शासन व्यवस्था
भारत में संस्थागत प्रसव
- 26 Mar 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:जननी सुरक्षा योजना (JSY), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), लक्ष्य कार्यक्रम, पोषण अभियान, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:महिलाएँ, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों से संबंधित मुद्दे, संस्थागत प्रसव के हालिया रुझान, संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम। |
चर्चा में क्यों?
भारत को सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहन प्रदान करते हुए डेढ़ दशक हो गया है, लेकिन माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य संकेतकों में और इस तरह के प्रसवों की संख्या में उतना सुधार नहीं हुआ है।
संस्थागत प्रसव:
- इसका अर्थ है प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्यकर्मियों की समग्र देख-रेख में एक चिकित्सा संस्थान में बच्चे को जन्म देना।
- यह स्थिति को संभालने और माँ, बच्चे के जीवन को बचाने के लिये सुविधाओं की उपलब्धता का भी प्रतीक है।
भारत में संस्थागत प्रसव संबंधी हालिया रुझान:
- भारत में संस्थागत प्रसव की हिस्सेदारी वर्ष 2005-06 के 40.8% से बढ़कर वर्ष 2019-2021 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5) में 88.6% हो गई।
- नौ लक्षित राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम ने इस अवधि के दौरान 50-64% अंक के बीच समान वृद्धि दर्ज की।
- मध्य प्रदेश 64.5% अंक की वृद्धि के साथ सबसे आगे है।
- इन राज्यों में भारत की लगभग आधी आबादी निवास करती है एवं यहाँ 60% से अधिक मातृ मृत्यु, 70% शिशु मृत्यु और 12% वैश्विक मातृ मृत्यु दर है।
- मातृ मृत्यु दर (MMR), शिशु मृत्यु दर और नवजात मृत्यु दर (NMR) में संस्थागत जन्म के समान गति से सुधार नहीं हुआ है।
- नौ फोकस राज्यों में उच्चतम एमएमआर जारी है, जिनमें से अधिकांश भारत के राष्ट्रीय औसत 103 से काफी आगे हैं।
- भारत के राज्यों के दो समूहों में स्वास्थ्य सेवा वितरण और सेवा उपयोग में बहुत भिन्नता है- राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन करने वाले और पीछे रहने वाले।
- समग्र रूप से देश वर्ष 2030 तक MMR को 70 तक कम करने के संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम हो सकता है, लेकिन जब तक कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, तब तक पिछड़ने वाले राज्यों का खराब प्रदर्शन जारी रह सकता है।
भारत में संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम:
- जननी सुरक्षा योजना: वर्ष 2005 में जननी सुरक्षा योजना (JSY) के साथ संस्थागत प्रसव को पहली बार केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया गया था। इस योजना के तहत अगर किसी महिला ने घर के बजाय किसी चिकित्सा सुविधा में बच्चे को जन्म दिया है तो उसे सीधे नकद राशि का हस्तांतरण किया जाता है।
- जननी सुरक्षा योजना एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
- जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): जून, 2011 में भारत सरकार ने जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (Janani Shishu Suraksha Karyakram- JSSK) शुरू किया।
- यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य प्रसव और सीजेरियन ऑपरेशन तथा बीमार नवजात (जन्म के 30 दिन बाद तक) सहित गर्भवती महिलाओं को पूरी तरह से मुफ्त एवं कैशलेस सेवाएंँ प्रदान करने की एक पहल है।
- वर्ष 2013 में "प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान की जटिलताओं तथा एक वर्ष तक के बीमार शिशुओं" के इलाज की लागत को भी योजना के दायरे में लाया गया था।
- प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): एनीमिया के मामलों का पता लगाने और उसका इलाज करने के लिये चिकित्सा अधिकारियों की मदद से हर महीने की 9 तारीख को विशेष प्रसवपूर्व जाँच (AnteNatal Check-ups- ANC) पर ध्यान केंद्रित करने हेतु इसे शुरू किया गया है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है जिसे 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
- लक्ष्य कार्यक्रम: लक्ष्य (लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव) का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- पोषण अभियान: पोषण अभियान का लक्ष्य बच्चों (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है।
- राज्य सरकार की योजनाएँ: राज्य स्तर पर इसी तरह की प्रोत्साहन-संचालित योजनाओं में मध्य प्रदेश में श्रमिक सेवा प्रसूति सहायता योजना, हरियाणा में जननी सुविधा योजना, पश्चिम बंगाल में आयुषमती योजना, असम और गुजरात में चिरंजीवी योजना तथा दिल्ली में ममता फ्रेंडली अस्पताल योजनाएँ शामिल हैं।
आगे की राह
- समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता: संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएंँ सुरक्षित जन्म सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त नहीं हैं। बुनियादी ढांँचे और मानव संसाधन की कमियों को दूर करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- उपयोग के वास्तविक पैटर्न पर केंद्रित एक बुनियादी अवसंरचना विकास परियोजना मौजूदा अंतराल को कम करने में मददगार हो सकती है।
- कार्यबल को सुदृढ़ बनाना: उल्लेखनीय परिवर्तन लाने हेतु विभिन्न सरकारी योजनाओं के वितरण में शामिल कार्यबल को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) और सहायक नर्स दाइयाँ विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये गंभीर रूप से कार्यके बोझ का सामना कर रही हैं।
- पात्रता मानदंड का विस्तार: ऐसी योजनाओं के लिये पात्रता मानदंड का विस्तार करने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान में इसमें ऐसे कई लोग शामिल नहीं हैं, जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।
- कुछ योजनाएँ तभी लागू होती हैं जब माँ की आयु 19 वर्ष या उससे अधिक हो, कुछ केवल पहले बच्चे के लिये हैं और कुछ के लिये 'गरीबी रेखा से नीचे' का होना अनिवार्य है।
- गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली एक 18 वर्षीय गर्भवती महिला सबसे अधिक असुरक्षित है।
- योजना की निगरानी: योजना के परिणामों की बेहतर निगरानी के लिये एक आदर्श संस्थागत वितरण को परिभाषित करने की आवश्यकता है, इसलिये यह समझने हेतु परिणामों की निगरानी करने की आवश्यकता है कि योजना वास्तव में कितनी सफल है।
- डेटा अंतराल को कम करना: भारत को भी डेटा अंतराल को कम करना चाहिये, प्रत्येक संस्थान को रुग्णता और मृत्यु दर डेटा को नियमित रूप से प्रकाशित करना चाहिये। स्वास्थ्य केंद्रों को भी इसके अधिक भार से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. ‘मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से-कौन सा/से सही है/हैं? (2019)
(a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission) के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |