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शासन व्यवस्था

राज्य विषय' के रूप में शिक्षा पर विचार-विमर्श

  • 04 Jul 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत ज़िला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE), राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020, प्रौद्योगिकी संवर्द्धित शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम, PRAGYATA, प्रधनमंत्री श्री स्कूल, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), कृत्रिम 

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की विशेषताएँ, भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे, शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में NEET-UG और UGC-NET जैसी परीक्षाओं को लेकर चल रहे विवादों ने फिर से यह विचार-विमर्श करने के लिये विवश कर दिया है कि क्या शिक्षा को पुनः राज्य सूची में शामिल किया जाना चाहिये।

भारत में शिक्षा प्रणाली की स्थिति क्या है?

  • इतिहास:
    • प्राचीन भारत में गुरुकुल एक प्रकार की शिक्षा प्रणाली थी, जिसमें शिष्य (छात्र) और गुरु एक ही घर में वास करते थे।
    • नालंदा, जहाँ विश्व का प्राचीनतम विश्वविद्यालय स्थित है, ने समग्र विश्व के छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपराओं की ओर आकर्षित किया है।
    • ब्रिटिश सरकार ने मैकाले समिति की अनुशंसाओं, वुड्स डिस्पैच, हंटर आयोग की रिपोर्ट और भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में कई सुधार किये, जिन्होंने समाज को आकार देने में महत्त्वप्पूर्ण भूमिका निभाई।
  • भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति:
    • भारत की कुल साक्षरता दर 74.04% है जो विश्व औसत 86.3% से कम है। भारत में कई राज्य राष्ट्रीय साक्षरता स्तर से थोड़ा ऊपर औसत श्रेणी में आते हैं।
    • भारत में साक्षरता में लैंगिक अंतराल  1991 में कम होना शुरू हुआ और इसमें सुधार की गति भी तेज हो गई। हालांकि, भारत में वर्तमान महिला साक्षरता दर (65.46%-जनगणना 2011) अभी भी UNESCO  द्वारा 2015 में रिपोर्ट की गई 87% की वैश्विक औसत से काफी पीछे है।
  • विभिन्न विधिक और संवैधानिक प्रावधान:
    • विधिक प्रावधान:
      • सरकार ने प्राथमिक स्तर (6-14 वर्ष) के लिये शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के एक भाग के रूप में सर्व शिक्षा अभियान (SSA) को कार्यान्वित किया है। 
      • माध्यमिक स्तर (आयु वर्ग 14-18) की ओर बढ़ते हुए सरकार ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के माध्यम से SSA का विस्तार माध्यमिक शिक्षा तक किया है
      • उच्चतर शिक्षा– जिसमें स्नातक, स्नातकोत्तर और एमफिल/पीएचडी स्तर शामिल हैं, को सरकार द्वारा राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) के माध्यम से संबोधित किया जाता है ताकि उच्चतर शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके
      • इन सभी योजनाओं को ‘समग्र शिक्षा अभियान’ की छत्र योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है
    • संवैधानिक प्रावधान:
      • प्रारंभ में DPSP के अनुच्छेद 45 का उद्देश्य 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था, जिसे बाद में आरंभिक बाल्यावस्था देखभाल को शामिल करने के लिये संशोधित किया गया तथा अंततः इसके उद्देश्यों की पूर्ति न होने के कारण 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से इसे मूल अधिकार (अनुच्छेद 21A) बना दिया गया।
      • संविधान की अनुसूची 7 में संघ सूची की प्रविष्टि 64 और 65 में भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित वैज्ञानिक या तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक, व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण आदि के लिये संस्थानों को सूचीबद्ध किया गया है।
  • शिक्षा एक ‘राज्य के’ विषय के रूप में:

शैक्षिक सुधारों से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलें: 

शिक्षा प्रणाली को संचालित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: राज्य और स्थानीय सरकारें शैक्षिक मानक निर्धारित करती हैं, जबकि संघीय विभाग वित्तीय सहायता तथा समान पहुँच पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • कनाडा: शिक्षा का प्रबंधन प्रांतों द्वारा किया जाता है।
  • जर्मनी: शिक्षा के लिये विधायी शक्तियाँ लैंडर (राज्यों) के पास हैं।
  • दक्षिण अफ्रीका: दो राष्ट्रीय विभाग शिक्षा का प्रबंधन करते हैं, जबकि प्रांतीय विभाग स्थानीय कार्यान्वयन का काम संभालते हैं।
  • फिनलैंड का शासन मॉडल: कई देशों के विपरीत, फिनलैंड मानकीकृत परीक्षणों पर निर्भर नहीं है। यह प्रणाली स्कूलों, शिक्षकों और छात्रों के बीच सहयोग पर ज़ोर देती है, जिससे एक सहायक शिक्षण वातावरण को बढ़ावा मिलता है

शिक्षा को राज्य सूची में क्यों रखा जाना चाहिये?

  • मूल संविधान निर्माण: संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को शुरू में राज्य सूची में रखा था, क्योंकि उनका मानना ​​था कि स्थानीय सरकारें शिक्षा संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में बेहतर तरीके से सक्षम हैं।
  • 42वें संशोधन का प्रभाव: आपातकाल के दौरान शिक्षा को एकतरफा तौर पर समवर्ती सूची में डालने से संघीय ढाँचे को नुकसान पहुँचा।
    • राज्यों को शिक्षा पर विशेष नियंत्रण देने से संविधान निर्माताओं द्वारा परिकल्पित शक्ति संतुलन बहाल हो सकेगा।
  • राज्य-विशिष्ट नीतियाँ: राज्य अपनी शैक्षिक नीतियों को अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप बना सकते हैं।
  • इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षा स्थानीय आबादी की आवश्यकताओं के लिये प्रासंगिक और उत्तरदायी है और साक्षरता दर तथा शैक्षिक परिणामों में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये अनुच्छेद 350A के तहत प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • भिन्न-भिन्न नीतियाँ: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (National Eligibility cum Entrance Test - NEET) जैसी केंद्र सरकार की नीतियाँ अक्सर राज्य की नीतियों के साथ टकराव पैदा करती हैं, जिससे अकुशलता और वंचितता पैदा होती है।
  • संसाधनों का आवंटन: जो राज्य अपने शैक्षिक बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश करते हैं, उन्हें केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बिना अपने निवेश को विनियमित करने और उससे लाभ उठाने का अधिकार होना चाहिये।
    • शिक्षा मंत्रालय की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि शिक्षा पर होने वाले व्यय का अधिकांश हिस्सा (85%) राज्य वहन करते हैं।
  • योग्यता निर्धारण: NEET जैसी केंद्रीकृत प्रवेश परीक्षाएँ आवश्यक रूप से विविध शैक्षिक पृष्ठभूमि के छात्रों की योग्यता या क्षमता को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
    • राज्यों को प्रवेश मानदंड तैयार करने में लचीलापन होना चाहिये, जिससे छात्रों की क्षमता का बेहतर आकलन और संवर्धन हो सके।
    • तमिलनाडु व्यावसायिक शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश अधिनियम 2006, जिसे मद्रास उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, इस तर्क का समर्थन करता है कि सामान्य प्रवेश परीक्षाएँ योग्यता निर्धारित नहीं करती हैं।
    • नील ऑरेलियो नून्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अंक योग्यता का निर्धारण करने वाला कारक नहीं हैं।
  • जवाबदेही का मुद्दा: यदि महत्त्वपूर्ण संस्थानों को राज्य के दायरे में लाया जाता है, तो इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के संबंध में राज्य की जवाबदेही प्रवाहित तरीके से सुनिश्चित होगी।

शिक्षा को राज्य सूची में क्यों नहीं होना चाहिये?

  • प्राथमिक शिक्षा की स्थिति: ASER 2023 रिपोर्ट के अनुसार, 14-18 वर्ष के अधिकांश ग्रामीण बच्चे कक्षा 3 के गणितीय प्रश्नों को हल नहीं कर सकते हैं, जबकि 25% से अधिक बच्चे पढ़ नहीं सकते हैं। यह राज्यों में शिक्षा के खराब प्रशासन को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय एकीकरण एवं गतिशीलता: कोठारी आयोग (1964-66) ने राष्ट्रीय एकीकरण एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये राज्यों में एक समान शैक्षणिक ढाँचे के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
    • समवर्ती सूची केंद्र को प्रमुख राष्ट्रीय मानक निर्धारित करने की अनुमति देती है, जबकि राज्य उन्हें स्थानीय संदर्भों के अनुसार अनुकूलित कर सकते हैं, जिससे एकता और विविधता दोनों को बढ़ावा मिलता है।
  • न्यूनतम मानक तथा समानता सुनिश्चित करना: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTI), 2009 पूरे भारत में न्यूनतम स्तर की शिक्षा की गारंटी देता है।
    • शिक्षा को समवर्ती बनाए रखने से केंद्र को कार्यान्वयन की निगरानी करने में सहायता प्राप्त होती है, साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि वंचित वर्गों को उनके राज्य की परवाह किये बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो।
  • कौशल तथा रोज़गार का मानकीकरण: FICCI (भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ) की रिपोर्ट में एक मानकीकृत राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्नातकों के पास अखिल भारतीय रोज़गार बाज़ार के लिये आवश्यक कौशल प्राप्त हो सके।
    • एक समवर्ती सूची राज्यों को व्यावसायिक प्रशिक्षण तैयार करने की अनुमति प्रदान करते हुए एक सामान्य ढाँचा स्थापित करते हुए इसे सुविधाजनक बनाती है।
  • राष्ट्रीय संस्थानों एवं प्रत्यायन का विनियमन: शिक्षा को समवर्ती बनाए रखने से केंद्र को इन संस्थानों में निगरानी रखने के साथ-साथ गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने में सहायता प्राप्त होती है, जो देश भर के छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय चिंताओं तथा आपात स्थितियों का समाधान: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020  डिजिटल साक्षरता तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के क्षेत्रों के लिये रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करती है।
    • जलवायु परिवर्तन जैसी नई राष्ट्रीय चुनौतियों के लिये भी एक एकीकृत शैक्षणिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • एक समवर्ती सूची केंद्र को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम विकसित करने की अनुमति देती है जो राज्य-विशिष्ट चिंताओं को समायोजित करते हुए इन उभरते मुद्दों का समाधान करती है।

आगे की राह

  • सहयोगात्मक संघवाद: कोठारी आयोग (1964-66) द्वारा सुझाए गए "सहयोगात्मक संघवाद" दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • इससे केंद्र द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय न्यूनतम मानकों को सुनिश्चित किया जा सकेगा, जबकि राज्यों को पाठ्यक्रम, भाषा और शिक्षण-पद्धति में लचीलापन मिलेगा।
  • परिणाम-आधारित वित्तपोषण: नीति आयोग द्वारा अपने नए भारत के लिये रणनीति @ 75 दस्तावेज़ में की गई अनुशंसा के अनुसार परिणाम-आधारित वित्तपोषण तंत्र को लागू करना।
    • यह सीखने के परिणामों के आधार पर संसाधनों का आवंटन करता है, तथा राज्यों को शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • विकेंद्रीकृत स्कूल प्रबंधन: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 में परिकल्पित विकेंद्रीकृत स्कूल प्रबंधन संरचनाओं को बढ़ावा देना।
    • इससे स्कूल प्रबंधन समितियों (School Management Committees- SMC) को सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से सशक्त बनाया जाता है, तथा स्थानीय स्वामित्व और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।
  • शिक्षक प्रशिक्षण एवं स्थानांतरण नीति सुधार: TSR सुब्रमण्यम समिति रिपोर्ट (2009) की सिफारिशों के आधार पर सुधारों का समर्थन करना।
    • इसमें बेहतर शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम, पारदर्शी स्थानांतरण नीतियाँ तथा अधिक प्रेरित और प्रभावी शिक्षण बल तैयार करने के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन शामिल हैं।
  • राज्य-विशिष्ट बेंचमार्क के साथ मानकीकृत राष्ट्रीय मूल्यांकन: ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की प्रथाओं से प्रेरित होकर, राज्य-विशिष्ट बेंचमार्क के साथ-साथ एक मानकीकृत राष्ट्रीय मूल्यांकन ढाँचा विकसित करना। यह क्षेत्रीय विविधताओं को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय तुलना की अनुमति देता है।
  • न्यायसंगत पहुँच के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में न्यायसंगत पहुँच और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिये भारत सरकार के "पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक और शिक्षण मिशन" (Pandit Madan Mohan Malaviya National Mission on Teachers and Teaching- PMMMNMTT) में उल्लिखित रणनीतियों को लागू करना।
  • राज्य अनुकूलन के साथ राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा: NCERT द्वारा सुझाए गए अनुसार एक लचीला राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (National Curriculum Framework- NCF) विकसित करना, जिससे राज्यों को इसे अपने विशिष्ट भाषाई और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति मिले। यह राष्ट्रीय लक्ष्यों एवं राज्य की ज़रूरतों के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. 'शिक्षा' को समवर्ती सूची से राज्य सूची में स्थानांतरित करने से शिक्षा क्षेत्र में नीति कार्यान्वयन अधिक प्रभावी हो सकेगा। टिप्पणी कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व
  2. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय
  3. पाँचवीं अनुसूची
  4. छठी अनुसूची
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:

(a)केवल 1 और 2
(b)केवल 3, 4 और 5
(c)केवल 1, 2 और 5
(d)1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

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