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भारतीय राजनीति

उत्तर-पूर्व क्षेत्र का विशेष दर्जा

  • 21 Feb 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अनुच्छेद-371

मेन्स के लिये:

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये विशेष दर्जे के संबंध में संवैधानिक प्रावधान

चर्चा में क्यों?

20 फरवरी, 2020 को अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम के स्थापना दिवस के अवसर पर केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर की अनूठी संस्कृति की रक्षा करने की प्रतिबद्धता जताई है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्र सरकार ने यह प्रतिबद्धता जताते हुए कहा है कि कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधान करने वाले अनुच्छेद-371 से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा।
  • केंद्र सरकार ने यह स्पष्टता इसलिये दी है क्योंकि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से पूर्वोत्तर क्षेत्र में अनुच्छेद 371 हटाने की अफवाह फैलाई जा रही थी।
  • केंद्र सरकार के अनुसार, बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते, ब्रू-रियांग समझौते और बोडो समझौते के माध्यम से पूर्वोत्तर की कई समस्याओं का हल हुआ है।

राज्यों की विशेष स्थिति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान के भाग-21 में कुछ राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है।
  • इस भाग में दो अनुच्छेद-370 और 371 सम्मिलित थे, जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के लिये विशेष प्रावधान किया गया था परंतु वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करते हुए उसे केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर दिया।
  • संविधान के भाग-21 में अनुच्छेद-371 के विभिन्न खंडों में अलग-अलग राज्यों से संबंधित उपबंध दिये गए हैं, वर्तमान में ऐसी व्यवस्था 11 राज्यों के लिये लागू है।

अनुच्छेद-371 में पूर्वोत्तर राज्यों के लिये विशेष प्रावधान:

1. नगालैंड:

  • नगालैंड को वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम में असम राज्य में ही (छठी अनुसूची के जनजातीय क्षेत्र के रूप में) रखा गया था।
  • संसद ने ‘नगालैंड राज्य अधिनियम, 1962’ पारित करके नगालैंड राज्य का गठन किया गया।
  • नगालैंड की सांस्कृतिक स्वायतत्ता और वहाँ मज़बूत कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये ‘13वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1962 के माध्यम से अनुच्छेद 371 (क) को शामिल किया गया।

2. असम:

  • संविधान के ‘22वें संशोधन अधिनियम, 1969’ द्वारा अनुच्छेद 371(ख) को स्थापित किया गया जो असम राज्य के लिये विशेष उपबंध करता है।
  • इसके तहत राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह अपने आदेश द्वारा असम की विधानसभा के भीतर एक समिति का गठन कर सकेगा।
  • इस समिति में असम के जनजातीय क्षेत्रों से निर्वाचित होने वाले विधानसभा सदस्यों के साथ-साथ होंगे उसी विधानसभा के शेष क्षेत्रों से संबंधित सदस्य शामिल होंगे, जिनकी संख्या राष्ट्रपति द्वारा अपने आदेश में निर्दिष्ट की गई हो।

3. मणिपुर:

  • मणिपुर एक रियासत थी, जिसको वर्ष 1971 में पूर्वोत्तर राज्यों के पुनर्गठन के दौरान राज्य का दर्जा दिया गया।
  • संविधान के ‘27वें संशोधन’ के माध्यम से अनुच्छेद 371(ग) जोड़ा गया तथा मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों के संबंध में विशेष उपबंध किये गए।

4. सिक्किम:

  • मूल संविधान में सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था।
  • वर्ष 1974 में संविधान के ‘35वें संशोधन अधिनियम’ द्वारा भारत ने उसे ‘संबद्ध राज्य’ का दर्जा दिया।
  • ‘36वें संविधान संशोधन’ द्वारा वर्ष 1975 में उसे शेष राज्यों के समान दर्जा दिया गया एवं इसी के माध्यम से अनुच्छेद 371(च) भी शामिल किया गया।

5. मिज़ोरम:

  • मिज़ोरम असम का हिस्सा था, जो छठी अनुसूची के तहत प्रशासित होता था एवं मिज़ो स्वायत्त ज़िलों (जिनमें- चकमा, मारा तथा लई जनजातीय ज़िले शामिल थे) के रूप में जाना जाता था।
  • उत्तर-पूर्व क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 के आधार पर वर्ष 1972 में मिज़ोरम को असम से अलग कर केंद्रशासित क्षेत्र का दर्जा प्रदान किया गया था।
  • 53वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1986’ के माध्यम से अनुच्छेद 371(छ) जोड़कर असम को राज्य का दर्जा दिया गया।

6. अरुणाचल प्रदेश:

  • अरुणाचल प्रदेश को पहले पूर्वोत्तर सीमांत एजेंसी (North-East Frontier Agency-NEFA) के नाम से जाना जाता था।
  • राज्य के पुनर्गठन के दौरान वर्ष 1972 में इस क्षेत्र को ‘संघ राज्यक्षेत्र’ का दर्जा दिया गया एवं इसका नाम अरुणाचल प्रदेश रखा गया।
  • वर्ष 1987 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया एवं ‘55वें संविधान संशोधन अधिनियम’ के माध्यम से 371(ज) जोड़कर इस राज्य के लिये विशेष प्रावधान किया गया।

अनुच्छेद 371 से संबंधित अन्य राज्य:

  • अनुच्छेद 371 में उपर्युक्त पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा निम्नलिखित राज्यों के संदर्भ में भी विशेष प्रावधान किये गए हैं-
    • महाराष्ट्र एवं गुजरात- अनुच्छेद 371
    • आंध्र प्रदेश- अनुच्छेद 371(घ) एवं 371 (ङ)
    • गोवा- अनुच्छेद 371(झ)
    • कर्नाटक- अनुच्छेद 371 (ञ)

पूर्वोत्तर क्षेत्र की स्थिति तथा उसका शेष भारत पर प्रभाव:

  • पूर्वोत्तर क्षेत्र विभिन्न कारणों से भारत के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा पिछड़ा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से कई स्तरों पर ( अवसंरचना, विकास, शांति) सुधार देखा जा रहा है।
  • इस क्षेत्र की कठिन भौगोलिक परिस्थितियाँ जहाँ कई चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं वहीं नवीन संभावनाओं (प्राकृतिक संसाधन) को भी प्रकट करती हैं।
  • यदि विभिन्न चुनौतियों को एक रोडमैप के ज़रिये दूर करने का प्रयास किया जाता है, तो न सिर्फ इससे पूर्वोत्तर के लोगों के जीवन में सुधार आएगा बल्कि भारत के आर्थिक विकास में भी यह क्षेत्र सहयोग दे सकेगा।
  • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की सफलता भी इस क्षेत्र के विकास पर टिकी है। एक्ट ईस्ट नीति के साथ-साथ भारत बिम्सटेक तथा आसियान में भी अपनी भूमिका बढ़ाना चाहता है, जिसमें इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
  • भारत, इस क्षेत्र के माध्यम से ही पूर्वी एशिया में अपनी भौतिक पहुँच बढ़ा सकता है जिससे इस क्षेत्र के विकास के साथ-साथ भारत के दीर्घकालीन भू-राजनीतिक एवं आर्थिक हितों की भी पूर्ति संभव हो सकेगी।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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