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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण

  • 16 Jan 2023
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 13/01/2023 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Startup20 and the potential for change” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में स्टार्ट-अप पारितंत्र और उससे संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

प्रौद्योगिकी और ई-कॉमर्स पर गंभीरता से ध्यान देने के साथ हाल के वर्षों में भारत का स्टार्ट-अप पारितंत्र तीव्र विकास के पथ पर रहा है। सरकार ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से उद्यमशीलता को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है और युवा कंपनियों को सहायता प्रदान कर रही है।

  • स्टार्ट-अप्स में निजी निवेश भी बढ़ रहा है, जहाँ उल्लेखनीय संख्या में वेंचर कैपिटल फर्म और एंजल निवेशक आरंभिक चरण की कंपनियों को सक्रिय रूप से वित्तपोषण एवं समर्थन प्रदान कर रहे हैं।
  • यद्यपि भारतीय स्टार्ट-अप पारितंत्र के तीव्र विकास के बावजूद, अभी भी ऐसी चुनौतियाँ मौजूद हैं जिन्हें संबोधित किये जाने की आवश्यकता है। इन प्रमुख चुनौतियों में से एक है आरंभिक चरण की कंपनियों के लिये धन की कमी। इसके अतिरिक्त, मौजूदा विनियामक वातावरण में कार्यकरण करना कुछ कठिन हो सकता है जहाँ कई कानूनों एवं विनियमों का पालन करना आवश्यक है।
  • समग्र रूप से, भारतीय स्टार्ट-अप पारितंत्र एक मज़बूत विकास पथ पर है और वैश्विक स्टार्ट-अप परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी बने रहने के लिये तैयार है। प्रतिभाशाली इंजीनियरों एवं पेशेवरों के एक बड़े समूह, प्रौद्योगिकी-आधारित उत्पादों एवं सेवाओं के लिये एक तैयार बाज़ार और एक समर्थनकारी सरकार के साथ भारत में स्टार्ट-अप्स का भविष्य उज्ज्वल नज़र आता है।

भारत में स्टार्ट-अप्स के विकास चालक

  • बड़ा घरेलू बाज़ार: भारत में प्रौद्योगिकी-आधारित उत्पादों एवं सेवाओं के लिये एक बड़ा घरेलू बाज़ार मौजूद है, जो स्टार्ट-अप्स को अपने उत्पादों एवं सेवाओं की बिक्री के लिये एक तैयार बाज़ार प्रदान करता है।
  • सरकारी समर्थन: भारत सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से उद्यमशीलता को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है और युवा कंपनियों को सहायता प्रदान कर रही है।
  • ‘शार्क’ (Sharks) या निजी निवेश का उभार: स्टार्ट-अप्स में निजी निवेश का उभार हो रहा है, जहाँ उल्लेखनीय संख्या में वेंचर कैपिटल फर्म और एंजल निवेशक आरंभिक चरण की कंपनियों को सक्रिय रूप से वित्तपोषण एवं समर्थन प्रदान कर रहे हैं।
  • प्रौद्योगिकी तक पहुँच: प्रौद्योगिकी और इंटरनेट पैठ में प्रगति ने स्टार्ट-अप्स को तेज़ी से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है, जिससे पारितंत्र में कई ‘यूनिकॉर्न’ का उदय हुआ है।
  • ‘ई-कॉमर्स बूम’: भारत में ई-कॉमर्स बाज़ार ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, जो ई-कॉमर्स स्पेस में स्टार्ट-अप्स के लिये एक तैयार बाज़ार प्रदान करता है।
  • स्टार्ट-अप हब: भारत में बेंगलुरु, मुंबई एवं दिल्ली-एनसीआर प्रमुख स्टार्ट-अप हब के रूप में उभरे हैं, जो स्टार्ट-अप्स को बढ़ने और फलने-फूलने के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।
    • विशेष रूप से बेंगलुरु को यहाँ बड़ी संख्या में प्रौद्योगिकी कंपनियों की उपस्थिति के कारण ‘भारत की सिलिकॉन वैली’ के रूप में देखा जाता है।

सरकार भारत में स्टार्ट-अप पारितंत्र का समर्थन कैसे करती है?

  • स्टार्ट-अप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): यह योजना स्टार्ट-अप कंपनियों को उनकी अवधारणाओं को साबित करने, प्रोटोटाइप विकसित करने, उत्पादों का परीक्षण करने और बाज़ार में प्रवेश करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय स्टार्ट-अप पुरस्कार: यह कार्यक्रम नवाचार और प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर आर्थिक गतिशीलता में योगदान देने वाले उत्कृष्ट स्टार्ट-अप एवं पारिस्थितिक तंत्र को चिह्नित करता है और उन्हें पुरस्कृत करता है।
  • SCO स्टार्ट-अप फोरम: SCO सदस्य देशों में स्टार्ट-अप पारितंत्र के विकास और सुधार के साधन के रूप में अक्टूबर 2020 में स्थापित ‘शंघाई सहयोग संगठन स्टार्टअप फोरम’ अपनी तरह का पहला प्रयास है।
  • नवाचारों के विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (National Initiative for Developing and Harnessing Innovations- NIDHI): यह स्टार्ट-अप्स के लिये एंड-टू-एंड योजन है जो पाँच वर्ष की अवधि में इनक्यूबेटरों और स्टार्ट-अप्स की संख्या को दोगुना करने पर लक्षित है।

स्टार्ट-अप पारितंत्र से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • ‘बूटस्ट्रैप्ड’ कारोबार: स्टार्टअप के कार्यान्वयन के लिये उल्लेखनीय मात्रा में कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। भारत में कई स्टार्टअप, विशेष रूप से अपने आरंभिक चरणों में ‘बूटस्ट्रैपिंग’ (Bootstrapping) के लिये बाध्य होते हैं, यानी संस्थापकों की अपनी बचत के माध्यम से स्व-वित्तपोषित होते हैं क्योंकि उपलब्ध घरेलू वित्तपोषण सीमित है। 
    • इसके परिणामस्वरूप, भारत में अधिकांश स्टार्टअप पहले पाँच वर्षों के अंदर ही विफल हो जाते हैं और इसका सबसे आम कारण है औपचारिक धन की कमी। 
  • सख्त नियामक वातावरण: कानून और नियम हमेशा स्टार्ट-अप्स की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे उनके लिये इसका अनुपालन करना कठिन हो सकता है।
    • आरंभिक चरण की कंपनियों के लिये यह एक भारी बोझ हो सकता है। स्टार्ट-अप्स को जिन जटिल अनुपालन और कानूनी आवश्यकताओं का पालन करना पड़ता है, वे उनके विकास में बाधक बन सकते हैं।
  • सीमित अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स: उपयुक्त अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स की कमी स्टार्ट-अप्स के लिये एक बड़ी चुनौती हो सकती है, विशेष रूप से ई-कॉमर्स स्पेस में कार्यरत कंपनियों के लिये।
    • अपर्याप्त परिवहन, वेयरहाउसिंग एवं लॉजिस्टिक्स अवसंरचना स्टार्ट-अप्स के लिये ग्राहकों तक पहुँचने और अपने उत्पादों की समय पर आपूर्ति करने को कठिन बना सकती है। यह उनके विकास और सफलता के लिये एक बड़ी बाधा सिद्ध हो सकती है।
  • संरक्षण और मार्गदर्शन की कमी: स्टार्ट-अप्स प्रायः अनुभवी संरक्षकों और मार्गदर्शन की कमी रखते हैं, जिससे उनके लिये कारोबारी परिदृश्य में आगे बढ़ना और सूचित निर्णय लेना कठिन बन सकता है।
  • ‘टैलेंट रिटेंशन’: भारत में स्टार्ट-अप प्रायः प्रतिभाशाली कर्मियों को बनाए रखने के लिये संघर्ष करते हैं, क्योंकि उन्हें बड़ी, अधिक स्थापित कंपनियों द्वारा लुभाया जा सकता है।
    • प्रतिभा के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति है जहाँ बड़ी कंपनियाँ प्रायः अधिक आकर्षक प्रतिपूर्ति एवं लाभ की पेशकश करती हैं।
    • इससे स्टार्ट-अप्स के लिये उच्च प्रतिभा को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखना (जो उनके विकास एवं सफलता के लिये आवश्यक है) कठिन बन सकता है।

आगे की राह

  • धन तक पहुँच में सुधार: आरंभिक चरण की कंपनियों के लिये धन तक पहुँच में सुधार के लिये सरकार और निजी निवेशकों को मिलकर कार्य करना चाहिये।
    • इसके तहत सीड फंडिंग और उद्यम पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने के साथ-साथ निवेशकों के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करने जैसे कदम उठाये जा सकते हैं।
  • नियामक वातावरण को सरल बनाना: सरकार को स्टार्ट-अप्स के लिये नियामक वातावरण को सरल बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिये ताकि उनके लिये कानूनों और विनियमों का पालन करना आसान हो जाए।
    • इसमें अनुपालन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना और स्टार्ट-अप्स को प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में निवेश: सरकार को उत्पादों एवं सेवाओं की आपूर्ति में सुधार के लिये अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स में निवेश करना चाहिये।
    • इसमें बेहतर परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स नेटवर्क का निर्माण करना और भंडारण एवं लॉजिस्टिक्स सेवाओं के लिये सब्सिडी प्रदान करना शामिल हो सकता है।
  • संरक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करना: सरकार एवं निजी क्षेत्र को स्टार्ट-अप्स को संरक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये साथ मिलकर काम करना चाहिये।
    • इसके अंतर्गत मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू करने, प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करने और अनुभवी संरक्षकों के साथ स्टार्ट-अप्स को जोड़ना जैसे उपाय किये जा सकते हैं।
  • नवाचार को प्रोत्साहन: सरकार और निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास के लिये धन एवं सहायता प्रदान कर नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • इसमें R&D केंद्र स्थापित करना, R&D में निवेश करने वाली कंपनियों के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करना और स्टार्ट-अप को विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थानों से जोड़ना शामिल हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के स्टार्ट-अप पारितंत्र की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करें और स्टार्ट-अप्स के सामने विद्यमान चुनौतियों के समाधान के उपाय सुझाएँ।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

 प्र. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है?  (वर्ष 2014)

 (A) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली अल्पकालिक पूंजी
 (B) नए उद्यमियों को प्रदान की जाने वाली दीर्घकालिक स्टार्ट-अप पूंजी
 (C) घाटे के समय उद्योगों को प्रदान की गई धनराशि
 (D) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीनीकरण के लिये प्रदान की गई धनराशि

 उत्तर: (B)

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