खरपतवार और फसल उत्पादकता की हानि
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:खरीफ फसलें, रबी फसलें, कृषि विज्ञान केंद्र, शाकनाशी, मशीनीकरण, खरपतवार प्रबंधन, जैविक और धारणीय कृषि पद्धतियाँ, परिशुद्ध कृषि। मुख्य परीक्षा के लिये:खरपतवार नियंत्रण रणनीतियाँ और खरपतवार समस्याओं को कम करने के लिये सरकारी पहल। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) के एक अध्ययन के अनुसार खरपतवार के कारण प्रत्येक वर्ष फसल उत्पादकता में 92000 करोड़ रुपये (11 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की हानि हो रही है।
- रिपोर्ट में इस बढ़ती समस्या को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित खरपतवार नियंत्रण रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- उपज हानि के आँकड़े: भारत भर में खरपतवार के कारण खरीफ फसलों में लगभग 25-26% तथा रबी फसलों में 18-25% की उत्पादकता हानि होती है।
- विविध फसलें और क्षेत्र: अध्ययन में 11 राज्यों के 30 ज़िलों की सात प्रमुख फसलों - चावल, गेहूँ, मक्का, कपास, गन्ना, सोयाबीन और सरसों को शामिल किया गया।
- हितधारकों की भागीदारी: शोधकर्त्ताओं ने 3,200 किसानों, 300 डीलरों के साथ-साथ कृषि विज्ञान केंद्रों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों का साक्षात्कार लिया।
- औसत व्यय: खरपतवार नियंत्रण पर औसत व्यय 3,700 रुपये से 7,900 रुपये प्रति एकड़ तक हो जाता है।
- खरपतवार प्रबंधन रणनीतियाँ: अध्ययन में खरपतवारनाशकों, मशीनीकरण, फसल चक्रण, आवरण फसल और जैविक नियंत्रण की सिफारिश की गई है, जिससे पारंपरिक तरीकों की तुलना में लागत में 40-60% की कमी आ सकती है।
भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII)
- FSII एक 40 सदस्यीय संघ है जो भारत में अनुसंधान एवं विकास-संचालित पादप विज्ञान उद्योग का प्रतिनिधित्व करता है।
- यह देश के कृषि क्षेत्र को सहायता प्रदान करते हुए खाद्य, चारा और फाइबर के लिये उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन में संलग्न है।
- FSII प्रौद्योगिकी-संचालित कृषि समाधानों को बढ़ावा देने के साथ नुकसानों को कम करते हुए कृषि उत्पादकता में सुधार में भूमिका निभाता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय बीज संघ (ISF) और एशिया एवं प्रशांत बीज संघ (APSA) जैसे अंतर्राष्ट्रीय निकायों से संबद्ध है, जिससे इसकी वैश्विक पहुँच और समन्वय में वृद्धि हो रही है।
खरपतवार क्या हैं?
- परिचय:
- खरपतवार आमतौर पर ऐसे अवांछित पौधे होते हैं जो कृषि या पारिस्थितिकी संतुलन को बाधित करते हैं। जैसे नट ग्रास, पोर्टुलाका, कॉमन काउच और ल्यूकेना।
- विशेषताएँ:
- ये फसलों और अन्य वनस्पतियों के साथ आक्रामक रूप से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
- खरपतवार विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलन क्षमता प्रदर्शित करते हैं, जिससे ये विभिन्न परिस्थितियों में विकसित हो जाते हैं।
- खरपतवार की वृद्धि तेजी से होती है (मुख्य रूप से बीजों, प्रकंदों या अन्य वनस्पति संरचनाओं के माध्यम से), जिससे उनका प्रसार आसान हो जाता है।
खरपतवारों से क्या चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं?
- कृषि उत्पादकता में कमी: लागत के अलावा खरपतवार फसल हानि का प्रमुख कारण है, जो प्रारंभिक जुताई चरण से लेकर कटाई के बाद के चरण तक संसाधनों हेतु प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
- खरपतवार आवश्यक संसाधनों जैसे जल, पोषक तत्त्व, सूर्य का प्रकाश और स्थान के लिये फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल की उत्पादकता कम हो जाती है।
- कृषि लागत में वृद्धि: खरपतवार प्रबंधन के लिये श्रम, खरपतवारनाशकों और अन्य नियंत्रण विधियों के संदर्भ में काफी निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे कृषि कार्यों का समग्र खर्च बढ़ सकता है।
- शाकनाशी प्रतिरोध: शाकनाशियों के निरंतर उपयोग से शाकनाशी-प्रतिरोधी खरपतवार प्रजातियों का विकास होता है। इससे नियंत्रण प्रयास जटिल हो जाते हैं और इन्हें प्रबंधित करने के लिये वैकल्पिक या अधिक महंगे तरीकों का उपयोग करना आवश्यक हो जाता है।
- मृदा स्वास्थ्य में असंतुलन: कुछ खरपतवार प्रजातियाँ पोषक तत्वों के संतुलन को बदलकर या मृदा अपरदन को बढ़ाकर मृदा की गुणवत्ता को खराब कर सकती हैं। उनकी आक्रामक जड़ प्रणालियाँ अन्य पौधों की वृद्धि में भी बाधा डाल सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक मृदा क्षरण हो सकता है।
- कीट और रोग का बढ़ता जोखिम: खरपतवार अक्सर विभिन्न कीटों और रोगाणुओं के लिये मेजबान का कार्य करते हैं तथा कीटों एवं रोगों के लिये प्रजनन आधार बन जाते हैं, जिससे कृषि संबंधी चुनौतियाँ और भी बढ़ जाती हैं।
खरपतवार के क्या लाभ हैं?
- वन्यजीवों के लिये आवास और भोजन: खरपतवार विभिन्न कीटों, पक्षियों और छोटे जीवों के लिये आवास और भोजन का स्रोत बनते हैं। ये द्वितीयक प्रजातियों के साथ पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करके जैवविविधता को बनाए रखने में भूमिका निभाते हैं।
- औषधीय और पोषण संबंधी उपयोग: कुछ खरपतवारों में औषधीय गुण होते हैं या पारंपरिक चिकित्सा में प्राकृतिक उपचार के रूप में भी इनका उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये, डंडेलियन और नेटल जैसे पौधे अपने स्वास्थ्य लाभों के लिये जाने जाते हैं। कुछ खरपतवार खाने योग्य भी होते हैं और भोजन के रूप में उपयोग किये जाने पर पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं।
- प्राकृतिक परागण आकर्षित करने वाले: कई खरपतवारों से ऐसे फूल उत्पन्न होते हैं जो मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य लाभकारी कीटों जैसे परागणकों को आकर्षित करते हैं। परागणकर्त्ताओं की आबादी का समर्थन करके, खरपतवार अप्रत्यक्ष रूप से आस-पास की फसलों और पौधों की उत्पादकता बढ़ाते हैं।
प्रभावी खरपतवार प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- खरपतवार प्रतिरोध:
- खरपतवारनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण खरपतवारनाशक प्रतिरोधी खरपतवारों का विकास हो सकता है, जिससे समय के साथ उन्हें नियंत्रित करना अधिक कठिन हो जाता है।
- श्रम की कमी:
- कृषि श्रम शक्ति में कमी आने तथा गाँवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ने के कारण, हाथ से निराई करना कम व्यवहार्य होता जा रहा है।
- ऊँची कीमतें:
- यद्यपि खरपतवारनाशकों और मशीनीकरण जैसे तकनीकी समाधान लागत को कम कर सकते हैं, लेकिन इन प्रौद्योगिकियों के लिये प्रारंभिक निवेश छोटे स्तर के किसानों के लिये निषेधात्मक हो सकता है।
- पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ:
- रासायनिक खरपतवारनाशकों के अत्यधिक उपयोग से पर्यावरण क्षरण, जल प्रदूषण, तथा किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये संभावित स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
- जैविक और प्राकृतिक कृषि के साथ एकीकरण:
- रासायनिक और यांत्रिक खरपतवार प्रबंधन तकनीकों को जैविक और संधारणीय कृषि पद्धतियों के साथ संरेखित करना एक चुनौती है, जिसका उद्देश्य खरपतवारनाशकों जैसे बाह्य आगतों को न्यूनतम करना है।
कृषि से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान)
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP)
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NEGP-A)
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य श्रृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
आगे की राह
- तकनीकी एकीकरण: अध्ययन में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये एक व्यापक, प्रौद्योगिकी-संचालित खरपतवार प्रबंधन ढाँचे की सिफारिश की गई है।
- उदाहरण के लिये डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR) में बीजों को सीधे खेतों में डाला जाता है, जिससे भूजल को संरक्षित करने में सहायता मिलती है। इसी प्रकार जीरो-टिलेज (ZT) गेहूँ तकनीक में मृदा को विच्छेदित कियेबगैर बीज बोना शामिल है।
- सार्वजनिक-निजी सहयोग: विशेषज्ञ खरपतवार से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये सार्वजनिक और निज़ी क्षेत्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- नवीन समाधान: खरपतवारनाशक-सहिष्णु गुणों को अपनाना तथा परिशुद्ध कृषि को श्रम की कमी तथा संसाधन की कमी को दूर करने के लिये प्रमुख रणनीति के रूप में देखा जाता है।
- फसल चक्रण: यह एक ऐसी पद्धति है, जिसमें एक ही क्षेत्र में विभिन्न मौसमों में विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाया जाता है तथा इससे खरपतवार का प्रकोप कम होता है।
- समग्र रूपरेखा: कृषि मंत्रालय के अनुसार, पारंपरिक, यांत्रिक, रासायनिक और जैविक कृषि समाधानों को मिलाकर एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रभावी खरपतवार प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: प्रभावी खरपतवार प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये साथ ही संभावित समाधान बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक:प्रश्न. निम्नलिखित प्रकार के जीवों पर विचार कीजिये: (2012)
उपरोक्त में से किस प्रकार के जीवों की कुछ प्रजातियों को जैव कीटनाशकों के रूप में कार्यरत हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
कृषि उत्पादों पर कृषकों की तुलना में मध्यस्थों को अधिक लाभ: RBI
प्रारंभिक परीक्षा:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), उच्च मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), थोक मूल्य सूचकांक (WPI), राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (E-NAM) मंच, किसान उत्पादक संगठन (FPO), प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) मुख्य परीक्षा:कृषि से संबंधित प्रमुख पहल, मुद्रास्फीति और खाद्य पदार्थों पर इसका प्रभाव, कृषि क्षेत्र में अवरोधक एवं प्रोत्साहनकर्त्ता के रूप में मध्यस्थों की भूमिका। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी चार कार्यपत्रों के अनुसार, फलों और सब्जियों में उच्च मुद्रास्फीति के दौरान उपभोक्ताओं के द्वारा भुगतान की गई कीमत में मध्यस्थों एवं खुदरा विक्रेताओं को किसानों की तुलना में काफी अधिक हिस्सा प्राप्त होता है।
मुद्रास्फीति
- परिभाषा: मुद्रास्फीति का आशय वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों का सामान्य से अधिक होना (जिससे क्रय शक्ति में कमी आती है) है।
- माप: भारत में मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मूल्य सूचकांकों- थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के माध्यम से मापा जाता है।
- मुद्रास्फीति के प्रकार:
- मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति: वस्तुओं और सेवाओं की मांग, आपूर्ति से अधिक होने से मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति होती है।
- लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति: उत्पादन की लागत में वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिये कीमतों में वृद्धि हो जाती है।
- संरचनात्मक मुद्रास्फीति: यह मुद्रास्फीति किसी अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक कमजोरियों के कारण होती है और इससे अक्सर विकासशील देश प्रभावित होते हैं।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: मध्यम मुद्रास्फीति को अर्थव्यवस्था के लिये अच्छा संकेत माना जाता है लेकिन उच्च मुद्रास्फीति से क्रय शक्ति में कमी आने के साथ अनिश्चितता हो सकती है, जिससे बचत और निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
RBI के दस्तावेजों के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अर्थव्यवस्था एवं नीति अनुसंधान विभाग के चार कार्यपत्रों के अनुसार, डेयरी, पोल्ट्री और दालों की तुलना में फलों (जैसे केला, अंगूर, आम) एवं आवश्यक सब्जियों (जैसे टमाटर, प्याज, आलू) के मामले में किसानों को मुद्रास्फीति का काफी कम लाभ होता है।
- भारत में पशुधन और मुर्गीपालन मुद्रास्फीति पर प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार:
- किसानों को दूध के संदर्भ में उपभोक्ताओं से प्राप्त होने वाले रुपए में लगभग 70% तथा अंडों के संदर्भ में 75% भाग मिलता है।
- पोल्ट्री मांस के संदर्भ में किसानों और एग्रीगेटर्स को संयुक्त रूप से लगभग 56% प्राप्त होता है।
- दूध के संदर्भ में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के तहत चारे की लागत और उपलब्धता जैसे कारकों से प्रभावित मूल्य में उतार-चढ़ाव को दर्शाया जाता है।
- दूध की उपलब्धता अधिक होने से कीमतें कम हो जाती हैं।
- चारे की उच्च लागत के कारण दूध की कीमतें बढ़ जाती हैं।
- भारत में फलों की मूल्य गतिशीलता और मूल्य श्रृंखला नामक शोधपत्र में अनुमान लगाया गया है कि:
- किसानों को केले के संदर्भ में उपभोक्ता रुपए का लगभग 31%, अंगूर के संदर्भ में 35% और आम के संदर्भ में 43% प्राप्त होता है।
- अंगूर की खेती पूंजी और श्रम प्रधान है तथा यह मूल्य में अस्थिरता मौसम, जलवायु परिस्थितियों और इनपुट लागत से प्रभावित होती है।
- अंगूर का उत्पादन महाराष्ट्र और कर्नाटक में केंद्रित है।
- अंगूरों का निर्यात मुख्यतः नीदरलैंड और बांग्लादेश को किया जाता है जबकि आयात चीन से किया जाता है।
- भारत में दालों की मुद्रास्फीति पर शोध पत्र में कहा गया है कि:
- किसानों को चना के संदर्भ में उपभोक्ता रुपए का 75%, मूँग के संदर्भ में 70% और तुअर के संदर्भ में 65% प्राप्त होता है।
- मांग और आपूर्ति पक्ष के कारक (जैसे स्टॉक स्तर, ग्रामीण मजदूरी, इनपुट लागत और संरचनात्मक बाधाएँ) दालों की मुद्रास्फीति के निर्धारक हैं।
- भारत में सब्जियों की मुद्रास्फीति पर शोध पत्र में अनुमान लगाया गया है कि:
- किसानों को टमाटर के संदर्भ में 33%, प्याज के संदर्भ में 36%, आलू के संदर्भ में 37% मिलता है।
- सब्जियों की मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक इनपुट लागत, वर्षा और मजदूरी के साथ-साथ मौसम की स्थिति तथा बाज़ार व्यवहार जैसे आपूर्ति पक्ष के उतार-चढ़ाव शामिल हैं।
- लघु फसल चक्र, शीघ्र खराब होने की प्रवृत्ति, क्षेत्रीय उत्पादन संकेंद्रण तथा मौसम की स्थिति के कारण सब्जियों की कीमतें अत्यधिक अस्थिर रहती हैं।
RBI का अर्थव्यवस्था एवं नीति अनुसंधान विभाग
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RBI शोध पत्रों द्वारा सुझाए गए उपाय क्या हैं?
- फल और सब्जियाँ:
- निजी बाज़ारों का विस्तार: मध्यस्थों पर निर्भरता कम करना और किसानों के लिये बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देना।
- ऐसे बाज़ारों का विस्तार करने से प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण को बढ़ावा मिलेगा तथा पारंपरिक थोक बाज़ारों (मंडियों) की अकुशलताएँ कम होंगी।
- सरकारी पहल: बफर स्टॉक, मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) और ऑपरेशन ग्रीन्स योजना जैसे उपायों का उद्देश्य मूल्य अस्थिरता को कम करना और किसानों के लिये मूल्य प्राप्ति को बढ़ाना है।
- ई-नाम प्लेटफॉर्म का उपयोग बढ़ाना: पारदर्शिता सुनिश्चित करने और मूल्य विकृतियों को कम करने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) प्लेटफॉर्म के उपयोग को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
- कृषक समूहों को बढ़ावा देना: लघु और सीमांत कृषकों को सशक्त बनाने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- FPO कृषकों को संसाधन जुटाने, सौदेबाजी को बढ़ाने तथा इनपुट, ऋण और बाज़ार तक पहुँच में सुधार करने में सहायक हो सकते हैं।
- कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का निर्माण: उन्मूलन के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिये, विशेष रूप से शीघ्र खराब होने वाले फलों और सब्जियों के लिये। अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज के कारण भारत में लगभग 30-40% फल और सब्जियाँ नष्ट हो जाती हैं।
- कोल्ड स्टोरेज की अवसंरचना में निवेश को बढ़ाने से उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ सकती है, कीमतें स्थिर हो सकती हैं तथा किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा।
- निजी बाज़ारों का विस्तार: मध्यस्थों पर निर्भरता कम करना और किसानों के लिये बाज़ार पहुँच को बढ़ावा देना।
- दालें:
- बुनियादी ढाँचे में सुधार: कृषि बाज़ारों में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता, जैसे ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश।
- ये उपाय दीर्घकालिक आधार पर मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने तथा कृषकों की आय में सुधार लाने के लिये आवश्यक हैं।
- अधिक उपज़ के लिये किस्मों का विकास: उत्पादन बढ़ाने के लिये जलवायु-अनुकूल और न्यून अवधि वाली बीज किस्मों को बढ़ावा देना।
- उदाहरण के लिये ICAR की पूसा अरहर-16 तुअर की परिपक्वता अवधि को 180 दिनों से घटाकर 120 दिन कर देती है, जिससे उपज में 15% की वृद्धि होती है।
- खरीद और बफर रिज़र्व को बढ़ावा देना: बाज़ार में हस्तक्षेप के लिये घरेलू और आयातित दालों की सरकारी खरीद को मज़बूत करना।
- भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ के रणनीतिक बफर स्टॉक से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायता मिली है।
- बुनियादी ढाँचे में सुधार: कृषि बाज़ारों में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता, जैसे ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में निवेश।
- दुग्ध:
- व्यापार नीति को युक्तिसंगत बनाना: घरेलू किसानों की सुरक्षा करते हुए कीमतों को स्थिर करने के लिये स्किम्ड मिल्क पाउडर (SMP) और मक्खन जैसे आयातित उत्पादों पर टैरिफ समायोजित करना।
- जर्मप्लाज्म आयात को बढ़ावा देना: क्रॉसब्रीडिंग के लिये समशीतोष्ण नस्लों को प्रस्तुत करने के लिये मवेशी/भैंसों के जर्मप्लाज्म के आयात पर प्रतिबंधों को शिथिल करना, जिससे दीर्घ अवधि में दुग्ध उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा।
- मूल्य शृंखला अवसंरचना को बढ़ावा देना: बल्क मिल्क चिलिंग (BMC) केंद्रों, आधुनिक डेयरी संयंत्रों और छोटी प्रसंस्करण इकाईयों में निवेश को प्राथमिकता देना।
- बेहतर प्रसंस्करण और भंडारण बुनियादी ढाँचे से डेयरी उत्पादों की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- एकीकृत पशु स्वास्थ्य योजनाएँ: खुरपका-मुँहपका जैसे बार-बार होने वाले रोगों से निपटने के लिये त्वरित चिकित्सा क्रियात्मक इकाईयाँ स्थापित करना।
- पोल्ट्री क्षेत्र के लिये नीतिगत सुझाव:
- व्यापार नीतियों की विकृतियों को दूर करना: वृहद मुद्रास्फीति को कम करने और बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से उच्च मांग की अवधि के दौरान, पोल्ट्री आयात पर शुल्कों को युक्तिसंगत बनाना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: शीत शृंखला सुविधाओं, प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे और कृषि प्रबंधन में सुधार के लिये FDI और सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना।
- उत्पादन लागत में कमी लाना: उच्च गुणवत्ता वाले मक्का और सोयाबीन की उत्पादकता बढ़ाने के लिये नीतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, क्योंकि पोल्ट्री फीड की लागत में इनका बड़ा भाग शामिल है।
- छोटे उत्पादकों के लिये संस्थागत समर्थन: गुणवत्तापूर्ण आगत और बाज़ार तक पहुँच में सुधार के लिये छोटे पोल्ट्री कृषकों के सामूहिकीकरण को प्रोत्साहित करना।
- अमूल जैसे सहकारी मॉडल छोटे किसानों को लेन-देन की लागत कम करने और उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं।
कृषि से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं?
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- ई-राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (E-NAM)
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- डिजिटल कृषि मिशन
- एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP)
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NEGP-A)
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
निष्कर्ष
अर्थव्यवस्था में कृषकों के योगदान के बावज़ूद, उपभोक्ताओं के रुपए में उनका भाग आनुपातिक रूप से न्यूनतम है, मूलतः फलों और सब्जियों के क्षेत्र में। आय के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि कृषकों को उनकी उपज के लिये उचित मुआवज़ा मिले, इन असमानताओं को दूर करना आवश्यक है। कृषकों को सशक्त बनाने, सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने और कृषि क्षेत्र की समग्र दक्षता को बढ़ाने के लिये व्यापक नीतिगत उपाय की आवश्यकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: कृषकों के लिये आय का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय लागू किये जा सकते हैं और ये उपाय कृषि क्षेत्र की समग्र स्थिरता और संधारणीयता में कैसे योगदान दे सकते हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)
निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (b) मुख्य:Q. देश के कुछ भागों में भूमि सुधारों ने सीमांत और छोटे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने में किस प्रकार मदद की? (2021) Q. भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास करने की राह में विपणन और पूर्ति शृंखला प्रबंधन में क्या बाधाएँ हैं? क्या इन बाधाओं पर काबू पाने में ई-वाणिज्य सहायक हो सकता है? (2015) |
यूरोपीय संघ के CBAM एवं वनोन्मूलन मानदंडों से संबंधित भारत की चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM), यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR), कार्बन शुल्क, यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS), व्यापार अवरोधक, ग्रीन स्टील, कार्बन उत्सर्जन, बौद्धिक संपदा अधिकार, ट्रेड सीक्रेट, विश्व व्यापार संगठन, गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB), भारत-व्यापार संघ FTA, स्वच्छ प्रौद्योगिकियाँ। मेन्स के लिये:यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBM), यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR) और संबंधित चिंताएँ। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के वित्तमंत्री ने यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) तथा यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR) को मनमाना एवं भारतीय उद्योगों को नुकसान पहुँचाने वाले उपकरणों के रूप में संदर्भित किया है।
यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) क्या है?
- कार्बन सीमा समायोजन तंत्र: यूरोपीय संघ के इस उपकरण के तहत यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाली कार्बन सघन वस्तुओं के उत्पादन के दौरान उत्सर्जित कार्बन के आधार पर उचित कर लगाया जाता है ताकि गैर-यूरोपीय संघ देशों में स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सके।
- आयात पर कार्बन शुल्क यूरोपीय संघ द्वारा उत्पादित वस्तुओं पर लागू कार्बन कर के अनुरूप रहता है जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा बनी रहे।
- CBAM की कार्यप्रणाली:
- पंजीकरण और प्रमाणन: CBAM द्वारा कवर की गई वस्तुओं के संदर्भ में यूरोपीय संघ के आयातकों को राष्ट्रीय प्राधिकारियों के साथ पंजीकरण कराने के साथ CBAM प्रमाण-पत्र खरीदना होता है जिसमें उनके आयात में निहित कार्बन उत्सर्जन को दर्शाया जाता है।
- वार्षिक घोषणा: आयातकों को अपनी आयातित वस्तुओं में निहित उत्सर्जन की घोषणा करनी होती है तथा उसके अनुसार प्रतिवर्ष तदनुसार संख्या में प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने होते हैं।
- कार्बन शुल्क का भुगतान: आयातकों को यह साबित करना होगा कि गैर-यूरोपीय संघ देश में उत्पादन के दौरान कार्बन शुल्क का भुगतान पहले ही किया जा चुका है, ताकि CBAM भुगतान से कटौती की गई राशि प्राप्त की जा सके।
- CBAM द्वारा कवर किये गए सामान: प्रारंभ में, CBAM उच्च जोखिम वाले कार्बन उत्सर्जन वाली वस्तुओं पर लागू होता है, जैसे सीमेंट, लोहा और इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन।
- समय के साथ, CBAM यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) द्वारा कवर किये गए क्षेत्रों जैसे तेल रिफाइनरियों, शिपिंग आदि से होने वाले 50% से अधिक उत्सर्जन को कैप्चर कर लेगा।
यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR) क्या है?
- यूरोपीय संघ वनोन्मूलन विनियमन (EUDR): यूरोपीय संघ के बाज़ार में निर्दिष्ट वस्तुओं को रखने वाले या उनका निर्यात करने वाले ऑपरेटरों या व्यापारियों को यह साबित करना होगा कि उनके उत्पाद हाल ही में वनों की कटाई की गई भूमि के अंतर्गत नहीं आते हैं या वनोन्मूलन में योगदान नहीं देते हैं।
- विनियमन के उद्देश्य: प्राथमिक उद्देश्यों में शामिल हैं:
- वनोन्मूलन की रोकथाम: यह सुनिश्चित करना कि यूरोपीय संघ में सूचीबद्ध उत्पाद वनों की कटाई या वनोन्मूलन में योगदान न दें।
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: इन वस्तुओं से प्रतिवर्ष कम-से-कम 32 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य।
- वनोन्मूलन का मुकाबला करना: इन वस्तुओं से संबंधित कृषि विस्तार के कारण होने वाले वनोन्मूलन और क्षरण को संबोधित करना।
- शामिल वस्तुएँ: यह मवेशी, लकड़ी, कोको, सोया, ताड़ का तेल, कॉफी, रबर और संबंधित उत्पादों (जैसे, चमड़ा, चॉकलेट, टायर, फर्नीचर) जैसी वस्तुओं पर केंद्रित है।
- इसका उद्देश्य इन वस्तुओं से जुड़ी आपूर्ति शृंखलाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है।
यूरोपीय संघ के CBAM और EUDR से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- व्यापार संबंधी बाधाओं के रूप में CBAM: CBAM के परिणामस्वरूप भारत से सीमेंट, एल्यूमीनियम, लोहा और इस्पात जैसी कार्बन गहन वस्तुओं के आयात पर 35% तक का टैरिफ लग सकता है, जिससे व्यापार में बाधा आ सकती है।
- यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि वर्ष 2022 में भारत द्वारा इन सामग्रियों के निर्यात का एक चौथाई से अधिक हिस्सा यूरोपीय संघ को भेजा जाएगा।
- संरक्षणवाद के एक उपकरण के रूप में CBAM: यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन गहन इस्पात के आयात पर टैरिफ लगाया जाता है जबकि यह घरेलू स्तर पर इसी प्रकार का इस्पात उत्पादन करता है तथा CBAM से प्राप्त आय का उपयोग ग्रीन स्टील उत्पादन में परिवर्तन के लिये करता है।
- CBAM का उद्देश्य कार्बन रिसाव (इसके तहत यूरोपीय संघ आधारित कंपनियाँ अपने कार्बन-गहन उत्पादन को कम कठोर जलवायु नीतियों वाले देशों में स्थानांतरित कर देती हैं) को रोकना है।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) को खतरा: CBAM के तहत निर्यातकों को उत्पादन पद्धतियों पर 1,000 तक डेटा बिंदु उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है।
- भारतीय निर्यातकों को यह आशंका है कि विस्तृत डेटा संग्रहण से न केवल उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता कम हो सकती है, बल्कि संवेदनशील ट्रेड सीक्रेट के उज़ागर होने का भी खतरा हो सकता है।
- ट्रेड सीक्रेट किसी कंपनी की कोई ऐसी प्रथा या प्रक्रिया है जो आमतौर पर कंपनी के बाहर ज्ञात नहीं होती।
- भारतीय निर्यातकों को यह आशंका है कि विस्तृत डेटा संग्रहण से न केवल उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता कम हो सकती है, बल्कि संवेदनशील ट्रेड सीक्रेट के उज़ागर होने का भी खतरा हो सकता है।
- भारत के व्यापार गतिशीलता पर प्रभाव: यूरोपीय संघ भारत के समग्र निर्यात मिश्रण का लगभग 14% प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें स्टील और एल्यूमीनियम का महत्त्वपूर्ण निर्यात शामिल है।
- यूरोपीय संघ के तीसरे सबसे बड़े व्यापार साझेदार के रूप में भारत की स्थिति और इसके अनुमानित आर्थिक विकास के अनुमानों से यह संकेत मिलता है कि CBAM प्रभावित क्षेत्रों समेत भारतीय निर्यात का आकार समय के साथ बढ़ने की संभावना है।
- असंगत प्रभाव: भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता उनके यूरोपीय समकक्षों की तुलना में अधिक होती है।
- परिणामस्वरूप, CBAM के माध्यम से लगाए गए कार्बन टैरिफ भारतीय निर्यात के लिये आनुपातिक रूप से अधिक होंगे।
- विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों का गैर-अनुपालन: भारत सरकार ने इस बात पर चिंता जताई कि क्या CBAM विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मानदंडों का अनुपालन करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के बावज़ूद यह भारत जैसे देशों के लिये अनिश्चितता और अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
- गैर-टैरिफ बाधा के रूप में EUDR: EUDR के अनुसार मवेशी, सोया, पाम ऑयल, कॉफी और लकड़ी जैसी वस्तुओं के आयातक यह प्रमाणित करेंगे कि उनके उत्पाद हाल ही में वनोन्मूलन वाली भूमि से नहीं आते हैं या वन क्षरण में योगदान नहीं देते हैं।
- भारत इस विनियमन को संरक्षणवाद का एक अन्य रूप तथा गैर-टैरिफ बाधा (N.T.B.) मानता है।
- गैर-टैरिफ बाधा टैरिफ के अलावा एक व्यापार प्रतिबंध है। NTB में कोटा, प्रतिबंध, प्रतिबंध और लेवी शामिल हैं।
- शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य में बाधा: यूरोपीय संघ द्वारा लगाया गया CBAM भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने में बाधा उत्पन्न करेगा।
- FTA वार्ता में कमी: CBAM और EUDR जैसे स्थिरता उपाय, चल रही भारत-यूरोपीय संघ FTA वार्ता में विवादास्पद मुद्दे बन गए हैं।
- पुरानी टैरिफ संबंधी बाधाएँ: यूरोपीय संघ के स्टील टैरिफ के कारण भारत को वर्ष 2018 और वर्ष 2023 के बीच 4.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है।
- ये स्टील टैरिफ यूरोपीय संघ के सुरक्षा उपायों का भाग थे, जो आरंभ में जून 2023 में समाप्त होने वाले थे, लेकिन इन्हें बढ़ा दिया गया है।
- वैश्विक नीति प्रतिकृति की संभावना: CBAM के कार्यान्वयन से अन्य देश भी समान विनियमन अपनाने के लिये प्रेरित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रमुख बाज़ारों में अतिरिक्त टैरिफ या विनियमन लागू हो सकते हैं।
- यह प्रवृत्ति भारत के व्यापारिक संबंधों को जटिल बना सकती है तथा इसके भुगतान संतुलन को प्रभावित कर सकती है।
आगे की राह
- निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं का समर्थन करना: भारत को निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं का समर्थन करना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनों के तहत CBAM और EUDR की वैधता को चुनौती देने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) की चर्चाओं में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिये।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकी में निवेश: भारत को अपने निर्यात की कार्बन तीव्रता को कम करने, अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने और CBAM टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और सतत् उत्पादन विधियों में निवेश में तेजी लानी चाहिये।
- निर्यात बाज़ारों में विविधता लाना: एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में नवीन बाज़ारों की खोज से CBAM और EUDR के संभावित आर्थिक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- यूरोपीय संघ के CBAM का सामना करना: भारत ऐसे एकतरफा व्यापारिक चरणों का सामना इसी प्रकार के प्रति-उपाय लागू करके कर सकता है, जैसे यूरोपीय संघ के देशों से आने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाना आदि।
- इसके अतिरिक्त भारत को ऐसी वस्तुओं का घरेलू उत्पादन करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि वह अन्य देशों के ऐसे नीतिगत आघातों से स्वयं को बचा सके।
- वैश्विक नीति प्रवृत्तियों की निगरानी: भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने के लिये CBAM जैसी वैश्विक नीतियों की निगरानी करनी चाहिये तथा उभरती बाधाओं को दूर करने और अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिये सक्रिय रूप से रणनीति विकसित करनी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) और यूरोपीय संघ वन विनाश विनियमन (EUDR) के कार्यान्वयन के कारण भारत के उद्योगों के समक्ष आने वाली संभावित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न: निम्नलिखित में से किसने अपने नागरिकों के लिये दत्त संरक्षण (डेटा प्रोटेक्शन) और प्राइवेसी के लिये 'सामान्य दत्त संरक्षण विनियमन (जेनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन)' नामक एक कानून अप्रैल 2016 में अपनाया और उसका 25 मई, 2018 से कार्यान्वयन शुरू किया? (वर्ष 2019) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (c) प्रश्न - 'व्यापक-आधायुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट एग्रीमेंट/BTIA)' कभी-कभी समाचारों में भारत और निम्नलिखित में से किस एक के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पड़ता है? (2017) (a) यूरोपीय संघ उत्तर: (a) |
राष्ट्रीय कृषि संहिता
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:भारतीय मानक ब्यूरो, राष्ट्रीय भवन संहिता, राष्ट्रीय विद्युत संहिता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन, अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग। मुख्य परीक्षा के लिये:राष्ट्रीय कृषि संहिता, कृषि में मानकीकरण, भारत में कृषि नीतियाँ, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
स्रोत: IE
चर्चा में क्यों?
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) संपूर्ण कृषि चक्र हेतु मानक स्थापित करने के क्रम में राष्ट्रीय कृषि संहिता (NAC) तैयार कर रहा है।
- भारत की राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) 2016 और भारत की राष्ट्रीय विद्युत संहिता (NEC) 2023 के आधार पर तैयार की गई इस पहल का उद्देश्य कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना तथा किसानों, नीति निर्माताओं एवं अन्य हितधारकों के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करना है।
- NAC का मसौदा तैयार करने के साथ-साथ BIS चुनिंदा कृषि संस्थानों में मानकीकृत कृषि प्रदर्शन फार्म (SADF) स्थापित कर रहा है।
नोट: NAC को पूरा करने की संभावित समय सीमा अक्टूबर 2025 निर्धारित की गई है।
राष्ट्रीय कृषि संहिता (NAC) क्या है?
- उद्देश्य: NAC का उद्देश्य खेत की तैयारी से लेकर उपज के भंडारण तक, संपूर्ण कृषि चक्र में कृषि पद्धतियों के लिये एक मानकीकृत ढाँचा स्थापित करना है। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को संबोधित करना है जो वर्तमान में मौजूदा मानकों द्वारा विनियमित नहीं हैं।
- वर्तमान में BIS ने कृषि मशीनरी और इनपुट के लिये मानक स्थापित किए हैं लेकिन कृषि पद्धतियों के विनियमन में काफी अंतर बना हुआ है।
- दायरा: NAC में फसल चयन, भूमि तैयारी, बुवाई, सिंचाई, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, कटाई, कटाई के बाद की गतिविधियाँ और भंडारण सहित सभी कृषि प्रक्रियाएँ शामिल होंगी।
- इसमें उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों जैसे इनपुट के लिये मानक भी शामिल होंगे।
- NAC के तहत प्राकृतिक कृषि, जैविक कृषि और कृषि में इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स (IoT) प्रौद्योगिकी के उपयोग जैसी आधुनिक प्रथाओं के लिये मानकों को शामिल किया जाएगा।
- संरचना: इस सहिंता को दो भागों में विभाजित किया जाएगा:
- पहले भाग में सभी फसलों पर लागू सामान्य सिद्धांतों की रूपरेखा शामिल होगी।
- दूसरा भाग विभिन्न प्रकार की फसलों जैसे धान, गेहूँ, तिलहन और दलहन हेतु फसल-विशिष्ट मानकों पर केंद्रित होगा।
- उद्देश्य: ऐसी राष्ट्रीय संहिता बनाना जो कृषि-जलवायु क्षेत्रों, फसल प्रकारों, सामाजिक-आर्थिक विविधता और कृषि-खाद्य मूल्य शृंखला के सभी पहलुओं को शामिल करती हो।
- नीति निर्माताओं और नियामकों को उनकी योजनाओं एवं विनियमों में NAC प्रावधानों को शामिल करने में मार्गदर्शन देकर भारतीय कृषि में गुणवत्ता संस्कृति को बढ़ावा देना।
- किसानों के लिये एक व्यापक मार्गदर्शन उपलब्ध कराना, जिससे कृषि पद्धतियों में सूचित निर्णय लेने में सुविधा हो।
- स्मार्ट कृषि, स्थिरता और दस्तावेज़ीकरण सहित कृषि के क्षैतिज पहलुओं को संबोधित करना।
- हितधारकों के लिये मार्गदर्शन: NAC किसानों, कृषि विश्वविद्यालयों और नीति निर्माताओं के लिये संदर्भ के रूप में कार्य करेगी, जिससे उन्हें सूचित निर्णय लेने और अपने कार्यों में सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करने में मदद मिलेगी।
- प्रशिक्षण और सहायता: इस सहिंता को अंतिम रूप दिये जाने के बाद, BIS किसानों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने की योजना बना रहा है ताकि उन्हें मानकों को समझने एवं प्रभावी ढंग से लागू करने में मदद मिल सके।
भारत में राष्ट्रीय कृषि संहिता तैयार करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विविध कृषि पद्धतियाँ: भारत में जलवायु की एक विस्तृत शृंखला (15 कृषि-जलवायु क्षेत्र) के साथ मृदा के विविध प्रकार हैं, जिससे सभी के लिये एक ही मानक बनाना मुश्किल हो जाता है। NAC में इन विविधताओं को समायोजित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- राज्य बनाम केंद्रीय क्षेत्राधिकार: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची की प्रविष्टि 14 के अंतर्गत कृषि, राज्य सूची का विषय है जिससे केंद्रीय और राज्य विनियमों के बीच संभावित टकराव हो सकता है।
- राज्य के अधिकारों का सम्मान करते हुए इन कानूनों में सामंजस्य स्थापित करना प्रमुख चुनौती है।
- संसाधन की कमी: कई छोटे किसानों के पास NAC द्वारा अनुशंसित नई पद्धतियों को अपनाने के लिये संसाधनों या बुनियादी ढाँचे की कमी हो सकती है।
- इसमें आधुनिक उपकरण, गुणवत्तायुक्त बीज और कुशल सिंचाई प्रणालियों तक पहुँच शामिल है।
- स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिये इन समूहों को निर्माण प्रक्रिया में शामिल करना आवश्यक है।
- तकनीकी बाधाएँ: हालाँकि इस संहिता का उद्देश्य प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है लेकिन कई किसानों के पास आवश्यक प्रौद्योगिकी या कौशल तक पहुँच की कमी हो सकती है। संहिता के लाभों को प्राप्त करने के लिये इन कमियों को दूर करना आवश्यक है।
- डेटा और शोध अंतराल: कृषि पद्धतियों, पैदावार और बाज़ार के रुझानों पर व्यापक डेटा की कमी हो सकती है जो साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में बाधा डालती है। प्रभावी सहिंता हेतु इन अंतरालों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।
NAC तैयार करने में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिये क्या किया जा सकता है?
- अनुकूलन और लचीलापन: भारत भर में विविध कृषि-जलवायु स्थितियों को संबोधित करने के लिये NAC के भीतर क्षेत्र-विशिष्ट दिशानिर्देश विकसित करना चाहिये।
- सुनिश्चित किया जाए कि NAC छोटे खेतों से लेकर बड़े कृषि उद्यमों तक, विभिन्न कृषि आकारों एवं संसाधन स्तरों के लिये मापनीय एवं अनुकूलनीय हो।
- पर्यावरणीय विचार: इस संहिता के तहत कृषि विकास को बढ़ावा देते हुए भूमि क्षरण, जल की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों के समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- क्षमता निर्माण: NAC के संदर्भ में किसानों के लिये व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करने चाहिये और वास्तविक समय पर सलाह एवं सूचना साझा करने के लिये मेघदूत जैसे मोबाइल ऐप और e-NAM तथा किसानबंदी जैसे प्लेटफॉर्म विकसित करने चाहिये।
- नीतिगत और विनियामक समर्थन: NAC के लिये एक सहायक विधायी ढाँचा स्थापित करना चाहिये ताकि इसकी प्रवर्तनीयता सुनिश्चित हो सके और अनुपालन के लिये किसानों को पुरस्कृत करने के क्रम में कर लाभ तथा मान्यता कार्यक्रम जैसी प्रोत्साहन संरचनाएँ बनाई जा सकें।
अन्य देशों में कृषि नीति
- सामान्य कृषि नीति (CAP): कृषि यूरोपीय संघ (EU) का एकमात्र क्षेत्र है जिसकी एक सामान्य नीति है, CAP, जो किसानों को सब्सिडी, प्रत्यक्ष भुगतान, आपूर्ति नियंत्रण और समग्र समर्थन प्रदान करती है।
- ग्रोइंग फॉरवर्ड 2 (GF2): यह कनाडा के कृषि और कृषि-खाद्य क्षेत्र के लिये पाँच वर्षीय संघीय-प्रांतीय-क्षेत्रीय नीतिगत ढाँचा है। यह नवाचार, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बाज़ार विकास पर केंद्रित है।
मानकीकृत कृषि प्रदर्शन फार्म (SADF)
- SADF फार्म भारतीय मानकों के अनुरूप विभिन्न कृषि पद्धतियों और नवीन प्रौद्योगिकियों के परीक्षण और कार्यान्वयन के लिये प्रयोगात्मक स्थल के रूप में कार्य करेंगे।
- ये फार्म विस्तार अधिकारियों, कृषकों और औद्योगिक पेशेवरों को मानकीकृत कृषि पद्धतियों के बारे में जानने के लिये एक मंच प्रदान करेंगे, जिसे BIS द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
भारत की राष्ट्रीय भवन संहिता क्या है?
- NBC एक आदर्श संहिता है, जो भवन निर्माण में शामिल सभी अभिकरणों के लिये व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करती है।
- इसे सर्वप्रथम वर्ष 1970 में प्रकाशित किया गया, वर्ष 1983 में संशोधित किया गया तथा वर्ष 2005 में संशोधित किया गया। वर्तमान संस्करण, NBC वर्ष 2016, भवन निर्माण के परिवर्तित परिदृश्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया था।
- NBC 2016 के प्रमुख प्रावधान: प्रभावी परियोजना निष्पादन हेतु पेशेवरों की भागीदारी पर बल देते हैं और एक सुव्यवस्थित, एकल-खिड़की अनुमोदन प्रक्रिया की सुविधा देते हैं जो ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के साथ-साथ डिज़िटलीकरण को बढ़ावा देता है।
- दिव्यांग व्यक्तियों की सुविधा हेतु अनुकूलित आवश्यकताओं को संशोधित किया गया है। विशेष रूप से जटिल इमारतों और ऊँची इमारतों के लिये उन्नत अग्नि और जीवन सुरक्षा उपाय शामिल किये गए हैं।
- यह संहिता आपदाओं से सुरक्षा के लिये आधुनिक संरचनात्मक मानकों को शामिल करती है तथा निर्माण में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये नवीन सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करती है।
भारत की राष्ट्रीय विद्युत संहिता (NEC) या नेशनल इलेक्ट्रिकल कोड क्या है?
- NEC BIS द्वारा गठित एक सर्व-समावेशी विद्युत स्थापना संहिता है, जो संपूर्ण देश में विद्युत स्थापना संबंधी प्रथाओं को विनियमित करने के लिये दिशानिर्देश प्रदान करती है।
- NEC को मूलतः वर्ष 1985 में तैयार किया गया था तथा समकालीन अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप इसे वर्ष 2011 और 2023 में संशोधित किया गया था।
- NEC 2023 के मुख्य प्रावधान: विद्युत के झटके, आग और ओवरकरंट के विरुद्ध सुरक्षात्मक उपायों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये आपात स्थितियों के लिये स्टैंडबाय पॉवर स्रोतों के डिज़ाइन, चयन और रखरखाव को संबोधित करते हैं।
- ये दिशानिर्देश कृषि परिवेश में विद्युतीय खराबी के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं तथा जल और संक्षारक पदार्थों जैसे बाह्य कारकों को ध्यान में रखते हैं।
- इसके अतिरिक्त, ये संकटयुक्त परिवेश की संभावना के आधार पर खतरनाक क्षेत्रों को वर्गीकृत करते हैं और उनके अनुरूप दिशानिर्देश प्रदान करते हैं, साथ ही सुरक्षा और गुणवत्ता पर बल देते हुए सौर प्रतिष्ठानों के लिये व्यापक मानक भी प्रस्तुत करते हैं।
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)
- BIS भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है जिसकी स्थापना BIS वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन जैसी गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिये बी.आई.एस. अधिनियम 2016 के तहत स्थापित की गई है। BIS का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- BIS सुरक्षित एवं विश्वसनीय गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उपलब्ध कराता है, स्वास्थ्य संबंधी खतरों को न्यूनतम करता है, निर्यात और आयात संबंधी विकल्प को बढ़ावा देता है, तथा मानकीकरण, प्रमाणन और परीक्षण के माध्यम से किस्मों के प्रसार को नियंत्रित करता है।
- यह गुणवत्ता आश्वासन पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करता है और अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) और अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग (IEC) में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
- IEC एक अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारण निकाय है, जो सभी विद्युत, इलेक्ट्रॉनिक और संबंधित प्रौद्योगिकियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक प्रकाशित करता है।
- मानकीकरण प्रबंधन बोर्ड (SMB) IEC का एक शीर्ष प्रशासनिक निकाय है, जो तकनीकी नीतिगत मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।
निष्कर्ष
प्रस्तावित NAC भारत में कृषि पद्धतियों के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जैसे-जैसे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, भारत के कृषि परिदृश्य की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली संहिता को आकार देने में हितधारकों की भागीदारी महत्त्वपूर्ण होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में कृषि पद्धतियों के परिवर्तन में राष्ट्रीय कृषि संहिता के उद्देश्यों और महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य:प्रश्न: भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016) |