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केंद्रीय बजट और स्वास्थ्य

  • 20 Feb 2021
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में स्वास्थ्य क्षेत्र के बजटीय आवंटन में हुई वृद्धि और COVID-19 महामारी के दौरान इस वृद्धि के महत्त्व व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों की तरह ही भारत भी COVID-19 की इस अप्रत्याशित वैश्विक महामारी का सामना कर रहा है। इस महामारी ने एक बार पुनः सिद्ध किया है कि हमारा सबसे बड़ा संसाधन देश के नागरिक हैं, अतः इसने लोगों की देखभाल सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है।

वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है, जिसके तहत पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में स्वास्थ्य क्षेत्र के बजटीय आवंटन में 137% की वृद्धि के साथ 'निवारक', 'उपचारात्मक' और 'स्वास्थ्य-देखभाल' के पहलुओं को शामिल किया गया है।

वित्तीय वर्ष 2020-21 के आवंटन की तुलना में स्वास्थ्य क्षेत्र पर परिव्यय लगभग 10% तक कम कर दिया गया है।    

स्वास्थ्य क्षेत्र की वर्तमान स्थिति: 

  • वर्ष 2020 में COVID-19 के लगभग 11 मिलियन मामलों और एक लाख से अधिक संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता के कारण भारतीय स्वास्थ्य तंत्र को काफी दबाव का सामना करना पड़ा।
  • वर्तमान में भारत में 1145 लोगों पर केवल एक चिकित्सक उपलब्ध है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित दर (1000:1) से काफी कम है। 
  • भारत ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.8% स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च किया और पूर्व के वर्षों में यह अनुपात 1-1.5% था।  
    • भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु किया जाने वाला वित्तीय आवंटन ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (Organisation of Economic Co-operation and Development- OECD) देशों के औसत (7.6%)  और ब्रिक्स (BRICS) देशों द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर औसत खर्च (3.6%) की तुलना में काफी कम है।
    • परिणामस्वरूप भारत स्वास्थ्य से जुड़े ‘आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर’ (OOPE) के मामले में  विश्व के शीर्ष देशों में शामिल है।        
  • अनुमानों के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाला आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर लगभग 62% के करीब है, जो वैश्विक औसत (18%) का लगभग तीन गुना है।
  • वर्ष 2019 में जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार,  भारत में प्रत्येक 100 में से लगभग एक बच्चे की दस्त या निमोनिया के कारण पाँच वर्ष की आयु से पहले ही मृत्यु हो जाती है।  

आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर

(Out-of-Pocket Expenditure- OOPE):

  • आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंडिचर से आशय ऐसे खर्च से है जिसे सीधे एक रोगी द्वारा वहन किया जाता है और जहाँ बीमा, स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी लागत को कवर नहीं करता है। इनमें परिवारों द्वारा सीधे वहन किये गए लागत-साझाकरण, स्व-उपचार और अन्य प्रकार के खर्च शामिल हैं।  
  • हालाँकि इसमें पहले से दिया गया स्वास्थ्य कर या बीमा किश्त जैसे खर्च शामिल नहीं होते हैं।  

स्वास्थ्य बजट 2020-21:  

Healthcare

  • बजट 2021-22 में स्वास्थ्य और कल्याण पर 2,23,846 करोड़ रुपए के परिव्यय की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। यह पिछले वर्ष के बजटीय अनुमान (94,452 करोड़  रुपए) से 137% अधिक है।
    • इसके तहत पेयजल और स्वच्छता पर 60,030 करोड़ रुपए का परिव्यय, पोषण पर 2,700 करोड़ रुपए का परिव्यय, वित्त आयोग अनुदान के रूप में लगभग 49,000 करोड़ रुपए और टीकाकरण के लिये 35,000 करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है।
    • जल और स्वच्छता क्षेत्र को 60,030 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, इस क्षेत्र के आवंटन में पिछले वर्ष (21,518 करोड़ रुपए) की तुलना में 179% की वृद्धि देखी गई है। 
    • यह आर्थिक सर्वेक्षण की सिफारिशों के अनुरूप है जिसमें  सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का  2.5-3% तक करने की सिफारिश की गई थी।
    • देश भर में न्यूमोकोकल वैक्सीन के कवरेज का विस्तार करने हेतु लिया गया सरकार का निर्णय केंद्रीय बजट 2021 में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी एक अन्य महत्त्वपूर्ण घोषणा थी।
    • केंद्रीय बजट के तहत प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (PMANSBY) को लॉन्च करने की घोषणा भी की गई।
      • इसके तहत स्थानीय सरकारी निकायों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिये 13,192 करोड़ रुपए के वित्त आयोग अनुदान के साथ-साथ स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के विस्तार पर ज़ोर दिया गया है।

संबंधित मुद्दे:  

  • बजटीय आवंटन में कमी: केंद्रीय बजट 2021-22 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को 71,268.77 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। हालाँकि पिछले वर्ष इसके लिये संशोधित अनुमान 78,866 करोड़ रुपए था।
    • इसका अर्थ है केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के बजटीय आवंटन में लगभग 10% की कमी आई है।
  • टीकाकरण के लिये आवंटन: स्वास्थ्य परिव्यय के अलावा वित्तीय वर्ष 2021-22 में COVID-19 टीकाकरण के लिये 35,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
    • ऐसे में टीकों की सबसे सस्ती कीमत को आधार मानते हुए भी भारत इस राशि के साथ अपनी केवल 65% आबादी का ही टीकाकरण कर पाएगा।
    • इसके अतिरिक्त COVID-19 वैक्सीन के लिये दिया जाने वाला अनुदान संपूर्ण स्वास्थ्य प्रणाली को किसी भी प्रकार से मज़बूत नहीं करेगा।
  •  स्वास्थ्य, जल और स्वच्छता क्षेत्र का साझाकरण: हालिया बजट में जल और स्वच्छता के लिये वित्तीय आवंटन बढ़ा है, जबकि पोषण के लिये आवंटन में 27% की कमी आई है।
    • स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता और पोषण को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो "स्वास्थ्य" सेवाओं के आवंटन  में 137% की वृद्धि हुई है, जबकि वास्तविकता में स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण के वित्तीय आवंटन में गिरावट दर्ज की गई है।
  • अपेक्षित क्षेत्रों में चूक: केंद्रीय बजट में सक्रिय दवा सामग्री (API) पर जीएसटी में किसी भी प्रकार की कमी का उल्लेख करने में स्पष्ट रूप से चूक हुई है।
    • चिकित्सा उपकरणों पर आयात शुल्क में कमी इस बजट में शामिल न किये गए महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है, जो कि नागरिकों के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की लागत को कम करने में सहायक हो सकता था।

आगे की राह:    

  • स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में कमी: स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में कमी लाने और उनकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये एम्स जैसी कुछ गिनी-चुनी उत्कृष्ट संस्थाओं के अलावा अन्य मेडिकल कॉलेजों में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • सरकार एक विस्तारित स्वास्थ्य बजट में चिकित्सा शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और अनुसंधान पर बेहतर तरीके से ध्यान केंद्रित कर सकती है।
  • सार्वजनिक-निजी साझेदारी: अन्य नैदानिक ​​प्रक्रियाओं व अस्पतालों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) पर ज़ोर देने के साथ टीकाकरण अभियान के लक्ष्य की त्वरित और सफल प्राप्ति के लिये निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन तथा जीएसटी में कमी:  नई दवाओं के विकास में अधिक निवेश को बढ़ावा देने हेतु कर में अतिरिक्त कटौती के माध्यम से अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन प्रदान करना तथा जीवन रक्षक एवं अति आवश्यक दवाओं पर जीएसटी को कम करना।
  • स्वास्थ्य कर्मियों का कौशल विकास: लोगों को प्रस्तावित स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ प्रदान करने के लिये वर्तमान में कार्यरत स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण, पुनर्कौशल और ज्ञान के उन्नयन पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।
    • इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये सरकार सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ाने पर विचार कर सकती है।

निष्कर्ष: 

पिछले कुछ वर्षों में सरकार के एजेंडे में स्वास्थ्य क्षेत्र का एक प्रमुख स्थान रहा है तथा इस महामारी के बीच इसका महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। 

हालाँकि इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है परंतु केंद्रीय बजट 2021–22 ने COVID-19 युग के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र में लचीलापन बढ़ाने और सतत् विकास लक्ष्य के एजेंडे के तहत वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक मज़बूत नींव रखी है।

अभ्यास प्रश्न: केंद्रीय बजट 2021-22 में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये किये गए आवंटन में 137% की वृद्धि के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र के महत्त्व पर विशेष ज़ोर दिया गया है। आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये।

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