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राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन

  • 06 Sep 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, सतत् विकास, नमामि गंगे कार्यक्रम, गंगा कार्य योजना, राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA)

मेन्स के लिये:

स्वच्छ गंगा के लिये राष्ट्रीय मिशन और संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत : द हिन्दू

चर्चा में क्यों 

पिछले सात वर्षों में, जबकि भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) ने कुछ प्रगति की है, मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अभी भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

NMCG के तहत सीवेज उपचार की प्रगति:

  • NMCG ने गंगा नदी के किनारे स्थित पाँच प्रमुख राज्यों में उत्पन्न होने वाले कुल अनुमानित सीवेजों के केवल 20% का उपचार करने में सक्षम उपचार संयंत्र स्थापित किये हैं।
  • ये राज्य हैं उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल।
  • NMCG ने अनुमान लगाया है कि सीवेज के लिये उपचार क्षमता वर्ष 2024 तक अनुमानित मात्रा का 33% तक बढ़ जाएगी, और वर्ष 2026 तक 60% तक बढ़ जाएगी।
  • NMCG ने वर्ष 2026 तक लगभग 7,000 MLD सीवेज का उपचार करने में सक्षम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) स्थापित करने की योजना बनाई है।
  • जुलाई 2023 तक, 2,665 MLD  की कुल क्षमता वाले STP चालू हो चुके हैं। हाल के वर्षों में प्रगति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पिछले वित्तीय वर्ष (2022-23) में STP की 1,455  MLD  क्षमता पूरी हो गई है।
  • STP और सीवरेज नेटवर्क नमामि गंगा मिशन के केंद्र में हैं और कुल परियोजना परिव्यय का लगभग 80% हिस्सा हैं।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG):

  • परिचय:
    • 12 अगस्त 2011 को, NMCG को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
    • इसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य किया, जिसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), 1986 के प्रावधानों के तहत गठित किया गया था।
      • NGRBA का वर्ष 2016 में विघटन कर दिया गया और उसकी जगह राष्ट्रीय गंगा नदी कायाकल्प, संरक्षण एवं प्रबंधन परिषद ने ले ली।
  • उद्देश्य: 
    • NMCG का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना और गंगा नदी का कायाकल्प सुनिश्चित करना है।
      • नमामि गंगे, गंगा को साफ करने हेतु NMCG के प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में से एक है।
    • जल की गुणवत्ता और पर्यावरणीय रूप से सतत् विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, व्यापक योजना, प्रबंधन एवं नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखने के लिये अंतरक्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देकर इसे प्राप्त किया जा सकता है।
  • संगठनात्मक संरचना:
    • अधिनियम में गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और कमी के उपाय करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई है:
      • भारत के माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय गंगा परिषद।
      • माननीय केंद्रीय जल शक्ति मंत्री (जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग) की अध्यक्षता में गंगा नदी पर सशक्त कार्य बल (ETF)।
      • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG)।
      • राज्य गंगा समितियाँ
      • राज्यों में गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों से सटे प्रत्येक निर्दिष्ट ज़िलों में ज़िला गंगा समितियाँ।

NMCG के समक्ष चुनौतियाँ:

  • भूमि अधिग्रहण:
    • कई संयंत्रों को चालू होने में समय लगा क्योंकि भूमि अधिग्रहण में समस्याएँ थीं। 
    • कई मामलों में, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (जो किसी परियोजना को निष्पादित करने के लिये आवश्यक सभी कदम और एजेंसियों की भूमिकाएँ निर्धारित करती है) में संशोधन की आवश्यकता होती है।
  • स्थानीय पहल का अभाव: 
    • राज्य सरकारें यह मानकर चल रही हैं कि शोधन संयंत्रों का निर्माण पूरी तरह से केंद्र की ज़िम्मेदारी है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन, विशेष रूप से MSW पृथक्करण और पुनर्चक्रण, स्रोत पर ही संचालन करने पर सबसे प्रभावी होता है।
    • हालाँकि मिशन को जल की गुणवत्ता की निगरानी करने और स्थानीय निकायों का समर्थन करने के लिये गाँव और शहर स्तर के स्वयंसेवकों का एक कैडर बनाने की योजना थी, लेकिन मिशन को इन पहलों को प्रभावी ढंग से लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
  • अनुचित फंडिंग:
    • हालांकि NMCG 20,000 करोड़ रुपये का मिशन है, लेकिन सरकार ने अब तक 37,396 करोड़ रुपये की परियोजनाओं के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दी है, जिसमें से जून 2023 तक बुनियादी ढांचे के कार्य के लिए राज्यों को केवल 14,745 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। 
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन:
    • गंगा में प्रवाहित होने वाले नगरपालिका ठोस अपशिष्ट की समस्या का पर्याप्त समाधान नहीं कर पाने के कारण मिशन को आलोचना का सामना करना पड़ा। 
    • नदी के किनारे स्थित कई कस्बों और शहरों में उचित अपशिष्ट उपचार बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिससे अनुपचारित अपशिष्ट नदी में प्रवेश कर जाता है।
  • अपर्याप्त सीवरेज नेटवर्क: 
    • भारत की अधिकांश शहरी आबादी सीवरेज नेटवर्क के बाहर रहती है, जिसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा STP तक नहीं पहुँच पाता है।
  • अनुचित अपशिष्ट निपटान: 
    • क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्ययन से पता चला है कि नदी के किनारे कई शहरों में घाटों के पास कूड़े के ढेर पाए जाते हैं, जो अनुचित अपशिष्ट निपटान प्रथाओं का संकेत देते हैं। इससे गंगा की निर्मलता के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है।

NMCG कार्यक्रम के प्रभाव:

  • नदी जल गुणवत्ता अब अधिसूचित प्राथमिक स्नान जल गुणवत्ता की निर्धारित सीमा के भीतर है।
  • डॉलफिन (वयस्क और किशोर दोनों - 2,000 से लगभग 4,000) की आबादी में वृद्धि गंगा के किनारे के जल की गुणवत्ता में सुधार का एक स्पष्ट संकेत है।
    • डॉलफिन गंगा नदी के नए हिस्सों के साथ-साथ अन्य सहायक नदियों में भी देखे जा सकते हैं।
  • मछुआरों ने पाया है कि इंडियन कार्प, (केवल साफ जल में पनपने वाली मछली की एक प्रजाति) अधिक संख्या में देखे जा रहे हैं। यह नदी जल सुधार का प्राकृतिक साक्ष्य है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपयोग किये जाने वाले विशिष्ट पैरामीटर (जैसे कि घुलित ऑक्सीजन का स्तर, जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग और मल कोलीफॉर्म) नदी के विभिन्न हिस्सों के लिये भिन्न होते हैं।
  • NMCG अब वायु गुणवत्ता सूचकांक की तर्ज़ पर जल गुणवत्ता सूचकांक विकसित करने पर काम कर रहा है, ताकि नदी-जल की गुणवत्ता के बारे में बेहतर ढ़ंग से संवाद किया जा सके।

गंगा से संबंधित पहलें:

गंगा नदी प्रणाली

  • गंगा की जलधारा जिसे 'भागीरथी' कहा जाता है, गंगोत्री हिमनद से पोषित होती है और यह उत्तराखंड के देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलती है।
  • हरिद्वार में गंगा पहाड़ों से निकलकर मैदानी इलाकों की ओर बहती है।
  • हिमालय से निकलने वाली कई सहायक नदियाँ गंगा में मिलती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख नदियाँ यमुना, घाघरा, गंडक और कोसी हैं।

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