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24 Aug 2019
रिवीज़न टेस्ट्स
इतिहास
हर्ष न केवल विद्वानों का आश्रयदाता था बल्कि स्वयं भी उत्कृष्ट साहित्यकार था। टिप्पणी कीजिये।
प्रश्न विच्छेद
कथन हर्ष के विद्वानों का आश्रयदाता एवं एक उत्कृष्ट साहित्यकार होने से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
हर्ष के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
हर्ष के विद्वानों का आश्रयदाता एवं एक उत्कृष्ट साहित्यकार होने की जाँच कीजिये।
उचित निष्कर्ष लिखिये।
गुप्त वंश के पतन के बाद उत्तर-पश्चिमी भारत लगभग आधे दर्जन सामंत राजाओं के हाथ में चला गया। इन्हीं में से एक हर्षवर्धन ने धीरे-धीरे अन्य सामंतों पर अपनी प्रभुता कायम कर एक सशक्त साम्राज्य के उदय का मार्ग प्रशस्त किया। हर्ष ने शासन व प्रशासन को सुदृढ़ बनाने के प्रयास के साथ-साथ न केवल विद्वानों को आश्रय दिया बल्कि स्वयं भी उसने कई रचनाएँ कीं जिनको हर्ष द्वारा रचे जाने की विश्वसनीयता को लेकर मध्यकालीन लेखकों द्वारा प्रश्न भी खड़े किये गए हैं।
हर्ष के विद्वानों का आश्रयदाता एवं एक उत्कृष्ट साहित्यकार होने के पक्ष व विपक्ष में तर्क निम्नलिखित हैं-
- बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था जिसने हर्षचरित नामक पुस्तक की रचना की इससे हर्ष के शासनकाल के आरंभिक जीवन की जानकारी मिलती है।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग ईसा की सातवीं सदी में भारत आया और इसने हर्ष के दरबार में कई वर्ष व्यतीत किये। ह्वेनसांग ने हर्ष के दरबार एवं उस समय के जनजीवन का सजीव वर्णन किया है जो फाह्यान के विवरण से कहीं अधिक विस्तृत एवं विश्वसनीय है।
- हर्ष ने महायान के सिद्धांतों के प्रचार के लिये कन्नौज में विशाल सम्मलेन आयोजित किया जिसमें शास्त्रार्थ के लिये विभिन्न सम्प्रदायों के कई हज़ार पुरोहित भी जमा हुए।
- ह्वेनसांग के अनुसार, नालंदा विश्वविद्यालय का भरण-पोषण 100 गाँवों के राजस्व से होता था। यहाँ पर बौद्ध भिक्षुओं को महायान संप्रदाय के बौद्ध दर्शन की शिक्षा भी दी जाती थी। इस प्रकार हर्ष के काल में नालंदा में एक विशाल बौद्ध बिहार था।
- हर्ष को प्रियदर्शिका, रत्नावली एवं नागानंद नाटकों के रचयिता के रूप में भी याद किया जाता है। उसे बाणभट्ट ने अद्भुत कवित्व प्रतिभा संपन्न कहा है और बाद के लेखकों ने तो साहित्यकार-सम्राट तक की संज्ञा दी है।
- हालाँकि, मध्यकाल के कई लेखक यह विश्वास नहीं करते हैं कि ये रचनाएँ हर्ष द्वारा स्वयं रची गई हैं। कहा जाता है कि धावक नामक कवि ने उससे पुरस्कार लेकर ये नाटक लिखे हैं।
निष्कर्षतः यह संभव है कि हर्ष ने भी कुछ रचनाएँ की हों। उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट होता है कि हर्ष ने अपने राज्य में विद्वानों को आश्रय दिया था। कहावत है कि राजा केवल नीम-हकीम, साहित्यकार होते हैं। मध्यकाल में भी शासकों की ख्याति में वृद्धि के लिये काव्य-कौशल सहित हर प्रकार के गुण आरोपित कर दिये जाते थे। इसका उद्देश्य शत्रु की दृष्टि में शासक की मज़बूत स्थिति को दर्शाना होता था।