शासन व्यवस्था
भारत में परीक्षा प्रणाली में सुधार
- 25 Jun 2024
- 13 min read
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने जून 2024 में होने वाली यूजीसी-नेट परीक्षा को अचानक रद्द कर दिया। इसके अतिरिक्त, नीट-यूजी परीक्षा की निष्पक्षता को लेकर भी आरोप लगे थे, जिसमें इसकी ईमानदारी तथा निष्पक्षता से समझौता करने की संभावना जताई गई थी।
- इसने सरकार को परीक्षाओं में अवैध प्रथाओं पर अंकुश लगाने के उपाय के रूप में सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 पारित करने के लिये प्रेरित किया है।
नोट
- नेट यूजीसी परीक्षा:
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी-नेट) परीक्षा भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ कॉलेजों में जूनियर रिसर्च फेलोशिप तथा सहायक प्रोफेसर के पदों की रिक्तियों को भरने के लिये आयोजित की जाती है।
- इसका आयोजन राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा प्रतिवर्ष दो बार (जून और दिसंबर) किया जाता है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित एक वैधानिक निकाय है। यह 28 दिसंबर 1953 को अस्तित्त्व में आया।
- इसका उद्देश्य विश्वविद्यालय शिक्षा में शिक्षण, परीक्षा एवं अनुसंधान के मानकों का समन्वय, निर्धारण तथा रखरखाव करना है।
- नीट यूजी:
- राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (स्नातक) या NEET, जिसे पहले अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट कहा जाता था, भारत में स्नातक चिकित्सा कार्यक्रमों (MBBS एवं BDS पाठ्यक्रम) में प्रवेश के लिये एक प्रवेश परीक्षा है।
- यह NTA द्वारा संचालित किया जाता है।
सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 क्या है?
- परिचय:
- सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 ,लोकसभा में पारित कानून है जिसका उद्देश्य सरकारी भर्ती परीक्षाओं में कदाचार के मुद्दे को संबोधित करना है। यह 21 जून 2024 को लागू हुआ।
- मुख्य विशेषताएँ:
- इसमें अनैतिक तरीकों से संबंधित कई अपराधों की सूची दी गई है, जिनमें सेवा प्रदाताओं के साथ सहयोग करना, फर्ज़ी वेबसाइटों का उपयोग करने के साथ-साथ गोपनीय जानकारी लीक करना भी शामिल है।
- इसमें कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें न्यूनतम 3-5 वर्ष का कारावास और साथ ही 1 करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना शामिल है।
- इसमें परीक्षा संचालन के लिये नियुक्त सेवा प्रदाताओं पर 1 करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना तथा सार्वजनिक परीक्षाओं में उनकी भागीदारी पर 4 वर्ष का प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
- यह अधिनियम पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त के पद से नीचे के पुलिस अधिकारियों को अधिनियम के तहत अपराधों की जाँच करने का अधिकार देता है।
- इसमें UPSC, SSC, RRBs, IBPS तथा NTA द्वारा आयोजित की जाने वाली केंद्र सरकार की भर्ती परीक्षाओं सहित विभिन्न प्रकार की परीक्षाएँ शामिल होंगी।
- इस अधिनियम में परिभाषित दंडनीय अपराध:
- प्रश्न-पत्र या उत्तर कुंजी का लीक होना
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अनाधिकृत तरीके से अभ्यर्थियों की सहायता करना
- कंप्यूटर नेटवर्क, संसाधनों या प्रणालियों से छेड़छाड़ करना
- धोखाधड़ी करने या आर्थिक लाभ के लिये फर्जी वेबसाइट बनाना
- फर्ज़ी परीक्षा आयोजित करना, फर्ज़ी एडमिट कार्ड या ऑफर लेटर जारी करना
- अनुचित साधनों का उपयोग करने के लिये बैठने की व्यवस्था तथा तिथियों एवं शिफ्टों के आवंटन में हेराफेरी करना।
- अधिनियम की आवश्यकता:
- सार्वजनिक परीक्षाएँ वर्तमान में धोखाधड़ी और व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे लाखों छात्र प्रभावित होते हैं।
- परीक्षा में गड़बड़ी करने वाले व्यक्तियों या समूहों को रोकने के लिये कोई मज़बूत कानूनी ढाँचा नहीं है।
- इस विधेयक का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं विश्वास स्थापित करना है।
भारत में वर्तमान परीक्षा प्रणाली से संबंधित मुद्दे क्या हैं?
- विश्वसनीयता में गिरावट: विभिन्न बोर्डों तथा विश्वविद्यालयों द्वारा परीक्षाओं में विश्वसनीयता एवं निरंतरता की कमी के कारण प्रश्न-पत्र लीक, धोखाधड़ी और फर्ज़ी डिग्री जैसे घोटाले प्राय: सामने आते हैं, जिससे जनविश्वास कम होता है।
- नियोक्ता प्राय: विश्वविद्यालय/बोर्ड प्रमाण-पत्रों की अनदेखी करते हुए उम्मीदवारों का अलग-अलग मूल्यांकन करते हैं।
- प्रकृति में अधिक सैद्धांतिक: वर्तमान शिक्षा प्रणाली सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से तथ्यों को याद रखने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करती है।
- इससे ऐसे स्नातक तैयार हो सकते हैं जो सिद्धांत में पारंगत तो होते हैं, लेकिन अपने पेशे में सफल होने के लिये आवश्यक व्यावहारिक कौशल का अभाव रखते हैं।
- आत्मीयता: परीक्षक का पूर्वाग्रह प्रश्न के वाक्यांश को प्रभावित कर सकता है, विद्यार्थी अपनी समझ के आधार पर उत्तर दे सकते हैं तथा अलग-अलग ग्रेड देने वाले विद्यार्थी एक ही उत्तर के लिये अलग-अलग अंक प्राप्त कर सकते हैं।
- यह व्यक्तिपरकता छात्रों के लिये अनुचित एवं असंगत मूल्यांकन प्रक्रिया का निर्माण करती है।
- रचनात्मकता तथा आलोचनात्मक सोच को दबाना: मानकीकृत परीक्षणों में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव प्राय: छात्रों को प्रश्न पूछने, विविध दृष्टिकोणों की खोज करने अथवा आलोचनात्मक सोच कौशल विकसित करने से हतोत्साहित करता है।
- रटने पर केंद्रित पाठ्यक्रम रचनात्मकता तथा बौद्धिक जिज्ञासा के लिये बहुत कम स्थान छोड़ता है, जिससे नवाचार तथा समस्या समाधान क्षमताओं में बाधा उत्पन्न होती है।
- रोज़गार पर प्रभाव: नियोक्ता उम्मीदवारों का मूल्यांकन करते समय संस्थागत प्रमाण-पत्रों की तुलना में उनके मूल्यांकन को प्राथमिकता देते हैं तथा रोज़गार के लिये उच्च-स्तरीय शिक्षा पर अधिक महत्त्व देते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप प्रतियोगी परीक्षाओं एवं कौशल विकास के लिये कोचिंग का बाज़ार बढ़ रहा है।
शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिये क्या पहल हैं?
परीक्षा प्रणाली में चुनौतियों का समाधान करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- समझ एवं विश्लेषणात्मक क्षमता पर ध्यान: परीक्षाओं में छात्रों की समझ एवं विश्लेषणात्मक कौशल का आकलन किया जाना चाहिये।
- प्रश्न-पत्रों में प्रत्येक पाठ्यक्रम के अनुदेशात्मक उद्देश्यों के अनुरूप विभिन्न योग्यताओं का मूल्यांकन करने के लिये विभिन्न प्रकार के प्रश्न शामिल होने चाहिये।
- गहन अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिये स्मृति-आधारित प्रश्नों को न्यूनतम किया जाना चाहिये।
- विषय तथा कौशल-विशिष्ट मूल्यांकन: छात्रों की सीखने की उपलब्धियों के व्यापक मूल्यांकन के लिये विषय-विशिष्ट एवं कौशल-विशिष्ट मूल्यांकन को शामिल करना। उन चुनौतीपूर्ण मूल्यांकनों की वकालत करना जो छात्रों को उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों के आधार पर अलग करते हैं।
- पाठ्यक्रम के व्यावहारिक घटकों को उचित महत्त्व दिया जाना चाहिये। व्यावहारिक परीक्षाएँ छात्रों के व्यावहारिक कौशल और सैद्धांतिक ज्ञान के अनुप्रयोग का आकलन करने के लिये डिज़ाइन की जानी चाहिये।
- धोखाधड़ी को रोकना: धोखाधड़ी को रोकने के लिये CCTV कैमरे लगाना, सतर्क निरीक्षकों की नियुक्ति करना तथा अनुचित साधनों से बचने के लिये छात्रों को पर्याप्त मार्गदर्शन प्रदान करना जैसे कठोर उपाय लागू किये जाने चाहिये।
- जो परीक्षा केंद्र नकल रोकने में विफल रहेंगे, उन्हें दंडित किया जाना चाहिये अथवा रद्द कर दिया जाना चाहिये।
- परीक्षाएँ एक साधन हैं, न कि साध्य: परीक्षाओं का प्राथमिक उद्देश्य सीखने में सुविधा प्रदान करना और छात्रों को शैक्षणिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना होना चाहिये। परीक्षाओं को अंतिम लक्ष्य के रूप में नहीं बल्कि निरंतर सीखने और सुधार को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखा जाना चाहिये।
- विश्वसनीयता के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: विश्वसनीयता बढ़ाने, प्रश्न-पत्रों एवं मूल्यांकनों को मानकीकृत करने के लिये मूल्यांकन में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। केंद्रीकृत तथा वितरित मूल्यांकन प्रणालियों दोनों के लिये बाज़ार में उपलब्ध सॉफ्टवेयर समाधानों का अन्वेषण करना।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: परीक्षा पेपर लीक से उत्पन्न चुनौतियों और भारत में वर्तमान परीक्षा प्रणाली की कमियों की समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के साथ इसे संरेखित करते हुए परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिये रणनीतियों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |