लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

सामाजिक न्याय

गर्भपात संबंधित नियमों में संशोधन

  • 11 Feb 2020
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 में संशोधन से संबंधित हालिया प्रस्ताव के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गर्भपात संबंधी नियमों में बदलाव के लिये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (Medical Termination of Pregnancy- MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन को मंज़ूरी दी है। केंद्र द्वारा प्रस्तावित इस अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं के गर्भपात के लिये गर्भावस्था की सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करना है, इस संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिये वैधानिक रूप से अवांछित और सुरक्षित गर्भपात कराना आसान हो जाएगा। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले विभिन्न सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने सरकार के इस कदम का समर्थन किया है।

संशोधित प्रावधान

  • केंद्र द्वारा प्रस्तावित इस बिल का उद्देश्य मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (Medical Termination of Pregnancy- MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन करना है।
  • संशोधन के तहत गर्भपात के लिये गर्भावस्था की सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करना भी शामिल है।
  • मौजूदा नियमों के तहत गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये दो या दो से अधिक चिकित्सकों की राय लेनी आवश्यक है, किंतु हालिया संशोधन प्रस्ताव में इसे मात्र एक चिकित्सक तक सीमित करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा गर्भावस्था के 20 से 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये दो चिकित्सकों की राय लेना ज़रूरी होगा।
  • मेडिकल बोर्ड द्वारा जाँच में पाई गई भ्रूण संबंधी विषमताओं के मामले में गर्भपात के लिये गर्भावस्था की ऊपरी सीमा लागू नहीं होगी।
  • जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है उसका नाम और अन्य जानकारियाँ उस वक्त के कानून के तहत निर्धारित किसी खास व्यक्ति के अलावा किसी और के सामने प्रकट नहीं की जाएंगी।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971

मौजूदा गर्भपात कानून लगभग पाँच दशक पुराना है और इसके तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है।

  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 की धारा 3 की उप-धारा (2) व उप-धारा (4) के अनुसार, कोई भी पंजीकृत डॉक्टर गर्भपात कर सकता है। यदि -
    • गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है।
    • गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है किंतु 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, तो गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि:
      • यदि गर्भपात नहीं किया गया तो गर्भवती महिला का जीवन खतरे में पड़ सकता है;
      • यदि गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को शारीरिक या मानसिक तौर पर गंभीर खतरा पहुँचने की आशंका हो;
      • यदि गर्भाधान का कारण बलात्कार हो;
      • इस बात का गंभीर खतरा हो कि यदि बच्चे का जन्म होता है तो वह शारीरिक या मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है;
      • यदि बच्चों की संख्या को सीमित रखने के उद्देश्य से दंपति ने जो गर्भ निरोधक तरीका अपनाया हो वह विफल हो जाए।

नोट: ज्ञात हो कि वर्ष 1971 से पूर्व भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात को आपराधिक कृत्य घोषित किया गया था।

क्यों आवश्यक है संशोधन?

  • वर्तमान में 20 सप्ताह से अधिक समय के पश्चात् गर्भपात की मांग करने वाली महिलाओं को बोझिल कानूनी प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। चूँकि गर्भपात को महिलाओं के प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू माना जाता है इसीलिये इससे महिलाओं के प्रजनन के अधिकार का हनन होता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ विशेष शारीरिक और मानसिक स्थितियों को गर्भावस्था के पाँचवें और छठे महीने के पश्चात् ही पहचाना जा सकता है।
  • गर्भपात के लिये गर्भावस्था की मौजूदा सीमा ने असुरक्षित गर्भपात कराने वाली संस्थाओं को प्रोत्साहन दिया है, जिससे मातृत्व मृत्यु दर में भी वृद्धि होती है।
    • आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक दो घंटे में एक महिला की मृत्यु सिर्फ असुरक्षित गर्भपात के कारण हो जाती है। भारत में प्रत्येक वर्ष किये जाने वाले कुल गर्भपातों में से केवल 10 प्रतिशत ही कानूनी रूप से दर्ज़ किये जाते हैं।
    • उदहारणस्वरूप वर्ष 2015 में केवल 7 लाख गर्भपात ही सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज़ किये गए, जबकि शेष आंकलित गर्भपात गैर कानूनी ढंग से चल रहे क्लीनिक तथा झोला- छाप डॉक्टरों के द्वारा चोरी छुपे किये गए।
  • MTP अधिनियम, 1971 की इस आधार पर भी आलोचना की जाती है कि यह अधिनियम कई अवसरों पर चिकित्सा प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ तालमेल स्थापित करने में सक्षम नहीं रहा है।
  • मूल कानून (MTP अधिनियम, 1971) के अनुसार यदि कोई नाबालिग गर्भवती अपना गर्भपात करना चाहती है, तो उसे अपने अभिभावक से लिखित सहमति प्राप्त करनी होगी। प्रस्तावित बिल के तहत इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

प्रस्तावित कदम के निहितार्थ

  • MTP अधिनियम, 1971 को संशोधित करना महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह महिलाओं को बेहतर प्रजनन संबंधी अधिकार प्रदान करेगा क्योंकि गर्भपात को महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू माना जाता है।
  • इस विधेयक के माध्यम से असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतें काफी हद तक रोकी जा सकती हैं, बशर्ते प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा कानूनी तौर पर सेवाएँ प्रदान की जाएं।
  • अक्सर 20वें सप्ताह के पश्चात् भ्रूण की असामान्यताओं का पता लगता है, जिसके कारण वांछित गर्भावस्था अवांछित हो जाती है। आमतौर पर भ्रूण विसंगति स्कैन गर्भावस्था के 20वें -21वें सप्ताह के दौरान किया जाता है। यदि इस स्कैन को करने में किसी भी कारणवश देर हो जाती है तो महिलाओं के समक्ष एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है।
    • MTP अधिनियम, 1971 में किया जा रहा संशोधन उन सभी मामलों में गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देगा जहाँ 20 सप्ताह के पश्चात् भ्रूण में कुछ विसंगति की सूचना प्राप्त होती है।
  • उल्लेखनीय है कि यह संशोधन के पश्चात् यह नियम अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होगा, जिसका अर्थ है कि अविवाहित महिलाओं को MTP अधिनियम, 1971 के उन प्रावधानों से छूट मिलेगी जिनके अनुसार अविवाहित महिलाएँ गर्भनिरोधक उपायों की असफलता को गर्भपात का कारण नहीं बता सकती हैं।

संबंधित चुनौतियाँ

  • कई विश्लेषकों ने मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं के संबंध में चिंता व्यक्त की है, जिनके पास डॉक्टर तक पर्याप्त पहुँच नहीं है। भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे को देखते हुए यह स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है।
    • आँकड़ों के अनुसार, भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिये देश में सिर्फ 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। इस हिसाब से भारत में प्रत्येक 13000 नागरिकों पर मात्र 1 डॉक्टर मौजूद है।
  • भारत में लिंग-निर्धारण को अवैध घोषित किया गया है। ऐसी चिंताएँ ज़ाहिर की जा रही हैं कि गर्भपात कानून को अधिक उदार बनाने से लिंग-निर्धारण के अवैध कृत्य को प्रोत्साहन मिलेगा।

आगे की राह

  • भारतीय संविधान सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान व्यवहार की गारंटी देता है। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तक सार्वभौमिक पहुँच का विषय ‘जनसंख्या एवं विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ (1994) तथा सतत् विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र में भी अंतर्निहित है।
  • जब तक प्रजनन आयु समूह की प्रत्येक महिला के पास प्रस्तावित कानून का उपयोग करने की क्षमता नहीं होगी, तब तक इस संशोधन की सफलता सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी।
  • आवश्यक है कि जिस प्रकार सरकार ने सुदूर गाँवों के रोगियों को मोतियाबिंद के ऑपरेशन से लाभान्वित करने और प्रसव के लिये संस्थागत सुविधाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाया है उसी प्रकार गर्भपात से संबंधित नियमों का लाभ प्राप्त करने के लिये भी सक्षम बनाए।

प्रश्न: “मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 में किये जा रहे संशोधन महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।” चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2