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डेली न्यूज़

  • 22 May, 2024
  • 65 min read
भारतीय राजनीति

भारत में विचाराधीन कैदी मताधिकार से वंचित

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा चुनाव, मताधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, मौलिक अधिकार, भारत का निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये:

भारत में विचाराधीन कैदियों को मताधिकार से वंचित रखने के कानून, विचाराधीन कैदियों का मताधिकार, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में चल रहे 18वीं लोकसभा के चुनाव के मद्देनज़र, देश भर की जेलों में बंद चार लाख से अधिक विचाराधीन कैदी व्यापक कानूनी प्रतिबंध के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग करने में असमर्थ हैं।

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of People Act, 1951- RPA) जेल में बंद व्यक्तियों के लिये मतदान पर प्रतिबंध लगाता है, भले ही वे दोषी ठहराए गए हों या मुकदमे की प्रतीक्षा में हों।

नोट: 

  • विचाराधीन कैदी वह व्यक्ति होता है जिस पर वर्तमान में मुकदमा चल रहा होता है या जो मुकदमे की प्रतीक्षा करते हुए रिमांड में कैद होता है या वह व्यक्ति जिस पर न्यायालय में मुकदमा चल रहा होता है। 
    • विधि आयोग की 78वीं रिपोर्ट में 'विचाराधीन कैदी' की परिभाषा में उस व्यक्ति को भी शामिल किया गया है जो जाँच के दौरान न्यायिक अभिरक्षा में होता है।
  • भारत में अपराध, 2022 रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि लगभग 500,000 से अधिक व्यक्ति,अपने कारावास के कारण वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने में असमर्थ होंगे।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत की जेलों में 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे, जो जेल में बंद कुल कैदियों की संख्या 5,73,220 का 76% थे।

विचाराधीन कैदियों को मतदान से रोका क्यों जाता है?

  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5):
    • कारावास या निर्वासन की सज़ा के तहत या पुलिस की वैध अभिरक्षा में जेल में बंद किसी व्यक्ति को किसी भी चुनाव में मतदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
      • मतदान से प्रतिबंधित होने के बावजूद, जिस व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में है, वह मतदान करेगा।
    • मतदान पर प्रतिबंध किसी मौजूदा कानून के तहत निवारक निरोध में रखे गए व्यक्ति पर लागू नहीं होता है।
    • इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, जिसमें संसाधनों की कमी और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनावी परिदृश्य से दूर रखने की आवश्यकता जैसे कारणों का उल्लेख किया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को संविधान की 'आधारभूत संरचना' के भाग के रूप में मान्यता देता है, लेकिन यह मतदान के अधिकार (अनुच्छेद 326) और निर्वाचित होने को मौलिक अधिकारों के बजाय वैधानिक अधिकार में अंतर स्पष्ट करता है, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैसे कानूनों द्वारा लगाए गए नियमों के अधीन है।
      • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 वयस्क मताधिकार का प्रावधान करता है। इसके अनुसार, 18 वर्ष से अधिक की आयु वाले प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार है, जब तक कि उसे अनिवासी, मानसिक अस्वस्थता, अपराध या भ्रष्ट आचरण के आधार पर अयोग्य न ठहराया जाए।
  • दोषसिद्धि के बाद ही चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध:
    • RPA, 1951 की धारा 8 किसी व्यक्ति को केवल कुछ अपराधों के लिये दोषी ठहराए जाने पर ही चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करती है, न कि केवल आरोप लगाए जाने पर।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक आरोपों वाले या झूठे शपथ-पत्र दाखिल करने वालों को अयोग्य ठहराने की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें कहा गया है कि केवल विधायिका ही RPA, 1951 में परिवर्तन कर सकती है।
    • अयोग्यता के अपवाद: 
      • भारत निर्वाचन आयोग कुछ परिस्थितियों में अयोग्यता की अवधि को परिवर्तित कर सकता है।
      • एक अयोग्य सांसद या विधायक तब भी चुनाव लड़ सकता है यदि उच्च न्यायालय में अपील पर उसकी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी जाती है।

कैदियों को मताधिकार से वंचित करने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • अंग्रेज़ी ज़ब्ती अधिनियम, 1870: इसने राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी व्यक्तियों को अयोग्य घोषित कर दिया।
    • इसके पीछे तर्क यह था कि एक बार जब किसी को ऐसे गंभीर अपराधों के लिये दोषी ठहराया जाता है, तो वह मताधिकार सहित अपने अन्य अधिकारों से भी वंचित हो जाता है।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935: परिवहन, दंडात्मक दासता या कारावास की सज़ा काट रहे व्यक्तियों को मतदान करने से रोक दिया गया था।
    • हालाँकि, RPA, 1951 ने इस तरह की मताधिकार से वंचितता को परिभाषित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। इसमें निर्दिष्ट किया गया है कि जेल में बंद व्यक्ति, कारावास या आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं या अन्यथा विधिपूर्ण पुलिस अभिरक्षा (कस्टडी) में निरोधित हैं, मतदान के लिये अयोग्य हैं। यह प्रावधान केवल निवारक हिरासत में रखे गए लोगों को निष्काषित करता है।

क्या विचाराधीन कैदियों के पास मताधिकार होना चाहिये?

विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति देने के पक्ष में तर्क

विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति देने के विपक्ष में तर्क

  • निर्दोषता की धारणा: अपराध सिद्ध होने तक विचाराधीन कैदियों को निर्दोष माना जाता है। उन्हें मताधिकार से वंचित करने को दोषसिद्धि से दंडात्मक कार्रवाई के रूप में देखा जा सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति केवल हिरासत की स्थिति के आधार पर मताधिकार से वंचित करने को निर्दोषता की धारणा का उल्लंघन मानती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने विचाराधीन कैदियों को वोट देने से रोकना उन्हें दो बार सज़ा देने के समान माना।
  • सार्वजनिक सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति देने से मतदाताओं को डराने-धमकाने या चुनावी हस्तक्षेप से संबंधित चिंताएँ बढ़ सकती हैं, विशेषकर गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में।
  • प्रतिनिधित्व और राजनीतिक भागीदारी: विचाराधीन कैदियों को मतदान करने की अनुमति यह सुनिश्चित करती है कि उनके हितों और दृष्टिकोणों का राजनीतिक प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व किया जाता है, जिसमें जेल की स्थिति एवं आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित करने वाली नीतियाँ भी शामिल हैं।
  • तार्किक चुनौतियाँ: जेल के वातावरण में विचाराधीन कैदियों के लिये मतदान की सुविधा चुनाव अधिकारियों के लिये तार्किक और प्रशासनिक चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती है, जैसे मतपत्र की गोपनीयता सुनिश्चित करना और प्रपीड़न को रोकना।
  • कैदियों ने सामाजिक व्यवस्था का उल्लंघन किया है और स्वेच्छा से स्वयं को सामाजिक व्यवस्था से दूर रखा है।
  • सामाजिक व्यवस्था पर समझौता नहीं किया जा सकता।
  • मताधिकार से वंचित चिंताएँ: विचाराधीन कैदियों को मताधिकार से वंचित करने के रूप में देखा जा सकता है, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समूहों के लिये, जिन्हें परीक्षण-पूर्व हिरासत में असमान रूप से प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।
  • निरोध की अस्थायी प्रकृति: विचाराधीन कैदी अस्थायी हिरासत की स्थिति में हैं और मतदान के अधिकार संभावित रूप से बरी होने या सज़ा पूर्ण होने पर बहाल किये जा सकते हैं।
  • मताधिकार: आलोचकों का तर्क है कि विचाराधीन कैदियों को मताधिकार से वंचित करना भेदभावपूर्ण है और समानता के सिद्धांत (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है।
    • दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस और कनाडा जैसे देशों के विपरीत, प्रतिबंध में अपराध की प्रकृति या सज़ा की अवधि के आधार पर उचित वर्गीकरण का अभाव है।
  • इसके अतिरिक्त, विचाराधीन कैदियों को मतदान करने की अनुमति न देने से ज़मानत पर छूटे दोषियों, जो मतदान कर सकते हैं और उन विचाराधीन कैदियों, जो मतदान नहीं कर सकते हैं, के बीच अंतर उत्पन्न होता है, जिससे अतार्किक भेदभाव होता है।
  • सज़ा और निवारण: कुछ लोगों का तर्क है कि मतदान सहित अधिकारों की हनन, आपराधिक कार्यवाही में शामिल होने के परिणामस्वरूप होती है और आपराधिक व्यवहार के विरुद्ध निवारक के रूप में कार्य कर सकती है।

भारत में मतदान के अधिकार के संबंध में कानूनी पूर्वाधिकार:

  • इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण मामला, 1975:  सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव भारत के संविधान की 'बुनियादी संरचना' का एक हिस्सा हैं और ऐसा कोई भी कानून या नीति जो इस सिद्धांत का उल्लंघन करेगी, उसे रद्द किया जा सकता है।
  • प्रवीण कुमार चौधरी बनाम चुनाव आयोग और अन्य मामले: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार न तो संवैधानिक है और न ही मौलिक, बल्कि यह केवल वैधानिक अधिकार है।
    • न्यायालय ने धारा 62 (5) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए पुष्टि की है कि कैदियों को वोट देने का अधिकार नहीं है।
  • पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज़ (PUCL) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस, 2003: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मतदान का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्रदान किया गया एक संवैधानिक अधिकार है। लेकिन मतदान के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
  • अनुकूल चंद्र प्रधान, अधिवक्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामला, 1997: न्यायालय ने RPA की धारा 62(5) की संवैधानिकता को बरकरार रखा, जो कैदियों को मताधिकार से वंचित करती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने तीन मुख्य औचित्यों का हवाला दिया:
      • कैदी अपने आचरण के कारण कुछ स्वतंत्रताएँ खो देते हैं।
      • कैदियों के मतदान के लिये बढ़ती सुरक्षा आवश्यकताओं के कारण तार्किक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
      • आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करना।

आगे की राह

  • जैसे-जैसे चुनावी प्रणालियाँ बदलती हैं और समावेशिता बढ़ती है वैसे-वैसे जेल में बंद कैदियों के बीच राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये वैकल्पिक रणनीतियों, जैसे मोबाइल वोटिंग इकाइयाँ या अनुपस्थित मतपत्र (Absentee Ballots), को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • कैदियों के लिये मतदान के अधिकार के महत्त्व एवं पुनर्वास तथा पुनः एकीकरण के लक्ष्य को देखते हुए, कैदियों को अत्यधिक हाशिये पर धकेलने के बजाय निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सार्थक रूप से भाग लेने के अवसर देने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
  • मतदान के अधिकार के संदर्भ में दोषी ठहराए गए कैदियों और मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे कैदियों के बीच अंतर किया जाना चाहिये।
  • भारतीय संविधान में मतदान को एक मौलिक कर्त्तव्य (Fundamental Duty-FD) बनाने और बदले में मतदान को एक मौलिक अधिकार बनाने के लिये स्वर्ण सिंह समिति, 1976 की सिफारिश को शामिल किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में कैदियों को मताधिकार से वंचित करने के कानूनों के ऐतिहासिक संदर्भ और विकास की जाँच करें। इन कानूनों ने विचाराधीन कैदियों और दोषियों की लोकतांत्रिक भागीदारी को कैसे प्रभावित किया है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2021)

  1. जब एक कैदी पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है, तो ऐसे कैदी को पैरोल मना नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह उसके अधिकार का मामला बन जाता है।
  2. कैदी को पैरोल पर छोड़ने के लिये राज्य सरकारों के अपने नियम हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


जैव विविधता और पर्यावरण

वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम का 19वाँ सत्र

प्रिलिम्स के लिये:

वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम, वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र की रणनीतिक योजना (2017-2030), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), खाद्य और कृषि संगठन (FAO)

मेन्स के लिये:

UNFF 19 की मुख्य बातें, UNFF 19 में भारत द्वारा संशोधित राष्ट्रीय वन नीति अनुशंसाएँ 

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF) के 19वें सत्र में भाग लिया।

  • भारत ने वन संरक्षण और सतत् वन प्रबंधन में अपनी महत्त्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला, जिससे पिछले पंद्रह वर्षों में वन क्षेत्र में लगातार वृद्धि हुई है।

UNFF19 की मुख्य बातें क्या थीं?

  • भारत ने अपनी संशोधित राष्ट्रीय वन नीति प्रस्तुत की जिसमें अनुशंसाएँ और तकनीकी समाधानों के माध्यम द्वारा वनाग्नि की रोकथाम एवं प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया।
    • UNFF के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 100 मिलियन हेक्टेयर वन या विश्व के कुल वन क्षेत्र का 3% आग से प्रभावित होता है।
    • भारत ने ग्लोबल फायर मैनेजमेंट हब के संचालन का प्रस्ताव रखा है, जो वनाग्नि को कम करने में ज्ञान और अनुभव साझा करने हेतु UNEP तथा FAO का एक सहयोगात्मक प्रयास है।
  • भारत विश्व भर में सुसंगत और ज़िम्मेदार वन प्रबंधन प्रथाओं के लिये वन प्रमाणन कार्यक्रमों हेतु मॉडल वन अधिनियम जैसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मानक स्थापित करने का सुझाव देता है।
  • फोरम ने वनों के लिये संयुक्त राष्ट्र की रणनीतिक योजना (2017-2030) की समीक्षा की तथा वनों के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को बढ़ाने तथा वित्त सुरक्षित करने जैसे वैश्विक वन लक्ष्यों को प्राप्त करने में हुई प्रगति की समीक्षा की।
  • संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में वनों के "जलवायुकरण" से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डाला गया है, जो कार्बन पृथक्करण के लिये बाज़ार-उन्मुख दृष्टिकोण से प्रेरित है, जिससे वनों की पारिस्थितिक और सामाजिक मूल्यों की भूमिका केवल कार्बन पृथक्करण के रूप में संदर्भित किया है, जिससे इनके पारिस्थितिक और सामाजिक मूल्य सीमित हुए हैं।
  • इंडोनेशिया ने अपनी फारेस्ट एंड अदर लैंड यूज़ नेट सिंक 2030 रणनीति प्रस्तुत की तथा मलेशिया ने अपने क्षेत्र का कम से कम 50% वृक्ष आवरण के तहत रखने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की।

 UNFF19 वन प्रबंधन में भारत की उल्लेखनीय पहल क्या थीं?

  • भारत ने वनाग्नि से निपटने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में अपनी सफलता पर प्रकाश डाला। 
    • उदाहरणों में रिमोट सेंसिंग (remote sensing) के माध्यम से वास्तविक-समय पर वनाग्नि की बेहतर निगरानी, वेब पोर्टल के माध्यम द्वारा वनाग्नि की ऑनलाइन रिपोर्टिंग और बहाली के लिये पारिस्थितिक उपायों का प्रयोग करना शामिल है।
      • वन सूची रिकॉर्ड के आधार पर, भारत में 54.40% वन प्राय: आग के संपर्क में आते हैं, 7.49% मध्यम रूप से बार-बार आग लगने और 2.40% उच्च स्तर की आग के संपर्क में आते हैं।
  • वर्ष 2010 से वर्ष 2020 के बीच औसत वार्षिक वन क्षेत्र में शुद्ध लाभ के मामले में भारत विश्व भर में तीसरे स्थान पर है।
  • भारत ने प्रजातियों के संरक्षण और आवास संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हुए प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष और प्रोजेक्ट एलीफेंट के 30 वर्ष पूरे कर लिये हैं।
  • भारत ने जलवायु कार्रवाई पहल को मज़बूत करने के लिये वृक्षारोपण और निष्क्रिय वन भूमि की बहाली को बढ़ाने के लिये 'ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम' की शुरुआत की।
  • वर्ष 2023 में भारत ने देहरादून में UNFF के तहत “देश के नेतृत्व वाली पहल (country-led Initiative under)” की मेज़बानी की, इस पहल में 40 देशों और 20 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इस दौरान वनाग्नि प्रबंधन एवं वन प्रमाणन पर ध्यान केंद्रित किया गया।

वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (United Nations Forum on Forests- UNFF)

  • परिचय:
  • प्रमुख वैश्विक वन संबंधी घटनाएँ:
    • 1992: एजेंडा 21 और "वन सिद्धांत" को पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अपनाया गया है।
    • 1995: वर्ष 1995 से वर्ष 2000 तक वन सिद्धांतों को लागू करने के लिये वनों पर अंतर सरकारी पैनल (1995) की स्थापना की गई थी।
    • 2000: UNFF को संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद के एक कार्यात्मक आयोग के रूप में स्थापित किया गया है।
    • 2006: UNFF वनों पर चार वैश्विक उद्देश्यों पर सहमत है।
      • स्थायी वन प्रबंधन (Sustainable Forest Management-SFM) के माध्यम से विश्वभर में वन क्षेत्र की हानि को कम करना;
      • वन-आधारित आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ को बढ़ाना;
      • सतत् रूप से प्रबंधित वनों के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि करना;
      • स्थायी वन प्रबंधन (SFM) के लिये आधिकारिक विकास सहायता को प्राप्त करना;
      • SFM के कार्यान्वयन के लिये अधिक वित्तीय संसाधन जुटाना।
    • 2007: UNFF ने सभी प्रकार के वनों पर संयुक्त राष्ट्र के गैर-कानूनी बाध्यकारी उपकरण (वन उपकरण) को अपनाया।
    • 2011: अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष, "लोगों के लिये वन"।

भारतीय वन नीति के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं? 

  • राष्ट्रीय वन नीति, 1894 (औपनिवेशिक दृष्टिकोण):
    • नीति में लकड़ी के उत्पादन और संरक्षक प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई।
    • वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान क्षेत्रों के संरक्षण पर ज़ोर देने के साथ वन वर्गीकरण शुरू किया गया था।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1952 (राष्ट्रीय आवश्यकताएँ):
    • यह नीति भूमि-उपयोग प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर केंद्रित है।
    • इसने राष्ट्रीय विकास के लिये लकड़ी, चरागाह और ईंधन लकड़ी जैसे संसाधनों को सुरक्षित करने पर ज़ोर दिया।
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1988 (पारिस्थितिक सुरक्षा):
    • इसमें पर्यावरणीय स्थिरता, जैवविविधता संरक्षण और मृदा एवं जल सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई।
    • बड़े पैमाने पर वनीकरण और सामाजिक वानिकी कार्यक्रमों का समर्थन किया गया।
  • मसौदा राष्ट्रीय वन नीति, 2018 (समसामयिक चुनौतियाँ):
    • जलवायु परिवर्तन और मानव-वन्यजीव संघर्ष जैसे आधुनिक मुद्दों के समाधान के लिये प्रस्तावित संशोधन।
    • जलवायु परिवर्तन को कम करने और वन बहाली के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

भारत में वन:

नवीनतम भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021 के अनुसार, देश का कुल वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.72% है।

निष्कर्ष:

UNFF19 में भारत की भागीदारी ने वन संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन में इसकी सफलता को प्रदर्शित किया। भारत ने तकनीकी समाधानों के साथ एक व्यापक राष्ट्रीय वन नीति का प्रस्ताव रखा और ज्ञान-साझाकरण मंच के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का आह्वान किया। जबकि उच्च-स्तरीय घोषणा अभी भी चर्चा में है, UNFF19 ने वैश्विक वन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदमों पर ज़ोर दिया।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वन प्रबंधन के संबंध में प्रमुख भारतीय पहलों पर चर्चा कीजिये। साथ ही, भारत में व्यापक वन प्रबंधन प्रणाली को लागू करने के तरीके भी सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. FAO, पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौम रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली [Globally Important Agricultural System (GIAHS)]' की हैसियत प्रदान करता है। (2016)

इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है?

  1. अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए। 
  2. पारितंत्र-अनुकूली परंपरागत कृषि पद्धतियाँ और उनसे संबंधित परिदृश्य (लैंडस्केप), कृषि जैवविविधता एवं स्थानीय समुदायों के ज्ञानतंत्र का अभिनिर्धारण व संरक्षण करना।
  3. इस प्रकार अभिनिर्धारित GIAHS के सभी भिन्न-भिन्न कृषि उत्पादों को भौगोलिक सूचक (जिओग्राफिकल इंडिकेशन) की हैसियत प्रदान करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. राष्ट्रीय स्तर पर, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. भारत का एक विशेष राज्य निन्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थिंत है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र बन आवस्णान्तर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक ऊपर दी गई सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखण्ड

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)


आंतरिक सुरक्षा

अंतर-सेवा संगठन अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर-सेवा संगठन (ISO) (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम, सेना अधिनियम, 1950, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)

मेन्स के लिये:

अंतर-सेवा संगठन (ISO) अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ, सशस्त्र बलों के एकीकरण का महत्त्व  

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सरकार ने अंतर-सेवा संगठन (कमान, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम को अधिसूचित किया है, जो अंतर-सेवा संगठनों के कमांडर-इन-चीफ या ऑफिसर-इन-कमांड को सेना की सभी शाखाओं के कर्मियों का प्रबंधन करने, संचालन को सुव्यवस्थित करने तथा सहयोग को बढ़ावा देने का अधिकार देता है। 

अंतर-सेवा संगठन {Inter-Services Organisations (Command, Control, and Discipline) Act - ISO} अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्तमान में सशस्त्र बल सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 और वायु सेना अधिनियम, 1950 जैसे विशिष्ट सेवा अधिनियमों के तहत कार्य करते हैं।
      • हालाँकि, इन कृत्यों की विविध प्रकृति कभी-कभी अंतर-सेवा प्रतिष्ठानों में समान अनुशासन, समन्वय और त्वरित कार्यवाही बनाए रखने में चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
    • ISO अधिनियम मौजूदा सेवा अधिनियमों, नियमों या विनियमों में किसी भी बदलाव का प्रस्ताव नहीं करता है।
  • अधिनियम की विशेषताएँ:
    • ISO नेतृत्व को सशक्त बनाना:
      • यह अधिनियम ISO के कमांडर-इन-चीफ और ऑफिसर-इन-कमांड को उनकी विशिष्ट शाखा (सेना, नौसेना, वायु सेना) की परवाह किये बिना, उनकी कमान के तहत सेवा कर्मियों पर अनुशासनात्मक एवं प्रशासनिक नियंत्रण रखने का अधिकार देता है।
      • यह कमांड संरचना को सरल बनाता है और ISO के भीतर कुशल निर्णय लेना सुनिश्चित करता है।
    • ISO का गठन और वर्गीकरण:
      • अंडमान और निकोबार कमान, रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी जैसे मौजूदा ISO को अधिनियम के तहत औपचारिक रूप से मान्यता दी जाएगी।
      • केंद्र सरकार एक अंतर-सेवा संगठन का गठन कर सकती है जिसमें तीन सेवाओं: सेना, नौसेना और वायु सेना में से कम-से-कम दो से संबंधित कर्मचारी हों।
        • ISO को एक ऑफिसर-इन-कमांड के अधीन रखा जाएगा।
      • एक संयुक्त सेवा कमान (त्रि-सेवा) भी बनाई जा सकती है, जिसे कमांडर-इन-चीफ की कमान के तहत रखा जाएगा।
    • प्रयोज्यता और अहर्ताएँ:
      • इसे सेना, नौसेना और वायु सेना से अतिरिक्त अन्य केंद्रीय नियंत्रित बलों तक बढ़ाया जा सकता है।
      • यह कमांडर-इन-चीफ और ऑफिसर्स-इन-कमांड के लिये पात्रता मानदंडों को निर्धारित करता है, जिसमें प्रत्येक सेवा के उच्च पदस्थ अधिकारियों को निर्दिष्ट किया जाता है।
    •  नियंत्रण और कमांडिंग ऑफिसर:
      • केंद्र सरकार ISO पर अंतिम अधिकार रखती है तथा राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रशासन और सार्वजनिक हित से संबंधित निर्देश जारी कर सकती है।
      • यह ISO के अंतर्गत एक विशिष्ट इकाई, जहाज़ या प्रतिष्ठान के लिये ज़िम्मेदार कमांडिंग ऑफिसर पद की स्थापना करता है।
        • वे उच्च नेतृत्व द्वारा सौंपे गए कर्त्तव्यों का पालन करेंगे और उनके पास अपने आदेश के तहत कर्मियों के संबंध में अनुशासनात्मक या प्रशासनिक कार्रवाई शुरू करने का अधिकार होगा।

नोट:

  • भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर से संबंधित, संयुक्त कमांड भारतीय सशस्त्र बलों की पहली त्रि-सेवा थिएटर कमांड है।
    • भारतीय सशस्त्र बलों के पास वर्तमान में कुल 17 कमांड हैं। थल सेना और वायु सेना की 7-7 कमांड हैंनौसेना के पास केवल 3 कमांड हैं।
    • प्रत्येक कमांड का नेतृत्व एक 4-स्टार रैंक वाला सैन्य अधिकारी करता है।
  • सशस्त्र बलों का थियेटराइज़ेशन:
    • यह एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के लिये एकल एकीकृत कमांड संरचना के तहत सेना, वायु सेना और नौसेना का एकीकरण है।
    • इसके तहत उस क्षेत्र में तीनों सेनाओं की सभी संपत्तियों और संसाधनों को एक ही कमांडर के अधीन रखा जाता है जो सभी सैन्य अभियानों की योजना बनाने तथा उन्हें निष्पादित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।

सशस्त्र बलों के एकीकरण का क्या महत्त्व है?

  • संवर्धित परिचालन प्रभावशीलता:
    • संयुक्त योजना और प्रशिक्षण सेवाओं के बीच बेहतर समन्वय और समझ को बढ़ावा देते हैं, जो आधुनिक युद्ध के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • त्वरित निर्णय लेना:
    • एकीकृत इकाइयों के भीतर सुव्यवस्थित कमांड संरचनाएँ युद्ध के मैदान पर त्वरित निर्णय लेने की अनुमति देती हैं।
      • वर्ष 2019 में स्थापित चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) सरकार का एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार है, जो रक्षा योजना और खरीद में बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान करता है।
  • इष्टतम संसाधन उपयोग:

सशस्त्र बलों के एकीकरण के संबंध में सरकार की पहल:

निष्कर्ष: 

भारतीय सशस्त्र बलों के एकीकरण की प्रक्रिया एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण रही है और इस संदर्भ में किये गए अब तक के प्रयास सही दिशा में प्रतीत होते हैं। साथ ही चीन की इंफाॅर्मेशन सपोर्ट फोर्स, साइबरस्पेस फोर्स या संयुक्त राज्य अमेरिका की साइबरस्पेस फोर्स के समान आधुनिक युद्ध प्रणालियों को शामिल करने से आधुनिक युद्ध आवश्यकताओं तथा चुनौतियों के अनुकूल बनने में भारत की रक्षा-संबंधी क्षमताओं में वृद्धि हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अंतर-सेवा संगठन (Inter-Services Organisations -ISOs) अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। सशस्त्र बलों के एकीकरण से संबंधित महत्त्व और चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संविधान में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का कहाँ उल्लेख है?  (2014) 

(a) संविधान की उद्देशिका में
(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों में
(c) मूल कर्त्तव्यों में
(d) नौवीं अनुसूची में

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "बहुधार्मिक व बहुजातीय समाज के रूप में भारत की विविध प्रकृति, पड़ोस में दिख रहे अतिवाद के संघात के प्रति निरापद नहीं है।" ऐसे वातावरण के प्रतिकार के लिये अपनाई जाने वाली रणनीतियों के साथ विवेचना कीजिये। [2014]


शासन व्यवस्था

स्वयं सहायता समूह

प्रिलिम्स के लिये:

कुदुम्बश्री मिशन, स्वयं सहायता समूह (SHG), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), SHG-बैंक लिंकेज प्रोग्राम (SBLP), वित्तीय समावेशन मिशन (MFI), ई-शक्ति परियोजना

मेन्स के लिये:

वित्तीय समावेशन, महिला सशक्तीकरण, माइक्रोफाइनेंस, सामुदायिक विकास, गरीबी उन्मूलन, स्वयं सहायता समूह

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में स्वयं सहायता समूह कुदुम्बश्री मिशन की 26वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

  • वर्ष 1998 में स्थापित, कुदुम्बश्री में वर्तमान में तीन लाख नेबरहुड ग्रुप में 46.16 लाख सदस्य शामिल हैं, जो मूल रूप से महिलाओं के उद्यमों पर केंद्रित था, लेकिन अब कानूनी सहायता, परामर्श, ऋण, सांस्कृतिक जुड़ाव और आपदा राहत प्रयासों में भाग लेने की पेशकश कर रहा है।

स्वयं सहायता समूह (SHGs) क्या है?

  • परिचय:
    • स्वयं सहायता समूह को समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले और सामूहिक रूप से एक सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के इच्छुक लोगों के स्व-शासित, सहकर्मी-नियंत्रित सूचना समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • एक SHG में आमतौर पर समान आर्थिक दृष्टिकोण और सामाजिक स्थिति वाले कम-से-कम पाँच व्यक्ति (अधिकतम बीस) शामिल होते हैं।
  • भारत में स्वयं सहायता समूहों की उत्पत्ति:
    • प्रारंभिक प्रयास (1970 से पूर्व): सामूहिक कार्रवाई और आपसी सहयोग के लिये विशेष रूप से महिलाओं के बीच अनौपचारिक SHG के उदाहरण थे।
    • SEWA (1972): इलाबेन भट्ट द्वारा स्थापित स्व-रोज़गार महिला संघ (Self-Employed Women's Association- SEWA) को अक्सर एक निर्णायक क्षण माना जाता है।
      • इसने गरीब और स्व-रोज़गार महिला श्रमिकों को संगठित किया, आय सृजन एवं समर्थन के लिये एक मंच प्रदान किया।
    • MYRADA और पायलट कार्यक्रम (1980 के दशक के मध्य): 1980 के दशक के मध्य में, मैसूर पुनर्वास और क्षेत्र विकास एजेंसियों (MYRADA) ने निर्धनों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को ऋण प्रदान करने के लिये एक माइक्रोफाइनेंस रणनीति के रूप में SHG की शुरुआत की।
    • NABARD एवं SHG-बैंक लिंकेज (1992): राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) ने वर्ष 1992 में SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम शुरू किया।
    • सरकारी मान्यता (1990-वर्तमान): 1990 के दशक से, सरकार ने स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना (SGSY) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission- NRLM) जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से SHG को सक्रिय रूप से समर्थन दिया है।
      • इन पहलों ने भारत में SHG आंदोलन की पहुँच और प्रभाव में काफी विस्तार किया है।
  • SHG को समर्थन देने वाली सरकारी पहल और नीतियाँ:

महिलाओं पर SHG का क्या प्रभाव रहा है?

  • आर्थिक सशक्तीकरण: 
    • SHG ने महिलाओं की माइक्रोफाइनेंस और ऋण तक पहुँच में उल्लेखनीय सुधार किया है।
    • SHG ने महिलाओं के बीच आय सृजन गतिविधियों और उद्यमिता को सुविधाजनक बनाया है तथा कई महिलाओं एवं उनके परिवारों के लिये आय व आर्थिक स्थिरता में वृद्धि की है।
    • SHG ने किफायती वित्तीय सेवाओं तक पहुँच प्रदान करके, उच्च लागत वाले अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता कम करके गरीबी उन्मूलन और वित्तीय समावेशन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • महिला एजेंसी और सशक्तीकरण:
    • SHG महिलाओं को नेतृत्व क्षमता प्रदान करने के साथ पारंपरिक लिंग मानदंडों को चुनौती देने तथा अपने समुदायों में प्रभावी भूमिका निभाने के लिये सशक्त बनाते हैं।
  • परिवार और समाज पर प्रभाव:
    • SHG ने महिलाओं को अधिक सम्मान और निर्णय लेने की शक्ति देकर सशक्त बनाया है, जिससे अधिक न्यायसंगत पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा मिला है।
      • SHG ने स्थानीय शासन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और नेतृत्व की भूमिका में भी वृद्धि की है।
    • SHG ने महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर और एक सहायक नेटवर्क प्रदान करके घरेलू हिंसा जैसे सामाजिक मुद्दों को कम करने में भूमिका निभाई है।

SHG के समक्ष चुनौतियाँ और रुकावटें क्या हैं?

  • प्रारंभिक समर्थन से परे SHG पहल की स्थिरता: SHG की दीर्घकालिक व्यवहार्यता निरंतर बाह्य समर्थन और प्रभावी आंतरिक प्रबंधन पर निर्भर करती है जिसके लिये मज़बूत नेतृत्व, सामुदायिक समर्थन एवं परिचालन लागत को कवर करने के लिये पर्याप्त राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
  • बाह्य सहायता पर निर्भरता और अत्यधिक निर्भरता के मुद्दे: SHG को बाह्य सहायता पर निर्भरता के कारण महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो विशेष रूप से आपदा प्रभावित क्षेत्रों में उनकी आत्मनिर्भरता और दीर्घकालिक व्यवहार्यता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • अंतर्विभागीय चुनौतियों को संबोधित करना: SHG को अक्सर जाति, वर्ग और क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रभावशीलता एवं समावेशिता प्रभावित होती है, हाशिये पर रहने वाले समूहों को आमतौर पर लाभ का कुछ अंश ही मिल पाता है।
  • कृषि गतिविधियाँ: अधिकांश स्वयं सहायता समूह स्थानीय स्तर पर कार्य करते हैं, जो मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों में संलग्न हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में SHG को गैर-कृषि व्यवसायों से परिचित कराया जाना चाहिये और उन्हें अत्याधुनिक मशीनरी प्रदान की जानी चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी का अभाव: कई स्वयं सहायता समूह अपने संचालन में अल्पविकसित या किसी प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं करते हैं।
  • बाज़ार तक पहुँच: SHG द्वारा उत्पादित वस्तुओं की अक्सर बड़े बाज़ारों तक पहुँच नहीं होती है।
  • अव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा: SHG आमतौर पर ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जहाँ सड़कों या रेलवे के माध्यम से कनेक्टिविटी प्रभावित होती है और बिजली तक सीमित पहुँच होती है।
  • राजनीतिकरण: राजनीतिक संबद्धता और हस्तक्षेप SHG के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, जो अक्सर समूह संघर्ष का कारण बनते हैं।

आगे की राह

  • मानक और दक्षता के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी रिकॉर्ड रखने, वित्तीय लेनदेन और संचार में सहायता करने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ दक्षता एवं मापनीयता में सुधार करके SHG को काफी हद तक बढ़ा सकती है, जैसा कि नाबार्ड की ई-शक्ति परियोजना जैसी पहल में देखा गया है।
  • औपचारिक वित्तीय संस्थानों के साथ संबंधों को मज़बूत करना: SBLP जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से SHG को औपचारिक वित्तीय संस्थानों से जोड़ने से उनकी स्थिरता बढ़ती है, अनौपचारिक उधारदाताओं पर निर्भरता कम होती है और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
  • SHG गतिविधियों में पर्यावरणीय स्थिरता को एकीकृत करना: SHG का पर्यावरणीय स्थिरता का एकीकरण लचीलेपन और व्यापक सतत् विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देता है।
  • समावेशिता के लिये जागरूकता: SHG को समान भागीदारी और लाभ-बँटवारे के लिये, भेदभाव संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये, सदस्यों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने में स्वयं सहायता समूहों (SHG) के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें और इन बाधाओं को दूर करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. स्वयं सहायता समूहों की वैधता एवं जवाबदेही और उनके संरक्षक, सूक्ष्म-वित्तपोषक इकाइयों का, इस अवधारणा की सतत् सफलता के लिये योजनाबद्ध आकलन व संवीक्षण आवश्यक है। विवेचना कीजिये। (2013)


सामाजिक न्याय

अर्ली कैंसर डिटेक्शन और CRC ट्यूमर के इलाज में सफलता

प्रिलिम्स के लिये:

आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र, नीति आयोग, गैर-संचारी रोग, उच्च रक्तचाप, राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड, कोलोरेक्टल कैंसर

मेन्स के लिये:

कैंसर जाँच में कमियाँ, भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की एक रिपोर्ट में भारत में कैंसर को प्रकट करने में आने वाले संकटमय अंतराल पर प्रकाश डाला गया है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। 

  • इस बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका में शोधकर्त्ताओं ने कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer- CRC) ट्यूमर में फ्यूसोबैक्टीरियम न्यूक्लियेटम के एक नए उपप्रकार की खोज की, जो संभावित रूप से प्रारंभिक चरण में कैंसर की पहचान और लक्षित उपचार सुनिश्चित करता है।

भारत में अर्ली कैंसर डिटेक्शन पर नीति आयोग की रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • रिपोर्ट में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (Health and Wellness Centres- HWC) में कैंसर की जाँच में "व्यापक अंतराल" देखा गया, जिसका उद्देश्य 30 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र के लोगों के लिये मुख, स्तन एवं गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर (Cervical Cancer) की वार्षिक रूप से जाँच करना था।
    • निरीक्षण किये गए HWC में से 10% से भी कम ने कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों के लिये स्क्रीनिंग का एक चरण भी पूरा कर लिया था।
  • मुख के कैंसर की जाँच दृश्य लक्षणों के आधार पर प्रत्येक मामले में की जाती थी, जबकि स्तन कैंसर की जाँच स्व-परीक्षण के माध्यम से की जाती थी। सर्वाइकल कैंसर की जाँच का प्रावधान अभी तक प्रारंभ नहीं किया गया था।
  • रिपोर्ट में पाया गया कि निरीक्षण किये गए HWC में आवश्यक उपकरणों, दवाओं और नैदानिक ​​परीक्षणों की बुनियादी संरचना एवं उपलब्धता परिचालन दिशानिर्देशों के अनुसार थी।
  • रिपोर्ट में कैंसर स्क्रीनिंग में अंतराल के लिये HWC कर्मचारियों के बीच "जागरूकता के निम्न स्तर" और "क्षमताओं की कमी" को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन स्क्रीनिंग विधियों (मौखिक दृश्य परीक्षा, एसिटिक एसिड के साथ दृश्य निरीक्षण एवं नैदानिक स्तन परीक्षा) पर सहायक नर्सों और आशाओं (Auxiliary Nurses And Midwives-ANM) के लिये आवश्यक गहन प्रशिक्षण तथा सावधानीपूर्वक निगरानी वांछित सीमा तक नहीं हुई थी। 
    • HWC स्टाफ को उच्च रक्तचाप और मधुमेह के लिये वार्षिक जाँच की आवश्यकता के बारे में भी सीमित अथवा कोई जानकारी नहीं थी।

अर्ली कैंसर डिटेक्शन (Early Cancer Detection) क्या है?

  • कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर की कुछ कोशिकाएँ अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं और शरीर के अन्य हिस्सों में विस्तृत हो जाती हैं। वैश्विक स्तर पर कैंसर मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण था, वर्ष 2018 में 6 रोगियों में से 1 रोगी की मृत्यु हुई।
  • प्रारंभिक कैंसर का पता लगाने के दो घटक हैं: स्क्रीनिंग और प्रारंभिक निदान।
  • स्क्रीनिंग:
    • इसका तात्पर्य किसी भी लक्षण के प्रकट होने से पूर्व कैंसर से पीड़ित रोगियों की पहचान करने के लिये स्वस्थ व्यक्तियों का परीक्षण करना है।
    • उदाहरण: स्तन कैंसर के लिये मैमोग्राफी या क्लिनिकल स्तन परीक्षण।
  • प्रारंभिक निदान:
    • प्रारंभिक निदान कार्यक्रम यथाशीघ्र लक्षणयुक्त रोगियों का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
      • इसमें स्वास्थ्य सेवा प्रदात्ताओं व आम जनता के बीच कैंसर के प्राथमिक लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, निदान और उपचार सेवाओं की पहुँच, सामर्थ्य एवं गुणवत्ता में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रारंभिक निदान और स्क्रीनिंग के बीच अंतर: प्रारंभिक निदान सभी प्रकार के कैंसर के लिये प्रासंगिक है और उन रोगियों पर केंद्रित है जिनमें कैंसर के लक्षण दिखाई देते है।
    • स्क्रीनिंग केवल कैंसर के एक उपसमूह (सर्वाइकल, स्तन, कोलोरेक्टल) के लिये प्रासंगिक है तथा स्पर्शोन्मुख (asymptomatic) व्यक्तियों को लक्षित करती है।
  • चुनौतियाँ एवं सीमाएँ:
    • स्क्रीनिंग के अवांछित परिणामों में फॉल्स-पॉज़िटिव (False-Positive), फॉल्स-नेगेटिव (False Negative) आश्वासन और अति निदान एवं अति उपचार शामिल हैं।
    • उच्च हानि/लाभ अनुपात के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) प्रोस्टेट कैंसर के लिये नियमित प्रोस्टेट-विशिष्ट एंटीजन (Prostate-Specific Antigen- PSA) जाँच और 50 से कम उम्र की महिलाओं के लिये मैमोग्राफी जाँच की सलाह नहीं देता है।

कैंसर से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

कोलोरेक्टल कैंसर के संबंध में अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • शोधकर्त्ताओं ने 130 मानव CRC ट्यूमर से फ्यूसोबैक्टीरियम न्यूक्लियेटम बैक्टीरिया (Fusobacterium nucleatum bacteria) को अलग किया और उनकी आनुवंशिक संरचना का मानचित्रण किया।
    • उन्होंने पाया कि उप-प्रजाति फ्यूसोबैक्टीरियम न्यूक्लियेटम एनिमेलिस (Fusobacterium nucleatum animalis- Fna) CRC ट्यूमर से महत्त्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई थी।
    • Fna दो अलग-अलग विकासवादी वंशों या समूहों से बना होता है, जिन्हें Fna C1 और Fna C2 नाम दिया गया है।
      • Fna C2 क्लैड CRC ट्यूमर के साथ जुड़ा होता है और इसमें अतिरिक्त आनुवंशिक कारक होते हैं जो कैंसर के बीच संबंध को बढ़ावा देते हैं। 
  • शारीरिक रूप से, Fna C2 बैक्टीरिया Fna C1 की तुलना में लंबे और पतले होते हैं, जो प्रतिरक्षा तंत्र को विकसित करने तथा ऊतकों के निर्माण में सहायता कर सकते हैं।
    • आनुवंशिक रूप से, Fna C2 में ऐसे जीन होते हैं जो इसे मानव आँत में मौजूद इथेनॉलमाइन और 1,2-प्रोपेनेडियोल जैसे यौगिकों को चयापचय करने की अनुमति देते हैं।
    • Fna C2 अधिक अम्लीय स्थितियों में जीवित रह सकता है, जिससे यह मुँह से आँत तक फैल सकता है, जो बैक्टीरिया के लिये असामान्य है।
      • यह पूर्व धारणा को चुनौती देता है कि फ्यूसोबैक्टीरियम केवल रक्तप्रवाह संक्रमण के माध्यम से आँत तक पहुँचता है।
  • निष्कर्षों से शीघ्र CRC नैदानिक परीक्षण हो सकते हैं। Fna C2 विशेषताओं से लक्षित उपचार विकसित किये जा सकते हैं।
  • अन्य आँत बैक्टीरिया को प्रभावित किये बिना Fna C2 को चुनिंदा रूप से लक्षित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

कोलोरेक्टल कैंसर (CRC): 

  • वैश्विक भार: कोलोरेक्टल कैंसर, जिसे कोलन कैंसर, रेक्टल कैंसर या आँत कैंसर के रूप में भी जाना जाता है, एक सामान्य प्रकार का कैंसर है जो कोलन या मलाशय को प्रभावित करता है। 
    • कोलोरेक्टल कैंसर विश्व भर में होने वाला तीसरा सबसे आम कैंसर है, जो सभी कैंसर के लगभग 10% मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।
      • यह वैश्विक स्तर पर कैंसर से संबंधित मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है।
    • वर्ष 2040 तक, कोलोरेक्टल कैंसर के कुल नए मामलों में 63% और मृत्यु में 73% तक हिस्सेदारी बढ़ने का अनुमान है।
  • CRC और भारत: CRC भारत में कैंसर का सातवाँ सबसे आम प्रकार है, जहाँ वर्ष 2004 से 2014 तक इसके कुल मामलों की संख्या 20% तक बढ़ी है। 
  • जोखिम के कारक और रोकथाम: इसके जोखिम कारकों में पारिवारिक इतिहास, कोलोरेक्टल कैंसर और निम्न स्तरीय आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, मोटापा, धूम्रपान तथा अत्यधिक शराब का सेवन जैसे कारक शामिल हैं।
    • स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और नियमित जाँच से कोलोरेक्टल कैंसर को नियंत्रित करने में सहायता मिल सकती है।
  • लक्षण: कोलोरेक्टल कैंसर के प्रारंभिक चरण में अक्सर कोई लक्षण नहीं होते हैं, जो नियमित जाँच के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
    • सामान्य लक्षणों में आँत की प्रकृति में बदलाव, मलाशय से रक्तस्राव, पेट में दर्द और एनीमिया शामिल हैं।
  • उपचार: इसके विकल्पों में सर्जरी, रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, लक्षित थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी शामिल हैं। 
    • उपचार योजनाएँ कैंसर के विशिष्ट प्रकार और चरण के साथ-साथ रोगी की चिकित्सीय पृष्ठभूमि के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: कैंसर नियंत्रण रणनीतियों में शीघ्र पता लगाने तथा स्क्रीनिंग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और बीमारी के बढ़ते बोझ को संबोधित करने में भारत की वर्तमान कैंसर नियंत्रण नीतियों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कैंसर के ट्यूमर के इलाज के संदर्भ में साइबरनाइफ नामक एक उपकरण चर्चा में बना हुआ है। इस संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2010)

(a) यह एक रोबोटिक इमेज गाइडेड सिस्टम है। 
(b) यह विकिरण की अत्यंत सटीक खुराक प्रदान करता है। 
(c) इसमें सब-मिलीमीटर सटीकता प्राप्त करने की क्षमता है। 
(d) यह शरीर में ट्यूमर के प्रसार को मैप कर सकता है।

उत्तर: (d)


प्रश्न: 'RNA इंटरफेरेंस (RNAi)' प्रद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता हासिल कर ली है। क्यों? (2019)

  1. यह जीन अभिव्यक्तिकरण (जीन-साइलेंसिंग) रोगोपचारों के विकास में प्रयुक्त होता है। 
  2. इसे कैंसर की चिकित्सा में  के लिये रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त होता है। 
  3. इसे हार्मोन प्रतिस्थापन रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है। 
  4. इसे ऐसी फसल पादपों को उगाने के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है जो विषाणु रोगजनकों के लिये प्रतिरोधी हो।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये

(a) 1, 2 और 4 
(b) 2 और 3 
(c) 1 और 3 
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. 1 अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास-संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होगी? (2021)

प्रश्न. 2 नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020)


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