सामाजिक न्याय
समलैंगिक विवाह
- 01 Mar 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का विरोध करते हुए कहा कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब बच्चा पैदा करने में सक्षम "जैविक पुरुष" और "जैविक महिला" के बीच विवाह हुआ हो।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिये वर्ष 2020 में हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 और विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 के तहत याचिकाएँ दायर की गई थीं।
केंद्र की प्रतिक्रिया/तर्क:
- सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 377 के प्रावधान के विश्लेषण के बाद केवल एक विशेष मानवीय व्यवहार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का आदेश दिया था। यह आदेश न तो समलैंगिक विवाह के उद्देश्य से और न ही इस आचरण को वैध बनाने के लिये दिया गया था।
- सामाजिक नैतिकता:
- विपरीत लिंग के व्यक्तियों के विवाह की मान्यता को सीमित करने में "वैध राज्य हित" (Legitimate State Interest) मौजूद है और यह विधानमंडल का काम है कि वह "सामाजिक नैतिकता" (Societal Morality) को ध्यान में रखते हुए ऐसे विवाह की वैधता पर विचार करे।
- मौजूदा कानूनों के अनुरूप नहीं:
- मौलिक अधिकार (fundamental Right) अनुच्छेद 21 के अंतर्गत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और इसे समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार बनाने के लिये विस्तारित नहीं किया जा सकता है।
- संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। यह अधिकार जो कि काफी हद तक निष्पक्ष, न्यायोचित और तर्कसंगत है, एक कानून के माध्यम से दूर नहीं किया जा सकता है।
- देश में मौजूदा विवाह कानूनों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों के बीच मौजूद नाज़ुक संतुलन को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।
- मौलिक अधिकार (fundamental Right) अनुच्छेद 21 के अंतर्गत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और इसे समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार बनाने के लिये विस्तारित नहीं किया जा सकता है।
- विवाह की पवित्रता:
- भारतीय परिवार की अवधारणा एक पति, एक पत्नी और बच्चे पर आधारित है, जिसकी तुलना समलैंगिक परिवार के साथ नहीं की जा सकती है।
भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:
- विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
- यद्यपि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है।
सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य, 2018):
- सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 (1) के अनुसार : बालिग स्त्री-पुरुषों को बिना किसी जाति, राष्ट्रीयता या धर्म की रुकावटों के आपस में विवाह करने और परिवार को स्थापन करने का अधिकार है। उन्हें विवाह के विषय में वैवाहिक जीवन तथा विवाह विच्छेद के विषय में समान अधिकार है।
- UDHR के अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार: विवाह का इरादा रखने वाले स्त्री-पुरुषों की स्वतंत्र सहमति पर ही विवाह हो सकेगा।
- विवाह करने का अधिकार आंतरिक विषय है। इस अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की गई है। विश्वास और निष्ठा के मामले, जिसमें विश्वास करना भी शामिल है, संवैधानिक स्वतंत्रता के मूल में हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों (नवजेत सिंह जोहर और अन्य बनाम केंद्र सरकार, 2018) के हकदार हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि LGBTQ समुदाय के सदस्य अन्य नागरिकों की तरह संविधान द्वारा प्रदान किये गए सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं, जिसमें “समान नागरिकता” और "कानून का समान संरक्षण" भी शामिल है।
आगे की राह
- LGTBQ समुदाय के लिये एक ऐसे भेदभाव-रोधी कानून की आवश्यकता है, जो उन्हें लैंगिक पहचान या यौन अभिविन्यास के बावजूद एक बेहतर जीवन और संबंधों का निर्माण करने में सहायता करे और जो व्यक्ति को बदलने के स्थान पर समाज में बदलाव लाने पर ज़ोर दे।
- LGBTQ समुदाय के सदस्यों को संपूर्ण संवैधानिक अधिकार दिये जाने के बाद यह भी आवश्यक है कि समलैंगिक विवाह के इच्छुक लोगों को भी अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार दिया जाए। ज्ञात हो कि वर्तमान में विश्व के दो दर्जन से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति दी है।