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डेली न्यूज़

  • 30 Jun, 2023
  • 72 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रीडफ्लेशन

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीडफ्लेशन, मुद्रास्फीति, अवस्फीति, अपस्फीति, पुन: मुद्रास्फीति, वेज-प्राइस स्पाइरल, आरबीआई

मेन्स के लिये:

ग्रीडफ्लेशन और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में यूरोप और अमेरिका में इस विषय पर आम सहमति बनी है कि मुद्रास्फीति के बजाय ग्रीडफ्लेशन जीवनयापन की लागत को और बढ़ा रहा है।

  • ग्रीडफ्लेशन/लालच मुद्रास्फीति को समझने के लिये यह जानना आवश्यक है कि मुद्रास्फीति कैसे काम करती है।

मुद्रास्फीति से संबंधित प्रमुख शब्दावलियाँ: 

  • मुद्रास्फीति:  
    • मुद्रास्फीति वह दर है जिस पर सामान्य मूल्य स्तर बढ़ता है। 
    • यदि यह बताया जाता है कि जून 2023 में मुद्रास्फीति की दर 5% थी तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था का सामान्य मूल्य स्तर जून 2022 की तुलना में 5% अधिक था।
  • अवस्फीति: 
    • अवस्फीति उस प्रवृत्ति को संदर्भित करती है जब मुद्रास्फीति की दर कम हो जाती है। 
    • यह उस अवधि को संदर्भित करती है जब कीमतें बढ़ रही होती हैं, लेकिन यह प्रत्येक विगत माह की तुलना में धीमी गति से बढ़ती है।
    • उदाहरणतः अप्रैल में यह 10%, मई में 7% और जून में 5% थी।  
  • अपस्फीति: 
    • अपस्फीति मुद्रास्फीति के बिल्कुल विपरीत है। कल्पना करें कि जून 2023 में सामान्य मूल्य स्तर जून 2022 की तुलना में 5% कम था। यह अपस्फीति है।
    • यह वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में एक सामान्य गिरावट है, जो आमतौर पर अर्थव्यवस्था में धन और ऋण की आपूर्ति में संकुचन से जुड़ी होती है।
  • मुद्रा संस्फीति (Reflation): 
    • मुद्रा संस्फीति आमतौर पर अपस्फीति के बाद होती है क्योंकि नीति निर्माता या तो सरकारी व्यय अधिक कर और/या ब्याज दरों को कम करके आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास करते हैं।

मुद्रास्फीति का कारण:

  • कारक: 
    • लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation): उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण: यदि आपूर्ति में विघटन के कारण कच्चे तेल की कीमतें रातोंरात 10% बढ़ जाती हैं, तो ऊर्जा लागत बढ़ने से सामान्य मूल्य स्तर बढ़ जाएगा।
    • मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation): मांग बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
      • उदाहरण: यदि भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में तेज़ी से कटौती करता है, जिससे ब्याज दर गिरने के बाद लोग किफायती घर खरीद सकेंगे, तो नए घरों की मांग में अचानक वृद्धि से घर की कीमतें बढ़ जाएंगी।
  • मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय:
    • मौद्रिक नीति: जब अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक मांग होती है, तो केंद्रीय बैंक मांग को आपूर्ति के साथ संरेखित करने के लिये अपनी मौद्रिक नीति उपाय (संकुचनात्मक मौद्रिक नीति) के रूप में ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं। इसी तरह यदि मुद्रास्फीति लागत दबाव से उत्पन्न होती है, तो केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को बढ़ाते हैं।
      • प्राथमिक उद्देश्य मांग को नियंत्रित करना है क्योंकि केंद्रीय बैंकों के पास सीधे आपूर्ति बढ़ाने के लिये सीमित उपकरण हैं।
      • उनका उद्देश्य वेतन-मूल्य वृद्धि को रोकना होता है, जहाँ बढ़ती कीमतें उच्च मज़दूरी, उत्पादन लागत में वृद्धि और कीमतों में वृद्धि का कारण बनती हैं।
    • राजकोषीय नीति: यदि मुद्रास्फीति का दबाव है, तो उस स्थिति में सरकार अर्थव्यवस्था में कुल मांग में मूल्य दबाव को कम करने के लिये व्यय को कम कर सकती है या कर बढ़ा सकती है।
      • अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिये सरकारी खर्च और राजस्व संग्रह (ज़्यादातर कर, लेकिन विनिवेश और ऋण जैसे गैर-कर राजस्व भी) का उपयोग राजकोषीय नीति के रूप में जाना जाता है।

वेज-प्राइस स्पाइरल: 

  • जब कीमतों में वृद्धि होती है, तब श्रमिक उच्च मज़दूरी की मांग करते हैं, लेकिन इससे बिना आपूर्ति में सुधार हुए केवल समग्र मांग में ही वृद्धि होती है।
  • परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति न्यूनतम हो जाती है क्योंकि उच्च मज़दूरी से क्रय शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे कीमतों में वृद्धि होती है।
  • केंद्रीय बैंक आर्थिक गतिविधि और मांग को कम करने के लिये ब्याज दरें बढ़ाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं। इन कमियों के बावजूद इस दृष्टिकोण का उपयोग केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ती मज़दूरी तथा कीमतों के चक्र को रोकने के लिये किया जाता है, जिसे वेज-प्राइस स्पाइरल के रूप में जाना जाता है,साथ ही इसका उपयोग मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये किया जाता है।

ग्रीडफ्लेशन: 

  • परिचय: 
    • ग्रीडफ्लेशन की स्थिति का सामान्य अर्थ निगमों द्वारा लालच-प्रेरित मुद्रास्फीति में हुई वृद्धि से है। वेतन-मूल्य सर्पिल के स्थान पर यह एक लाभ-मूल्य चक्र है जहाँ कंपनियाँ अपनी बढ़ी हुई लागत को प्राप्त करने और साथ ही लाभ मार्जिन को अधिकतम करते हुए कीमतों में अत्यधिक वृद्धि कर मुद्रास्फीति का लाभ उठाती हैं। ये मुद्रास्फीति की स्थिति में और अधिक वृद्धि करती हैं।
      • यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों में इस बात पर आम सहमति बन रही है कि ग्रीडफ्लेशन ही इसके लिये महत्त्वपूर्ण कारक है। 
  • परिदृश्य: 
    • प्राकृतिक आपदाओं या महामारी जैसे संकटों के दौरान कीमतों में सामान्यतः वृद्धि हो जाती हैं क्योंकि इनपुट लागत बढ़ने के कारण व्यवसाय कीमतें बढ़ा देते हैं।
    • हालाँकि कुछ मामलों में अधिक मूल्य वृद्धि के माध्यम से व्यापार में अत्यधिक लाभ अर्जित करके स्थिति का फायदा उठाते हैं।
  • प्रभाव: 
    • ग्रीडफ्लेशन कम आय और मध्यम वर्ग के व्यक्तियों पर असमान रूप से प्रभाव डालती है, यह उपभोग में कटौती कर जीवन स्तर को कम करता है।
      • जबकि यह अधिक आय और उच्च वर्ग के व्यक्तियों को उनकी संपत्ति के मूल्य में वृद्धि करके आय असमानता को बढ़ाते हुए लाभ पहुँचाता है।
    • कीमतों में अधिक वृद्धि और लालच द्वारा संचालित अनुमानों से इकोनॉमिक बबल (Economic Bubble) और अस्थिर बाज़ार की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे वित्तीय बाज़ार दुर्घटनाओं और संकट के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता के लिये जोखिम पैदा होता है।
    • लालच से उत्पन्न मुद्रास्फीति के दबाव के परिणामस्वरूप देशों के बीच भिन्न-भिन्न नीतियाँ बन सकती हैं। प्रत्येक राष्ट्र मुद्रास्फीति से निपटने के लिये अलग-अलग रणनीतियाँ अपना सकता है, जिससे परस्पर विरोधी दृष्टिकोण सामने आ सकते हैं।
      • इससे वैश्विक असंतुलन, व्यापार तनाव और भू-राजनीतिक संघर्ष बढ़ सकते हैं क्योंकि देश प्रतिस्पर्द्धात्मकता की स्थिति में अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं।

 भारत में ग्रीडफ्लेशन:

  • प्रचलन: 
    • सूचीबद्ध कंपनियों का निवल लाभ रिकॉर्ड उच्च स्तर पर देखा जा सकता है।
    • मार्च 2023 में भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों (4,293) का निवल लाभ बढ़कर 2.9 ट्रिलियन रुपए हो गया, जो दिसंबर 2017 से दिसंबर 2019 तक महामारी-पूर्व औसत 0.83 ट्रिलियन रुपए से 3.5 गुना अधिक है, यह महामारी के बाद असाधारण लाभ सृजन का संकेत देता है।

  • ग्रीडफ्लेशन का अस्तित्व:
    • भारत में निवल लाभ में 60% वृद्धि का श्रेय पूरी तरह से लाभ मार्जिन में वृद्धि को दिया जा सकता है। बिक्री में वृद्धि हेतु अतिरिक्त 36% का योगदान शेष दोनों के संयोजन का  परिणाम था, जो ग्रीडफ्लेशन की उपस्थिति को दर्शाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति अथवा उसमें वृद्धि निम्नलिखित किन कारणों से होती है? (2021)

  1. विस्तारकारी नीतियाँ
  2. राजकोषीय प्रोत्साहन
  3. मुद्रास्फीति-सूचकांकन मज़दूरी
  4. उच्च क्रय शक्ति
  5. बढ़ती ब्याज दर 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. खाद्य वस्तुओं का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में भार उनके थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं पकड़ता है, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान हेतु तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण और परिवर्तन हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

पेरिस वैश्विक जलवायु वित्तपोषण शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु वित्तपोषण, रूस-यूक्रेन संघर्ष, ग्लोबल साउथ, विश्व बैंक, IMF, SDR, पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल

मेन्स के लिये:

पेरिस वैश्विक जलवायु वित्तपोषण शिखर सम्मेलन

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में पेरिस में एक नए वैश्विक वित्तीय समझौते हेतु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसका उद्देश्य विकासशील देशों के लिये वित्तीय सहायता की कमी से निपटना था।

शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ: 

  • विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले संकट:
    • विकासशील देश गरीबी, बढ़ते ऋण स्तर और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसी घटनाओं के कारण मुद्रास्फीति सहित कई संकटों से जूझ रहे हैं।
    • आर्थिक चुनौतियों के अलावा पर्याप्त जलवायु वित्त की कमी के बावजूद  विकासशील देशों पर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन मुक्त (Decarbonise) करने का दबाव है।
  • ग्लोबल साउथ की मांग: 
    • ग्लोबल साउथ के नेताओं की मांग है कि बहुपक्षीय विकास बैंक (IMD) सीमा पार चुनौतियों का समाधान कर जलवायु वित्त सहित विकास के लिये अतिरिक्त संसाधन प्रदान करे।
    • विकासशील देशों ने अपने ऋण के भार को कम करने के लिये अधिक रियायती और अनुदान के रूप में वित्तपोषण की मांग की, इसमें विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों के लिये ऋण कटौती की भी वकालत की गई।
    • निजी क्षेत्र के निवेश की क्षमता को स्वीकार करते हुए उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया है कि निजी क्षेत्र के वित्तपोषण के पूरक के लिये दीर्घकालिक विकास निधि आवश्यक है। 
  • शिखर सम्मेलन में की गई घोषणाएँ: 
    • शिखर सम्मेलन में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त ऋण क्षमता में वृद्धि की घोषणा की गई।
      • विश्व बैंक ने चरम मौसम की घटनाओं के दौरान ऋण भुगतान को निलंबित करने के लिये आपदा भुगतान धाराएँ प्रस्तुत कीं। 
    • IMF ने कमज़ोर देशों के लिये SDRs (विशेष आहरण अधिकार) में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आवंटन की घोषणा की, हालाँकि कुछ SDR को अभी भी अमेरिकी कॉन्ग्रेस से अनुमोदन की आवश्यकता है।
    • सेनेगल के लिये 2.5 बिलियन यूरो की एक नई जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) डील की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य देश के विद्युत मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना है।
    • ज़ाम्बिया द्वारा 6.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण पुनर्गठन समझौते के बाद ऋण, प्रकृति और जलवायु पर एक वैश्विक विशेषज्ञ समीक्षा की मांग भी की गई।
    • यूरोपीय संघ ने कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र द्वारा वैश्विक उत्सर्जन के कवरेज में वृद्धि तथा राजस्व का एक हिस्सा जलवायु वित्त के लिये आवंटित करने का आह्वान किया।
    • शिखर सम्मेलन ने संकेत दिया कि  इस वर्ष लंबे समय से प्रतीक्षित 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का जलवायु वित्त लक्ष्य प्राप्त किया जाएगा।
      • यह प्रतिबद्धता वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में UNFCCC COP15 में की गई थी 

जलवायु वित्त:

  • परिचय: 
    • यह स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त किया गया है, साथ ही यह जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने वाले शमन एवं अनुकूलन कार्यों का समर्थन करता है।
  • वैश्विक चर्चाएँ: 
    • UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते में अधिक वित्तीय संसाधनों (विकसित देशों) वाले देशों से उन लोगों को वित्तीय सहायता देने का आह्वान किया गया है जो कम संपन्न और अधिक असुरक्षित (विकासशील देश) हैं।
    • UNFCCC COP26 में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिये नई वित्तीय प्रतिज्ञाएँ की गईं।
  • महत्त्व: 
    • जलवायु परिवर्तन प्रभाव शमन और अनुकूलन:
      • जलवायु प्रभाव को कम करने के लिये जलवायु वित्त और उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने के लिये बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है।
      • यह अनुकूलन के लिये भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है; बदलती जलवायु के प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल होने के लिये महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।
      • पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु जलवायु वित्त महत्त्वपूर्ण है, (2018 आईपीसीसी रिपोर्ट)
    • ज़िम्मेदारियों की पहचान:
      • यह मानता है कि जलवायु परिवर्तन में देशों का योगदान और इसे रोकने व इसके परिणामों से निपटने की उनकी क्षमता में काफी भिन्नता है।
      • इसलिये विकसित देशों को विभिन्न प्रकार की कार्रवाइयों के माध्यम से जलवायु वित्त जुटाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये, जिसमें देश-संचालित रणनीतियों का समर्थन करना और विकासशील देशों की ज़रूरतों एवं प्राथमिकताओं पर ध्यान देना  शामिल है।

जलवायु वित्त के संबंध में पहलें 

  • वैश्विक:  
    • वर्ष 2010 में 194 सदस्य देशों ने UNFCCC COP16 में ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) के निर्माण पर सहमति जताई।
    • GCF की स्थापना जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये विकासशील देशों को कम उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने वाली व्यवस्थाओं की ओर उन्मुख होने के प्रयासों में मदद करने के लिये की गई थी।
    • इसका मुख्यालय इंचियोन, कोरिया गणराज्य में है।
    • COP27 शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण सबसे कमज़ोर देशों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये 'नुकसान और क्षति (Loss and Damages)' कोष बनाने पर सहमति व्यक्त की।
  • भारत:  
    • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund for Climate Change- NAFCC): 
      • इसकी स्थापना वर्ष 2015 में विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की लागत को पूरा करने के लिये की गई थी।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (National Clean Energy Fund- NCEF): 
      • इसे स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (Cabinet Committee of Economic Affairs- CCEA) की सिफारिश द्वारा वित्त विधेयक 2010-11 के माध्यम से स्थापित किया गया था तथा इसके इसके वित्तपोषण का कार्य उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर लगने वाले प्रारंभिक कार्बन कर के माध्यम से किया गया था।
      • इसे वित्त सचिव (अध्यक्ष के रूप में) के साथ एक अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा शासित किया जाता है।
      • इसका प्रमुख उद्देश्य जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास के लिये कोष प्रदान करना है।
    • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष: 
      • इस कोष की स्थापना वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए की धनराशि के साथ की गई थी, इसका उद्देश्य आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतराल की पूर्ति करना था।
      • यह कोष पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत संचालित होता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फंड)' के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015) 

  1. यह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने हेतु अनुकूलन और न्यूनीकरण पद्धतियों में सहायता देने के आशय से बनी है।
  2. इसे UNEP, OECD, एशिया विकास बैंक और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में स्थापित किया गया है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a) 


मेन्स:  

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) 

स्रोत: डाउन द अर्थ


शासन व्यवस्था

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण खनिज, शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य, इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, खनिज सुरक्षा साझेदारी

मेन्स के लिये:

भारत के लिये खनिजों का महत्त्व, भारत में खनिज वितरण 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री ने खान मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ दल द्वारा तैयार किये गए “भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों” पर देश की पहली रिपोर्ट पेश की। 

  • यह रिपोर्ट खनन क्षेत्र में नीति निर्माण, रणनीतिक योजना और निवेश निर्णयों के लिये एक मार्गदर्शक अवसंरचना के रूप में काम करेगी। यह पहल एक मज़बूत एवं लचीला खनिज क्षेत्र का निर्माण करने हेतु सरकार की प्रतिबद्धता द्वारा भारत के लिये 'नेट ज़ीरो/शुद्ध-शून्य' लक्ष्य की प्राप्ति के बड़े दृष्टिकोण के साथ संरेखित है।

खनिज:  

  • खनिज भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित प्राकृतिक पदार्थ हैं। उनमें एक निश्चित रासायनिक संरचना और भौतिक अभिलक्षण होते हैं।
  • उन्हें उनकी विशेषताओं और उपयोग के आधार पर धात्विक और गैर-धात्विक खनिजों में वर्गीकृत किया गया है।
  • धात्विक खनिज वे हैं जिनमें धातु अथवा धातु यौगिक होते हैं, जैसे लोहा, ताम्र, सोना, चांदी, आदि।
  • अधात्विक खनिज वे हैं जिनमें धातु नहीं होती, जैसे चूना पत्थर, कोयला, अभ्रक, जिप्सम आदि। 
  • महत्त्वपूर्ण खनिज:  
    • महत्त्वपूर्ण खनिज वे है जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं, इन खनिजों की उपलब्धता में कमी तथा केवल कुछ भौगोलिक स्थानों में निष्कर्षण या प्रसंस्करण के चलते आपूर्ति शृंखला में व्यवधान पैदा हो सकता है।

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों के घोषणा की प्रक्रिया: 
    • यह एक गतिशील प्रक्रिया है और यह समय के साथ नई प्रौद्योगिकियों, बाज़ार की गतिशीलता और भू-राजनीतिक विचारों के उभरने के साथ विकसित हो सकती है।
    • विभिन्न देशों के पास अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर महत्त्वपूर्ण खनिजों की अपनी अनूठी सूची हो सकती है।
    • अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा या आर्थिक विकास में उनकी भूमिका के को ध्यान में रखते हुए  50 खनिजों को महत्त्वपूर्ण घोषित किया है।
    • जापान ने 31 खनिजों के एक समूह को अपनी अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण माना है।
    • यूनाइटेड किंगडम ने 18, यूरोपीय संघ ने 34 और कनाडा ने 31 खनिजों को महत्त्वपूर्ण माना है
  • भारत के महत्त्वपूर्ण खनिज:  
    • खान मंत्रालय के अंतर्गत विशेषज्ञ समिति ने भारत के 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों के एक समूह की पहचान की है।
    • ये एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, कॉपर, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हेफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नाइओबियम, निकेल, पीजीई, फॉस्फोरस, पोटाश, आरईई, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम हैं।
    • खान मंत्रालय में महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये उत्कृष्टता केंद्र (CECM) के निर्माण की भी समिति ने सिफारिश की है।
    • CECM समय-समय पर भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की सूची को अद्यतन करने के साथ खनिज रणनीति को भी अधिसूचित करेगा।

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज: 

  • आर्थिक विकास: उच्च तकनीक इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन एवं रक्षा उद्योग इन खनिजों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • इसके अतिरिक्त सौर पैनल, पवन टरबाइन, बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज आवश्यक हैं।
    • इन क्षेत्रों में भारत की महत्त्वपूर्ण घरेलू मांग और क्षमता को देखते हुए इनकी वृद्धि से रोज़गार सृजन, आय सृजन और नवाचार में वृद्धि की जा सकती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: ये खनिज रक्षा, एयरोस्पेस, परमाणु उर्जा तथा अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जिसमें चरम स्थितियों का सामना करने के साथ जटिल कार्य करने में सक्षम उच्च गुणवत्ता वाली तथा विश्वसनीय सामग्रियों के उपयोग की आवश्यकता होती है।  
    • रक्षा तैयारियों के साथ आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिये भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: यह स्वच्छ ऊर्जा तथा कार्बन न्यून अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण का अभिन्न अंग है, जो जीवाश्म ईंधन तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर भारत की निर्भरता को कम करने में सक्षम बनाते हैं।
    • वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने की प्रतिबद्धता के साथ ये खनिज भारत के हरित उद्देश्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यह सहयोग भारत को अपने आयात स्रोतों में विविधता लाने, चीन पर निर्भरता कम करने और खनिज सुरक्षा एवं लचीलापन बढ़ाने में सक्षम बनाता है। 

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबंधित चुनौतियाँ:

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष के निहितार्थ: रूस विभिन्न महत्त्वपूर्ण खनिजों का एक प्रमुख उत्पादक है जबकि यूक्रेन के पास लिथियम, कोबाल्ट, ग्रेफाइट और दुर्लभ तत्त्वों का विशाल भंडार है।  
    • दोनों देशों के बीच चल रहा युद्ध इन महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को प्रभावित करता है।
  • सीमित घरेलू भंडार: भारत के पास प्रमुख खनिज जैसे लिथियम, कोबाल्ट और अन्य दुर्लभ तत्त्वों का सीमित भंडार है।
    • इनमें से अधिकांश खनिजों का आयात किया जाता है जिस कारण भारत इनकी आपूर्ति के लिये अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है। आयात पर यह निर्भरता मूल्य में उतार-चढ़ाव, भू-राजनीतिक कारकों तथा आपूर्ति में व्यवधान के मामले में भेद्यता उत्पन्न कर सकती है।

  • खनिजों की बढ़ती मांग: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहनों के संक्रमण हेतु बड़ी मात्रा में खनिजों जैसे- तांबा, मैंगनीज़, जस्ता, लिथियम, कोबाल्ट एवं अन्य दुर्लभ तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
    • भारत का सीमित भंडार और उच्च आवश्यकताएँ इसे घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विदेशी भागीदारों पर निर्भर बनाती हैं।

निष्कर्ष:

भारत के पास महत्त्वपूर्ण खनिजों के रणनीतिक प्रबंधन के माध्यम से अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को मज़बूत करने का अवसर है। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP) जैसी पहल में भाग लेकर भारत वैश्विक महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं की स्थापना में योगदान दे सकता है।

  • ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते महत्त्वपूर्ण खनिज अन्वेषण, विकास, प्रसंस्करण एवं व्यापार में भारत की स्थिति को और मज़बूत सकते हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

पशुपालन एवं डेयरी

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय गोकुल मिशन, दूध, किसान क्रेडिट कार्ड, मृदारहित कृषि

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में डेयरी और पशुधन क्षेत्र की भूमिका, संबंधित मुद्दे और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये की गई पहलें

चर्चा में क्यों?  

भारत सरकार के केंद्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्री ने हाल ही में विभाग की उपलब्धियों और पहलों पर प्रकाश डाला जिसमें ग्रामीण आय में वृद्धि करने तथा कृषि विविधीकरण का समर्थन करने में पशुपालन के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।

  • पशुपालन और डेयरी विभाग ने प्रति पशु उत्पादकता में सुधार के लिये पिछले नौ वर्षों के दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण पहलें की हैं।

पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र में उपलब्धियाँ: 

  • पशुधन क्षेत्र: 
    • पशुधन क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक महत्त्वपूर्ण उपक्षेत्र है। यह वर्ष 2014-15 से 2020-21 के दौरान (स्थिर कीमतों पर) 7.93 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा है।
    • कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में पशुधन का योगदान सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) (स्थिर कीमतों पर) 24.38 प्रतिशत (वर्ष 2014-15) से बढ़कर 30.87 प्रतिशत (वर्ष 2020-21) हो गया है। 
    • 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 303.76 मिलियन गोजातीय (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक), 74.26 मिलियन भेड़, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 9.06 मिलियन सूअर और लगभग 851.81 मिलियन मुर्गियाँ हैं।
  • डेयरी क्षेत्र: 
    • डेयरी का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत योगदान है और 8 करोड़ से अधिक किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार प्रदान करती है।I
    • भारत दूध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है और वैश्विक दुग्ध उत्पादन में 23 प्रतिशत तक का योगदान देता है।
    • पिछले आठ वर्षों में दूध उत्पादन में 51.05% की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2021-22 में 221.06 मिलियन टन तक पहुँच गया है।
    • पिछले 8 वर्षों में दूध उत्पादन में 6.1% की वार्षिक वृद्धि हुई है, जबकि वैश्विक दूध उत्पादन में 1.2% की वार्षिक वृद्धि हुई है।
    • भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 444 ग्राम प्रतिदिन है, जो विश्व के औसत 394 ग्राम प्रतिदिन से अधिक है।
  • अंडा एवं मांस उत्पादन: 
    • विश्व स्तर पर भारत अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में आठवें स्थान पर है।
    • अंडे का उत्पादन वर्ष 2014-15 के 78.48 बिलियन से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 129.60 बिलियन हो गया है, इसमें प्रतिवर्ष 7.4% की दर से वृद्धि हो रही है।
    • मांस का उत्पादन वर्ष 2014-15 के 6.69 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 9.29 मिलियन टन हो गया है।

पशुधन क्षेत्र के विकास के लिये प्रमुख पहल: 

  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
    • राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: 5.71 करोड़ से अधिक पशुओं को शामिल किया गया, जिससे 3.74 करोड़ किसानों को लाभ हुआ।
    • कृत्रिम गर्भाधान मादा नस्लों में गर्भधारण की एक नवीन विधि है।
    • IVF प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना: व्यवहार्य भ्रूण का निर्माण और बछड़ों का जन्म।
    • लिंग वर्गीकृत वीर्य उत्पादन: बछिया पैदा करने के लिये 90% सटीकता के साथ लिंग वर्गीकृत वीर्य का समावेशन ।
    • केवल बछिया पैदा होने (90% से अधिक सटीकता के साथ) से देश में दूध उत्पादन की वृद्धि दर को दोगुना करने में मदद मिलेगी।
    • डीएनए आधारित जीनोमिक चयन: विशिष्ट देशी नस्लों के चयन के लिये पशुओं की जीनोटाइपिंग।
    • पशु की पहचान और पता लगाने की क्षमता: विशिष्ट पहचान लेबल (UID) टैग का उपयोग करके 53.5 करोड़ जानवरों की पहचान और पंजीकरण।
    • संतति परीक्षण और वंशावली चयन: इसे विशिष्ट मवेशियों और भैंसों की नस्लों के लिये लागू किया गया।
    • राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन: पशुधन उत्पादकता बढ़ाना, बीमारियों को नियंत्रित करना और घरेलू तथा निर्यात बाज़ारों के लिये गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
    • नस्ल गुणन फार्म: नस्ल गुणन फार्म की स्थापना के लिये इस योजना के तहत निजी उद्यमियों को पूंजीगत लागत (भूमि लागत को छोड़कर) पर 50% (प्रति फार्म 2 करोड़ रुपए तक) की सब्सिडी प्रदान की जाती है। 
  • डेयरी सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों को सहायता: प्रतिकूल बाज़ार स्थितियों या प्राकृतिक आपदाओं के दौरान डेयरी सहकारी समितियों की सहायता के लिये सॉफ्ट कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किये जाते हैं।
  • डेयरी प्रसंस्करण एवं अवसंरचना विकास कोष (DIDF): इसका उपयोग दूध प्रसंस्करण, शीतलन और मूल्य संवर्द्धन बुनियादी ढाँचे का निर्माण एवं आधुनिकीकरण हेतु किया जाता है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन: पोल्ट्री फार्म, भेड़ एवं बकरी नस्ल गुणन फार्म, सुअर पालन फार्म एवं चारा इकाइयों की स्थापना के लिये व्यक्तियों, FPO और अन्य को प्रत्यक्ष सब्सिडी प्रदान करना।
  • पशुपालन अवसंरचना विकास निधि: डेयरी एवं मांस प्रसंस्करण, पशु चारा संयंत्र एवं नस्ल सुधार प्रौद्योगिकी के लिये निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम:
    • पशुओं के कान में टैग लगाना: लगभग 25.04 करोड़ पशुओं के कान में टैग लगाए गए हैं।
    • खुरपका और मुँहपका रोग (FMD) टीकाकरण: दूसरे दौर में 24.18 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया गया है। तीसरे दौर में 4.66 करोड़ पशुओं का टीकाकरण का कार्य जारी है।
    • ब्रुसेला टीकाकरण: 2.19 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया गया है।
    • मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ (MVU): 16 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 1960 MVU को हरी झंडी दिखाई गई जिनमें से 10 राज्यों में 1181 चालू स्थिति में हैं।
  • पशुधन गणना एवं एकीकृत नमूना सर्वेक्षण योजना:
    • एकीकृत नमूना सर्वेक्षण: यह बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी (BAHS) के वार्षिक प्रकाशन में प्रकाशित प्रमुख पशुधन उत्पादों (दूध, अंडा, मांस, ऊन) का अनुमान प्रदान करता है।
    • पशुधन जनगणना: ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर प्रजाति-वार और नस्ल-वार पशुधन आबादी का डेटा प्रदान करती है।
      • वर्ष 2019 में 20वीं पशुधन जनगणना पूरी की गई थी। "20वीं पशुधन जनगणना-2019" रिपोर्ट के प्रकाशन में प्रजाति-वार और राज्य-वार पशुधन आबादी को शामिल किया गया था,  इसके साथ पशुधन और कुक्कुट पर नस्ल-वार रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई थी। 
  • डेयरी किसानों के लिये किसान क्रेडिट कार्ड (KCC): दुग्ध सहकारी समितियों और दूध उत्पादक कंपनियों में AHD किसानों के लिये 27.65 लाख से अधिक नए किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) स्वीकृत किये गए

पशुपालन और डेयरी से संबंधित चुनौतियाँ:

  • रोग प्रबंधन और पशु स्वास्थ्य मुद्दे
  • चारे की उपलब्धता तथा गुणवत्ता।
  • आधुनिक बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी का अभाव।
  • कुशल कर्मियों और पशु चिकित्सा सेवाओं का अभाव।
  • वित्तीय बाधाएँ और ऋण तक सीमित पहुँच। 
  • विपणन और वितरण चुनौतियाँ। 

आगे की राह

  • पशु चिकित्सा सेवाओं और बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करना, टीकाकरण कार्यक्रमों एवं नियमित स्वास्थ्य जाँच को बढ़ावा देना तथा पशुधन के रोग का शीघ्रता से पता लगाने के लिये प्रणाली को विकसित करना।
  • उच्च गुणवत्ता वाली चारा फसलों की खेती को बढ़ावा देना, हाइड्रोपोनिक्स तथा साइलेज उत्पादन जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करने के साथ गुणवत्ता युक्त चारे की निरंतर आपूर्ति के लिये चारा प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करना।
    • हाइड्रोपोनिक्स, पोषक तत्त्वों से भरपूर जल का उपयोग करके मृदा रहित कृषि की एक विधि है, जबकि साइलेज उत्पादन में पशुधन के चारे के लिये उच्च नमी वाली चारा फसलों को किण्वित और संरक्षित करना शामिल है।
  • पशुधन फार्मों, डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों के साथ पशु चिकित्सालयों का उन्नयन तथा आधुनिकीकरण; उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने को बढ़ावा देना तथा अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
  • सहायक नीतियाँ बनाने के साथ उन्हें लागू करना तथा पशुपालन एवं डेयरी में निवेश के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत की निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये(2012)

1- लोबिया
2- मूँग
3- अरहर

उपर्युक्त में से कौन-सा/से दलहन, चारा और हरी खाद के रूप में प्रयोग होता है/होते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार और आय प्रदान करने के लिये पशुधन पालन में बड़ी संभावना है। भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त उपायों का सुझाव देने पर चर्चा कीजिये।(2015) 

स्रोत:पी.आई.बी


भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्द्धचालक इकाइयों के लिये भारत और अमेरिका के बीच सौदा

प्रिलिम्स के लिये:

अर्द्धचालक, भारत का अर्द्धचालक मिशन, PLI, भारत की आत्मनिर्भरता, SPECS, DLI

मेन्स के लिये:

अर्द्धचालक के विकास के लिये भारत के प्रयास

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में अमेरिकी कंपनी- माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने अहमदाबाद में 22,500 करोड़ रुपए की अर्द्धचालक इकाई स्थापित करने के लिये गुजरात राज्य सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • इससे पहले भारत और अमेरिका ने भारत-अमेरिका 5वीं वाणिज्यिक वार्ता 2023 के दौरान अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला स्थापित करने पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं जो भारत के इलेक्ट्रॉनिक सामानों का केंद्र बनने के सपने को साकार करने में मदद कर सकता है।

समझौता ज्ञापन का महत्त्व: 

  • अमेरिका के चिप्स और विज्ञान अधिनियम, 2022 तथा भारत के सेमीकंडक्टर मिशन को ध्यान में रखते हुए इस समझौता ज्ञापन का उद्देश्य सेमीकंडक्टर/अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला में लचीलापन और विविधीकरण पर एक सहयोग तंत्र का निर्माण करना है।
  • इस परियोजना का लक्ष्य 5,000 प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित करना और मेमोरी चिप विनिर्माण में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देना है।
  • यह घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम करने के सरकार के लक्ष्य के अनुरूप है तथा इससे वैश्विक सेमीकंडक्टर विनिर्माता के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत होने की संभावना है।

सेमीकंडक्टर चिप्स: 

  • परिचय:  
    • सेमीकंडक्टर (Semiconductors) या अर्द्धचालक ऐसी सामग्री है जिसकी चालकता सुचालकों और कुचालकों की चालकता के मध्य की होती है। वे सिलिकॉन या ज़र्मेनियम जैसे शुद्ध तत्त्वों अथवा गैलियम, आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड जैसे यागिकों के रूप में हो सकते हैं।
    • ये निर्माण के बुनियादी खंड हैं जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों के लिये हृदय और मस्तिष्क के रूप में काम करते हैं।
    • ये चिप वर्तमान में ऑटोमोबाइल, घरेलू उपकरण और ECG मशीनों जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के अभिन्न अंग हैं।
  • महत्त्व: 
    • सेमीकंडक्टर (अर्द्धचालक) एयरोस्पेस, ऑटोमोबाइल, संचार, स्वच्छ ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी और चिकित्सा उपकरणों आदि सहित अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों के लिये आवश्यक हैं।
    • इन महत्त्वपूर्ण घटकों की उच्च मांग ने आपूर्ति को पीछे छोड़ दिया है जिससे वैश्विक स्तर पर चिप का अभाव हो गया है तथा इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में विकास एवं नौकरियाँ की कमी देखी जा रही है।
    • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो उद्योग 4.0 के तहत डिजिटल कायापालट के अगले चरण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। 

सेमीकंडक्टर बाज़ार में भारत की स्थिति:

  • वर्ष 2022 में भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जिसमें 90% से अधिक का आयात किया गया था। इस कारण भारतीय चिप उपभोक्ता बाहरी आयात पर निर्भर थे। 
    • भारत को सेमीकंडक्टर निर्यात करने वाले देशों में चीन, ताइवान, अमेरिका, जापान आदि शामिल हैं।  
  • वर्ष 2026 तक भारत का सेमीकंडक्टर बाज़ार 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। एक अनुमान के अनुसार, सेमीकंडक्टर की खपत के वर्ष 2026 तक 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा को पार करने की उम्मीद है।

भारत में सेमीकंडक्टर विनिर्माण में चुनौतियाँ:

  • अत्यंत महँगा फैब्रिकेशन सेटअप:  
    • एक सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन फैसिलिटी (अर्द्धचालक निर्माण सुविधा) या फैब को अपेक्षाकृत न्यून स्तर पर भी स्थापित करने में लगभग एक अरब डॉलर की लागत आ सकती है तथा यह नवीनतम प्रौद्योगिकी की तुलना में एक या दो पीढ़ी पीछे है।
  • उच्च निवेश:
    • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण एक बहुत ही जटिल एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी विकास प्रक्रिया एवं भुगतान अवधि और प्रौद्योगिकी में तेज़ी से बदलाव शामिल हैं, जिसके लिये महत्त्वपूर्ण तथा निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है। 
  • सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता:  
    • जब कोई सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिये आमतौर पर आवश्यक निवेश पर विचार करता है, तो वर्तमान में अनुमानित राजकोषीय समर्थन का स्तर बहुत कम है।
  • फैब्रिकेशन क्षमताओं का अभाव: 
    • भारत के पास चिप डिज़ाइन की अच्छी प्रतिभा है लेकिन इसने कभी भी चिप फैब क्षमता का निर्माण नहीं किया। ISRO और DRDO के पास अपनी-अपनी फैब फाउंड्री हैं लेकिन वे मुख्य रूप से उनकी अपनी आवश्यकताओं के लिये हैं और दुनिया के नवीनतम उपकरणों की तरह परिष्कृत भी नहीं हैं।
    • भारत में केवल एक ही पुराना फैब है जो पंजाब के मोहाली में स्थित है। 
  • संसाधन अकुशल क्षेत्र:
    • चिप फैब्स के लिये काफी जल की ज़रूरत होती है जिनके लिये लाखों लीटर स्वच्छ जल , बेहद स्थिर बिजली आपूर्ति, अधिक भूमि और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।

सेमीकंडक्टर्स से संबंधित पहल: 

  • वर्ष 2021 में भारत ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहित करने के लिये लगभग $10 बिलियन डॉलर की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना की घोषणा की।
    • वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में शामिल कम-से-कम 20 घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देने और उन्हें अगले 5 वर्षों में 1500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हासिल करने की सुविधा प्रदान करने के लिये डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना शुरू की।
  • भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों एवं अर्द्धचालकों के निर्माण के लिये इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (SPECS) भी शुरू की है।
  • भारत में टिकाऊ सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में भारत का सेमीकंडक्टर मिशन वर्ष 2021 में 76,000 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था। मिशन के घटकों में शामिल हैं:
    • भारत में सेमीकंडक्टर फैब्स की स्थापना की योजना
    • भारत में डिस्प्ले फैब की स्थापना के लिये योजना- प्रति फैब 12,000 करोड़ रुपए की सीमा के अधीन परियोजना लागत का 50% तक राजकोषीय समर्थन।
    • भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर ATMP/OSAT सुविधाओं की स्थापना के लिये योजना

आगे की राह  

  • बहुपक्षीय सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये अनुकूल व्यापार नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत को भी इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में सुधार करना चाहिये जहाँ वर्तमान में इसकी कमी है।
  • चिप निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये भारत सरकार को भारत में संबंधित उद्योगों को जोड़ने और राष्ट्रीय क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है.
  • भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम करने के लिये अमेरिका के अतिरिक्त ताइवान और जापान जैसे अन्य देशों के साथ तकनीकी रूप से उन्नत, मैत्रीपूर्ण, सहयोगात्मक अवसरों का पता लगाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस लेज़र प्रकार का उपयोग लेज़र प्रिंटर में किया जाता है? (2008) 

(a) डाई लेज़र  
(b) गैस लेज़र
(c) सेमीकंडक्टर लेज़र
(d) एक्सीमर लेज़र 

उत्तर (c)   


प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. भारत फोटोवोल्टिक इकाइयों के प्रयोग में आने वाले सिलिकॉन वेफर्स का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  2. सौर ऊर्जा शुल्क का निर्धारण भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2 

उत्तर: (d) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजव्यवस्था

मद्रास उच्च न्यायालय: मंदिर के पुजारियों की नियुक्तियों में जाति से ऊपर योग्यता

प्रिलिम्स के लिये:

धर्म शास्त्र, धर्म सिद्धांत, अनुच्छेद 15

मेन्स के लिये:

मंदिर पुजारी की नियुक्तियों में परंपरा बनाम आधुनिकता, भारत में मंदिर के पुजारियों की नियुक्तियों से संबंधित कानूनी पहलू

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया है जो मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में योग्यता और समानता के महत्त्व पर बल देता है।  

  • न्यायालय का निर्णय वर्ष 2018 में दायर एक रिट याचिका के जवाब में आया है जिसमें श्री सुगवनेश्वर स्वामी मंदिर, सेलम (तमिलनाडु) में अर्चक/स्थानिगर (मंदिर पुजारी) के पद के लिये नौकरी की घोषणा को चुनौती दी गई थी।  
  • याचिकाकर्त्ता ने मंदिर के आगम ग्रंथों में उल्लिखित पारंपरिक दिशा-निर्देशों तथा लंबे समय से सेवा करने वाले पुजारियों के वंशानुगत अधिकारों के आधार पर नियुक्तियों का तर्क दिया।
  • न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के दावे को खारिज करते हुए योग्यता आधारित नियुक्तियों के पक्ष में निर्णय सुनाया।

मंदिर पुजारी की नियुक्ति से जुड़े कानूनी और ऐतिहासिक पहलू: 

  • कानूनी पहलू: 
    • अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है। 
      • इसमें कहा गया है कि राज्य रोज़गार या सार्वजनिक स्थानों तक पहुँच के मामलों में इन आधारों पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
    • साथ ही राज्यों के पास मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति सहित धार्मिक संस्थानों और उनके मामलों को विनियमित करने का अधिकार है। राज्य कानून ऐसी नियुक्तियों के लिये योग्यता, प्रक्रिया तथा पात्रता मानदंड निर्धारित करते हैं।
  • ऐतिहासिक पहलू: 
    • कई हिंदू मंदिरों में वंशानुगत नियुक्तियों की परंपरा प्रचलित है, जहाँ मंदिर के पुजारी की नियुक्ति विशिष्ट परिवारों या जातियों से की जाती है।  
      • मंदिर अक्सर आगम ग्रंथों का पालन करते हैं जो मंदिर के अनुष्ठानों और प्रथाओं के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। 
      • यह प्रथा अक्सर पैतृक ज्ञान और वंश की शुद्धता में विश्वास पर आधारित होती है।  
    • हालाँकि कुछ क्षेत्रों में प्रतियोगिताएँ अथवा योग्यता के आधार पर भी चयन का प्रचलन है।

मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले: 

  • सेशम्मल और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य (1972):  
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अर्चक (मंदिर पुजारी) की नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और पुजारियों द्वारा धार्मिक सेवा का प्रदर्शन धर्म का एक अभिन्न अंग है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक पहलुओं को पृथक बताते हुए कहा कि आगम (ग्रंथों) द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था केवल धार्मिक सेवा कार्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • किसी भी व्यक्ति को जाति अथवा पंथ की परवाह किये बिना अर्चक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है यदि वह योग्य है और आगमों तथा मंदिर में पूजा के लिये आवश्यक अनुष्ठानों की अच्छी समझ रखता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के आधार पर मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया कि यदि चुना गया व्यक्ति निर्दिष्ट मानकों को पूरा करता है, तो अर्चक की नियुक्ति में जाति-आधारित वंशावली की कोई भूमिका नहीं होगी
  • एन. अदिथायन बनाम त्रावणकोर देवासम बोर्ड (2002):
    • सर्वोच्य न्यायलय ने इस पारंपरिक दावे को अस्वीकृत कर दिया कि केवल ब्राह्मण (इस मामले में मलयाला ब्राह्मण) ही मंदिरों में अनुष्ठान कर सकते हैं।
    • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उचित तरीके से पूजा करने वाले योग्य प्रशिक्षित व्यक्ति अनुष्ठान कर सकते हैं।
      • सर्वोच्य न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कुछ मंदिरों में केवल ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान करने का नियम ऐतिहासिक कारणों से था, जैसे वैदिक साहित्य और पवित्र दीक्षा तक सीमित पहुँच।

आगम शास्त्र:  

  • आगम शास्त्र हिंदू धर्म में पूजा, अनुष्ठान और मंदिरों के निर्माण के लिये एक नियमावली है। संस्कृत में आगम का अर्थ है "परंपरा द्वारा सौंपा गया" और शास्त्र एक टिप्पणी या ग्रंथ को संदर्भित करता है।
  • आगम विभिन्न विषयों की व्याख्या करते हैं और उन्हें हिंदू प्रथाओं की एक विशाल शृंखला का मार्गदर्शक कहा जा सकता है। वे निम्न हैं:
    • देव पूजा, धार्मिक समारोहों, त्योहारों आदि के लिये नियमावली।
    • मोक्ष प्राप्ति के उपाय, योग
    • देवता, यंत्र
    • विभिन्न मंत्रों का प्रयोग
    • मंदिर निर्माण, नगर नियोजन
    • अर्थमिति
    • घरेलू प्रथाएँ और नागरिक संहिताएँ
    • सामाजिक/सार्वजनिक उत्सव
    • पवित्र स्थान
    • ब्रह्मांड, सृजन और विघटन के सिद्धांत
    • आध्यात्मिक दर्शन
    • संसार
    • तपस्या 
  • आगम सिद्धांत मंदिर की पवित्रता और आध्यात्मिक प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिये उच्चकोटि के अनुष्ठानों और प्रक्रियाओं का पालन करने के महत्त्व पर बल देते हैं।
    • आगम ग्रंथों को आधिकारिक माना जाता है तथा  मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण में उनका अधिक महत्त्व है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम, यूनिकॉर्न, गज़ेल्स, चीता

मेन्स के लिये:

भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम

चर्चा में क्यों? 

"भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में मंदी" पर रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में प्रतिष्ठित यूनिकॉर्न सूची में नए यूनिकॉर्न के जुड़ने की संख्या में तेज़ी से गिरावट देखने को मिली है जो भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में मंदी का संकेत देता है।

  • ASK प्राइवेट वेल्थ हुरुन इंडियन फ्यूचर यूनिकॉर्न इंडेक्स 2023 के अनुसार, भारत में वर्ष 2023 में 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के मूल्यांकन वाले केवल तीन यूनिकॉर्न स्टार्टअप जुड़े, जबकि एक वर्ष पहले यही संख्या 24 थी।

भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम का परिदृश्य: 

  • 31 मई, 2023 तक भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप्स के लिये तीसरे सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है। भारत मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच वैज्ञानिक प्रकाशनों की गुणवत्ता और अपने विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता में शीर्ष स्थान के साथ नवाचार गुणवत्ता में दूसरे स्थान पर है।
  • भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में पिछले कुछ वर्षों (2015-2022) में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है:
    • स्टार्टअप्स की कुल फंडिंग में 15 गुना बढ़ोतरी
    • निवेशकों की संख्या में 9 गुना बढ़ोतरी
    • इन्क्यूबेटरों की संख्या में 7 गुना वृद्धि
  • मई 2023 तक भारत में 108 यूनिकॉर्न हैं जिनका कुल मूल्यांकन 340.80 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • यूनिकॉर्न की कुल संख्या में से 44 यूनिकॉर्न वर्ष 2021 में और 21 यूनिकॉर्न वर्ष 2022 में में स्थापित किया गए।

स्टार्टअप से संबंधित शर्तें: 

  • डेकाकॉर्न: 10 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का वर्तमान मूल्यांकन।
  • यूनिकॉर्न्स: वर्ष 2000 के बाद 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्यांकन के साथ स्टार्टअप की स्थापना हुई।
  • गज़ेल: ऐसे स्टार्टअप जिनके अगले तीन वर्षों में यूनिकॉर्न बनने की सबसे अधिक संभावना है।
  • चीता (Cheetahs): स्टार्टअप जो अगले पाँच वर्षों में यूनिकॉर्न बन सकते हैं। 

भारतीय स्टार्टअप्स के सामने चुनौतियाँ: 

  • फंडिंग चुनौतियाँ:
    • भारतीय स्टार्टअप्स को अपने उद्यमों के लिये पर्याप्त फंडिंग हासिल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूंजी तक सीमित पहुँच उनकी विकास क्षमता और नवाचार में बाधा डालती है। जोखिम से बचने, अनिश्चित बाज़ार स्थितियों और निवेशकों के विश्वास की कमी जैसे विभिन्न कारकों के कारण स्टार्टअप्स को निवेशकों को आकर्षित करने तथा उद्यम पूंजी प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • राजस्व सृजन में चुनौती: 
    • अनेक स्टार्टअप को स्थायी राजस्व उत्पन्न करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। स्टार्टअप अक्सर व्यवहार्य व्यवसाय मॉडल खोजने, अपने उत्पादों या सेवाओं का मुद्रीकरण तथा लाभप्रदता हासिल करने के लिये संघर्ष करते हैं। सीमित बाज़ार पहुँच, स्थापित उद्यमी से प्रतिस्पर्द्धा और अपर्याप्त ग्राहक अधिग्रहण अतिरिक्त बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
  • सहायक बुनियादी ढाँचे का अभाव: 
    • एक मज़बूत बुनियादी ढाँचे के पारिस्थितिकी तंत्र की अनुपस्थिति स्टार्टअप के विकास में बाधा बन सकती है।
    • चुनौतियों में अपर्याप्त भौतिक बुनियादी ढाँचा, तकनीकी संसाधनों एवं ऊष्मायन केंद्रों तक सीमित पहुँच, परामर्श कार्यक्रमों तथा नेटवर्किंग अवसरों की कमी शामिल है। स्टार्टअप को आगे बढ़ने और ज़रूरी संसाधनों तक पहुँचने के लिये विशेषज्ञता, मार्गदर्शन तथा सहायक वातावरण की आवश्यकता होती है।
  • विनियामक वातावरण और कर संरचना:
    • भारत में स्टार्टअप को विनियामक बाधाओं एवं जटिल कर संरचनाओं का सामना करना पड़ता है।
    • जटिल अनुपालन प्रक्रियाएँ, नौकरशाही लालफीताशाही और अस्पष्ट नियम स्टार्टअप के लिये अनेक बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। कराधान जटिलताएँ प्रशासनिक बोझ बढ़ा सकती हैं तथा लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती हैं।

स्टार्टअप्स के लिये भारत सरकार की पहल:

  • नवाचारों के विकास और उपयोग के लिये राष्ट्रीय पहल (निधि)
  • स्टार्टअप इंडिया एक्शन प्लान (SIAP)
  • स्टार्टअप इकोसिस्टम को समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग (RSSSE)
  • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना (SISFS): इसका उद्देश्य अवधारणा के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण के लिये स्टार्टअप को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार: इसका उद्देश्य उत्कृष्ट स्टार्टअप और पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित  करने वालों की पहचान और उन्हें पुरस्कृत करना जो नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर आर्थिक गतिशीलता में योगदान दे रहे हैं।
  • SCO स्टार्टअप फोरम: सामूहिक रूप से स्टार्टअप इकोसिस्टम को विकसित करने और सुधार के लिये अक्तूबर 2020 में पहला शंघाई सहयोग संगठन (SCO) स्टार्टअप फोरम लॉन्च किया गया था।
  • प्रारंभ: 'प्रारंभ' शिखर सम्मेलन का उद्देश्य विश्व भर के स्टार्टअप और युवाओं को नए विचारों, नवाचार और आविष्कार के लिये एक मंच प्रदान करना है।

आगे की राह

  •  विदेशों में भारतीय स्टार्टअप्स के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिये विशेषकर अनुकूल कानूनी वातावरण और कराधान नीतियों को लेकर आधार सुनिश्चित किये गए हैं।
    • किसी भारतीय कंपनी के संपूर्ण स्वामित्व को किसी विदेशी इकाई को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया, जिसमें कंपनी के स्वामित्व वाली सभी बौद्धिक संपदा के साथ डेटा का हस्तांतरण भी शामिल है, इस प्रकिया को 'फ्लिपिंग' कहा जाता है।
  • सामान्य रूप से फ्लिपिंग स्टार्टअप के प्रारंभिक चरण में होती है। हालाँकि सरकार से संबंधित नियामक निकायों और अन्य हितधारकों के साथ सक्रिय सहयोग से इस प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस


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