वित्तीय संस्थानों के लिये नई नियामक संरचना
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के केंद्रीय बोर्ड ने वाणिज्यिक, शहरी सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पर्यवेक्षण एवं विनियमन को मज़बूती प्रदान करने के लिये RBI के अंतर्गत एक विशेष पर्यवेक्षी और नियामक संवर्ग/कैडर (Supervisory and Regulatory cadre) बनाने का निर्णय लिया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक का यह कदम ऐसे समय में महत्त्वपूर्ण है जब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ IL&FS संकट के कारण तरलता में भारी कमी जैसी समस्या का सामना कर रही हैं।
इस निर्णय का कारण
- बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Companies-NBFCs) जैसी विनियमित संस्थाओं में बढ़ती जटिलता को देखते हुए RBI द्वारा एक विशेष पर्यवेक्षी और नियामक कैडर बनाने का निर्णय उचित है।
- बैंकों में धोखाधड़ी के हालिया मामले और NBFCs द्वारा चूक, जिसने पिछले एक साल में वित्तीय बाज़ारों को स्थिर कर दिया, के बाद वित्तीय क्षेत्रों की बेहतर स्थिति सुनिश्चित करने के लिये विशेष पर्यवेक्षण आवश्यक है।
पृष्ठभूमि
- कुछ NBFCs और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (Housing Finance Companies) में तरलता की कमी की कमी को देखते हुए NBFCs के ऋण साधनों में निवेश और प्रवर्तकों/प्रमोटरों द्वारा गिरवी रखे गए शेयरों तथा प्रमोटरों के वित्त पोषण से चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हुई है।
- ऐसा माना जाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक पर्यवेक्षी कार्यों में, विशेषकर बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी और अव्यवस्थित प्रशासन का समय पर पता लगाने में असफल रहा था।