विरासत स्थलों के संरक्षण के निहितार्थ
- 26 Apr, 2023 | राहुल कुमार
अतीत के बारे में जानना हो तो विरासत स्थलों की भेंट कर आइए! तमाम विरासत स्थल इतिहास और संस्कृति को मूर्त रूप में जिंदादिली के साथ बयां करते हुए पाए जाएंगे। प्रत्येक समाज की अलग-अलग युग में अलग-अलग पहचान होती है। दरअसल सभ्यता और संस्कृति के संगम को सलीके से रेखांकित करता है विरासत स्थल। विरासत स्थलों को धरोहर की संज्ञा दी गई है। हमारी धरोहर हमारा गौरव है और ये हमारे इतिहास-बोध को मज़बूत करते हैं। इनका महत्व और इनकी प्रासंगिकता सदियों से कायम है और सदियों तक कायम रहेगी।
क्या नालंदा विश्वविद्यालय का खंडहर केवल खंडहर भर है, क्या भीमबेटका की गुफाएं केवल गुफाएं भर हैं, क्या जलियाँवाला बाग केवल बगीचे भर हैं; नहीं न! अर्थात विरासत स्थल चाहे कितना ही नया या पुराना क्यों न हो, उनके साथ हमारा कनेक्शन प्रगाढ़ होता है। विरासत स्थलों का कनेक्शन स्थापत्य कला, चित्रकला, तत्कालीन जीवन शैली, मूर्तिकला, विज्ञान, तकनीक, भाषा और साहित्य इत्यादि से होता है। इसलिए कहा भी जाता है- “किसी देश को जानना हो तो वहाँ के इतिहास की पुस्तकें पढ़िए और यदि उस देश को पहचानना हो तो वहाँ के विरासत स्थलों का मुआयना करिए।” विरासत स्थल हमारे अतीत का वह आईना है जिसमें काल्पनिक कुछ भी नहीं होता, जो भी होता है वास्तविक होता है; किंतु अचंभित करने वाला और दिलचस्प होता है।
आगरा का किला, अजंता की गुफाएँ, साँची का स्तूप, फतेहपुर सीकरी, हम्पी स्मारक, हुमायूँ का मकबरा, खजुराहो मंदिर, महाबोधि मंदिर, कुतुबमीनार, दिल्ली का लालकिला, ताजमहल, जंतरमंतर, पर्वतीय रेलवे, पट्टदकल स्मारक, गोवा चर्च, एलोरा की गुफाएँ, महाबलीपुरम स्मारक, रुद्रेश्वर मंदिर और धौलावीरा की इस लंबी सूची में अनेकों नाम हैं जो भारत के गौरवमयी इतिहास को समेटे हुए हैं। इस प्रकार के तमाम विरासत स्थल भारत को संवारते और निखारते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के इमेज को चमकाने में हमारे धरोहरों की कोई तुलना नहीं है।
हम अभी क्या हैं, क्यों हैं और कैसे हैं का क़ायदा भरा उत्तर विरासत स्थलों में समाहित होता है। इनके संरक्षण की ज़रूरत इसलिए पड़ती है ताकि आने वाली तमाम पीढ़ी अपने प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक और समकालीन इतिहास से रूबरू हो सके। विरासत स्थल मानव सभ्यता का वह पन्ना है जिन्हें निरक्षर लोग भी पढ़ सकते हैं। दरअसल किसी भी राष्ट्र के विकास में संस्कृति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह साझे दृष्टिकोण, मूल्यों, लक्ष्यों और प्रथाओं का समूह प्रस्तुत करती है। भारत में यूँ तो सैकड़ों विरासत स्थल हैं किंतु भारत के विश्व विरासत स्थलों की कुल संख्या 40 हैं। 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित-मापदंड वाले विरासत स्थल के साथ भारत विश्व विरासत स्थल की सूची में छठें स्थान पर है। प्रत्येक विरासत स्थल हमारे देश की बहुमूल्य संपत्ति हैं। देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में इनका खूब योगदान है।
भारत में “प्राचीन स्मारक तथा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम (AMASR), 1958” के तहत विरासत स्थलों की रक्षा की जाती है। दरअसल जब किसी स्मारक को AMASR अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित घोषित किया जाता है तब विरासत स्थलों के रख-रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन हो जाता है। विरासत स्थलों के संरक्ष्ण में राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और कुल सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की भूमिका महत्वपूर्ण है। आर्थिक विकास के हत्थे हमारे सांस्कृतिक स्थल न चढ़ जाएं, इस बात का पूरा ख्याल विभिन्न अधिनियम, संगठन, निकाय और संस्कृति मंत्रालय रखते हैं। दरअसल “मूर्त और अमूर्त विरासत पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच सेतु का कार्य करती है। यदि इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो नई पीढ़ी अतीत से प्रेरित कैसे होगी और कैसे अतीत से उम्दा सीख हासिल हो सकेगा!”
विरासत स्थलों पर संकट कैसे?
- प्राचीन मंदिर और संग्रहालयों से मूर्ति चोरी की ख़बरें
- पुरातात्विक अवशेषों की तस्करी
- कुप्रबंधन के कारण विरासत स्थलों पर कुप्रभाव
- उचित रख-रखाव की कमी
- स्मारकों पर अतिक्रमण
हाल के वर्षों में आगरा का हाथी खाना, दिल्ली के अनंग ताल, केरल का जनार्दन मंदिर, देहरादून का वीरभद्र गाँव, पिथौरागढ़ का विष्णु मंदिर, अश्वमेध यज्ञ के अवशेष, कठुआ का त्रिलोचननाथ मंदिर, नवरत्नगढ़ का मंदिर, लद्दाख का रंगदुम मठ, बागपत के पुरातात्विक अवशेष और लद्दाख के गोंपा परिसर जैसे अनेकों विरासत स्थलों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है। संस्कृति मंत्रालय छोटे-छोटे विरासत स्थलों को भी संरक्षित रखने के लिए प्रयत्नशील है। सूक्ष्म संस्कृति को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा हाल के वर्षों में 15 लाख से ज़्यादा की राशि आवंटित की गई है।
विरासत स्थलों का संरक्षण क्यों?
- देश की पहचान और गौरव का प्रतीक
- पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण
- एकता और अपनत्व का विकास
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सॉफ्ट पावर के रूप में उपयोग
- आर्थिक विकास में सहायक
- भारतीय विविधता की रक्षा
हमारी विरासतें हमें विज्ञान और तकनीक से भी रूबरू कराती हैं। ये मनुष्यों तथा प्रकृति के मध्य जटिल सबंधों को दर्शाती हैं और मानव सभ्यता की विकास गाथा की कहानी को क़ायदे से बयां करती हैं। विरासत स्थल को देखकर अतीत के देश-काल और वातावरण को महसूस किया जा सकता है। यदि हम अपनी विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो इसको आर्थिक लाभ से जोड़ना चाहिए और इसके लिए सांस्कृतिक क्षेत्र को उदारीकरण की परिधि में लाना चाहिए। जब ये स्थल आर्थिक महत्त्व वाले बन जाएंगे तो इनके रख-रखाव के लिये निजी और सार्वजानिक क्षेत्रों के बीच प्रतिस्पर्द्धा होगी। अंततः जिसका फ़ायदा हमारे विरासत स्थल और अर्थव्यवस्था को मिलेगा।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कुल 24 भारतीय स्मारकों को खोजने योग्य अथवा लापता घोषित किया है। रख-रखाव के अभाव के कारण अजंता की गुफाओं की भित्ति-चित्र लगातार खराब होती जा रही है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार 278 से अधिक स्मारकों पर अतिक्रमण और अवैध कब्जा है। अनियमित पर्यटन गतिविधियाँ ने पर्यटन स्थलों पर गलत प्रभाव छोड़ा है। इस परिस्थिति में यदि विरासत स्थलों को कायदे से संरक्षित न किया गया तो गौरवमयी अतीत गर्त में समाता चला जाएगा और हमलोग बाजारवाद में विलीन होते चले जाएँगे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सम्पूर्ण भारत में 58 लाख से अधिक पुरावशेषों का अनुमान लगाया है, लेकिन इसकी कोई सूची उपलब्ध नहीं है। CAG की रिपोर्ट में 92 स्मारकों के संबंध में कोई डाटाबेस न होने की बात की गई है। सबसे त्रासदीपूर्ण बात यह है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और राष्ट्रीय संस्कृति कोष के बीच उचित समन्वय न होने के कारण कुल उपलब्ध राशि का केवल 14% ही उपयोग किया गया है। यानी विरासत स्थलों के संरक्षण और प्रबंधन की ज़रूरत महसूस हो रही है।
भारत सरकार विरासत स्थलों को संरक्षित करने के लिए धरोहर गोद लें: अपनी धरोहर, अपनी पहचान परियोजना के अलावा राष्ट्रीय स्मारक और पुरावशेष मिशन तथा प्रोजेक्ट मौसम जैसे प्रमुख पहलें शुरू की हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र विश्व धरोहर समिति में वर्ष 2021-25 के लिए सदस्य के रूप में चुना गया है। इस दौरान भारत विरासत स्थलों के संरक्षण का मुद्दा विश्व पटल पर संवेदनशीलता के साथ उठा सकता है। विकासशील देशों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत वैश्वीकरण के दौर में हाशिये पर है, इस सच को मुखरता के साथ भारत प्रस्तुत कर सकता है ताकि संरक्षण के लिए यूनेस्को के द्वारा कुछ ठोस क़दम उठाया जा सके।
गौरतलब है कि फरवरी 2023 में केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि वह 1000 से अधिक स्मारकों को निजी क्षेत्र को सौंपने जा रही है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में इनके रख-रखाव का कार्य करेंगी। सरकार द्वारा 15 अगस्त 2023 तक 500 संरक्षित स्थलों को और उसके बाद पुनः 500 अन्य स्थलों को गोद देने का लक्ष्य रखा गया है। दरअसल विरासत कुछ और नहीं बल्कि पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी को दिया जाने वाला सबसे अच्छा उपहार है। जब तक इन उपहारों का रख-रखाव सही से नहीं होगा तब तक नई पीढ़ी इसके महत्व से अवगत नहीं हो पाएँगे।
विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए क्या हो सुझाव?
- उत्खनन और संरक्षण हेतु ASI द्वारा फोटोग्रामेट्री एवं 3D लेज़र स्कैनिंग, LiDAR और उपग्रह रिमोट सेंसिंग सर्वेक्षण जैसी नई प्रौद्योगिकी का उपयोग
- धरोहर पहचान और संरक्षण परियोजनाओं को शहर के मास्टर प्लान से जोड़ना
- विभिन्न धरोहरों को स्मार्ट सिटी पहल के साथ एकीकृत करना
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत कॉर्पोरेट धरोहर उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना
- संरक्षण से संबंधित विभिन्न कानूनों एवं नीतियों को कठोरता से लागू करना
देखा जाए तो ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में भारत खूब समृद्ध है। भारत के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्मारकीय भवन हैं। लेकिन विशाल भारत के लिहाज से हमारे यहाँ क़ानूनी रूप से संरक्षित विरासतों की संख्या बहुत कम है। भारत में मात्र 15 हजार स्मारक और विरासत स्थल कानूनी रूप से संरक्षित हैं, जबकि ब्रिटेन जैसे छोटे देश में 6 लाख स्मारकों को वैधानिक सरंक्षण प्राप्त है। अतः हमें ज़्यादा से ज़्यादा विरासत स्थलों को कानून के दायरे में लाना होगा ताकि भारत की विविध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चमक दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहे।
गौरतलब है कि भारत के रग-रग में विविधता निवास करती है। भारत को भारत बनाने में जितना योगदान नेताओं, वैज्ञानिकों, किसानों, शिक्षकों, प्रशासकों और उद्योगपतियों का है उतना ही योगदान भारत के विरासत स्थलों का है। बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता है, लेकिन उस काल में बनी इमारतें और लिखे गए साहित्य उन्हें हमेशा सजीव बनाए रखते हैं। इसलिए विविध विरासत स्थल ही भारत के असली पहचान हैं। स्तूप, मठ, मंदिर, मस्जिद, मकबरा, चर्च और गुरुद्वारा का उद्देश्य मानवता को जीवित रखना है। इन्हें संरक्षित करके ही विश्व पटल पर हम अपनी मौजूदगी का एहसास सॉफ्ट पावर के रूप में करा सकते हैं। भारतीय संविधान भी कहता है कि समृद्ध विरासत का संरक्षण प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। नीति-निदेशक तत्वों के अंतर्गत भी विरासत स्थलों को संरक्षण प्राप्त है। अतः भारतीय होने के नाते हमें अपने कर्तव्यों का अक्षरशः पालन करना चाहिए।
अल्लामा इक़बाल लिखते हैं -
“यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।”
राहुल कुमारराहुल कुमार, बिहार के खगड़िया जिले से हैं। इन्होंने भूगोल, हिंदी साहित्य और जनसंचार में एम.ए., हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा तथा बीएड किया है। इनकी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये IIMC से पत्रकारिता सीखने के बाद लगातार लेखन कार्य कर रहे हैं। |