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स्वास्थ्य व्यय पर NHA रिपोर्ट

  • 01 Dec 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य व्यय पर NHA रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) ने बताया कि सरकार ने स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि की है, जिससे आउट-ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर (OOPE) वर्ष 2017-18 में घटकर 48.8% हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 64.2% था।

  • यह रिपोर्ट राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र द्वारा तैयार की गई थी, जिसे स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (NHA) तकनीकी सचिवालय के रूप में नामित किया गया था।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा उपलब्ध कराए गए स्वास्थ्य खातों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रणाली 2011 के आधार पर एक लेखा ढाँचे का उपयोग कर NHA अनुमान तैयार किये जाते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र:

  • यह 2006-07 में भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत तकनीकी सहायता के लिये एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • इसका अधिदेश स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के लिये राज्यों को तकनीकी सहायता के प्रावधान करने और क्षमता निर्माण हेतु नीति एवं रणनीति बनाने में सहायता करना है।

प्रमुख बिंदु

  • कुल सकल घरेलू उत्पाद में सरकारी हिस्सेदारी में वृद्धि:
    • 2017-18 के लिये देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद में सरकारी स्वास्थ्य व्यय के हिस्से में वृद्धि हुई थी।
    • यह वर्ष 2013-14 के 1.15% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 1.35% हो गया है।
  • प्रति व्यक्ति बढ़ा हुआ सरकारी खर्च:
    • वर्ष 2013-14 से वर्ष 2017-18 के बीच प्रति व्यक्ति के हिसाब से सरकारी स्वास्थ्य खर्च 1,042 रुपए से बढ़कर 1,753 रुपए हो गया है।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा:
    • वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा 2013-14 के 51.1% से बढ़कर 2017-18 में 54.7% हो गया है।
    • प्राथमिक और माध्यमिक देखभाल वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय के 80% से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है।
  • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय:
    • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय का हिस्सा, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है, में वृद्धि हुई है।
  • जेब खर्च में कमी:
    • स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च में वृद्धि के कारण कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी खर्च का हिस्सा बढ़कर 40.8 फीसदी हो गया और 2017-18 के लिये जेब खर्च में 48.8% की गिरावट आई।
      • OOPE में गिरावट सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ते उपयोग और इन सुविधाओं एवं सेवाओं की लागत में कमी के कारण है।

स्वास्थ्य क्षेत्र के मुद्दे:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का अभाव: देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल का दायरा सीमित है।
    • जहाँ तक ​​एक अच्छी तरह से काम करने वाले सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बात है तो वहाँ केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्डकेयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • आपूर्ति-पक्ष की कमियाँ: बदतर स्वास्थ्य प्रबंधन कौशल और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिये उचित प्रशिक्षण एवं सहायक पर्यवेक्षण की कमी स्वास्थ्य सेवाओं की वांछित गुणवत्ता के वितरण को अवरुद्ध करती है। 
    • वर्ष 2019 में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रत्येक 100 में से लगभग एक बच्चे की मृत्यु दस्त या निमोनिया के कारण पाँच वर्ष की आयु से पहले ही हो जाती है।  
    • स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच का प्रत्यक्ष संबंध डायरिया, पोलियो और मलेरिया जैसी बीमारियों से है।
  • अपर्याप्त वित्तपोषण: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य वित्तपोषण पर व्यय लगातार कम हो रहा है (जीडीपी का लगभग 1.3%)। भारत का कुल ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.3% है। 
    • यह आवंटन ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) देशों के औसत (7.6%) और ब्रिक्स (BRICS) देशों द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर किये जाने वाले औसत खर्च (3.6%) की तुलना में काफी कम है।
  • अतिव्यापी क्षेत्राधिकार: सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु उत्तरदायी कोई एक विशिष्ट प्राधिकरण नहीं है, जो कानूनी रूप से दिशा-निर्देश जारी करने एवं स्वास्थ्य मानकों के अनुपालन को लागू करने हेतु अधिकृत है।
  • उप-इष्टतम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली: इसके कारण उन ग़ैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है जहाँ रोकथाम और रोग की आरंभिक पहचान सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। 
    • यह कोविड-19 महामारी जैसे नए और उभरते खतरों के लिये पूर्व-तैयारी और प्रभावी प्रबंधन की क्षमता को सीमित करती है।  
  • आवश्यकता से कम डॉक्टर:
    • भारत में वर्तमान में WHO के 1:1000 के मानदंड के मुकाबले 1,445 की आबादी पर एक ही  डॉक्टर मौजूद है।

आगे की राह

  • लागत को कम करने और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु मेडिकल कॉलेजों में निवेश को  प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • अन्य नैदानिक प्रक्रियाओं और अस्पतालों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) पर ज़ोर देना तथा लक्ष्य की त्वरित प्राप्ति के लिये टीकाकरण अभियान में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
  • नई दवाओं के विकास में अधिक निवेश का समर्थन करने और जीवन रक्षक व आवश्यक दवाओं पर ‘वस्तु एवं सेवा कर’ को कम करने के लिये अतिरिक्त कर कटौती द्वारा अनुसंधान तथा विकास को प्रोत्साहित करना।
  • लोगों को प्रस्तावित स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने हेतु मौजूदा स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों को तैयार करने के लिये उनके प्रशिक्षण, पुन: कौशल और ज्ञान उन्नयन पर ध्यान देना आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू

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