विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्वास्थ्य सेवा में रोबोटिक्स का विकास
प्रिलिम्स के लिये:दक्ष, व्योम मित्र, मानव, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी पार्क (ARTPARK), अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS), रोबोटिक्स और स्वायत्त प्रणाली के लिये उन्नत विनिर्माण केंद्र (CAMRAS), SSI मंत्र, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940, एंडोस्कोपिक कोरोनरी धमनी बाईपास (TECAB), मास्टर-स्लेव कंसोल मॉडल, रोबोटिक्स के तीन नियम । मेन्स के लिये:भारत में टेली-रोबोटिक्स का अनुप्रयोग, माप और विनियमन। |
स्रोत; TH
चर्चा में क्यों?
भारत ने देश की पहली स्वदेशी ‘सर्जिकल रोबोटिक सिस्टम’, SSI मंत्रा का उपयोग करके 286 किलोमीटर 286 किलोमीटर की दूरी से दो ‘रोबोटिक कार्डियक सर्जरी’ करके एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की।
- ये प्रक्रियाएँ रोबोट-सहायता प्राप्त सर्जरी में एक बड़ी सफलता को दर्शाती हैं, जो उन्नत स्वास्थ्य देखभाल के लिये भौगोलिक बाधाओं को कम करती हैं।
SSI मंत्र क्या है?
- परिचय: SSI मंत्रा भारत की पहली स्वदेशी सर्जिकल रोबोटिक प्रणाली है, जिसे टेलीसर्जरी के लिये विनियामक अनुमोदन प्राप्त हुआ है। इसे SS इनोवेशन द्वारा विकसित किया गया है।
- इसे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा अनुमोदित किया गया, जो औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अंतर्गत केंद्रीय नियामक प्राधिकरण है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- निम्न विलंबता: 35-40 मिलीसेकंड की विलंबता पर संचालित होता है, जिससे बिना किसी देरी के निर्बाध दूरस्थ संचालन संभव होता है।
- उच्च परिशुद्धता सर्जरी: टोटली एंडोस्कोपिक कोरोनरी आर्टरी बाईपास (TECAB) जैसी प्रक्रियाओं के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो सबसे जटिल हृदय सर्जरी में से एक है।
- विनियामक अनुमोदन: टेलीसर्जरी और दूरस्थ शल्य चिकित्सा प्रशिक्षण (Tele-Proctoring) दोनों के लिये प्रमाणित पहली रोबोटिक प्रणाली के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- कार्य प्रणाली: यह मास्टर-स्लेव कंसोल मॉडल पर संचालित होता है, जहाँ:
- मास्टर सर्जन कंसोल सर्जरी को दूर से नियंत्रित करता है, जिससे प्रमुख सर्जन को सटीक गतिविधियाँ करने में मदद मिलती है।
- जबकि रोगी के पास स्थित स्लेव कंसोल रोबोटिक उपकरणों के माध्यम से आदेशों का निष्पादन करता है, जिससे भौगोलिक दूरी के बावजूद प्रभावी सर्जिकल देखभाल संभव हो पाती है।
- महत्त्व: सीमित चिकित्सा सुविधाओं वाले वंचित या दूरदराज के क्षेत्रों में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सा देखभाल तक पहुँच को सुगम बनाता है ।
- भौगोलिक बाधाओं को दूर करते हुए यह सुनिश्चित किया जाता है कि दूरस्थ स्थानों पर भी विश्व स्तरीय शल्य चिकित्सा विशेषज्ञता उपलब्ध हो।
- न्यूनतम आक्रामक तकनीकों के परिणामस्वरूप रिकवरी के समय में तेज़ी आती है, जटिलताएँ और आघात कम होता है तथा समग्र रोगी अनुभव में सुधार होता है।
रोबोट क्या हैं?
- परिभाषा: रोबोट स्वचालित, स्व-नियंत्रित मशीनें हैं जो न्यूनतम मानवीय हस्तक्षेप के साथ कार्य करने को सक्षम बनती हैं।
- यह एक बहुविषयक क्षेत्र है जिसमें पदार्थ विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, यांत्रिकी आदि सम्मिलित हैं।
- रोबोट के भाग: इसमें अंत-प्रभावक/एंड इफेक्टोर्स (मानव हाथों के समान), मैनिपुलेटर्स (बाहों के समान), एक्चुएटर्स , कंट्रोलर (नियंत्रक) और सेंसर्स शामिल हैं ।
- रोबोट के प्रकार:
- गतिशीलता पर आधारित:
- स्थिर: उदाहरणार्थ, असेंबली रोबोट।
- मोबाइल/चलित: पहिए या पैर वाले रोबोट (व्हिल्ड एंड लेग्ड रोबोट)।
- क्षमता-आधारित:
- प्रकार I: मनुष्यों से बेहतर कार्य करना (जैसे, काटना)।
- प्रकार II: मानव की सुरक्षा के लिये खतरनाक कार्य करना (जैसे, अंतरिक्ष अन्वेषण)।
- गतिशीलता पर आधारित:
- आकार-आधारित:
- मैकेनिकल रोबोट: औद्योगिक रोबोट।
- एनिमल रोबोट्स: रोबो डॉग: AIBO, सोनी द्वारा विकसित।
- मानव सदृश रोबोट:
- गाइनोइड रोबोट: महिला जैसी दिखने वाली रोबोट, जैसे सोफिया।
- एंड्रॉइड रोबोट: पुरुष जैसे दिखने वाले रोबोट।
- रोबोटिक्स के नियम : आइज़ैक असिमोव के रोबोटिक्स के तीन नियम रोबोट-मानव अंतःक्रियाओं के लिये एक नैतिक ढाँचा तैयार करते हैं।
- रोबोट द्वारा किसी मनुष्य को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिये।
- रोबोट मानव आदेशों द्वारा संचालित होना चाहिये जब तक कि इसका प्रथम नियम के साथ संघर्ष न होता हो।
- रोबोट द्वारा अपने अस्तित्व की रक्षा स्वयं करनी चाहिये जब तक कि वह पहले दो नियमों के साथ संघर्षरत न हो।
- नोट: असिमोव के ज़िरोथ नियम में कहा गया है कि रोबोट व्यक्तिगत हितों से ऊपर मानवता के कल्याण पर केंद्रित होना चाहिये तथा मानवता को नुकसान पहुँचाने से इसे रोकना चाहिए।
- ये नैतिक, गैर-बाध्यकारी कानून मानव को नुकसान पहुँचाने वाले सैन्य उद्देश्यों के लिये रोबोटों के उपयोग को हतोत्साहित करते हैं।
रोबोट के विभिन्न अनुप्रयोग क्या हैं?
- स्वास्थ्य क्षेत्र: रोबोटिक प्रोस्थेटिक्स (जिसमें उन्नत रोबोटिक अंग और बाह्यकंकाल, अपंग व्यक्तियों की गतिशीलता तथा कार्यक्षमता बढ़ाने पर केंद्रित हैं) से जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- रोबोटिक सर्जरी: इससे तीव्र रिकवरी और उच्च परिशुद्धता मिलती है।
- चिकित्सा सेवा रोबोट: स्वच्छता, रोगी की निगरानी और टेलीमेडिसिन जैसे कार्यों में रोबोट सहायक होता है।
- वातावरण को कीटाणुरहित करने के लिये UV-C प्रकाश या हाइड्रोजन पेरोक्साइड वाष्प का उपयोग करने से स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित होता है।
- उद्योग: रोबोट का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और धातु उद्योगों में व्यापक रूप से किया जाता है तथा चीन इसके उपयोग में अग्रणी है।
- भारत में वर्ष 2023 में लगभग 8,500 रोबोट शामिल किये गए जो विगत वर्ष की तुलना में 59% की वृद्धि दर्शाते हैं।
- रक्षा क्षेत्र: युद्ध में रोबोट या तो स्वायत्त हत्या मशीनों के रूप में कार्य कर सकते हैं (उदाहरण के लिये, इज़रायल का REX मार्क II) या रसद, बारूदी सुरंग का पता लगाने और निगरानी में सैनिकों की सहायता कर सकते हैं।
- कृषि: कृषि संबंधी रोबोट फसल प्रबंधन तथा परिशुद्ध कृषि जैसे कार्यों में मदद करते हैं। भारत में एग्रीबोट जैसे रोबोट का विकास चल रहा है।
- आपदा प्रबंधन: रोबोट का उपयोग जटिल कार्यों में किया जा सकता है (उदाहरण के लिये, सीवर की सफाई के लिये बैंडिकूट रोबोट)।
- अंतरिक्ष क्षेत्र: रोबोटिक प्रणालियाँ अंतरिक्ष मिशनों हेतु अभिन्न अंग हैं, जैसे चंद्रयान-3 पर प्रज्ञान रोवर और नासा का मार्स रोवर।
भारत में रोबोटिक्स की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वर्तमान स्थिति: वर्ष 2016 और 2021 के बीच भारत में औद्योगिक रोबोटों का परिचालन स्टॉक दोगुना हो गया है। विश्व रोबोटिक्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार, वार्षिक औद्योगिक रोबोट प्रतिस्थापन के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर 7वें स्थान पर है।
- हालाँकि, कुछ विकसित देशों की तुलना में भारत का रोबोटिक्स पारिस्थितिकी तंत्र धीमी गति से विकसित हुआ है।
- भारत में निर्मित रोबोट: भारत ने कई उल्लेखनीय रोबोट विकसित किये हैं जैसे
- दक्ष (रक्षा क्षेत्र): यह स्टेयर क्लिमबिंग और IED से निपटने की क्षमताओं वाला स्वचालित मोबाइल प्लेटफॉर्म है।
- व्योममित्र (अंतरिक्ष): यह गगनयान मिशन के लिये इसरो का ह्यूमनॉइड रोबोट है।
- मानव (तकनीकी): यह ध्वनि प्रसंस्करण और इंटरैक्टिव क्षमताओं वाला भारत का पहला 3डी-मुद्रित मानव रोबोट है।
- सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017: इसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को मान्यता देने के साथ रोबोटिक्स और अन्य उन्नत समाधानों पर बल दिया गया है।
- रोबोटिक्स पर राष्ट्रीय रणनीति का मसौदा (2023): इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा एवं अन्य क्षेत्रों में रोबोटिक्स के विकास को बढ़ावा देने के लिये रोबोटिक्स इनोवेशन यूनिट (RIU) की स्थापना करना है। भारत सरकार ने रोबोटिक्स विकास को बढ़ावा देने के लिये कई शोध केंद्र स्थापित किये हैं:
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी पार्क (ARTPARK) और राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर-भौतिक प्रणाली मिशन (NM-ICPS) के तहत AI और रोबोटिक्स का लाभ उठाने पर बल दिया गया है।
- रोबोटिक्स एवं स्वायत्त प्रणालियों के लिये उन्नत विनिर्माण केंद्र (CAMRAS) का उद्देश्य आयातित रोबोटिक्स प्रणालियों पर भारत की निर्भरता को कम करना है।
- IIT दिल्ली में I-HUB फाउंडेशन फॉर कोबोटिक्स (IHFC) के तहत स्वास्थ्य सेवा, मेडिकल सिमुलेटर और ड्रोन अनुप्रयोगों से संबंधित विभिन्न परियोजनाएँ शुरू की गई हैं।
- इसरो और रोबोटिक्स: भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो, भविष्य के मानव मिशनों के लिये मानव जैसे रोबोट विकसित कर रही है। व्योममित्र नामक महिला रोबोट अंतरिक्ष यात्री को वर्ष 2024 के भारत के गगनयान प्रोजेक्ट के तहत शामिल किया गया।
स्वास्थ्य सेवा में रोबोटिक्स को अपनाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- उच्च प्रारंभिक लागत: कई स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ, विशेषकर सीमित संसाधनों वाली सुविधाएँ, SSI मंत्रा जैसे रोबोटिक प्रणालियों की खरीद और रखरखाव की उच्च लागत के कारण वित्तीय समस्याओं का सामना करती हैं।
- उच्च आरंभिक लागत, साथ ही निरंतर रखरखाव और उपभोग्य सामग्रियों के कारण छोटे या ग्रामीण अस्पतालों के लिये इसे अपनाना कठिन हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल में असमानताएँ बढ़ जाती हैं।
- प्रशिक्षण और कौशल अंतराल: रोबोटिक सर्जरी सिस्टम को संचालित करने के लिये सर्जनों और मेडिकल स्टाफ के लिये विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। रोबोटिक सिस्टम के लिये सेटअप समय दुर्घटनाओं जैसे आपातकालीन मामलों में चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- तीव्र सीखने की प्रक्रिया तथा प्रशिक्षित पेशेवरों की वैश्विक कमी के कारण, विशेष रूप से विकासशील देशों में, इसे अपनाने में देरी हो रही है।
- नैतिक चिंताएँ: टेलीसर्जरी से जवाबदेही और रोगी सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, क्योंकि त्रुटियों के कारण सर्जन, संस्थान या सिस्टम प्रदाता के बीच ज़िम्मेदारी धुंधली हो सकती है, जबकि कनेक्टिविटी विफलता जैसे तकनीकी मुद्दे परिणामों और विश्वास से समझौता कर सकते हैं।
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रोगी विश्वास: रोगी दूरस्थ सर्जरी पर भरोसा करने में झिझक सकते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि कमरे में सर्जन की अनुपस्थिति से उनकी सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- रोज़गार हानि: स्वचालन के कारण रोज़गार की हानि होती है, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, अनुमान है कि स्वचालन के कारण 300 मिलियन रोज़गार खत्म हो सकते हैं।
- साइबर सुरक्षा जोखिम: बढ़ी हुई कनेक्टिविटी से रोबोट साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, जैसा कि वर्ष 2017 के वानाक्राई (WannaCry) रैनसमवेयर हमले में देखा गया था।
आगे की राह
- लागत प्रभावी रोबोटिक्स: सरकारी सहायता, सब्सिडी और निजी क्षेत्रों के साथ सहयोग तथा लागत प्रभावी रोबोटिक्स समाधानों में नवाचार इन प्रणालियों को अधिक किफायती बना सकते हैं।
- अस्पताल समय के साथ लागत वितरित करने के लिये पट्टे के विकल्प या वित्तपोषण योजनाओं पर विचार कर सकते हैं।
- अंतराल को कम करना: मेडिकल स्कूलों और प्रशिक्षण केंद्रों को रोबोटिक सर्जरी प्रशिक्षण को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिये और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और वर्चुअल प्रशिक्षण का उपयोग करके विशेष शिक्षा तक वैश्विक पहुँच प्रदान की जा सकती है।
- नैतिक चिंताओं का प्रबंधन: टेलीसर्जरी में जवाबदेही को परिभाषित करने के लिये स्पष्ट रूपरेखा और विनियमन स्थापित किये जाने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी हितधारक (सर्जन, अस्पताल, सिस्टम प्रदाता) ज़िम्मेदारियों को साझा करें।
- तकनीकी विफलताओं के प्रभाव को न्यूनतम करने तथा दूरस्थ सर्जरी के दौरान निरंतर रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये बैकअप सिस्टम और फेल-सेफ विकसित करना।
- नौकरी के नुकसान को कम करना: कौशल उन्नयन और पुनर्कौशल कार्यक्रम तथा मानव-रोबोट सहयोग मॉडल को बढ़ावा देना, जहाँ रोबोट दोहराए जाने वाले कार्यों को संभालते हैं, जबकि मनुष्य निर्णय लेने और रोगी की देखभाल पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- साइबर सुरक्षा जोखिमों का समाधान: एन्क्रिप्शन, बहु-कारक प्रमाणीकरण, नियमित सॉफ्टवेयर अपडेट और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच सहयोग से रोबोट और चिकित्सा डेटा को संभावित साइबर खतरों से सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।
- स्वास्थ्य सेवा में रोबोटिक प्रणालियों के लिये मानकीकृत साइबर सुरक्षा ढाँचे का विकास करने से जोखिमों को कम करने और प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत ने अत्याधुनिक रोबोटिक्स तकनीक विकसित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रोबोटिक्स क्षेत्र में इस अंतर के मुख्य कारण क्या हैं, उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अटल इनोवेशन मिशन किस के अंतर्गत स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: C मेन्स:प्रश्न. COVID-19 महामारी ने दुनिया भर में अभूतपूर्व तबाही मचाई है। हालाँकि संकट पर जीत हासिल करने के लिये तकनीकी प्रगति का आसानी से लाभ उठाया जा रहा है। महामारी के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी ने किस प्रकार सहायता की? विस्तृत विवरण दें। (वर्ष 2020) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक: ट्रेंड्स 2025
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), बेरोज़गारी, श्रम बाज़ार, G20, अनौपचारिक कार्य मेन्स के लिये:वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक: ट्रेंड्स 2025 |
स्रोत: द हिंदु बिज़नेस लाइन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने अपनी "वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक (WESO): ट्रेंड्स 2025” रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार वर्ष 2024 में वैश्विक बेरोज़गारी दर 5% के रिकॉर्ड निम्नतम स्तर पर रही।
- इस रिपोर्ट में इसका कारण मंद आर्थिक सुधार, भू-राजनीतिक तनाव, जलवायु परिवर्तन और श्रम बाज़ार को प्रभावित करने वाली सामाजिक अनिश्चितताओं जैसी चुनौतियों को बताया गया है।
WESO ट्रेंड्स 2025 रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- स्थिर वैश्विक बेरोज़गारी: वैश्विक बेरोज़गारी दर वर्ष 2024 में 5% पर स्थिर रही, जिसमें युवा बेरोज़गारी दर 12.6% के उच्च स्तर पर रही।
- युवा बेरोज़गारी उच्च-मध्यम आय वाले देशों में सर्वाधिक, 16% है, तथा निम्न आय वाले देशों में सबसे कम, 8% है, जिसका कारण प्रायः अल्प-रोज़गार और अनौपचारिक कार्य है।
- इस वर्ग को वयस्कों की अपेक्षा कहीं अधिक बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है।
- निम्न आय वाले देशों (LIC) को अच्छे रोज़गार सृजित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तथा अनौपचारिक रोज़गार महामारी-पूर्व स्तर जितना हो गया है।
- युवा बेरोज़गारी उच्च-मध्यम आय वाले देशों में सर्वाधिक, 16% है, तथा निम्न आय वाले देशों में सबसे कम, 8% है, जिसका कारण प्रायः अल्प-रोज़गार और अनौपचारिक कार्य है।
- रोज़गार में क्षेत्रीय असमानताएँ: उप-सहारा अफ्रीका में, रोज़गार वृद्धि मुख्यतः अनौपचारिक क्षेत्र में है, जहाँ श्रमिकों के पास स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा का अभाव है, जहाँ लगभग 62.6% परिवार प्रतिदिन 3.65 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करते हैं।
- इसी प्रकार, अन्य विकासशील देशों में, जबकि रोज़गार बढ़ रहा है, अनेक श्रमिक असुरक्षित, कम वेतन वाले तथा अनौपचारिक रोज़गार में संलग्न हैं।
- आर्थिक विकास के रुझान: वर्ष 2024 में आर्थिक वृद्धि 3.2% दर्ज की गई, जो वर्ष 2023 में 3.3% और वर्ष 2022 में 3.6% से थोड़ी कम है।
- रिपोर्ट में वर्ष 2025 में इसी प्रकार के आर्थिक विस्तार का अनुमान लगाया गया है, जिसके बाद मध्यम अवधि में धीरे-धीरे मंदी आएगी।
- वैश्विक रोज़गार अंतराल: वैश्विक रोज़गार अंतराल (अर्थात ऐसे लोगों की संख्या जो काम करना चाहते हैं लेकिन उसे पाने में असमर्थ हैं) वर्ष 2024 में 402 मिलियन था।
- इसमें 186 मिलियन बेरोज़गार व्यक्ति, 137 मिलियन हतोत्साहित श्रमिक तथा 79 मिलियन ऐसे लोग शामिल हैं जो देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के कारण रोज़गार पाने में असमर्थ हैं।
- यद्यपि कोविड-19 महामारी के बाद से यह अंतर कम हो गया है, लेकिन आने वाले वर्षों में इसके स्थिर होने की उम्मीद है।
- श्रम बल भागीदारी: उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में श्रम बल भागीदारी बढ़ी है, विशेष रूप से वृद्ध श्रमिकों और महिलाओं के बीच, जबकि निम्न आय वाले देशों में इसमें गिरावट आई है, जिससे वैश्विक स्तर पर रोज़गार वृद्धि धीमी हो गई है।
- NEET सांख्यिकी: वर्ष 2024 में, वैश्विक NEET (शिक्षा, रोज़गार या प्रशिक्षण में नहीं) आबादी 259.1 मिलियन तक पहुँच गई, जिसमें 85.8 मिलियन युवा पुरुष (13.1%) और 173.3 मिलियन युवा महिलाएँ (28.2%) थीं।
- युवा बेरोज़गारी की स्थिति निम्न होने के कारण, LIC में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। युवा पुरुषों में NEET की दर महामारी-पूर्व स्तर से 4% अधिक बढ़ गई।
- ऋण संकट: उच्च ब्याज दरों और आर्थिक चुनौतियों के परिणामस्वरूप, विशेष रूप से विकासशील देशों में, सार्वजनिक ऋण असंतुलित हो गया है।
- लगभग 70 राष्ट्र ऋण संकट के जोखिम में हैं, जिनमें से कई देश स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं की तुलना में ऋण भुगतान पर अधिक व्यय कर रहे हैं।
- उदाहरण: अफ्रीका में औसत सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 65% है।
- श्रम गतिशीलता में बदलाव के बीच स्थिर वेतन: महामारी के बाद कम रोज़गार वृद्धि और नियोक्ताओं की ओर श्रम बाज़ार की शक्ति में बदलाव के कारण वास्तविक वेतन वृद्धि निम्न बनी हुई है।
- हरित परिवर्तन: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक रोज़गार वर्ष 2022 में 13.7 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2023 में 16.2 मिलियन हो गया, जो सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा में निवेश से प्रेरित है, लेकिन लाभ असमान रूप से वितरित हैं, जिसमें 46% चीन में है।
- हरित परिवर्तन: सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा में निवेश के कारण, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार में वर्ष 2022 में 13.7 मिलियन से वर्ष 2023 में 16.2 मिलियन तक की वृद्धि देखी गई। हालाँकि, लाभ समान रूप से वितरित नहीं हैं, 46% लाभ चीन का रहा है।
- डिजिटल क्षेत्र में रोज़गार की संभावनाएँ हैं, हालाँकि कई देशों में इसका लाभ उठाने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे और कुशल कार्यबल का अभाव है।
वर्ष 2030 तक सामाजिक न्याय और सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिये ILO की सिफारिशें क्या हैं?
- प्रेषण का लाभ उठाना: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने LIC को, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में स्थित LIC को, यह सलाह दी है कि वे प्रेषण को उपभोग से हटाकर लाभदायक निवेश की ओर लगाएँ।
- सरकारें निवेश निधि में धन प्रेषण को समेकित करने के लिये तंत्र स्थापित कर सकती हैं, जिससे निजी क्षेत्र की वृद्धि और दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- संरचनात्मक परिवर्तन: देशों को गुणवत्तापूर्ण रोज़गार उत्पन्न करने, बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण में निवेश के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिये आधुनिक सेवाओं और विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करके संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना चाहिये।
- युवा कौशल विकास: युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना, यह सुनिश्चित करना कि वे आधुनिक श्रम बाज़ारों में भागीदारी के लिये आवश्यक कौशल से लैस हों और हरित ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी जैसे उभरते उद्योगों का लाभ उठा सकें।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक सहयोग, सतत् विकास और समावेशी राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों को बढ़ावा देना जिससे सभी श्रमिकों को लाभ हो।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. अनौपचारिक रोज़गार की वृद्धि स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा को किस प्रकार प्रभावित करती है? क्या औपचारिकता और एआई रीस्किलिंग को बढ़ावा देना स्थायी रोज़गार के लिये लाभदायक हो सकता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (a) बाल श्रम, (2018) उत्तर: a |
भारतीय विरासत और संस्कृति
बौद्ध धर्म की वैश्विक विरासत
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, बौद्ध धर्म, कलिंग पर आक्रमण, महायान, वज्रयान, बालीयात्रा महोत्सव, नालंदा विश्वविद्यालय, सम्राट कुमारगुप्त प्रथम, गुप्त साम्राज्य, आर्यभट्ट, पांडुलिपियाँ, अंकोर वाट, थेरवाद, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, एलोरा गुफाएँ, अजंता गुफाएँ, साँची स्तूप। मेन्स के लिये:बौद्ध धर्म का वैश्विक प्रसार, भारत में प्रमुख बौद्ध स्थल, नालंदा विश्वविद्यालय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने ओडिशा के रत्नागिरी में एक बड़ा बुद्ध सिर, एक विशाल ताड़ का वृक्ष, एक प्राचीन दीवार और उत्कीर्ण बौद्ध अवशेष खोजे हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि ये सभी 8वीं और 9वीं शताब्दी ई. के हैं।
- इसने ओडिशा के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार पर भी प्रकाश डाला गया।
ओडिशा ने बौद्ध धर्म प्रचार में कैसे मदद की?
- बुद्ध की भूमिका: यद्यपि बुद्ध के ओडिशा आने का कोई प्रमाण नहीं है, फिर भी विशेषज्ञ बुद्ध के शिष्यों तपस्सु और भल्लिका (उत्कल के व्यापारी भाई) को बौद्ध धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मानते हैं।
- मौर्य प्रभाव: सम्राट अशोक के 261 ईसा पूर्व में कलिंग (प्राचीन ओडिशा) पर आक्रमण के कारण उन्हें बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा, जिसे उन्होंने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में फैलाया।
- ह्वेन त्सांग की यात्रा: अध्ययनों से पता चलता है कि चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री ह्वेन त्सांग, जिन्होंने 638-639 ई. में ओडिशा का दौरा किया था, उन्होंने रत्नागिरी का भी दौरा किया होगा, जिससे उन्हें इस क्षेत्र की जीवनशैली, संस्कृति, धर्म, कला और वास्तुकला के बारे में जानकारी मिली होगी।
- ऐतिहासिक स्थल:ओडिशा में 100 से अधिक प्राचीन बौद्ध स्थल हैं, जिनमें रत्नागिरी, उदयगिरी और ललितगिरी के साथ हीरक त्रिभुज का हिस्सा भी शामिल है।
- रत्नागिरी, जो 7वीं-10वीं शताब्दी का नालंदा से प्रतिस्पर्द्धा करने वाला एक प्रमुख बौद्ध शिक्षण केंद्र था, में ईंटों से बने स्तूप, मठ परिसर और मन्नत स्तूप जैसे अवशेष मिले हैं।
- ऐसा माना जाता है कि रत्नागिरी महायान और वज्रयान संप्रदाय का केंद्र था, और इस स्थल पर तिब्बती ग्रंथ भी पाए गए थे।
- रत्नागिरी की बुद्ध मूर्तियाँ अपनी जटिल, विशिष्ट केशविन्यास के लिये अद्वितीय हैं जिन्हें भारत में अन्यत्र नहीं देखा जा सकता है।
- समुद्री और व्यावसायिक संबंध: बाली, जावा, सुमात्रा और श्रीलंका जैसे क्षेत्रों के साथ ओडिशा के व्यापार ने विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में मदद की।
- बालीयात्रा महोत्सव दक्षिण पूर्व एशिया के साथ ओडिशा के 2,000 वर्ष पुराने समुद्री संबंधों और बौद्ध धर्म के प्रसार में इसकी भूमिका का सम्मान करता है।
- भौमकारा राजवंश: ओडिशा में भौमकारा राजवंश (8वीं-10वीं शताब्दी) के शासन में बौद्ध धर्म का विकास हुआ, जिसने इस क्षेत्र की समृद्ध बौद्ध विरासत में योगदान दिया।
नोट:
- महायान: महायान, जिसका संस्कृत में अर्थ "ग्रेट व्हीकल" है, बौद्ध धर्म के संप्रदायों में से एक है।
- इसमें बुद्ध की दिव्यता तथा बुद्ध के मूर्ति रूप एवं बोधिसत्व की मूर्ति पूजा में विश्वास किया गया है।
- इसकी उत्पत्ति 72 ई. में कनिष्क के शासनकाल के दौरान कश्मीर में चतुर्थ बौद्ध संगीत में हुई और फिर इसका पूर्व में मध्य एशिया, पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ क्षेत्रों में विस्तार हुआ।
- चीन, कोरिया, तिब्बत और जापान में स्थित बौद्ध संप्रदाय महायान परंपरा से संबंधित हैं।
- वज्रयान: वज्रयान का अर्थ "वज्र का वाहन" है जिसे तांत्रिक बौद्ध धर्म के रूप में भी जाना जाता है।
- इसमें तांत्रिक प्रथाओं को शामिल किया गया है, जिसमें आध्यात्मिक बोध प्राप्त करने के लिये जटिल अनुष्ठान, कल्पना, मंत्र और ध्यान तकनीक शामिल हैं।
- वज्रयान का संबंध मुख्यतः हिमालयी क्षेत्रों से है जिनमें तिब्बत, नेपाल, भूटान और मंगोलिया के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- हीनयान: इसे अक्सर "लेसर व्हीकल" के रूप में संदर्भित किया जाता है जिसके तहत मुख्य रूप से आत्म-अनुशासन तथा ध्यान के माध्यम से निर्वाण पर बल दिया जाता है।
- यह मठवासी नियमों, ध्यान प्रथाओं और नैतिक आचरण के सख्त पालन पर केंद्रित है।
- हीनयान बौद्ध धर्म में अर्हत एक आदर्श स्थिति है जिसके तहत ज्ञान प्राप्त करना शामिल है, जबकि महायान में बोधिसत्व द्वारा दूसरों के ज्ञान मार्ग में सहायता के लिये निर्वाण को विलंबित किया जाता है।
नालंदा विश्वविद्यालय
- स्थापना: नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त साम्राज्य के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने 5वीं शताब्दी ई. में, लगभग 450 ई. में की थी।
- यह विश्वविद्यालय 8वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान पाल वंश के संरक्षण में विकसित हुआ।
- यह प्राचीन मगध राज्य (आधुनिक बिहार) में स्थित था।
- अंतर्राष्ट्रीय ख्याति: विश्व के पहले आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में नालंदा ने कोरिया, जापान, चीन, मंगोलिया, श्रीलंका, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया के विद्वानों को आकर्षित किया।
- प्रवेश प्रक्रिया: नालंदा में प्रवेश प्रतिस्पर्द्धी प्रणाली पर आधारित था, जिसमें कठोर साक्षात्कार होते थे और छात्रों को धर्मपाल और शीलभद्र जैसे विद्वानों एवं बौद्ध आचार्यों द्वारा मार्गदर्शन दिया जाता था।
- पाठ्यक्रम और विषय: इस विश्वविद्यालय में चिकित्सा, आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, गणित, व्याकरण, खगोल विज्ञान तथा भारतीय दर्शन सहित कई विषयों की पढ़ाई होती थी।
- भारतीय गणितज्ञ और शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट छठी शताब्दी ई .में नालंदा विश्वविद्यालय के एक प्रमुख शिक्षक थे।
- पुस्तकालय और पांडुलिपियाँ: इस पुस्तकालय में नौ मिलियन से अधिक हस्तलिखित ताड़-पत्ता पांडुलिपियाँ रखी गई थीं, जो इसे बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार बनाती हैं।
- विनाश: वर्ष 1193 में इस्लामी आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर दिया, भिक्षुओं को मार डाला और मूल्यवान पुस्तकालय को जला दिया।
बौद्ध धर्म दक्षिण पूर्व एशिया में किस प्रकार विस्तारित हुआ?
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान: भारतीय व्यापारियों, नाविकों और भिक्षुओं ने दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में मदद की, जहाँ श्रीविजय (सुमात्रा, इंडोनेशिया) और चंपा (वियतनाम) जैसे बंदरगाह 7वीं से 13वीं शताब्दी तक शिक्षा एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करते रहे ।
- शासकों की वैधता: दक्षिण-पूर्व एशियाई शासकों ने अपनी सत्ता को मज़बूत करने के लिये बौद्ध धर्म को अपनाया तथा अपने शासन को वैध बनाने के लिये बुद्ध या हिंदू देवी-देवताओं की पूजा की।
- सुमात्रा में केंद्रित श्रीविजय साम्राज्य ने बौद्ध धर्म के प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाई।
- हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म का सम्मिश्रण: दक्षिण पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म अक्सर स्थानीय मान्यताओं और हिंदू धर्म के साथ मिश्रित हो गया।
- दक्षिण-पूर्व एशिया के बौद्ध और हिंदू मंदिर, जैसे अंकोरवाट (कंबोडिया) और बोरोबुदुर (इंडोनेशिया), इस सम्मिश्रण को प्रदर्शित करते हैं।
- सांस्कृतिक प्रसार: बौद्ध धर्म ने बाली और जावा जैसे स्थानों की स्थानीय संस्कृतियों को प्रभावित किया, जिसे उनके नृत्य, अनुष्ठानों और मंदिर वास्तुकला में देखा जा सकता है।
बौद्ध धर्म विश्व स्तर पर कैसे फैला?
- दक्षिण-पूर्व एशिया: 5वीं शताब्दी ई. तक बौद्ध धर्म म्याँमार और थाईलैंड तक फैल गया और 13वीं शताब्दी तक थेरवाद संप्रदाय (जिसका अर्थ है "बुजुर्गों का मार्ग") दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म का प्रमुख रूप बन गया।
- चीन: 7वीं शताब्दी ई. तक, बौद्ध धर्म ने कन्फ्यूशियस और ताओवादी परंपराओं के साथ अंतर्क्रिया करते हुए चीनी संस्कृति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया था।
- कोरिया और जापान: 7वीं शताब्दी ई. तक बौद्ध धर्म का कोरिया में विस्तार हो गया।
- छठी शताब्दी ई. में बौद्ध धर्म जापान में आया, जहाँ यह शिंटो और अन्य स्वदेशी परंपराओं के साथ मिश्रित हो गया।
- तिब्बत : 8वीं शताब्दी ई. में, पूर्वोत्तर भारत की तांत्रिक परंपराओं से प्रभावित बौद्ध धर्म का तिब्बत में विस्तार हुआ।
- वहाँ, यह स्वदेशी बॉन धर्म के साथ विलीन हो गया तथा वज्रयान ("Diamond Vehicle") के रूप में विकसित हुआ, जो महायान बौद्ध धर्म की एक शाखा थी।
भारत में प्रमुख बौद्ध स्थल कौन से हैं?
- बिहार: बोधगया वह स्थान है जहाँ सिद्धार्थ गौतम को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- महाबोधि मंदिर, जिसे वर्ष 2002 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया, यह वह स्थान है जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- वैशाली (बिहार) में बुद्ध ने अपने आसन्न परिनिर्वाण की घोषणा की तथा अपना अंतिम उपदेश दिया।
- नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रसिद्ध प्राचीन शिक्षा केंद्र था, जहाँ विश्व से बौद्ध विद्वान एकत्रित होते थे।
- उत्तर प्रदेश: सारनाथ में बुद्ध ने अपने शिष्यों को अपना पहला उपदेश दिया था, जिसमें उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की रूपरेखा बताई।
- सारनाथ में धमेक स्तूप बुद्ध के प्रथम उपदेश का स्थल है।
- कुशीनगर वह स्थान है जहाँ बुद्ध की मृत्यु हुई तथा उन्हें परिनिर्वाण (अंतिम निर्वाण) प्राप्त हुआ।
- ऐसा माना जाता है कि कुशीनगर स्थित रामाभार स्तूप वह स्थान है जहाँ बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था।
- हिमाचल प्रदेश: धर्मशाला, खासतौर पर मैकलॉडगंज, तिब्बती निर्वासित सरकार और दलाई लामा का घर है। यह तिब्बती बौद्धों का केंद्र है।
- महाराष्ट्र: एलोरा की गुफाएँ यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें बौद्ध, हिंदू और जैन परपराओं के चट्टान काटकर बनाए गए मंदिर और मूर्तियाँ शामिल हैं।
- अजंता की गुफाएँ प्राचीन बौद्ध मठों और बुद्ध के जीवन को दर्शाने वाले सुंदर भित्तिचित्रों के लिये प्रसिद्ध हैं।
- मध्य प्रदेश: साँची स्तूप एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो अपने बौद्ध स्तूपों, मठों और स्तंभों के लिये जाना जाता है।
निष्कर्ष:
ओडिशा की समृद्ध बौद्ध विरासत, रत्नागिरी जैसे प्रमुख स्थलों द्वारा उजागर, और एशिया भर में बौद्ध धर्म के प्रसार में भारत की भूमिका इसके वैश्विक प्रभाव को दर्शाती है। नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों और विविध बौद्ध परंपराओं के साथ, वैश्विक संस्कृति और धर्म में भारत का योगदान गहरा और स्थायी है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: एशिया में बौद्ध धर्म के प्रसार में भारतीय समुद्री व्यापार की भूमिका का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सQ. पाल काल भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। सूचीबद्ध कीजिये। (2020) Q. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप-कला, लोक वर्ण्य विषयों और कथानकों को चित्रित करते हुए बौद्ध आदर्शों की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण कीजिये। (2016) |
सामाजिक न्याय
वैश्विक असमानता में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:असमानता, क्रय शक्ति समता, ग्लोबल साउथ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, गिनी गुणांक, विश्व बैंक, मनरेगा, मिशन आयुष्मान, मौलिक अधिकार मेन्स के लिये:भारत में असमानता और संबंधित मुद्दे, वैश्विक असमानता, समावेशी विकास |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक है "टेकर्स नॉट मेकर्स: द अनजस्ट पॉवर्टी एंड अनअर्न्ड वेल्थ ऑफ कोलोनियलिज्म " बढ़ती वैश्विक असमानता पर प्रकाश डालती है, जहाँ अरबपतियों की संपत्ति बढ़ती जा रही है, जबकि गरीबों को निरंतर कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, ऐतिहासिक उपनिवेशवाद इस विभाजन को बढ़ावा दे रहा है।
नोट: वर्ष 1995 में गठित ऑक्सफैम इंटरनेशनल, वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (NGO) का एक संघ है।
- यह भारत सहित 79 देशों में कार्यरत है, तथा आपातकालीन राहत, आजीविका पुनर्निर्माण, तथा महिलाओं के अधिकारों को केंद्र में रखते हुए स्थायी परिवर्तन की वकालत पर ध्यान केंद्रित करता है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- अरबपतियों की संपत्ति में वृद्धि: वर्ष 2024 में कुल अरबपतियों की संपत्ति में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई, साथ ही 204 नए अरबपति बने।
- वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में अरबपतियों की संपत्ति तीन गुना तेज़ी से बढ़ी, प्रत्येक अरबपति की संपत्ति में प्रतिदिन 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई।
- बढ़ती असमानता: अरबपतियों और शेष विश्व के बीच का अंतर नाटकीय रूप से बढ़ गया है, क्योंकि संकटों के कारण वर्ष 1990 से गरीबी स्थिर बनी हुई है।
- विश्व की 45% संपत्ति सर्वाधिक धनी 1% लोगों के पास है, जबकि 3.6 बिलियन लोग अभी भी 6.85 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन [क्रय शक्ति समता (PPP)] से कम पर जीवन यापन कर रहे हैं तथा विश्व में 10 में से 1 महिला अत्यधिक गरीबी में रहती है।
- वर्ष 1820 में, सबसे धनी 10% की संपत्ति सबसे गरीब 50% की तुलना में 18 गुना अधिक थी और वर्ष 2020 तक यह अंतर बढ़कर 38 गुना हो गया है।
- प्रगति के विभिन्न मापदंडों में असमानता स्पष्ट है, जैसे कि अफ्रीकियों की औसत जीवन प्रत्याशा यूरोपीय लोगों की तुलना में 15 वर्ष कम है।
- औपनिवेशिक विरासत और शक्ति असंतुलन: ऐतिहासिक उपनिवेशवाद वैश्विक असमानता को आकार दे रहा है, जिसमें सबसे संपन्न राष्ट्र और व्यक्ति औपनिवेशिक शोषण से लाभान्वित हो रहे हैं, और ग्लोबल साउथ को शक्तिहीन राज्यों (weak states), स्वेच्छाचारी सीमाओं (Arbitrary Borders) और संघर्ष जैसे परिणामों का सामना करना पड़ रहा है।
- वित्तीय प्रणालियों के माध्यम से प्रति घंटे 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर ग्लोबल साउथ से ग्लोबल नॉर्थ में स्थानांतरित किया जाता है।
- वर्ष 1765 और वर्ष 1900 के बीच, औपनिवेशिक शासन के दौरान ब्रिटेन ने भारत से 64.82 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निकाले, जिसमें से 33.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर सबसे संपन्न 10% लोगों के पास गए।
- ग्लोबल नॉर्थ के देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी वैश्विक संस्थाओं पर हावी हैं, जिससे असमानता कायम है।
- आज की शिक्षा प्रणाली असमानता को प्रतिबिंबित करती है, वर्ष 2017 में 39% वैश्विक राष्ट्राध्यक्ष ब्रिटेन, अमेरिका या फ्राँस में शिक्षित थे।
- विरासत में मिली संपत्ति: पहली बार, वर्ष 2023 में विरासत में मिली संपत्ति से उद्यमिता की तुलना में अधिक अरबपति देखने को मिले।
- अरबपतियों की लगभग 60% संपत्ति विरासत, भाई-भतीजावाद या एकाधिकार शक्ति से आती है।
- सिफारिशें: चूँकि वर्ष 2025 में बांडुंग सम्मेलन (गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)) के 70 वर्ष पूरे हो जाएंगे, इसलिये सरकारों को दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये और एक नई अंतर्राष्ट्रीय निष्पक्ष आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने के लिये औपनिवेशिक युग की प्रणालियों को खत्म करना चाहिये।
- अत्यधिक धन असमानता को दूर करने के लिये प्रगतिशील कराधान को लागू करना।
- असमानता को कम करने और वैश्विक गरीबों के कल्याण में सुधार लाने के लिये स्पष्ट वैश्विक और राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करना।
वैश्विक असमानता क्या है?
- परिचय: यह वैश्विक स्तर पर 8 बिलियन लोगों के बीच संसाधनों, अवसरों और शक्ति का असमान वितरण है। यह एक प्रमुख कारक है जो गरीबी में वृद्धि तथा खुशहाली में बाधा उत्पन्न करती है।
- वर्ष 1800 के दशक के आरंभ में वैश्विक धन असमानताएँ कम थीं, लेकिन औद्योगिक क्रांति के साथ, पश्चिमी देशों में आय में असमान रूप से वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक असमानता में वृद्धि हुई।
- देशों के बीच आय असमानता: वर्ष 1990 के दशक से, देशों के बीच आय असमानता में कमी आई है, जिसका मुख्य कारण चीन और एशिया में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में तीव्र आर्थिक विकास है।
- इस प्रगति के बावजूद, अभी भी बहुत सारे अंतर हैं। उदाहरण के लिये, उत्तरी अमेरिका में औसत आय उप-सहारा अफ्रीका की तुलना में 16 गुना अधिक है।
- देशों के भीतर आय असमानता: देशों के भीतर आय असमानता बदतर हो गई है, वैश्विक जनसंख्या का 71% हिस्सा ऐसे देशों में रह रहा है जहाँ असमानता में वृद्धि हुई है।
असमानता के कारक:
- सामाजिक कारक: लिंग, नस्ल, जातीयता और भौगोलिक असमानता के महत्त्वपूर्ण कारक हैं। महिलाओं, जातीय अल्पसंख्यकों और हाशिये पर पड़े समूहों के खिलाफ भेदभाव विश्व में असमानता को बनाए रखता है।
- महिलाओं और लड़कियों को आय में असमानता का सामना करना पड़ रहा है, हालाँकि कुछ क्षेत्रों में लैंगिक आय असमानता में कमी आई है। प्रगति के बावजूद, वे प्रतिदिन 12.5 बिलियन घंटे अवैतनिक देखभाल कार्य करती हैं।
- आर्थिक विकास: हालाँकि कुछ देशों में आर्थिक विकास ने वैश्विक असमानता को कम करने में मदद की है, लेकिन यह अक्सर असमान रहा है, तथा सबसे विकसित देशों को विकास से सबसे अधिक लाभ हुआ है।
- धन का संकेंद्रण और क्रोनी पूंजीवाद असमानता को बढ़ाता है, क्योंकि धनी लोग अपने उत्तराधिकारियों को लाभ पहुँचाते हैं, कई लोग भूमिहीन रह जाते हैं, तथा भ्रष्टाचार से कुछ चुनिंदा लोग प्रभावित रहते है।
- प्रतिगामी कर नीतियाँ और कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा तंत्र आय असमानता को बढ़ाते हैं, जिससे कमज़ोर आबादी को सहायता नहीं मिलती तथा धनी लोगों को लाभ प्राप्त होता है।
- उभरते कारक: जलवायु परिवर्तन पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ाता है तथा सबसे गरीब समुदायों को असमान रूप से प्रभावित करता है।
- प्रौद्योगिकी में समानता लाने की क्षमता है, लेकिन जिनके पास डिजिटल बुनियादी ढाँचे तक पहुँच नहीं है, उन्हें अधिक हाशिये पर रहने का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रभाव: असमानताएँ आय से आगे बढ़कर जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं को भी प्रभावित करती हैं।
- उच्च असमानता मानव अधिकारों, न्याय और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को सीमित करती है, जिससे वर्ष वर्ष 2018 में 71 देशों में वैश्विक स्वतंत्रता में गिरावट आई है।
- असमानता का उच्च स्तर सामाजिक गतिशीलता और आर्थिक विकास को हतोत्साहित करता है, जिससे सामाजिक संकट, हिंसा और संघर्ष को बढ़ावा मिलता है। अत्यधिक असमानता भी देशभक्ती और राष्ट्रवाद के उदय को बढ़ावा दे रही है।
भारत में असमानता की क्या स्थिति है?
- भारत का गिनी गुणांक: वर्ष 2023 में भारत का गिनी गुणांक 0.410 था। यह वर्ष 1955 के गिनी गुणांक 0.371 से अधिक है।
- गिनी इंडेक्स 0 (पूर्ण समानता) से लेकर 1 (पूर्ण असमानता) तक होता है। इसकी अधिक संख्या देश के अंदर अधिक आय असमानता को दर्शाती है।
- आय वितरण: भारत में आय वितरण अत्यधिक असमान है (शीर्ष 10% लोगों के पास 77% संपत्ति है और सबसे धनी 1% लोगों के पास 53% संपत्ति है)।
- राष्ट्रीय आय में शीर्ष 10% और 1% लोगों की क्रमशः 57% एवं 22% हिस्सेदारी है जबकि निचले 50% लोगों के पास केवल 13% संपत्ति है, इससे आय असमानता पर प्रकाश पड़ता है।
- भारत में असमानता को बढ़ाने वाले कारक: कोविड-महामारी से धन असमानताओं को और बढ़ावा मिला है।
- भारत की प्रतिगामी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली से निचले 50% लोगों पर अधिक बोझ पड़ता है, जो कुल वस्तु एवं सेवा कर (GST) का 64% भुगतान करते हैं जबकि शीर्ष 10% केवल 4% का योगदान करते हैं। कॉर्पोरेट कर में कटौती से इस असमानता को और बढ़ावा मिलता है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के अभाव से आर्थिक गतिशीलता सीमित होती है, जिससे लोग कम आय वाली नौकरियों में फँस जाते हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी बनी रहती है।
- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) सुधारों के लाभ असमान रहे हैं और यह दूरसंचार और विमानन जैसे क्षेत्रों के पक्ष में रहे हैं।
- कृषि और लघु उद्योग (जिनसे आबादी के एक प्रमुख हिस्से को रोज़गार मिलता है) उपेक्षित रहे हैं तथा उन्हें अक्सर कम मजदूरी मिलने के साथ सामाजिक सुरक्षा की कमी का सामना करना पड़ता है।
- असमानता कम करने के लिये भारत की पहल:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)
- दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM)
- समग्र शिक्षा योजना 2.0
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
- आयुष्मान मिशन
- प्रधानमंत्री जनधन योजना
- मिशन इंद्रधनुष
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
- लखपति दीदी पहल
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)
आगे की राह
- समावेशी रूपरेखा: इस दिशा में संविधान में शामिल समानता के प्रावधानों को लागू करना, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल को बढ़ावा देना तथा समावेशी विकास नीति उपायों के लिये सतत् विकास लक्ष्य 10 संख्या को बढ़ावा देना और मूल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना निर्णायक है।
- प्रगतिशील कराधान: अरबपतियों और बड़ी कंपनियों को लक्षित करके संपत्ति कर लागू करना चाहिये। गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये इस धन का उपयोग करना चाहिये।
- कर चोरी से निपटने के लिये कॉर्पोरेट एवं व्यक्तिगत संपत्ति की सार्वजनिक रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- वित्तीय क्षतिपूर्ति: औपनिवेशिक शोषण, गुलामी और संसाधन निष्कर्षण से प्रभावित राष्ट्रों एवं समुदायों को वित्तीय क्षतिपूर्ति या सहायता प्रदान करना चाहिये।
- लैंगिक असमानता: महिलाओं के अवैतनिक श्रम को महत्त्व देने के लिये आर्थिक और नीतिगत उपाय प्रदान करने चाहिये। अवसरों में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, भूमि और ऋण तक महिलाओं की पहुँच में सुधार करना चाहिये।
- पर्यावरणीय न्याय: ऐतिहासिक रूप से अधिकांश उत्सर्जनों के लिये ज़िम्मेदार धनी राष्ट्रों द्वारा जलवायु प्रयासों को वित्तपोषित करना चाहिये तथा ग्लोबल साउथ में हरित निवेश का समर्थन करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक असमानता के प्रभाव पर चर्चा कीजिये और बताइये कि इस मुद्दे के समाधान के लिये कौन से सुधार आवश्यक हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सQ.ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में उल्लिखित समावेशी विकास में निम्नलिखित में से कौन सा एक शामिल नहीं है: (2010) (a) गरीबी में कमी लाना उत्तर: C मेन्स:प्र. कोविड-19 महामारी से भारत में वर्ग असमानताओं और गरीबी को बढ़ावा मिला है। टिप्पणी कीजिये। (2020) |