प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता
प्रिलिम्स के लिये:प्रतिस्थापन प्रजनन दर, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सेवा, संबंधित सरकारी योजनाएँ मेन्स के लिये:बढ़ती/घटती जनसंख्या का महत्त्व, परिवार नियोजन का महत्त्व, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने बताया कि देश ने प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता हासिल कर ली है, जिसमें 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की कुल प्रजनन दर 2.1 या उससे कम है।
- वर्ष 2012 और 2020 के बीच भारत में आधुनिक गर्भ निरोधक उपायों से 1.5 करोड़ से अधिक युगल लाभान्वित हुए जो इनके उपयोग में हुई वृद्धि को दर्शाता है।
- सरकार ने भारत परिवार नियोजन 2030 विज़न दस्तावेज़ का भी अनावरण किया।
प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता:
- प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों की कुल प्रजनन दर (TFR) को प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता कहा जाता है।
- प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम TFR - इंगित करता है कि एक पीढ़ी स्वयं को प्रतिस्थापित करने के लिये लिये पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही है, अंततः जनसंख्या में समग्र रूप से कमी आई है।
- कुल प्रजनन दर एक महिला के संपूर्ण जीवनकाल में प्रसव करने वाली उम्र की महिला से पैदा या पैदा होने वाले कुल बच्चों की संख्या को संदर्भित करती है।
- भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) वर्ष 2015-16 के 2.2 से घटकर वर्ष 2019-21 में 2.0 हो गई है, जो जनसंख्या नियंत्रण उपायों की महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के पाँचवें दौर की रिपोर्ट से भी पता चलता है।
भारत परिवार नियोजन 2030 विज़न:
- केंद्र बिंदु:
- बच्चे पैदा करने की रणनीति, जागरूकता कार्यक्रमों में पुरुष भागीदारी की कमी, प्रवास और गर्भ निरोधकों तक पहुँच की कमी को प्राथमिकताओं के रूप में पहचाना गया है।
- गर्भ निरोधक:
- आधुनिक गर्भ निरोधक प्रसार दर:
- प्रवासी विवाहित पुरुषों की बड़ी संख्या:
- बिहार में 35 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 24 प्रतिशत।
- आधुनिक गर्भ निरोधक प्रसार दर में कमी ज़्यादातर गर्भ निरोधक तैयारियों की कमी, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच के कारण गर्भ निरोधकों की खरीद में असमर्थता और महिलाओं द्वारा गर्भ निरोधक को खरीदने के बारे में सामाज में व्याप्त संकोच की प्रवृत्ति के कारण भी होता है।
- निवासी पुरुषों की संख्या:
- बिहार में 47 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 36 प्रतिशत।
- प्रवासी विवाहित पुरुषों की बड़ी संख्या:
- यद्यपि विवाहित किशोरों और युवतियों में आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग बढ़ा है, लेकिन यह अपेक्षाकृत रूप से कम है।
- विवाहित महिलाओं और युवतियों ने बताया कि गर्भनिरोधक गोलियों की की पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नही हो पाती है।
- कई ज़िलों में 20% से अधिक महिलाओं की शादी वयस्क होने से पहले ही हो जाती है।
- इनमें बिहार के 17, पश्चिम बंगाल के 8, झारखंड के 7, असम के 4, यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र के दो-दो ज़िले शामिल हैं।
- इन ज़िलों में आधुनिक गर्भ निरोधकों का कम उपयोग देखा गया है।
- इस दृष्टि से आधुनिक गर्भ निरोधकों को उपलब्ध कराने के लिये निजी क्षेत्र का उपयोग करना भी योजना में शामिल है।
- निजी क्षेत्र द्वारा गर्भ निरोधक गोलियों के वितरण में 45% और कंडोम के वितरण में 40% का योगदान दिया जाता है। इसके साथ ही इंजेक्शन जैसे अन्य प्रतिवर्ती गर्भ निरोधकों एवं अंतर्गर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण (IUCD) में क्रमशः 30% और 24% का योगदान है।
- आधुनिक गर्भ निरोधक प्रसार दर:
प्रतिस्थापन स्तर प्रजनन में गिरावट का कारण:
- महिला सशक्तीकरण:
- नवीनतम आँकड़े प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, विवाह की आयु और महिला सशक्तीकरण से संबंधित कई संकेतकों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं, इन सभी ने टीएफआर में कमी लाने में योगदान दिया है।
- गर्भनिरोधक:
- वर्ष 2012 और 2020 के बीच भारत ने आधुनिक गर्भ निरोधकों के उपयोग के लिये 1.5 करोड़ से अधिक अतिरिक्त उपयोगकर्त्ताओं शामिल किया जिससे इनके उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- रिवर्सिबल स्पेसिंग:
- नई ‘रिवर्सिबल स्पेसिंग’ (बच्चों के बीच अंतर) विधियों की शुरुआत, नसबंदी के परिणामस्वरूप मज़दूरी मुआवज़ा प्रणाली और छोटे परिवार के मानदंडों को बढ़ावा देने जैसी कार्यवाहियों ने पिछले कुछ वर्षों में बेहतर प्रदर्शन किया है।
- सरकारी पहल:
- मिशन परिवार विकास:
- सरकार ने सात उच्च फोकस वाले राज्यों में 3 और उससे अधिक के टीएफआर वाले 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों एवं परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में ‘मिशन परिवार विकास’ शुरू किया।
- राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS):
- यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी, इस योजना के तहत नसबंदी के बाद मृत्यु, जटिलता और विफलता की स्थिति के लिये ग्राहकों का बीमा किया जाता है।
- नसबंदी करने वालों के लिये मुआवज़ा योजना:
- इस योजना के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 से नसबंदी कराने वाले लाभार्थी और सेवा प्रदाता (टीम) को मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण:
- परिचय:
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) संपूर्ण भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से व्यापक पैमाने पर आयोजित किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है।
- आयोजन:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने सर्वेक्षण के लिये समन्वय एवं तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) मुंबई को नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया है।
- IIPS सर्वेक्षण कार्यान्वयन के लिये कई क्षेत्रीय संगठनों (FO) के साथ सहयोग करता है।
- उद्देश्य:
- NFHS के प्रत्येक क्रमिक चरण के दो विशिष्ट लक्ष्य हैं:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य एजेंसियों द्वारा नीति एवं कार्यक्रम के उद्देश्यों के लिये स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर आवश्यक डेटा प्रदान करना।
- उभरते महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।
- सर्वेक्षण निम्नलिखित क्षेत्रों में भारत केी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की जानकारी प्रदान करता है:
- प्रजनन
- शिशु एवं बाल मृत्यु दर
- परिवार नियोजन का अभ्यास
- मातृ और शिशु स्वास्थ्य
- प्रजनन स्वास्थ्य
- पोषण
- रक्ताल्पता
- स्वास्थ्य और परिवार नियोजन सेवाओं का उपयोग एवं गुणवत्ता।
- NFHS के प्रत्येक क्रमिक चरण के दो विशिष्ट लक्ष्य हैं:
- NFHS - 5 रिपोर्ट:
- NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-20) के बीच राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर (TFR) 2.2% से घटकर 2.0% हो गई है।
- भारत में केवल पाँच राज्य ऐसे हैं जो 2.1े की प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर हैं। ये राज्य हैं बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर।
आगे की राह:
- हालाँकि भारत ने प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता हासिल कर ली है, फिर भी प्रजनन आयु वर्ग में एक महत्त्वपूर्ण आबादी ऐसी है जिसे हस्तक्षेप प्रयासों के केंद्र में रखा जाना चाहिये।
- भारत का ध्यान परंपरागत रूप से आपूर्ति पक्ष यानी प्रदाताओं और वितरण प्रणालियों पर रहा है, लेकिन अब समय मांग पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने का है जिसमें परिवार, समुदाय और समाज शामिल हैं।
- आपूर्ति पक्ष के स्थान पर मांग पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन संभव है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न 1. ''महिलाओं का सशक्तीकरण जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' विवेचना कीजिये। (2019, मुख्य परीक्षा) प्रश्न 2. भारत में वृद्ध जनसंख्या पर वैश्वीकरण के प्रभाव का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2013, मुख्य परीक्षा) प्रश्न 3. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021, मुख्य परीक्षा) |
स्रोत: द हिंदू
भारत में कुपोषण को रोकना
प्रीलिम्स के लिये:NFHS-5, कुपोषण, स्टंटिंग, वेस्टिंग। मेन्स के लिये:NFHS -5 के निष्कर्ष, स्वास्थ्य, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, जनसंख्या से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भारत में कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिये लक्ष्य निर्धारित किये हैं।
कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिये निर्धारित लक्ष्य:
- 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग और अल्प पोषण (कम वज़न के प्रसार) को प्रतिवर्ष 2% कम करने का लक्ष्य है।
- 0 से 6 वर्ष के बच्चों का अल्प पोषण से बचाव एवं इसमें कुल 6 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 2%की दर से कमी लाना।
- 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया के प्रसार में कुल 9 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 3%की दर से कमी लाना ।
- 15 से 49 वर्ष की किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री माताओं में एनीमिया के प्रसार में कुल 9 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 3% की दर से कमी लाना।
- एनीमिया एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे शारीर में रक्त की ज़रूरत को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उसकी ऑक्सीजन वहन क्षमता अपर्याप्त होती है।
- NFHS -5 रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला गया है जिसमें जनसंख्या के प्रमुख क्षेत्रों पर विस्तृत जानकारी शामिल है, जैसे:
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, शिशु और बाल मृत्यु दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण और रक्ताल्पता, रुग्णता तथा स्वास्थ्य देखभाल, महिला सशक्तीकरण आदि।
NFHS-5 के निष्कर्ष:
- अविकसित बच्चों पर डेटा:
- मेघालय में अविकसित बच्चों की संख्या सबसे अधिक (46.5%) है, इसके बाद बिहार (42.9%) का स्थान है।
- महाराष्ट्र में 25.6% चाइल्ड वेस्टिंग/बच्चों में निर्बलता सबसे अधिक हैं, इसके बाद गुजरात (25.1%) का स्थान है।
- झारखंड में 15 से 49 वर्ष के बीच की महिलाओं का उच्चतम प्रतिशत (26%) है, जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य से कम है।
- अन्य निष्कर्ष:
- कुल प्रजनन दर (TFR) प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या, NFHS -4 और 5 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है।
- समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (CPR) देश में 54% से बढ़कर 67% हो गई है।
- भारत में संस्थागत जन्म 79% से बढ़कर 89% हो गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, स्टंटिंग/बौनापन 4% से घटकर 35.5% हो गया है, वेस्टिंग 21.0% से घटकर 19.3% हो गया है और कम वज़न 35.8% से घटकर 32.1% हो गया है।
- महिलाएँ (15-49 वर्ष) जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य से कम है, NFHS-4 में 22.9% से घटकर NFHS-5 में 18.7% हो गया है।
कुपोषण और संबंधित पहल:
- परिचय:
- कुपोषण वह स्थिति है जो तब विकसित होती है जब शरीर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्त्वों से वंचित हो जाता है, जिससे उसे स्वस्थ ऊतक और अंग के कार्य को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
- कुपोषण उन लोगों में होता है जो या तो कुपोषित हैं या अधिक पोषित हैं।
- पहल:
- पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
- एनीमिया मुक्त भारत अभियान: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक कम करना है।
- मध्याह्न भोजन (MDM) योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच कानूनी अधिकार बन जाए।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिये बेहतर सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु 6,000 रुपए सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
- समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है।
आगे की राह
- वित्तीय प्रतिबद्धताएँ बढ़ाना:
- महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में उनके सतत् विकास एवं जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये निवेश बढ़ाने की अधिक आवश्यकता है।
- परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण:
- भारत को पोषण कार्यक्रमों पर परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- पोषण की दृष्टि से कमज़ोर समूहों (इसमें बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएँ, विशेष आवश्यकता वाले और छोटे बच्चे शामिल हैं) के साथ सीधा जुड़ाव होना चाहिये तथा प्रमुख पोषण सेवाओं और हस्तक्षेपों के अंतिम-मील वितरण को सुनिश्चित करने में योगदान करना चाहिये।
- बुनियादी शिक्षा और सामान्य जागरूकता:
- विभिन्न अध्ययन माताओं की शिक्षा और बच्चों के बीच पोषण संबंधी हस्तक्षेपों के साथ बेहतर अनुपालन को एक मज़बूत संबंध के रूप में रेखांकित करते हैं।
- हमें युवा आबादी के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ सुनिश्चित करना चाहिये; पोषण व स्वास्थ्य उस परिणाम के लिये आधारभूत तत्त्व हैं।
- कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन:
- कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन तथा प्रणालीगत एवं आधारभूत चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक प्रक्रिया की स्थपाना की जानी चाहिये।
- प्रभावी नीतिगत निर्णयों पर विचार-विमर्श करने, योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करने और राज्यों में पोषण की स्थिति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
असंगठित श्रमिकों हेतु सामाजिक सुरक्षा
प्रिलिम्स के लिये:ई-श्रम पोर्टल, असंगठित क्षेत्र, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था मेन्स के लिये:भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की स्थिति और संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया है कि 28 करोड़ से अधिक असंगठित श्रमिकों को ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है और सरकार असंगठित श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ तैयार कर रही है।
- यह भी बताया गया है कि भारत सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दोहराव से बचने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौतों (SSAs) पर बातचीत कर रहा है।
सामाजिक सुरक्षा समझौत (SSA):
- SSA भारत और बाह्य देश के बीच एक द्विपक्षीय समझौता है जिसे सीमा पार श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिये बनाया गया है।
- यह समझौता 'दोहरे कवरेज' से बचने का प्रावधान करता है और सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से दोनों देशों के श्रमिकों के साथ व्यवहार की समानता सुनिश्चित करता है।
- अलगाव या दोहरे कवरेज के उन्मूलन के तहत किसी भी SSA देश में रोज़गार हेतु जाने वाले कर्मचारियों को एक निर्दिष्ट अवधि (प्रत्येक SSA के लिये विशिष्ट) के लिये उस देश में सामाजिक सुरक्षा योगदान प्रदान करने से छूट दी गई है यदि वे अपने मूल देश में सामाजिक सुरक्षा योगदान करना जारी रखते हैं।
- भारत ने बेल्जियम, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड, लक्जमबर्ग के ग्रैंड डची, फ्राँस, डेनमार्क, कोरिया, नीदरलैंड, हंगरी, फिनलैंड, स्वीडन, चेक गणराज्य, नॉर्वे, ऑस्ट्रिया, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान और पुर्तगाल के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौते (SSA) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
सामाजिक सुरक्षा:
- परिचय:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, सामाजिक सुरक्षा एक व्यापक दृष्टिकोण है जिसे वंचितों को लाभ पहुँचाने, व्यक्ति को एक न्यूनतम आय का आश्वासन देने और किसी भी अनिश्चितता से व्यक्ति की रक्षा करने के लिये बनाया गया है।
- प्रावधान:
- भोजन, कपड़े, आवास और चिकित्सा देखभाल एवं आवश्यक सामाजिक सेवाओं सहित स्वास्थ्य तथा कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार।
- किसी भी व्यक्ति के नियंत्रण से परे परिस्थितियों में बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, विधवापन, वृद्धावस्था या आजीविका की कमी की स्थिति में आय के अधिकार की सुरक्षा।
सामाजिक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता:
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अनौपचारिक श्रमिकों को उनके रोज़गार की अल्पकालिक प्रवृत्ति और औपचारिक कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों में कमी के कारण कोविड-19 महामारी के कारण सबसे अधिक हानि हुई है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 90% श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में थे, जो कि 465 मिलियन श्रमिकों में से 419 मिलियन हैं।
- इसके अलावा भारत में कोविड-19 संकट पहले से मौजूद उच्च और बढ़ती बेरोज़गारी की पृष्ठभूमि में आया है।
- असंगठित श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों की नौकरियों के नुकसान, बढ़ती बेरोज़गारी, ऋणग्रस्तता, पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा पर परिणामी प्रभाव एक लंबी अवधि तक अपूर्णीय क्षति पहुँचाने की क्षमता रखते हैं।
- भारत विनिर्माण और सेवाओं के क्षेत्र में कार्यबल का स्थिर अनौपचारिकीकरण देख रहा है, जो गिग इकॉनमी के विकास को रेखांकित करता है, जबकि इस अनौपचारिकीकरण ने अतिरिक्त आय-सृजन के अवसर प्रदान किये हैं, अनौपचारिकता ने अनिश्चितता वाले रोज़गार को बढ़ावा दिया है।
- अनौपचारिक क्षेत्र के आधे से भी कम श्रमिकों की पहुँच जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और पेंशन जैसे किसी भी प्रकार के जोखिम संरक्षण तक है।
भारत में अनौपचारिक श्रमिकों की वर्तमान स्थिति:
- ई-श्रम पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र के पंजीकृत 27.69 करोड़ श्रमिकों में से 94% से अधिक की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है और नामांकित कार्यबल का 74% से अधिक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित है।
- सामान्य श्रेणी के श्रमिकों का अनुपात 25.56% है।
- आँकड़ों से पता चला है कि पंजीकृत असंगठित श्रमिकों में से 94.11% की मासिक आय 10,000 रुपए या उससे कम है, जबकि 4.36% की मासिक आय 10,001 रुपए और 15,000 रुपए के बीच है।
असंगठित श्रमिकों से संबंधित पहल:
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY):
- यह एक वर्षीय जीवन बीमा योजना है जो प्रतिवर्ष नवीनीकृत होती है और किसी भी कारण से हुई मौत के लिये बीमा कवरेज प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY):
- यह एक वर्षीय दुर्घटना बीमा योजना है जो प्रतिवर्ष नवीनीकृत होती है और दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता के लिये बीमा कवरेज प्रदान करती है।
- आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY):
- PMJAY विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा/आश्वासन योजना है जो पूर्णतः सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SYM):
- PM-SYM श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा प्रशासित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है एवं भारतीय जीवन बीमा निगम तथा सामुदायिक सेवा केंद्रों (CSC) के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है।
- अटल पेंशन योजना:
यह योजना मई 2015 में सभी भारतीयों, विशेष रूप से गरीबों, वंचितों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये एक सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। - राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP):
- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रस्ताव किया है कि NSAP के तहत बुजुर्ग, गरीब, विकलांग और विधवाओं की मासिक पेंशन मौजूदा 200 रुपए से बढ़ाकर 800 रुपए की जाए।
- गरीब कल्याण रोज़गार अभियान:
- यह योजना वापस लौटे प्रवासी कामगारों और ग्रामीण नागरिकों को सशक्त बनाती है और उन्हें आजीविका के अवसर प्रदान करती है जो कोविड-19 प्रेरित लॉकडाउन के कारण अपने गृह राज्यों में लौट आए हैं।
आगे की राह
- जबकि इन योजनाओं द्वारा दिये जाने वाले अतिरिक्त लाभों से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को मदद मिलेगी, सामाजिक सुरक्षा संहिता में संगठित क्षेत्र के श्रमिकों की तरह असंगठित श्रमिकों हेतु न्यूनतम सतही-स्तरीय प्रावधानों को औपचारिक और मानकीकृत करने की आवश्यकता है।
- श्रम मंत्रालय को PLFS को समय पर पूरा करने का मुद्दा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के समक्ष उठाना चाहिये।
- एक व्यापक योजना और रोडमैप की आवश्यकता है ताकि महामारी के कारण रोज़गार की बिगड़ती स्थिति और संगठित क्षेत्र में रोज़गार बाज़ार में बढ़ती असमानताओं को दूर किया जा सके।
- असंगठित श्रमिकों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करने की आवश्यकता है।
- इसके अलावा इस क्षेत्र को औपचारिक रूप देना इसकी उत्पादकता बढ़ाना, मौजूदा आजीविका को मज़बूत करने, नए अवसर पैदा करने और सामाजिक सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने से कोविड-19 के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।
स्रोत: द हिंदू
कॉफी संवर्द्धन विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय कॉफी बोर्ड, भारत में कॉफी उत्पादन। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने कॉफी बोर्ड के कामकाज को आधुनिक बनाने, निर्यात को बढ़ावा देने और घरेलू बाज़ार के विकास का समर्थन करने के लिये कॉफी संवर्द्धन विधेयक पेश किया है।
नए विधेयक के संदर्भ में:
- परिचय:
- इसका उद्देश्य भारतीय कॉफी बोर्ड के कामकाज का आधुनिकीकरण करना है।
- यह कॉफी बोर्ड के कई कार्यात्मक क्षेत्रों को संबोधित करेगा, जैसे- उत्पादन, अनुसंधान, विस्तार और गुणवत्ता सुधार, कॉफी को बढ़ावा देने तथा उत्पादकों के कौशल विकास के लिये समर्थन।
- ऐसी कई गतिविधियों को मूल रूप से कॉफी बोर्ड के अधिदेश में शामिल नहीं किया गया था जिन्हें अब इसके कार्यों और शक्तियों में शामिल करने की आवश्यकता है।
- महत्त्व:
- कॉफी उद्योग के विस्तार के साथ उत्पादन से लेकर उपभोग तक कॉफी मूल्य शृंखला के सभी क्षेत्रों में रोज़गार और व्यावसायिक उद्यमिता के अवसरों का सृजन होगा।
- इसके अलावा उपभोक्ताओं को अन्य देशों की तुलना में उच्च गुणवत्ता वाली कॉफी प्राप्त होगी।
- यह बागानों, प्रसंस्करण इकाइयों और कॉफी समुदायों में श्रमिकों के हितों की भी रक्षा करेगा।
- यह पंजीकरण सह सदस्यता प्रमाणपत्र (RCMC) की मौजूदा पाँच साल की वैधता को एक बार के निर्यातक पंजीकरण में के साथ बदलने और निदान इकाइयों के एक बार पंजीकरण सहित दस्तावेज़ीकरण एवं प्रक्रियाओं को सरल बनाकर व्यवसाय करने में आसानी को बढ़ावा देगा।
- पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करने के लिये विधेयक में एक समयबद्ध प्रक्रिया होगी।
पुराने कानून को बदलने की ज़रूरत:
- पहले का अधिनियम लगभग 80 वर्ष पुराना था और आज के समय में अप्रचलित हो गया था।
- इसके प्रावधान उस समय के लिये प्रासंगिक थे।
- इसके अलावा वर्तमान में कई अनावश्यक नियम और कानून हैं जो विशेष रूप से कॉफी के विपणन से संबंधित हैं।
- विगत 10 वर्षों में कॉफी उगाने, विपणन और उपभोग करने के तरीके में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है।
भारत में कॉफी उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
- भारत वर्ष 2020 में वैश्विक उत्पादन के लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष 10 कॉफी उत्पादक देशों में शामिल है।
- भारत दो प्रकार की कॉफी का उत्पादन करता है: अरेबिका और रोबस्टा।
- हल्के सुगंधित स्वाद के कारण अरेबिका का बाज़ार मूल्य रोबस्टा कॉफी की तुलना में अधिक है।
- अनुकूल पारिस्थिक वातावरण:
- कॉफी के पौधों को गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच, जबकि वर्षा 150 से 250 सेमी तक चाहिये होती है।
- यह ठंढ, बर्फबारी, 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के उच्च तापमान और तेज़ धूप को बर्दाश्त नहीं कर पाता है तथा आमतौर पर इसे छायादार पेड़ों के नीचे उगाया जाता है।
- कॉफी का उत्पादन मुख्यतः भारत के दक्षिणी भाग में होता है।
- कर्नाटक भारत में कुल कॉफी के लगभग 70% हिस्से का उत्पादन करता है।
- कॉफी के पौधों को गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच, जबकि वर्षा 150 से 250 सेमी तक चाहिये होती है।
- प्रमुख उत्पादक राज्य:
- कॉफी का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में होता है।
- निर्यात:
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के आँकड़ों के अनुसार, भारत कॉफी का आठवाँ सबसे बड़ा निर्यातक है।
भारतीय कॉफी बोर्ड:
- कॉफी बोर्ड कॉफी अधिनियम, 1942 की धारा (4) के तहत गठित एक वैधानिक संगठन है और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। बोर्ड में अध्यक्ष सहित 33 सदस्य होते हैं।
- बोर्ड मुख्य रूप से अनुसंधान, विस्तार, विकास, बाज़ार आसूचना, बाहरी और आंतरिक संवर्द्धन तथा कल्याणकारी उपायों के क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- इसका मुख्यालय बंगलूरू में है।
- बालेहोन्नूर (कर्नाटक) में भी कॉफी बोर्ड का एक केंद्रीय अनुसंधान संस्थान स्थित है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2008) सूची-I सूची-II
कूट: A B C D (a) 2 4 3 1 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (B) सही है। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
कृषि जनगणना
प्रिलिम्स के लिये:कृषि जनगणना, किसानों के लिये तकनीक, संबंधित सरकारी पहल मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व, किसानों की सहायता में तकनीक की भूमिका, सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने "ग्यारहवीं कृषि जनगणना (2021-22)" की शुरुआत की।
- इस गणना से भारत जैसे विशाल और कृषि प्रधान देश को व्यापक पैमाने पर लाभ होगा।
कृषि जनगणना:
- परिचय:
- कृषि जनगणना प्रत्येक 5 वर्ष में आयोजित की जाती है, जिसका आयोजन कोविड - 19 महामारी के कारण इस बार देर से किया जा रहा है।
- संपूर्ण जनगणना का संचालन तीन चरणों में किया जाता है और डेटा संग्रह के लिये परिचालन स्वामित्त्व को सूक्ष्म स्तर पर एक सांख्यिकीय इकाई के रूप में देखा जाता है।
- तीन चरणों में एकत्रित कृषि जनगणना के आँकड़ों के आधार पर, विभाग अखिल भारतीय और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्तर पर विभिन्न मापदंडों पर रुझानों का विश्लेषण करते हुए तीन विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- ज़िला/तहसील स्तर की रिपोर्ट संबंधित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा तैयार की जाती है।
- तीन चरणों में एकत्रित कृषि जनगणना के आँकड़ों के आधार पर, विभाग अखिल भारतीय और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्तर पर विभिन्न मापदंडों पर रुझानों का विश्लेषण करते हुए तीन विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- कृषि जनगणना अपेक्षाकृत छोटे स्तर पर विभिन्न कृषि मापदंडों पर जानकारी का मुख्य स्रोत है, जैसे कि परिचालन जोतों की संख्या और क्षेत्र, उनका आकार, वर्ग-वार वितरण, भूमि उपयोग, किरायेदारी तथा फसल पैटर्न आदि।
- ग्यारहवीं जनगणना:
- कृषि जनगणना कार्य अगस्त 2022 में शुरू होगा।
- यह पहली बार है कि कृषि जनगणना के लिये डेटा संग्रह स्मार्टफोन और टैबलेट पर किया जाएगा, ताकि डेटा समय पर उपलब्ध हो सके।
- इसमे समाविष्ट हैं:
- भूमि शीर्षक रिकॉर्ड और सर्वेक्षण रिपोर्ट जैसे डिजिटल भूमि अभिलेखों का उपयोग।
- स्मार्टफोन/टैबलेट का उपयोग करके एप/सॉफ्टवेयर के माध्यम से डेटा का संग्रह।
- चरण-I के दौरान गैर-भूमि रिकॉर्ड वाले राज्यों के सभी गाँवों की गणना, जैसा कि भूमि रिकॉर्ड वाले राज्यों में किया गया है।
- प्रगति और प्रसंस्करण की वास्तविक समय की निगरानी।
- अधिकांश राज्यों ने अपने भूमि अभिलेखों और सर्वेक्षणों को डिजिटल कर दिया है, जिससे कृषि जनगणना के आँकड़ों के संग्रह में और तेज़ी आएगी।
- डिजिटल भूमि अभिलेखों के उपयोग और डेटा संग्रह के लिये मोबाइल एप के उपयोग से देश में परिचालन जोतों का एक डेटाबेस तैयार किया जा सकेगा।
डिजिटल कृषि:
- परिचय:
- डिजिटल कृषि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तथा डेटा पारिस्थितिकी तंत्र है जो सभी के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और किफायती भोजन प्रदान करते हुए खेती को लाभदायक, टिकाऊ बनाने के लिये समय पर लक्षित सूचना एवं सेवाओं के विकास और वितरण का समर्थन करता है।
- उदाहरण:
- जैव प्रौद्योगिकी कृषि पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों, या जीवों के कुछ हिस्सों को संशोधित कर देती है; इसमें पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास शामिल है।
- परिशुद्ध कृषि (PA) एक ऐसा दृष्टिकोण है जहाँ कृषि वानिकी, अंतर - फसल, फसल चक्र इत्यादि जैसी पारंपरिक खेती तकनीकों की तुलना में बढ़ी हुई औसत उपज प्राप्त करने के लिये कृषि निर्गतों का सटीक मात्रा में उपयोग किया जाता है। यह डिजिटल कृषि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर आधारित है।
- डेटा मापन, मौसम निगरानी, रोबोटिक्स/ड्रोन प्रौद्योगिकी आदि के लिये डिजिटल और वायरलेस प्रौद्योगिकियाँ।
- लाभ:
- कृषि मशीनरी स्वचालन:
- यह आदानों को ठीक करने की अनुमति देता है और शारीरिक श्रम की मांग को कम करता है।
- रिमोट सैटेलाइट डेटा:
- रिमोट सैटेलाइट डेटा और इन-सीटू सेंसर सटीकता में सुधार करते हैं तथा फसल की वृद्धि एवं भूमि या पानी की गुणवत्ता की निगरानी की लागत को कम करते हैं।
- स्वतंत्र रूप से उपलब्ध और उच्च गुणवत्ता वाली उपग्रह इमेजरी कई कृषि गतिविधियों की निगरानी की लागत को नाटकीय रूप से कम करती है। यह सरकारों को अधिक लक्षित नीतियों की ओर बढ़ने की अनुमति दे सकती है जो किसानों को पर्यावरणीय परिणामों के आधार पर भुगतान (या दंडित) करती है।
- ट्रैसेबिलिटी टेक्नोलॉजीज़ एंड डिजिटल लॉजिस्टिक्स:
- ये सेवाएँ उपभोक्ताओं को विश्वसनीय जानकारी प्रदान करते हुए कृषि-खाद्य आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करने की क्षमता प्रदान करती हैं।
- प्रशासनिक उद्देश्य:
- पर्यावरण नीतियों के अनुपालन की निगरानी के अलावा डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ कृषि के लिये प्रशासनिक प्रक्रियाओं के स्वचालन और विस्तार या सलाहकार सेवाओं के संबंध में विस्तारित सरकारी सेवाओं के विकास को सक्षम बनाती हैं।
- भूमि अभिलेखों का रखरखाव:
- प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
- यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि अदालतों में भूमि विवादों के मुकदमों की संख्या को भी कम करेगा।
- कृषि मशीनरी स्वचालन:
डिजिटल कृषि के लिये सरकार की पहल:
- एग्रीस्टैक:
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का एक संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा
- डिजिटल कृषि मिशन:
- कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉक चेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है।
- एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP):
- यह कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा, एप्लीकेशन और टूल्स का एक संयोजन है जो देश भर में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न सार्वजनिक और निजी आईटी प्रणालियों की निर्बाध अंतःक्रियाशीलता को सक्षम बनाता है।
- UFSP निम्नलिखित भूमिका निभाता है:
- यह कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करता है (जैसे ई भुगतान में UPI)।
- सेवा प्रदाताओं (सार्वजनिक और निजी) तथा किसान सेवाओं के पंजीकरण को सक्षम बनाता है।
- सेवा वितरण प्रक्रिया के दौरान आवश्यक विभिन्न नियमों और मान्यताओं को लागू करता है।
- सभी लागू मानकों, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (Application Programming Interface- API) और प्रारूपों के भंडार के रूप में कार्य करता है।
- किसानों को व्यापक स्तर पर सेवाओं का वितरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न योजनाओं और सेवाओं के बीच डेटा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना।
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A):
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, इस योजना को वर्ष 2010-11 में 7 राज्यों में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों तक समय पर कृषि संबंधी जानकारी पहुँचाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग के माध्यम से भारत में तेज़ी से विकास को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2014-15 में इस योजना का विस्तार शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था।
- अन्य डिजिटल पहलें: किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, कृषि बाज़ार एप, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) पोर्टल आदि।
आगे की राह
- नीति निर्माताओं को संभावित लाभों, लागतों और जोखिमों पर विचार करने तथा बाज़ार की विफलता, प्रौद्योगिकी को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने की आवश्यकता है ताकि हस्तक्षेप को लक्षित कर सार्वजनिक हितसुनिश्चित किया जा सके।
- यह समझना कि प्रौद्योगिकी नीति के विभिन्न घटकों में कैसे मदद कर सकती है ताकि सरकारी निकायों का कौशल विस्तार, प्रौद्योगिकी एवं प्रशिक्षण में निवेश या अन्य अभिकर्त्ताओं (सरकारी और गैर-सरकारी दोनों) के साथ साझेदारी को सक्षम बनाया जा सके।
- उपग्रह इमेजिंग, मृदा स्वास्थ्य सूचना, भूमि रिकॉर्ड, फसल प्रतिरूपण तथा आवृत्ति, बाज़ार डेटा तथा अन्य के लिये देश में मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
- डेटा दक्षता को डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM), डिजिटल स्थलाकृति, भूमि उपयोग और भूमि कवर, मृदा मानचित्र आदि के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न: जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
प्रिलिम्स के लिये:FDI, FPI, सरकारी पहल मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये FDI का महत्त्व, FDI के विभिन्न मार्ग और घटक, सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के क्षेत्र में सर्वाधिक निवेश सिंगापुर और अमेरिका ने किया। इसके बाद मॉरीशस, नीदरलैंड एवं स्विट्रज़लैंड का स्थान है।
- UNCTAD विश्व निवेश रिपोर्ट (WIR) 2022 ने FDI के मामले में वर्ष 2021 के लिये शीर्ष 20 मेज़बान अर्थव्यवस्थाओं में भारत को 7वें स्थान पर रखा है।
शीर्ष प्राप्तकर्त्ता:
- भारत के आँकड़े:
- भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 84,835 मिलियन अमेरिकी डॉलर का उच्चतम वार्षिक FDI प्राप्त किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2.87 बिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक था।
- वर्ष 2021 में FDI प्रवाह वित्त वर्ष 2019-2020 के 74,391 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 81,973 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- शीर्ष 5 FDI सोर्सिंग राष्ट्र:
- सिंगापुर:01%
- अमेरिका:94%
- मॉरीशस:98%
- नीदरलैंड:86%
- स्विट्रज़लैंड:31%
- भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 84,835 मिलियन अमेरिकी डॉलर का उच्चतम वार्षिक FDI प्राप्त किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2.87 बिलियन अमेरिकी डॉलर अधिक था।
- शीर्ष क्षेत्र:
- कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर: 60%
- सेवा क्षेत्र (वित्त, बैंकिंग, बीमा, गैर-वित्तीय/व्यवसाय, आउटसोर्सिंग, अनुसंधान एवं विकास, कूरियर, टेक. परीक्षण और विश्लेषण, अन्य): 12.13%
- ऑटोमोबाइल उद्योग: 11.89%
- ट्रेडिंग: 7.72%
- निर्माण (इन्फ्रास्ट्रक्चर) गतिविधियाँ: 5.52%
- शीर्ष लक्ष्य:
- कर्नाटक: 37.55%
- महाराष्ट्र: 26.26%
- दिल्ली: 13.93%
- तमिलनाडु: 5.10%
- हरियाणा: 4.76%
- पिछले वित्त वर्ष 2020-21 (12.09 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 (21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर) में विनिर्माण क्षेत्र में FDI इक्विटी प्रवाह में 76% की वृद्धि हुई है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:
- परिचय:
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किसी देश के एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश है।
- FDI किसी निवेशक को एक बाहरी देश में प्रत्यक्ष व्यावसायिक खरीद की सुविधा प्रदान करता है।
- निवेशक कई तरह से FDI का लाभ उठा सकते हैं।
- दूसरे देश में एक सहायक कंपनी की स्थापना करना, किसी मौजूदा विदेशी कंपनी का अधिग्रहण या विलय अथवा किसी विदेशी कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम साझेदारी इसके कुछ सामान्य तरीके हैं।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण चालक होने के साथ ही देश के आर्थिक विकास के लिये एक प्रमुख गैर-ऋण वित्तीय संसाधन भी रहा है।
- यह विदेशी पोर्टफोलियो निवेश से अलग है जहाँ विदेशी संस्था केवल किसी कंपनी के स्टॉक और बॉण्ड खरीदती है।
- FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण प्रदान नहीं करता है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) किसी देश के एक फर्म या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित व्यावसायिक गतिविधियों में किया गया निवेश है।
- घटक:
- इक्विटी कैपिटल:
- यह विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक की अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यम के शेयरों की खरीद से संबंधित है।
- पुनर्निवेशित आय:
- इसमें प्रत्यक्ष निवेशकों की कमाई का वह हिस्सा शामिल होता है जिसे किसी कंपनी के सहयोगियों (Affiliates) द्वारा लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है या यह कमाई प्रत्यक्ष निवेशक को प्राप्त नहीं होती है। सहयोगियों द्वारा इस तरह के लाभ को पुनर्निवेश किया जाता है।
- इंट्रा-कंपनी ऋण:
- इसमें प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों के बीच अल्पकालिक या दीर्घकालिक उधार एवं निधियों का उधार शामिल होता है।
- इक्विटी कैपिटल:
- FDI संबंधी मार्ग:
- स्वचालित मार्ग:
- इसमें विदेशी संस्था को सरकार या RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।
- भारत में गृह मंत्रालय (MHA) से सुरक्षा मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होने पर स्वचालित मार्ग के माध्यम से गैर-महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 100% तक FDI की अनुमति है।
- पाकिस्तान और बांग्लादेश से किसी भी निवेश के अलावा रक्षा, मीडिया, दूरसंचार, उपग्रहों, निजी सुरक्षा एजेंसियों, नागरिक उड्डयन तथा खनन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश के लिये गृह मंत्रालय से पूर्व मंज़ूरी या सुरक्षा मंज़ूरी आवश्यक है।
- सरकारी मार्ग:
- इसमें विदेशी संस्था को सरकार से मंज़ूरी लेनी होती है।
- विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (FIFP) अनुमोदन मार्ग के माध्यम से आवेदनों की एकल खिड़की निकासी की सुविधा प्रदान करता है। यह उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।
- इसमें विदेशी संस्था को सरकार से मंज़ूरी लेनी होती है।
- स्वचालित मार्ग:
FDI को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहल:
- भारत सरकार ने हाल के वर्षों में कई पहल की हैं जैसे कि रक्षा, PSU तेल रिफाइनरियों, दूरसंचार, पॉवर एक्सचेंजों और स्टॉक एक्सचेंजों जैसे क्षेत्रों में FDI मानदंडों में ढील देना।
- 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियानों के साथ-साथ वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भारत के कदम मज़बूत करने से पिछले कुछ वर्षों में FDI प्रवाह को गति मिली है।
- निवेश को आकर्षित करने वाली योजनाओं का शुभारंभ, जैसे, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना आदि।
- कोविड-19 महामारी की पहली लहर ने लगभग 1,000 कंपनियों को अपना आधार चीन से बाहर स्थानांतरित करने के लिये प्रेरित किया, जिनमें से लगभग 300 चिकित्सा और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोबाइल और वस्त्रों के क्षेत्रों में थीं।
- भारत के लिये 600 से अधिक कर्मचारियों वाली लावा इंटरनेशनल जैसी कंपनियों ने अपना आधार चीन से भारत में स्थानांतरित करने के अपने इरादे को स्पष्ट किया।
- निवेशकों के लिये उदार और आकर्षक नीति व्यवस्था, उचित कारोबारी माहौल तथा कम नियामक ढाँचे के कारण उच्च FDI प्रवाह संभव हुआ है।
भारत विकास को बनाए रखना:
- वैश्विक निवेशकों के लिये अनुकूल माहौल बनाने में सरकारी नीतियाँ/निर्णय महत्त्वपूर्ण हैं। महामारी से प्रेरित व्यवधानों ने भारत को अपने वैश्विक पदचिह्नों का विस्तार करने का अवसर दिया है।
- सरकार सभी स्तरों पर नीतिगत पहलों और सुधारों की शृंखला के माध्यम से FDI वातावरण को मज़बूत करने का प्रयास कर रही है।
- इसे निर्यात को और बढ़ावा देने, समावेशी विकास को प्रोत्साहित करने और हमारे उद्योग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने हेतु मज़बूत व्यापार नीति अपनाई जानी चाहिये।
- FDI में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को सुविधाजनक बनाने की अधिक क्षमता है।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि भारत गंभीर, दीर्घकालिक निवेशकों के लिये आकर्षक, सुरक्षित, पूर्वानुमान योग्य गंतव्य बना रहे।
- यदि हम निरंतर विदेशी निवेश चाहते हैं तो समान अवसर आवश्यक है। स्थानीय अभिकर्त्ताओं के प्रति मित्रता से बचना चाहिये।
- यदि हम निरंतर विदेशी निवेश चाहते हैं तो समान अवसर आवश्यक है। स्थानीय अभिकर्त्ताओं के प्रति मित्रता से बचना चाहिये।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि भारत गंभीर, दीर्घकालिक निवेशकों के लिये आकर्षक, सुरक्षित, पूर्वानुमान योग्य गंतव्य बना रहे।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में शामिल किया जा सकता है? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) व्याख्या:
|
स्रोत:पी.आई.बी.
डीप सी माइनिंग
प्रिलिम्स के लिये:डीप-सी माइनिंग, इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS), यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS), डीप ओशन मिशन, ऑफशोर ओशन थर्मल एनर्जी कंवेर्ज़न (OTEC)। मेन्स के लिये:डीप सी माइनिंग और इसके निहितार्थ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने उन भारतीय वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार प्रदान किया, जिन्होंने मध्य हिंद महासागर में गहरे समुद्र में खनन प्रणाली का दुनिया का पहला लोकोमोटिव परीक्षण किया था।
- मंत्री ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के 16वें स्थापना दिवस पर यह पुरस्कार प्रदान किया।
- इसके अलावा हिंद महासागर के लिये अपनी तरह का पहला और पूरी तरह से अत्याधुनिक स्वचालित बोया-आधारित तटीय अवलोकन एवं पानी की गुणवत्ता वाली नाउकास्टिंग प्रणाली का उद्घाटन किया, जिसे इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज़ (INCOIS) द्वारा विकसित किया गया था, भारत के डीप ओशन मिशन का हिस्सा है।
नाउकास्टिंग प्रणाली (Nowcasting System):
इस पद्धति में स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों के रडार और उपग्रह अवलोकनों को संसाधित किया जाता है तथा कंप्यूटर द्वारा कई घंटे पहले मौसम को प्रोजेक्ट करने के लिये तेज़ी से प्रदर्शित किया जाता है। नाउकास्टिंग प्रणाली तटीय निवासियों, मछुआरों, समुद्री उद्योग, शोधकर्त्ताओं , प्रदूषण, पर्यटन, मत्स्य पालन और तटीय पर्यावरण से निपटने वाली एजेंसियों सहित विभिन्न हितधारकों को लाभ पहुँचाने के लिये है।
डीप सी माइनिंग:
- परिचय:
- समुद्र का वह भाग जो 200 मीटर की गहराई से नीचे स्थित है, उसे गहरे समुद्र के रूप में परिभाषित किया गया है और इस क्षेत्र से खनिज निकालने की प्रक्रिया को डीप सी माइनिंग के रूप में जाना जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण के अनुसार, गहरे समुद्र में खनिज संसाधनों से संबंधित सभी गतिविधियों की निगरानी के लिये संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के तहत एक एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल, वह क्षेत्र जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमा से परे है और दुनिया के महासागरों के कुल क्षेत्रफल का लगभग 50% का प्रतिनिधित्व करता है।
- चुनौतियाँ:
- यह समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा सकता है,
- मशीनों द्वारा समुद्र तल की खुदाई और मापन गहरे समुद्र के आवासों को बदल या नष्ट कर सकता है।
- इससे प्रजातियों का नुकसान होता है (जिनमें से कई प्रजातियाँ कहीं और नहीं पाए जाते हैं) और पारिस्थितिकी तंत्र संरचना एवं कार्य का विखंडन या नुकसान होता है।
- यह समुंदर के तल पर महीन तलछट को उभारेगा, जिससे निलंबित कणों के ढेर बन जाएंगे।
- यह सतह पर अपशिष्ट जल का निर्वहन करने वाले खनन जहाज़ों द्वारा बढ़ा दिया गया है।
- व्हेल, टूना और शार्क जैसी प्रजातियाँ खनन उपकरण और सतह के जहाज़ों के कारण होने वाले शोर, कंपन तथा प्रकाश प्रदूषण के साथ-साथ ईंधन एवं ज़हरीले उत्पादों के संभावित रिसाव और फैलाव से प्रभावित हो सकती हैं।चुनौतियाँ:
भारत का डीप ओशन मिशन:
- डीप ओशन मिशन खोज करने के लिये आवश्यक तकनीकों को विकसित करने और फिर गहरे समुद्र में खनिजों को निकालने का प्रयास करता है।
- यह मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित करेगा जो वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जा सकती है।
- इसमें एकीकृत खनन प्रणाली शामिल है जिसे गहरे समुद्र से खनिज अयस्कों को निकालने के लिये विकसित किया जाएगा।
- यह गहरे समुद्र में जैवविविधता की खोज और संरक्षण के लिये "गहरे समुद्र के वनस्पतियों और जीवों के जैव-पूर्वेक्षण एवं गहरे समुद्र में जैव-संसाधनों के सतत् उपयोग पर अध्ययन" के माध्यम से तकनीकी नवाचारों को आगे बढ़ाएगा।
- मिशन "अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (OTEC) संचालित विलवणीकरण संयंत्रों के लिये अध्ययन और विस्तृत इंजीनियरिंग डिज़ाइन के माध्यम से समुद्र से ऊर्जा व मीठे जल प्राप्त करने की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश करेगा।
नीली अर्थव्यवस्था/ब्लू इकॉनमी से संबंधित अन्य पहलें:
- सतत् विकास के लिये नीली अर्थव्यवस्था पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स:
- सागरमाला परियोजना
- ओ-स्मार्ट
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन
- राष्ट्रीय मत्स्य नीति
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: 'इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D व्याख्या:
मुख्य परीक्षा:प्रश्न. महासागरों के विभिन्न संसाधनों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये जिनका उपयोग विश्व में संसाधन संकट के समाधान के लिये किया जा सकता है। (2014) |
स्रोत:पी.आई.बी.
विस्थापित बच्चों हेतु संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश
प्रिलिम्स के लिये:इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन (IOM), UN चिल्ड्रन फंड (UNICEF), क्लाइमेट चेंज, चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स, नोट्रे डेम ग्लोबल एडेप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN) इंडेक्स मेन्स के लिये:प्रवासी बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र समर्थित एजेंसियों ने जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित हुए बच्चों की सुरक्षा के लिये पहली बार वैश्विक नीति ढाँचा प्रदान करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन मौजूदा पर्यावरणीय, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय स्थितियों के बीच विभाजन की स्थिति पैदा कर रहा है जो लोगों के स्थानांतरित होने का निर्णय लेने में योगदान दे रहा है।
- आने वाले वर्षों में लाखों और बच्चों को स्थानांतरित होने के लिये मज़बूर किया जा सकता है।
- अकेले वर्ष2020 में मौसम संबंधी प्रभावों के बाद लगभग 10 मिलियन बच्चे विस्थापित हो गए।
- इसके अतिरिक्त दुनिया के 2.2 बिलियन बच्चों में से लगभग आधे या लगभग एक बिलियन लड़के और लड़कियाँ 33 देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के उच्च जोखिम में रहते हैं।
- इसके अलावा चरम जलवायु जैसे बढ़ते समुद्र के स्तर, तूफान, वनाग्नि, खराब फसलें अधिक-से-अधिक बच्चों और परिवारों को अपने घरों से दूर कर रही हैं।
- दुनिया भर में प्रवासी बच्चे ज़ेनोफोबिया के खतरनाक स्तर, कोविड -19 महामारी के सामाजिक आर्थिक परिणामों और आवश्यक सेवाओं तक सीमित पहुँच का सामना कर रहे हैं।
- विस्थापित बच्चों को दुर्व्यवहार, तस्करी और शोषण का अधिक खतरा होता है।
- उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच खोने की अधिक संभावना है तथा उन्हें अक्सर जल्दी शादी एवं बाल श्रम के लिये मजबूर किया जाता है।
विस्थापित बच्चों हेतु संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश:
- ये दिशा-निर्देश प्रवासन हेतु अंतर्राष्ट्रीय संगठन (IOM), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), जॉर्ज टाउन विश्वविद्यालय और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय की एक संयुक्त पहल है।
- दिशा-निर्देश आंतरिक और साथ ही सीमा पार प्रवास दोनों को कवर करते हैं।
- इसमें नौ सिद्धांतों का एक समूह है जो उन बच्चों की अनूठी कमज़ोरियों को संबोधित करता है जिन्हें समाप्त कर दिया गया है।
- सिद्धांत बाल अधिकारों पर अभिसमय पर आधारित हैं और मौजूदा परिचालन दिशा-निर्देशों तथा रूपरेखाओं द्वारा सूचित किये जाते हैं।
- ये नौ सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- अधिकार-आधारित दृष्टिकोण
- बच्चे के सर्वोत्तम हित
- जवाबदेही
- जागरूकता और निर्णय लेने में भागीदारी
- पारिवारिक एकता
- रक्षा, सुरक्षा और संरक्षण
- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच
- गैर भेदभाव
- राष्ट्रीयता
बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय:
- वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक स्तर पर बाल अधिकारों का अभिसमय अपनाया गया।
- अभिसमय के तहत 18 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक व्यक्ति को एक बच्चे के रूप में मान्यता दी जाती है।
- यह अभिसमय प्रत्येक बच्चे के नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों को निर्धारित करता है।
- इसमें शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, बलात्कार एवं यौन शोषण सहित मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार जैसे विषय शामिल हैं।
- यह दुनिया की सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत मानवाधिकार संधि है।
दिशा-निर्देशों की आवश्यकता:
- जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में आगे बढ़ने वाले बच्चों की जरूरतों और अधिकारों को संबोधित करने के लिये वर्तमान में कोई वैश्विक नीतिगत ढाँचा नहीं है।
- जहाँ बच्चों से संबंधित प्रवास नीतियाँ मौजूद हैं, वे जलवायु और पर्यावरणीय कारकों पर विचार नहीं करते हैं, और जहाँ जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियाँ विद्यमान हैं, वे आमतौर पर बच्चों की ज़रूरतों को नज़रअंदाज कर देते हैं।
- जलवायु आपातकाल का मानव गतिशीलता पर गहरा प्रभाव पड़ता है और आगे भी इसकी संभावना विद्यमान है।
- इसका प्रभाव हमारे समुदायों के विशेष वर्गों जैसे कि बच्चों पर सबसे गंभीर होगा।
- ये बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली नीतियों को विकसित करने के लिये राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज समूहों हेतु एक रूपरेखा के रूप में काम करेंगे।
जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव:
- बच्चों का जलवायु जोखिम सूचकांक:
- यह बच्चों के आवश्यक सेवाओं तक पहुँच के आधार पर जलवायु और पर्यावरणीय आपदाओं, जैसे कि चक्रवात और हीटवेव के साथ-साथ उन आपदाओं के प्रति उनकी भेद्यता के आधार पर देशों को रैंक प्रदान करता है।
- यह बच्चों के दृष्टिकोण से जलवायु जोखिम का पहला व्यापक विश्लेषण है।
- नोट्रे डेम ग्लोबल एडाप्टेशन इनिशिएटिव (ND-GAIN) इंडेक्स:
- सूचकांक से पता चलता है कि बच्चे जलवायु परिवर्तन का परिणाम भुगतते हैं क्योंकि यह उनके अस्तित्व, सुरक्षा, विकास और भागीदारी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है।
- बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के अन्य संभावित प्रभाव में अनाथ होना, तस्करी, बाल श्रम, शिक्षा और विकास के अवसरों की हानि, परिवार से अलग होना, बेघर होना, भीख माँगना, आघात, भावनात्मक व्यवधान, बीमारियाँ आदि शामिल हैं।
आगे की राह
- जबकि नए ढाँचे में नए कानूनी दायित्व शामिल नहीं हैं, वे प्रमुख सिद्धांतों को शामिल करते हैं और उनका लाभ उठाते हैं जिनकी पहले ही अंतर्राष्ट्रीय कानून में पुष्टि की जा चुकी है, इसे दुनिया भर की सरकारों द्वारा अपनाया गया है।
- इसके अलावा दुनिया भर की सरकारों को मार्गदर्शक सिद्धांतों के आलोक में अपनी नीतियों की समीक्षा करने और अभी ऐसे उपाय करने की आवश्यकता है जो यह सुनिश्चित कर सकें कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने वाले बच्चों को वर्तमान व भविष्य में संरक्षित किया जा सके।
- इन सिद्धांतों द्वारा सूचित समन्वित कार्रवाई के माध्यम से एक साथ काम कर सरकारें, नागरिक समाज और अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस कदम पर बच्चों के अधिकारों और कल्याण की बेहतर रक्षा कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:Q. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का अधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प D सही उत्तर है। |