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मेघालय जनजातीय परिषद का विलय के साधन (IoA) पर पुर्नविचार

  • 11 Jul 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

छठी अनुसूची, जनजातीय परिषद, हिल काउंसिल, इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन।

मेन्स के लिये:

बदलते समय के साथ उत्तर-पूर्वी जनजातियों का सामाजिक-धार्मिक और प्रथागत मुद्दा, संघवाद, उत्तर-पूर्व से संबंधित मुद्दा।

चर्चा में क्यों?

मेघालय में आदिवासी परिषद ने सात दशक से भी अधिक समय पहले खासी डोमेन को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने वाले विलय के साधन (Instrument of Accession-IoA) पर फिर से विचार करने के लिये पारंपरिक प्रमुखों की बैठक बुलाई है।

मेघालय जनजातीय परिषद का IoA पर पुर्नविचार:

  • खासी पहाड़ी स्वायत्त ज़िला परिषद (Khasi Hills Autonomous District Council-KHADC) के नेताओं ने IoA और संलग्न समझौते पर फिर से विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके अनुसार समझौते के अनुच्छेदों को समझना ज़रूरी है, क्योंकि संविधान की छठी अनुसूची से कई प्रावधान गायब हैं।
  • खासी राज्यों के संघ ने विशेष दर्जे की मांग की थी, जैसे नगालैंड ने अनुच्छेद 371 के तहत यह नगा प्रथागत कानूनों के अनुसार नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन के अधिकार के साथ नगाओं के सामाजिक-धार्मिक एवं प्रथागत अभ्यास की रक्षा करता है।
    • अनुच्छेद 371A के तहत नगाओं को भूमि और संसाधनों का स्वामित्व एवं हस्तांतरण भी प्राप्त है।
  • हाल ही में 'खासी उत्तराधिकार संपत्ति विधेयक, 2021' पेश किये जाने से खासी लोगों की सामाजिक और प्रथागत प्रथाओं में हस्तक्षेप के कारण KHADC के कुछ नेताओं को इसने नाराज़ कर दिया है। बिल खासी समुदाय में भाई-बहनों के बीच पैतृक संपत्ति के "समान वितरण" का आह्वान करता है।
  • KHADC ने कहा कि प्रावधानों को छठी अनुसूची में जोड़ा जा सकता है, जिसे "संसद द्वारा संशोधित किया जा सकता है"।

प्रमुख बिंदु

  • KHADC संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक निकाय है।
  • इसमें कानून बनाने की शक्ति नहीं है।
  • छठी अनुसूची का अनुच्छेद 12ए राज्य विधानमंडल को कानून पारित करने का अंतिम अधिकार देता है।
  • संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिये आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है।
  • यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किया गया है।
  • यह स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADCs) के माध्यम से उन क्षेत्रों के प्रशासन में स्वायत्तता प्रदान करता है, जिन्हें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत क्षेत्रों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है।

‘विलय के साधन (Instrument of Accession)’:

  • परिचय:
    • विलय का साधन एक कानूनी दस्तावेज़ था जिसे पहली बार भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा पेश किया गया था और 1947 में ब्रिटिश सर्वोच्चता के तहत रियासतों के प्रत्येक शासक को ब्रिटिश भारत के विभाजन द्वारा बनाए गए भारत या पाकिस्तान के नए उपनिवेशों में से एक में शामिल होने के लिये इस्तेमाल किया गया था। .
    • शासकों द्वारा निष्पादित विलय के उपकरण, तीन विषयों, अर्थात् रक्षा, विदेश मामलों और संचार पर भारत के डोमिनियन (या पाकिस्तान) में राज्यों के परिग्रहण के लिये प्रदान किये गए थे।
  • IoA और मेघालय:
    • 15 दिसंबर, 1947 से 19 मार्च, 1948 के बीच भारत डोमिनियन तथा खासी पहाड़ी राज्य के मध्य IoA पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • मेघालय को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिसमें कई मातृवंशीय समुदायों का वर्चस्व है - खासी, गारो और जयंतिया।
      • खासी पहाड़ियाँ 25 हिमाओं या राज्यों में फैली हुई हैं जिन्होंने खासी राज्यों के संघ का गठन किया।
    • इन राज्यों के साथ सशर्त संधि पर भारत के गवर्नर जनरल, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी द्वारा 17 अगस्त, 1948 को हस्ताक्षर किये गए थे।

छठी अनुसूची:

  • अनुच्छेद 244 के तहत संविधान की छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों के गठन की शक्ति प्रदान करती है, स्वायत्त ज़िला परिषद (ADC) जिनके पास एक राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता है।
  • छठी अनुसूची में चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये विशेष प्रावधान हैं।
    • इन चार राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
  • संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं अथवा निर्दिष्ट संशोधनों व अपवादों के साथ ही लागू होते हैं।
    • इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास होती है।
  • प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
    • निर्वाचित सदस्य पाँच वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं (जब तक कि परिषद पहले भंग नहीं हो जाती) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते हैं।
  • प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र की एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
    • ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं।
    • वे भूमि, जंगल, नहर का पानी, झूम खेती, ग्राम प्रशासन, संपत्ति की विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों आदि जैसे कुछ विशिष्ट मामलों पर कानून बना सकते हैं लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
    • वे जनजातियों के बीच मुकदमों और मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकते हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
  • ज़िला परिषद, ज़िले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, घाटों, मत्स्य पालन, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है।
  • उन्हें भू-राजस्व का आकलन और संग्रह करने तथा कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची में प्रावधान किये गए हैं: (2015)

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करना
(b) राज्यों के बीच सीमाओं का निर्धारण
(c) पंचायतों की शक्तियों, अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों की रक्षा करना

उत्तर: (a)

  • पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन तथा नियंत्रण के लिये प्रावधान करती है।
  • छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: द हिंदू

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