‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ रिपोर्ट’ , WHO मेन्स के लिये:स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव, विश्व स्वास्थ्य संगठन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO), अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद (International Council of Nurses- ICN) और ‘नर्सिंग नाउ कैंपेन’ (Nursing Now campaign) द्वारा ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड नर्सिंग’ नामक एक रिपोर्ट जारी की गई है।
मुख्य बिंदु:
- स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण रही है, स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में नर्सों की हिस्सेदारी 59% से अधिक (27.9 मिलियन) है। यह संख्या स्वास्थ्य क्षेत्र में और विशेषकर वर्तमान वैश्विक संकट में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है।
- 7 अप्रैल, 2020 को जारी इस रिपोर्ट में सार्वभौमिक स्वास्थ्य और देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य, गैर-संचारी रोगों, आपातकालीन तैयारी तथा प्रतिक्रिया आदि के संदर्भ में राष्ट्रीय एवं वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति में नर्सों के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया गया है।
अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद
(International Council of Nurses- ICN):
- ICN की स्थापना वर्ष 1899 में की गई थी।
- ICN वैश्विक स्तर पर नर्सों के प्रतिनिधित्त्व के साथ, एक पेशे के रूप में नर्सिंग की प्रगति, नर्सों के हितों की रक्षा के लिये कार्य करती है।
- वर्तमान में विश्व के 130 से अधिक राष्ट्रीय नर्स संघ ICN में सक्रिय सदस्य के रूप में शामिल हैं।
- ICN के द्वारा प्रतिवर्ष 12 मई को ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ (Florence Nightingale) के जन्मदिवस की वर्षगाँठ के दिन को ‘विश्व नर्सिंग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
वैश्विक स्तर पर नर्सों की स्थिति:
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर नर्सों का अनुपात प्रति हज़ार लोगों पर लगभग 36.9 (अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ अंतर के साथ) है।
- रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीकी महाद्वीप की तुलना में अमेरिकी महाद्वीप में नर्सों की संख्या 10 गुना अधिक है।
- जहाँ अमेरिकी देशों में यह अनुपात प्रति 10,000 की जनसंख्या पर लगभग 83.4 है वहीं अफ्रीका के देशों में नर्सों का अनुपात प्रति 10,000 की जनसंख्या पर मात्र 8.7 (लगभग) है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 5.7 मिलियन नर्सों की कमी हो जाएगी।
- वर्तमान में COVID-19 की आपदा को देखते हुए इंग्लैंड की ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा’ (National Health Service- NHS) ने नौकरी छोड़कर जा चुकी नर्सों से स्वयं को पुनः पंजीकृत कर इस आपदा से निपटने में उनकी सहायता करने का आग्रह किया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व में नर्सों की संख्या में सबसे बड़ी कमी दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र के देशों में है, वहीं अमेरिका और यूरोप के देशों में नर्स के रूप में कार्य कर रहे कर्मचारियों की बढ़ती उम्र एक बड़ी समस्या है।
- पूर्वी भूमध्यसागर, यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के कुछ उच्च आय वाले देश पूर्ण रूप से प्रवासी नर्सों पर आश्रित हैं।
भारत में नर्सों की स्थिति:
- वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में नर्सों की संख्या 15.6 लाख और सहायक नर्सों की संख्या लगभग 7.72 लाख थी।
- इनमें से पेशेवर नर्सों (Professional Nurses) की हिस्सेदारी 67% हैं और भारत में प्रतिवर्ष लगभग 3,22,827 ऐसे छात्र नर्सिंग में स्नातक पूरा करते हैं जिन्होंने कम-से-कम चार वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
- भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में नर्सों की हिस्सेदारी सबसे अधिक 47% है, इसके अतिरिक्त डॉक्टर (23.3%), दंतचिकित्सक (5.5%) और फार्मासिस्ट (24.1%) हैं।
- वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों के रूप में कार्यरत कर्मचारियों में महिलाओं की संख्या अधिक (90%) है, भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में महिला नर्सों की हिस्सेदारी 88% है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों का योगदान:
- WHO के अनुसार, मरीज़ों को गुणवत्तापूर्ण पूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने, संक्रमण को रोकने और नियंत्रित करने तथा रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) का मुकाबला करने में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- ICN के अनुसार, चीन के हुबेई प्रांत में COVID-19 की महामारी से निपटने में सहायता के लिये चीन के अन्य हिस्सों से 28,000 से अधिक नर्सों हुबेई प्रांत में जाकर अपनी सेवाएँ दी थी।
- ICN के अनुसार, नर्सों के योगदान के परिणामस्वरूप अब तक 44,000 (चीन द्वारा जारी कुल संक्रमितों की संख्या का लगभग आधा) से अधिक लोगों को COVID-19 से ठीक किया जा सका है।
- वर्तमान में COVID-19 की चुनौती में जहाँ स्वच्छता, शारीरिक दूरी और सतह कीटाणुशोधन संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के लिये अति आवश्यक है ऐसे में नर्सों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
- COVID-19 के नियंत्रण हेतु कार्य कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिये सुरक्षा उपकरणों जैसे-दस्ताने, मास्क आदि की कमी और मानसिक तनाव एक बड़ी चुनौती है।
चुनौतियाँ:
- नर्सों को अपने कार्यस्थलों पर खतरनाक बीमारियों के संक्रमण के साथ ही कम वेतन, लंबी अवधि तक काम, भेदभाव और अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई बार नर्सों ने न्यूनतम वेतन और अधिक समय तक कार्य करने पर भी उपयुक्त भुगतान न मिलने जैसी समस्याओं को उठाया है।
- वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें राजधानी दिल्ली में कार्यरत नर्सों के लिये न्यूनतम वेतन 20,000 करने को कहा गया था।
- ऐसे ही मामले में वर्ष 2017 में केरल के निजी अस्पतालों में कार्य करने वाली नर्सों ने सुप्रीम कोर्ट की समिति के सुझाव के अनुरूप न्यूनतम वेतन न दिये जाने को लेकर विरोध किया।
समाधान:
- इन समस्याओं के समाधान के लिये सरकार को देश के विभिन्न भागों में नर्सिंग से जुड़े शिक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर निवेश में वृद्धि करनी चाहिये।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में कार्यरत नर्सों के लिये राष्ट्रीय मानकों के आधार पर वेतन प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- सेवाकाल के दौरान नर्सों के प्रशिक्षण और उनकी समस्याओं के समाधान के लिये विशेष तंत्र की व्यवस्था की जानी चाहिये।