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नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन
- 22 Jun 2024
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर का औपचारिक उद्घाटन किया।
- यह बिहार के बिहार शरीफ ज़िले में राज़गीर नामक स्थान पर स्थित 455 एकड़ में विस्तृत है। यह स्थल प्राचीन नालंदा बौद्ध मठ से मात्र 12 कि.मी. दूरी पर स्थित है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास और पुनरुद्धार के प्रयास क्या हैं?
- इतिहास:
- गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त (शक्रदित्य) ने 5वीं शताब्दी के प्रारंभ में आधुनिक बिहार में 427 ई. में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, जो कि 12वीं शताब्दी तक 600 वर्षों तक चला।
- हर्षवर्धन और पाल राजाओं के काल में, यह बहुत लोकप्रिय हुआ।
- राजा हर्षवर्धन के शासनकाल (606-647 ई.) के दौरान चीनी विद्वान ज़ुआन ज़ांग (जिन्हें ह्वेनत्सांग और मोक्षदेव के नाम से भी जाना जाता है, जो 7वीं शताब्दी के चीनी बौद्ध भिक्षु, विद्वान, यात्री और अनुवादक थे) यहाँ आए और लगभग 5 वर्षों तक अध्ययन किया।
- वे नालंदा से कई शास्त्र भी अपने साथ ले गए, जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया।
- 670 ई. में एक अन्य चीनी तीर्थयात्री इत्सिंग ने नालंदा का दौरा किया। जिसके बारे में उन्होंने कहा कि नालंदा में 2,000 छात्र निवास करते थे और 200 गाँवों से मिलने वाले धन से इसका भरण-पोषण होता था।
- यहाँ चीन, मंगोलिया, तिब्बत, कोरिया और अन्य एशियाई देशों से बड़ी संख्या में छात्र अध्ययन के लिये आते थे।
- कुछ पुरातात्विक साक्ष्य इंडोनेशियाई शैलेंद्र राजवंश के संपर्क का भी संकेत देते हैं, जिनके राजाओं में से एक ने परिसर में एक मठ का निर्माण किया था।
- भगवान बुद्ध और भगवान महावीर जैसे आध्यात्मिक देवताओं (Spiritual Divines) ने इस क्षेत्र में ध्यान किया, जिससे इस क्षेत्र की सकारात्मक जीवंतता में वृद्धि हुई।
- नागार्जुन, आर्यभट्ट और धर्मकीर्ति जैसे महान गुरुओं ने प्राचीन नालंदा की विद्वत्तापूर्ण परंपराओं में योगदान दिया।
- तुर्क शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने वर्ष 1193 में विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था।
- वर्ष 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्राँसिस बुकानन-हैमिल्टन द्वारा इसकी पुनः खोज की गई तथा बाद में वर्ष 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचान मिली।
- आक्रमण:
- नालंदा महाविहार पर पहला आक्रमण गुप्त साम्राज्य के सम्राट समुद्रगुप्त के शासनकाल के दौरान 455-470 ई. के बीच हुआ था।
- आक्रमणकारी हूण थे, जो एक मध्य एशियाई आदिवासी समूह था, यह आक्रमण मुख्य रूप से विश्वविद्यालय के बहुमूल्य संसाधनों को लूटने की इच्छा से प्रेरित था।
- सम्राट स्कंद गुप्त ने बाद में विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित किया। उसके शासनकाल के दौरान ही प्रसिद्ध नालंदा पुस्तकालय की स्थापना की गई थी।
- नालंदा महाविहार पर दूसरा आक्रमण 7वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था, जिसकी योजना बंगाल के गौड़ सम्राटों द्वारा तैयार की गई थी।
- नालंदा महाविहार पर पहला आक्रमण गुप्त साम्राज्य के सम्राट समुद्रगुप्त के शासनकाल के दौरान 455-470 ई. के बीच हुआ था।
- पुनरुद्धार:
- 2000 के दशक की शुरुआत में पुनरुद्धार का विचार सामने आया। पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, सिंगापुर सरकार और पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (East Asian Summit - EAS) देशों के नेताओं ने नालंदा की वापसी की वकालत की।
- भारतीय संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया, जो नए संस्थान के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- नालंदा विश्वविद्यालय को भारत और अन्य पूर्वी एशियाई देशों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास के रूप में देखा जाता है, जो क्षेत्रीय ज्ञान के आदान-प्रदान पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने का प्रतीक है।
- बिहार सरकार ने प्राचीन खंडहरों के पास 455 एकड़ की जगह उपलब्ध कराई। वास्तुकार बी.वी. दोशी ने आधुनिक सुविधाओं को शामिल करते हुए अतीत की भावना को दर्शाते हुए एक पर्यावरण-अनुकूल परिसर (Eco-friendly campus) तैयार किया।
- विश्वविद्यालय बौद्ध अध्ययन, ऐतिहासिक अध्ययन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध सहित विभिन्न क्षेत्रों में स्नातकोत्तर कार्यक्रम प्रदान करता है।
- यह परिसर एक ‘शुद्ध शून्य उत्सर्जन/नेट ज़ीरो उत्सर्जन (NZE)’ ग्रीन परिसर है। यह एक सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल उपचार संयंत्र, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिये जल पुनर्चक्रण संयंत्र, 100 एकड़ जल निकाय और कई अन्य पर्यावरण अनुकूल सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर है।
- नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को 2016 में संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन:
- EAS की स्थापना वर्ष 2005 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के नेतृत्व वाली पहल के रूप में की गई थी।
- EAS हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एकमात्र नेतृत्वकर्ता मंच है जो रणनीतिक महत्त्व के राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने हेतु सभी प्रमुख भागीदारों को एक साथ लाता है।
- EAS स्पष्टता, समावेशिता, अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान, आसियान केंद्रीयता और प्रेरक शक्ति के रूप में आसियान की भूमिका जैसे सिद्धांतों पर काम करता है।
यूनेस्को के बौद्ध धर्म से संबंधित विरासत स्थल:
- नालंदा, बिहार में नालंदा महाविहार का पुरातात्विक स्थल।
- सांची, मध्य प्रदेश में बौद्ध स्मारक।
- बोधगया, बिहार में महाबोधि मंदिर परिसर।
- अजंता गुफाएँ औरंगाबाद, महाराष्ट्र।
- लद्दाख के बौद्ध मंत्रोच्चार को 2012 में यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया था।