देश-देशांतर/द बिग पिक्चर: बैंकिंग घोटाले: सिस्टम की कमजोरियाँ और विकल्प
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
- नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के फायरस्टार इंटरनेशनल पब्लिक लि. तथा गीतांजलि जेम्स जैसे प्रतिष्ठित समूहों पर मुंबई में पंजाब नेशनल बैंक की ब्रैडी हाउस शाखा में लगभग 11,500 करोड़ रुपए का घोटाला करने का आरोप लगा है।
- इसके बाद कानपुर के रोटोमैक ग्रुप ऑफ कंपनीज़ के विक्रम कोठारी द्वारा बैंकों के कंसोर्टियम से लिये गए ऋण और ब्याज के 3695 करोड़ रुपए का एक और घोटाला सामने आया। इस कंसोर्टियम में शामिल बैंक ऑफ़ बडौदा ने अपने 616.19 करोड़ रुपए की वसूली के लिये ग्रुप को डिफाल्टर घोषित कर दिया।
- इससे पहले किंगफिशर एयरलाइंस के प्रवर्तक विजय माल्या भी एसबीआई के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह से लिये गए 6000 करोड़ रुपए से अधिक का क़र्ज़ न चुका पाने के कारण लंदन में जा बैठे हैं।
क्या होता है एलओयू?
(टीम दृष्टि इनपुट) |
कैसे हुआ फ्रॉड?
- पीएनबी के अलावा इन बैंकों में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक शामिल हैं। इन बैकों ने पीएनबी द्वारा जारी किये गए एलओयू के आधार पर क्रेडिट की पेशकश की थी।
- नीरव मोदी से जुड़ी तीन फर्मों--डायमंड्स आर अस, सोलर एक्सपोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स ने बैंक से संपर्क
- कर बायर्स क्रेडिट की मांग की, ताकि वे अपने विदेश के कारोबारियों को भुगतान कर सकें।
- इन फार्मों को बैंक की मिलीभगत से बायर्स क्रेडिट सुविधा प्रदान की गई, जबकि उनका कोई पुराना बेहतर क्रेडिट रिकॉर्ड नहीं था। इसके बाद हांगकांग की बैंक शाखाओं में धन का स्थानांतरण किया गया।
- इन एलओयू के आधार पर कुछ भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं ने नीरव मोदी को फॉरेक्स क्रेडिट दिया था, लेकिन इन एलओयू की एंट्री पीएनबी के कोर बैंकिंग सिस्टम में नहीं की गई थी।
- ये एलओयू पीएनबी ने मॉरीशस, बहरीन, हांगकांग, एंटवर्प और फ्रैंकफर्ट में भारतीय बैंकों को जारी किये थे।
- इनके आधार पर उपरोक्त बैंकों की विदेश स्थित शाखाओं से हज़ारों करोड़ रुपए के कर्ज़ उठा लिये गए।
नोस्ट्रो एकाउंट
पूर्व में भी नोस्ट्रो खातों और उनके दुरुपयोग को देखते हुए रिज़र्व बैंक ने बैंकों को इन खातों पर कड़ी निगरानी रखने और इनका निपटारा करने की सलाह दी थी। लेकिन वह यह सुनिश्चित नहीं करा पाया कि बैंक उसकी सलाह मानकर इस संबंध में मजबूत प्रणाली विकसित करें. स्विफ्ट (SWIFT) कोड मैसेजिंग सिस्टम
त्रिस्तरीय जाँच प्रक्रिया (टीम दृष्टि इनपुट) |
कैसे पता चला फ्रॉड का?
- पीएनबी के अधिकारियों ने सबसे पहले नीरव मोदी को 800 करोड़ की रकम का एलओयू जारी किया था। जब वह उसको नहीं चुका पाया तो बैंक ने पैसा वसूलने के बजाय और एलओयू जारी कर दिये। इन एलओयू को आधार बनाकर नीरव मोदी ने नया लोन ले लिया।
- यह फ़र्ज़ीवाड़ा जनवरी तक चलता रहा और जनवरी में जब इन एलओयू की अवधि पूरी हो गई तो दूसरे बैंकों ने पीएनबी से लोन अदायगी की मांग की।
- जब बैंक ने नीरव मोदी की कंपनी से एलओयू के लिये 100 फीसदी कैश मार्जिन जमा करने के लिये कहा तो कंपनी ने कहा कि उसने पहले भी इस तरह से लोन लिया है।
- इसके बाद जब बैंक ने आंतरिक जाँच की तो पता चला कि नीरव मोदी की कंपनी को फ़र्ज़ी एलओयू जारी किये गए थे।
- इस वर्ष जनवरी महीने में पहले जारी किये गए एलओयू की अवधि खत्म हो गई और भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं को कर्ज़ की रकम वापस नहीं मिली तो यह घोटाला सामने आया।
वस्तुतः इस सारी धोखाधड़ी से तब पर्दा हटा जब इस घोटाले में लिप्त पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारी-अधिकारी रिटायर हो गए और नीरव मोदी की कंपनी ने जनवरी में दोबारा इसी तरह की सुविधा शुरू करने की गुज़ारिश की। नए बैंक अधिकारियों ने वर्षों से चलती आ रही गलती पकड़ ली और घोटाले से पर्दा हटाने के लिये आंतरिक जाँच शुरू कर दी।
रिज़र्व बैंक ने बनाई समिति
नए निर्देश भी जारी किये
देश में निगरानी को बेहतर करने के लिये सभी बैंकों को समय-समय पर रिज़र्व बैंक द्वारा विवेकपूर्ण निगरानी से संबंधित एडवाइज़री जारी की जाती रही है, जिसमें बैंकों के काम करने से संबंधित संभावित रिस्क मैनेजमेंट भी शामिल है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
क्या निजीकरण से दूर हो सकती है खामी?
देश के बैंकिंग तंत्र में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है और ऐसे में इससे जुड़ी अधिकांश समस्याओं का ताल्लुक भी इन्हीं से होता है। समस्याओं में इनकी हिस्सेदारी असंगत रूप से अधिक है। समस्याएँ निजी और विदेशी बैंकों की भी हैं, लेकिन उनका आकार बहुत छोटा होता है। वे अपना कारोबार चलाने के लिये सार्वजनिक संसाधनों पर निर्भर नहीं रहते। तब भी स्थिति यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के सभी 21 बैंकों का कुल बाजार पूंजीकरण निजी क्षेत्र के एक अकेले बैंक एचडीएफसी से भी कम है। ऐसे में प्रधानमंत्री के उस कथन पर विचार करना चाहिये, जिसमें उन्होंने कहा था कि कारोबार करना सरकार का काम नहीं है। इसके अलावा आम खाताधारक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी क्षेत्र के बैंकों की कार्यपद्धति के अंतर से भी परिचित हैं।
निष्कर्ष: डिजिटल इंडिया के इस दौर में हर काम कंप्यूटर से होने लगा है। बैंकों के बही-खाते भी हाथ से नहीं लिखे जाते कि कोई भी आसानी से उनमें हेर-फेर कर सके और उन्हें लंबे समय तक पकड़ा ही न जा सके। बैंक का कामकाज खत्म होने के बाद हर लेन-देन का प्रतिदिन हिसाब-किताब किया जाता है और रिज़र्व बैंक हर बैंक के बही-खातों की ऑडिटिंग करता है। कंप्यूटर और सेंट्रलाइज्ड सर्वर के दौर में ऐसी चूक अनजाने में नहीं हो सकती। ऐसे में इसकी ज़िम्मेदारी तय करने के लिये बारीकी से जाँच की जानी चाहिये। यह मामला बताता है कि हमारी बैंकिंग व्यवस्था में सबकुछ चाक-चौबंद नहीं है।
बैंकों में ऐसे घोटाले होने के पीछे ऋण देने के मानकों की अनदेखी करना सबसे बड़ा कारण है। इस घोटाले में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि बैंक के ऑडिट में कुछ गलत नहीं पाया गया और बैंकों की आंतरिक निगरानी प्रणाली को भी इतने बड़े घोटाले की भनक तक नहीं लगी। अमेरिका और पश्चिमी देशों में वित्तीय गड़बड़ियों के लिये कड़ी सज़ा का प्रावधान है, साथ ही दोषियों को सज़ा जल्द सुना दी जाती है। लेकिन हमारे देश में वित्तीय फ्रॉड कर लोग देश छोड़ कर बेरोकटोक चले जाते हैं। जो बात सबसे ज्यादा हैरान करती है, वह यह कि एक ही बैंक शाखा से इतनी बड़ी रकम की हेरा-फेरी हो जाना। यह घोटाला ऐसे वक्त सामने आया है जब सरकारी बैंकों पर एनपीए का बोझ रिकार्ड स्तर तक पहुँच चुका है।