भारतीय रिज़र्व बैंक वित्त वर्ष 2023 में अमेरिकी डॉलर का शुद्ध विक्रेता बना
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, रुपए का मूल्यह्रास मेन्स के लिये:रुपए के मूल्यह्रास पर RBI द्वारा डॉलर की बिक्री का प्रभाव, विदेशी मुद्रा भंडार की कमी में योगदान करने वाले कारक, भारत की अर्थव्यवस्था पर यूक्रेन-रूस संघर्ष का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान अपने विदेशी मुद्रा लेन-देन में महत्त्वपूर्ण बदलाव का अनुभव किया। लगातार तीन वर्षों तक अमेरिकी डॉलर का शुद्ध खरीदार होने के बाद अब RBI एक शुद्ध विक्रेता बन गया, जिसने स्पॉट मार्केट में 25.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर की बिक्री की।
- स्पॉट एक्सचेंज वह जगह है जहाँ वित्तीय साधनों, जैसे कि वस्तुओं, मुद्राओं और प्रतिभूतियों का तत्काल वितरण हेतु कारोबार किया जाता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक का वित्त वर्ष 2023 में अमेरिकी डॉलर का शुद्ध विक्रेता बनने का कारण:
- रुपए का स्थिरीकरण:
- RBI का कहना है कि विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप का उसका उद्देश्य रुपए के प्रचलन को स्थिर करना है।
- RBI द्वारा डॉलर की बिक्री या खरीद उसके लाभ को प्रभावित करती है और सरकार को लाभांश भुगतान में परिलक्षित होती है।
- विशेषज्ञों का कहना है कि RBI की डॉलर बिक्री के बिना रुपया और कमज़ोर हो सकता था एवं डॉलर के मुकाबले संभावित रूप से 84-85 रुपए के स्तर तक पहुँच सकता था।
- विदेशी मुद्रा भंडार में कमी और मूल्यह्रास:
- वित्त वर्ष 2023 के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार 606.475 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 578.449 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। यह मुख्य रूप से अमेरिकी डॉलर की सराहना एवं उच्च अमेरिकी बॉण्ड प्रतिफल के परिणामस्वरूप होने वाले मूल्यह्रास के कारण था।
- डॉलर की बिक्री:
- RBI ने यूक्रेन-रूस संघर्ष और अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की ब्याज दर में बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप रुपए के मूल्यह्रास का मुकाबला करने हेतु वित्तीय वर्ष 2023 में महत्त्वपूर्ण मात्रा में डॉलर बेचे।
- वित्त वर्ष 2023 के दौरान रुपए में लगभग 8% की गिरावट आई जो RBI के हस्तक्षेप के कारण अधिक कमज़ोर होने से बचा।
- 1 अप्रैल, 2022 को लगभग 76 रुपए के स्तर से गिरकर 31 मार्च, 2023 को लगभग 82 रुपए के स्तर पर आ गया था।
- प्रभाव:
- वित्तीय वर्ष 2023 में RBI द्वारा डॉलर की बिक्री के परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण लाभ हुआ। अतः सरकार को उच्च लाभांश भुगतान प्राप्त हुआ।
- RBI के केंद्रीय बोर्ड ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये सरकार को अधिशेष हस्तांतरण में 188% की वृद्धि को मंज़ूरी दी।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI):
- परिचय:
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार, यह 1 अप्रैल, 1935 को स्थापित भारतीय बैंकिंग प्रणाली का केंद्रीय बैंक और नियामक निकाय है।
- हालाँकि भारत की स्वतंत्रता के बाद 1 जनवरी, 1949 को इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था।
- RBI का स्वामित्व भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के पास है और यह गवर्नर की अध्यक्षता में 21 सदस्यीय केंद्रीय निदेशक मंडल द्वारा शासित है।
- RBI मौद्रिक नीति को नियंत्रित करता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार, यह 1 अप्रैल, 1935 को स्थापित भारतीय बैंकिंग प्रणाली का केंद्रीय बैंक और नियामक निकाय है।
- RBI के कार्य:
- मुद्रा जारी करना।
- विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन।
- मौद्रिक नीति का संचालन।
- बैंकों और वित्तीय बाज़ारों का विनियमन।
- सरकार और अन्य संस्थानों को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना।
- RBI की आय:
- घरेलू और विदेशी प्रतिभूतियों की धारिता पर ब्याज।
- इसकी सेवाओं से प्राप्त शुल्क और कमीशन।
- विदेशी मुद्रा लेन-देन से लाभ।
- सहायक और सहयोगियों से रिटर्न।
- RBI का व्यय:
- करेंसी नोटों की छपाई।
- जमा और उधार पर ब्याज का भुगतान।
- कर्मचारियों का वेतन और पेंशन।
- कार्यालयों और शाखाओं का परिचालन व्यय।
- आकस्मिकताओं और मूल्यह्रास के लिये प्रावधान।
रुपए के मूल्यह्रास को रोकने में अन्य कौन से उपाय मदद कर सकते हैं?
- देश में पूंजी प्रवाह बढ़ाना, जैसे कि विदेशी निवेश को बढ़ावा देना और अनिवासी भारतीय (NRI) जमा को प्रोत्साहित करना।
- रुपए के मूल्य में अत्यधिक अस्थिरता को कम करने के लिये विदेशी मुद्रा बाज़ारों की निगरानी और हस्तक्षेप करना।
- अत्यधिक मूल्यह्रास का मुकाबला करने और स्थिरता बनाए रखने के लिये चुनिंदा विदेशी मुद्रा भंडारों के उपयोग पर विचार करना।
- एक अनुकूल कारोबारी माहौल और नीतियों को बढ़ावा देना जो आर्थिक विकास एवं निर्यात का समर्थन करते हों।
- मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और स्थिरता बनाए रखने के लिये मौद्रिक नीति ढाँचे को मज़बूत करना।
- मुद्रा मूल्यह्रास के प्रबंधन के लिये व्यापक रणनीतियों को लागू करने हेतु अन्य प्रासंगिक सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय बढ़ाना।
- रुपए में व्यापार को प्रोत्साहित करना और घरेलू मुद्रा में भारत के व्यापार लेन-देन के मूल्य निर्धारण को बढ़ावा देना।
- रुपए के मूल्यह्रास पर नीतिगत उपायों के प्रभाव की लगातार निगरानी और आकलन तथा आवश्यकतानुसार समायोजन करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि आर.बी.आई. एक प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत में PBR और जैवविविधता प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR), जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC), जैवविविधता अधिनियम 2002, पर्यावरण के लिये जीवनशैली, जैवविविधता पर अभिसमय (CBD), नागोया प्रोटोकॉल मेन्स के लिये:भारत में जैवविविधता प्रबंधन की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR) के अद्यतन और सत्यापन हेतु राष्ट्रीय अभियान गोवा में शुरू किया गया था जो भारत की समृद्ध जैवविविधता के प्रलेखन एवं संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था।
- अभी तक देश में 2,67,608 PBR तैयार किये जा चुके हैं।
पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर:
- परिचय:
- पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर जैवविविधता के विभिन्न पहलुओं के एक व्यापक रिकॉर्ड के रूप में कार्य करता है, जिसमें आवासों का संरक्षण, भूमि संरक्षण, लोक किस्में और कृषि उपप्रजातियाँ, घरेलू पशुओं की नस्लें और सूक्ष्म जीव शामिल हैं।
- जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC), जैवविविधता अधिनियम, 2002 के तहत जैवविविधता के संरक्षण, टिकाऊ उपयोग और प्रलेखन को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई हैं।
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्थानीय निकाय BMC का गठन करते हैं, जिन्हें स्थानीय समुदायों के परामर्श से पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर तैयार करने का काम सौंपा जाता है।
- महत्त्व:
- यह जैवविविधता के संरक्षण में सहायता करता है, जो प्रकृति में संतुलन बनाए रखने की महत्त्वपूर्ण कुंजी है। यह स्थानीय समुदायों को आनुवंशिक संसाधनों और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान से प्राप्त लाभों को साझा करने में भी सक्षम बनाता है।
- यह जैवविविधता अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के कार्यान्वयन का समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य जैविक संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करना और उचित एवं समान साझा लाभ सुनिश्चित करना है।
- ऊर्घ्वगामी अभ्यास होने के नाते यह सांस्कृतिक और प्राकृतिक जैवविविधता के बीच के अंतराल को समझने का एक साधन भी है।
- यह समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से विकेंद्रीकृत विधि की परिकल्पना करता है।
- यह ग्लासगो में COP26 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पेश की गई “पर्यावरण के लिये जीवनशैली' ([Lifestyle for the Environment- LiFE)” की अवधारणा के अनुरूप है।
- यह अवधारणा विश्व स्तर पर व्यक्तियों और संस्थानों से पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण के लिये संसाधनों के विवेकपूर्ण और उचित उपयोग को बढ़ावा देने का आह्वान करती है।
भारत में जैवविविधता प्रबंधन की स्थिति:
- परिचय:
- पृथ्वी के केवल 2.4% भूमि क्षेत्र के साथ भारत दुनिया की दर्ज प्रजातियों का 7-8% हिस्सा है।
- विश्व के 36 जैवविविधता हॉटस्पॉट में से चार भारत में हिमालय, पश्चिमी घाट, इंडो-बर्मा क्षेत्र और सुंडालैंड में स्थित हैं।
- इनमें से दो इंडो-बर्मा क्षेत्र और सुंदरलैंड पूरे दक्षिण एशिया में वितरित हैं तथा भारत की औपचारिक सीमाओं के भीतर उपयुक्त रूप से समाहित नहीं हैं।
- भारत में जैवविविधता शासन:
- भारत का जैवविविधता अधिनियम (BDA), 2002, नागोया प्रोटोकॉल के साथ घनिष्ट तालमेल को दर्शाता है और इसका उद्देश्य जैवविविधता पर सम्मेलन (CBD) के प्रावधानों को लागू करना है।
- नागोया प्रोटोकॉल ने आनुवंशिक संसाधनों के वाणिज्यिक उपयोग और अनुसंधान को सुनिश्चित करने के लिये सरकार तथा ऐसे संसाधनों का संरक्षण करने वाले समुदायों के साथ इसके लाभों को साझा करने की मांग की।
- BDA को भारत की विशाल जैवविविधता के संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में सराहा गया, क्योंकि इसने अपने प्राकृतिक संसाधनों पर देशों के संप्रभु अधिकार को मान्यता दी।
- यह यथासंभव विकेंद्रीकृत तरीके से जैव-संसाधनों के प्रबंधन के मुद्दों को संबोधित करना चाहता है।
- इसमें तीन स्तरीय संरचनाओं की भी परिकल्पना की गई है:
- राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA)।
- राज्य स्तर पर राज्य जैवविविधता बोर्ड (SSB)।
- स्थानीय स्तर पर जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ(BMCs)।
- यह अधिनियम जैवविविधता से संबंधित ज्ञान पर बौद्धिक संपदा अधिकार का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति के संबंध में देश के रुख को भी मज़बूत करता है।
- भारत का जैवविविधता अधिनियम (BDA), 2002, नागोया प्रोटोकॉल के साथ घनिष्ट तालमेल को दर्शाता है और इसका उद्देश्य जैवविविधता पर सम्मेलन (CBD) के प्रावधानों को लागू करना है।
- जैवविविधता संरक्षण से संबंधित चुनौतियाँ:
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक विदेशी प्रजातियों में पौधे, जानवर और रोगजनक शामिल हैं जो एक पारिस्थितिकी तंत्र में गैर-देशीय के रूप में होते है जो पर्यावरणीय नुकसान का कारण बनते हैं या पारिस्थितिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
- CBD की रिपोर्ट के अनुसार, आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने सभी जानवरों के विलुप्त होने में लगभग 40% योगदान दिया है।
- ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन: यह पौधों और जानवरों की प्रजातियों हेतु खतरा उत्पन्न करता है क्योंकि कई जीव वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता के प्रति संवेदनशील होते हैं जो उनके विलुप्त होने का कारण बन सकता है।
- कीटनाशकों का उपयोग, उद्योगों से क्षोभमंडलीय ओज़ोन, सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड में वृद्धि भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण में योगदान देते हैं।
- समुद्री जैवविविधता संबंधित बाधाएँ: कुशल प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की कमी के कारण माइक्रोप्लास्टिक्स महासागरों में जमा हो रहे हैं और समुद्री जीवन को बाधित कर रहे हैं एवं जानवरों में यकृत, प्रजनन तथा जठरांत्र संबंधी क्षति का कारण बन रहे हैं जो प्रत्यक्ष रूप से समुद्री जैवविविधता को प्रभावित कर रहे हैं।
- आनुवंशिक परिवर्तन की चुनौतियाँ: आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे पारिस्थितिक तंत्र और जैवविविधता के विघटन हेतु उच्च जोखिम उत्पन्न करते हैं क्योंकि इंजीनियरिंग जीन से उत्पन्न बेहतर लक्षण किसी एक जीव के पक्ष में हो सकते हैं।
- इसलिये यह अंततः जीन प्रवाह की प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित कर सकता है एवं स्थानीय प्रजातियों की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक विदेशी प्रजातियों में पौधे, जानवर और रोगजनक शामिल हैं जो एक पारिस्थितिकी तंत्र में गैर-देशीय के रूप में होते है जो पर्यावरणीय नुकसान का कारण बनते हैं या पारिस्थितिक संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
जैवविविधता अभिसमय (CBD):
- 5 जून, 1992 को ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में जैवविविधता अभिसमय (CBD) पर संवाद किया गया, साथ ही राष्ट्रों द्वारा इस पर हस्ताक्षर किये गए।
- यह अभिसमय 29 दिसंबर, 1993 को लागू हुआ। भारत 18 फरवरी, 1994 को अभिसमय का एक पक्षकार बन गया। वर्तमान में इस अभिसमय के 196 पक्षकार हैं।
- CBD एक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है और इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
- जैवविविधता का संरक्षण।
- जैवविविधता के घटकों का सतत् उपयोग।
- आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत विभाजन।
- CBD का सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है।
आगे की राह
- समुदाय आधारित संरक्षण: संरक्षण के प्रयासों में स्थानीय लोगों सहित स्थानीय समुदायों को शामिल करने की आवश्यकता है। निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उन्हें शामिल करके समुदाय-प्रबंधित संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना एवं जैवविविधता संरक्षण से संबंधित उनके पारंपरिक ज्ञान तथा प्रथाओं को पहचान कर उनकी सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित संरक्षण: जैवविविधता परिवर्तनों की निगरानी और ट्रैक करने, उच्च प्राथमिकता वाले संरक्षण क्षेत्रों की पहचान करने तथा संरक्षण हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये रिमोट सेंसिंग, ड्रोन तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उभरती हुई तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- संपूर्ण जीवमंडल/बायोस्फीयर की रक्षा: संरक्षण केवल प्रजातियों के स्तर तक सीमित नहीं होना चाहिये बल्कि स्थानीय समुदायों सहित पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होना चाहिये।
- जैवविविधता की रक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये भारत को अधिक बायोस्फीयर रिज़र्व्स की आवश्यकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. दो महत्त्वपूर्ण नदियाँ- जिनमें से एक का स्रोत झारखंड में है (और जो ओडिशा में दूसरे नाम से जानी जाती है) तथा दूसरी जिसका स्रोत ओडिशा में है, समुद्र में प्रवाह से पूर्व एक ऐसे स्थान पर संगम बनती है जो बंगाल की खाड़ी से कुछ ही दूर है। यह वन्यजीवन तथा जैवविविधता का प्रमुख स्थल है और सुरक्षित क्षेत्र है। निम्नलिखित में वह स्थल कौन-सा है? (2011) (a) भितरकनिका उत्तर: (a) प्रश्न. भारत की जैवविविधता के संदर्भ में सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बार्बेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और ह्वाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट क्या है? (a) पक्षी उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणीजात के संरक्षण में जैवविविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जनगणना
प्रिलिम्स के लिये:जनगणना, कोविड-19, भारतीय जनगणना अधिनियम 1948, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, प्रवासन, PDS मेन्स के लिये:जनगणना, इसका महत्त्व और नीति निर्माण में देरी के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
भारत में वर्ष 2021 की जनगणना को कोविड-19 महामारी के कारण पिछले 150 वर्षों में पहली बार स्थगित करना पड़ा। महामारी समाप्त होने और सामान्य स्थिति में लौटने के बावजूद जनगणना अभी भी लंबित है।
- शुरुआत में इसे पूरी तरह से डिजिटल अभ्यास के रूप में प्रस्तावित किया गया था, जिसमें गणनाकारों द्वारा सभी सूचनाओं को एक मोबाइल एप में फीड किया जाना था। हालाँकि 'व्यावहारिक कठिनाइयों' के कारण बाद में इसे 'मिक्स मोड' में संचालित करने का निर्णय लिया गया या मोबाइल एप या पारंपरिक पेपर फॉर्म का उपयोग किया गया।
नोट: हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा जारी स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत वर्ष 2023 के मध्य तक चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।
जनगणना:
- परिभाषा:
- जनगणना एक देश या किसी देश के एक सुपरिभाषित हिस्से में एक विशिष्ट समय पर सभी व्यक्तियों के जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक डेटा से संबंधित संग्रह, संकलन, विश्लेषण और प्रसार की प्रक्रिया है।
- जनगणना, पिछले एक दशक में देश की प्रगति की समीक्षा, सरकार की चल रही योजनाओं की निगरानी और भविष्य की योजना बनाने का आधार है।
- यह किसी समुदाय की तात्कालिक विवरण प्रदान करता है, जो किसी विशेष समय पर मान्य होता है।
- चरण: भारत में जनगणना का संचालन दो चरणों में किया जाता है:
- मकानों की गणना: इसके अंतर्गत सभी स्थायी या अस्थायी भवनों का विवरण, उनके प्रकार, सुविधाओं एवं संपत्तियों की गणना की जाती है।
- जनसंख्या गणना: इसमें देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति, भारतीय नागरिक या अन्य के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी शामिल की जाती है।
- साथ ही उन सभी घरों की सूची तैयार की जाती है जिनका सर्वेक्षण किया जाता है।
- आवृत्ति:
- पहली समकालिक जनगणना वर्ष 1881 में भारत के जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन द्वारा कराई गई थी। तब से प्रत्येक दस वर्ष में एक बार निर्बाध रूप से जनगणना की जाती रही है।
- भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948 जनगणना हेतु कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, हालाँकि इसमें समय या आवधिकता का उल्लेख नहीं है।
- इसलिये भारत में जनगणना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है लेकिन इसके लिये कोई संवैधानिक या कानूनी आवश्यकता नहीं है और दशकीय रूप से आयोजित करने की आवश्यकता है।
- कई देशों (उदाहरण के लिये अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम) में 10 वर्ष की आवृत्ति का पालन किया जाता है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान जैसे कुछ देश इसे प्रत्येक पाँच वर्ष में आयोजित करते हैं।
- नोडल मंत्रालय:
- दशकीय जनगणना गृह मंत्रालय के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा आयोजित की जाती है।
- वर्ष 1951 तक प्रत्येक जनगणना हेतु तदर्थ आधार पर जनगणना संगठन की स्थापना की गई थी।
- दशकीय जनगणना गृह मंत्रालय के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा आयोजित की जाती है।
जनगणना का महत्त्व:
- प्राथमिक और प्रामाणिक डेटा:
- यह प्राथमिक और प्रामाणिक डेटा उत्पन्न करता है जो विभिन्न सांख्यिकीय विश्लेषणों का आधार बनता है। प्रशासन, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक कल्याण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में नियोजन, निर्णय लेने तथा विकास की पहल हेतु यह डेटा आवश्यक है।
- यह कानूनी आवश्यकता नहीं है बल्कि जनगणना की उपयोगिता ने इसे स्थायी व नियमित अभ्यास बना दिया है। इसका विश्वसनीय और अद्यतित डेटा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की प्रगति के विभिन्न पहलुओं में उपयोग किये जाने वाले संकेतकों की यथार्थता को प्रभावित करता है।
- परिसीमन:
- जनगणना के आँकड़ों का उपयोग निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन और सरकारी निकायों में प्रतिनिधित्व के आवंटन के लिये किया जाता है।
- यह संसद, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय निकायों और सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SCs) तथा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- STs) के लिये आरक्षित सीटों की संख्या निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पंचायतों और नगर निकायों के मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण जनसंख्या में उनके अनुपात पर आधारित है।
- यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है तथा राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में समावेशिता को बढ़ावा देता है।
- व्यवसायों के लिये बेहतर पहुँच:
- जनगणना के आँकड़े व्यावसायिक घरानों और उद्योगों के लिये उन क्षेत्रों में व्यवसाय की पहुँच को मज़बूत करने तथा योजना बनाने के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं जहाँ अब तक उनकी पहुँच नहीं थी।
- अनुदान देना:
- वित्त आयोग जनगणना के आँकड़ों से उपलब्ध जनसंख्या के आँकड़ों के आधार पर राज्यों को अनुदान प्रदान करता है।
विलंबित जनगणना के परिणाम
- नीति निर्धारण में चुनौतियाँ:
- निश्चित कालावधि में होने वाली जनगणना के समक्ष आने वाली बाधाओं के परिणामस्वरूप ऐसा डेटा उत्पन्न हो सकता है जिसकी तुलना पूर्ववर्ती जनगणना के आँकड़ों से नहीं की जा सकती, इससे विभिन्न रुझानों का विश्लेषण करने और सूचित नीतिगत निर्णय लेने में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- विश्वसनीय डेटा का अभाव (लगातार बदलते मापदंडों के संदर्भ में 12 वर्ष पुराना डेटा विश्वसनीय नहीं होता) भारत के प्रत्येक संकेतक में पूर्ण रूप से परिवर्तन लाने और सभी प्रकार की विकासात्मक पहलों की प्रभावकारिता एवं दक्षता को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
- राजनीतिक भ्रांति:
- जनगणना में विलंबता का प्रभाव विभिन्न शासी निकायों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों हेतु आरक्षण पर पड़ेगा।
- वर्ष 2011 की जनगणना के आंँकड़ों का उपयोग जारी रहने के परिणामस्वरूप सीटों का आरक्षण त्रुटिपूर्ण हो सकता है।
- इससे विशेष रूप से उन कस्बों और पंचायतों में समस्या पैदा हो सकती है जहाँ पिछले दशक में जनसंख्या संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है।
- जनगणना में विलंबता का प्रभाव विभिन्न शासी निकायों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों हेतु आरक्षण पर पड़ेगा।
- कल्याणकारी उपायों को लेकरअविश्वसनीय अनुमान:
- वस्तुतः विलंबता की स्थिति उन सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावित करेगी, जो नीति और कल्याणकारी उपायों को निर्धारित करने के लिये जनगणना के आँकड़ों पर निर्भर रहते हैं, साथ ही उपभोग, स्वास्थ्य एवं रोज़गार पर किये गए अन्य सर्वेक्षणों से अविश्वसनीय अनुमान प्राप्त होंगे।
- सरकार के खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) से कम-से-कम 100 मिलियन लोगों के बाहर होने की संभावना है क्योंकि लाभार्थियों की संख्या की गणना के लिये जनसंख्या के आँकड़े वर्ष 2011 की जनगणना से संबद्ध हैं।
- वस्तुतः विलंबता की स्थिति उन सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावित करेगी, जो नीति और कल्याणकारी उपायों को निर्धारित करने के लिये जनगणना के आँकड़ों पर निर्भर रहते हैं, साथ ही उपभोग, स्वास्थ्य एवं रोज़गार पर किये गए अन्य सर्वेक्षणों से अविश्वसनीय अनुमान प्राप्त होंगे।
- मकानों की गणना पर प्रभाव:
- मकानों की गणना पूर्ण होने में लगभग एक वर्ष का समय लगता है, क्योंकि इसके लिये गणनाकारों को आवासों का पता लगाने और प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने की आवश्यकता होती है। भारत में मकानों की गणना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश में एक मज़बूत पता प्रणाली का अभाव है।
- जनगणना में विलंब का अर्थ है कि उक्त सूची पुरानी हो जाती है क्योंकि समय के साथ घरों, पते और जनसांख्यिकी में परिवर्तन होता रहता है।
- इसके परिणामस्वरूप अपूर्ण या त्रुटिपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है, जो बाद की जनसंख्या गणना और आँकड़ों के संग्रह के लिये कम विश्वसनीय आधार बन सकता है।
- प्रवासन के आँकड़ों का अभाव:
- वर्ष 2011 की जनगणना के अप्रचलित आंँकड़े प्रवासन की संख्या, कारण और प्रतिरूप जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में असफल रहे।
- कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों द्वारा शहरों को छोड़कर अपने गाँव वापस जाने के दृश्य ने उनकी चुनौतियों को प्रदर्शित किया।
- फँसे हुए प्रवासियों को खाद्य राहत और परिवहन सहायता तथा अन्य आवश्यकताओं को लेकर सरकार के पास जानकारी का अभाव था।
- आगामी जनगणना से बड़े शहरों के अतिरिक्त छोटे शहरों में बढ़ता प्रवासन मौजूदा संसाधनों पर अधिक दबाव को इंगित करता है, जो प्रवासियों के लिये विशिष्ट स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं की ज़रूरतों पर प्रकाश डालती है।
- यह डेटा प्रवासियों और उनके निवास स्थानों के लिये आवश्यक समर्थन और सेवाओं की पहचान करने में मदद कर सकता है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अप्रचलित आंँकड़े प्रवासन की संख्या, कारण और प्रतिरूप जैसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में असफल रहे।
आगे की राह
- सरकार को जनगणना को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- डेटा संग्रह प्रक्रिया को कारगर बनाने हेतु प्रौद्योगिकी और नवीन तरीकों का लाभ उठाने के प्रयास किये जाने चाहिये।
- सरकार को जनगणना का सुचारु और कुशल संचालन सुनिश्चित कर संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करना चाहिये।
- सटीक डेटा, सूचित नीतिगत निर्णयों, प्रभावी शासन और विभिन्न क्षेत्रों में समावेशी विकास के लिये जनगणना का समय पर आयोजन होना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट (LIBOR)
प्रिलिम्स के लिये:लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट, मुंबई इंटरबैंक फॉरवर्ड आउटराइट रेट (MIFOR), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), ब्याज दर, रेपो रेट, ARR, SOFR, डेरिवेटिव मेन्स के लिये:लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट से वैकल्पिक संदर्भ दर में परिवर्तन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने बैंकों और अन्य विनियमित संस्थाओं को लंदन इंटरबैंक ऑफर्ड रेट (LIBOR) के बजाय अन्य वैकल्पिक संदर्भ दरों (ARR) में संक्रमण की सलाह दी है।
- LIBOR से दूरी बनाने का उद्देश्य एक बेंचमार्क पर निर्भरता को कम करना है जो हेर-फेर के लिये अतिसंवेदनशील हो और वित्तीय प्रणाली की स्थिरता एवं अखंडता को सुनिश्चित करता हो।
LIBOR:
- परिचय:
- LIBOR व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली वैश्विक बेंचमार्क ब्याज दर है। यह औसत ब्याज दर का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर बैंकों का अनुमान है कि वे विशिष्ट समय अवधि के लिये लंदन इंटरबैंक मार्केट में एक-दूसरे से उधार ले सकते हैं।
- LIBOR महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग विभिन्न वित्तीय साधनों जैसे- वायदा, विकल्प, विनिमय और अन्य डेरिवेटिव में व्यापारों के निपटान के लिये एक संदर्भ दर के रूप में किया जाता है।
- गणना:
- LIBOR की गणना करने के लिये बैंकों का एक समूह अपनी अनुमानित उधार दरों को प्रत्येक व्यावसायिक दिन में एक समाचार और वित्तीय डेटा कंपनी, थॉमसन रॉयटर्स में प्रस्तुत करता है।
- अधिकतम दरों को हटा दिया जाता है और LIBOR दर निर्धारित करने के लिये शेष दरों का औसत निकाला जाता है जिसका उद्देश्य औसत उधार दर का प्रतिनिधित्व करना है।
- पूर्व में LIBOR की गणना पाँच प्रमुख मुद्राओं और सात अलग-अलग समय अवधियों के लिये की जाती थी जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक दिन 35 दरें प्रकाशित होती थीं।
- हालाँकि यूके फाइनेंशियल कंडक्ट अथॉरिटी ने इनमें से अधिकांश दरों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया और 31 दिसंबर, 2021 के बाद केवल अमेरिकी डॉलर LIBOR दरों को प्रकाशित करने की अनुमति दी गई।
- महत्त्व:
- कई उधारदाताओं, उधारकर्त्ताओं, निवेशकों और वित्तीय संस्थानों ने इन लेन-देन के लिये ब्याज दरों और मूल्य निर्धारण के लिये LIBOR पर विश्वास प्रकट किया है।
- LIBOR का न केवल वित्तीय बाज़ारों में उपयोग किया जाता है बल्कि यह गिरवी (Mortgages), क्रेडिट कार्ड और छात्र ऋण जैसे उपभोक्ता ऋण उत्पादों के लिये बेंचमार्क दर के रूप में भी कार्य करता है।
- यह व्यक्तियों और व्यवसायों द्वारा इन ऋणों पर भुगतान की जाने वाली ब्याज दरों को निर्धारित करने में सहायता करता है।
LIBOR से दूरी क्यों बना रहा है RBI:
- विश्वसनीयता और प्रामाणिकता से संबंधित चिंताएँ:
- विश्वसनीयता और प्रामाणिकता पर अपनी चिंताओं के कारण RBI, LIBOR से दूरी बना रहा है।
- LIBOR तंत्र में मुख्य दोष, बैंकों को उनके वाणिज्यिक हितों पर विचार किये बिना ही उधार दरों की स्पष्ट और ठीक से रिपोर्ट करने के लिये निर्भर रहता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़-तोड़ और कदाचार के अवसर प्रदर्शित होते है।
- वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के दौरान कुछ बैंकों ने संकट के बीच अधिक अनुकूल छवि प्रस्तुत करने के लिये कृत्रिम रूप से अपने LIBOR प्रविष्टियों को कम कर दिया। LIBOR के सदस्य अन्य बाज़ार उपायों की तुलना में न्यूनतम उधारी लागत की रिपोर्ट कर रहे थे।
- प्रामाणिकता और निष्पक्षता का मुद्दा:
- उच्च लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से बैंकों द्वारा अपनी व्यापारिक इकाइयों की व्युत्पन्न स्थिति के आधार पर अपने LIBOR प्रविष्टियों में परिवर्तन करने की प्रवृत्ति देखी गई है।
- यह बेंचमार्क की अखंडता और निष्पक्षता के बारे में चिंता पैदा करता है।
LIBOR का विकल्प:
- वर्ष 2017 में यूएस फेडरल रिज़र्व ने LIBOR के विकल्प के रूप में सुरक्षित ओवरनाइट फाइनेंसिंग रेट (SOFR) पेश किया।
- भारत में मुंबई इंटरबैंक फॉरवर्ड आउटराइट रेट (MIFOR) की जगह मोडिफाई मुंबई इंटरबैंक फॉरवर्ड आउटराइट रेट (MMIFOR) के साथ SOFR का उपयोग करने के लिये नए लेन-देन की सिफारिश की गई थी।
- SOFR रेपो दरों पर आधारित है। ये दरें रातों-रात नकद उधार लेने की लागत को दर्शाती हैं और यू.एस. ट्रेज़री सिक्योरिटीज़ द्वारा संपार्श्विक हैं।
- LIBOR के विपरीत जो विशेषज्ञ निर्णय पर निर्भर था, SOFR वास्तविक लेन-देन से प्राप्त होता है, जिससे यह बाज़ार में हेर-फेर के लिये कम संवेदनशील होता है।
- दूसरी ओर, MMIFOR समायोजित SOFR दरों को शामिल करता है, जो अलग-अलग समय अवधि के लिये पूर्वव्यापी रूप से संयोजित होते हैं। ये दरें अन्य घटकों के साथ ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज़ से प्राप्त की जाती हैं।
- SOFR और MMIFOR की शुरुआत का उद्देश्य वित्तीय अनुबंधों के लिये अधिक विश्वसनीय और लेन-देन-आधारित बेंचमार्क प्रदान करना है, जिससे LIBOR से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सके।
LIBOR से स्थानांतरण में क्या चुनौतियाँ हैं?
- LIBOR से जुड़े कई उत्पाद हैं जिन्हें आधार के रूप में वैकल्पिक संदर्भ दर (ARR) के साथ फिर से डिज़ाइन किया जाना था।
- एसोसिएशन द्वारा गठित दो कार्यकारी समूहों ने RBI से मार्गदर्शन प्राप्त कर इसे विकसित करने में मदद की।
- LIBOR से ARR में संक्रमण प्रौद्योगिकी और कानूनी पहलुओं की चुनौतियों का सामना करता है। इन चुनौतियों में मौजूदा अनुबंधों से निपटना, प्रतिपक्षों, इंटरबैंक संस्थाओं और उधारकर्त्ताओं के साथ आवश्यक संशोधन करना शामिल है।
- बैंकों को आवश्यक प्रणालीगत और तकनीकी परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इन परिवर्तनों में LIBOR से जुड़े उत्पादों की पहचान करना एवं समग्र जोखिम का निर्धारण करना शामिल है। बैंकों को ग्राहकों को संक्रमण के बारे में सूचित करना होगा, उन परिदृश्यों को उजागर करने हेतु अनुबंधों में फॉलबैक क्लॉज़ शामिल करना होगा जहाँ संदर्भ दर अब उपलब्ध नहीं है, उनके लाभ व हानि विवरणों पर प्रभाव का आकलन करना, साथ ही उनके प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्मों में आवश्यक समायोजन की आवश्यकता है।
आगे की राह
- बैंकों को आधार के रूप में नए ARR के साथ LIBOR/लिबोर से जुड़े उत्पादों को फिर से डिज़ाइन करने के अपने प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है। एसोसिएशन द्वारा गठित दो कार्यकारी समूह RBI के मार्गदर्शन में इस परिवर्तन हेतु आवश्यक रूपरेखा विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- प्रौद्योगिकी और कानूनी पहलुओं की चुनौतियों से निपटने हेतु बैंकों को मौजूदा अनुबंधों को संभालने और प्रतिपक्षों, इंटरबैंक संस्थाओं एवं उधारकर्त्ताओं के साथ उचित संशोधन करने पर ध्यान देना चाहिये।
- सुचारु परिवर्तन की सुविधा सुनिश्चित करने हेतु बैंकों को अपने लाभ एवं हानि विवरणों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना चाहिये, साथ ही अपने आईटी प्लेटफॉर्म में आवश्यक सुधार करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारत में जनजातीय स्वास्थ्य की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय समुदाय, अनुच्छेद 342, जनजातीय स्वास्थ्य मेन्स के लिये:आदिवासी समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ, बुनियादी ढाँचे का प्रभाव और स्वास्थ्य सेवा की पहुँच पर कार्यबल की कमी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत में जनजातीय समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। भारत की उल्लेखनीय उपलब्धियों, जैसे कि विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरना एवं वैश्विक टीकाकरण अभियान में इसके योगदान के बावजूद जनजातीय समुदाय स्वास्थ्य देखभाल में गंभीर असमानताकी स्थिति का अनुभव कर रहे हैं।
- जैसा कि भारत India@75 पर अपनी उपलब्धियों का जश्न मना रहा है, जनजातीय समुदायों हेतु तत्काल समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है।
भारत में जनजातीय समुदायों की स्थिति:
- जनसांख्यिकी स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदाय देश की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो लगभग 8.9% है।
- कुल अनुसूचित जनजाति आबादी में से लगभग 2.6 मिलियन (2.5%) "विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों" (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTG) से संबंधित हैं, जिन्हें "आदिम जनजाति" के रूप में जाना जाता है, जो सभी अनुसूचित जनजाति समुदायों में सबसे अधिक वंचित हैं।
- वे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पूर्वोत्तर राज्यों एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उच्च संकेंद्रण के साथ विभिन्न राज्यों में फैले हुए हैं।
- भारत में जनजातीय समुदाय देश की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो लगभग 8.9% है।
- सांस्कृतिक स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदायों की अपनी समृद्ध और विविध संस्कृति, भाषा और परंपराएँ हैं।
- उनका प्रकृति के साथ सहजीवी संबंध है और वे अपनी आजीविका हेतु वनों एवं पहाड़ियों पर निर्भर हैं।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, धर्म और शासन के संबंध में उनकी अपनी मान्यताएँ, प्रथाएँ एवं प्राथमिकताएँ हैं।
- संबंधित संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान:
- भारत में कुछ जनजातीय समुदायों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- वे अपने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और राजनीतिक विकास के लिये विशेष प्रावधानों एवं सुरक्षा उपायों के हकदार हैं।
- उनके हितों को विभिन्न कानूनों एवं नीतियों जैसे- 5वें और छठे अनुसूचित क्षेत्रों, वन अधिकार अधिनियम 2006 तथा पेसा अधिनियम 1996 द्वारा सुरक्षित किया जाता है।
- आरक्षित सीटों के माध्यम से संसद और राज्य विधानसभाओं में भी उनका प्रतिनिधित्व है।
- द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति हैं।
- भारत में कुछ जनजातीय समुदायों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- विकासात्मक स्थिति:
- भारत में जनजातीय समुदाय गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य, रोज़गार, आधारभूत ढाँचे और मानवाधिकारों के मामले में कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
- वे आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और लैंगिक समानता जैसे मानव विकास के विभिन्न संकेतकों पर राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं।
- उन्हें गैर-जनजातीय लोगों तथा संस्थानों से भेदभाव, शोषण, विस्थापन और हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। उनके पास अपने सशक्तीकरण तथा भागीदारी के लिये संसाधनों एवं अवसरों तक सीमित पहुँच है।
- भारत में जनजातीय समुदाय गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, स्वास्थ्य, रोज़गार, आधारभूत ढाँचे और मानवाधिकारों के मामले में कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
प्रमुख जनजातीय स्वास्थ्य मुद्दे:
- कुपोषण:
- जनजातीय लोगों को स्वस्थ रहने के लिये पर्याप्त या उपयुक्त भोजन नहीं मिलता है। वे भुखमरी, स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कद का कम होना), वेस्टिंग (कद के अनुपात में वज़न का कम होना), एनीमिया तथा विटामिन एवं खनिजों की कमी से पीड़ित हैं।
- संचारी रोग:
- गैर - संचारी रोग:
- जनजातीय लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियाँ होने का भी खतरा है।
- एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 13% जनजातीय वयस्क मधुमेह से और 25% उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं।
- जनजातीय लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मानसिक विकार जैसी पुरानी बीमारियाँ होने का भी खतरा है।
- व्यसन:
- उपर्युक्त रोग तंबाकू के उपयोग, शराब के सेवन तथा मादक द्रव्यों के सेवन जैसे कारकों के कारण होते हैं।
- 15-54 वर्ष आयु वर्ग के जनजातीय पुरुषों में 72% से अधिक तंबाकू तथा 50% से अधिक शराब का सेवन करते हैं, जबकि गैर-जनजातीय पुरुषों में क्रमशः 56% तथा 30% तंबाकू और शराब का सेवन करते हैं।
जनजातीय लोगों के स्वास्थ्य के लिये चुनौतियाँ:
- आधारभूत संरचना का अभाव:
- जनजातीय क्षेत्रों में अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ और आधारभूत संरचना का अभाव।
- स्वच्छ जल और स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच।
- चिकित्सा पेशेवरों की कमी:
- जनजातीय क्षेत्रों में डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य पेशेवरों की सीमित उपस्थिति।
- दूरस्थ क्षेत्रों में कुशल स्वास्थ्य कर्मियों को आकर्षित करने और उनको बनाए रखने में कठिनाई।
- शहरी क्षेत्रों में संकेंद्रण के साथ स्वास्थ्य पेशेवरों के वितरण में असंतुलन।
- संयोजकता और भौगोलिक अवरोध:
- दूरस्थ स्थान और दुर्गम क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंँच में अवरोध हैं।
- उचित सड़कों, परिवहन सुविधाओं और संचार नेटवर्क का अभाव।
- आपातस्थिति के दौरान जनजातीय समुदायों तक पहुँचने और समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करने में चुनौतियाँ।
- सामर्थ्य और वित्तीय अवरोध:
- जनजातीय समुदायों के पास सीमित वित्तीय संसाधन और निम्न-आय स्तर।
- चिकित्सीय उपचार, औषधि और निदान सहित स्वास्थ्य देखभाल व्यय को वहन करने में असमर्थता।
- उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं और बीमा विकल्पों के बारे में जागरूकता का अभाव।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भाषा अवरोध:
- अद्वितीय सांस्कृतिक प्रथाएंँ और मान्यताएंँ जो स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और आदिवासी समुदायों के मध्य भाषा की बाधाएँ, गलत संचार तथा अपर्याप्त देखभाल प्राथमिक रूप में विद्यमान हैं।
- सांस्कृतिक रूप से जनजातीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का सम्मान करने वाली संवेदनशील स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव।
- आवश्यक सेवाओं तक सीमित पहुँच:
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, टीकाकरण और निवारक देखभाल जैसी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्त उपलब्धता।
- विशिष्ट देखभाल, नैदानिक सुविधाओं और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच।
- जनजातीय समुदायों के बीच स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, निवारक उपायों और स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों के बारे में सीमित जागरूकता का होना।
- अपर्याप्त वित्तपोषण तथा संसाधनों का आवंटन:
- जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के लिये सीमित धनराशि का आवंटन।
- स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांँचे, उपकरण और प्रौद्योगिकी में अपर्याप्त निवेश।
- जनजातीय स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने और लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करने के लिये समर्पित धन की कमी का होना।
जनजातीय स्वास्थ्य पर भारत सरकार की रिपोर्ट:
- वर्ष 2018 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से गठित एक विशेषज्ञ समिति ने भारत में जनजातीय स्वास्थ्य पर पहली व्यापक रिपोर्ट जारी की।
- रिपोर्ट की सिफारिशें:
- जनजातीय क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) के तहत यूनिवर्सल हेल्थ इंश्योरेंस को लागू करना।
- ग्राम सभा के समर्थन से आदिवासी समुदायों में प्राथमिक देखभाल हेतु आरोग्य मित्र, प्रशिक्षित स्थानीय आदिवासी युवाओं और आशा कार्यकर्ताओं का उपयोग करना।
- माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के लिये सरकारी चिकित्सा बीमा योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना।
- अनुसूचित क्षेत्रों से बाहर रहने वाले जनजातीय लोगों के लिये जनजाति स्वास्थ्य कार्ड की शुरुआत करना ताकि किसी भी स्वास्थ्य सेवा संस्थान में लाभ प्राप्त करना आसान हो सके।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जनजातीय बहुल ज़िलों में जनजातीय मलेरिया कार्य योजना लागू करना।
- शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करने के लिये गृह-आधारित नवजात शिशु और बाल देखभाल (HBNCC) कार्यक्रमों को सुदृढ़ करना।
- कुपोषण को दूर करने के लिये खाद्य सुरक्षा को बढ़ाना और एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) को सुदृढ़ करना।
- प्रत्येक तीन वर्ष में जनजातीय स्वास्थ्य रिपोर्ट प्रकाशित करना और जनजातीय स्वास्थ्य की निगरानी हेतु एक जनजातीय स्वास्थ्य सूचकांक (THI) स्थापित करना।
- केंद्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर जनजातीय स्वास्थ्य निदेशालय तथा जनजातीय स्वास्थ्य अनुसंधान सेल के साथ एक शीर्ष निकाय के रूप में राष्ट्रीय जनजातीय स्वास्थ्य परिषद की स्थापना करना।
आगे की राह
- आदिवासी आबादी के बीच स्वस्थ रहने की इच्छा और स्वास्थ्य देखभाल वितरण में असमानता को संबोधित करना चाहिये।
- आदिवासी समुदायों को पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को पहचानना और स्वीकार करना चाहिये।
- स्वास्थ्य साक्षरता कार्यक्रमों के माध्यम से जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना ताकि वे अपने स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।
- जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य पेशेवरों को आकर्षित करने के लिये लक्षित भर्ती और प्रतिधारण रणनीतियों को लागू करना। कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये सड़क नेटवर्क, परिवहन सुविधाओं और संचार नेटवर्क के विकास में निवेश करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रत्येक वर्ष कतिपय विशिष्ट समुदाय/जनजाति, पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण, मास भर चलने वाले अभियान/त्योहार के दौरान फलदार वृक्षों की पौध का रोपण करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-से ऐसे समुदाय/जनजातियाँ हैं? (2014) (a) भूटिया और लेप्चा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के उपबंध निम्नलिखित में से किसलिये किये गए हैं। (2015) (a) अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के लिये उत्तर: (a) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के अधीन जनजातीय भूमि का, खनन के लिये निजी पक्षकारों को अंतरण को अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022) (a) इससे आदिवासी लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी। उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सबके लिये स्वास्थ्य: WHO
प्रिलिम्स के लिये:सभी के लिये स्वास्थ्य, WHO, जलवायु परिवर्तन, COVID-19, विश्व स्वास्थ्य सभा, पेरिस समझौता, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज मेन्स के लिये:हेल्थ फॉर ऑल: ट्रांसफॉर्मिंग इकोनॉमीज़ टू डिलीवर व्हाट मैटर्स |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी 76वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) में एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक- "हेल्थ फॉर ऑल: ट्रांसफॉर्मिंग इकोनॉमीज़ टू डिलीवर व्हाट मैटर्स", जिसमें स्वास्थ्य को स्थायी विकास से जोड़ने के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।
- 76वाँ WHA जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित किया गया था और इसकी थीम- " WHO एट 75: सेविंग लाइव्स, ड्राइविंग हेल्थ फॉर ऑल" थी।
- रिपोर्ट, WHO काउंसिल ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ हेल्थ फॉर ऑल (WCEH) द्वारा जारी की गई थी, जिसे नवंबर 2020 में COVID-19 महामारी के जवाब में तैयार किया गया था।
नोट: WCEH फॉर ऑल की स्थापना इस नवीन आर्थिक सोच को स्थापित करने के लिये की गई थी कि अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य और कल्याण मूल्यांकन, उत्पादन और वितरण किस प्रकार किया जाता है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- कोविड-19 एक वैश्विक विफलता:
- कोविड-19 महामारी मानवता की भलाई को प्राथमिकता के साथ वैश्विक विफलता के कारण रोकी जा सकने वाली आपदा थी। स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद, महामारी से बचाव के लिये सक्रिय उपायों के महत्त्व की उपेक्षा की गई जिससे विश्व भर में गंभीर संकट उत्पन्न हो गया।
- केवल वर्ष 2020 में ही लगभग 100 मिलियन लोगों को गरीबी में धकेल दिया गया।
- यहाँ तक कि कोविड-19 के विरुद्ध तेज़ी से एक प्रभावी टीका विकसित करने की उल्लेखनीय वैज्ञानिक उपलब्धि भी लोगों को प्राथमिक राहत देने में असफल रही।
- कोविड-19 महामारी ने व्यापक असमानताओं को उजागर किया। सभी के लिये स्वास्थ्य अर्थव्यवस्था को पुनः आकार देने की आवश्यकता पर बल दिया।
- कोविड-19 महामारी मानवता की भलाई को प्राथमिकता के साथ वैश्विक विफलता के कारण रोकी जा सकने वाली आपदा थी। स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद, महामारी से बचाव के लिये सक्रिय उपायों के महत्त्व की उपेक्षा की गई जिससे विश्व भर में गंभीर संकट उत्पन्न हो गया।
- स्वास्थ्य कर्मियों की कमी:
- विश्व स्तर पर और विशेष रूप से कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की अत्याधिक कमी बनी हुई है।
- स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, जिनमें से 70% महिलाएँ हैं, उचित सुरक्षात्मक उपकरण और सहायता की कमी के कारण कोविड-19 के उपचार में अग्रिम पंक्ति पर अनुचित रूप से पीड़ित हैं।
- जबकि अफ्रीका और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र सबसे अधिक ज़रूरत वाले क्षेत्र हैं जिसमें से अनेक देश कर्मचारियों हेतु निवेश करने की क्षमता पर कई बाधाओं से जूझ रहे हैं।
- विश्व स्तर पर और विशेष रूप से कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की अत्याधिक कमी बनी हुई है।
- जलवायु परिवर्तन:
- विनाशकारी परिणामों को देखते हुए जलवायु परिवर्तन पहले से ही स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
- जलवायु परिवर्तन का सामना करने के उद्देश्य से पेरिस समझौते को एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समझौता माना जाता है। हालाँकि वर्ष 2050 तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य इस दशक के अंदर प्राप्त किया जा सकता है।
- विश्व भर में जीवाश्म ईंधन को जलाए जाने से होने वाला वायु प्रदूषण 10.2 मिलियन अकाल मौतों के लिये ज़िम्मेदार है, आमतौर पर बैंकॉक या हैदराबाद की आबादी के सामान।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह से बढ़ते तापमान के कारण जलवायु परिवर्तन से सदी के अंत तक 83 मिलियन अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं।
- विनाशकारी परिणामों को देखते हुए जलवायु परिवर्तन पहले से ही स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
- स्वास्थ्य व्यय:
- अल्पकालिक मितव्ययिता उपायों से स्वास्थ्य व्यय को खतरा है और स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान में दीर्घकालिक लाभ और स्थिरता कम हो रही है।
- अपर्याप्त दीर्घकालिक निवेश से सहायता और आउट-ऑफ-पॉकेट भुगतान पर निर्भरता बढ़ती है, जिससे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में बाधा आती है।
- मानव अधिकार के रूप में स्वास्थ्य:
- कम-से-कम 140 देशों ने कहीं-न-कहीं अपने संविधान में स्वास्थ्य को एक मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी है लेकिन केवल चार देशों ने इसका उल्लेख किया है कि इसे कैसे वित्तपोषित किया जाए।
- इनमें से 52 देश स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में अपनाने के लिये बहुत कम प्रयास करते हैं।
- कम-से-कम 140 देशों ने कहीं-न-कहीं अपने संविधान में स्वास्थ्य को एक मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी है लेकिन केवल चार देशों ने इसका उल्लेख किया है कि इसे कैसे वित्तपोषित किया जाए।
सिफारिशें:
- सभी के लिये स्वास्थ्य को महत्त्व देना:
- ज़रूरी बातों का मूल्यांकन: स्वास्थ्य और देखभाल, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं एवं स्वास्थ्य प्रणालियों को दीर्घकालिक निवेश के रूप में मानें, न कि अल्पकालिक लागत के रूप में।
- मानव अधिकार: स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में लागू करने के लिये कानूनी और वित्तीय प्रतिबद्धताओं का उपयोग करें।
- प्लैनटेरी हेल्थ: पुनर्योजी अर्थव्यवस्था के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर कायम रहते हुए पर्यावरण को पुनर्स्थापित और संरक्षित करें जो ग्रह एवं लोगों को जोड़ता है।
- स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिये डैशबोर्ड: ऐसे मेट्रिक्स की एक शृंखला का उपयोग करें जो सकल घरेलू उत्पाद के संकीर्ण, स्थिर माप के ऊपर और परे मुख्य सामाजिक मूल्यों में प्रगति को ट्रैक करते हैं।
- सभी के लिये स्वास्थ्य वित्तपोषण:
- दीर्घकालिक वित्त: सभी हेतु स्वास्थ्य के वित्तपोषण के लिये व्यापक एवं स्थिर दृष्टिकोण अपनाना।
- वित्त की गुणवत्ता: प्रभावी और समावेशी प्रतिक्रिया सहित समान एवं सक्रिय रूप से स्वास्थ्य संकट के वित्तपोषित हेतु पुनः वित्त की अंतर्राष्ट्रीय संरचना को तैयार करना।
- वित्तपोषण और शासन: यह सुनिश्चित करना कि सभी के लिये स्वास्थ्य में अपनी महत्त्वपूर्ण वैश्विक समन्वयकारी भूमिका निभाने हेतु WHO द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित एवं प्रबंधित करना।
- सभी हेतु स्वास्थ्य नवाचार:
- सामूहिक बुद्धिमत्ता: जोखिम और लाभ दोनों को साझा करते हुए सार्वजनिक मूल्य को अधिकतम करने हेतु सहजीवी सार्वजनिक-निजी भागीदारी करना।
- समान भलाई: आवश्यक स्वास्थ्य खोजों तक सार्वभौमिक पहुँच की गारंटी देने हेतु बौद्धिक संपदा नियमों सहित उचित ज्ञान का सृजन करना।
- परिणाम अभिविन्यास: सभी के स्वास्थ्य के लिये बोल्ड क्रॉस-सेक्टोरल मिशन के साथ नवाचार और औद्योगिक रणनीतियों को संरेखित करना।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षमता को मज़बूत करना:
- संपूर्ण-सरकार: यह स्वीकार करना कि सभी हेतु स्वास्थ्य सुनिश्चित करने का कार्य केवल स्वास्थ्य मंत्रालयों का नहीं बल्कि सभी सरकारी एजेंसियों में निहित है।
- राज्य क्षमता: सभी हेतु स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में प्रभावी ढंग से नेतृत्त्व करने के लिये प्रयोग एवं ज्ञान को संस्थागत बनाने हेतु सार्वजनिक क्षेत्र की गतिशील क्षमताओं में निवेश करना।
- विश्वास निर्माण: समान स्वास्थ्य देखभाल हेतु सरकारों को जवाबदेह ठहराने के लिये पारदर्शिता एवं सार्थक सार्वजनिक जुड़ाव प्रदर्शित करना।
विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA):
- परिचय:
- विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA), WHO की निर्णय लेने वाली संस्था है जिसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडल शामिल होते हैं।
- इसका आयोजन वार्षिक रूप से WHO के मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में किया जाता है।
- कार्यकारी बोर्ड द्वारा तैयार किया गया एक विशिष्ट स्वास्थ्य मसौदा इस सभा का केंद्र बिंदु होता है।
- कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से वर्ष 2022 की सभा पहली ऐसी सभा है जिसमें लोग उपस्थित हुए।
- WHA के कार्य:
- संगठन की नीतियों पर निर्णय लेना।
- WHO के महानिदेशक की नियुक्ति।
- वित्तीय नीतियों का प्रशासन।
- प्रस्तावित कार्यक्रम बजट की समीक्षा और अनुमोदन।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सेन्गोल को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा
प्रिलिम्स के लिये:सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना, संसद, सेन्गोल, चोल साम्राज्य, भारत का गवर्नर-जनरल, केंद्रीय बजट 2022-23 मेन्स के लिये:सेन्गोल का ऐतिहासिक महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
28 मई, 2023 को प्रधानमंत्री नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे, जो सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा है।
- इस आयोजन का एक मुख्य आकर्षण लोकसभा अध्यक्ष की सीट के समीप ऐतिहासिक स्वर्ण राजदंड “सेन्गोल” की स्थापना होगा, जिसे सेन्गोल कहा जाता है।
- सेन्गोल भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक विरासत और विविधता का प्रतीक है।
सेन्गोल की ऐतिहासिक प्रासंगिकता:
- सेन्गोल, तमिल शब्द "सेम्मई" से लिया गया है, इसका अर्थ है "नीतिपरायणता"। इसका निर्माण स्वर्ण या चांदी से किया जाता था तथा इसे कीमती पत्थरों से सजाया जाता था।
- सेन्गोल जो कि राजसत्ता का प्रतीक था, औपचारिक समारोहों के अवसर पर सम्राटों द्वारा ले जाया जाता था जो कि उनकी राजसत्ता का प्रतिनिधित्व करता था।
- यह दक्षिण भारत में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले और सबसे प्रभावशाली राजवंशों में से एक चोल राजवंश से जुड़ा है।
- चोलों ने 9वीं से 13वीं शताब्दी तक तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा तथा श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
- चोल राजवंश को इनके सैन्य कौशल, समुद्री व्यापार, प्रशासनिक दक्षता, सांस्कृतिक संरक्षण और मंदिर वास्तुकला के लिये जाना जाता है।
- चोलों में उत्तराधिकार और वैधता के निशान के रूप में एक राजा से दूसरे राजा को सेन्गोल राजदंड सौंपने की परंपरा थी।
- समारोह आमतौर पर एक पुजारी या एक गुरु द्वारा किया जाता था जो नए राजा को आशीर्वाद देता था और उसे सेन्गोल से सम्मानित करता था।
भारत की आज़ादी के हिस्से के रूप में सेन्गोल:
- वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से एक प्रश्न किया: "ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में किस समारोह का पालन किया जाना चाहिये?"
- प्रधानमंत्री नेहरू ने तब सी. राजगोपालाचारी से परामर्श किया जिन्हें आमतौर पर राजाजी के नाम से जाना जाता था जो भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल बने।
- राजाजी ने सुझाव दिया कि सेन्गोल राजदंड सौंपने के चोल मॉडल को भारत की स्वतंत्रता के लिये एक उपयुक्त समारोह के रूप में अपनाया जा सकता है।
- उन्होंने कहा कि यह भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के साथ-साथ विविधता में एकता को भी दर्शाएगा।
- 14 अगस्त, 1947 को थिरुवदुथुराई अधीनम (500 वर्ष पुराना शैव मठ) द्वारा प्रधानमंत्री नेहरू को सेन्गोल राजदंड भेंट किया गया था।
- प्रधानमंत्री नेहरू ने तब सी. राजगोपालाचारी से परामर्श किया जिन्हें आमतौर पर राजाजी के नाम से जाना जाता था जो भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल बने।
- मद्रास (अब चेन्नई) के एक प्रसिद्ध जौहरी वुम्मीदी बंगारू चेट्टी द्वारा एक सुनहरा राजदंड तैयार किया गया था।
- नंदी की "न्याय" के दर्शक के रूप में अपनी अदम्य दृष्टि के साथ शीर्ष पर हाथ से नक्काशी की गई है।
सेन्गोल अभी कहाँ है और इसे नए संसद भवन में क्यों लगाया जा रहा है?
- वर्ष 1947 में सेन्गोल राजदंड प्राप्त करने के बाद नेहरू ने इसे कुछ समय के लिये दिल्ली में अपने आवास पर रखा।
- इसके बाद उन्होंने अपने पैतृक घर आनंद भवन संग्रहालय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को दान करने का निर्णय लिया।
- संग्रहालय की स्थापना उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने वर्ष 1930 में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास और विरासत को संरक्षित करने के लिये की थी।
- सेन्गोल राजदंड सात दशकों से अधिक समय तक आनंद भवन संग्रहालय में रहा।
- इसके बाद उन्होंने अपने पैतृक घर आनंद भवन संग्रहालय इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को दान करने का निर्णय लिया।
- वर्ष 2021-22 में जब सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना चल रही थी, तब सरकार ने इस ऐतिहासिक घटना को पुनर्जीवित करने और नए संसद भवन में सेन्गोल राजदंड स्थापित करने का निर्णय लिया।
- इसे नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा और इसके साथ एक पट्टिका होगी जो इसके इतिहास और अर्थ को बताएगी।
- नए संसद भवन में सेन्गोल की स्थापना सिर्फ एक सांकेतिक प्रतीक ही नहीं बल्कि एक सार्थक संदेश भी है।
- यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र अपनी प्राचीन परंपराओं एवं मान्यताओं में निहित है तथा यह समावेशी है और इसकी विविधता एवं बहुलता का सम्मान करता है।
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना:
- सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना एक ऐसी परियोजना है जिसका उद्देश्य रायसीना हिल, नई दिल्ली के निकट स्थित भारत के केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र सेंट्रल विस्टा का पुनरुद्धार करना है।
- यह क्षेत्र मूल रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान सर एडविन लुटियंस तथा सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा बनाए रखा गया था।
- केंद्रीय बजट 2022-23 में संसद के साथ-साथ भारत के सर्वोच्च न्यायालय सहित महत्त्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना के गैर-आवासीय कार्यालय भवनों के निर्माण के लिये आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को 2,600 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई थी।