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भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी

  • 14 Apr 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा क्षेत्र में पहल, भारतीय रक्षा अंतरिक्ष संगोष्ठी

मेन्स के लिये:

मिशन डिफस्पेस, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा के स्वदेशीकरण का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से भारतीय रक्षा अंतरिक्ष (डेफस्पेस) संगोष्ठी का आयोजन किया जो अंतरिक्ष डोमेन में सरकार और सैन्य फोकस के बढ़ते दृष्टिकोण पर केंद्रित है तथा भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने के तरीकों की पड़ताल करता है।

  • यह कार्यक्रम 'मिशन डेफस्पेस' के तहत के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया था, जो भारतीय उद्योग और स्टार्ट-अप के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में अभिनव समाधान विकसित करने के लिये भारत के प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।  

वॉरफेयर के परिवर्तन की आवश्यकता: 

  • वॉरफेयर की प्रकृति बड़े परिवर्तन के संक्रमण परिदृश्य में है और अंतरिक्ष का उपयोग भूमि, समुद्र और साइबर डोमेन में युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने के लिये किया जा रहा है।
    • संगोष्ठी अत्याधुनिक तकनीक के साथ दोहरे उपयोग वाले प्लेटफॉर्म विकसित करने और अंतरिक्ष क्षेत्र में आक्रामक तथा रक्षात्मक क्षमताओं जैसे- लागत और चुनौतियों को कम करने के लिये उपग्रहों और पुन: प्रयोज्य लॉन्च प्लेटफार्मों के मिनीएचराइज़ेशन (सैटेलाइट लॉन्च की लागत को अनुकूलित करने का एक नया तरीका) क्षेत्र का पता लगाने, की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
  • DRDO ने अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता क्षमता को बढ़ाने, काउंटर स्पेस क्षमताओं के साथ अंतरिक्ष संपत्ति की सुरक्षा करने और अंतरिक्ष-आधारित बुनियादी ढाँचे में लचीलापन तथा  अतिरेक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • यह नौसैनिक परिदृश्य के विस्तार के तरीकों की भी पड़ताल करता है, त्वरित अंतरिक्ष-आधारित खुफिया जानकारी, निगरानी और टोही (ISR) पर ज़ोर देता है और सुरक्षित उपग्रह-सहायता प्राप्त संचार सुनिश्चित करता है।
  • संगोष्ठी में ट्रांस-डोमेन हथियारों की उपस्थिति, हवा से या आंतरिक अंतरिक्ष से बाह्य अंतरिक्ष तक लक्षित करने तथा भविष्य के अंतरिक्ष-आधारित निगरानी नेटवर्क को एकीकृत करने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई।

अंतरिक्ष के सैन्यीकरण पर भारत का दृष्टिकोण:

  • वर्तमान परिदृश्य में बदलती ध्रुवीयता/शक्ति संतुलन: भारत में, ऐतिहासिक रूप से, अंतरिक्ष अपनी नागरिक अंतरिक्ष एजेंसी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का एकमात्र अधिकार क्षेत्र रहा है। अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण और सैन्यीकरण का विरोध करते हुए भारत ने हमेशा अंतरिक्ष सुरक्षा के प्रति शांतिवादी दृष्टिकोण रखा है।
    • पिछले एक दशक से, बाह्य अंतरिक्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से प्रेरित है। नैतिक रूप से संचालित नीति को चुनने के बजाय, भारत बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
      • हालाँकि भारत ने अभी भी गैर-शस्त्रीकरण (Non-Weaponization) की अपनी नीति को नहीं छोड़ा है, लेकिन उसने महसूस किया है कि उसकी निष्क्रियता तथा बाह्य अंतरिक्ष में समकालीन विकास की अनदेखी उसकी अंतरिक्ष संपत्ति के लिये कई तरह के खतरों के प्रति संवेदनशील बना सकती है।
  • हाल के घटनाक्रम: वर्ष 2019 में भारत ने चीन के खतरों पर नज़र रखने के साथ अपना पहला सिम्युलेटेड अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास (IndSpaceX) आयोजित किया और इसी वर्ष एक एंटी-सैटेलाइट हथियार (मिशन शक्ति) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
    • साथ ही, त्रि-सेवा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) के लॉन्च ने सेना को नागरिक अंतरिक्ष की पृष्ठभूमि से संक्रमणीय रूप से दूर कर दिया है।
      • भारत ने DSA के लिये अंतरिक्ष-आधारित हथियार विकसित करने में मदद के लिये रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (DSRA) की भी स्थापना की है। वर्तमान में अंतरिक्ष को एक सैन्य क्षेत्र के रूप में उतना ही मान्यता प्राप्त है जितनी कि भूमि, जल, वायु और साइबर।
    • वर्ष 2020 में, भारत सरकार ने अंतरिक्ष डोमेन में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष विभाग के तहत एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी इन-स्पेस की स्थापना निर्माण को मंज़ूरी दी।

मिशन डेफस्पेस 

  • यह भारतीय उद्योग और स्टार्ट-अप के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में तीनों सेवाओं (भारतीय वायु सेना, नौसेना और सेना) के लिये अभिनव समाधान विकसित करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में रक्षा आवश्यकताओं के आधार पर नवीन समाधान प्राप्त करने के लिये 75 चुनौतियों का निराकरण किया जा रहा है।
  • स्टार्टअप्स, इनोवेटर्स और निजी क्षेत्र को समस्याओं के समाधान खोजने के लिये आमंत्रित किया जाएगा जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक दोनों क्षमताएँ शामिल होंगी।
  • इसका उद्देश्य अंतरिक्ष युद्ध के लिये सैन्य अनुप्रयोगों की एक शृंखला विकसित करना और निजी उद्योगों को भविष्य की आक्रामक और रक्षात्मक आवश्यकताओं के लिये सशस्त्र बलों के समाधान की पेशकश करने में सक्षम बनाना है।
  • अंतरिक्ष में रक्षा अनुप्रयोगों से न केवल भारतीय सशस्त्र बलों को मदद मिलेगी बल्कि विदेशी मित्र राष्ट्रों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)    

प्रिलिम्स

हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (IONS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. IONS का उद्घाटन भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में वर्ष 2015 में भारत में किया गया था। 
  2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के तटीय राज्यों की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाने का प्रयास करती है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • 'हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी' (IONS) एक स्वैच्छिक पहल है, जो क्षेत्रीय रूप से प्रासंगिक समुद्री मुद्दों पर चर्चा के लिये एक खुला और समावेशी मंच प्रदान करके हिंद महासागर क्षेत्र के तटवर्ती राज्यों की नौसेनाओं के मध्य समुद्री सहयोग बढ़ाने का प्रयास करती है। अत: कथन 2 सही है।
  • यह समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाने और सदस्य देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
  • IONS फरवरी 2008 में नई दिल्ली, भारत में आयोजित किया गया था। नौसेना स्टाफ के प्रमुख, भारतीय नौसेना को वर्ष 2008-10 की अवधि के लिये IONS के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया था। अतः कथन 1 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स 

Q. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अब स्वतंत्र बनाया जाना तय है: लघु और दीर्घावधि में भारतीय रक्षा और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ने की उम्मीद है? (2014)
Q. भारत-रूस रक्षा सौदों पर भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्वहै? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा करें। (2020)

स्रोत: द हिंदू

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