पर्सपेक्टिव: भारत की हरित ऊर्जा प्रगति | 20 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:एशियाई विकास बैंक (ADB), एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, COP26, ग्रीन हाइड्रोजन, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM), राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, सौर पार्क योजना, भूमि अधिग्रहण, उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल के लिये PLI योजना, ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF), अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG), सौर PV सेल आयात, सौर PV मॉड्यूल, कौशल विकास, सौर प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संसाधन केंद्र (स्टार-C)। मेन्स के लिये:ऊर्जा सुरक्षा, सतत् विकास सुनिश्चित करने और पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण को कम करने में नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एशियाई विकास बैंक (ADB) ने अपनी एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 में भारत द्वारा असंवहनीय जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से हटकर स्वच्छ, हरित ऊर्जा समाधानों में निवेश करने की ओर कदम बढ़ाने पर प्रकाश डाला।
- रिपोर्ट में भारत की "हटाओ, लक्ष्य बनाओ और स्थानांतरित करो" की रणनीति पर प्रकाश डाला गया है, जिसके तहत वर्ष 2014 से 2023 तक जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 85% की कमी की गई है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा निवेश के लिये धनराशि उपलब्ध हुई है।
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- भारत में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार: भारत ने वर्ष 2010 से 2014 तक पेट्रोल और डीजल सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करना शुरू किया, जिसके बाद वर्ष 2017 तक करों में क्रमिक वृद्धि की गई।
- एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 के अनुसार वर्ष 2023 तक जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 85% की कमी की गई (वर्ष 2013 में 25 बिलियन अमरीकी डॉलर से वर्ष 2023 तक 3.5 बिलियन अमरीकी डॉलर तक) जो स्वच्छ ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- सब्सिडी में कमी से ग्रामीण क्षेत्रों के लिये LPG जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में निवेश संभव हुआ, जिससे पर्यावरणीय और सामाजिक लक्ष्यों में संतुलन बना रहा।
- अतिरिक्त राजस्व को सौर पार्क, इलेक्ट्रिक वाहन और ग्रिड अवसंरचना जैसी स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये पुनर्निर्देशित किया गया।
- कराधान की भूमिका: वर्ष 2010 से 2017 तक भारत ने कोयला उत्पादन और आयात पर उपकर लगाया, जिससे स्वच्छ ऊर्जा पहलों को वित्त पोषित किया गया।
- उपकर संग्रह का लगभग 30% राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा एवं पर्यावरण कोष (NCEEF) को आवंटित किया गया, जो स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं और अनुसंधान को सहायता प्रदान करेगा।
- इस उपकर से नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के बजट को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा मिला, जिससे ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर और राष्ट्रीय सौर मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के लिये वित्तपोषण में सहायता मिली, जिससे सौर ऊर्जा की लागत में कमी आई और ऑफ-ग्रिड समाधानों को समर्थन मिला।
- स्थापित क्षमता और वृद्धि: नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 24.2 गीगावाट (13.5%) बढ़कर अक्तूबर 2024 में 203.18 गीगावाट तक पहुँच गई (अक्तूबर 2023 में 178.98 गीगावाट से ऊपर)।
- राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (NISE) द्वारा देश की सौर ऊर्जा क्षमता का अनुमान 748 गीगावाट लगाया गया है।
- गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता (परमाणु सहित) वर्ष 2023 में 186.46 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2024 में 211.36 गीगावाट हो गई।
- सौर ऊर्जा क्षमता में 20.1 गीगावाट (27.9%) की वृद्धि हुई और यह अक्तूबर 2024 में 92.12 गीगावाट तक पहुँच गई (वर्ष 2023 में 72.02 गीगावाट से ऊपर)।
- पवन ऊर्जा क्षमता अक्तूबर 2023 में 44.29 गीगावाट से 7.8% बढ़कर वर्ष 2024 में 47.72 गीगावाट हो गई।
- बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं ने नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो में 46.93 गीगावाट का योगदान दिया तथा परमाणु ऊर्जा ने कुल क्षमता में 8.18 गीगावाट की वृद्धि की।
- भारत कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है, पवन ऊर्जा क्षमता में चौथे स्थान पर है तथा सौर ऊर्जा क्षमता में पाँचवें स्थान पर है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में इसकी स्थिति मज़बूत हुई है।
- नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का साहसिक लक्ष्य निर्धारित किया है, जो COP26 में उल्लिखित पंचामृत ढाँचे के तहत उसकी प्रतिबद्धता का एक प्रमुख हिस्सा है।
- इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक देश के कुल ऊर्जा मिश्रण का 50% नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त हो।
- ये प्रयास भारत के व्यापक जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिसमें दशक के अंत तक कार्बन तीव्रता को 45% तक कम करना और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना शामिल है।
- ग्रीन हाइड्रोजन प्रतिबद्धता: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा रणनीति का एक प्रमुख घटक ग्रीन हाइड्रोजन का विकास है।
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन टन (MT) ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है, जिसे हाइड्रोजन उत्पादन के लिये समर्पित 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता द्वारा समर्थित किया जाएगा।
- इस पहल से भारत को स्वच्छ हाइड्रोजन उत्पादन में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने की उम्मीद है, जो उद्योग, परिवहन और भारी-श्रेणी की ऊर्जा उत्पादन जैसे कठिन क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख योजनाएँ और पहल क्या हैं?
- केंद्रीय बजट 2024: केंद्रीय बजट 2024-25 में सौर ऊर्जा (ग्रिड) के लिये केंद्र प्रायोजित योजना को 10,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं, जो पिछले बजट में आवंटित 4,757 करोड़ रुपये से 110% की उल्लेखनीय वृद्धि है।
- इसके अलावा, फरवरी 2024 में 75,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ शुरू की गई PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना को कार्यान्वयन के लिये 6,250 करोड़ रुपए मिले हैं। इसका उद्देश्य सोलर रूफटॉप सिस्टम के उपयोग को बढ़ाना है।
- बजट में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विकास के लिये आवश्यक 25 महत्त्वपूर्ण खनिजों के आयात पर मूल सीमा शुल्क (BCD) से छूट की भी घोषणा की गई है।
- PM-KUSUM योजना: प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) योजना कृषि में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- इसका उद्देश्य सौर पंप और सौरकृत कृषि फीडर स्थापित करना है, जिससे किसानों की ग्रिड विद्युत तथा डीजल पर निर्भरता कम हो सके।
- विकेंद्रीकृत सौर परियोजनाओं के माध्यम से 34.8 गीगावाट सौर क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य के साथ यह पहल संधारणीय कृषि पद्धतियों का समर्थन करती है और ग्रामीण ऊर्जा पहुँच को बढ़ाती है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: 19,744 करोड़ रुपए के बजट के साथ भारत के राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य एक प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर ग्रीन हाइड्रोजन उद्योग विकसित करना है।
- यह मिशन बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने तथा औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन, भारी परिवहन और ऊर्जा भंडारण जैसे क्षेत्रों में इसके उपयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जिससे भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता मिलेगी, साथ ही रोजगार सृजन एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- सौर पार्क योजना: भारत ने सौर पार्क योजना के अंतर्गत 40 गीगावाट की संयुक्त क्षमता वाले 55 सौर पार्कों को स्वीकृत दी है।
- यह पहल भूमि अधिग्रहण को सरल बनाती है, बुनियादी अवसरंचना उपलब्ध कराती है तथा सौर परियोजनाओं के लिये पूर्व-विकसित स्थल उपलब्ध कराकर निजी निवेश को आकर्षित करती है।
- यह देश के सौर ऊर्जा विस्तार लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के लिये PLI योजना: आयातित सौर घटकों पर निर्भरता कम करने के लिये भारत ने उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल के लिये PLI योजना शुरू की है जो घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है।
- इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2026 तक 65 गीगावाट वार्षिक विनिर्माण क्षमता का निर्माण करना है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के सौर विनिर्माण क्षेत्र की दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना है।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर: ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर का उद्देश्य ऊर्जा समृद्ध क्षेत्रों से मांग केंद्रों तक नवीकरणीय ऊर्जा को कुशलतापूर्वक स्थानांतरित करने के लिये पारेषण बुनियादी अवसरंचना को मज़बूत करना है।
- पहले चरण में आठ नवीकरणीय ऊर्जा संपन्न राज्यों को शामिल किया गया है तथा दूसरे चरण में देश के अन्य भागों में पारेषण नेटवर्क का विस्तार करने की योजना है, ताकि नवीकरणीय ऊर्जा को ग्रिड में एकीकृत किया जा सके।
- अपतटीय पवन ऊर्जा के लिये व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF): व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) योजना भारत के समुद्र तटों के साथ अपतटीय पवन परियोजनाओं के विकास का समर्थन करती है।
- वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट अपतटीय पवन ऊर्जा के लक्ष्य के साथ, यह पहल अपतटीय पवन फार्म विकास के लिये प्राथमिक स्थल के रूप में गुजरात और तमिलनाडु पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का एक नया स्रोत बनाना है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा में अपना वैश्विक नेतृत्व प्रदर्शित किया है, जिसकी स्थापना उसने फ्राँस के साथ मिलकर की थी।
- ISA का लक्ष्य सौर ऊर्जा में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश जुटाना तथा 2030 तक 1,000 गीगावाट सौर ऊर्जा की स्थापना को सुगम बनाना है।
- वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की पहली बैठक में पहली बार प्रस्तावित वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG) का विचार, एक वैश्विक अंतर्सम्बद्ध अक्षय ऊर्जा ग्रिड का निर्माण करना है।
- इसमें तीन चरण शामिल हैं: भारत को पड़ोसी क्षेत्रों से जोड़ना, अफ्रीका तक विस्तार करना तथा वर्ष 2050 तक वैश्विक अंतर्संबंध स्थापित करना।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में चुनौतियाँ क्या हैं?
- भूमि अधिग्रहण: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों में से एक है बड़ी सौर और पवन परियोजनाओं के लिये पर्याप्त भूमि अधिग्रहण करना।
- कई उपयुक्त भूमि क्षेत्र या तो घनी आबादी वाले हैं या कृषि के लिये उपयोग किये जाते हैं, जिससे परियोजना के कार्यान्वयन में देरी होती है और लागत बढ़ जाती है।
- स्वच्छ ऊर्जा में कराधान: वर्ष 2010 से 2017 तक भारत ने स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये कोयला उत्पादन पर उपकर लगाया।
- हालाँकि, वर्ष 2017 में GST लागू होने से कोयला उपकर को GST क्षतिपूर्ति उपकर में शामिल कर दिया गया, जिससे राज्यों के राजस्व घाटे की भरपाई के लिये निधि वितरण में बदलाव आया।
- कराधान में यह बदलाव भारत के राजकोषीय परिदृश्य में स्वच्छ ऊर्जा वित्तपोषण को समर्थन देने के लिये आवश्यक चुनौतियों और चल रहे समायोजनों को दर्शाता है।
- प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और उच्च लागत: नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों की उच्च लागत और सीमित उपलब्धता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- सौर विनिर्माण प्रौद्योगिकियों तक पहुँच प्रदान करने में चीन की अनिच्छा इस तथ्य से और भी जटिल हो जाती है कि 98% सौर मॉड्यूल उपकरण चीन में ही उत्पादित होते हैं।
- भारत सौर पैनलों, पवन टरबाइन भागों और ग्रीन हाइड्रोजन के लिये इलेक्ट्रोलाइज़र जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- वित्त वर्ष 2022-23 में, चीन ने भारत के कुल सौर PV सेल आयात का 94% और सौर PV मॉड्यूल शिपमेंट का 93% हिस्सा बनाया।
- यह निर्भरता क्षेत्र को वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और मूल्य में उतार-चढ़ाव से संबंधित जोखिमों के प्रति उजागर करती है, जिससे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा विकास की स्थिरता में बाधा उत्पन्न होती है।
- ग्रिड अवसंरचना और स्थिरता: भारत के मौजूदा ग्रिड अवसंरचना को सौर और पवन जैसी बड़ी मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिये पर्याप्त उन्नयन की आवश्यकता है।
- पर्याप्त भंडारण समाधान और अनुकूल ग्रिड प्रणालियों की कमी से अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
- वित्तपोषण और निवेश: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के बावजूद, उच्च प्रारंभिक लागत, प्रौद्योगिकियों के निरंतर उन्नयन और निवेश पर प्रतिफल की चिंताओं के कारण दीर्घकालिक पूंजी आकर्षित करना एक चुनौती बनी हुई है।
- इस क्षेत्र की पूंजी-गहन प्रकृति के लिये निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन नीतिगत परिवर्तनों और वैश्विक आर्थिक स्थितियों से संबंधित अनिश्चितताएँ संभावित निवेशकों के लिये जोखिम उत्पन्न करती हैं।
- विनियामक और नीतिगत बाधाएँ: राज्यों में असंगत विनियामक ढाँचे और परियोजना अनुमोदन में देरी, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के समय पर विकास में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं।
- विनियमनों को सुव्यवस्थित करना तथा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना, तीव्र कार्यान्वयन सुनिश्चित करने तथा निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- कुशल कार्यबल की कमी: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का विस्तार हो रहा है, कुशल कार्यबल की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है, विशेष रूप से ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों, उन्नत सौर और पवन प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में।
- प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से एक मज़बूत कार्यबल का निर्माण इस क्षेत्र में विकास को बनाए रखने के लिये आवश्यक है।
आगे की राह
- भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण की चुनौतियों से निपटने के लिये, भारत को सौर और पवन फार्मों के लिये गैर-कृषि या निम्नीकृत भूमि का उपयोग करने जैसे नवीन समाधान तलाशने होंगे।
- छतों पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने तथा शहरी बुनियादी ढाँचे में नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने से भूमि के बड़े हिस्से पर निर्भरता कम हो सकती है।
- सहयोगात्मक लैंड पूलिंग मॉडल और भूस्वामियों के लिये नीतिगत प्रोत्साहन भी इस प्रक्रिया को तेज़ कर सकते हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा में कराधान: सरकार को कराधान ढाँचे पर पुनर्विचार करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को निरंतर और सतत् वित्तपोषण प्राप्त हो। उपकर राजस्व के आवंटन को स्पष्ट करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा निवेश के लिये कर प्रोत्साहन बढ़ाने से दीर्घकालिक वित्तपोषण को बढ़ावा मिलेगा।
- GST संग्रह और स्वच्छ ऊर्जा सब्सिडी के बीच संबंध को मज़बूत करने से वित्तपोषण प्रवाह को स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
- प्रौद्योगिकी की उपलब्धता और उच्च लागत: भारत को सौर पैनल, पवन टर्बाइन और इलेक्ट्रोलाइज़र जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसे PLI योजना जैसी योजनाओं के तहत नवाचार और उत्पादन को प्रोत्साहित करके हासिल किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम करने और आपूर्ति शृंखला ज़ोखिमों को कम करने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- उन्नत विनिर्माण क्षमता वाले देशों के साथ प्रौद्योगिकी-साझाकरण समझौतों पर बातचीत करने से भी प्रौद्योगिकी अंतर को कम किया जा सकता है।
- ग्रिड अवसंरचना और स्थिरता: नवीकरणीय ऊर्जा को समायोजित करने के लिये ग्रिड अवसंरचना को उन्नत करना महत्त्वपूर्ण है।
- सरकार को ट्रांसमिशन नेटवर्क के आधुनिकीकरण में निवेश करना चाहिये, स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, तथा रुकावटों से निपटने के लिये बैटरी जैसे ऊर्जा भंडारण समाधानों को शामिल करना चाहिये।
- सीमापार ग्रिड अंतर्संबंधों को मज़बूत करने से विभिन्न क्षेत्रों में आपूर्ति और मांग को संतुलित करने में मदद मिल सकती है, जिससे ग्रिड स्थिरता बढ़ेगी।
- वित्तपोषण और निवेश: अधिक निवेश आकर्षित करने के लिये, भारत को नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करते हुए, ग्रीन बॉण्ड और नवीकरणीय ऊर्जा निवेश कोष जैसे आकर्षक वित्तीय मॉडल पेश करने चाहिये।
- स्पष्ट दीर्घकालिक प्रोत्साहन, नौकरशाही बाधाओं में कमी, तथा विद्युत् खरीद समझौते (PPA) जैसी ज़ोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
- इसके अलावा, एक समर्पित हरित ऊर्जा कोष बनाने से स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में पूंजी का प्रवाह आसान हो सकता है।
- विनियामक और नीतिगत बाधाएँ: विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और राज्यों में एक समान नीतियाँ बनाने से परियोजना अनुमोदन में तेज़ी आएगी और विलंब कम होगा।
- परियोजना निगरानी और अनुमोदन के लिये केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय में भी सुधार हो सकता है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं का तेज़ी से कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सकेगा।
- कौशल विकास कार्यक्रम: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में कुशल श्रमिकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार करने से इस क्षेत्र में श्रमिकों की कमी दूर होगी।
- सौर प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग संसाधन केंद्र (Star-C) जैसी पहल और हाइड्रोजन उत्पादन एवं ऊर्जा भंडारण जैसे उभरते क्षेत्रों के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण से देश के नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन का समर्थन करने के लिये सक्षम कार्यबल का निर्माण होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: कभी-कभी समाचारों में 'नेट मीटरिंग (Net metering)' निम्नलिखित में से किसको प्रोत्साहित करने के संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) परिवारों/उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020) |