सामाजिक न्याय
मध्याह्न भोजन योजना
- 14 Apr 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएमएस, पीएम पोषण शक्ति निर्माण या पीएम पोषण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013। मेन्स के लिये:बच्चों से संबंधित मुद्दे, मध्याह्न भोजन योजना और इससे संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक राज्य द्वारा स्कूली बच्चों के लिये मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme- MDMS) के तहत अंडे उपलब्ध कराने की योजना तैयार की गई है। MDMS गर्म पके हुए भोजन के माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों के पोषण स्तर को बढ़ाने के लिये विश्व की सबसे बड़ी पहलों में से एक है।
- हालांँकि अंडों को शामिल करना अक्सर विवादास्पद मुद्दा रहा है।
प्रमुख बिंदु
मध्याह्न भोजन योजना:
- मध्याह्न भोजन योजना के बारे में: यह दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा स्कूल फीडिंग प्रोग्राम है, जिसमें कक्षा 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में नामांकित छात्रों को शामिल किया गया है।
- इस योजना का मूल उद्देश्य स्कूलों में नामांकन को बढ़ाना है।
- नोडल मंत्रालय: शिक्षा मंत्रालय।
- पृष्ठभूमि: यह कार्यक्रम पहली बार वर्ष 1925 में मद्रास नगर निगम में वंचित बच्चों के लिये शुरू किया गया था।
- वर्ष 1995 में केंद्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के लिये प्रायोगिक आधार पर केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरुआत की।
- अकटूबर 2007 तक MDMS को कक्षा 8 तक के लिये बढ़ा दिया गया था।
- वर्तमान स्थिति: वर्ष 2021 में इस कार्यक्रम का नाम परिवर्तित कर पीएम पोषण शक्ति निर्माण या पीएम पोशन कर दिया गया।
- कवरेज का पैमाना: इस योजना में कक्षा 1 से 8 (6 से 14 आयु वर्ग) के 11.80 करोड़ बच्चे शामिल हैं।
- कानूनी अधिकार: यह केवल एक योजना नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के माध्यम से प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओं के सभी बच्चों का कानूनी अधिकार है।
- पीपल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज़ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2001) वाद में सर्वोच्च न्ययालय के फैसले से भी इसकी पुष्टि हुई।
- संघीय व्यवस्था: नियमों के तहत प्रति बच्चा 4.97 रुपए प्रतिदिन (प्राथमिक कक्षाएँ) और 7.45 रुपए (उच्च प्राथमिक) का आवंटन राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के साथ 90:10 के अनुपात में साझा किया जाता है, जबकि केंद्र विधायिका के बिना केंद्रशासित प्रदेशों में लागत का 100% केंद्र सरकार वहन करती है।
अंडे को लेकर क्या है मामला?
- भारत में जातिगत कठोरता, धार्मिक रूढ़िवाद एवं क्षेत्रीय मतभेदों के कारण आहार विकल्प एक गहन रूप से विवादित विषय है।
- नतीजतन राज्य सरकारों के वैज्ञानिक अध्ययनों सहित जिसमें बच्चों को अंडे देने के लाभ दिखाए गए हैं, कई राज्य स्कूल लंच मेनू में अंडे शामिल करने के अनिच्छुक रहे हैं।
संबद्ध मुद्दे और चुनौतियाँ
- भ्रष्ट आचरण: कई अवसरों पर नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड पॉइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं।
- जातिगत पूर्वाग्रह एवं भेदभाव: भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है।
- कुपोषण का खतरा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिया है तथा बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है।
- भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का घर है।
- वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2021: हाल ही में जारी वैश्विक पोषण रिपोर्ट, 2021 (Global Nutrition Report) के अनुसार, भारत ने एनीमिया (Anaemia) और चाइल्डहुड वेस्टिंग (Childhood Wasting) की स्थिति में सुधार के मामले में कोई प्रगति नहीं की है।
- 15-49 वर्ष आयु वर्ग की आधी से अधिक भारतीय महिलाएँ एनीमिया (Anaemia) से पीड़ित हैं।
- वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021: वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2021 में भारत को 116 देशों में से 101वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। वर्ष 2020 में भारत 94वें स्थान पर था।
आगे की राह:
- प्रारंभिक पहचान और देखभाल: महिलाओं और युवतियों के माँ बनने से पहले के वर्षों में मातृत्व क्षमता और शिक्षा या जागरूकता में सुधार के उपायों को लागू किया जाना चाहिये।
- स्वास्थ्य का समग्र दृष्टिकोण: बौनापन (Stunting) के खिलाफ लड़ाई में अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों ने लंबे समय से तर्क दिया जाता रहा है कि मातृत्व स्वास्थ्य और कल्याण बच्चों में बौनेपन को कम करने की कुंजी है।
- मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) के मेनू में सुधार: अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं, उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है।