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डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ

  • 22 Dec 2020
  • 5 min read

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal) ने COVID-19 महामारी के कारण जैवविविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) के गठन और पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टरों (PBR) की तैयारी के लिये समय सीमा बढ़ा दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC):
    • जैविक विविधता अधिनियम 2002 के अनुसार, देश भर में स्थानीय निकायों द्वारा "जैविक विविधता के संरक्षण, सतत उपयोग और प्रलेखन को बढ़ावा देने के लिये" BMCs का निर्माण किया जाता है।

संरचना:

  • इसमें एक अध्यक्ष शामिल होगा तथा स्थानीय निकाय द्वारा नामित अधिकतम छह व्यक्ति होंगे, जिनमें कम-से-कम एक तिहाई महिलाएँ और 18% अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य होने चाहिये।
  • BMC का मुख्य कार्य स्थानीय लोगों के परामर्श से पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर तैयार करना है।

 पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR):

  • इन रजिस्टरों में क्षेत्र के पौधों, खाद्य स्रोतों, वन्य जीवन, औषधीय स्रोतों आदि में जैवविविधता का पूर्ण प्रलेखन दर्ज होता है।

PBR के लाभ:

  • एक अच्छा PBR यह पता लगाने में मदद करेगा कि आवासीय परिवर्तन किस प्रकार हो रहे हैं इसके अलावा यह हमारे वनों को समझने और उनका आकलन करने में सहायक होगा।
  • बायोपायरेसी को रोकना:
    • स्वदेशी और स्थानीय समुदाय पारंपरिक ज्ञान का भंडार हैं और उनका ज्ञान और प्रथाएँ जैवविविधता के संरक्षण और सतत् विकास में मदद करते हैं।
  • बॉटम-अप प्रक्रिया होने के कारण, यह सांस्कृतिक और प्राकृतिक जैवविविधता के अधिव्यापन को समझने का एक साधन भी है।
  • यह समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से एक विकेंद्रीकृत तरीके की परिकल्पना करता है।

भारत में जैवविविधता शासन

  • जैवविविधता शासन के माध्यम से सभी हितधारकों की नीति निर्धारण और निर्णयन प्रक्रिया में भागीदारी पर बल दिया जाता है ताकि एक प्रभावी, कानून के शासन पर आधारित तथा पारदर्शी प्रणाली अपनाई जा सके, जो आनुवंशिक संसाधनों के निष्पक्ष और न्यायसंगत साझाकरण की गारंटी देता हो।
  • भारत का जैविक विविधता अधिनियम 2002 (BD Act), नागोया प्रोटोकॉल के साथ घनिष्ठ तालमेल दर्शाता है और इसका उद्देश्य जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD) के प्रावधानों को लागू करना है।
  • भारत का 'जैविक विविधता अधिनियम' (Biological Diversity Act)- 2002, नागोया प्रोटोकॉल के उद्देश्यों के अनुरूप है।
  • इस अधिनियम को भारत में जैवविविधता के संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया था, क्योंकि इसमें प्राकृतिक संसाधनों पर देशों के संप्रभु अधिकारों को मान्यता दी गई थी।
  • अधिनियम के माध्यम से स्थानीय आबादी तक ‘पहुँच और लाभ साझाकरण’ (Access and Benefit Sharing-ABS) पर बल दिया गया।
  • अधिनियम के माध्यम से विकेंद्रीकृत तरीके से जैव संसाधनों के प्रबंधन के मुद्दों का समाधान का प्रयास किया गया।
    • अधिनियम के तहत त्रि-स्तरीय संरचनाओं की परिकल्पना की गई है: 
      • राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण (NBA)।
      • राज्य स्तर पर राज्य जैवविविधता बोर्ड (SSB)। 
      • स्थानीय स्तर पर जैवविविधता प्रबंधन समितियाँ (BMCs)।
  • अधिनियम सक्षम अधिकारियों के विशिष्ट अनुमोदन के बिना भारत में उत्पन्न ‘आनुवंशिक सामग्री के हस्तांतरण’ (Transfer of Genetic Material) पर प्रतिबंध लगाता है।
  • अधिनियम जैवविविधता से संबंधित ज्ञान पर बौद्धिक संपदा का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति के संबंध में देश के पक्ष को मज़बूत करता है।

जैवविविधता अभिसमय (CBD)

  • जैवविविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि वर्ष 1993 से लागू है। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
    • जैवविविधता का संरक्षण
    • जैवविविधता के घटकों का सतत उपयोग
    • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण।

स्रोत: द हिंदू

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