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मानसिक स्वास्थ्य: भारत में अनौपचारिक श्रम का अदृश्य प्रभाव

  • 13 Oct 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 09/10/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Mental health and the floundering informal worker” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में अनौपचारिक कामगारों के समक्ष विद्यमान मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और उनके संभावित समाधानों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी), मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017, किरण हेल्पलाइन, सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGS), सतत विकास लक्ष्य (SDGs), MANAS (मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य स्थिति संवर्धन प्रणाली)।

मेन्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य: मानसिक स्वास्थ्य पर अनौपचारिक कार्य का प्रभाव, खराब मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव, सरकार द्वारा उठाए गए कदम, मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये उठाए जा सकने वाले कदम

इस वर्ष 10 अक्टूबर 2023 को मनाये गए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (World Mental Health Day) का मुख्य विषय या थीम है—‘एक सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में मानसिक स्वास्थ्य’। जब मानसिक स्वास्थ्य की बात आती है तो एक वर्ग जिसकी प्रायः अनदेखी कर दी जाती है, वह है अनौपचारिक कामगार (informal worker) वर्ग। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) के एक अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर कार्यशील आयु के 15% वयस्क मानसिक विकार (mental disorder) के शिकार हैं।

उल्लेखनीय है कि एक ओर अनुकूल कार्य दशाएँ मानसिक स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं तो दूसरी ओर बेरोज़गारी, अस्थिर या अनिश्चित रोज़गार, कार्यस्थल भेदभाव और खराब एवं विशेष रूप से असुरक्षित कामकाजी माहौल जैसे कारक किसी कामगार के मानसिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। निम्न वेतन, प्रोत्साहन के अभाव या असुरक्षित नौकरियों से संलग्न कामगार अथवा वे कामगार जो अलग-थलग रूप से कार्यरत होते हैं, मनोसामाजिक जोखिमों के संपर्क में आने की अधिक संभावना रखते हैं; इस प्रकार उनके मानसिक स्वास्थ्य से समझौता होता है।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey) 2019 के अनुसार, भारत में सभी वयस्कों में से लगभग 14% किसी न किसी प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के शिकार हैं या इसकी संभावना रखते हैं। माना जाता है कि देश में लगभग 56 मिलियन लोग अवसाद (depression) से पीड़ित हैं, जबकि अन्य 38 मिलियन लोग दुश्चिंता विकारों (anxiety disorders) से पीड़ित हैं।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है और इसका क्या महत्त्व है?

  • परिभाषा: WHO के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य मानसिक सेहत की वह स्थिति है जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं को साकार करने, अच्छी तरह से सीखने एवं अच्छी तरह से काम करने (learn well and work well) और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है।
    • यह स्वास्थ्य और सेहत का एक अभिन्न अंग है जो निर्णय लेने, संबंध बनाने और जिस दुनिया में हम रहते हैं उसे आकार देने की हमारी व्यक्तिगत एवं सामूहिक क्षमताओं को रेखांकित करता है।
  • महत्त्व: मानसिक स्वास्थ्य एक बुनियादी मानव अधिकार है और व्यक्तिगत एवं सामुदायिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। यह एक वैश्विक मुद्दा भी है जिसके लिये सामूहिक कार्रवाई और जागरूकता की आवश्यकता है।
    • इसके महत्त्व को देखते हुए ही वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ (WFMH) हर वर्ष 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, पक्षसमर्थन और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का आयोजन करता है।
  • अनौपचारिक कार्य मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?
  • नियामक सुरक्षा का अभाव: भारत के अनौपचारिक कामगार, जो कुल कार्यबल में 90% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं, प्रायः नियामक सुरक्षा के बिना कार्यरत होते हैं। इसका अर्थ यह है कि उनके पास नौकरी की सुरक्षा, कानूनी अधिकार और लाभों तक पहुँच का अभाव होता है, जिससे उनके अंदर लगातार भेद्यता/असुरक्षा (vulnerability) एवं तनाव (stress) की एक भावना बनी रहती है, जो मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
  • असुरक्षित कार्य वातावरण: कई अनौपचारिक कामगार असुरक्षित कार्य परिस्थितियों में कार्यरत होते हैं, जिससे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और चोटों का भय दुश्चिंता एवं तनाव में योगदान कर सकता है।
  • कार्य के लंबे घंटे और अनिश्चितता: अनौपचारिक कामगारों को प्रायः लंबे समय तक काम करना पड़ता है और उनकी आय भी अनिश्चित होती है। यह अस्थिरता और अनिश्चितता दीर्घकालिक तनाव, दुश्चिंता और अवसाद का कारण बन सकती है, क्योंकि वे अपने भरण-पोषण की पूर्ति के लिये संघर्षरत होते हैं।
  • सामाजिक और वित्तीय सुरक्षा तक सीमित पहुँच: अनौपचारिक कामगारों के पास स्वास्थ्य बीमा या पेंशन योजनाओं जैसे सामाजिक सुरक्षा जाल तक सीमित पहुँच होती है या इसका अभाव होता है। वित्तीय सुरक्षा की यह कमी असुरक्षा की भावना को बढ़ा सकती है और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में योगदान कर सकती है।
    • अनौपचारिक कामगारों को ऋणग्रस्तता और बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत के कारण मानसिक संकट का सामना करना पड़ता है, जो परस्पर संबद्ध हैं और एक-दूसरे को प्रबल करते हैं।
      • भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय में जेबी खर्च (Out-of-Pocket Expenditure- OOPE) की हिस्सेदारी 47.1% है।
    • भारत भी अगले 20 वर्षों में एक वृद्ध समाज में परिणत हो जाएगा। तेज़ी से बढ़ते इस आबादी समूह—जो विशेष रूप से खराब मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील है, के लिये कोई स्पष्ट सामाजिक सुरक्षा रोडमैप मौजूद नहीं है।
      • भारत की जनगणना 2011 से पता चलता है कि 33 मिलियन वृद्ध लोग सेवानिवृत्ति के बाद अनौपचारिक कार्य में संलग्न थे।
  • लैंगिक भेदभाव: लैंगिक असमानता की स्थिति भी गंभीर हैं, जहाँ भारत की 95% से अधिक कार्यशील महिलाएँ प्रायः बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के अनौपचारिक, निम्न वेतन प्राप्त और अनिश्चित रोज़गार में संलग्न हैं। इसके साथ ही, उन्हें अपने सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था में पितृसत्तात्मक संरचनाओं एवं अभ्यासों का सामना करना पड़ता है।
  • युवा बेरोज़गारी: भारत में युवा बेरोज़गारी के उच्च स्तर का युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है। बेरोज़गारी से जुड़ा कलंक युवाओं में अयोग्यता, दुश्चिंता और अवसाद की भावना पैदा कर सकता है।
  • अनियत कार्य: युवा कामगार प्रायः हताशा के कारण अनौपचारिक क्षेत्र में निम्न वेतन प्राप्त और अनियत नौकरियों को स्वीकार करने के लिये विवश होते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। खराब कामकाजी दशाएँ और निम्न वेतन प्राप्त रोज़गार असंतोष और तनाव में योगदान करते हैं।

खराब मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख प्रभाव:

  • जीवन की गुणवत्ता में कमी: मानसिक स्वास्थ्य दशाओं का सामना कर रहे लोग सेहत, ख़ुशी और संतुष्टि के निम्न स्तर का अनुभव कर सकते हैं। उन्हें तनाव से निपटने, अपनी क्षमता को साकार करने और अपने संबंधों का आनंद लेने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • खराब शारीरिक स्वास्थ्य: मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच एक मज़बूत संबंध पाया जाता है। खराब मानसिक स्वास्थ्य से गंभीर तनाव, नींद में खलल और बीमारी के प्रति संवेदनशीलता जैसी शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • आत्म-क्षति और आत्महत्या का जोखिम: खराब मानसिक स्वास्थ्य आत्म-क्षति (Self-Harm) और आत्महत्या के लिये एक प्रमुख जोखिम कारक है। जोखिम का सामना कर रहे व्यक्तियों के लिये उचित सहायता और हस्तक्षेप प्रदान करना आवश्यक है।
  • कार्य और उत्पादकता: खराब मानसिक स्वास्थ्य के कारण उत्पादकता में कमी, अनुपस्थित रहने की प्रवृत्ति और कार्य या स्कूल में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप नौकरी छूटने, शैक्षणिक उपलब्धि में कमी और वित्तीय कठिनाइयों जैसे परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
  • आर्थिक बोझ: मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोगों को उपचार, यात्रा और देखभाल के लिये उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है। वे अनुपस्थित रहने की प्रवृत्ति (absenteeism), बिना अवकाश कार्यरत बने रहने की प्रवृत्ति (presenteeism) या बेरोज़गारी के कारण आय एवं उत्पादकता भी खो सकते हैं। इसके अलावा, खराब मानसिक स्वास्थ्य देशों और क्षेत्रों के आर्थिक विकास एवं वृद्धि को भी प्रभावित कर सकता है।
    • WHO के अनुसार, वर्ष 2012 से 2030 के बीच भारत में खराब मानसिक स्वास्थ्य की आर्थिक लागत 1.03 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होगी।
  • सामाजिक कलंक और भेदभाव: मानसिक स्वास्थ्य दशाओं से पीड़ित लोगों को अन्य लोगों की ओर से नकारात्मक दृष्टिकोण, रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सेवाओं तक पहुँच में बाधाओं एवं असमानताओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

सरकार द्वारा उठाये गए प्रमुख कदम:

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP): मानसिक विकारों के भारी बोझ और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये भारत सरकार वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम क्रियान्वित कर रही है।
    • इस कार्यक्रम को वर्ष 2003 में दो अन्य योजनाओं—‘राज्य मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण’ और ‘मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों के मनोरोग विभागों का उन्नयन’ को शामिल करने के लिये इसे नया स्वरूप प्रदान किया गया।
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (Mental HealthCare Act) 2017: यह प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित सेवाओं से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है।
    • इसने IPC की धारा 309 के उपयोग की गुंजाइश को पार्यप्त कम कर दिया है और आत्महत्या के प्रयास को केवल अपवाद के रूप में ही दंडनीय बनाया है।
  • किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने दुश्चिंता, तनाव, अवसाद, आत्मघाती विचारों और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन ‘किरण’ की शुरुआत की।
  • मानस मोबाइल ऐप: सभी आयु समूहों में मानसिक सेहत को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2021 में मानस (MANAS: Mental Health and Normalcy Augmentation System) मोबाइल ऐप लॉन्च किया।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

  • सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाना: सुनिश्चित किया जाए कि सामाजिक सुरक्षा उपाय अनौपचारिक कामगारों सहित सभी के लिये सुलभ हों। इसमें मौजूदा योजनाओं के कवरेज का विस्तार करना या विशेष रूप से उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप नई योजनाएँ तैयार करना शामिल हो सकता है।
    • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा को एक लक्ष्य के रूप में स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 का पुनर्मूल्यांकन और संशोधन किया जाए। अनौपचारिक कामगारों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये नीति सुधार आवश्यक है।
  • मानसिक स्वास्थ्य के लिये वित्तपोषण बढ़ाना: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये कुल स्वास्थ्य बजट के अधिक प्रतिशत का आवंटन किया जाए। दैनिक वेतन भोगी और अन्य कमज़ोर समूहों के सामने मौजूद उल्लेखनीय मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को देखते हुए, मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना में अधिक निवेश करना अत्यंत आवश्यक है।
    • मानसिक स्वास्थ्य के लिये भारत का बजटीय आवंटन वर्तमान में कुल स्वास्थ्य बजट के 1% से भी कम है। यह मामूली आवंटन भी डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम पर अधिक केंद्रित है।
  • मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में विविधता लाना: मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का विस्तार केवल डिजिटल पहलों तक सीमित नहीं हो। यद्यपि डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, उन्हें समुदाय-आधारित देखभाल और मानवाधिकार-उन्मुख दृष्टिकोण के साथ पूरकता प्रदान की जानी चाहिये, जैसा कि विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट 2022 द्वारा अनुशंसित किया गया है।
  • जागरूकता और पहचान को बढ़ावा देना: लोगों में, विशेष रूप से अनौपचारिक कामगारों के बीच मानसिक स्वास्थ्य पहचान और जागरूकता में सुधार के लिये सक्रिय नीतियों को लागू किया जाना चाहिये। इसमें कलंक को कम करने और शीघ्र हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना शामिल हो सकता है।
  • आर्थिक स्थिरता को समर्थन देना: दैनिक वेतन भोगियों को नौकरी की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता प्रदान करने के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MNREGS) जैसे रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में आर्थिक संकट का महत्त्वपूर्ण योगदान है और स्थिर रोज़गार इसे कम करने में मदद कर सकता है।
  • बुनियादी मानवाधिकार सुनिश्चित करना: यह अच्छे स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य सहित) के बुनियादी मानवाधिकार को बनाये रखने और सतत विकास लक्ष्योंविशेष रूप से SDG 3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं सेहत) और SDG 8 (सभी के लिये उचित कार्य/आर्थिक विकास) को आगे बढ़ाने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • सहयोग और साझेदारी: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने और हाशिए पर स्थित समुदायों तक पहुँच बनाने के लिये गैर-सरकारी संगठनों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग का निर्माण किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर अनौपचारिक कार्य के प्रभाव और इस संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा करते हुए, देश में अनौपचारिक श्रमिकों की मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को संबोधित करने के लिये अतिरिक्त नीतिगत उपायों को प्रस्तावित कीजिये।

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