AI के संबंध में यूरोपीय संघ का ऐतिहासिक कानून
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी, जेनरेटिव एआई, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी मेन्स के लिये:AI विनियमन के लिये विभिन्न वैश्विक दृष्टिकोण, AI विनियमन के लिये यूरोपीय संघ फ्रेमवर्क के प्रमुख घटक, AI विनियमन के संबंध में भारत की रणनीति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संघ (EU), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग को पूर्ण रूप से विनियमित करने के उद्देश्य से व्यापक कानून बनाने वाला पहला महाद्वीपीय राष्ट्र बन गया है।
- यूरोपीय संघ की प्रस्तावित रूपरेखा पर वर्ष 2024 की शुरुआत में संसदीय मतदान किया जाएगा, जो संभावित रूप से वर्ष 2025 तक लागू हो जाएगी।
AI विनियमन के लिये यूरोपीय संघ (EU) फ्रेमवर्क के प्रमुख घटक क्या हैं?
- सुरक्षा उपाय संबंधी कानून:
- उपभोक्ताओं का सशक्तीकरण: यह व्यक्तियों को AI के कथित उल्लंघन के खिलाफ शिकायत करने में सक्षम बनाएगा, साथ ही, कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा AI के उपयोग को लेकर स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित की गई हैं।
- AI पर सख्त सीमाएँ: फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी और मानव व्यवहार में AI परिचालन को लेकर सख्त प्रतिबंध।
- उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान: नियमों का उल्लंघन करते पाए जाने वाली कंपनियों के लिये कड़े दंड का प्रावधान।
- सीमित बायोमेट्रिक निगरानी: इसमें सरकारों को केवल आतंकवादी हमलों जैसे गंभीर खतरों के मामलों में सार्वजनिक क्षेत्रों में रियल टाइम बायोमेट्रिक निगरानी के उपयोग करने की अनुमति की बात की गई है।
- AI अनुप्रयोगों का वर्गीकरण:
- चार जोखिम वर्ग: AI अनुप्रयोगों को उनके जोखिम के स्तर और आक्रामकता के आधार पर चार जोखिम श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
- प्रतिबंधित अनुप्रयोग: वृहत पैमाने पर फेशियल रिकग्निशन और व्यवहार नियंत्रण के लिये AI अनुप्रयोगों को बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है, सिवाय कि उनका उपयोग कानून प्रवर्तन के लिये न किया जा रहा हो।
- उच्च जोखिम वाले अनुप्रयोग: इसे सेल्फ-ड्राइविंग ऑटोमोबाइल के लिये AI टूल सहित पारदर्शी बैकएंड तकनीकों के लिये प्रमाणन और प्रावधानों के साथ अनुमोदित किया गया है।
- मध्यम स्तर के जोखिम वाले एप्लीकेशन बिना किसी प्रतिबंध के लॉन्च किये जा सकते हैं, जैसे जेनरेटिव एआई का उपयोग करने वाले चैटबॉट, जिसमें AI इंटरैक्शन, पारदर्शिता की अनिवार्यता एवं विस्तृत तकनीकी दस्तावेज़ीकरण के बारे में उपयोगकर्त्ताओं द्वारा स्पष्ट प्रकटीकरण प्रदान किया गया हो।
- नियमन संबंधी यूरोपीय संघ की अन्य उपलब्धियाँ:
- सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (General Data Protection Regulation- GDPR) कार्यान्वयन: डेटा प्रोसेसिंग के लिये गोपनीयता और स्पष्ट सहमति को ध्यान में रखते हुए इसे मई 2018 से लागू किया गया है।
- उप-कानून: DSA और DMA:
- डिजिटल सेवा अधिनियम (DSA): यह नफरती भाषण, नकली सामानों के क्रय-विक्रय को विनियमित करने पर केंद्रित है।
- डिजिटल बाज़ार अधिनियम (DMA): यह "प्रमुख सुरक्षाकर्त्ता" प्लेटफाॅर्मों की पहचान करने और गैर-प्रतिस्पर्द्धी प्रथाओं एवं प्रभुत्व के दुरुपयोग जैसे समाधानों से संबंधित है।
- उप-कानून: DSA और DMA:
- सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (General Data Protection Regulation- GDPR) कार्यान्वयन: डेटा प्रोसेसिंग के लिये गोपनीयता और स्पष्ट सहमति को ध्यान में रखते हुए इसे मई 2018 से लागू किया गया है।
AI विनियमन के लिये वैश्विक स्तर पर विभिन्न रणनीतियाँ क्या हैं?
- EU: सख्त रुख, आक्रामकता और जोखिम के आधार पर AI का वर्गीकरण।
- यूनाइटेड किंगडम: AI में नवाचार को बढ़ावा देने वाला 'लाइट-टच' दृष्टिकोण।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: यहाँ के नियम सख्त विनियमन और नवाचार समर्थन के बीच स्थित है।
- चीन: अपनी नीतियों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए इसने AI विनियमन के लिये अपने स्वयं के उपाय लागू किये हैं।
AI विनियमन के संबंध में भारत की क्या रणनीति है?
- भारत का रुख:
- भारत के पास अभी भी AI विनियमन को लेकर एक व्यापक ढाँचा नहीं है। हालाँकि भारत इसके विनियमन पर विचार के रुख के स्थान पर जोखिम-आधारित, उपयोगकर्त्ता-नुकसान दृष्टिकोण के आधार पर सक्रिय रूप से नियम तैयार कर रहा है।
- समावेशी और उत्तरदायित्वपूर्व AI को प्रोत्साहन:
- #AIFORALL समावेशिता पर केंद्रित भारत की प्रारंभिक राष्ट्रीय AI रणनीति है, इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया था।
- AI के लिये नीति आयोग की राष्ट्रीय रणनीति (2018) में उत्तरदायित्वपूर्व AI के संबंध में एक अध्याय शामिल है।
- वर्ष 2021 में नीति आयोग ने ‘उत्तरदायित्वपूर्व AI का सिद्धांत’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की। इसमें AI संबंधी सात व्यापक सिद्धांतों की गणना की गई: समानता, सुरक्षा और विश्वसनीयता, समावेशिता तथा गैर-भेदभाव, पारदर्शिता, जवाबदेही, गोपनीयता एवं सकारात्मक मानव मूल्यों का सुदृढ़ीकरण।
- मार्च 2023 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने AI पर राष्ट्रीय कार्यक्रम IndiaAI की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य AI से संबंधित सभी अनुसंधान एवं नवाचारों को शामिल करने हेतु एक व्यापक पहल के रूप में कार्य करना है।
- जुलाई 2023 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें "जोखिम-आधारित ढाँचे" के आधार पर AI को विनियमित करने के लिये एक घरेलू वैधानिक प्राधिकरण स्थापित करने एवं कई सरकारी विभागों, विशेषज्ञ सदस्यों वाले एक सलाहकार निकाय के गठन की सिफारिश की गई थी।
भारत में प्रमुख क्षेत्र-विशिष्ट AI फ्रेमवर्क:
- स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र:
- भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने जून 2023 में बायोमेडिकल अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल में AI के अनुप्रयोग के संबंध में नैतिक दिशा-निर्देश जारी किये।
- पूंजी बाज़ार:
- SEBI ने नीतियों का मार्गदर्शन करने और पूंजी बाज़ार में AI प्रणाली के लिये एक सूची तैयार करने हेतु जनवरी 2019 में एक परिपत्र जारी किया था।
- शिक्षा क्षेत्र:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्कूली पाठ्यक्रमों में AI संबंधी जागरूकता को एकीकृत करने की सिफारिश की गई है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक साझेदारी (GPAI):
- यह 28 देशों और यूरोपीय संघ का एक मंच है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता संबंधी चुनौतियों और अवसरों को समझने तथा इसके उत्तरदायिगत्वपूर्ण विकास को बढ़ावा देने के लिये एकजुट होकर कार्य कर रहे हैं।
- वर्ष 2020 में भारत इसके संस्थापक सदस्य के रूप में इसमें शामिल हुआ।
- नवंबर 2022 में भारत को प्रथम वरीयता के दो-तिहाई से अधिक वोट मिले और उसे GPAI की इनकमिंग काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। भारत वर्ष 2022-23 में आगामी सहायक अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहा है। भारत 12 दिसंबर, 2023 को वर्ष 2023-24 के लिये लीड चेयर के रूप में कार्यभार संभाल रहा है और वर्ष 2024-25 में आउटगोइंग सपोर्ट चेयर के रूप में कार्य करेगा।
- चीन GPAI का सदस्य नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
अनुच्छेद 370 हटाने पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 370, सर्वोच्च न्यायालय, विशेष दर्जा, केंद्रशासित प्रदेश, असममित संघवाद, भारत की संविधान सभा, परिग्रहण पत्र, अनुच्छेद 371, 371A- I, अनुच्छेद 367, विधानसभा। मेन्स के लिये:केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की प्रासंगिकता। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन करने के केंद्र सरकार के वर्ष 2019 के कदम पर अपना निर्णय सुनाया। इस निरसन ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को प्रदत्त विशेष दर्जा समाप्त कर दिया था। न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को रद्द करने वाले संवैधानिक आदेश को वैध माना।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला क्या है?
- जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता नहीं थी:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के संविधान में इस बात को दर्शाने के लिये बहुत सारे सबूत हैं कि कश्मीर के संबंध में अपनी संप्रभुता को छोड़ने के लिये विलय समझौता आवश्यक नहीं था।
- अनुच्छेद 370(1) भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 (जहाँ जम्मू-कश्मीर को भाग III राज्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया था) को बिना किसी संशोधन के लागू करता है।
- जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 3 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "जम्मू-कश्मीर राज्य भारत संघ का अभिन्न अंग है और रहेगा।"
- भारतीय संविधान की धारा 147 ने धारा 3 में किसी भी संशोधन पर रोक लगा दी, जिससे प्रावधान पूर्ण हो गया।
- इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि भारत का संविधान "देश का सर्वोच्च प्रशासकीय दस्तावेज़ है।" इसके अलावा जम्मू-कश्मीर संविधान की प्रस्तावना में "संप्रभुता के संदर्भ का स्पष्ट अभाव" दिखता है।
- अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है:
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर भरोसा किया कि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 370 को भाग XXI में निहित अस्थायी और संक्रमणकालीन प्रावधानों के साथ रखा था।
- फिर इसने बताया कि विलय पत्र (IoA) ने इसे "बहुत हद तक स्पष्ट" कर दिया है कि अनुच्छेद 1, जिसमें कहा गया है कि "इंडिया जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा", पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पर लागू होता है।
- राष्ट्रपति शासन के तहत उद्घोषणा की संवैधानिक वैधता:
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने सहमति व्यक्त की कि राष्ट्रपति के पास "राज्य विधानसभा के विघटन करने सहित अपरिवर्तनीय परिवर्तन" करने की शक्ति है एवं राष्ट्रपति की शक्तियों को "न्यायिक और संवैधानिक जाँच" द्वारा नियंत्रित रखा जाता है।
- जम्मू-कश्मीर का संविधान निष्क्रिय है:
- न्यायालय ने माना कि अब जम्मू-कश्मीर के संविधान का अस्तित्व में रहना आवश्यक नहीं है, इसके माध्यम से भारतीय संविधान के केवल कुछ प्रावधान ही जम्मू-कश्मीर पर लागू होते हैं।
- भारत के संविधान को संपूर्ण रूप से जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू करने का अंतर्निहित लेकिन आवश्यक परिणाम यह है कि राज्य का संविधान निष्क्रिय है।
- न्यायालय ने माना कि अब जम्मू-कश्मीर के संविधान का अस्तित्व में रहना आवश्यक नहीं है, इसके माध्यम से भारतीय संविधान के केवल कुछ प्रावधान ही जम्मू-कश्मीर पर लागू होते हैं।
- मानवाधिकारों के प्रावधान के लिये एक सत्य और सुलह आयोग का गठन:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सिफारिश की कि संघ राज्य और गैर-राज्य दोनों अभिकर्त्ताओं द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच के लिये एक "सत्य और सुलह आयोग" स्थापित किया जाए, ठीक वैसे ही जैसे दक्षिण अफ्रीका ने रंगभेद के बाद राज्य और गैर-राज्य दोनों पक्षों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच की। इस आयोग का प्रयोग समयबद्ध होना चाहिये।
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा क्या था?
- परिचय:
- 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370(1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 जारी किया।
- इसके जरिये भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 में ही संशोधन किया है (उसे रद्द नहीं किया है)।
- इसके द्वारा भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य तथा भारतीय संघ के बीच संबंधों में नाटकीय रूप से बदल दिया है।
- 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370(1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 जारी किया।
- पृष्ठभूमि:
- जम्मू-कश्मीर को छूट प्रदान करते हुए 17 अक्तूबर, 1949 को एक 'अस्थायी प्रावधान' के रूप में अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में शामिल किया गया, इससे जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंधित लगा दिया गया।
- इसे एन गोपालस्वामी अय्यंगार ने संविधान के मसौदे में अनुच्छेद 306A के रूप में पेश किया था।
- जम्मू-कश्मीर को छूट प्रदान करते हुए 17 अक्तूबर, 1949 को एक 'अस्थायी प्रावधान' के रूप में अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में शामिल किया गया, इससे जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की अनुमति प्राप्त हुई और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों के प्रयोग पर प्रतिबंधित लगा दिया गया।
- अनुच्छेद 370:
- भारतीय संविधान के कौन-से अनुच्छेद राज्य पर लागू होने चाहिये इसकी सिफारिश करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को प्रदान किया गया।
- राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को भंग कर दिया गया था। अनुच्छेद 370 का खंड 3 भारत के राष्ट्रपति को इसके प्रावधानों और दायरे में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 35A का स्रोत अनुच्छेद 370 है और इसे जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश पर वर्ष 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से पेश किया गया था।
- अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेष अधिकारों तथा विशेष लाभों को परिभाषित करने का अधिकार देता है।
- यह भारत के संविधान के परिशिष्ट I में परिलक्षित होता है।
- कई राज्यों को अलग-अलग संवैधानिक गारंटी प्रदान की गई है। इन्हें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और पूर्वोत्तर के राज्यों के लिये अनुच्छेद 371, 371A- I में संहिताबद्ध किया गया है।
- भारतीय संविधान के कौन-से अनुच्छेद राज्य पर लागू होने चाहिये इसकी सिफारिश करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को प्रदान किया गया।
नोट:
भारतीय संविधान शेष भारत के लिये संवैधानिक संशोधन के माध्यम से राज्य की शक्ति को बढ़ाने अथवा उस पर अंकुश लगाने के लिये अनुच्छेद 367 में एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित करता है। हालाँकि जम्मू-कश्मीर के लिये संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि अनुच्छेद 370 के तहत केवल कार्यकारी कार्रवाई ही पर्याप्त होगी।
वर्ष 2019 के आदेश द्वारा किये गए प्रमुख परिवर्तन क्या हैं?
- संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019:
- वर्ष 1954 के राष्ट्रपति आदेश को संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- इसके बाद संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक (2019) जम्मू तथा कश्मीर राज्य को दो नए केंद्रशासित प्रदेशों (UT): जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित करता है।
- ऐसा पहली बार है कि किसी राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है।
- वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य की छह लोकसभा सीटों में से पाँच केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पास रहेंगी, जबकि एक का आवंटन लद्दाख को किया जाएगा।
- दिल्ली और पुद्दुचेरी की तरह ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में एक विधानसभा होगी।
- लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा।
- कश्मीर में अब राज्यपाल नहीं, बल्कि दिल्ली अथवा पुद्दुचेरी की तरह एक उपराज्यपाल होगा।
- वर्ष 1954 के राष्ट्रपति आदेश को संविधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा:
- जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह वर्ष का नहीं, बल्कि पहले की ही तरह पाँच वर्ष का होगा।
- जम्मू-कश्मीर 2019 विधेयक की धारा 32 में प्रस्तावित है कि विधानसभा "सार्वजनिक व्यवस्था" और "पुलिस" से संबंधित राज्य के विषयों को छोड़कर राज्य तथा समवर्ती सूची के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 239A के समान है जो केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी तथा दिल्ली पर लागू होता है।
- हालाँकि अनुच्छेद 239AA के सम्मिलन तथा 69वें संवैधानिक संशोधन के आधार पर दिल्ली विधानसभा राज्य सूची की प्रविष्टि 18 के मामलों, अर्थात् भूमि पर कानून नहीं बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर के मामले में विधानसभा भूमि पर कानून बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति समाप्त:
- जम्मू-कश्मीर का अब कोई अलग संविधान, झंडा अथवा राष्ट्रगान नहीं होगा।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता नहीं होगी।
- चूँकि जम्मू-कश्मीर का नया केंद्रशासित प्रदेश भारतीय संविधान के अधीन होगा, इसलिये इसके नागरिकों को अब भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे।
- अनुच्छेद 360, जिसका उपयोग वित्तीय आपातकाल घोषित करने के लिये किया जा सकता है, अब भी लागू होगा।
- संसद द्वारा पारित सभी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू होंगे, जिनमें सूचना का अधिकार अधिनियम तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी शामिल हैं।
- भारतीय दंड संहिता, जम्मू-कश्मीर की रणबीर दंड संहिता की जगह लेगी।
- अनुच्छेद 35A, जो अनुच्छेद 370 के प्रावधानों से उत्पन्न हुआ है, अमान्य है।
नोट:
जम्मू-कश्मीर का संघ के साथ ऐतिहासिक रूप से एक अनोखा रिश्ता रहा है। जम्मू-कश्मीर तथा संघ के बीच कोई विलय समझौता नहीं हुआ था, बल्कि यह केवल विलय पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन- IoA) था, इसलिये संप्रभुता का कोई हस्तांतरण नहीं है एवं राज्य की स्वायत्तता का प्रावधान था। IoA बाह्य संप्रभुता से संबंधित है। कुछ अपवादों के अतिरिक्त बाह्य संप्रभुता समाप्त हो गई है। CJI ने हालिया निर्णय में कहा कि IoA पर हस्ताक्षर के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।
अनुच्छेद 370 के निराकरण में विभिन्न विधिक चुनौतियाँ क्या थीं?
- सांविधानिक चुनौतियाँ:
- राष्ट्रपति के आदेश में जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने की मांग की गई थी, अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति को इस तरह के बदलाव के लिये जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुशंसा की आवश्यकता होगी।
- हालाँकि वर्ष 2019 के राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुच्छेद 367 में एक उप-खंड जोड़ा गया, जो निम्नलिखित पदों को प्रतिस्थापित करता है:
- "जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा" का आशय "जम्मू-कश्मीर की विधानसभा" से है।
- "जम्मू-कश्मीर सरकार" का तात्पर्य "जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह पर कार्य करने" से है।
- सरकार ने सांविधानिक संशोधन लाए बिना अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता को कम करने की मांग की, जिसके लिये संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- इस प्रावधान को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई कि इसने केवल राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35A को जोड़ा।
- जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना अनुच्छेद 3 का उल्लंघन है क्योंकि राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया था।
- राज्य के पुनर्गठन में राष्ट्रपति के आदेश के लिये राज्य सरकार की सहमति की भी आवश्यकता होती है। चूँकि जम्मू-कश्मीर वर्तमान में राज्यपाल शासन के अधीन है, इसलिये राज्यपाल की सहमति को सरकार की सहमति माना जाता है।
- संघवाद का मुद्दा:
- विलय पत्र दो संप्रभु देशों के बीच संधि की तरह था, जिन्होंने एक साथ कार्य करने का निर्णय लिया था।
- संतोष कुमार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य एवं अन्य, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐतिहासिक कारणों से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
- एसबीआई बनाम ज़फर उल्लाह नेहरू, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू- कश्मीर की संविधान सभा की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया जा सकता है।
- संतोष कुमार बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य एवं अन्य, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐतिहासिक कारणों से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।
- विलय पत्र दो संप्रभु देशों के बीच संधि की तरह था, जिन्होंने एक साथ कार्य करने का निर्णय लिया था।
अनुच्छेद 370 हटने के पश्चात् जम्मू-कश्मीर में शांति और सुरक्षा के क्या हालात हैं?
- पथराव और उग्रवाद की घटनाओं में कमी:
- राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) जैसी केंद्रीय एजेंसियों की बढ़ती सुरक्षा उपस्थिति और कार्रवाई के कारण पथराव के मामलों में कमी आई।
- पथराव की घटनाओं की संख्या वर्ष 2019 के 618 से घटकर वर्ष 2020 में 222 हो गईं।
- सुरक्षा बलों के घायल होने की घटनाएँ 2019 के 64 से घटकर 2021 में 10 हो गईं।
- नागरिकों के घायल होने की घटनाओं में कमी:
- पेलेट गन और लाठीचार्ज से नागरिक के घायल होने की संख्या 339 (2019) से घटकर 25 (2021) हो गई।
- जम्मू-कश्मीर में कानून और व्यवस्था में भी सुधार हुआ क्योंकि 2022 में कानून और व्यवस्था की केवल 20 घटनाएँ दर्ज की गईं।
- उग्रवादियों और ओवर-ग्राउंड वर्करों की गिरफ्तारियाँ (OGWs):
- आतंकवादी समूहों के OGW की गिरफ्तारियाँ 2019 के 82 से बढ़कर 2021 में 178 हो गईं।
- पिछले 10 महीनों की तुलना में अगस्त 2019 से जून 2022 तक आतंकवादी कृत्यों में 32% की गिरावट आई है।
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने किस प्रकार प्रतिक्रिया दी?
- पाकिस्तान और मुस्लिम विश्व/जगत:
- पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संविधान की सर्वोच्चता को मानने से इनकार कर दिया।
- इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने "क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त विवादित स्थिति को बदलने के उद्देश्य से 5 अगस्त, 2019 से उठाए गए सभी अवैध और एकतरफा उपायों" को उलटने के लिये पुनः आह्वान किया।
- चीन:
- चीन के अनुसार वह "भारत द्वारा एकतरफा और अवैध रूप से स्थापित तथाकथित केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख" को मान्यता नहीं देता है तथा चीन-भारत सीमा का पश्चिमी खंड हमेशा चीन का हिस्सा रहा है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- इसने जम्मू-कश्मीर में हिरासत और प्रतिबंधों पर चिंता व्यक्त की, लेकिन सभी पक्षों से सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिये "दृढ़ व मज़बूत कदम उठाने" सहित नियंत्रण रेखा पर शांति एवं स्थिरता बनाए रखने का भी आह्वान किया।
- यूरोपीय संघ:
- इसने भारत और पाकिस्तान से पुनः संवाद/वार्ता शुरू करने का आह्वान किया तथा कश्मीर पर द्विपक्षीय समाधान के लिये समूह के समर्थन को दोहराया।
- रूस:
- रूस ने रेखांकित किया कि परिवर्तन "भारत गणराज्य के संविधान के ढाँचे के भीतर" किये गए थे। मॉस्को ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे की "द्विपक्षीय" प्रकृति पर भी बल दिया और शिमला समझौते (वर्ष 1972) व लाहौर घोषणा (वर्ष 1999) का उल्लेख किया।
आगे की राह
- कश्मीर के उत्थान के लिये 3E (शिक्षा, रोज़गार और नियोजनीयता) के लिये 10 साल की रणनीति लागू की जानी चाहिये।
- जम्मू-कश्मीर में 'शून्य-आतंकवादी घटना' की योजना 2020 से लागू है और 2026 तक सफल होगी।
- कश्मीर में वैधता के संकट के समाधान के लिये अहिंसा और शांति का गांधीवादी मार्ग अपनाया जाना चाहिये।
- सरकार सभी कश्मीरियों तक एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम शुरू करके अनुच्छेद 370 पर कार्रवाई से उत्पन्न चुनौतियों को कम कर सकती है।
- इस संदर्भ में कश्मीर समाधान के लिये अटल बिहारी वाजपेयी का कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद एवं लोकतंत्र) का संस्करण राज्य में सुलह की ताकतों की आधारशिला बनना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सियाचिन हिमनद कहाँ स्थित है? (2020) (a) अक्साई चिन के पूर्व में उत्तर: (d) प्रश्न . निम्नलिखित में से कौन सा सबसे बड़ा (क्षेत्रफल के अनुसार) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है? (2008) (a) काँगड़ा उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जिसके साथ हाशिया नोट "जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंध" लगा हुआ है, किस सीमा तक अस्थायी है? भारतीय राज-व्यवस्था के संदर्भ में इस उपबंध की भावी संभावनाओं पर चर्चा कीजिये। (2016) प्रश्न. आंतरिक सुरक्षा और नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न. जम्मू-कश्मीर में 'जमात-ए-इस्लामी' पर पाबंदी लगाने सेआतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं (ओ.जी.डब्ल्यू.) की भूमिका ध्यान का केंद्र बन गई है । उपप्लव (बगावत) प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका का परीक्षण कीजिये। भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के उपायों की चर्चा कीजिये। (2019) |
ग्लोबल रिवर सिटीज़ एलायंस: NMCG
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, रिवर-सिटीज़ एलायंस (RCA), COP28, मिसिसिपी रिवर सिटीज़ एंड टाउन्स इनिशिएटिव (MRCTI), नमामि गंगे, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 मेन्स के लिये:राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) ने मिसिसिपी रिवर सिटीज़ एंड टाउन्स इनिशिएटिव (MRCTI) के साथ सामान्य प्रयोजन के एक ज्ञापन (MoCP) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- MRCTI संयुक्त राज्य अमेरिका में मिसिसिपी नदी के किनारे स्थित 124 शहरों/कस्बों का प्रतिनिधित्व करता है।
- NMCG ने रिवर सिटीज़ अलायंस (RCA) की ओर से MoCP पर हस्ताक्षर किये हैं। हस्ताक्षर समारोह COP28 के भाग के रूप में दुबई में हुआ।
मिसिसिपी रिवर सिटीज़ एंड टाउन्स इनिशिएटिव (MRCTI) क्या है?
- MRCTI को वर्ष 2012 में मिसिसिपी नदी के लिये एक प्रभावशाली समाधान प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था, जिससे वाशिंगटन, डीसी में प्रभावी नदी संरक्षण, इसकी बहाली तथा प्रबंधन की मांग में महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि हुई है।
- यह नदी और मानव के अस्तित्व से संबंधित है, जिसमें नदी के जल की गुणवत्ता तथा आवास बहाली, बाढ़ एवं बाढ़ के मैदान के मुद्दे, नदी-तट केंद्रित मनोरंजक गतिविधियाँ, सतत् अर्थव्यवस्था और नदी संस्कृति व इतिहास का उत्सव शामिल है।
रिवर सिटीज़ एलायंस (RCA) क्या है?
- परिचय:
- RCA जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) एवं आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) की एक संयुक्त पहल है, जिसका उद्देश्य नदी-शहरों को जोड़ना तथा सतत् नदी केंद्रित विकास पर ध्यान आकृष्ट करना है।
- यह एलायंस तीन व्यापक विषयों- नेटवर्किंग, क्षमता निर्माण तथा तकनीकी सहायता पर केंद्रित है।
- नवंबर 2021 में 30 सदस्य शहरों से शुरू होकर यह गठबंधन पूरे भारत में 110 नदी शहरों और डेनमार्क के एक अंतराष्ट्रीय सदस्य शहर तक विस्तारित हो गया है।
- उद्देश्य:
- RCA का इरादा शहरी नदी प्रबंधन, नई प्रथाओं और दृष्टिकोणों को सीखने तथा भारतीय शहरों के लिये ज्ञान विनिमय (ऑनलाइन) की सुविधा प्रदान करना है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय शहरों के लिये भारतीय शहरों के अनुभवों के बारे में जानने का भी अवसर होगा, जो उनके संदर्भों के लिये प्रासंगिक हो सकते हैं।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) क्या है?
- संदर्भ:
- 12 अगस्त, 2011 को NMCG को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
- इसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य किया, जिसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत गठित किया गया था।
- NGRBA को वर्ष 2016 में भंग कर दिया गया और उसकी जगह राष्ट्रीय गंगा नदी पुनर्जीवन संरक्षण तथा प्रबंधन परिषद ने ले ली।
- उद्देश्य:
- NMCG का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और गंगा नदी का पुनर्जीवन सुनिश्चित करना है।
- नमामि गंगे गंगा की सफाई के लिये NMCG के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में से एक है।
- जल की गुणवत्ता और पर्यावरणीय रूप से सतत् विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, व्यापक योजना और प्रबंधन तथा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखने के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देकर इसे प्राप्त किया जा सकता है।
- NMCG का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और गंगा नदी का पुनर्जीवन सुनिश्चित करना है।
- संगठन संरचना:
- अधिनियम में गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के उपाय करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई है:
- भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा परिषद।
- केंद्रीय जल शक्ति मंत्री (जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग) की अध्यक्षता में गंगा नदी पर सशक्त कार्य बल (ETF)।
- स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन (NMCG)।
- राज्य गंगा समितियाँ।
- राज्यों में गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों से सटे प्रत्येक निर्दिष्ट ज़िले में ज़िला गंगा समितियाँ।
- अधिनियम में गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के उपाय करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई है:
भारत में नदी पुनर्जीवन के लिये अन्य पहल क्या हैं?
- गंगा एक्शन प्लान: यह पहला नदी एक्शन प्लान था जिसे वर्ष 1985 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा घरेलू सीवेज के अवरोधन, डायवर्ज़न और उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये शुरू किया गया था।
- राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा कार्य योजना का विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा एक्शन प्लान चरण 2 के तहत गंगा नदी को साफ करना है।
- राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन करता है जिससे जल संरक्षण, जल की न्यूनतम बर्बादी और बेहतर नीतियाँ बनाकर समान जल-वितरण सुनिश्चित होता है।
- स्वच्छ गंगा कोष: वर्ष 2014 में इसका गठन गंगा को साफ करने, अपशिष्ट उपचार संयंत्र स्थापित करने और नदी की जैवविविधता के संरक्षण के लिये किया गया था।
- भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी हेतु जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा में किसी भी अपशिष्ट के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. नमामि गंगे और स्वच्छ गंगा का राष्ट्रीय मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं के मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015) |
विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में आरक्षण से अधिक योग्यता को प्राथमिकता
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 16(4), भारत में आरक्षण, अनुच्छेद 16(1), समानता का अधिकार, अनुच्छेद 14, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक, मद्रास उच्च न्यायालय, उबेरिमा फाइडेस, महाधिवक्ता मेन्स के लिये:आरक्षण नीति और सामाजिक समानता पर इसके निहितार्थ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि विधि अधिकारियों की नियुक्ति में आरक्षण के नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसी नियुक्तियों के लिये योग्यता ही एकमात्र मानदंड होनी चाहिये क्योंकि सरकार न्यायालयों के समक्ष अपने प्रतिनिधित्व के लिये केवल सबसे कुशल और सक्षम वकीलों को नियुक्त करने के लिये बाध्य है।
फैसले के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- विधि अधिकारियों की नियुक्ति में महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के लिये पारदर्शिता तथा पर्याप्त प्रतिनिधित्व पर ज़ोर देने वाली 2017 में दायर एक जनहित याचिका को खारिज़ करते हुए यह फैसला सुनाया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मद्रास उच्च न्यायालय के विधि अधिकारियों की नियुक्ति ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण प्रदान करने में विफल रही है।
- डिवीज़न बेंच ने कहा है कि एक वकील और उसके मुवक्किल के बीच का रिश्ता अत्यधिक विश्वास एवं भरोसे का होता है तथा यह उबेरिमा फाइड्स के सिद्धांत द्वारा शासित होता है।
- सरकार और विधि अधिकारियों के मध्य का रिश्ता पूरी तरह पेशेवर है, न कि मालिक और नौकर का।
- विधि अधिकारियों को किसी सिविल पद पर नियुक्त नहीं किया जाता है और न ही वे सरकार के कर्मचारी हैं। इसलिये यह नहीं माना जा सकता कि सरकार द्वारा विधि अधिकारियों की नियुक्ति करते समय आरक्षण प्रदान किया जाना आवश्यक है।
- न्यायालय ने सुझाव दिया कि आवेदनों के लिये निमंत्रण समावेशी होना चाहिये, ताकि सरकार विधिक अधिकारियों के रूप में अत्यधिक सक्षम और मेधावी वकीलों का चयन कर सके।
- उबेरिमा फाइड्स का सिद्धांत:
- उबेरिमा फाइड्स का सिद्धांत एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अनुवाद "अत्यंत सद्भावना” (utmost good faith) है। इसमें वकील से ग्राहक के सर्वोत्तम हित में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
सार्वजनिक रोज़गार में आरक्षण से संबंधित नियम/निर्णय क्या हैं?
- कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) द्वारा वर्ष 2021 में जारी कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, आरक्षण का नियम 45 दिनों से कम समय वाली नियुक्तियों को छोड़कर संविदात्मक और अस्थायी नियुक्तियों पर भी लागू किया जाना चाहिये।
- इंद्रा साहनी मामले, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि कुछ सेवाओं और पदों के लिये आरक्षण प्रदान करना कर्त्तव्यों के प्रदर्शन के लिये उचित नहीं हो सकता है।
- विधिक अधिकारी का पद एक ऐसा पद है जिसे आरक्षण के नियम से मुक्त रखा जाना चाहिये।
- वर्ष 2022 में न्यायमूर्ति नागेश्वर राव, संजीव खन्ना और बी.आर. गवई ने एक निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य सरकारों को SC और ST से संबंधित उम्मीदवारों की पदोन्नति के लिये आरक्षण नीतियों को उचित ठहराने हेतु आकलन योग्य डेटा प्रदान करना चाहिये।
- न्यायालय ने राज्य प्राधिकारियों को SC/ST उम्मीदवारों को बढ़ावा देने के अपने निर्णयों का एक ठोस और आकलन योग्य साक्ष्य के साथ समर्थन करने की आवश्यकता को बरकरार रखा।
- भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य तथा केंद्र सरकारों को SC एवं ST के सदस्यों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाते हैं।
- संविधान के 81वें संशोधन अधिनियम, 2000 में अनुच्छेद 16 (4B) शामिल किया गया, जो राज्य को एक वर्ष की अधूरी रिक्तियों को भरने में सक्षम बनाता है जो कि अगले वर्ष में SC/ST के लिये आरक्षित हैं, जिससे उस वर्ष रिक्तियों की कुल संख्या पर 50% आरक्षण की सीमा समाप्त हो जाती है।
- संविधान के अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि प्रशासन कार्यपटुता बनाए रखने की भावना के अनुसार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जातियों के सदस्यों के दावों का ध्यान रखेगा।
- महाधिवक्ता:
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 165 के तहत प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा।
- भारत में महाधिवक्ता राज्य का उच्च विधि अधिकारी होता है।
- उसके पास राज्य के भीतर किसी भी न्यायालय में खुद को पेश करने का पूर्ण अधिकार है।
- उसके पास राज्य विधानमंडल अथवा राज्य विधानमंडल द्वारा शुरू की गई किसी भी समिति की कार्यवाही में मतदान के विशेषाधिकार का अभाव है। हालाँकि उसके पास बोलने तथा इन कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार बरकरार है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a)केवल 1 उत्तर: d मेन्स:प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |
स्मारकों में धार्मिक प्रथाओं पर ASI का रुख
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भारतीय विरासत स्थल मेन्स के लिये:विरासत और पूजा को संतुलित करना, भारत में विरासत के संरक्षण से संबंधित मुद्दे, प्रभावी विरासत प्रबंधन के समाधान |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
संसद समिति द्वारा प्रस्तुत 'भारत में अप्राप्य स्मारकों और स्मारकों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे' पर एक हालिया रिपोर्ट संरक्षित स्मारकों पर धार्मिक गतिविधियों के प्रति भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के दृष्टिकोण में महत्त्वपूर्ण बदलाव की अनुशंसा करती है।
- इससे पहले मई 2022 में जम्मू-कश्मीर में 8वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर में प्रार्थना के नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाले ASI ने चिंता प्रकट की।
ASI स्मारकों पर पूजा को लेकर वर्तमान नीति क्या है?
- अब तक ASI केवल उन स्मारकों पर पूजा और अनुष्ठान की अनुमति देता है जहाँ ASI द्वारा अधिग्रहण करने के समय ऐसी परंपराएँ चल रही थीं।
- जीवंत ASI स्मारक का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण ताज महल है जहाँ हर शुक्रवार को नमाज़ होती है।
- अन्य उल्लेखनीय समकालीन स्मारकों में कन्नौज में तीन मस्जिदें, मेरठ में रोमन कैथोलिक चर्च, दिल्ली के हौज़ खास गाँव में नीला मस्जिद और लद्दाख में कई बौद्ध मठ शामिल हैं।
- इस प्रतिबंध का उद्देश्य स्मारकों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अखंडता को संरक्षित करना है।
- जीर्ण स्मारकों पर कोई भी धार्मिक अनुष्ठान आयोजित नहीं किया जा सकता है, जहाँ ASI-संरक्षित स्थल बनने के बाद से पूजा की निरंतरता नहीं देखी गई है।
- नीतिगत निर्णय उन स्थलों पर पूजा करने पर रोक लगाता है जहाँ संरक्षण के समय यह प्रचलन में नहीं था या लंबे समय के लिये छोड़ दिया गया हो।
- ASI द्वारा प्रबंधित 3,693 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों तथा पुरातात्त्विक स्थलों में से लगभग एक-चौथाई (820) में पूजा स्थल शामिल हैं, जबकि शेष को निर्जीव स्मारक माना जाता है जहाँ कोई नया धार्मिक अनुष्ठान शुरू अथवा संचालित नहीं किया जा सकता है।
- इन स्थलों में विभिन्न प्रकार की धार्मिक संरचनाएँ शामिल हैं, जैसे- मंदिर, मस्जिद, दरगाह तथा चर्च।
- करकोटा राजवंश के राजा ललितादित्य मुक्तपीड द्वारा बनवाया गया मार्तंड सूर्य मंदिर में एक समय पूजा संपन्न होती थी। हालाँकि इसे 14वीं शताब्दी में नष्ट कर दिया गया था।
- 20वीं सदी में संरक्षण के लिये ASI ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया, तब वहाँ कोई पूजा अथवा हिंदू अनुष्ठान नहीं होता था। वर्ष 2022 में उपासकों के नेतृत्व में हाल ही में की गई पूजा को निर्जीव स्मारकों के लिये ASI मानदंडों का उल्लंघन माना गया।
ASI संरक्षित स्मारकों पर पूजा को लेकर समिति की अनुशंसाएँ क्या हैं?
- अनुशंसाएँ:
- समिति धार्मिक महत्त्व वाले ASI-संरक्षित स्मारकों पर पूजा-अर्चना की अनुमति देने की संभाव्यता पर विचार करने की अनुशंसा करती है।
- नीति में यह संभावित बदलाव विभिन्न धार्मिक स्थलों पर इसके प्रभाव के बारे में सवाल उठाता है।
- यह समिति संस्कृति मंत्रालय तथा ASI को स्मारक के संरक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने में पारदर्शिता एवं जवाबदेही के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए स्मारकों की तुरंत पहचान करने व परिणामों को सार्वजनिक कर सर्वेक्षण करने का सुझाव देती है।
- समिति धार्मिक महत्त्व वाले ASI-संरक्षित स्मारकों पर पूजा-अर्चना की अनुमति देने की संभाव्यता पर विचार करने की अनुशंसा करती है।
- समिति की सिफारिशों के विरुद्ध चिंताएँ:
- संरक्षित स्मारकों पर धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से स्मारकों की अखंडता, प्रामाणिकता और ऐतिहासिक मूल्यों को खतरा उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि उनमें भक्तों या अधिकारियों के कारण परिवर्तन, परिवर्धन, संशोधन या क्षति हो सकती है।
- संरक्षित स्मारकों पर धार्मिक गतिविधियों की अनुमति देने से विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच संघर्ष और विवाद भी पैदा हो सकता है, जो स्मारकों पर स्वामित्व या अधिकार का दावा कर सकते हैं या अन्य समूहों की गतिविधियों पर आपत्ति कर सकते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI):
- संस्कृति मंत्रालय के तहत ASI देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
- यह प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 के तहत देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देख-रेख करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारतीय कला विरासत का संरक्षण वर्तमान समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018) प्रश्न. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों की कल्पना और आकार देने तथा उनकी कला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विवेचना कीजिये। (2020) |