस्तक्षेप अथवा इसे लेकर आपत्ति नहीं व्यक्त कर सकता है।
- हालाँकि शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ (2018) मामले मे सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि स्वैच्छिक जीवन साथी का चयन संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 द्वारा प्रदत्त स्वातंत्र्य-अधिकार का विस्तारित रूप है।
सपिंड विवाह के विरुद्ध निषेध के अपवाद क्या हैं?
- अपवाद का उल्लेख हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(v) में किया गया है और इसमें कहा गया है कि यदि इसमें सम्मिलित व्यक्तियों के रीति-रिवाज सपिंड विवाह की अनुमति देते हैं, तो ऐसे विवाह को शून्य घोषित नहीं किया जाएगा।
- दूसरे शब्दों में, यदि समुदाय, जनजाति, समूह या परिवार के भीतर कोई स्थापित प्रथा है जो सपिंड विवाह की अनुमति देती है और यदि यह प्रथा लंबे समय तक लगातार तथा समान रूप से निभाई जाती है, तो इसे निषेध का एक वैध अपवाद माना जा सकता है।
- “कस्टम” शब्द की परिभाषा HMA की धारा 3(a) में प्रदान की गई है। इसमें कहा गया है कि एक प्रथा को “लगातार और समान रूप से लंबे समय तक मनाया जाना चाहिये” तथा इसे स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समूह या परिवार में हिंदुओ के बीच पर्याप्त वैधता प्राप्त होनी चाहिये, जैसे कि इसे “कानून की शक्ति” प्राप्त हो।
- हालाँकि किसी प्रथा को वैध माने जाने के लिये कुछ शर्तों को पूरा करना होगा। इन शर्तों के पूरा होने के बाद भी किसी प्रथा की रक्षा नहीं की जा सकती। विचाराधीन नियम “निश्चित होना चाहिये और अनुचित या सार्वजनिक नीति के विपरीत नहीं होना चाहिये” तथा “किसी नियम के मामले में केवल एक परिवार पर लागू होता है”, इसे “परिवार द्वारा बंद नहीं किया जाना चाहिये”।
- यदि ये शर्तें पूरी होती हैं और सपिंडा विवाह की अनुमति देने वाला एक वैध रिवाज है, तो HMA की धारा 5 (v) के तहत विवाह को शून्य घोषित नहीं किया जाएगा।
क्या अन्य देशों में सपिंडा विवाह के समान विवाह की अनुमति है?
- फ्राँस और बेल्जियम:
- फ्राँस में नेपोलियन बोनापार्ट के शासन के दौरान अधिनियमित 1810 की दंड संहिता ने अनाचार के अपराध को समाप्त कर दिया, जब तक कि इसमें सहमति से वयस्क विवाह शामिल थे।
- अनाचार एक पुरुष और महिला के बीच होने वाले यौन संबंधों या विवाह का अपराध है जिनका आपस में नज़दीकी खून का रिश्ता होता है।
- बेल्जियम ने शुरू में वर्ष 1810 के फ्राँसीसी दंड संहिता को अपनाया और बाद में वर्ष 1867 में अपनी स्वयं की दंड संहिता पेश की, फिर भी दोनों के अधिकार क्षेत्र में अनाचार कानूनी बना हुआ है।
- फ्राँस में नेपोलियन बोनापार्ट के शासन के दौरान अधिनियमित 1810 की दंड संहिता ने अनाचार के अपराध को समाप्त कर दिया, जब तक कि इसमें सहमति से वयस्क विवाह शामिल थे।
- पुर्तगाल:
- पुर्तगाली कानून अनाचार को अपराध नहीं मानता है, जिसका अर्थ है कि करीबी रिश्तेदारों के बीच विवाह निषिद्ध नहीं हो सकता है।
- आयरलैंड गणराज्य:
- वर्ष 2015 में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के बावजूद, आयरलैंड गणराज्य में अनाचार पर कानून समलैंगिक संबंधों वाले व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है।
- इटली:
- इटली में, अनाचार को केवल तभी अपराध माना जाता है यदि इसका परिणाम "सार्वजनिक घोटाला" हो।
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- संयुक्त राज्य अमेरिका में सभी 50 राज्य अगम्यागमनात्मक विवाहों पर रोक लगाते हैं। हालाँकि सहमति देने वाले वयस्कों के बीच अनाचारपूर्ण संबंधों से संबंधित कानूनों में भिन्नताएँ हैं।
- हालाँकि न्यू जर्सी और रोड आइलैंड में सहमति से वयस्क अगम्यागमनात्मक संबंधों की अनुमति है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में सभी 50 राज्य अगम्यागमनात्मक विवाहों पर रोक लगाते हैं। हालाँकि सहमति देने वाले वयस्कों के बीच अनाचारपूर्ण संबंधों से संबंधित कानूनों में भिन्नताएँ हैं।
निष्कर्ष
- HMA द्वारा विनियमित सपिंडा विवाह की अवधारणा, कुछ वंशानुगत लग्नों के अंतर्गत मिलन पर रोक लगाकर पारिवारिक और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने के प्रयास को दर्शाती है। कानून में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर विवाह को शून्य घोषित करते हैं, जब तक कि ऐसे विवाहों की अनुमति देने वाला कोई सुस्थापित रिवाज़ न हो।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, विभिन्न देशों में अनाचार संबंधों और विवाहों पर अलग-अलग कानूनी रुख हैं, जो व्यक्तिगत पसंद तथा पारिवारिक संबंधों के मुद्दों पर कानूनी दृष्टिकोण की विविधता को प्रदर्शित करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में, 1884 का रखमाबाई मुकदमा किस पर केंद्रित था?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर : (b) व्याख्या
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
शासन व्यवस्था
आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं
प्रिलिम्स के लिये:आधार, नागरिकता, भारत निर्वाचन आयोग, नागरिकता अधिनियम 1955 मेन्स के लिये:नीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे, आधार के उपयोग के संबंध में चिंताएँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने हाल ही में इस बात पर बल दिया है कि आधार नागरिकता या जन्मतिथि (Date of Birth- DOB) का प्रमाण नहीं है।
- नए आधार कार्ड एवं पहचान दस्तावेज़ के PDF संस्करणों में एक अधिक स्पष्ट और प्रमुख अस्वीकरण शामिल होना शुरू हो गया है कि ये "पहचान का प्रमाण हैं, नागरिकता या जन्मतिथि का नहीं" तथा सरकारी विभागों व अन्य संगठनों को इन उद्देश्यों के लिये इसका उपयोग न करने का संकेत दिया गया है।
पहचान दस्तावेज़ के रूप में आधार के उपयोग पर कानूनी स्पष्टीकरण क्या हैं?
- बॉम्बे उच्च न्यायालय:
- महाराष्ट्र राज्य बनाम भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) मामले, 2022 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक पहचान दस्तावेज़ के रूप में आधार के दायरे और सीमाओं को स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि आधार केवल पहचान और निवास का प्रमाण है, नागरिकता या जन्मतिथि का नहीं।
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ मामले, 2018 में आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 में कहा गया है कि "आधार संख्या या उसका प्रामाणीकरण, अपने आप में, आधार संख्या धारक के संबंध में नागरिकता या अधिवास का कोई अधिकार प्रदान नहीं करेगा या इसका प्रमाण नहीं होगा।"
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ मामले, 2018 में आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY): MeitY ने वर्ष 2018 के एक ज्ञापन में स्पष्ट किया कि आधार "वास्तव में... जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है", क्योंकि जन्म तिथि आधार आवेदकों द्वारा दिये गए एक अलग दस्तावेज़ पर आधारित है।
- कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO):
- EPFO जो भारत में वेतनभोगी कर्मचारियों के लिये अनिवार्य सेवानिवृत्ति निधि का प्रबंधन करता है।
आधार
- आधार भारत सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा जारी की गई 12 अंकीय व्यक्तिगत पहचान संख्या है। यह संख्या भारत में कहीं भी पहचान और पते के प्रमाण के रूप में कार्य करता है।
- यह जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी के आधार पर व्यक्तियों की पहचान स्थापित करता है।
- देश में लगातार छह महीने से अधिक समय तक रहने वाले किसी भी व्यक्ति को आधार कार्ड जारी किया जा सकता है, बशर्ते वह 18 सूचीबद्ध पहचान पत्रों में से एक पते का प्रमाण जमा करे।
- विदेशी नागरिक इसे प्राप्त करने के पात्र हैं यदि वे 6 माह से भारत में रह रहे हैं।
- आधार नंबर निवासियों को उचित समय पर बैंकिंग, मोबाइल फोन कनेक्शन और अन्य सरकारी तथा गैर-सरकारी सेवाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं का लाभ उठाने में मदद करेगा।
आधार के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- नागरिकता या जन्मतिथि के प्रमाण के रूप में आधार का उपयोग:
- भारत का निर्वाचन आयोग स्पष्ट रूप से लोगों को वोट देने के लिये नामांकन हेतु जन्मतिथि के प्रमाण के रूप में आधार को स्वीकार करता है।
- आधार के उपयोग के बारे में ये हालिया स्पष्टीकरण, जो पहचान दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से मुद्रित हैं, इन छूटों पर सवाल उठा सकते हैं।
- भारत का निर्वाचन आयोग स्पष्ट रूप से लोगों को वोट देने के लिये नामांकन हेतु जन्मतिथि के प्रमाण के रूप में आधार को स्वीकार करता है।
- गोपनीयता तथा सुरक्षा:
- आधार में उंगलियों के निशान, आईरिस स्कैन तथा मुख की छवि जैसी संवेदनशील वैयक्तिक जानकारी का संग्रह तथा भंडारण शामिल होता है जिससे डेटा उल्लंघन, पहचान की चोरी तथा अनुवीक्षण का खतरा बढ़ जाता है।
- बायोमेट्रिक प्रामाणीकरण:
- आधार के माध्यम से सेवाओं का लाभ उठाने के लिये बायोमेट्रिक सत्यापन की आवश्यकता होती है जो प्रौद्योगिकी की विश्वसनीयता और सटीकता, बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता, गुणवत्ता एवं बायोमेट्रिक विफलताओं के कारण सेवाओं के निर्बाध पहुँच में देरी जैसी चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
नागरिकता
- नागरिकता एक व्यक्ति तथा राज्य के बीच की कानूनी स्थिति तथा संबंध है जिसमें विशिष्ट अधिकार एवं कर्त्तव्य शामिल होते हैं।
- वर्ष 1955 का नागरिकता अधिनियम, नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीकों का उल्लेख करता है, जिसमें जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र का समावेश शामिल है।
- यह अधिनियम समाप्ति, अभाव और स्वैच्छिक त्याग के माध्यम से नागरिकता के त्याग से भी संबंधित है।
- भारतीय संविधान का भाग II नागरिकता को परिभाषित करता है जिसमें अनुच्छेद 5 से 11 शामिल हैं।
- नागरिकता संविधान के तहत संघ सूची में सूचीबद्ध है तथा इस प्रकार यह संसद के विशेष क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।
- भारत में जन्म प्रमाण-पत्र पहचान, आयु तथा भारतीय नागरिकता के प्रमाण के रूप में कार्य कर सकता है।
- जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 के अनुसार जन्म का पंजीकरण 21 दिनों के भीतर किया जाना चाहिये।
आगे की राह
- आधार कार्ड पर अद्यतन तथा स्पष्ट अस्वीकरण के बारे में जनता, सरकारी विभागों तथा संगठनों को शिक्षित करने के लिये व्यापक जागरूकता अभियान शुरू करना।
- इस तथ्य पर ज़ोर देना कि आधार पूर्ण रूप से पहचान तथा निवास का प्रमाण है न कि नागरिकता अथवा जन्म तिथि की पुष्टि करने वाला दस्तावेज़।
- विधिक, गोपनीयता तथा सुरक्षा चिंताओं पर विचार करते हुए आधार की भूमिका एवं अनुमत उपयोग का व्यापक पुनर्मूल्यांकन करना।
- आधार डेटाबेस में संग्रहीत संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ डेटा सुरक्षा उपायों को कार्यान्वित करना।
- बायोमेट्रिक सत्यापन की विश्वसनीयता और सटीकता में सुधार लाने, विफलताओं तथा बहिष्करणों की घटनाओं को कम करने के लिये नवीन समाधानों का अन्वेषण करें।
- आधार प्रणाली की समग्र प्रभावशीलता और समावेशिता को बढ़ाने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. सरकार की दो समानांतर चलाई जा रही योजनाओं तथा ‘आधार कार्ड’ और ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, एक स्वैच्छिक एवं दूसरी अनिवार्य, ने राष्ट्रीय स्तरों पर वाद-विवादों और मुकदमों को जन्म दिया है। गुणों-अवगुणों के आधार चर्चा कीजिये कि दोनों योजनाओं को साथ-साथ चलाना आवश्यक है या नहीं? इन योजनाओं की विकासात्मक लाभों और न्यायोचित संवृद्धि को प्राप्त करने की संभाव्यता का विश्लेषण कीजिये। (2014) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
FPI डिस्क्लोज़र मानदंड
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI), प्रबंधन के तहत संपत्ति (AUM)। मेन्स के लिये:FPI प्रकटीकरण मानदंड, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों का वितरण, वृद्धि, विकास तथा रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India - SEBI) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (Foreign portfolio investors - FPIs) द्वारा अतिरिक्त प्रकटीकरण प्रदान करने के लिये और महीने बढ़ा दिये हैं।
- मई 2023 में, SEBI ने अनुमान लगाया कि लगभग 2.6 लाख करोड़ रुपए की FPI प्रबंधन के तहत संपत्ति (Under Management - AUM) को संभावित रूप से उच्च जोखिम वाले FPI के रूप में पहचाना जा सकता है, जिसे 31 मार्च, 2023 तक के आँकड़ों के आधार पर अतिरिक्त प्रकटीकरण की आवश्यकता होगी।
- उच्च जोखिम वाले FPI जो एक ही कॉर्पोरेट इकाई में अपनी इक्विटी (AUM) के 50% या उससे अधिक के स्वामी हैं।
SEBI के FPI प्रकटीकरण मानदंड क्या हैं?
- अतिरिक्त प्रकटीकरण के लिए आवश्यकता:
- एकल भारतीय कॉर्पोरेट समूह में अपने भारतीय इक्विटी AUM का 50% से अधिक रखने वाले या भारतीय बाज़ारों में 25,000 करोड़ रुपए से अधिक इक्विटी AUM रखने वाले FPI को अतिरिक्त विवरण प्रदान करना आवश्यक है।
- अनुपालन के लिये समय-सीमा:
- मौजूदा FPI जो अक्तूबर 2023 तक निवेश सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं, उन्हें 90 कैलेंडर दिनों के अंदर अपने एक्सपोज़र को कम करने की आवश्यकता है, जब तक कि वे किसी छूट वाली श्रेणी में नहीं आते।
- यदि FPI अपने निवेशकों के बारे में डेटा का खुलासा करने के लिये जनवरी के अंत की समय-सीमा को पूरा नहीं करते हैं, तो उन्हें कथित तौर पर अपनी होल्डिंग्स को समाप्त करने के लिये अतिरिक्त सात महीने का समय मिलेगा।
- प्रतिभूतियों में किसी पद को छोड़ने का कार्य, आम तौर पर इसे नकदी के लिये बेचकर, होल्डिंग के परिसमापन के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिये, एक निवेशक अपने पोर्टफोलियो में मौजूद सभी शेयरों या उसके एक हिस्से को नकदी के लिये बेचने का विकल्प चुन सकता है।
- छूट प्राप्त श्रेणियाँ:
- FPI की कुछ श्रेणियों को अतिरिक्त छूट दी गई है।
- इनमें सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds - SWFs), कुछ वैश्विक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध कंपनियाँ, सार्वजनिक खुदरा फंड और विविध वैश्विक होल्डिंग्स वाले अन्य विनियमित जमा निवेश वाहन शामिल हैं।
- FPI की कुछ श्रेणियों को अतिरिक्त छूट दी गई है।
SEBI ने FPI को अतिरिक्त खुलासे प्रदान करने के लिये क्यों कहा है?
- बाज़ार में व्यवधान का जोखिम: SEBI को चिंता है कि एकल निवेशित कंपनी या कॉर्पोरेट समूह में केंद्रित इक्विटी पोर्टफोलियो वाले FPI भारतीय प्रतिभूति बाज़ारों के व्यवस्थित कामकाज के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं।
- ऐसी चिंता है कि ऐसी संस्थाएँ, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी वाली संस्थाएँ, FPI मार्ग का दुरुपयोग करके संभावित रूप से बाज़ार को बाधित कर सकती हैं।
- संभावित नियामक धोखाधड़ी: नियामक इस संभावना से सावधान है कि निवेशित कंपनियों के प्रमोटर या एकजुट होकर काम करने वाले अन्य निवेशक नियामक आवश्यकताओं को दरकिनार करने के लिये FPI मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।
- इसमें शेयरों के पर्याप्त अधिग्रहण और अधिग्रहण विनियम, 2011 (SAST विनियम) द्वारा अनिवार्य खुलासे से बचना या सूचीबद्ध कंपनी में न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) आवश्यकताओं को पूरा करने में असफल होना शामिल है।
- नियामक उद्देश्यों के साथ संरेखण: SEBI का लक्ष्य भारतीय प्रतिभूति बाज़ारों की अखंडता, पारदर्शिता और स्थिरता सुनिश्चित करना है।
- FPI से विस्तृत जानकारी प्राप्त करके, नियामक FPI गतिविधियों को नियामक उद्देश्यों के साथ संरेखित करना, दुरुपयोग को रोकना और बाज़ार की अखंडता को बनाए रखना चाहता है।
- PN3 बहिष्करण: जबकि अप्रैल 2020 में केंद्र सरकार द्वारा जारी प्रेस नोट 3 (PN3) विशेष रूप से FPI निवेश पर लागू नहीं होता है, सेबी अभी भी FPI मार्ग के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंतित है।
- SEBI का मानना है कि इन चिंताओं को दूर करने और भारतीय प्रतिभूति बाज़ारों के हितों की रक्षा के लिये FPI से अतिरिक्त खुलासे प्राप्त करना आवश्यक है।
प्रेस नोट 3 क्या है?
- कोविड-19 महामारी के दौरान, केंद्र सरकार ने एक प्रेस नोट 3 (2020) के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन किया।
- ऐसा कहा गया था कि ये संशोधन सस्ते मूल्यांकन पर तनावग्रस्त भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण को रोकने के लिये किये गए थे।
- नए विनियमों के अनुसार, किसी देश की इकाई, जो भारत के साथ भूमि सीमा साझा करती है या जहाँ भारत में निवेश का लाभकारी अधिकारी स्थित है या ऐसे किसी भी देश का नागरिक है, को केवल सरकारी मार्ग के तहत निवेश करने की आवश्यकता है।
- विदेशी निवेशकों के लिये निवेश के दो मार्ग हैं, सरकारी रूट और ऑटोमैटिक रूट।
- सरकारी मार्ग का तात्पर्य विदेशी निवेश के लिये नियामक निकायों से आधिकारिक अनुमोदन प्राप्त करना है, जबकि स्वचालित मार्ग पूर्व अनुमोदन के बिना निवेश की अनुमति देता है, जो उन क्षेत्रों में आम है जहाँ विदेशी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाता है।
- साथ ही, भारत में किसी इकाई में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी मौजूदा या भविष्य के FDI के स्वामित्व के हस्तांतरण की स्थिति में, जिसके परिणामस्वरूप लाभकारी स्वामित्व उक्त नीति संशोधन के प्रतिबंध/दायरे के अंतर्गत आता है, लाभकारी स्वामित्व में ऐसे उत्तरोत्तर बदलाव के लिये भी सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
- प्रेस नोट 3 (2020) को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण लिखत) संशोधन नियम, 2020 के माध्यम से लागू किया गया था।
- प्रेस नोट 3 अभी भी जनवरी 2024 तक लागू है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक क्या हैं?
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign portfolio investment- FPI) में विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियाँ और अन्य वित्तीय संपत्तियाँ शामिल हैं। यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्रदान नहीं करता है और बाज़ार की अस्थिरता के आधार पर अपेक्षाकृत चल है।
- FPI के उदाहरणों में स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड, अमेरिकन डिपॉज़िटरी रसीद (ADR) और ग्लोबल डिपॉज़िटरी रसीद (GDR) शामिल हैं।
- FPI किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा है और इसे उसके भुगतान संतुलन (BOP) पर दिखाया जाता है।
- BOP एक वित्तीय वर्ष में एक देश से दूसरे देशों में प्रवाहित होने वाली धनराशि का आकलन करता है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा वर्ष 2014 के पूर्ववर्ती FPI विनियमों की जगह नए FPI विनियम, 2019 लाए गए।
- किसी अर्थव्यवस्था में संकट के पहले संकेत पर बहिर्प्रवाह की प्रवृत्ति के कारण FPI को प्रायः "हॉट मनी" कहा जाता है। FPI FDI की तुलना में अधिक चल, अस्थिर और इस कारण जोखिम भरा है।
FPI से संबंधित लाभ और चिंताएँ क्या हैं?
- लाभ:
- FPI भारत के लिये प्रमुख लाभ का स्रोत है, जिसमें बढ़ी हुई नकदी/चलनिधि, उच्च शेयर बाज़ार मूल्यांकन और वैश्विक बाज़ार एकीकरण शामिल हैं।
- विदेशी पूंजी की आय आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता, विशेषकर प्रौद्योगिकी-उन्मुख क्षेत्रों में योगदान देता है।
- चिंताएँ:
- FPI जोखिमपूर्ण है; वैश्विक आर्थिक कारकों से प्रभावित बाज़ार की अस्थिरता संभावित रूप से अस्थिरता एवं मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव का कारण बनती है।
- FPI संरचनाओं की जटिल प्रकृति लाभकारी स्वामियों का निर्धारण करने में चुनौतियाँ पेश करती है, जिससे निधि के संभावित दुरुपयोग तथा कर चोरी से संबंधित चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- FPI परिदृश्य की अतिरिक्त चुनौतियों में नियामक जोखिम, वैश्विक आर्थिक स्थितियों में बदलाव तथा विदेशी निवेश रुझान शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013) (a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (SDR) तथा विदेशों से ऋण उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) (a) यह मूलत: किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है। उत्तर: (b)
मेन्स:प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एफ.डी.आई की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक एफ. डी.आई के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक एफ.डी.आई को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइये। (2016) प्रश्न. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब स्वतंत्र बनाया जाना तय है: लघु और दीर्घावधि में भारतीय रक्षा तथा अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ने की उम्मीद है? (2014) |