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डेली न्यूज़

  • 20 Apr, 2023
  • 93 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

म्याँमार के वर्तमान मुद्दे

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), रोहिंग्या, संयुक्त राष्ट्र महासभा

मेन्स के लिये:

भारत के पड़ोसियों से संबंधित मुद्दे, इंटरनेशनल जेनोसाइड कन्वेंशन, शरणार्थी संकट

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ) ने हाल ही में म्याँमार के जुंटा की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें म्याँमार पर इंटरनेशनल जेनोसाइड कन्वेंशन (International Genocide Convention) का उल्लंघन करने के आरोप के मामले में प्रतिवाद दायर करने हेतु 10 महीने की मोहलत की मांग की गई थी।

  • यह मामला रखाइन राज्य में वर्ष 2017 में ‘क्लीयरिंग’ अभियान के दौरान म्याँमार सेना द्वारा किये गए अत्याचारों से संबंधित है, जिसके परिणामस्वरूप रोहिंग्या लोगों का विस्थापन हुआ।

म्याँमार में अस्थिरता का कारण:

  • पृष्ठभूमि: म्याँमार को वर्ष 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। यह वर्ष 1962 से 2011 तक सशस्त्र बलों द्वारा शासित रहा, इसके बाद यहाँ एक नई सरकार ने नागरिक शासन की शुरुआत की।
    • 2010 के दशक में सैन्य शासन ने देश में लोकतंत्र की स्थापना का फैसला किया। हालाँकि सशस्त्र बल शक्तिशाली बने रहे एवं राजनीतिक विरोधियों को मुक्त कर दिया गया, साथ ही चुनाव कराने की अनुमति दी गई।
    • देश का पहला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव वर्ष 2015 में हुआ जिसमें कई दलों ने भाग लिया, इस चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने जीत हासिल की और सरकार बनाई, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था सुनिश्चित हो।
  • सैन्य तख्तापलट: 
    • नवंबर 2020 में हुए संसदीय चुनाव में NLD ने अधिकांश सीटें हासिल कीं।
    • र्ष 2008 के सैन्य-मसौदा संविधान के अनुसार म्याँमार की संसद में सेना के पास कुल सीटों का हिस्सा 25% है और कई प्रमुख मंत्री पद भी सैन्य नियुक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
    • जब नव निर्वाचित म्याँमार के सांसदों द्वारा वर्ष 2021 में संसद का पहला सत्र आयोजित किया जाना था, तब सेना ने संसदीय चुनावों में भारी मतदान धोखाधड़ी का हवाला देते हुए एक वर्ष के लिये आपातकाल लागू कर दिया था।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिह्नित मुद्दे:  
    • यद्यपि किसी भी प्रकार के संघर्ष के दौरान नागरिकों की सुरक्षा करना सेना के लिये कानूनी रूप से आवश्यक है, फिर भी अंतर्राष्ट्रीय कानून से संबंधित सिद्धांतों का लगातार उल्लंघन किया गया।
    • म्याँमार की अर्थव्यवस्था काफी बुरी स्थिति में है जिस कारण लगभग आधी आबादी अब गरीबी रेखा के नीचे रह रही है।
    • तख्तापलट की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से सेना ने देश के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों और 16,000 से अधिक अन्य लोगों को हिरासत में लिया है।
  • रोहिंग्या मुद्दा:  
    • 25 अगस्त, 2017 को म्याँमार के रखाइन राज्य में हुई हिंसा ने लाखों रोहिंग्या लोगों को अपने घरों से भागने पर मजबूर कर दिया।
    • म्याँमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन से रोहिंग्या समुदाय में अब कोई संबंध नहीं रह गया है।
      • वर्षों से म्याँमार में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिसमें भाषण और सभा की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, मनमाने ढंग से गिरफ्तारियाँ और निरोध, सेंसरशिप और हिंसा शामिल हैं।
    • जनवरी 2020 में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत (ICJ) ने म्याँमार को अपने रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों को नरसंहार से बचाने के लिये उपाय करने का आदेश दिया।

Myanmar

म्याँमार मुद्दे पर भारत का रुख: 

  • हाल के वर्षों में भारत ने म्याँमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से रोहिंग्या संकट के संबंध में।
    • भारत ने इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये ज़िम्मेदार लोगों की जवाबदेही का आह्वान किया है।
  • यद्यपि भारत ने म्याँमार में हाल के घटनाक्रमों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, लेकिन म्याँमार की सेना से दूरी बनाना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है क्योंकि म्याँमार और उसके पड़ोसियों से भारत के महत्त्वपूर्ण आर्थिक एवं रणनीतिक हित जुड़े हैं।
    • म्याँमार के मुद्दे पर भारत का रुख उसकी उभरती स्थिति और क्षेत्र में भू-राजनीतिक गतिशीलता के आधार पर विकसित हो सकता है। 

नोट: ऐसी गतिविधियाँ जो किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से नष्ट करने के उद्देश्य से की जाती हैं, नरसंहार/जेनोसाइड कहलाती हैं और विश्व स्तर पर इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है। 

इंटरनेशनल जेनोसाइड कन्वेंशन:  

  • इंटरनेशनल जेनोसाइड कन्वेंशन, जिसे जेनोसाइड के अपराध की रोकथाम और सज़ा पर अभिसमय के रूप में भी जाना जाता है, 9 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई एक संधि है। 
    • जेनोसाइड कन्वेंशन के अनुसार, जेनोसाइड  एक ऐसा अपराध है जो युद्ध तथा शांति दोनों समय हो सकता है।
    • कन्वेंशन के लिये राज्यों को घरेलू कानून बनाकर नरसंहार को रोकने और इसके लिये दंडित करने की आवश्यकता है।
  • कन्वेंशन में निर्धारित जेनोसाइड के अपराध की परिभाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर व्यापक रूप से अपनाया गया है, जिसमें वर्ष 1998 में अपनाई गई अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की रोम संविधि भी शामिल है।
  • भारत इस कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)  

समाचारों में कभी-कभी उल्लिखित समुदाय          किसके मामले में      

  1. कुर्द                                                    बांग्लादेश 
  2. मधेसी                                                  नेपाल 
  3. रोहिंग्या                                                 म्याँमार  

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 2  
(c) केवल 2 और 3 
(d) केवल 3  

उत्तर: (c)  


मेन्स: 

प्रश्न. अवैध सीमा पार प्रवास भारत की सुरक्षा के लिये कैसे खतरा उत्पन्न करता है? इस तरह के प्रवासन को बढ़ावा देने वाले कारकों को उजागर करते हुए इसे रोकने के लिये रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

सतत् पशुधन खेती हेतु तापीय दबाव का प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् पशुधन खेती, तापीय दबाव/थर्मल स्ट्रेस , पशुधन क्षेत्र, डेयरी, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, AHIDF

मेन्स के लिये:

सतत् पशुधन खेती

चर्चा में क्यों?

केरल में तापीय दबाव सतत् पशुधन खेती हेतु एक गंभीर खतरा बन गया है।

  • केरल में 95% से अधिक मवेशी देशी किस्मों की तुलना में कम तापीय सहनशक्ति वाले संकर नस्ल के हैं। केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (Kerala Veterinary and Animal Sciences University- KVASU) ने तापीय दबाव से निपटने हेतु जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मवेशियों का चयन करने के लिये एक परियोजना शुरू की है।

तापीय दबाव और पशुधन पर इसका प्रभाव: 

  • परिचय: 
    • तापीय दबाव जानवरों के शारीरिक और चयापचय प्रतिक्रियाओं को संदर्भित करता है जो सामान्य सीमा से अधिक तापमान पर प्रभावी होता है।
    • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब जानवर का शरीर अपने सामान्य आंतरिक तापमान को बनाए रखने में असमर्थ होता है और इसके परिणामस्वरूप जानवर के स्वास्थ्य एवं उसकी उत्पादकता पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
  • कारण: 
    • तापीय दबाव के कई कारक हो सकते हैं, जैसे- परिवेश का उच्च तापमान, आर्द्रता, सौर विकिरण और उचित वेंटिलेशन या शीतलन तंत्र की कमी।
      • पशुपालन के संदर्भ में यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि इसके गंभीर आर्थिक और पशु कल्याण संबंधी परिणाम हो सकते हैं।
  • तापीय दबाव का प्रभाव: 
    • उत्पादकता में कमी: उच्च स्तर के तापीय दबाव से दुग्ध उत्पादन में गिरावट, चारे की कमी और पशुओं के वज़न में कमी आने जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इससे किसानों की उत्पादकता और आय में कमी आ सकती है।
    • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: यह पशुओं में विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें श्वसन संबंधी समस्या, हीट स्ट्रोक और निर्जलीकरण शामिल हैं।
      • इससे बीमारियों के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि, प्रतिरक्षा में कमी आने के साथ-साथ उम्र भी प्रभावित हो सकती है।
    • आर्थिक नुकसान: पशुधन किसानों को तापीय दबाव और इससे उत्पन्न होने वाले स्वास्थ्य समस्याओं तथा उच्च मृत्यु दर के कारण आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
      • तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये किसानों को अपने पशुओं को पंखे अथवा स्प्रिंकलर जैसे शीतलन तंत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु अतिरिक्त लागत का भर भी उठाना पड़ सकता है।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: तापीय दबाव के प्रभावों को कम करने के लिये पशुओं को शीतलता प्रदान करने के लिये जल के अत्यधिक उपयोग जैसी अस्थिर प्रथाओं का सहारा लेना पड़ सकता है जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

पशुओं को तापीय दबाव से बचाने के उपाय: 

  • प्रजनन प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव के दौरान गायें गंभीर गर्मी के लक्षण कम प्रदर्शित करती हैं, इसलिये इन लक्षणों का अच्छे से पता लगाने के लिये एक बेहतर ताप पहचान कार्यक्रम की आवश्यकता है।
    • हमेशा यह सलाह दी जाती है कि प्रजनन हेतु बैलों का उपयोग में किये जाने के बजाय कृत्रिम गर्भाधान का इस्तेमाल करना चाहिये क्योंकि प्राकृतिक प्रजनन प्रक्रिया में बैल और गाय दोनों ही तापीय दबाव के कारण बाँझपन का शिकार हो सकते हैं।
  • शीतलन प्रणाली:  
    • पानी के छिड़काव की सुविधा के साथ ही पंखे लगाए जा सकते हैं लेकिन पानी के अत्यधिक छिड़काव से बचना चाहिये क्योंकि इससे ज़मीन अधिक गीली हो सकती है और पशुओं को मास्टिटिस तथा अन्य बीमारियों का खतरा हो सकता है। पशुशाला में हवा का बाधा मुक्त प्रवाह होना चाहिये।
  • आहार प्रबंधन:  
    • तापीय दबाव वाले पशुओं में प्रजनन और उत्पादक प्रदर्शन कम होने का खतरा अधिक होता है। 
    • उच्च गुणवत्ता वाला चारा और संतुलित आहार प्रदान किये जाने से तापीय दबाव के प्रभाव कुछ कम हो सकते हैं और पशु प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है।  
  • ऊष्मा सहिष्णु पशुओं का चयन:  
    • गर्मी की सहनशीलता के लिये विशिष्ट आणविक आनुवंशिक मार्करों के आधार पर पशुओं का आनुवंशिक चयन गर्मी सहने वाले पशुओं की पहचान करके मवेशियों और भैंसों में गर्मी के तनाव को कम करने के लिये वरदान हो सकता है।

भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल: 

  • वर्ष 2014-15 से 2020-21 (स्थिर मूल्यों पर) के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा और कुल कृषि GVA  (सकल मूल्य वर्द्धित) में इसका योगदान वर्ष 2014-15 के 24.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1 प्रतिशत रहा।
  • भारत में डेयरी क्षेत्र कृषि में सबसे बड़ा है। यह क्षेत्र  राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत के योगदान के साथ 80 मिलियन डेयरी किसानों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार देता है।

पशुधन क्षेत्र से संबंधित पहल:

आगे की राह  

  • सतत् पशुधन खेती को बढ़ावा देने में एक बहुआयामी दृष्टिकोण शामिल है जिसमें उचित पशु कल्याण प्रथाओं को लागू करना, टिकाऊ उत्पादन विधियों को अपनाना, अपशिष्ट और उत्सर्जन को कम करना, स्थानीय एवं क्षेत्रीय बाज़ारों को बढ़ावा देना तथा किसानों के लिये शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम सुनिश्चित करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कृषि मृदा पर्यावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ती है।
  2. मवेशी अमोनिया को पर्यावरण में छोड़ते हैं।
  3. पोल्ट्री उद्योग प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन यौगिकों को पर्यावरण में छोड़ता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 2  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार और आय प्रदान करने के लिये पशुधन पालन की बड़ी संभावना है। भारत में इस क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु उपयुक्त उपाय सुझाने पर चर्चा कीजिये। (2015) 

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

नशीले पदार्थों की तस्करी और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

मेथामफेटामाइन, फेंटानिल, NDPS अधिनियम, NCB, गोल्डन क्रिसेंट और गोल्डन ट्रायंगल, नशीली दवा के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष, नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना

मेन्स के लिये:

ड्रग संबंधी खतरे, चुनौतियाँ, आवश्यक पहलें

चर्चा में क्यों?  

वैश्विक ड्रग व्यापार एक बड़ी समस्या है जिस कारण भारत सहित विश्व भर की सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ/अभिकरण हाई अलर्ट पर हैं।

  • परंपरागत रूप से ही भारत डेथ (गोल्डन) क्रीसेंट और डेथ (गोल्डन) ट्रायंगल के बीच स्थित है। इन दो क्षेत्रों से ड्रग माफियाओं द्वारा यहाँ हेरोइन तथा मेथामफेटामाइन जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी की जा रही है, जिन्हें खुफिया एजेंसियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान की जाती है।

नशीले पदार्थों की तस्करी से उत्पन्न समस्याएँ: 

  • यह एक सामाजिक समस्या है जिसके कारण युवाओं और परिवारों को नुकसान पहुँचता है और इससे अर्जित किया गया धन विघटनकारी गतिविधियों एवं उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है।
  • आपराधिक नेटवर्क के तहत कैनबिस, कोकीन, हेरोइन और मेथामफेटामाइन सहित कई प्रकार की नशीली दवाओं का व्यापार किया जाता है।
    • मेथमफेटामाइन (मेथ) एक नशीली दवा है जिसकी लत लग सकती है और यह स्वास्थ्य के लिये काफी प्रतिकूल है जो कभी-कभी मौत का कारण बन सकती है।
    • हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका को नई ज़ोंबी दवा (फेंटानिल/fentanyl) के विषय में पता चला है जो वहाँ देश की आबादी के बीच तेज़ी से प्रचलित हो रही है।
      • इस दवा का सेवन करने वालों की त्वचा पर घाव हो सकते हैं जो निरंतर संपर्क में आने से तेज़ी से फैल सकते हैं।
      • इसकी शुरुआत अल्सर से होती है, इसके कारण मृत त्वचा (एस्कर/eschar) जैसी स्थिति हो जाती है और यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो संबद्ध अंग को काट कर हटाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं रहता है।
  • नशीली दवाओं की तस्करी अक्सर अपराध के अन्य रूपों से जुड़ी होती है, जैसे-आतंकवाद, मनी लॉन्ड्रिंग अथवा भ्रष्टाचार
  • अन्य अवैध उत्पादों के परिवहन के लिये आपराधिक नेटवर्क द्वारा तस्करी जैसे मार्गों का भी उपयोग किया जा सकता है।

भारत में नशीले पदार्थों की लत की स्थिति:  

  • वर्ष 2018 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने एम्स, नई दिल्ली के सहयोग से "भारत में पदार्थों के उपयोग की सीमा और पैटर्न पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण" आयोजित किया था। इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

Name of the substance 

Prevalence of use  

(Age Group 10-75 years) 

Alcohol 

14.6% 

Cannabis 

2.83% 

Opiates/ Opioids 

2.1% 

  • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 5.2 टन अफीम की चौथी सबसे बड़ी मात्रा ज़ब्त की गई और तीसरी सबसे बड़ी मात्रा में मॉर्फिन (0.7 टन) भी उसी वर्ष ज़ब्त की गई ।

भारत में अवैध ड्रग्स की तस्करी के स्रोत:  

  • थ्रेट्स फ्रॉम डेथ (गोल्डन) क्रीसेंट: इसमें अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं।
    • अफगानिस्तान से सटे पाकिस्तान के कुछ हिस्सों का भी पाकिस्तानी ड्रग तस्करों द्वारा अफगान अफीम को हेरोइन में परिवर्तित करने और फिर भारत भेजने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • थ्रेट्स फ्रॉम डेथ (गोल्डन) ट्रायंगल: इसमें वियतनाम, थाईलैंड, लाओस और म्याँमार शामिल हैं।
    • चीन की सीमा से सटे म्याँमार के शान और काचिन प्रांत भी चुनौती पेश करते हैं।
  • चीनी कारक: इन हेरोइन और मेथामफेटामाइन उत्पादक क्षेत्रों में खुली सीमाएँ (Porous Borders) हैं, ये कथित तौर पर विद्रोही समूहों के नियंत्रण में हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से चीनियों द्वारा समर्थित हैं।
    • यहाँ अवैध हथियारों का निर्माण किया जाता है और भारत में सक्रिय भूमिगत समूहों को इसकी आपूर्ति की जाती है।
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री मार्गों के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी, भारत में तस्करी की जाने वाली कुल अवैध नशीली दवाओं का लगभग 70% हिस्सा होने का अनुमान है।

ड्रग के खतरे को रोकने हेतु भारत द्वारा की गई पहल:

  • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, (NDPS) 1985: यह किसी व्यक्ति को किसी भी मादक पदार्थ या साइकोट्रोपिक पदार्थ के उत्पादन, स्वामित्त्व, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से रोकता है।
  • ड्रग डिमांड रिडक्शन हेतु नेशनल एक्शन प्लान: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2018-25 की अवधि हेतु ड्रग डिमांड रिडक्शन के लिये एक योजना तैयार की है। यह योजना निम्नलिखित पर केंद्रित है:
    • निवारक शिक्षा
    • जागरूक पीढ़ी  
    • नशीली दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों की पहचान, परामर्श, उपचार और पुनर्वास
    • सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से सेवा प्रदाताओं का प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कोष: इसे एनडीपीएस, 1985 के प्रावधान के अनुसार उपायों हेतु किये गए व्यय को पूरा करने के लिये बनाया गया था:
    • अवैध तस्करी का मुकाबला
    • नशीली दवाओं और पदार्थों के दुरुपयोग को नियंत्रित करना
    • व्यसनियों की पहचान, उपचार और पुनर्वास
    • नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकना
    • जनता को नशे के खिलाफ शिक्षित करना 
  • नशा मुक्त भारत अभियान: नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) 2020 में मादक द्रव्यों के सेवन के मुद्दे से निपटने और भारत को नशा मुक्त बनाने के दृष्टिकोण से शुरू किया गया था। इसमें निम्नलिखित तीन बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है:
    • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा आपूर्ति पर अंकुश
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता द्वारा आउटरीच और जागरूकता बढ़ाने एवं मांग में कमी का प्रयास
    • स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से उपचार
  • भारतीय तटरक्षकों की पहल: भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने ऐसी दवाओं की ज़ब्ती के लिये  सुरक्षा एजेंसियों और श्रीलंका, मालदीव तथा बांग्लादेश के तटरक्षकों के साथ उचित तालमेल स्थापित किया है।
    • इसने हाल ही में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास दो अलग-अलग मामलों में 2,160 किलोग्राम मेथमफेटामाइन (मेथ) ज़ब्त किया।
  • नशीली दवाओं के खतरे से निपटने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन: भारत निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्त्ता है:

भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • डार्कनेट: डार्कनेट मार्केट्स को उनकी गुमनामी और कम जोखिम के कारण ट्रेस करना मुश्किल है। उन्होंने पारंपरिक दवा बाज़ारों पर कब्ज़ा कर लिया है। अध्ययनों से पता चलता है कि 62 प्रतिशत डार्कनेट का उपयोग अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के लिये किया जा रहा है। 
    • विश्व भर में डार्कनेट का उपयोग कर अवैध व्यापार करने वालों को पकड़ने की सफलता दर बहुत कम रही है।
  • क्रिप्टोरेंसी में लेन-देन: कुरियर सेवाओं के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी भुगतान और डोरस्टेप डिलीवरी ने डार्कनेट लेन-देन को सरल बना दिया है। 
  • तस्कर रचनात्मक और तकनीक प्रेमी बन गए हैं: तस्करों ने पंजाब में ड्रोन के माध्यम से नशीली दवाओं और बंदूकों की आपूर्ति करने जैसी नई तकनीकों को अपनाया है, जिसने सुरक्षा बलों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। 
  • अधिक सुरक्षित और गुमनाम तरीकों का उपयोग करना: कोविड-19 महामारी के दौरान वाहनों/जहाज़/एयरलाइन आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद मादक पदार्थों के तस्करों ने कूरियर/पार्सल/डाक पर अधिक विश्वास करना शुरू कर दिया है।
    • वर्ष 2022 में एक व्यक्ति को ई-कॉमर्स डमी वेबसाइट बनाकर ड्रग्स का कारोबार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
    • एक और उदाहरण में कुछ लोगों को वेबसाइट पर नकली उत्पादों को सूचीबद्ध करके अमेज़न जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों के माध्यम से ड्रग्स बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
  • ड्रग लॉर्ड्स और NRIs के बीच गठजोड़: हाल की जाँच में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग एवं कई यूरोपीय देशों में स्थित NRIs के साथ भारत में स्थानीय ड्रग लॉर्ड्स तथा गैंगस्टर्स के साथ ड्रग कार्टेल के संबंध का पता चला है, जिनके खालिस्तानी आतंकवादियों और पाकिस्तान में ISI के साथ संबंध हैं।
  • स्थानीय गिरोहों के माध्यम से तस्करी: एक नया चलन सामने आया है जिसमें स्थानीय गिरोह का उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी के लिये किया जा रहा है जो मुख्य रूप से अपने क्षेत्रों में ज़बरन वसूली की गतिविधियों को अंजाम देते थे क्योंकि वह ऐसी गतिविधियों को करने के लिये सरल विकल्प के रूप में मौजूद हैं।

 आगे की राह 

  • ड्रग्स को देश में प्रवेश करने से रोकने के लिये सीमा पार तस्करी को नियंत्रित करने और ड्रग प्रवर्तन में सुधार जैसे उपाय किये जाने चाहिये। हालाँकि समस्या को पूरी तरह से हल करने के लिये भारत को NDPS अधिनियम, 1985 के तहत कठोर दंड लगाने जैसे उपायों के माध्यम से दवाओं की मांग को कम करने पर भी काम करना चाहिये। 
  • अभियानों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से नशे की लत को कम करने के लिये लोगों में जागरूकता फैलाई जानी चाहिये। ड्रग लेने के कारण लगे लांछन को दूर करने की ज़रूरत है। समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि नशा करने वाले पीड़ित होते हैं, न कि अपराधी।
  • कुछ फसलों की दवाएँ जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड होते हैं उन पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं के खतरे को रोकने के लिये पुलिस अधिकारियों एवं आबकारी तथा नारकोटिक्स विभाग से सख्त कार्यवाही की आवश्यकता है। 
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। इसके आलावा उचित परामर्श एक अन्य विकल्प है।
  • इस बढ़ते खतरे से निपटने हेतु सभी एजेंसियों के सम्मिलित और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी।
  • रोज़गार के अधिक अवसर सृजित करने से समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकता है क्योंकि त्वरित तथा अधिक पैसा बेरोज़गार युवाओं को ऐसी गतिविधियों की ओर आकर्षित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention against Corruption- UNCAC) में 'भूमि, समुद्र और वायुमार्ग द्वारा प्रवासियों के तस्करी के विरुद्ध एक प्रोटोकॉल' होता है।
  2. UNCAC अब तक का सबसे पहला विधितः बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार-निरोधी लिखित है।
  3. राष्ट्र पर संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention against Transnational Organized Crime- UNTOC) की एक विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है, जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है, जिनसे उन्हें अवैध तरीके से ले ली गई थी ।
  4. मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ( United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC और UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d)1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. एक सीमांत राज्य के एक ज़िले में स्वापकों (नशीले पदार्थों) का खतरा अनियंत्रित हो गया है। इसके परिणामस्वरूप काले धन का प्रचलन, पोस्त की खेती में वृद्धि, हथियारों की तस्करी व्यापक हो गई है तथा शिक्षा व्यवस्था लगभग ठप हो गई है। संपूर्ण व्यवस्था एक प्रकार से समाप्ति के कगार पर है। इन अपुष्ट खबरों से कि स्थानीय राजनेता और कुछ पुलिस उच्चाधिकारी भी ड्रग माफिया को गुप्त संरक्षण दे रहे हैं, स्थिति और भी बदतर हो गई है। ऐसे समय परिस्थिति को सामान्य करने के लिये एक महिला पुलिस अधिकारी जो ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिये अपने कौशल के लिये जानी जाती है, पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त किया जाता है।

Q. यदि आप वही पुलिस अधिकारी हैं तो संकट के विभिन्न आयामों को चिह्नित कीजिये। अपनी समझ के अनुसार, संकट का सामना करने  के उपाय भी सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

नागरिक संघ और विवाह

प्रिलिम्स के लिये:

निजता का अधिकार, विवाह का अधिकार, धारा 377 IPC, विशेष विवाह अधिनियम।

मेन्स के लिये:

भारत में समलैंगिक विवाहों को वैध बनाना और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?  

केंद्र ने विवाह की "सामाजिक-कानूनी संस्था" को कानूनी मान्यता प्रदान करने के न्यायपालिका के अधिकार के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई का विरोध किया है।

  • केंद्र की आपत्तियों के जवाब में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने स्पष्ट किया कि सुनवाई का दायरा एक "नागरिक संघ" की धारणा विकसित करने तक सीमित होगा, जिसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत कानूनी मान्यता मिलती है।

नागरिक संघ: 

  • परिचय:  
    • "नागरिक संघ" एक कानूनी स्थिति है जो समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है, यह आमतौर पर विवाहित जोड़ों को दी जाती है।
    • हालाँकि एक नागरिक संघ एक विवाह जैसी स्थिति है और इसके साथ रोज़गार, विरासत, संपत्ति और पैतृक अधिकार आते हैं, दोनों के बीच कुछ अंतर हैं।  
  • नागरिक संघ बनाम विवाह:
    • नागरिक संघ/सिविल यूनियन एक विवाह जैसी कानूनी स्वीकृति है जो आमतौर पर समान लिंग के दो व्यक्तियों को प्रदान की जाती है।
    • विवाह कानून द्वारा मान्यता प्राप्त एक धार्मिक संस्था है जो दो व्यक्तियों (पुरुष और महिला) को विवाह करने की अनुमति देती है।
    • चूँकि समलैंगिक  विवाह, विवाह की धर्म-आधारित परिभाषा के दायरे से बाहर है, इसलिये सिविल यूनियन एक उपकरण है जो समान लिंग विवाह का विकल्प चुनने वाले जोड़ों को समान कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है।
  • अन्य देश जो नागरिक संघ की अनुमति देते हैं:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय (SCOTUS) ने "ओबेर्गेफेल बनाम होजेस" में अपने ऐतिहासिक निर्णय के साथ पूरे देश में समलैंगिक विवाहों को वैध कर दिया।
      • वर्ष 2015 से पहले अमेरिका के अधिकांश राज्यों में नागरिक संघों हेतु कानून थे जो समान लिंग के जोड़ों को विवाह करने की अनुमति देते थे।
    • स्वीडन: वर्ष 2009 से पहले LGBTQ युगल नागरिक संघ  के लिये आवेदन कर सकते थे और गोद लेने के अधिकार जैसे लाभों का लाभ ले सकते थे। स्वीडन ने वर्ष 2009 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी थी।
    • इसी प्रकार, ब्राज़ील, उरुग्वे और चिली जैसे देशों ने भी विवाह के कानूनी अधिकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने से पहले ही समलैंगिक जोड़ों के नागरिक संघों में प्रवेश करने के अधिकार को मान्यता दे दी थी।

भारत में समलैंगिक विवाहों की स्थिति:

  • हालाँकि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, लेकिन भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिलना अभी बाकी है।
  • तब से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएँ दायर की गई हैं और न्यायपालिका ने ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है तथा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत नागरिक संघ के दायरे की तलाश कर रही है। 
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक विवाह दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को विवाह के बंधन में बांधने की अनुमति देता है, जिसकी व्यक्तिगत/धार्मिक कानूनों के तहत अनुमति नहीं है।
  • LGBTQ अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय:
    • केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017: निजता के अधिकार पर इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का यौन अभिविन्यास उसके निजता के अधिकार के तहत आता है।
      • यह ऐतिहासिक निर्णय IPC की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने का आधार बना जिसके तहत समलैंगिकता एक अपराध माना गया था। 
    • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 को इस हद तक खत्म कर दिया कि यह समलैंगिकता को अपराध मानती है।
      • यह भी कहा गया कि यौन अभिविन्यास और लैंगिक आधार पर कानून में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
    • इसके अलावा लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, सफीन बनाम अशोकन और शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ के मामलों जैसे विभिन्न निर्णयों में यह माना गया है कि जीवन साथी चुनना अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। 

समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के संबंध में तर्क: 

  • पक्ष में तर्क:  
    • 'जेंडर' की एक व्यापक परिभाषा: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यहाँ पुरुष या महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है। यह सिर्फ उनकी शारीरिक रचना से कहीं अधिक जटिल है।
    • परिवर्तन मौलिक नियम: समाज समय के साथ विकसित होता रहता है और समाज में परिवर्तन के साथ कानून भी विकसित होने चाहिये।
    • कम कानूनी जटिलताएँ: व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन की आवश्यकता नहीं है, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की व्यापक व्याख्या समलैंगिक विवाह को वैध बनाने हेतु पर्याप्त होगी।
    • समानता को कायम रखना: समलैंगिक जोड़ों को भी निजता और स्वतंत्रता दी जानी चाहिये और उन्हें विषमलैंगिक जोड़ों जैसे उपलब्ध समान अधिकार मिलना चाहिये।
      • इसके अलावा उन्हें कम नश्वर के रूप में नहीं माना जाना चाहिये और केवल इसलिये संतुष्ट होने कि अपेक्षा की जानी चाहिये क्योंकि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
  • विपक्ष में तर्क  
    • सामाजिक स्वीकृति: यह तर्क दिया जाता है कि समाज यह स्वीकार नहीं कर सकता है कि समलैंगिक विवाह विषमलैंगिक विवाहों के सामान होना चाहिये।
      • समाज द्वारा किसी भी रिश्ते की स्वीकृति कभी भी विधानों या निर्णयों पर निर्भर नहीं होती है। 
    • दायरे को बढ़ाने संबंधी मुद्दे: 'लिंग’ शब्द की व्यापक परिभाषा प्रदान करना समस्याप्रद हो सकता है; यदि पुरुष की जैविक विशेषता वाला कोई पुरुष खुद को एक महिला के रूप में पहचानने लगता है, तो प्राधिकारों के लिये यह समस्या हो जाएगी कि उसे कानून के तहत पुरुष माना जाए अथवा महिला।
    • कानूनी पेचीदगियाँ: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से कई कानूनी अड़चनें आ सकती हैं। जैसे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) का तर्क है कि इसे कानूनी दर्जा देना किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के खिलाफ होगा।
      • उदाहरण के लिये इस अधिनियम की धारा 5(2)A एकल पुरुष द्वारा एक बालिका को गोद लेने पर रोक लगाती है। समलैंगिक युगलों के लिये बच्चा गोद लेने में भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।
      • इसके अतिरिक्त विवाह समवर्ती सूची का विषय है, समलैंगिक विवाह के वैधीकरण के लिये बहुत सारे कानूनों में संशोधन किये जाने की आवश्यकता होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019)

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, प्रोजेक्ट टाइगर, CITES

मेन्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण का महत्त्व, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की  सफलता और इससे संबद्ध चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?   

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 ने अपनी स्थापना के 51 वर्ष पूरे कर लिये हैं और इन वर्षों में यह कई लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करने में सफल रहा है। इस अधिनियम ने देश के विविध वन्यजीवों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:

  • परिचय: 
    • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।
    • वन्यजीव अधिनियम ने CITES (वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) में भारत के प्रवेश को सरल बना दिया था।
    • इससे पहले जम्मू-कश्मीर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के दायरे में नहीं आता था। लेकिन अब पुनर्गठन अधिनियम के परिणामस्वरूप भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।
  • वन्यजीव अधिनियम हेतु संवैधानिक प्रावधान:
    • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत वन एवं वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया था।
    • संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।
    • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48A, यह आज्ञापित करता है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार और देश के वनों तथा वन्य जीवन की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
  • अधिनियम के तहत अनुसूचियाँ:  
    • अनुसूची I: 
      • इसमें उन लुप्तप्राय प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें सर्वाधिक संरक्षण की आवश्यकता है
      • इस अनुसूची के तहत किसी भी कानून के ल्लंघन की स्थिति में व्यक्ति को सबसे कठोर दंड दिया जा सकता है।
      • इस अनुसूची के तहत शामिल प्रजातियों का पूरे भारत में शिकार करने पर प्रतिबंध है, सिवाय ऐसी स्थिति के जब वे मानव जीवन के लिये खतरा हों अथवा वे ऐसी बीमारी से पीड़ित हों, जिससे ठीक होना संभव नहीं है।
      • अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध कुछ जानवरों में कृष्ण मृग (काला हिरण), हिम तेंदुआ (स्नो लेपर्ड), हिमालयी भालू और एशियाई चीता शामिल हैं।
    • अनुसूची II: 
      • इस सूची के अंतर्गत आने वाले जानवरों को भी उनके संरक्षण के लिये उच्च सुरक्षा प्रदान की जाती है, जिसमें उनके व्यापार पर प्रतिबंध आदि शामिल हैं।
      • अनुसूची II के तहत सूचीबद्ध कुछ जानवरों में असमिया मकाक, हिमालयी काला भालू (Himalayan Black Bear) और भारतीय नाग (Indian Cobra) शामिल हैं।
    • अनुसूची III व IV: 
      • जानवरों की वे प्रजातियाँ, जो संकटग्रस्त नहीं हैं उन्हें अनुसूची III और IV के अंतर्गत शामिल किया गया है।
      • इसमें प्रतिबंधित शिकार वाली संरक्षित प्रजातियाँ शामिल हैं, लेकिन किसी भी उल्लंघन के लिये दंड पहली दो अनुसूचियों की तुलना में कम है।
      • अनुसूची III के तहत संरक्षित जानवरों में चीतल (Spotted Deer), भड़ल/हिमालयी नीली भेड़ (Blue Sheep), लकड़बग्घा और सांभर (Deer) शामिल हैं।
      • अनुसूची IV के तहत संरक्षित जानवरों में राजहंस (Flamingo), खरगोश, बाज़, किंगफिशर, मैगपाई और हॉर्सशू क्रैब शामिल हैं।
    • अनुसूची V: 
      • इस अनुसूची में ऐसे जंतु शामिल हैं जिन्हें वर्मिन/परोपजीवी कहा जाता है (छोटे जंगली जीव जो रोग का परिसंचरण करते हैं तथा पौधों एवं भोज्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं)। इन जानवरों का शिकार किया जाता है।
      • इसमें जंगली जानवरों की केवल चार प्रजातियाँ शामिल हैं: कौवे, फल चमगादड़, चूहा और मूषक।
    • अनुसूची VI: 
      • यह एक निर्दिष्ट पौधों की कृषि में नियमन प्रदान करता है और इस पर स्वामित्त्व, इसकी बिक्री और परिवहन को नियंत्रित करता है।
      • निर्दिष्ट पौधों की कृषि और व्यापार दोनों ही निपुण प्राधिकारी की पूर्व अनुमति से ही किये जा सकते हैं।
      • अनुसूची VI के तहत संरक्षित पौधों में बेडडोम्स साइकैड/Beddomes’ Cycad (भारतीय मूल का पौधा), ब्लू वांडा/Blue Vanda (नीला ऑर्किड), रेड वांडा/Red Vanda (लाल ऑर्किड), कुथ/Kuth (Saussurea Lappa), स्लिपर ऑर्किड (Paphiopedilum Spp.) और पिचर प्लांट (Nepenthes Khasiana) शामिल हैं।
  • अधिनियम के तहत गठित निकाय: 
    •  राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife- NBWL):
      • NBWL सभी वन्यजीव संबंधी मुद्दों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में तथा उसके आसपास परियोजनाओं को मंजूरी देने वाला शीर्ष संगठन है।
    •  राज्य वन्यजीव बोर्ड (State Board for Wildlife- SBWL): 
      • राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री इस बोर्ड के अध्यक्ष होते हैं।
    • केंद्रीय जैविक उद्यान/ चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority):  
      • केंद्रीय जैविक उद्यान प्राधिकरण में अध्यक्ष और एक सदस्य-सचिव सहित कुल 10 सदस्य होते हैं। 
        • प्राधिकरण चिड़ियाघरों को मान्यता प्रदान करता है और देश भर के चिड़ियाघरों को विनियमित करने का कार्य भी करता है।
      • यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिड़ियाघरों के मध्य जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों के स्थानांतरण के लिये मानदंड और नियम स्थापित करता है।
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA): 
      • टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद बाघ संरक्षण को सुदृढ़ करने के लिये वर्ष 2005 में NTCA का गठन किया गया था।
      • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री NTCA का अध्यक्ष होता है और राज्य का  पर्यावरण मंत्री इसका उपाध्यक्ष होता है। 
      • केंद्र सरकार NTCA की सिफारिशों पर किसी क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करती है।
    • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau- WCCB):  
      • इस अधिनियम के तहत देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये WCCB के गठन हेतु प्रावधान किया गया।
  • अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र: 
    • अधिनियम के तहत पाँच प्रकार के संरक्षित क्षेत्र हैं: अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, संरक्षण रिज़र्व, सामुदायिक रिज़र्व और टाइगर रिज़र्व 
  • अधिनियम में किये गए महत्त्वपूर्ण संशोधन: 
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 1991:  
      • इस अधिनियम ने वन्यजीव संबंधी अपराधों के लिये दंड और ज़ुर्माने को और सशक्त किया तथा लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के प्रावधानों को भी प्रस्तुत किया।
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2002:  
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2006: 
      • यह संशोधन मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे से संबंधित था तथा इसमें बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन एवं सुरक्षा हेतु एक राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के गठन हेतु प्रावधान किया गया था।
      • इसने वन्यजीव संबंधी अपराधों से निपटने के लिये बाघ एवं अन्य लुप्तप्राय प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Tiger and Other Endangered Species Crime Control Bureau) के गठन का भी प्रावधान किया।
    • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022: 
      • अधिनियम कानून के तहत संरक्षित प्रजातियों को बढ़ाने और CITES को लागू करने का प्रस्ताव करता है।
      • अनुसूचियों की संख्या घटाकर चार कर दी गई है: 
        • अनुसूची I में उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त पशु प्रजातियों को शामिल किया गया है।
        • अनुसूची III में सुरक्षा के कम स्तर वाली पशु प्रजातियों को शामिल किया गया है।
        • अनुसूची III संरक्षित पौधों की प्रजातियों के लिये है।
        • अनुसूची IV CITES के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये।
      • अधिनियम 'धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य' के लिये हाथियों के उपयोग की अनुमति देता है। 

WPA, 1972 के तहत वन्यजीव विकास की पहलें:

  • बाघ संरक्षण परियोजना:
    • बाघों की आबादी के संरक्षण के लिये बाघ संरक्षण परियोजना। वर्ष 1973 में प्रारंभ  की गई यह परियोजना अभी भी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मदद से चल रही है।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट:
    • हाथियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिये वर्ष 1992 में केंद्र सरकार द्वारा प्रोजेक्ट एलीफेंट लॉन्च किया गया था।
    • अधिनियम के तहत कुल 88 गलियारों की पहचान की गई थी। 
  • वन्यजीव गलियारे:
    • वन्यजीव गलियारे संरक्षित क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं और मानव बस्तियों में हस्तक्षेप किये बिना जानवरों की आवाजाही की अनुमति देते हैं। हाल ही में भारत के पहले शहरी वन्यजीव गलियारे की योजना नई दिल्ली और हरियाणा के मध्य बनाई जा रही है। गलियारा असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य के पास है, ताकि तेंदुए और अन्य वन्यजीवों को सुरक्षित मार्ग प्रदान किया जा सके।

WPA, 1972 में चुनौतियाँ: 

  • जागरूकता का अभाव:
    • यह अधिनियम 50 से अधिक वर्षों से लागू होने के बावजूद प्रभावी रूप से आम जनता तक नहीं पहुंँच पाया है। बहुत से लोग अभी भी वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व और इससे संबंधित कानूनों से अनभिज्ञ हैं।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: 
    • मानव आबादी में वृद्धि और वन्यजीव आवासों के अतिक्रमण के साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है। इससे अक्सर वन्यजीवों की हत्या होती है, जो WPA के तहत अवैध है।
  • अवैध वन्यजीव व्यापार:
    • भारत ने अवैध वन्यजीव व्यापार में महत्त्वपूर्ण वृद्धि देखी है, जो देश के वन्यजीवों के लिये एक बड़ा खतरा है। कड़े कानूनों के बावजूद वन्यजीव उत्पादों का अवैध शिकार और अवैध व्यापार जारी है।
  • समन्वय का अभाव:
    • अक्सर वन विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों जैसे- पुलिस, सीमा शुल्क और राजस्व विभागों के मध्य समन्वय की कमी होती है।
      • इससे WPA को प्रभावी ढंग से लागू करना और अवैध वन्यजीव व्यापार पर नियंत्रण लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • अपर्याप्त दंड: 
    • WPA के तहत वन्यजीव अपराधों के लिये दंड एक निवारक के रूप में कार्य करने के लिये पर्याप्त कठोर नहीं है। अपराधियों पर प्रभाव डालने के लिये ज़ुर्माना और सज़ा  अक्सर बहुत कम होती है।
  • सामुदायिक भागीदारी का अभाव:
    • स्थानीय समुदायों की भागीदारी के बिना संरक्षण के प्रयास सफल नहीं हो सकते। हालांँकि वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों में अक्सर सामुदायिक भागीदारी की कमी देखी जाती है।
  • जलवायु परिवर्तन: 
    • जलवायु परिवर्तन वन्यजीव आवासों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है और इससे मौजूदा वन्यजीवों के लिये खतरा पैदा होने की संभावना है। WPA को वन्यजीवों और उनके आवासों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • WPA 1972, 50 से अधिक वर्षों से अस्तित्त्व में है लेकिन यह कई चुनौतियों का सामना करता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार, सिविल सोसाइटी और जनता के ठोस प्रयास की आवश्यकता होगी। प्रभावी प्रवर्तन, सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता बढ़ाने वाले अभियान कुछ ऐसे कदम हैं जो भारत के वन्यजीवों तथा उनके आवासों की रक्षा के लिये उठाए जा सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. यदि किसी पौधे की विशिष्ट जाति को वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI में रखा गया है, तो इसका क्या तात्पर्य है? (2020)

(a) उस पौधे की खेती करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं हो सकती।
(c) यह एक आनुवंशिकत: रूपांतरित फसली पौधा है।
(d) ऐसा पौधा आक्रामक होता है और पारितंत्र के लिये हानिकारक होता है।

उत्तर: (a) 

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

हीट वेव

प्रिलिम्स के लिये:

हीट वेव, भारतीय मौसम विभाग (IMD), ग्लोबल वार्मिंग, नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव, अल नीनो, आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-30, प्रकृति-आधारित समाधान, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), पैसिव कूलिंग तकनीक

मेन्स के लिये:

भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड, हीट वेव के प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नवी मुंबई में एक सरकारी पुरस्कार समारोह में भाग लेने के दौरान लू से प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित लोगों को देखा गया। यह घटना हीट वेव के संभावित खतरों को रेखांकित करती है, जो कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अधिक तीव्र एवं लगातार होने का अनुमान है।

  • लंबी दूरी की यात्रा, अंतर्निहित चिकित्सा मुद्दे, और बड़ी सभाओं में पीने के जल और चिकित्सा देखभाल तक पहुँच की कमी कुछ ऐसे कारक हैं जो लोगों को हीट स्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

हीट वेव:

  • परिचय:  
    • हीट वेव, चरम गर्म मौसम की लंबी अवधि होती है जो मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
      • भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण विशेष रूप से हीट वेव के प्रति अधिक संवेदनशील है, जो हाल के वर्षों में लगातार और अधिक तीव्र हो गई है।
  • भारत में हीट वेव घोषित करने हेतु मानदंड:
    • मैदानी और पहाड़ी क्षेत्र:  
      • यदि किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुँच जाता है तो इसे हीट वेव की स्थिति माना जाता है।
      • हीट वेव के मानक से विचलन का आधार: विचलन 4.50 डिग्री सेल्सियस से 6.40 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
        • चरम हीट वेव: सामान्य से विचलन>6.40°C है।
      • वास्तविक अधिकतम तापमान हीट वेव पर आधारित: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥45°C हो।
        • चरम हीट वेव: जब वास्तविक अधिकतम तापमान ≥47 डिग्री सेल्सियस हो।
      • यदि एक मौसम विज्ञान उपखंड के भीतर कम-से-कम दो स्थान न्यूनतम दो दिनों के लिये उपरोक्त आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तो इसकी घोषणा दूसरे दिन की जाती है।
    • तटीय क्षेत्र:  
      • जब अधिकतम तापमान विचलन सामान्य से 4.50 डिग्री सेल्सियस अथवा अधिक होता है, तो इसे हीट वेव कहा जा सकता है, बशर्ते वास्तविक अधिकतम तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक हो।
  • मृत्यु:  
    • उच्च तापमान अपने आप में उतना घातक नहीं होता है जितना कि उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता का संयोजन, जिसे वेट बल्ब तापमान कहा जाता है। यह हीट वेव को और घातक बनाता है।
    • वातावरण में उच्च नमी के कारण पसीने को वाष्पित होने और शरीर को ठंडा रखने में कठिनाई होती है जिसके परिणामस्वरूप शरीर का आंतरिक तापमान तेज़ी से बढ़ता है और अक्सर घातक होता है। 
  • कारण:  
    • ग्लोबल वार्मिंग: यह भारत में हीट वेव के प्राथमिक कारणों में से एक है जो मानव गतिविधियों जैसे कि जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक गतिविधियों के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को संदर्भित करता है।
      • ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान और मौसम के पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जिससे हीट वेव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • शहरीकरण: तेज़ी से शहरीकरण और शहरों में कंक्रीटों संरचनाओं की वृद्धि "नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभाव (urban heat island effect)" के रूप में जानी जाने वाली घटनाओं को जन्म दे सकता है।
      • उच्च जनसंख्या घनत्त्व वाले शहरी क्षेत्र, इमारतें और कंक्रीट की सतह अधिक गर्मी को अवशोषित करती हैं तथा ऊष्मा को बनाए रखती हैं जिस कारण हीट वेव के दौरान तापमान उच्च होता है।
    • अल नीनो प्रभाव: अल नीनो घटना के दौरान प्रशांत महासागर का गर्म होना वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित कर सकता है जिससे विश्व भर में तापमान, वर्षा और वायु के पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
      • भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में प्रभावी ला नीना अवधि के समाप्त होने और अल नीनो घटना के अनुमान से पहले होने के कारण वर्ष 2023 की गर्मियों के मौसम के असामान्य रूप से गर्म होने की आशंका है।
  • प्रभाव:  
    • स्वास्थ्य पर प्रभाव:  
      • गर्मी में तेज़ी से वृद्धि तापमान को नियंत्रित करने की शरीर की क्षमता से समझौता कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप गर्मी में ऐंठन, थकावट, हीटस्ट्रोक और हाइपरथर्मिया सहित कई बीमारियाँ हो सकती हैं।  
        • गर्मी से होने वाली मौतें और अस्पताल में भर्ती होने की घटनाएँ बहुत तेज़ी से बढ़ सकती हैं या इनका प्रभाव पड़ सकता है।
    • जल संसाधनों पर प्रभाव: गर्म हवाएँ भारत में जल की कमी के मुद्दों को बढ़ा सकती हैं; जल निकायों का सूखना, कृषि और घरेलू उपयोग के लिये जल की उपलब्धता में कमी एवं जल संसाधनों के लिये बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा।
      • इससे जल को लेकर  संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, सिंचाई के तरीके प्रभावित हो सकते हैं तथा जल पर निर्भर उद्योगों पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • ऊर्जा पर प्रभाव: गर्म हवाएँ शीतलन उद्देश्यों के लिये बिजली की मांग को बढ़ा सकती हैं, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव और संभावित ब्लैकआउट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • यह आर्थिक गतिविधियों, उत्पादकता और कमज़ोर आबादी को प्रभावित कर सकता है, जिनकी गर्म हवाओं के दौरान शीतलता प्रदान करने के लिये विश्वसनीय बिजली तक पहुँच नहीं है

आगे की राह 

  • हीट वेव्स एक्शन प्लान: गर्म हवाओं के प्रतिकूल प्रभावों से संकेत मिलता है कि हीट वेव क्षेत्रों में गर्म हवा के प्रभाव को कम करने के लिये प्रभावी आपदा अनुकूलन रणनीतियों और अधिक मज़बूत आपदा प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता है।
    • चूँकि गर्म हवाओं के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है, इसलिये सरकार को मानव जीवन, पशुधन और वन्य जीवन की सुरक्षा के लिये दीर्घकालिक कार्ययोजना तैयार करने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-30 के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क का प्रभावी कार्यान्वयन, जिसमें राज्य अग्रणी भूमिका निभा रहे है और अन्य हितधारकों के साथ ज़िम्मेदारी साझा करना, अब समय की मांग है।
  • जलवायु कार्ययोजनाओं को लागू करना: समावेशी विकास और पारिस्थितिक स्थिरता के लिये जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को उचित रूप से लागू किया जाना चाहिये।
    • प्रकृति-आधारित समाधानों को ध्यान में रखा जाना चाहिये, यह कार्य न केवल जलवायु परिवर्तन से प्रेरित गर्म हवाओं से निपटने के लिये बल्कि एक ऐसे तरीके से करना चाहिये जो नैतिक हो और अंतर-पीढ़ीगत न्याय को बढ़ावा दे।
  • सस्टेनेबल कूलिंग: पैसिव कूलिंग टेक्नोलॉजी, जो प्राकृतिक रूप से हवादार इमारतों के निर्माण में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, आवासीय और वाणिज्यिक भवनों के लिये अर्बन हीट आइलैंड को संबोधित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।
  • हीट वेव न्यूनीकरण योजनाएँ: गर्मी से होने वाली मौतों को प्रभावी उपायों जैसे कि पानी तक पहुँच, ओरल पुनर्जलीकरण समाधान (ORS) और छाया, विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों पर लचीले काम के घंटे तथा बाहरी श्रमिकों के लिये विशेष व्यवस्था के माध्यम से कम किया जा सकता है।
    • सतर्कता के साथ स्थानीय प्रशासन द्वारा सक्रिय कार्यान्वयन, उच्च अधिकारियों द्वारा निगरानी भी महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. वर्तमान में और निकट भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भारत की संभावित सीमाएँ क्या हैं? (2010)

  1. उपयुक्त वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
  2. भारत अनुसंधान और विकास में भारी धन का निवेश नहीं कर सकता है।
  3. कई विकसित देशों ने पहले ही भारत में अपने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग स्थापित कर लिये हैं

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस-भारत द्विपक्षीय व्यापार

प्रिलिम्स के लिये:

रूस-भारत अंतर-सरकारी आयोग की बैठक, व्यापार असंतुलन, तेल, उर्वरक, हिंद-प्रशांत क्षेत्र

मेन्स के लिये:

रूस-भारत द्विपक्षीय व्यापार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में रूस के उप प्रधानमंत्री ने भारत में 24वें रूस-भारत अंतर-सरकारी आयोग (IGC) की बैठक में भाग लिया।

  • रूस ने पश्चिमी निर्मित विनिर्माण उपकरणों को बदलने के लिये भारत से मशीनरी खरीदने में रुचि दिखाई है।

Russia

प्रमुख बिंदु

  • यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण डिलीवरी और भुगतान से संबंधित चुनौतियों का सामना करने हेतु दोनों देशों ने भारत-रूस के बीच रक्षा सहयोग की समीक्षा की है
  • दोनों देशों ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र के लिये भारत की योजनाओं पर चर्चा की जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रूस की रणनीति का एक अनिवार्य अंग है।
  • उन्होंने दोनों देशों के बीच व्यापार को और गति प्रदान करने हेतु द्विपक्षीय व्यापार प्रयासों एवं नए औद्योगिक बिंदुओं की पहचान करने के संबंध में चर्चा की।
    • वर्तमान में व्यापार संतुलन रूस के पक्ष में है, इसलिये दोनों पक्षों ने व्यापार संबंधों में अधिक संतुलन बनाने के तरीकों पर चर्चा की है।
  • दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार, आर्थिक और मानवीय सहयोग से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर भी चर्चा की।
    • इन चर्चाओं में प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा से संबंधित पारस्परिक हित के कई क्षेत्रों को शामिल किया गया।

भारत-रूस व्यापार संबंधों की स्थिति: 

  • रूस के साथ भारत का कुल द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष  2020-21 में 8.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • रूस पिछले वर्ष अपने 25वें स्थान से बढ़कर अब भारत का सातवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
    • अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया ऐसे छह देश थे जिन्होंने वर्ष 2022-23 के पहले पाँच महीनों के दौरान भारत के साथ व्यापार की उच्च मात्रा दर्ज की।

द्विपक्षीय व्यापार से संबंधित चिंताएँ: 

  • व्यापार असंतुलन: 
    • रूस से भारत का आयात 17.23 बिलियन अमेरिका डॉलर था, जबकि मास्को को भारत का निर्यात केवल 992.73 मिलियन अमेरिका डॉलर का था, जिसके परिणामस्वरूप 2020-21 में 16,24 बिलियन अमेरिका डॉलर का नकारात्मक व्यापार संतुलन बना रहा। 
    • भारत के कुल व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 2021-22 के 1.27% से बढ़कर 3.54% हो गई है।
    • जबकि वर्ष 1997-98 में भारत के कुल व्यापार में रूस का हिस्सा 2.1% था, यह पिछले 25 वर्षों से 2% से नीचे रहा।
  • व्यापार असंतुलन की स्थिति पैदा करने वाले कारक:
    • वर्ष 2022 में पहले से ही रूस से मुख्य रूप से तेल और उर्वरक आयात में अचानक वृद्धि द्विपक्षीय व्यापार में इस वृद्धि के पीछे मुख्य चालक है।
      • पेट्रोलियम तेल और अन्य ईंधन वस्तुओं का रूस से भारत के कुल आयात में 84% हिस्सेदारी है, जबकि उर्वरक दूसरे स्थान पर है।
    • इस वर्ष रूस से कुल आयात में उर्वरक और ईंधन की हिस्सेदारी 91% से अधिक रही।

भारत-रूस के बीच व्यापार असंतुलन को दूर करने के उपाय: 

  • रूस को भारतीय निर्यात: 
    • दोनों देश भारतीय आयात में वृद्धि करना चाहते हैं, विशेष रूप से मशीनरी क्षेत्र में, जहाँ भारत के पास उन्नत उत्पादन क्षमता है। 
  • रुपया-रूबल तंत्र: 
    • व्यापार संबंधों में आने वाली चुनौतियों में से एक भुगतान, रसद और प्रमाणन है। पश्चिमी प्रतिबंधों के प्रभाव से द्विपक्षीय व्यापार को सुरक्षित रखने के लिये दोनों पक्ष रुपया-रूबल तंत्र का सहारा लेने के लिये बातचीत कर रहे हैं।
  • नए औद्योगिक बिंदु: 
    • दोनों नए औद्योगिक बिंदुओं की पहचान करना चाहते हैं जो व्यापार को अतिरिक्त प्रोत्साहन दे सकते हैं और एक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर सकते हैं।

भारत-रूस संबंधों के विभिन्न पहलू: 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: 
    • शीत युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ के बीच एक मज़बूत सामरिक, सैन्य, आर्थिक एवं राजनयिक संबंध थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस को भारत के साथ अपने घनिष्ठ संबंध विरासत में मिले, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों ने एक विशेष सामरिक संबंध साझा किया। 
    • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में संबंधों में भारी गिरावट आई है, खासकर कोविड के बाद के परिदृश्य में। इसका एक सबसे बड़ा कारण रूस के चीन और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जिसने भारत के लिये पिछले कुछ वर्षों में कई भू-राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया है।
  • राजनीतिक संबंध: 
    • दो अंतर-सरकारी आयोग- एक व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC-TEC) और दूसरा सैन्य-तकनीकी सहयोग (IRIGC- MTC) को लेकर वार्षिक तौर पर मिलते हैं।
  • रक्षा और सुरक्षा संबंध: 
  • नाभिकीय ऊर्जा:
    • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Kudankulam Nuclear Power Plant- KKNPP) का निर्माण रूस-भारत अंतर-सरकारी समझौते के तहत किया जा रहा है। 
    • भारत और रूस दोनों बांग्लादेश में रूपपुर परमाणु ऊर्जा परियोजना की स्थापना में सहयोग कर रहे हैं। 

निष्कर्ष:

  • भारत और रूस के बीच व्यापार असंतुलन को बहु-आयामी रणनीति के माध्यम से कम किया जा सकता है जो विविधीकरण, निर्यात प्रोत्साहन, बेहतर व्यापार सौदे वार्ता, आर्थिक सहयोग के साथ विकास और संरचनात्मक कठिनाइयों को हल करने में मदद कर सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ 'नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्रों के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्ययोजना' नामक सौदे पर हस्ताक्षर किये हैं? (2019)

(a) जापान
(b) रूस
(c) यूनाइटेड किंगडम
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत-रूस रक्षा सौदों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्त्व के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन, क्वांटम प्रौद्योगिकी 

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और क्वांटम प्रौद्योगिकी के विकास में इसकी भूमिका, क्वांटम प्रौद्योगिकी: संभावित लाभ और नुकसान।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने क्वांटम प्रौद्योगिकी में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान और विकास में सहायता के लिये राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM) को मंज़ूरी दी है।

राष्ट्रीय क्वांटम मिशन: 

  • परिचय: 
    • इसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा लागू किया जाएगा।
    • वर्ष 2023-2031 के लिये नियोजित मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास का बीजारोपण, पोषण और पैमाना है तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी (Quantum Technology- QT) में एक जीवंत और अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
    • इस मिशन के लॉन्च के साथ ही भारत अमेरिका, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, फ्राँस, कनाडा और चीन के बाद समर्पित क्वांटम मिशन वाला सातवाँ देश बन जाएगा।
  • NQM की मुख्य विशेषताएँ: 
    • यह 5 वर्षों में 50-100 भौतिक क्यूबिट्स और 8 वर्षों में 50-1000 भौतिक क्यूबिट्स के साथ मध्यवर्ती पैमाने के क्वांटम कंप्यूटर विकसित करने का लक्ष्य रखेगा।
      • 'क्यूबिट्स' या 'क्वांटम बिट्स' क्वांटम कंप्यूटरों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया की इकाइयाँ हैं, जैसे कि बिट्स (1 और 0) बुनियादी इकाइयाँ हैं जिनके द्वारा कंप्यूटर सूचना को संसाधित करते हैं
    • मिशन सटीक समय (परमाणु घड़ियों), संचार और नेविगेशन हेतु उच्च संवेदनशीलता वाले मैग्नेटोमीटर विकसित करने में मदद करेगा।
    • यह क्वांटम उपकरणों के निर्माण हेतु सुपरकंडक्टर्स, नवीन अर्द्धचालक संरचनाओं और टोपोलॉजिकल सामग्रियों जैसे क्वांटम सामग्रियों के डिज़ाइन एवं संश्लेषण का भी समर्थन करेगा।
    • मिशन निम्नलिखित को विकसित करने में भी मदद करेगा:
      • भारत के भीतर 2000 किमी. की सीमा में ग्राउंड स्टेशनों के बीच उपग्रह आधारित सुरक्षित क्वांटम संचार।
      • अन्य देशों के साथ लंबी दूरी की सुरक्षित क्वांटम संचार
      • 2000 किमी. से अधिक अंतर-शहर क्वांटम कुंजी वितरण
      • क्वांटम मेमोरी के साथ मल्टी-नोड क्वांटम नेटवर्क
    • क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शीर्ष शैक्षणिक और राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में चार थीमैटिक हब (T-Hubs) स्थापित किये जाएंगे:
  • महत्त्व: 
    • यह QT के नेतृत्व में आर्थिक विकास को गति देगा और भारत को हेल्थकेयर तथा डायग्नोस्टिक्स, रक्षा, ऊर्जा एवं डेटा सुरक्षा से लेकर क्वांटम टेक्नोलॉजीज एंड एप्लीकेशन (QTA) के विकास में अग्रणी देशों में से एक बना देगा।
    • यह स्वदेशी रूप से क्वांटम-आधारित कंप्यूटर बनाने की दिशा में काम करेगा जो कहीं अधिक शक्तिशाली हैं और बेहद सुरक्षित तरीके से सबसे जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम है।

क्वांटम प्रौद्योगिकी:

  • क्वांटम प्रौद्योगिकी विज्ञान और इंजीनियरिंग का एक क्षेत्र है जो क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों से संबंधित है, जो कि सबसे छोटे पैमाने पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का अध्ययन है। 
    • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की वह शाखा है जो परमाणु और उप-परमाण्विक स्तर पर पदार्थ और ऊर्जा के व्यवहार का वर्णन करती है।

क्वांटम प्रौद्योगिकी के लाभ: 

  • बढ़ी हुई कंप्यूटिंग शक्ति: क्वांटम कंप्यूटर आधुनिक कंप्यूटरों की तुलना में बहुत तीव्र और अद्यतन हैं। इनमें जटिल समस्याओं को हल करने की भी क्षमता है जो वर्तमान में हमारी पहुँच से परे हैं।
  • बेहतर सुरक्षा: चूँकि ये क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं, अतः क्वांटम एन्क्रिप्शन तकनीकें पारंपरिक एन्क्रिप्शन विधियों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं।
  • द्रुत संचार: क्वांटम संचार नेटवर्क पारंपरिक नेटवर्क की तुलना में द्रुत गति से और अधिक सुरक्षित रूप से सूचना प्रसारित कर सकते हैं, जिनमें पूरी तरह से अप्राप्य (Unhackable) संचार की क्षमता होती है।
  • उन्नत AI: क्वांटम मशीन लर्निंग एल्गोरिदम संभावित रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल के अधिक कुशल और सटीक प्रशिक्षण को सक्षम कर सकते हैं।
  • बेहतर संवेदन और मापन: क्वांटम सेंसर पर्यावरण में बेहद छोटे बदलावों का पता लगा सकते हैं जिससे वे चिकित्सा निदान, पर्यावरण निगरानी और भूवैज्ञानिक अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में उपयोगी हों। 

क्वांटम प्रौद्योगिकी का नुकसान: 

  • महँगी: प्रौद्योगिकी के लिये विशेष उपकरणों और सामग्रियों की आवश्यकता होती है जो इसे पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक महंँगी बनाती हैं।
  • सीमित अनुप्रयोग: वर्तमान में क्वांटम तकनीक केवल विशिष्ट अनुप्रयोगों जैसे- क्रिप्टोग्राफी, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम संचार के लिये उपयोगी है।
  • पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता: क्वांटम प्रौद्योगिकी पर्यावरणीय हस्तक्षेप, जैसे- तापमान परिवर्तन, चुंबकीय क्षेत्र और कंपन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
    • क्यूबिट्स अपने परिवेश से आसानी से बाधित हो जाते हैं जिसके कारण वे अपने क्वांटम गुणों को खो सकते हैं और गणना में गलतियाँ कर सकते हैं।
  • सीमित नियंत्रण: क्वांटम सिस्टम को नियंत्रित और इसमें किसी प्रकार का बदलाव करना मुश्किल है।
  • क्वांटम-संचालित AI परिणाम अनपेक्षित हो सकते हैं:
    • क्वांटम-संचालित AI परिणाम अनपेक्षित हो सकते हैं क्योंकि वे उन सिद्धांतों पर काम करते हैं जो पारंपरिक कंप्यूटिंग से मौलिक रूप से भिन्न हैं।

निष्कर्ष: 

कुल मिलाकर क्वांटम प्रौद्योगिकी में अपार संभावनाएँ हैं, परंतु अभी भी ऐसी कई चुनौतियाँ हैं जिन्हें व्यापक रूप से अपनाने से पहले दूर किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


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