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भारतीय अर्थव्यवस्था

टेलीकॉम क्षेत्र: भारत की डिजिटल आधारभूत संरचना

  • 06 Oct 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 01/10/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Letting go of a chance to democratise telecom services” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित मुद्दों और दूरसंचार विधेयक मसौदा 2022 के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

दूरसंचार क्षेत्र अर्थव्यवस्था पर गुणक प्रभाव रखता है और भारत में यह आर्थिक विकास और देश के सामाजिक संक्रमण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के अनुसार भारत वर्तमान में (जुलाई 2022) 85.11% के कुल टेली-घनत्व (teledensity) के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है। देश में इंटरनेट और ब्रॉडबैंड की पहुँच लगातार बढ़ रही है, जिससे सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान को बढ़ावा मिल रहा है और हाल ही में भारत 5G की दौड़ में भी शामिल हो गया है।
  • यद्यपि उच्च राइट-ऑफ-वे लागत (right-of-way costs), आधुनिक दूरसंचार अवसंरचना की निम्न ग्रामीण क्षेत्र पहुँच, डेटा गोपनीयता और ई-कचरे के कुप्रबंधन जैसे कई अंतराल अभी भी मौजूद हैं। इस प्रकार, भारत में दूरसंचार को विनियमित करने वाले एक सुदृढ़ विधिक ढाँचे का होना आवश्यक है।

भारत में दूरसंचार क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • दूरसंचार बाज़ार का विस्तार: भारत वर्तमान में 1.20 बिलियन ग्राहक आधार के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है और इसने पिछले डेढ़ दशक में मज़बूत विकास दर्ज किया है।
    • इसके साथ ही, भारत वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन बाज़ार बनने की ओर भी अग्रसर है।
  • सरकार के गैर-कर राजस्व में प्रमुख योगदानकर्त्ता: दूरसंचार क्षेत्र सरकार के गैर-कर राजस्व में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है (स्पेक्ट्रम नीलामी, नए ऑपरेटरों से एकमुश्त शुल्क एवं आवर्ती लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम शुल्क के माध्यम से)। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भी लगभग पूरी तरह से इसी क्षेत्र पर निर्भर है।
    • दूरसंचार क्षेत्र में अब स्वचालित मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) तक की अनुमति दे दी गई है।
  • प्रमुख सरकारी पहलें:
    • पूर्ण मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (MNP): सरकार ने वन नेशन फुल मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (One Nation Full Mobile Number Portability) की अनुमति दे दी है। इसने ग्राहकों को वर्तमान मोबाइल नंबर ही बनाए रखते हुए अपने लाइसेंस सेवा क्षेत्र को बदलने में सक्षम बनाया है।
    • भारतनेट (BharatNet): सरकार फ्लैगशिप भारतनेट परियोजना (चरणबद्ध तरीके से) कार्यान्वित कर रही है जिसके तहत ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के माध्यम से भारत की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक को परस्पर संबद्ध किया जा रहा है। यह विश्व में अपनी तरह की सबसे बड़ी ग्रामीण संपर्क परियोजना है।
    • 5G का उभरता युग: भारत सरकार ने हाल ही में भारत में 5G की शुरुआत की है जो न केवल संचार प्रौद्योगिकी की सुविधा प्रदान करेगा, बल्कि 'डिजिटल इंडिया' और 'स्मार्ट सिटीज़' जैसे मिशनों में एक नया आयाम भी जोड़ेगा।
    • दूरसंचार विधेयक मसौदा, 2011: सरकार ने एक ही छतरी के नीचे ओवर-द-टॉप (OTT) संचार सेवाओं को शामिल कर ‘दूरसंचार सेवाओं’ की परिभाषा का विस्तार करने की योजना व्यक्त की है, जिसका अर्थ है कि इंटरनेट आधारित संचार और OTT दोनों को सेवाओं की पेशकश करने के लिये एक लाइसेंस की आवश्यकता होगी।
      • योजना में अप्रयुक्त स्पेक्ट्रम को साझा करने, उसकी ट्रेडिंग, लीजिंग, सरेंडर करने या वापस करने के प्रावधान भी हैं।

भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबद्ध मुद्दे

  • ग्रामीण-शहरी असमानता: भारत में यद्यपि पर्याप्त टेली-घनत्व प्राप्त कर लिया गया है, लेकिन देश के शहरी (55.42%) और ग्रामीण (44.58%) क्षेत्रों के बीच दूरसंचार ग्राहकों की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय विसंगति मौजूद है।
    • इसके अलावा, देश में फिक्स्ड ब्रॉडबैंड की पहुँच विश्व में सबसे कम है (1.69 प्रति 100 निवासी)।
  • ‘राइट ऑफ वे’ चुनौती: विभिन्न राज्यों में परिवर्तनशील और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं, लेवी में एकरूपता की कमी और वन विभाग, रेलवे एवं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से अनुमोदन आवश्यकताओं के कारण भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के लिये ‘राइट ऑफ वे’ (Right of Way) एक विवादास्पद मुद्दा रहा है क्योंकि इन परिदृश्यों में कागजी कार्रवाई में देरी की समस्या उत्पन्न होती है।
    • इस देरी से देश भर में टावरों एवं फाइबर के लिये विभिन्न योजनाएँ और रोलआउट प्रक्रियाएँ प्रभावित हुई हैं।
  • ‘ओवर द टॉप’ (OTT) प्लेटफ़ॉर्म के साथ समस्या: व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे OTT प्लेटफ़ॉर्म वॉयस कॉल और एसएमएस जैसी सेवाएँ प्रदान करने के लिये एयरटेल और जियो जैसे दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के नेटवर्क अवसंरचना का उपयोग करते हैं।
    • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (TSPs) का आरोप है कि इन सुविधाओं के परिणामस्वरूप उनके लिये दोहरी मार की स्थिति बनती है क्योंकि इससे उनके राजस्व के स्रोतों (वॉयस कॉल, एसएमएस) में कटौती होती है।
  • स्पेक्ट्रम उपलब्धता की कमी: जबकि स्पेक्ट्रम उपलब्धता एक बड़ी वैश्विक समस्या है, यह समस्या भारत में विशेष रूप से तीव्र है।
    • ‘सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑपरेटरों के पास अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में पर्याप्त कम मात्रा में स्पेक्ट्रम उपलब्ध हैं (औसतन लगभग 13 मेगाहर्ट्ज)।
  • ई-कचरे का कुप्रबंधन: दूरसंचार उद्योग पर्यावरण को कई तरह से प्रभावित करता है, जिसमें ई-कचरा (e-waste) उत्पन्न करना प्रमुख है। भारत में अनौपचारिक कचरा बीनने वालों द्वारा 95% से अधिक ई-कचरे का अवैध रूप से पुनर्चक्रण किया जाता है।
  • ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी की कमी: भारत में डेटा की खपत तेज़ी से बढ़ रही है और फाइबर नेटवर्क की कमी दूरसंचार कंपनियों द्वारा विश्वसनीय और उच्च गति कनेक्टिविटी प्रदान करने की क्षमता को सीमित कर रही है।
    • भारत को 5G की ओर सरल संक्रमण के लिये 16 गुना अधिक फाइबर की आवश्यकता होगी।

आगे की राह

  • डिजिटल समावेशन से सामाजिक समावेशन: इंटरनेट लोगों के बीच भेदभाव नहीं करता है; यह लोकतंत्र का प्रकाशस्तंभ है। भारत में दूरसंचार अवसंरचना का विस्तार कर और डिजिटल रूप से असंबद्ध क्षेत्रों को संबद्ध कर सामाजिक समावेशन प्राप्त किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, पहाड़ी क्षेत्रों में कोई गर्भवती महिला टेलीमेडिसिन के माध्यम से घर में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त कर सकती है तो शारीरिक रूप से अक्षम लोग मेटावर्स की बहुलता का गवेक्षण कर सकते हैं और वृद्ध जन बुजुर्ग VR प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपने पुराने दिनों को फिर से जी सकते हैं।
    • इसके साथ ही, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म शहरी LGBTQIA+ समुदाय को अभिव्यक्त होने और ग्रामीण LGBTQIA+ लोगों (जो सामाजिक प्रतिबंधों से अधिक प्रभावित होते हैं) से संवाद करने में सक्षम करेंगे।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: इंटरनेट अभिगम्यता एवं डिजिटल साक्षरता एक दूसरे पर निर्भर हैं और डिजिटल अवसंरचना का निर्माण डिजिटल कौशल के निर्माण के साथ-साथ होना चाहिये।
    • न केवल युवा छात्रों, बल्कि कामकाजी आबादी (विशेषकर महिलाओं) को शिक्षित और सशक्त बनाने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल फाउंडेशन सेंटर स्थापित किये जा सकते हैं।
  • निर्बाध और सुरक्षित भारत की ओर: देश भर में डिजिटल संचार की सहजता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट डेटा प्रबंधन और शिकायत निवारण मानकों (ओटीटी प्लेटफ़ॉर्मों सहित) को स्थापित करना आवश्यक है।
    • इसके साथ-साथ व्यक्तिगत स्वायत्तता और पसंद को सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान देते हुए नागरिकों के हितों की रक्षा भी की जानी चाहिये।
  • ‘राइट टू वे’ के लिये एकल खिड़की: राइट टू वे की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये केंद्र, राज्यों और स्थानीय निकायों के बीच एक सहयोगी संस्थागत तंत्र विकसित किया जाना चाहिये।
  • दूरसंचार क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देना: दूरसंचार क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास पर बल देने और एक ऐसा वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है जहाँ ई-मोबाइल हैंडसेट, सीसीटीवी कैमरे, टच स्क्रीन मॉनिटर जैसे हार्डवेयर घटक का निर्माण एवं निर्यात भारत द्वारा किया जा सके और देश को विनिर्माण एवं निर्यात हब में रूपांतरित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: हाल ही में 5G की शुरूआत के आलोक में भारत में दूरसंचार क्षेत्र के प्रबंधन से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

Q. निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार की "डिजिटल इंडिया" योजना का लक्ष्य/उद्देश्य है/हैं? (वर्ष 2018)

  1. चीन जैसी भारत की अपनी इंटरनेट कंपनियों का गठन करना।
  2. हमारी राष्ट्रीय भौगोलिक सीमाओं के भीतर अपने बिग डेटा केंद्र बनाने के लिए बिग डेटा एकत्र करने वाले विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों को प्रोत्साहित करने के लिए एक नीतिगत ढाँचा स्थापित करें।
  3. हमारे कई गाँवों को इंटरनेट से जोड़ना और हमारे कई स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों और प्रमुख पर्यटन केंद्रों में वाई-फाई लाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3
 (C) केवल 2 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (B)

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