इन्फोग्राफिक्स
सामाजिक न्याय
भारत में मानसिक स्वास्थ्य
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, तंबाकू, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस, निमहंस (NIMHANS), मानसिक स्वास्थ्य, किरण हेल्पलाइन, मनोदर्पण मेन्स के लिये:भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित भारत सरकार की पहल। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा ज़ारी मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट-2024, भारत में मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चिंताजनक आँकड़ों पर प्रकाश डालती है।
मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- तनाव का उच्च स्तर: 84% स्नातकोत्तर (PG) छात्र मध्यम से उच्च स्तर के तनाव का अनुभव करते हैं। 64% छात्र बताते हैं कि कार्यभार उनके मानसिक स्वास्थ्य को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
- 27.8% स्नातक मेडिकल छात्रों और 15.3% स्नातकोत्तर छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य विकार का निदान किया गया है, जो व्यापक मानसिक स्वास्थ्य संकट को दर्शाता है, जिसके लिये तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- 16.2% स्नातक (UG) छात्रों और 31.2% स्नातकोत्तर (PG) छात्रों में आत्महत्या के विचार आए हैं, जो गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को दर्शाता है।
- प्रमुख तनाव:
- मेडिकल छात्र विशेष रूप से स्नातकोत्तर, प्रतिदिन लंबे समय तक काम करते हैं, जो प्रायः सप्ताह में 60 घंटे से अधिक होते हैं। इससे उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता और थकावट होती है।
- प्रायः अपर्याप्त ब्रेक के साथ, ड्यूटी पर निरंतर उपस्थित रहने की आवश्यकता मेडिकल छात्रों के बीच तनाव और थकान को काफी हद तक बढ़ाती है।
- मेडिकल संस्थानों के भीतर पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली व अवसंरचनात्मक कमी से छात्र अपने तनाव से निपटने और मानसिक स्वास्थ्य को प्रबंधित करने के लिये उचित संसाधनों से वंचित रह जाते हैं।
- चिकित्सा शिक्षा का उच्च व्यय और अपर्याप्त छात्रवृत्ति, छात्रों के लिये वित्तीय तनाव को बढ़ा देती है, विशेष रूप से उन छात्रों के लिये जो आर्थिक रूप से परिवार पर आश्रित हैं या जिनके पास छात्र ऋण है।
- 33.9% स्नातक छात्र अत्यधिक वित्तीय तनाव का सामना कर रहे हैं, जिनमें से 27.2% ने शैक्षिक ऋण ले रखा है और पुनर्भुगतान के दबाव से जूझ रहे हैं।
- 72.2% PG छात्रों को उनकी छात्रवृत्ति अपर्याप्त लगती है, जिससे छात्रवृत्ति नीतियों की समीक्षा की आवश्यकता उजागर होती है।
- चिकित्सा प्रशिक्षण में तीव्र प्रतिस्पर्द्धा, असफलता का भय और उच्च शैक्षणिक अपेक्षाएँ छात्रों को अत्यधिक दबाव में डाल देती हैं, जिससे उनमें टालमटोल, पूर्णतावाद और चरम मामलों में आत्महत्या के विचार आते हैं।
- छात्र लिंग, जाति, नस्ल और स्थान के आधार पर भेदभाव का अनुभव करते हैं, साथ ही वरिष्ठों और शिक्षकों द्वारा रैगिंग और उत्पीड़न के मामले छात्रों के मनोवैज्ञानिक तनाव को बढ़ाते हैं।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission)
- यह भारत में चिकित्सा शिक्षा और अभ्यास के लिये सर्वोच्च नियामक निकाय है, जिसे वर्ष 2020 में भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India- MCI) के स्थान पर स्थापित किया गया था।
- इसमें चार स्वायत्त बोर्ड और एक चिकित्सा सलाहकार परिषद शामिल है, जो प्रमुख स्क्रीनिंग परीक्षाओं (जैसे NEET-UG) की देखरेख, चिकित्सा शिक्षा तथा प्रशिक्षण, चिकित्सकों के पंजीकरण एवं नैतिकता, तथा संस्थानों के मूल्यांकन व रेटिंग को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- NMC ने प्रतिष्ठित विश्व चिकित्सा शिक्षा महासंघ (World Federation for Medical Education- WFME) मान्यता प्राप्त कर ली है, जिससे इसकी चिकित्सा डिग्रियों की वैश्विक मान्यता सुनिश्चित हो गई है।
भारत का व्यापक मानसिक स्वास्थ्य परिदृश्य कैसा दिखता है?
- उच्च प्रचलन दर: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey- NMHS) 2015-16 के अनुसार, भारत में 10.6% वयस्क मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं।
- मानसिक विकारों के लिये उपचार अंतराल विकार के आधार पर 70% से 92% के बीच भिन्न होता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापकता (13.5%) अधिक है।
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सर्वेक्षण में पाया गया कि महामारी के दौरान 11% छात्रों ने चिंता महसूस की, 14% ने अत्यधिक भावनाओं का अनुभव किया, और 43% ने मनोदशा में उतार-चढ़ाव का अनुभव किया।
- आर्थिक प्रभाव: मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अनुपस्थिति, दिव्यांगता और स्वास्थ्य देखभाल व्यय में वृद्धि होती है जिससे उत्पादकता में भारी कमी आती है।
- गरीबी से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ता है, जिससे तनावपूर्ण जीवन और वित्तीय अस्थिरता के कारण मनोवैज्ञानिक पीड़ा बढ़ती है।
मानसिक स्वास्थ्य से निपटने में नीतिगत चुनौतियाँ क्या हैं?
- नीतिगत उपेक्षा: मानसिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं के लिये कम प्राथमिकता वाला विषय बना हुआ है, जिसका आंशिक कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और मानसिक स्वास्थ्य प्रबंधन हेतु इंटरवेंशन में ज्ञान का अभाव है।
- मुख्य संकेतकों की कमी: अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय स्वास्थ्य मीट्रिक में मुख्य संकेतकों की अनुपस्थिति या कम प्रतिनिधित्व के कारण मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को अक्सरअनदेखा कर दिया जाता है।
- यह अनदेखी मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी अवसरंचना, अनुसंधान और सेवाओं में संसाधनों एवं निवेश के प्रभावी आवंटन को रोकती है।
- बजट की बाधाएँ: 93,000 करोड़ रुपए से अधिक की अनुमानित आवश्यकता के मुकाबले मानसिक स्वास्थ्य बजट वर्ष 2023 में केवल 1,000 करोड़ रुपए था, जिसमें अधिकांश धनराशि तृतीयक संस्थानों को दी गई, जिससे समुदाय-आधारित पहलों के लिये बहुत कम धनराशि बची।
- कानूनी कमियाँ: वर्ष 2014 की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन एवं संसाधन आवंटन में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
- मानव संसाधन नियोजन: भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है। मनोचिकित्सकों जैसे कुछ विशेषज्ञों पर निर्भरता, इस धारणा को कायम रखती है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का अनिवार्य घटक न होकर एक विलासिता है।
- रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: नीति निर्माण में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता है, जैसा दृष्टिकोण भारत द्वारा ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV) - एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम (AIDS) के खिलाफ लड़ाई के दौरान अपनाया गया था।
भारत की HIV-AIDS रणनीति से सबक
- भारत का HIV-AIDS कार्यक्रम वास्तविक समय के आँकड़ों और निगरानी पर आधारित था। स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों और समूहों के लिये रणनीतियाँ तैयार की गईं थी।
- बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा समुदायों को शामिल करने और सामाजिक पूर्वाग्रह को दूर करने के लिये आवंटित किया गया था, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसे मानसिक स्वास्थ्य रणनीतियों में दोहराया जाना चाहिये।
- सांसदों, मीडिया, न्यायपालिका और अन्य प्रमुख क्षेत्रों की भागीदारी से व्यापक जागरूकता तथा समर्थन प्राप्त करने में सहायता मिली।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल क्या हैं?
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP)
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (NIMHANS)
- राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम
- NIMHANS और iGOT-Diksha सहयोग
- आयुष्मान भारत - HWC योजना
- किरण हेल्पलाइन
- मनोदर्पण
- MANAS मोबाइल ऐप
नोट:
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य (SDG) लक्ष्य 3.4 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक गैर-संचारी रोगों से होने वाली असामयिक मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करना है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
आगे की राह
- समुदाय-आधारित मॉडल: सहकर्मी-नेतृत्व वाले हस्तक्षेप और आपातकालीन देखभाल केंद्रों जैसी साक्ष्य-आधारित रणनीतियों को बढ़ाना ।
- तमिलनाडु में बरगद के होम अगेन कार्यक्रम जैसे सफल मॉडल का अनुकरण करना, जो मानसिक रूप से बीमार, बेघर महिलाओं के लिये उपचार, पुनर्वास और पुनः एकीकरण को जोड़ता है।
- सहायता प्रणाली: कॉलेजों में परामर्श केंद्र स्थापित करना, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम लागू करना और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित छात्रों का समर्थन हेतु सहकर्मी सहायता समूहों की सुविधा प्रदान करना।
- मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या में वृद्धि: मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रोत्साहनों का विस्तार करना।
- एक स्वायत्त एजेंसी की स्थापना: HIV-AIDS के लिये राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की तरह, मानसिक स्वास्थ्य के लिये एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना, संसाधनों का समन्वय करने, सामुदायिक हितधारकों को शामिल करने और मानसिक स्वास्थ्य रोगियों की देखभाल में मदद कर सकता है।
- सेवाओं का विकेंद्रीकरण: पहुँच को बेहतर बनाने के लिये ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ स्थापित करना। संसाधन आवंटन और सेवा वितरण को बढ़ाने हेतु सहयोग और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये विभिन्न पहलों के बावजूद, महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने में प्रमुख नीतिगत चुनौतियों की पहचान कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने के लिये रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्सप्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस एवं पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020) |
शासन व्यवस्था
ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति 2024
प्रिलिम्स के लिये:स्वास्थ्य बीमा, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र, अपशिष्ट से खाद बनाना, जेब से खर्च (Out-of-Pocket Expenditure: OOPE), सहायक नर्स और प्रसाविका (ANM), डॉक्टर-रोगी अनुपात, आयुष्मान भारत, टेलीमेडिसिन, मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक, स्वच्छ भारत मिशन मेन्स के लिये:ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में चुनौतियाँ और उन्हें बेहतर बनाने के सुझाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया और डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट नामक NGO द्वारा ‘स्टेट ऑफ हेल्थकेयर इन रूरल इंडिया, 2024’ रिपोर्ट जारी की गई।
- सर्वेक्षण में आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश सहित 21 राज्यों को शामिल किया गया।
- प्राप्त प्रतिदर्शों में 52.5% पुरुष प्रत्यर्थी और 47.5% महिला प्रत्यर्थी शामिल थे।
रिपोर्ट की मुख्य तथ्य क्या हैं?
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज: देश में केवल 50% ग्रामीण परिवारों के पास सरकारी स्वास्थ्य बीमा है, जबकि 34% के पास कोई स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है।
- सर्वेक्षण किये गए 61% परिवारों के पास जीवन बीमा नहीं है।
- निदान सुविधाओं तक पहुँच: ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः प्रशिक्षित कर्मियों की कमी के कारण निदान सुविधाओं की कमी है।
- आवागमन योग्य दूरी के दायरे में उपलब्ध डायग्नोस्टिक सेंटर (निदान सुविधा केंद्रों) तक केवल 39% प्रत्यर्थियों की पहुँच है।
- 90% प्रत्यर्थी डॉक्टर की सलाह के बिना रूटीन चेक अप अर्थात् नियमित स्वास्थ्य जाँच कराते ही नहीं हैं।
- सब्सिडी वाली दवाओं तक पहुँच: केवल 12.2% परिवारों को प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों से सब्सिडी वाली दवाइयों की सुविधा प्राप्त हो पाती है।
- केवल 26% प्रत्यर्थियों के पास स्वास्थ्य सुविधा केंद्र के परिसर में स्थित निशुल्क दवाइयाँ प्रदान करने वाले सरकारी मेडिकल स्टोर तक पहुँच है।
- 61% प्रत्यर्थियों के पास आवागमन की दूरी के भीतर निजी मेडिकल स्टोर तक पहुँच है।
- जल निकासी व्यवस्था: 20% परिवारों ने बताया कि उनके गाँवों में कोई जल निकासी व्यवस्था नहीं है और केवल 23% के पास अपने गाँवों में जल निकासी व्यवस्था है।
- 43% परिवारों के पास अपशिष्ट निपटान की कोई वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं थी और वे अपना अपशिष्ट कहीं भी फेंक देते थे।
- केवल 11% परिवार सूखे अपशिष्ट को जलाते हैं और अपने गीले अपशिष्ट को खाद में परिणत करते हैं, जबकि 28% ने बताया कि स्थानीय पंचायत ने घरेलू अपशिष्ट को एकत्र करने की योजना बनाई है।
- वृद्ध जनों की देखभाल: वृद्ध जन सदस्यों वाले 73% परिवारों को निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है और अधिकांश (95.7%) परिवार के देखभालकर्त्ताओं को प्राथमिकता देते हैं, मुख्य रूप से महिलाएँ (72.1%), जो घर-आधारित देखभाल पर देखभालकर्त्ता प्रशिक्षण की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- केवल 3% परिवारों ने भुगतान किये गए बाह्य देखभालकर्त्ताओं को नियुक्त किया है।
- 10% परिवार देखभालकर्त्ताओं की अनुपस्थिति के कारण पड़ोस के सहयोग पर निर्भर हैं।
- गर्भवती महिलाओं की देखभाल: गर्भवती महिलाओं की देखभाल करने वालों में अधिकांश पति (62.7%), सास (50%) और माताएँ (36.4%) शामिल हैं।
- रिपोर्ट में सुदृढ़ सामाजिक नेटवर्क, सहायक वातावरण और परिवार की देखभाल करने वालों के लिये क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
- मानसिक स्वास्थ्य विकार: अधिकांश समय लैंगिक आधार पर 45% प्रत्यर्थियों को चिंता और बैचेनी होती है जो उनके मनःस्थिति को प्रभावित करती है।
- चिंता और बैचेनी युवा लोगों की तुलना में वृद्ध जनों के मानसिक स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करती है।
ग्रामीण भारत में खराब स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के क्या कारण हैं?
- आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय: भारत के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान (वर्ष 2019-20) के अनुसार, जेब से खर्च (OOPE) कुल स्वास्थ्य व्यय का 47.1% है।
- ओडिशा में 25% परिवारों को स्वास्थ्य सेवा लागत का सामना करना पड़ा और 40% परिवारों को अस्पताल में भर्ती होने के बाद स्वास्थ्य सेवा लागत का भुगतान करने के लिये या तो ऋण लेना पड़ा या फिर संपत्ति बेचनी पड़ी।
- योग्य कर्मियों की कमी: भारत ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी से ग्रस्त है।
- राज्यों में छत्तीसगढ़ में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में डॉक्टरों की सबसे अधिक रिक्तियाँ (71%) हैं, इसके बाद पश्चिम बंगाल (44%), महाराष्ट्र (37%) और उत्तर प्रदेश (36%) हैं।
- देश में सहायक नर्स और प्रसाविका (ANM) के लिये कुल रिक्तियाँ 5% हैं।
- डॉक्टर-रोगी अनुपात: भारत में डॉक्टर-रोगी अनुपात लगभग 1:1456 है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित अनुपात 1:1000 से कम है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है, जहाँ डॉक्टरों की कमी के कारण यह अनुपात काफी अधिक है।
- कम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय: स्वास्थ्य पर राज्य का व्यय अभी भी काफी कम है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 1.28% है। ग्रामीण स्वास्थ्य अवसंरचना को प्रायः बजट का एक छोटा हिस्सा मिलता है, जिससे स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों को कम वित्तपोषित किया जाता है।
आगे की राह
- स्वास्थ्य बीमा कवरेज को सुदृढ़ करना: आयुष्मान भारत जैसी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की पहुँच का विस्तार करने की आवश्यकता है ताकि लगभग 350 मिलियन भारतीयों में स्वास्थ्य बीमा तक पहुँच से वंचित ‘लुप्त मध्यम वर्ग’ को शामिल किया जा सके।
- इससे आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय में कमी आएगी और परिवारों को स्वास्थ्य सेवा लागत के कारण कर्ज़ में डूबने से बचाया जा सकेगा।
- सभी फैक्ट्री मज़दूरों को राज्य प्रायोजित सहायकी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के तहत शामिल किया जाना चाहिये।
- ‘लुप्त मध्यम वर्ग’ में वे जनसंख्या समूह शामिल हैं, जो अनौपचारिक क्षेत्र के काम में लगे हुए हैं और बीमा प्रीमियम में राज्य सब्सिडी वाले योगदान से लाभ उठाने के लिये गरीब की श्रेणी में नहीं आते हैं।
- स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिये ग्रामीण पोस्टिंग को प्रोत्साहित करना: ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के इच्छुक स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिये उच्च वेतन, बेहतर जीवन-निर्वहन स्थिति और कैरियर में उन्नति के अवसर जैसे आकर्षक प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये।
- छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे उच्च रिक्तियों वाले राज्यों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- चिकित्सा शिक्षा का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेजों और नर्सिंग स्कूलों की संख्या में वृद्धि कर यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि छात्रों को ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करके प्रशिक्षित किया जाए।
- इससे डॉक्टर-रोगी अनुपात में सुधार करने में मदद मिलेगी।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर-रोगी अनुपात में अंतर को पाटने के लिये टेलीमेडिसिन और मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक का उपयोग किया जाना चाहिये।
- ये मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ को कम करते हुए दूरस्थ परामर्श और अनुवर्ती देखभाल प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।
- मोबाइल डायग्नोस्टिक इकाइयाँ: मोबाइल डायग्नोस्टिक इकाइयाँ तैनात करने की आवश्यकता है, जो दूरदराज़ के क्षेत्रों में जा सकें, आवश्यक नैदानिक सेवाएँ प्रदान कर सकें और रोगियों को लंबी दूरी की यात्रा करने की आवश्यकता को कम कर सकें।
- समुदाय-नेतृत्व वाले स्वच्छता कार्यक्रम:स्वच्छता सुविधाओं को बनाए रखने और अपशिष्ट प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रमों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये और स्थायी स्वच्छता प्रथाओं को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें अनुकूलित किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा के खराब प्रदर्शन के क्या कारण हैं? ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये उपचारात्मक उपायों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न .‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (मेडिसिन सैन्स फ्रंटियर्स)’, जो अक्सर खबरों में रहता है, (2016) (a) विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक प्रभाग है उत्तर: (b) प्रश्न. जननी सुरक्षा योजना कार्यक्रम का प्रयास है (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) Q. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संदर्भ में प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता 'आशा (ASHA)' के कार्य निम्नलिखित में से कौन-से हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021) प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने हेतु, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस एवं पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. भारत में वृद्ध आबादी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। (2013) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतमाला परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:भारतमाला, सार्वजनिक निवेश बोर्ड, पूंजीगत व्यय, वस्तु एवं सेवा कर मेन्स के लिये:भारतमाला परियोजना, पीएम गति शक्ति योजना और भारत के बुनियादी अवसंरचना के विकास में योगदान। |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
प्रमुख सड़क नेटवर्क विस्तार कार्यक्रम भारतमाला परियोजना चरण-I का लगभग 50% कार्य 31 मार्च 2024 तक पूरा हो चुका है और इसके वर्ष 2027-28 तक पूरा होने की उम्मीद है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के विज़न 2047 का लक्ष्य सभी नागरिकों को 100-150 किलोमीटर के भीतर हाई-स्पीड कॉरिडोर प्रदान करना तथा विश्व स्तरीय सुविधाएँ विकसित करके यात्री सुविधा को बढ़ाना है।
- यह दृष्टिकोण भारत में राजमार्गों और संबंधित बुनियादी अवसंरचना के लिये मास्टर प्लान का आधार है।
भारतमाला परियोजना क्या है?
- परिचय:
- भारतमाला परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
- भारतमाला के पहले चरण की घोषणा वर्ष 2017 में की गई थी और इसे 2022 तक पूरा किया जाना था लेकिन धीमे कार्यान्वयन और वित्तीय बाधाओं के कारण इसे पूरा नहीं किया जा सका।
- कनेक्टिविटी एवं लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिये भारतमाला, सागरमाला, शुष्क/भूमि बंदरगाह और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पीएम गति शक्ति योजना के तहत शामिल किया गया है।
- जबकि भारतमाला परियोजना का उद्देश्य माल और यात्री आवागमन को बढ़ाते हुए सड़क संपर्क में सुधार करना है, सागरमाला परियोजना का उद्देश्य व्यापार एवं समुद्री गतिविधि को बढ़ाने के लिये बंदरगाहों का आधुनिकीकरण तथा तटीय शिपिंग को बढ़ावा देना है।
- भारतमाला परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- आर्थिक कॉरिडोर और उनकी दक्षता में सुधार: भारतमाला पहले से निर्मित बुनियादी अवसंरचना की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
- इसका उद्देश्य राजमार्गों पर अधिकांश माल यातायात को ले जाने के लिये स्वर्णिम स्वर्णिम चतुर्भुज (GQ) और उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम (NS-EW) कॉरिडोरों सहित लगभग 26,000 किलोमीटर आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण करना है।
- इंटर-कॉरिडोर और फीडर रूट: यह प्रथम मील से अंतिम मील तक की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा।
- इन कॉरिडोर की प्रभावशीलता में सुधार के लिये लगभग 8,000 किलोमीटर इंटर-कॉरिडोर और लगभग 7,500 किलोमीटर फीडर रूट की पहचान की गई है।
- सीमा और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क सड़कें: बेहतर सीमा सड़क बुनियादी अवसंरचना से अधिक गतिशीलता सुनिश्चित होगी और साथ ही पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा।
- तटीय व पोर्ट कनेक्टिविटी हेतु सड़कें: तटीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के माध्यम से बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, जिससे पर्यटन एवं औद्योगिक विकास दोनों बेहतर होते हैं।
- ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे: उच्च यातायात सघनता और अधिक जाम वाले स्थान की उपस्थिति वाले एक्सप्रेसवे ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे से लाभान्वित होंगे।
- आर्थिक कॉरिडोर और उनकी दक्षता में सुधार: भारतमाला पहले से निर्मित बुनियादी अवसंरचना की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
- वित्तपोषण तंत्र:
- भारतमाला परियोजना को केंद्रीय सड़क और अवसंरचना निधि उपकर, प्रेषण, अतिरिक्त बजटीय सहायता, राष्ट्रीय राजमार्गों के मुद्रीकरण, आंतरिक एवं अतिरिक्त बजटीय संसाधनों तथा निजी क्षेत्र के निवेश सहित विभिन्न स्रोतों से वित्त पोषित किया जा रहा है।
- स्थिति:
- मार्च 2024 तक, भारतमाला परियोजना चरण-1 ने 26,425 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये सफलतापूर्वक अनुबंध प्रदान किये हैं और 4.59 लाख करोड़ रुपए के कुल व्यय के साथ 17,411 किलोमीटर का कार्य पूरा किया है।
- यह परियोजना 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तथा 550 से अधिक ज़िलों में 34,800 किलोमीटर क्षेत्र को शामिल करती है।
- मार्च 2024 तक, भारतमाला परियोजना चरण-1 ने 26,425 किलोमीटर सड़कों के निर्माण के लिये सफलतापूर्वक अनुबंध प्रदान किये हैं और 4.59 लाख करोड़ रुपए के कुल व्यय के साथ 17,411 किलोमीटर का कार्य पूरा किया है।
सड़क अवसंरचना विकास हेतु अन्य समान पहल
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY): यह परियोजना वर्ष 2001 में असंबद्ध बस्तियों को जोड़ने के लक्ष्य के साथ शुरू हुई थी।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP): राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) एक पहल है जो सभी नागरिकों के जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार लाने और घरेलू एवं विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने हेतु पूरे भारत में विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना प्रदान करेगी।
- बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में ऊर्जा, सड़क, शहरी और रेलवे जैसे क्षेत्रों में सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ शामिल हैं, जो भारत में बुनियादी अवसंरचना में अनुमानित पूंजीगत व्यय का लगभग 70% है।
- इसमें 100 करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाएँ शामिल हैं।
- स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना:
- यह 4-6 लेन वाले राजमार्गों का एक नेटवर्क है जो भारत के 4 शीर्ष महानगरीय शहरों अर्थात दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ता है, जिससे एक चतुर्भुज बनता है।
- यह परियोजना राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) के हिस्से के रूप में वर्ष 2001 में शुरू की गई थी। यह भारत की सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है।
- स्वर्णिम चतुर्भुज की 4 भुजाएँ/फलक:
- दिल्ली-कोलकाता: 1,453 किमी
- चेन्नई-मुंबई: 1,290 किमी
- कोलकाता-चेन्नई: 1,684 किमी
- मुंबई-दिल्ली: 1,419 किमी
- नये अनुबंध मॉडल और परिसंपत्ति मुद्रीकरण: इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) तथा बिल्ड, ऑपरेट, ट्रांसफर (BOT) जैसी पारंपरिक निविदा पद्धतियों के अलावा कई नये अनुबंध मॉडल भी उभर कर सामने आये हैं।
- इनमें हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल (HAM), टोल, ऑपरेट और ट्रांसफर (TOT) तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InVIT) शामिल हैं।
भारत के विकास में सड़क अवसंरचना का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक विकास और उत्पादकता: सड़क नेटवर्क भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद में 3.6% से अधिक का योगदान देते हैं और 85% से अधिक यात्री यातायात एवं 65% माल ढुलाई करते हैं।
- वे परिवहन लागत को कम करते हैं, बाज़ार तक पहुँच बढ़ाते हैं और व्यापार को प्रोत्साहित करते हैं।
- वे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करते हुए और गरीबी को कम करने में मदद करते हुए महत्त्वपूर्ण रोज़गार अवसर का भी सृजन करते हैं।
- ग्रामीण विकास और सामाजिक समानता: PMGSY जैसी योजनाओं के तहत ग्रामीण सड़कें दूरदराज़ के क्षेत्रों और आवश्यक सेवाओं के बीच की दूरी को न्यून करती हैं।
- ये हाशिये पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाती हैं, अलगाव को कम करती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं।
- उन्नत सड़क संपर्क शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बढ़ाता है।
- पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: कुशल सड़क नेटवर्क पर्यटन को सुविधाजनक बनाते हैं, जो अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। दर्शनीय मार्ग और धरोहर स्थलों तक पहुँच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है तथा स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा: सड़कें रक्षा रसद और आपातकालीन प्रतिक्रियाओं के लिये महत्वपूर्ण हैं। सीमा और सामरिक सड़कें राष्ट्रीय सुरक्षा एवं सैन्य आवागमन के लिये आवश्यक हैं।
सड़क अवसंरचना विकास से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: सड़क निर्माण से वनों की कटाई, जैवविविधता का ह्रास और प्रदूषण में वृद्धि जैसी पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। यह आवास विखंडन, वायु व ध्वनि प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन का बहुत बड़ा कारक है, जो स्थायी अवसंरचना प्रथाओं की आवश्यकता को उजागर करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट है कि भारत के CO2 उत्सर्जन में सड़क परिवहन का योगदान 12% है, जिसमें भारी वाहन पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 उत्सर्जन में प्राथमिक योगदानकर्त्ता हैं।
- सामाजिक चिंताएँ: सड़क परियोजनाओं से समुदायों का विस्थापन हो सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। अपर्याप्त पुनर्वास गरीबी को बढ़ा सकता है, जबकि खराब तरीके से डिज़ाइन की गई सड़कें दुर्घटना दर में योगदान करती हैं। वर्ष 2021 में भारत में 1,50,000 से अधिक मौतें हुईं, जो सुरक्षित अवसंरचना की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
- आर्थिक चिंताएँ: कई सड़क परियोजनाओं में अत्यधिक लागत वृद्धि और विलंब होता है, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) ने ऐसे उदाहरणों की रिपोर्ट की है जिनमें लागत, बजट से 40% से अधिक पाई गई।
- इसके अतिरिक्त सुदृढ़ रखरखाव फ्रेमवर्क की कमी से सड़कों की हालत तेज़ी से खराब होती है, जिससे दीर्घकालिक लागत लगभग दोगुनी हो जाती है।
- शासन और नीतिगत मुद्दे: इसमें नीलामी और क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार शामिल है, जिससे घटिया अवसंरचना का निर्माण होता है।
- इसके अतिरिक्त व्यापक नियोजन की कमी के कारण खराब तरीके से निष्पादित परियोजनाएँ सामने आती हैं, जिससे एकीकृत परिवहन नियोजन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
आगे की राह
प्रतिस्पर्द्धी दरों पर कच्चा माल प्राप्त करने और आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ अनुकूल शर्तों पर सौदागिरी करने के लिये रणनीतिक खरीद पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। साथ ही पारदर्शी प्रथाओं को अपनाकर भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करना और विवादों को कम करने के लिये भूमि पूलिंग जैसे विकल्पों की खोज करना आवश्यक है। इसके अलावा स्थिर GST नीतियों की आवश्यकता है और उद्योग पर कर परिवर्तनों के प्रभावों को दूर करने के लिये सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न . “अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के प्रकाश में चर्चा कीजिये। (2021) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-पोलैंड संबंध
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन, द्वितीय विश्व युद्ध, यूरोपीय यूनियन, योग, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन प्रिलिम्स के लिये:भारत-पोलैंड संबंध, रणनीतिक साझेदारी और इसके निहितार्थ |
स्रोत: पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री की पोलैंड यात्रा एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि साबित हुई, क्योंकि भारत और पोलैंड अपने राजनयिक संबंधों की 70वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं।
- इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को "रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाया तथा विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
प्रधानमंत्री की पोलैंड यात्रा की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- रणनीतिक साझेदारी तक उन्नयन: दोनों राष्ट्रों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को "रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, जो घनिष्ठ संबंधों और सहयोग बढ़ाने के लिये आपसी प्रतिबद्धता को उजागर करती है।
- पाँच वर्षीय कार्य योजना: सामरिक साझेदारी से प्राप्त गति को आगे बढ़ाते हुए, दोनों पक्षों ने वर्ष 2024-2028 के लिये एक पाँच वर्षीय कार्य योजना विकसित करने और उसे लागू करने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग हेतु निम्नलिखित प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:
- राजनीतिक वार्ता और सुरक्षा: नियमित उच्च स्तरीय संपर्क, वार्षिक राजनीतिक वार्ता और सुरक्षा परामर्श।
- दोनों पक्षों ने निर्णय लिया कि रक्षा सहयोग के लिये संयुक्त कार्य समूह का अगला दौर 2024 में होगा।
- व्यापार और निवेश: व्यापार संतुलन, उच्च तकनीक और हरित प्रौद्योगिकी के अवसरों की खोज, तथा आर्थिक सुरक्षा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- उन्होंने सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की और व्यापार असंतुलन को दूर करने तथा व्यापार क्षेत्र का विस्तार करने के लिये संयुक्त आर्थिक सहयोग आयोग (Joint Commission for Economic Cooperation- JCEC) का उपयोग करने पर सहमति व्यक्त की।
- JCEC दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों के नेतृत्व में एक संस्थागत तंत्र है। इसमें बुनियादी ढाँचे, पर्यटन, रेलवे, खाद्य प्रसंस्करण, नवीकरणीय ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी और कृषि पर ध्यान केंद्रित करने वाले संयुक्त कार्य समूह शामिल हैं।
- उन्होंने सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की और व्यापार असंतुलन को दूर करने तथा व्यापार क्षेत्र का विस्तार करने के लिये संयुक्त आर्थिक सहयोग आयोग (Joint Commission for Economic Cooperation- JCEC) का उपयोग करने पर सहमति व्यक्त की।
- जलवायु एवं प्रौद्योगिकी: सतत् प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा और अंतरिक्ष अन्वेषण पर सहयोग।
- दोनों पक्षों ने अंतरिक्ष और वाणिज्यिक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी प्रणालियों के सुरक्षित, सतत् तथा संरक्षित उपयोग को बढ़ावा देने एवं मानव व रोबोट अन्वेषण को बढ़ावा देने के लिये एक सहयोग समझौते पर सहमति व्यक्त की।
- पोलैंड ने अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी में शामिल होने की भारत की महत्वाकांक्षा को स्वीकार किया।
- भारत ने वैश्विक पर्यावरण और आपदा संबंधी चुनौतियों से निपटने हेतु पोलैंड को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) और आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित किया।
- आर्थिक और सामाजिक विकास के लिये साइबर सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण महत्त्व को स्वीकार करते हुए दोनों पक्ष सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and communications technology- ICT) से संबंधित क्षेत्रों में घनिष्ठ संपर्क और आदान-प्रदान बढ़ाएंगे।
- परिवहन एवं संपर्क: परिवहन अवसंरचना को बढ़ाना तथा उड़ान संपर्क में वृद्धि करना।
- आतंकवाद विरोधी प्रयास: दोनों नेताओं ने सभी प्रकार के आतंकवाद से निपटने के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के कार्यान्वयन के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को शीघ्र अपनाने पर सहमति व्यक्त की।
- भारत-यूरोपीय संघ: भारत और यूरोपीय संघ, वर्तमान में चल रही भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश वार्ताओं के शीघ्र समापन, भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के संचालन, नई प्रौद्योगिकियों और सुरक्षा में सामरिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिये भारत-यूरोपीय संघ कनेक्टिविटी साझेदारी के कार्यान्वयन का समर्थन करेंगे।
- सांस्कृतिक एवं लोगों के बीच संबंध: सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शैक्षिक साझेदारी और पर्यटन को सुदृढ़ करना।
- राजनीतिक वार्ता और सुरक्षा: नियमित उच्च स्तरीय संपर्क, वार्षिक राजनीतिक वार्ता और सुरक्षा परामर्श।
- स्मारक यात्राएँ और ऐतिहासिक श्रद्धांजलि:
- डोबरी महाराजा स्मारक: भारत के प्रधानमंत्री ने वारसॉ में डोबरी महाराजा स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
- यह स्मारक नवानगर (गुजरात में जामनगर) के जाम साहब श्री दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा के प्रति पोलिश लोगों और सरकार के सम्मान और कृतज्ञता को दर्शाता है, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक हज़ार से अधिक पोलिश बच्चों को आश्रय प्रदान किया था, जिसके कारण उन्हें पोलैंड में "डोबरी (अच्छा) महाराजा" की उपाधि मिली थी।
- कोल्हापुर स्मारक: भारत के प्रधानमंत्री ने कोल्हापुर स्मारक का भी दौरा किया।
- यह स्मारक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 5,000 पोलिश शरणार्थियों को आश्रय प्रदान करने के लिये कोल्हापुर रियासत की उदारता को समर्पित है।
- कोल्हापुर राज्य (1710-1949) भारत की एक मराठा रियासत थी। वर्ष 1949 में कोल्हापुर रियासत को बॉम्बे प्रेसीडेंसी में मिला दिया गया था।
- मोंटे कैसिनो की लड़ाई का स्मारक: भारत के प्रधानमंत्री ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड, भारत और अन्य देशों के सैनिकों के साझा बलिदान को मान्यता देते हुए इस स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की।
- यह स्मारक पोलिश द्वितीय कोर के सैनिकों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे खूनी युद्धों में से एक, मोंटे कैसिनो के युद्ध में लड़ाई लड़ी थी।
- अज्ञात सैनिक की समाधि: इस पूजनीय स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने सेवा के दौरान शहीद हुए पोलिश सैनिकों को श्रद्धांजलि दी, जो भारत और पोलैंड के बीच एकजुटता को दर्शाता है।
- यह स्मारक उन सभी सैनिकों को समर्पित है, जो अपनी मातृभूमि के लिये लड़ते हुए गुमनाम रूप से मारे गए। इसकी स्थापना वर्ष 1925 में उन लोगों के सम्मान में की गई थी जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और पोलिश-सोवियत युद्ध में पोलैंड की रक्षा की थी।
- डोबरी महाराजा स्मारक: भारत के प्रधानमंत्री ने वारसॉ में डोबरी महाराजा स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रधानमंत्री की पोलैंड यात्रा का क्या महत्त्व है?
- विदेश नीति का पुनर्निर्धारण: पोलैंड की यात्रा करके भारत ने पारंपरिक देशों (जर्मनी, फ्राँस और ब्रिटेन) से परे यूरोपीय देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ता के महत्त्व को रेखांकित किया है।
- मध्य यूरोप में एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था होने के नाते पोलैंड भारत के लिये व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अनेक अवसर प्रदान करता है।
- इससे आर्थिक सहयोग के लिये नए रास्ते खुलने तथा व्यापार संबंधों में संतुलन आने की उम्मीद है, जो पहले से असंतुलित थे।
- स्वास्थ्य सेवा सहयोग: पोलैंड में स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की आवश्यकता भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
- इस क्षेत्र में संभावित सहयोग, जिसमें पोलैंड में भारतीय डॉक्टरों के काम करने की संभावना भी शामिल है, पोलैंड में स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर कर सकता है तथा द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ा सकता है।
- भू-राजनीतिक संदर्भ: यूक्रेन में चल रहे संघर्ष में पोलैंड की भूमिका को देखते हुए यह यात्रा रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- यूक्रेन के प्रति पोलैंड का समर्थन तथा मध्य यूरोप में इसकी रणनीतिक स्थिति, इसे इस क्षेत्र में भारत के लिये एक प्रमुख साझेदार बनाती है।
भारत-पोलैंड संबंधों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- राजनीतिक संबंध: वर्ष 1954 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए तथा वर्ष 1957 में वारसॉ में भारत का दूतावास खोला गया। दोनों देश शुरू में उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के खिलाफ थे।
- साम्यवादी युग (1944 से 1989) के दौरान संबंध घनिष्ठ थे तथा राज्य व्यापार संगठनों के माध्यम से कई उच्च-स्तरीय यात्राएँ और व्यापारिक बातचीत हुई।
- वर्ष 1989 में पोलैंड के लोकतंत्र में परिवर्तन के बाद व्यापार में कठोर मुद्रा व्यवस्था की ओर बदलाव हुआ, जो दोनों देशों के व्यापार के बढ़ते स्तर को दर्शाता है क्योंकि दोनों अर्थव्यवस्थाएँ आकार में बढ़ रही थीं।
- वर्ष 2004 में पोलैंड के यूरोपीय यूनियन में शामिल होने से द्विपक्षीय संबंध और सुदृढ़ हुए, जिससे यह मध्य यूरोप में भारत का प्रमुख आर्थिक साझेदार बन गया।
- समझौते: भारत और पोलैंड ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये पिछले कुछ वर्षों में कई महत्त्वपूर्ण समझौते किये हैं। उल्लेखनीय रूप से शुरुआती समझौतों में सांस्कृतिक सहयोग (वर्ष 1957), दोहरे कराधान से बचाव (वर्ष 1989), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग (वर्ष 1993), संगठित अपराध एवं अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला तथा प्रत्यर्पण (वर्ष 2003) शामिल हैं।
- हाल के समझौते आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता संधि और राजनयिक परिवारों के लिये लाभकारी व्यवसाय (वर्ष 2022) पर केंद्रित हैं।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- पोलैंड मध्य और पूर्वी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक और निवेश भागीदार बना हुआ है। द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2013 में 1.95 बिलियन अमरीकी डॉलर से 192% बढ़कर वर्ष 2023 में 5.72 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है, जिसमें व्यापार संतुलन बहुत हद तक भारत के पक्ष में है।
- पोलैंड को भारतीय निर्यात: वस्त्र, क्षारीय धातु, रसायन, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, विद्युत एवं विद्युत-तकनीकी उपकरण, पत्थर के सामान, सिरेमिक उत्पाद व अन्य।
- भारत में पोलिश आयात: मशीनरी, खनिज उत्पाद, रसायन, ऑप्टिकल (मापन एवं जाँच उपकरण) आदि।
- निवेश: पोलैंड में भारतीय निवेश 3 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है, जिसमें IT, फार्मास्यूटिकल्स और विनिर्माण सहित विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय फर्म शामिल हैं।
- भारत में पोलिश निवेश लगभग 685 मिलियन अमरीकी डॉलर है, जो स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और इलेक्ट्रिक बसों सहित विभिन्न क्षेत्रों में शामिल है।
- पोलैंड मध्य और पूर्वी यूरोप में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक और निवेश भागीदार बना हुआ है। द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2013 में 1.95 बिलियन अमरीकी डॉलर से 192% बढ़कर वर्ष 2023 में 5.72 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है, जिसमें व्यापार संतुलन बहुत हद तक भारत के पक्ष में है।
- सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंध: पोलैंड में इंडोलॉजी अध्ययन की एक पुरानी परंपरा है, जहाँ पोलिश विद्वान 19वीं शताब्दी से संस्कृत का पोलिश में अनुवाद करते आ रहे हैं। कई पोलिश विश्वविद्यालयों में इंडोलॉजी का अध्ययन किया जाता है।
- पोलैंड में योग का भी एक लंबा इतिहास है, जहाँ 3,00,000 से अधिक अभ्यासकर्त्ता और कई योग केंद्र व शिक्षक हैं।यहाँ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस उत्साह के साथ मनाया जाता है।
- पोलैंड में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलिश शरणार्थियों को बचाने के लिये नवानगर के जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को श्रद्धांजलि दी जाती है।
- पोलैंड में कई स्थानों का नाम भारतीय नेताओं के नाम पर रखा गया है और वारसॉ विश्वविद्यालय में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा स्थापित की गई है।
- भारतीय समुदाय: पोलैंड में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 25,000 है, जिसमें व्यापारी, पेशेवर और छात्र शामिल हैं, तथा भारतीय रेस्तराँ की भी उल्लेखनीय उपस्थिति है।
पोलैंड के बारे में मुख्य तथ्य
- स्थान: मध्य यूरोप में स्थित पोलैंड की सीमा जर्मनी, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया, यूक्रेन, बेलारूस, लिथुआनिया और रूस (कैलिनिनग्राद एक्सक्लेव) से लगती है। इसकी उत्तरी सीमा (440 किमी लंबी) बाल्टिक सागर तट से लगती है।
- राजधानी: वारसॉ (पोलिश में: वारसॉ(Warszawa))
- भूगोल: बाल्टिक सागर तट के रेतीले समुद्र तट, केंद्रीय तराई क्षेत्र और कार्पेथियन तथा सुडेटन पर्वत की बर्फ से ढकी चोटियाँ। 1,300 से अधिक झीलों का स्थान।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठन: पोलैंड उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO), संयुक्त राष्ट्र (UN), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), विश्व व्यापार संगठन (WTO), सहयोग और विकास संगठन (OECD) और कई अन्य संगठनों का सदस्य है।
- सरकार और अर्थव्यवस्था: संसदीय गणतंत्र व्यवस्था है, जिसमें सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री और राज्य का मुखिया राष्ट्रपति होता है।
- मुख्य उद्योगों में खनन, इस्पात निर्माण और मशीनरी उत्पादन शामिल हैं; 1980 के दशक से साम्यवाद से मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था में संक्रमण हुआ है।
- कम मज़दूरी और उच्च बेरोज़गारी की चुनौतियों के बावजूद वर्ष 2004 में यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से तेजी से विकास हुआ है।
- पर्यावरण:
- प्रमुख नदियाँ: विस्तुला और ओडर
- जैव विविधता: बियालोविज़ा वन में विश्व की सबसे बड़ी यूरोपीय बाइसन आबादी का आवास स्थान है; ब्राउन बेयर, जंगली घोड़े, चामोइस बकरियाँ, यूरेशियन लिंक्स और ग्रे वूल्व्स के आवास स्थान है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत-पोलैंड द्विपक्षीय संबंधों को "रणनीतिक साझेदारी" तक बढ़ाने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह साझेदारी दोनों देशों की विदेश नीतियों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को कैसे प्रभावित करती है? |