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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल साउथ के प्रशासन में भारत की भूमिका

  • 18 Jan 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 16/01/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India and The New Global Order” लेख पर आधारित है। इसमें ‘ग्लोबल साउथ’ के हितों की उन्नति में भारत की भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

पश्चिम को संतुलित करने के प्रयास में और उत्तर पर नज़र रखते हुए भारत ‘दक्षिण’ को साधने की उम्मीद कर रहा है। हाल ही में आयोजित दो दिवसीय वर्चुअल ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ 2023’ शिखर सम्मेलन की थीम थी- ‘आवाज़ की एकता, उद्देश्य की एकता’ (Unity of Voice, Unity of Purpose)। यह वैश्विक व्यवस्था के संवाद में भारत द्वारा एक और पहलू जोड़ने का भारत का प्रयास है। 

इस वर्चुअल फोरम ने वैश्विक दक्षिण या ‘ग्लोबल साउथ’ से मूल्यवान इनपुट प्रदान किया है जो दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन, 2023 के सफल आयोजन के लिये भारत की महत्वाकांक्षा को सुगम बना सकता है। 

यह फोरम भारत को उन राष्ट्रों के वैश्विक समूह के साथ फिर से संबद्ध करने का भी प्रयास है जो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारतीय विदेश नीति के राडार से गायब हो गए थे। 

पिछले तीन दशकों से भारतीय कूटनीति का ध्यान अपने वृहत शक्ति संतुलन, पड़ोस में स्थिरता लाने और विस्तारित पड़ोस में क्षेत्रीय संस्थानों को विकसित करने पर केंद्रित रहा है। 

‘ग्लोबल साउथ’ क्या है? 

  • ग्लोबल साउथ शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर उन देशों के संदर्भ में होना शुरू हुआ जो औद्योगीकरण के दौर से बाहर रह गए थे और पूंजीवादी एवं साम्यवादी देशों के साथ विचारधारा का टकराव रखते थे, जिसे शीत युद्ध ने प्रबल किया था। 
    • इसमें अधिकांशतः एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं। 
    • इसके अलावा, वैश्विक उत्तर या ‘ग्लोबल नॉर्थ’ को अनिवार्य रूप से अमीर और गरीब देशों के बीच एक आर्थिक विभाजन द्वारा परिभाषित किया गया है। 
      • ‘ग्लोबल नॉर्थ’ मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों को संदर्भित करता है। 
  • बड़ी आबादी, समृद्ध संस्कृतियों और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण ‘ग्लोबल साउथ’ एक  महत्त्वपूर्ण भूभाग है। 
  • इसके अतिरिक्त, गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिये ग्लोबल साउथ को समझना महत्त्वपूर्ण है। 

ग्लोबल साउथ से संबद्ध मुद्दे  

  • आर्थिक असमानता: 
    • ग्लोबल साउथ के कई देश अभी भी गरीबी और आर्थिक असमानता से जूझ रहे हैं, जिससे उनके लिये विकास संबंधी पहलों को लागू करना कठिन सिद्ध हो सकता है। 
  • राजनैतिक अस्थिरता: 
    • ग्लोबल साउथ के कई देशों में व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता दीर्घकालिक विकास योजनाओं को क्रियान्वित करना कठिन बना सकती है और विदेशी निवेश के लिये प्रतिकूल वातावरण का भी निर्माण कर सकती है। 
  • आधारभूत संरचना की कमी: 
    • ग्लोबल साउथ के कई देशों में सड़कों, बंदरगाहों और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे विदेशी निवेश को आकर्षित करना तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देना कठिन साबित हो सकता है। 
  • जलवायु परिवर्तन: 
    • ग्लोबल साउथ के कई देशों में जलवायु परिवर्तन एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है क्योंकि यह गरीबी एवं असमानता की मौजूदा स्थिति को और गंभीर बना सकती है तथा विकास के लिये नई चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है। 
  • सीमित मानव क्षमता: 
    • कुशल मानव संसाधनों का अभाव और शिक्षा की कमी वैश्विक दक्षिण में विकास के मार्ग में प्रमुख चुनौतियों में से एक है। 

ग्लोबल साउथ के विकास के मार्ग में विद्यमान चुनौतियाँ 

  • एकीकृत रुख की कमी:
    • शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता (NAM) के साथ भारत के अनुभव ने वैश्विक दक्षिण के लिये कई तरह से चुनौतियाँ पेश की। 
    • इनमें से एक बड़ी चुनौती थी विऔपनिवेशीकरण एवं शीत युद्ध जैसे समकालीन मुद्दों पर वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच एक एकीकृत रुख की कमी। 
    • भारत के गुटनिरपेक्ष रुख का तात्पर्य था कि उसने स्वयं को पश्चिमी या पूर्वी ब्लॉकों के साथ संरेखित नहीं किया, जिससे वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों के लिये इन मुद्दों पर एकीकृत दृष्टिकोण का पालन करना कठिन हो गया। 
    • इसके अतिरिक्त, NAM ने वैश्विक दक्षिण के लिये व्यापार और विकास जैसे मुद्दों पर प्रमुख शक्तियों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करना कठिन बना दिया। 
  • हरित ऊर्जा कोष: 
    • यद्यपि ग्लोबल नॉर्थ के देश वैश्विक उत्सर्जन में अधिक योगदान करते हैं, वे हरित ऊर्जा के लिये धन का भुगतान करने की उपेक्षा करते हैं, जो अंततः निम्न उत्सर्जन करने वाले अल्पविकसित देशों को हानि पहुँचाता है। 
  • चीन का दखल: 
    • चीन अवसंरचना विकास के लिये ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से अपनी पैठ बना रहा है। 
    • हालाँकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि BRI दोनों पक्षों के लिये सर्वविजय की स्थिति होगी या यह केवल चीन के लाभ पर ध्यान केंद्रित करेगी। 
  • दक्षिण में उत्तर का दखल: 
    • आर्थिक असमानता एक प्रमुख मुद्दा है, क्योंकि अमेरिका के प्रभुत्व वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्तीय प्रणालियाँ विकासशील देशों की कीमत पर विकसित देशों का पक्ष लेती हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, औद्योगिक देशों की सैन्य एवं राजनीतिक शक्ति का उपयोग कभी-कभी उनके स्वयं के हितों को आगे बढ़ाने के लिये किया जाता है जो संभावित रूप से वैश्विक दक्षिण के देशों की हानि की कीमत पर किया जाता है। 
    • इससे इन देशों के लिये संप्रभुता और आत्मनिर्णय की क्षति की स्थिति बन सकती है। 
  • संसाधनों का उपयोग करने की क्षमता का अभाव: 
    • वैश्विक दक्षिण के देशों के लिये संसाधनों तक अपर्याप्त पहुँच एक बड़ी चुनौती है। 
    • इन देशों में प्रायः स्वच्छ जल, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे संसाधनों तक पहुँच के अनुपातहीन कमी की स्थिति पाई जाती है। 
    • इसके अतिरिक्त, उनके पास प्रायः वित्तीय पूंजी, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे जैसे संसाधनों तक सीमित पहुँच ही होती है। 
      • इससे कई नकारात्मक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं, जिनमें गरीबी, बदतर स्वास्थ्य परिणाम और सीमित आर्थिक विकास शामिल हैं। 
  • कोविड-19 का प्रभाव: 
    • कोविड-19 महामारी ने पहले से मौजूद विभाजनों को और बढ़ा दिया है। 
      • विभिन्न देशों को न केवल महामारी के शुरुआती चरणों से निपटने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन्हें आज जिन सामाजिक और व्यापक आर्थिक प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, वे वैश्विक दक्षिण के लिये अत्यंत गंभीर हैं। 
    • अर्जेंटीना और मिस्र से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका तक के देशों में घरेलू अर्थव्यवस्थाओं की भेद्यता/संवेदनशीलता अब कहीं अधिक स्पष्ट है। 

आगे की राह 

  • राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रवाद को संतुलित करना:
    • भारत को वैश्विक व्यवस्था के आधुनिकीकरण एवं लोकतंत्रीकरण के लिये और अधिक उल्लेखनीय तरीकों से योगदान करने की आवश्यकता है। 
    • वर्तमान विश्व में राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रवाद के बीच संतुलन की तलाश करना अनिवार्य है जो किसी भी देश के हितों के साथ-साथ वैश्विक दक्षिण के हितों की रक्षा करने में मदद करेगा। 
  • सरल, विस्तार-योग्य और संवहनीय समाधानों की पहचान करना: 
    • समय की मांग है कि सरल, विस्तार-योग्य और संवहनीय समाधानों की पहचान की जाए जो हमारे समाजों और अर्थव्यवस्थाओं को रूपांतरित करने में योगदान कर सकते हैं। 
    • इस तरह के दृष्टिकोण के साथ कठिन चुनौतियों—चाहे वह गरीबी हो, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा हो या मानव क्षमता निर्माण, इन पर काबू पाना संभव है। 
      • पिछली शताब्दी के दौरान इन राष्ट्रों ने विदेशी शासन के विरुद्ध एक-दूसरे का समर्थन किया था। इस शताब्दी में फिर सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि एक ऐसी नई विश्व व्यवस्था का निर्माण किया जा सके जो नागरिकों के कल्याण की गारंटी दे। 
  • अन्य विकासशील देशों के विश्वास को पुनः प्राप्त करना: 
    • तेज़ आर्थिक विकास की इच्छा रखने वाले एक निम्न मध्यम आय वाले देश के रूप में भारत ‘वैश्विक दक्षिण की आवाज़’ (Voice of the Global South) बनने का सुअवसर रखता है। हालाँकि, भारत के लिये एक बार फिर से इस भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाने के लिये अन्य विकासशील देशों, विशेष रूप से अफ्रीका और दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में, उनके हितों को ध्यान में रखते हुए, उनके भरोसे को फिर से जीतने की आवश्यकता है। 
  • G-20 की भूमिका: 
    • G-20 की एकवर्षीय अध्यक्षता भारत के लिये वैश्विक दक्षिण को एकजुट करने का एक अवसर है जहाँ भारत और वैश्विक दक्षिण के अन्य देश एक साथ आने तथा साझा समस्याओं एवं चुनौतियों के साथ ही सहयोग एवं सहभागिता के अवसरों पर चर्चा करने के लिये एक मंच का उपयोग कर सकते हैं। 
    • G20 शिखर सम्मेलन में भारत और वैश्विक दक्षिण के अन्य देश अपनी चिंताओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं और आर्थिक विकास, व्यापार, निवेश एवं विकास जैसे प्रमुख मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण साझा कर सकते हैं। 
    • यह शिखर सम्मेलन भारत और वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों के लिये अपने प्रयासों को समन्वित करने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने एवं गरीबी को कम करने के उद्देश्य से क्रियान्वित पहलों पर सहयोग करने के लिये एक मंच के रूप में भी काम कर सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: वैश्विक राजनीतिक परिवर्तन के इस युग में चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत विदेश नीति के संबंध में किस प्रकार के दृष्टिकोण का पालन कर सकता है? विचार कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह में सभी चार देश G20 के सदस्य हैं? (2020)

(A) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(B) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(C) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(D) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: A

व्याख्या:

  • यह 19 देशों और यूरोपीय संघ (EU) का एक अनौपचारिक समूह है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ हुई थी।
  • सदस्य देश जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 80% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे मज़बूत वैश्विक आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग के प्रमुख मंच पर आए, जिसके लिये पेन्सिलवेनिया (USA)सितंबर 2009 में पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में नेताओं द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी।
  • G-20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • अतः विकल्प A सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. ‘उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के नेता के रूप में भारत की लंबे समय से चली आ रही छवि, उभरती वैश्विक व्यवस्था में इसकी नई भूमिका के कारण गायब हो गई है। ' विस्तृत व्याख्या कीजिये।(2019)

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