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सामाजिक न्याय

NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट

  • 09 May 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट।

मेन्स के लिये:

NFHS-5 के निष्कर्ष, स्वास्थ्य, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, जनसंख्या और संबंधित मुद्दे। 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के पांँचवें दौर के दूसरे चरण की राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी की गई है।

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey- NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-स्तरीय सर्वेक्षण है जो पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि नमूने के रूप में किया जाता है।

NFHS-5 रिपोर्ट के बारे में:

  • परिचय:
    • सर्वेक्षण में भारत की राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रजनन क्षमता, शिशु एवं बाल मृत्यु दर, परिवार नियोजन की प्रथा, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, प्रजनन स्वास्थ्य, पोषण, एनीमिया, स्वास्थ्य व  परिवार नियोजन सेवाओं का उपयोग तथा गुणवत्ता आदि से संबंधित जानकारी प्रदान की गई है
    • NFHS-5 के दायरे को सर्वेक्षण के पहले दौर (NFHS-4) के संबंध में नए आयाम जोड़कर विस्तारित किया गया है जैसे:
      • मृत्यु पंजीकरण, पूर्व-विद्यायी शिक्षा, बाल टीकाकरण के विस्तारित डोमेन, बच्चों के लिये सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के घटक, मासिक धर्म स्वच्छता, शराब और तंबाकू के उपयोग की आवृत्ति, गैर-संचारी रोगों (NCD) के अतिरिक्त घटक, 15 वर्ष तथा  उससे अधिक आयु के सभी लोगों में उच्च रक्तचाप व मधुमेह को मापने हेतु विस्तारित आयु सीमा।
    • यह 30 सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) जिन्हें देश को वर्ष 2030 तक हासिल करना है, को तय करने के लिये एक निर्देशक का काम करती है।
    • राष्ट्रीय रिपोर्ट सामाजिक-आर्थिक एवं अन्य परिप्रेक्ष्य से संबंधित आंकडे़ भी प्रदान करती है जो  नीति निर्माण और प्रभावी कार्यक्रम कार्यान्वयन हेतु उपयोगी है।
    • NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट NFHS-4 (2015-16) से NFHS-5 (2019-21) तक की प्रगति को सूचीबद्ध करती है।
  • उद्देश्य:
    • NFHS के उत्तरोत्तर चरण का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण एवं अन्य उभरते क्षेत्रों से संबंधित विश्वसनीय व तुलनीय डेटा प्रदान करना है।

NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • कुल प्रजनन दर (TFR):
    • समग्र:
      • NFHS-4 और NFHS-5 के मध्य राष्ट्रीय स्तर पर कुल प्रजनन दर (TFR) 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है।
      • भारत में केवल पांच राज्य हैं जो 2.1 प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर हैं। ये राज्य हैं- बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर
        • प्रतिस्थापन स्तर की क्षमता कुल प्रजनन दर है, जो प्रति महिला पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या, जिस पर एक आबादी बिना प्रवास के पूरी तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रतिस्थापित हो जाती है।
    • उच्चतम और निम्नतम प्रजनन दर:
      •  देश में बिहार और मेघालय में प्रजनन दर सबसे अधिक,है, जबकि सिक्किम व अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सबसे कम है।
    • क्षेत्रवार: 
      • ग्रामीण क्षेत्रों में कुल प्रजनन दर 1992-93 के प्रति महिला 3.7 बच्चों से घटकर 2019-21 में 2.1 बच्चे हो गई है।
      • जबकि शहरी क्षेत्रों की महिलाओं में कुल प्रजनन दर1992-93 के 2.7 बच्चों से 2019-21 में 1.6 बच्चे हो गई।
    • समुदायवार:
      • पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों में मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेज़ गिरावट देखी गई है।

Downward

  • कम उम्र में शादियाँ: 
    • समग्र:   
      • कम उम्र में विवाह के राष्ट्रीय औसत में गिरावट देखी गई है। 
      • NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 23.3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गई, जो NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% से कम है।
      • पुरुषों में कम उम्र में विवाह का प्रतिशत 17.7 (NFHS-5) और 20.3 (NFHS-4) है।
    • उच्चतम वृद्धि:
      • पंजाब, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा और असम में यह दर बढ़ी है।
      • त्रिपुरा में महिलाओं के विवाह में 33.1% (NFHS-4) से 40.1% और पुरुषों में 16.2% से 20.4% तक की सर्वाधिक वृद्धि देखी गई है। 
    • कम उम्र में विवाह की उच्चतम दर वाले राज्य: 
      • बिहार के साथ पश्चिम बंगाल कम उम्र में विवाह की उच्चतम दर वाले राज्यों में से एक है।
    • कम उम्र में विवाह की न्यूनतम दर वाले राज्य:  
      • जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गोवा, नगालैंड, केरल, पुद्दुचेरी और तमिलनाडु।
  • किशोर गर्भावस्था: 
    • किशोर गर्भधारण की दर 7.9% से घटकर 6.8% हो गई है। 
  • गर्भनिरोधक विधियों का उपयोग:
    • रोज़गार कारक: 53.4% महिलाएंँ जो कार्यरत नहीं है, की तुलना में कार्यरत 66.3% महिलाओं द्वारा आधुनिक गर्भनिरोधक पद्धति (Contraceptive Method) का उपयोग किया जाता है।
      • उन समुदायों और क्षेत्रों में गर्भनिरोधक का उपयोग अधिक बढ़ रहा है जिन समुदायों में अधिक सामाजिक आर्थिक प्रगति देखी गई है। 
    • आय कारक: परिवार नियोजन विधियों की अपूर्ण आवश्यकता सबसे कम वेल्थ  क्विन्टाइल (Wealth Quintile) में सर्वाधिक (11.4%) तथा सबसे ज़्यादा वेल्थ   क्विन्टाइल (8.6%) में सबसे कम देखी गई है। क्विन्टाइल डेटा की एक श्रेणी को पांँच बराबर भागों में विभाजित करता है अर्थात् जनसख्या का पांँचवांँ (20%) हिस्सा है
      • आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग भी सबसे कम वेल्थ क्विन्टाइल में 50.7% महिलाओं से उच्चतम क्विन्टाइल में 58.7% महिलाओं की आय के साथ बढ़ता है।
  • महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा:
    • समग्र: वर्ष 2015-16 में घरेलू हिंसा की 31.2% घटनाएँ हुईं जो मामूली गिरावट के साथ वर्ष 2019-21 में 29.3% हो गई हैं।
    • उच्चतम और निम्नतम (राज्य):
      • महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की सर्वाधिक घटनाएँ 48% कर्नाटक में देखी गईं, इसके बाद बिहार, तेलंगाना, मणिपुर और तमिलनाडु का स्थान है।
      • लक्षद्वीप में सबसे कम (2.1%) घरेलू हिंसा की घटनाएँ दर्ज हुई हैं।
  • संस्थागत जन्म: 
    • समग्र: भारत में इसकी दर 79% से बढ़कर 89% हो गई है।
    • क्षेत्रवार: ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 87% जन्म, संस्थानों में दिया जा रहा है और शहरी क्षेत्रों में यह 94% है।
  • टीकाकरण स्तर:  
    • NFHS-4 के 62% की तुलना में 12-23 महीने की उम्र के तीन-चौथाई (77%) से अधिक बच्चों का पूर्ण टीकाकरण किया गया था।
  • स्टंटिंग: 
    • पिछले चार वर्षों से देश में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग का स्तर 38 फीसदी से घटकर 36 फीसदी हो गया है। 
      • 2019-21 में शहरी क्षेत्रों (30%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37%) के बच्चों में स्टंटिंग अधिक देखी गई है।
  • मोटापा: 
    • NFHS-4 की तुलना में NFHS-5 में अधिकतर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में अधिक वज़न या मोटापे की व्यापकता बढ़ी है। 
      • राष्ट्रीय स्तर पर यह महिलाओं में 21 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत और पुरूषों में 19 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया।
  • सतत् विकास लक्ष्य: 
    • NFHS-5 सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सतत् विकास लक्ष्य संकेतकों में समग्र सुधार दर्शाता है।
    • यह दर्शाता है कि विवाहित महिलाएँ आमतौर पर तीन घरेलू निर्णयों में किस सीमा तक भाग लेती हैं और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी अधिक है।
      • घरेलू निर्णयों में खुद के लिये स्वास्थ्य देखभाल, प्रमुख घरेलू खरीदारी, अपने परिवार या रिश्तेदारों से मिलने जाने से संबंधित निर्णय शामिल है।
      • निर्णय लेने में भागीदारी लद्दाख में 80% से लेकर नगालैंड और मिज़ोरम में 99% तक बढ़ जाती है।
      • ग्रामीण (77%) और शहरी (81%) क्षेत्र में सीमांत अंतर पाया गया है।
      • पिछले चार वर्षों में महिलाओं के पास बैंक या बचत खाता होने का प्रचलन 53% से बढ़कर 79% हो गया है।

स्रोत: द हिंदू

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