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भारतीय विरासत और संस्कृति

मार्तण्ड सूर्य मंदिर

  • 10 May 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय महत्त्व के स्थल, कार्कोट राजवंश।

मेन्स के लिये:

ललितादित्य मुक्तापीड, मार्तंड सूर्य मंदिर।

चर्चा में क्यों? 

जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के तहत संरक्षित स्मारक, 8 वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहर में आयोजित एक धार्मिक समारोह में भाग लिया। इस मंदिर को "राष्ट्रीय महत्त्व के स्थलों " के रूप में मान्यता दी गई है।

Sun-temple

मार्तंड सूर्य मंदिर:

  • मार्तंड सूर्य मंदिर जिसे पांडौ लैदान के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू मंदिर है जो सूर्य (हिंदू धर्म में प्रमुख सौर देवता) को समर्पित है और 8वीं शताब्दी ईसवी के दौरान बनाया गया था। मार्तंड का  एक और संस्कृत पर्याय सूर्य है।
  • इसका निर्माण कार्कोट राजवंश के तीसरे शासक ललितादित्य मुक्तापीड ने करवाया था।
  • यह अब खंडहर के रूप में है, क्योंकि इसे मुस्लिम शासक सिकंदर शाह मिरी के आदेश से नष्ट कर दिया गया था।
  • यह मंदिर भारतीय केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में अनंतनाग से पाँच मील की दूरी पर स्थित है।
  • खंडहरों और संबंधित पुरातात्विक निष्कर्षों से यह कहा जा सकता है कि यह कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना था, जिसने गंधार, गुप्त और चीनी वास्तुकला के रूपों को मिश्रित किया था।
  • मंदिर केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारकों की सूची में मार्तंड (सूर्य मंदिर) के रूप में है।

ललितादित्य मुक्तापीड:  

  • ललितादित्य का जन्म 699 ईस्वी में कश्मीर के दुर्लाभाक-प्रतापदित्य के तीसरे पुत्र के रूप में हुआ था।
  • वह कश्मीर के नागवंशी कार्कोट कायस्थ वंश से थे।  
    • कार्कोट कायस्थ परिवार मुख्य रूप से दशकों से कश्मीर के राजाओं की सेना में सेवारत थे। वे युद्ध के मैदान में अपने उल्लेखनीय साहस के लिये जाने जाते थे।
    • कश्मीर के राजाओं ने उनके अपार योगदान के लिये उन्हें सखासेना की उपाधि दी थी। 
  • ललितादित्य का बचपन का नाम मुक्तापीड था और उनके बड़े भाई चंद्रपीड और तारापीड थे।
  • मुक्तापीड ने 724 ई. में कश्मीर राज्य पर अधिकार कर लिया।
  • इस दौरान भारत में पश्चिमी आक्रमण शुरू हो गया था जिसमें अरबों ने स्वात, मुल्तान, पेशावर और सिंध के राज्य पर पहले ही कब्ज़ा कर लिया था।
  • अरब शासक मोहम्मद बिन कासिम पहले से ही कश्मीर और मध्य भारत पर कब्ज़ा करने की धमकी दे रहा था।
  • उसने लद्दाख के दरदास, कभोज और भट्टों से लड़ाई लड़ी जो तिब्बती शासन के अधीन थे। 
  • ललितादित्य ने स्वयं सभी राजाओं को हराकर युद्ध में सेना का नेतृत्व किया और लद्दाख के क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • ललितादित्य और यशोवर्मन के गठबंधन ने अरबों को हराकर उन्हें कश्मीर में प्रवेश करने से रोक दिया। 
  • उन्होंने बाद में काबुल के रास्ते तुर्केस्तान पर आक्रमण किया। ललितादित्य ने भारत के पश्चिम और दक्षिण में अधिकांश स्थानों पर जो महाराष्ट्र में राष्ट्रकूट, दक्षिणी भाग में पल्लव और कलिंग से शुरू हुआ, का अधिग्रहण किया।
  • उसने चीनियों को हराने के बाद अपने राज्य का विस्तार मध्य चीन तक कर दिया जिसके बाद उसकी तुलना सिकंदर महान से की गई।
  • कश्मीर के इस साम्राज्य को इससे भारी धन प्राप्त हुआ और ललितादित्य ने कश्मीर में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये धन का उपयोग किया, मंदिरों का निर्माण किया गया तथा कश्मीर ने ललितादित्य के शासन के तहत व्यापक विकास देखा।
  • ललितादित्य बहुत उदार राजा थे। हालाँकि वे हिंदू परंपरा के प्रबल अनुयायी थे, लेकिन सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्हें बहुत दयालु शासक कहा जाता है। वे जनता की समस्याओं को सुनते थे।
  • वर्ष 760 ई. में उनकी आकस्मिक मृत्यु से ललितादित्य युग का अंत हो गया।  

कार्कोट साम्राज्य:

  • कार्कोट साम्राज्य ने कश्मीर (7वीं शताब्दी की शुरुआत में) में अपनी शक्ति स्थापित की और यह मध्य एशिया और उत्तरी भारत में एक शक्ति के रूप में उभरा।
  • दुर्लभवर्धन कार्कोट वंश का संस्थापक था।
  • कार्कोट शासक हिंदू थे और उन्होंने परिहासपुर (राजधानी) में शानदार हिंदू मंदिरों का निर्माण किया।
  • उन्होंने बौद्ध धर्म को भी संरक्षण दिया क्योंकि उनकी राजधानी के खंडहरों में कुछ स्तूप, चैत्य और विहार पाए गए हैं।

स्रोत: द हिंदू

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