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अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

  • 26 Jul 2019
  • 12 min read

 Last Updated: July 2022 

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: एक परिचय

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा की गई और अप्रैल 1946 में इसने काम करना शुरू किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है जो हेग (नीदरलैंड्स) के पीस पैलेस में स्थित है।
  • संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख संस्थानों के विपरीत यह एकमात्र संस्थान है जो न्यूयॉर्क में स्थित नहीं है।
  • यह राष्ट्रों के बीच कानूनी विवादों को सुलझाता है और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा निर्दिष्ट कानूनी प्रश्नों पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार सलाह देता है।
  • इसमें 193 देश शामिल हैं और इसके वर्तमान अध्यक्ष जोन ई. डोनोग्यू हैं।

पृष्ठभूमि

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 33 में राष्ट्रों के बीच विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता आदि विधियों की सूची है। इनमें से कुछ विधियों में तीसरा पक्ष भी शामिल है।
  • ऐतिहासिक रूप से, मध्यस्थता और पंच निर्णय की प्रणाली पहले से मौज़ूद रही है। पंच निर्णय प्रणाली प्राचीन भारत तथा इस्लामिक समुदायों का हिस्सा रही थी। बाद के उदाहरणों में इसे प्राचीन ग्रीस, चीन, अरब की जनजातियों के बीच तथा मध्यकालीन यूरोप के समुद्री कानूनों में देखा जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का आधुनिक इतिहास

  • आमतौर पर पहला चरण संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के बीच वर्ष 1794 की तथाकथित जय संधि (Jay Treaty) से जाना जाता है।
  • ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच वर्ष 1872 अलबामा दावे की मध्यस्थता को दूसरे चरण के रूप में देखा गया जो कि अधिक निर्णायक चरण रहा है।
  • रूसी ज़ार निकोलस द्वितीय द्वारा आमंत्रित वर्ष 1899 के हेग शांति सम्मेलन को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के आधुनिक इतिहास में तीसरे चरण की शुरुआत माना जाता है।
  • मध्यस्थता के संबंध में वर्ष 1899 के कन्वेंशन ने स्थायी संस्था के निर्माण पर बल दिया जिसे स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) के रूप में जाना जाता है यह वर्ष 1900 में स्थापित हुआ और वर्ष 1902 में इसका परिचालन शुरू हुआ।
  • कन्वेंशन ने हेग स्थित एक स्थायी कार्यालय भी बनाया, इसमें कोर्ट रजिस्ट्री या सचिवालय के अनुरूप कार्य होते थे और मध्यस्थता के संचालन के लिये प्रक्रिया और नियमों का एक समूह निर्धारित किया गया था।
  • वर्ष 1911 से वर्ष 1919 के बीच राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों तथा सरकारों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये विभिन्न योजनाओं और प्रस्तावों को प्रस्तुत किया गया जिसका समापन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद नई अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of International Justice-PCIJ) की स्थापना से हुआ।
  • वर्ष 1943 में चीन, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका ने एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि सभी शांतिप्रिय राष्ट्रों की संप्रभुता, समानता के आधार पर एक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना किये जाने की आवश्यकता है। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिये बड़े और छोटे सभी राष्ट्रों के लिये खुला होगा।
  • इसके बाद वर्ष 1945 में जी.एच. हैकवर्थ समिति (USA) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना के लिये कानून बनाने हेतु मसौदा बनाने का कार्य सौंपा गया।
  • सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन ने समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए नए न्यायालय की स्थापना के पक्ष में निर्णय लिया जो महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, न्यास परिषद तथा सचिवालय की तरह संयुक्त राष्ट्र का एक प्रमुख अंग होगा।
  • वर्ष 1945 में PCIJ की आखिरी बैठक हुई जिसमें अपने अभिलेखागार और प्रभावों को नए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया।
  • अप्रैल 1946 में PCIJ को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पहली बार बैठक की तथा PCIJ के अंतिम अध्यक्ष जोस गुस्तावो गुरेरो (एल सल्वाडोर) को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अध्यक्ष चुना गया।

संरचना

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्ष के के लिये चुना जाता है। ये दोनों निकाय एक समय पर लेकिन अलग-अलग मतदान करते हैं।
  • निर्वाचित होने के लिये किसी उम्मीदवार को दोनों निकायों में पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये न्यायालय की कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्य हर तीन साल में चुने जाते हैं और ये न्यायाधीश पुन: चुनाव के पात्र होते हैं।
  • ICJ को एक रजिस्ट्री द्वारा सहायता दी जाती है, रजिस्ट्री ICJ का स्थायी प्रशासनिक सचिवालय है। अंग्रेज़ी और फ्रेंच इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं।

न्यायालय के 15 न्यायाधीश निम्नलिखित क्षेत्रों से लिये जाते हैं:

1. अफ्रीका से तीन

2. लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों से दो

3. एशिया से तीन

4. पश्चिमी यूरोप और अन्य राज्यों से पाँच

5.पूर्वी यूरोप से दो

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अन्य निकायों के विपरीत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सरकार के प्रतिनिधि नहीं होते।
  • न्यायालय के सदस्य स्वतंत्र न्यायाधीश होते हैं जिन्हें दायित्व ग्रहण करने से पूर्व शपथ लेनी होती है कि वे अपनी शक्तियों का निष्पक्षता और शुद्ध अंतःकरण से उपयोग करेंगे।
  • ICJ के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये न्यायालय के किसी भी सदस्य को तब तक बर्खास्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि अन्य सदस्यों की एकमत न हो कि वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। अभी तक किसी भी न्यायाधीश को पद से विस्थपित नहीं किया गया है।

ICJ में भारतीय न्यायाधीश

  • दलवीर भंडारी: 27 अप्रैल, 2012 से न्यायालय के सदस्य
  • रघुनंदन स्वरूप पाठक: 1989-1991
  • नागेंद्र सिंह: 1973-1988
  • सर बेनेगल राव: 1952-1953

कुलभूषण जाधव केस और इस पर ICJ का निर्णय:

  • कुलभूषण जाधव को मार्च 2016 में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने बलूचिस्तान प्रांत से गिरफ्तार किया था, जब वह कथित तौर पर ईरान से घुसे थे।
  • उन्हें अप्रैल 2017 में जासूसी और आतंकवाद के आरोप में एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।
  • भारत ने हमेशा कहा है कि कुलभूषण जाधव जासूस नहीं हैं, और पाकिस्तान को उन्हें परामर्शदाता पहुंच प्रदान करनी चाहिये क्योंकि उनका मामला ईरानी क्षेत्र से अपहरण से संबंधित है।
  • 9 मई, 2018 में, ICJ ने उनकी मौत की सजा पर रोक लगा दी थी, क्योंकि भारत ने उनके लिये न्याय की मांग करने हेतु संयुक्त राष्ट्र निकाय के समक्ष एक याचिका दायर की थी, जिसमें पाकिस्तान द्वारा कांसुलर संबंधों पर वियना कन्वेंशन के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।
  • ICJ रूलिंग: 2019 में, ICJ ने फैसला सुनाया कि पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत जाधव की सजा की "प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार" के माध्यम से प्रदान करने के लिये बाध्य था।
  • पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: आईसीजे के आदेश के मद्देनजर, पाकिस्तान सरकार ने जाधव को समीक्षा दायर करने की अनुमति देने के लिये एक विशेष अध्यादेश जारी किया।
    • पाकिस्तान की संसद ने ICJ के फैसले के तहत दायित्व को पूरा करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (समीक्षा और पुनर्विचार) विधेयक, 2021 पारित किया।
    • हालाँकि भारत ने बताया कि कानून में कई "कमियाँ" हैं, और ICJ के आदेश को "सही अर्थ और भावना में" लागू करने के लिये कई कदम उठाने की आवश्यकता है।

ICJ में भारत से संबंधित अन्य मामले:

कुलभूषण जाधव मामले के अलावा, भारत पाँच मौकों पर आईसीजे में एक मामले में पक्षकार रहा है, जिनमें से तीन में पाकिस्तान शामिल रहा है। वे हैं:

  • भारतीय क्षेत्र पर मार्ग का अधिकार (पुर्तगाल बनाम भारत, 1960 में समाप्त हुआ)।
  • आईसीएओ परिषद के क्षेत्राधिकार से संबंधित अपील (भारत बनाम पाकिस्तान, परिणति 1972)।
  • युद्ध के पाकिस्तानी कैदियों का परीक्षण (पाकिस्तान बनाम भारत, 1973 में समाप्त हुआ)।
  • 10 अगस्त 1999 की हवाई घटना (पाकिस्तान बनाम भारत, 2000 में समापन)।
  • परमाणु हथियारों की दौड़ की समाप्ति और परमाणु निरस्त्रीकरण (मार्शल द्वीप बनाम भारत, 2016 को समाप्त) से संबंधित बातचीत से संबंधित दायित्व।
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