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भारतीय विरासत और संस्कृति

साँची स्तूप: अशोक काल से वर्तमान तक का सफर

  • 13 Sep 2024
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

साँची स्तूप का पूर्वी द्वार, साँची स्तूप, तोरण, बुद्ध, सातवाहन राजवंश, जातक कथाएँ, शालभंजिका, मानुषी बुद्ध, ज्ञानोदय, शुंग काल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)

मेन्स के लिये:

भारत के विरासत स्थलों का महत्त्व और संरक्षण, बौद्ध धर्म

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने जर्मनी के बर्लिन में हम्बोल्ट फोरम संग्रहालय के सामने स्थित साँची स्तूप के पूर्वी द्वार की प्रतिकृति का दौरा किया।

  • यह मूल संरचना की 1:1 प्रतिकृति है, जो लगभग 10 मीटर ऊँचा और 6 मीटर चौड़ा है तथा इसका वज़न लगभग 150 टन है।

साँची स्तूप के पूर्वी द्वार से यूरोप की यात्रा

  • साँची स्तूप के पूर्वी द्वार का प्लास्टर लेफ्टिनेंट हेनरी हार्डी कोल द्वारा 1860 के दशक के अंत में विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के लिये किया गया था। 
  • बाद में इस ढाँचे की कई प्रतियाँ बनाई गईं और पूरे यूरोप में प्रदर्शित की गईं। 
    • मूल द्वार की एक प्लास्टर कास्ट प्रतिकृति वर्ष 1886 से कोनिग्लिचेस संग्रहालय फर वोल्करकुंडे बर्लिन के प्रवेश कक्ष में प्रदर्शित किया गया था। 
      • इस संरक्षित प्रति की एक कास्ट वर्ष 1970 में कृत्रिम पत्थर से बनाया गई थी।
  • नवीनतम बर्लिन प्रतिकृति का भी उद्गम इसी मूल ढाँचे से माना जाता है।
    • इसे 3डी स्कैनिंग, आधुनिक रोबोट, कुशल जर्मन और भारतीय मूर्तिकारों तथा सहायता के लिये मूल तोरण के विस्तृत चित्रों की सहायता से बनाया गया था।

साँची स्तूप के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • साँची स्तूप का निर्माण: इसका निर्माण अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था।
    • इसके निर्माण की देखरेख अशोक की पत्नी देवी ने की थी, जो पास के व्यापारिक शहर विदिशा से थीं। 
    • साँची परिसर के विकास को विदिशा के व्यापारिक समुदाय से संरक्षण प्राप्त हुआ।
  • विस्तार: दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व (शुंग काल) के दौरान, स्तूप को बलुआ पत्थर की पट्टियों, एक परिक्रमा पथ और एक छत्र (छाता) के साथ एक हर्मिका के साथ विस्तारित किया गया था।
    • पहली शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक चार पत्थर के प्रवेश द्वार या तोरण बनाए गए, जो बौद्ध प्रतिमा विज्ञान और कहानियों को दर्शाती विस्तृत नक्काशी से सुसज्जित थे।
  • साँची स्तूप की पुनः खोज: वर्ष 1818 में जब ब्रिटिश अधिकारी हेनरी टेलर ने इसकी खोज की थी तब यह पूरी तरह खंडहर अवस्था में था। 
    • अलेक्जेंडर कनिंघम ने वर्ष 1851 में साँची में प्रथम औपचारिक सर्वेक्षण और उत्खनन का नेतृत्व किया। 
  • संरक्षण के प्रयास: वर्ष 1853 में भोपाल की सिकंदर बेगम ने महारानी विक्टोरिया को साँची के प्रवेशद्वार भेजने की पेशकश की, लेकिन वर्ष 1857 के विद्रोह और परिवहन संबंधी समस्याओं के कारण प्रवेशद्वार हटाने की योजना में देरी हुई।
    • वर्ष 1868 में बेगम ने फिर से प्रस्ताव दिया, लेकिन औपनिवेशिक अधिकारियों ने इसे अस्वीकार कर दिया और यथास्थान संरक्षण का विकल्प चुना। इसके बजाय पूर्वी प्रवेशद्वार का प्लास्टर कास्ट बनाया गया।
    • इस स्थल को इसकी वर्तमान स्थिति में 1910 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक जॉन मार्शल द्वारा निकटवर्ती भोपाल की बेगमों से प्राप्त धनराशि से पुनः स्थापित किया गया था।
      • मार्शल के प्रयासों से वर्ष 1919 में उस स्थान पर कलाकृतियों को संरक्षित करने और संरक्षण का प्रबंधन करने के लिये एक संग्रहालय का निर्माण किया गया।
  • साँची स्तूप की वास्तुकला: 
    • अण्ड: यह धरती पर बना एक अर्द्धगोलाकार टीला है।
    • हर्मिका: टीले के ऊपर चतुर्भुज रेलिंग है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान का निवास स्थान है।
    • छत्र: यह गुम्बद के शीर्ष पर बनी छतरी है।
    • यष्टि: यह केंद्रीय स्तंभ है, जो छत्र नामक तिहरे छत्रनुमा संरचना को सहारा देता है।
    • रेलिंग: यह स्तूप के चारों ओर लगी होती है, पवित्र क्षेत्र को सीमांकित करती है तथा पवित्र स्थान और बाहरी वातावरण के बीच एक भौतिक सीमा प्रदान करती है।
    • प्रदक्षिणापथ (परिक्रमा पथ): यह स्तूप के चारों ओर एक पैदल मार्ग है, जो भक्तों को पूजा के रूप में दक्षिणावर्त दिशा में चलने की अनुमति देता है।
    • तोरण:  तोरण बौद्ध स्तूप वास्तुकला में एक स्मारकीय प्रवेश द्वार या प्रवेश संरचना है।
    • मेधी: यह उस आधार को संदर्भित करता है, जो एक मंच बनाता है जिस पर स्तूप की मुख्य संरचना खड़ी होती है।

साँची स्तूप के प्रवेशद्वार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • निर्माण: चार दिशाओं की ओर उन्मुख चार प्रवेशद्वार (तोरण) का निर्माण पहली शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया था।
    • सातवाहन राजवंश के शासन के दौरान कुछ दशकों की अवधि में प्रवेशद्वारों का निर्माण किया गया था।
  • संरचना : ये प्रवेशद्वार दो वर्गाकार स्तंभों से बने हैं, जो सर्पिलाकार किनारे वाले तीन घुमावदार वास्तुशिल्प (या बीम) से युक्त एक अधिरचना को सहारा देते हैं।
  • उत्कीर्णन: स्तंभों और वास्तुशिल्प को सुंदर उभरी हुई आकृतियों तथा मूर्तियों से सुसज्जित किया गया है, जिनमें बुद्ध के जीवन के दृश्य, जातक कथाओं एवं अन्य बौद्ध प्रतिमाओं को दर्शाया गया है।
    • इसमें शालभंजिका (एक प्रजनन प्रतीक जिसे वृक्ष की शाखा को पकड़ती हुई यक्षी द्वारा दर्शाया गया है), हाथी, पंख वाले शेर और मोर शामिल हैं।
    • हालाँकि ये द्वार बुद्ध के मानव रूप का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
  • दार्शनिक महत्त्व: तीन घुमावदार आर्किट्रेव (या बीम) का निम्नलिखित दार्शनिक महत्त्व है।
    • ऊपरी प्रस्तरपाद: यह सात मानुषी बुद्धों (बुद्ध के पिछले अवतार) का प्रतिनिधित्व करता है।
    • मध्य वास्तुशिल्प: इसमें महाप्रयाण के दृश्य को दर्शाया गया है, जब राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में एक तपस्वी के रूप में रहने के लिये कपिलवस्तु छोड़ देते हैं। 
    • निचला प्रस्तरपाद: इसमें सम्राट अशोक को बोधि वृक्ष के पास जाते हुए दिखाया गया है जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

निष्कर्ष

साँची स्तूप प्राचीन बौद्ध वास्तुकला और भक्ति का एक स्मारकीय प्रमाण है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में, स्तूप अतीत को समकालीन वैश्विक प्रशंसा के साथ जोड़ते हुए, श्रद्धा एवं विद्वानों की रुचि को प्रेरित करता है। वर्तमान उदाहरण, जैसे जर्मनी द्वारा साँची स्तूप के पूर्वी द्वार की प्रतिकृति का निर्माण, ऐसे स्मारकों को संरक्षित करने के सार्वभौमिक मूल्य को रेखांकित करता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: साँची स्तूप के स्थापत्य विकास और ऐतिहासिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थानों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. अजंता की गुफाएँ
  2.  लेपाक्षी मंदिर
  3.  साँची स्तूप

उपर्युक्त स्थानों में से कौन-सा/से भित्ति चित्रों के लिये भी जाना जाता है/जाने जाते हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न: कुछ बौद्ध रॉक-कट गुफाओं को चैत्य कहा जाता है, जबकि अन्य को विहार कहा जाता है। दोनों के बीच क्या अंतर है? (2013) 

(a) विहार पूजा स्थल होता है, जबकि चैत्य बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान है।
(b) चैत्य पूजा स्थल होता है, जबकि बिहार बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान है।
(c) चैत्य गुफा के दूर के सिरे पर स्तूप होता है, जबकि विहार गुफा पर अक्षीय कक्ष होता है।
(d) दोनों में कोई वस्तुपरक अंतर नहीं होता। 

उत्तर: (b) 


मेन्स

प्रश्न. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारतीय स्मारकों की कल्पना तथा आकार देने एवं उनकी कला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप कला, लोक वर्ण्य विषयों और कथानकों को चित्रित करते हुए बौद्ध आदर्शों की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण कीजिये। (2016)

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