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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    विऔपनिवेशीकरण हेतु उत्तरदायी कारकों की चर्चा करते हुये अफ्रीका में विऔपनिवेशीकरण के पश्चात विकास में बाधक तत्त्वों की विवेचना कीजिये।

    11 Apr, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण-

    • भूमिका
    • विऔपनिवेशीकरण क्या है?
    • विऔपनिवेशीकरण हेतु उत्तरदायी कारक।
    • अफ्रीका के विकास में बाधक तत्त्वों की विवेचना।
    • निष्कर्ष।

    द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका जैसे नव स्वतंत्र देश अस्तित्व में आये। इन नव स्वतंत्र देशों में औपनिवेशिक शासन की समाप्ति एवं औपनिवेशिक परतंत्रता से स्वाधीनता की स्थिति में आने की प्रक्रिया को विश्व इतिहास में विऔपनिवेशीकरण कहा गया। इन देशों ने औपनिवेशिक मुक्ति के बाद अपने आप को विभिन्न गुटों से अलग रखा। नवोदित राष्ट्रों को तृतीय विश्व (थर्ड वर्ल्ड) भी कहा जाता है।

    विऔपनिवेशीकरण हेतु उत्तरदायी कारक-

    द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभावः

    द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साम्राज्यवादी शक्तियाँ राजनीतिक, आर्थिक तथा सैन्यदृष्टि से बहुत कमज़ोर हो गयी। जिसके कारण साम्राज्यवादी देश अपने उपनिवेशों पर नियंत्रण रखने में सक्षम नहीं हो पाये।

    द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल एशियाई एवं अफ्रीकी जनता सामाजिक एवं आर्थिक रूप से जागरूक हो चुकी थे। इनमें राष्ट्रवादी चेतना का उभार होने लगा था तथा 1941 के अटलांटिक चार्टर द्वारा राष्ट्रीय स्वतंत्रता, अस्तित्व तथा आत्मनिर्णय के अधिकार ने इन्हें और जागरूक किया।

    द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् साम्राज्यवाद को पशुता अन्याय एवं शोषण का पर्याय माना जाने लगा जिससे साम्राज्यवादी देशों द्वारा उपनिवेशों पर शासन कायम रखने में आत्मविश्वास की कमी आयी।

    उपनिवेशों की जनता के मन में यह धारणा घर कर गयी थी कि यूरोपीय सेना अपराजेय है इसे कोई पराजित नहीं कर सकता परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के शुरूआत में जापान ने यूरोपीय सेना पर सफलता प्राप्त की तथा मलाया, सिंगापुर, बर्मा आदि क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया जिससे उपनिवेशों की जनता में पश्चिमी अपराजेयता का मिथक टूट गया। विभिन्न उपनिवेशी देशों में साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव ने साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी।

    अन्य कारकः

    गुटनिरपेक्ष आंदोलन द्वारा साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध किया गया इससे जहाँ एक ओर औपनिवेशिक शासन पर दबाव पड़ा तो वहीं दूसरी ओर उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षो को मज़बूती मिली।

    अमेरिका द्वारा भी साम्राज्यवाद का विरोध किया गया उसका मानना था कि अगर उपनिवेशों को स्वतंत्रता न प्रदान की गयी तो इन क्षेत्रों में साम्यवाद का प्रसार हो सकता है ।

    विऔपनिवेशिकता में साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनों की एक जुटता भी देखी गयी। इसके अंतर्गत एक देश के स्वाधीनता आंदोलन का समर्थन किया गया। साथ ही स्वतंत्र देशों द्वारा अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर समर्थन भी प्रदान किया गया।

    विऔपनिवेशीकरण में भारत की भूमिका को अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत ही वह देश था जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद औपनिवेशिक शासन से मुक्ति प्राप्त की थी अतः भारत की स्वतंत्रता ने इन देशों के लिये प्रेरणा स्रोत का कार्य किया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बहुत से नेताओं ने आजादी पूर्व एशियाई संबंध सम्मेलन का संगठन करके एक वैचारिक मंच तैयार कर दिया था और विश्व पटल पर एक नयी पहचान बनाने का सफल प्रयास भी किया था।

    किंतु विऔपनिवेशिकरण के बाद भी अफ्रीका अपेक्षा अनुसार विकास करने में सफल न हो सका। कुछ ऐसे विकास के बाधक तत्व रहे जिन्होंने अफ्रीका को विकास के पथ पर बढ़ने से रोका। यूं तो अफ्रीका एक बड़ा महाद्वीप है किंतु क्योंकि यह महाद्वीप लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत रहा अतः यहाँ के अधिकांश देश सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुये है। औपनिवेशिक देशों का एकमात्र उद्देश्य उपनिवेशों का शोषण करना रहा था। अतः यहाँ विकास में बाधक तत्वों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से भी समझा जा सकता है-

    • जो अफ्रीकी देश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिये एक साथ लड़े थे वही मुक्त होने के बाद राष्ट्र के प्रति निष्ठा न रखकर जनजातीय पहचान को महत्त्व देने लगे जिससे विभिन्न देशों के मध्य जनजातीय मतभेद उभरकर आये और गृह युद्ध की स्थिति बन गयी। इस गृहयुद्ध ने अफ्रीकी देशों को राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास को अवरूद्ध कर दिया।
    • सभी अफ्रीकी देश बाज़ार तथा पूंजी निवेश हेतु पश्चिमी यूरोपीय देशों तथा अमेरिका पर निर्भर थे। इन विकसित देशों ने अफ्रीकी देशों में राजनितिक हस्तक्षेप तथा नव-उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।
    • 1980 के दशक में अफ्रीका से निर्यात होने वाले तेल, तांबा तथा कोबाल्ट जैसे उत्पाद की मांग आर्थिक मंदी के फलस्वरूप कम हो गयी जिससे अफ्रीकी अर्थव्यवस्था चरमराने लगी साथ ही अकाल, महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने अफ्रीका को विकसित होने के मार्ग को बधित कर दिया।
    • अफ्रीकी देशों में राजनीतिक अपरिपक्वता तथा अस्थिरता ने विकास में बाधक का काम किया क्योंकि यहाँ के राजनीतिज्ञों के पास शासन संचालन का अनुभव नहीं था। और न ही ये सरकार समस्याओं को सुलझा पा रही थी अतः सैनिक अधिकारियों द्वारा अलोकप्रिय सरकारों को पदच्युत कर दिया जाता था।
    • अफ्रीकी देशों द्वारा विश्व बैंक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा कड़ी शर्तो पर ऋण लेने के कारण अफ्रीकी देशों को अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ा जिससे आवश्यक वस्तुओं के दामों में वृद्धि हुयी फलतः गरीबी एवं बेरोज़गारी बढ़ी।

    इस प्रकार कहा जा सकता है कि विऔपनिवेशीकरण की प्रक्रिया ने उपनिवेशों को मुक्त तो कर दिया परंतु आज़ाद हुये अफ्रीकी देश आर्थिक दृष्टिकोण से पश्चिमी देशों पर ही निर्भर रहे। साथ ही नव-उपनिवेशवाद के कारण इनका सामाजिक, आर्थिक विकास अवरूद्ध हो गया किंतु एक सकारात्मक पहलू यह भी रहा कि इस प्रक्रम में इन्हें औपनिवेशिक शासन से मुक्ति मिलने के साथ ही अधिकारों की भी प्राप्ति हुयी।

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