सामाजिक न्याय
मानसिक स्वास्थ्य को बढावा देना
- 17 Oct 2022
- 14 min read
यह एडिटोरियल 12/10/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Mental health and children: It's time to face the NextGen challenge” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
लोगों की समग्र सेहत के लिये एक अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का होना अनिवार्य है। मानसिक रोग वैश्विक रोग बोझ में 18.5% का योगदान करते हैं और इसमें अवसाद, दुश्चिंता एवं न्यूरो-साइकियाट्रिक विकार (neuro-psychiatric disorders) शामिल हैं।
- कोविड-19 महामारी ने उजागर किया कि खराब मानसिक स्वास्थ्य न केवल समुदायों को अक्षम बनाता है और भारी आर्थिक लागत लेकर आता है, बल्कि राष्ट्र की उत्पादकता को भी नष्ट करता है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के विकास में पर्याप्त आधारभूत संरचना, अभिगम्यता और जागरूकता का अभाव एक प्रमुख बाधा है, जिस पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति
- मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सेहत शामिल हैं। यह अनुभूति (cognition), धारणा (perception) और व्यवहार (behaviour) को प्रभावित करता है। यह निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति तनाव, पारस्परिक संबंधों और निर्णयन क्षमता का कैसे प्रबंधन करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य में कोई भी व्यवधान किसी व्यक्ति की अनुभूति, धारणा और व्यवहार को व्यापक सीमा तक प्रभावित करती है।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences- NIMHANS) के आँकड़ों के अनुसार भारत में 80% से अधिक लोगों के पास कई कारणों से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
- भारत सरकार की प्रमुख पहलें:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP): देश में मानसिक विकारों की व्यापकता और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी के समाधान के लिये सरकार द्वारा वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को अपनाया गया था।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर पर सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये वर्ष 1996 में ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) भी शुरू किया गया।
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 (Mental Health Care Act 2017) के तहत प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति के लिये सरकारी संस्थानों से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एवं उपचार सुविधा प्राप्त करना सुनिश्चित किया गया है।
- इसने आईपीसी की धारा 309 के महत्त्व को काफी कम कर दिया है और आत्महत्या के प्रयास अब केवल अपवाद के रूप में ही दंडनीय हैं।
- ‘किरण’ हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने हेतु 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन ‘किरण’ (Kiran) शुरू की है।
- ‘मनोदर्पण’ पहल: कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों, शिक्षकों और परिवार के सदस्यों को मनोसामाजिक सहायता (psychosocial support) प्रदान करने के उद्देश्य से इसे शुरू किया गया।
- ‘मानस’ मोबाइल ऐप: सभी आयु समूहों में मानसिक सेहत को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2021 में मानस (Mental Health and Normalcy Augmentation System- MANAS) ऐप लॉन्च किया।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP): देश में मानसिक विकारों की व्यापकता और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी के समाधान के लिये सरकार द्वारा वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को अपनाया गया था।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ
- निर्धनता से प्रेरित भेद्यता/संवेदनशीलता: मानसिक विकारों के साथ सर्वाधिक प्रबलता से संबद्ध दो कारक हैं- अभाव और गरीबी। निम्न शैक्षणिक योग्यता, निम्न घरेलू आय, बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच आदि की कमी रखने वाले व्यक्तियों में मानसिक विकार का उच्च जोखिम पाया जाता है।
- महिलाएँ विशेष रूप से प्रभावित: कई तरह के सामाजिक कलंक एवं लैंगिक असमानता, शिक्षा तक पहुँच की कमी, सीमित गतिशीलता, कामकाजी महिलाओं के लिये अतिरिक्त घरेलू ज़िम्मेदारियाँ, पारिवारिक देखभाल-कर्ता होने के रूप में उन्हें ‘कंडीशन’ करना आदि उन्हें विभिन्न प्रकार के मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति भेद्य बनाता है।
- इसके अलावा, वर्ष 2019-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में समग्र रूप से 30% महिलाएँ लिंग-आधारित हिंसा का सामना करती हैं, जिससे भारत में सभी महिलाओं में से लगभग एक तिहाई दुश्चिंता विकारों और अवसाद के विकास का उच्च जोखिम रखती हैं।
- आपदा, जलवायु परिवर्तन और मानसिक स्वास्थ्य: आपदाएँ सक्षम अभिघातज घटनाएँ हैं जो हर वर्ष विश्व भर में लाखों लोगों को प्रभावित करती हैं।
- विभिन्न अध्ययनों से पुष्टि होती है कि आपदा से बचे लोगों में अवसाद, उत्तर-अभिघातजन्य तनाव विकार (Post Traumatic Stress Disorder- PTSD), दुश्चिंता और आत्महत्या जैसे अल्पकालिक और दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि होती है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने खुलासा किया है कि तेज़ी से बढ़ रहा जलवायु परिवर्तन भी आपदा की घटनाओं को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सेहत के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- शिक्षा प्रणाली और मानसिक स्वास्थ्य: भारत में व्यक्तिकृत और समग्र शैक्षिक संरचना पर बल देने की कमी के कारण छात्रों का एक बड़ा भाग मानसिक विकारों के लक्षण प्रदर्शित करता है। दुर्भाग्यजनक तथ्य यह भी है कि भारत में प्रति घंटे एक छात्र आत्महत्या कर लेता है।
- बच्चों और नवयुवाओं के जटिल भावनात्मक पारितंत्र होते हैं जो आसानी से अपने परिवेश से (जिसमें अच्छे ग्रेड के लिये माता-पिता का दबाव, सोशल मीडिया संलग्नता और संबंधजनक समस्याएँ आदि शामिल हैं) प्रभावित हो जाते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।
- भेदभाव और लापरवाही: मानसिक रूप से बीमार रोगी भेदभाव, शारीरिक एवं यौन शोषण, गलत तरीके से बंद रखे जाने (यहाँ तक कि घर में भी) के शिकार होते हैं, जो चिंता का विषय है और घोर मानवाधिकार उल्लंघन को भी प्रकट करता है।
- विशेष रूप से, दिव्यांग जनों को विभिन्न प्रकार की संरचनात्मक और वैचारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिनका उनकी वास्तविक सीमाओं या अक्षमताओं से कोई संबंध नहीं होता।
- वे आम लोगों की तुलना में दुर्व्यवहार और उपेक्षा का अधिक शिकार होते हैं जो दैनिक जीवन में उनकी गतिशीलता एवं भागीदारी को आगे और सीमित कर देता है।
- विशेष रूप से, दिव्यांग जनों को विभिन्न प्रकार की संरचनात्मक और वैचारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिनका उनकी वास्तविक सीमाओं या अक्षमताओं से कोई संबंध नहीं होता।
- जागरूकता की कमी: मानसिक विकार के अधिकांश रोगियों को यह पता नहीं होता है कि यह वास्तव में चिंता का विषय है और उनका उपचार नहीं होता है। मानसिक रोग के लक्षणों के बारे में जागरूकता की कमी, इससे जुड़े मिथक एवं कलंक, उपचार की उपलब्धता एवं उपचार के संभावित लाभ के बारे में जानकारी की कमी बड़ी संख्या में रोगियों को देखभाल से वंचित रखती हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की कमी: इसके साथ ही, निम्न लागत वाले नैदानिक परीक्षणों और उपचार की आसान उपलब्धता की कमी भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्या का मुक़ाबला करने के मार्ग में प्रमुख बाधा है।
- मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोविज्ञानी (0.07) और सामाजिक कार्यकर्ता (0.07) सहित भारत में मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल (प्रति 100,000 जनसंख्या) का अनुपात पर्याप्त रूप से कम है।
- इसके अलावा, उपचार के लिये समुदाय का अलौकिक शक्तियों में विश्वास निदान एवं उपचार में देरी का कारण बनता है।
आगे की राह
- समावेशी और प्रत्यास्थी स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: सामूहिक सामाजिक स्वास्थ्य, मानवाधिकारों पर आधारित सस्ती एवं गुणवत्तापूर्ण देखभाल सेवा तक पहुँच और जैव चिकित्सा प्रतिमान के बजाय मनो-सामाजिक दृष्टिकोण पर बल देने के साथ मानसिक स्वास्थ्य पहलुओं को शामिल करते हुए एक अधिक समावेशी एवं प्रत्यास्थी स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- इसके साथ ही, भौतिक अवसंरचना का उन्नयन करने और अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों एवं कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के साथ मानव संसाधनों को सुदृढ़ करने (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) की भी आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता: यह महत्त्वपूर्ण है कि मानसिक विकार से संबंधित कलंक को दूर किया जाए, जिसके लिये मशहूर हस्तियों एवं सोशल इन्फ्लूएंसर आदि की सहायता से लक्षित जागरूकता एवं आउटरीच अभियान चलाए जा सकते हैं।
- इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में गैर सरकारी संगठनों की सहायता लेने और स्थानीय समुदायों एवं स्थानीय सरकारों की गहन भागीदारी की भी आवश्यकता है।
- योग और ध्यान केंद्रों का विस्तार: योग और ध्यान के विस्तार से भी भारी राहत प्राप्त होगी।
- नागरिक समाज द्वारा समुदाय आधारित संगठनों के सहयोग से उनकी क्षमताओं का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन इन पहलों को सरकार द्वारा दृढ़ता से समर्थन देना भी आवश्यक होगा।
- समेकित आत्महत्या रोकथाम रणनीति: भारत को राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर एक ‘समेकित आत्महत्या रोकथाम रणनीति’ (Concerted Suicide Prevention Strategy) की आवश्यकता है।
- स्कूल स्तर पर, ‘मेंटॉर-मेंटी प्रोग्राम’ शुरू किये जा सकते हैं ताकि छात्र अपने परामर्शदाता/मेंटॉर के सामने स्वयं को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त कर सकें, जो फिर उन्हें मानसिक विकार की चपेट में आने से बचने में सहायता कर सकते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य को कलंक-मुक्त बनाना: मानसिक विकारों के प्रति उदासीनता या कोताही को कम किया जा सकता है यदि मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक अवधारणा के रूप में देखने की बजाय स्वास्थ्य साक्षरता में सुधार, स्वयं सहायता समूहों की स्थापना और संबंधित व्यक्तियों को भावनात्मक समर्थन देने के सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में देखा जाए।
अभ्यास प्रश्न: भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की प्रभावकारिता एवं विकास की राह की प्रमुख बाधाओं की चर्चा करें और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिये अभिनव समाधान भी सुझाएँ।