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भारतीय अर्थव्यवस्था

महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने की राह पर भारत

  • 31 Jul 2024
  • 31 min read

यह एडिटोरियल 27/07/2024 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A push for critical minerals” लेख पर आधारित है। इसमें बजट 2024 में लिथियम जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों पर सीमा शुल्क में छूट देने के भारत के रणनीतिक कदम की चर्चा की गई है, जो इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और सतत ऊर्जा को आगे बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह पर्यावरण लक्ष्यों और ऊर्जा सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बढ़ाते हुए आयात निर्भरता को कम करने और घरेलू उत्पादन का समर्थन करने के देश के प्रयासों को रेखांकित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट 2024-25, महत्त्वपूर्ण खनिज, लिथियम, इलेक्ट्रिक वाहन, खान मंत्रालय, दुर्लभ मृदा तत्त्व, गगनयान, खनिज सुरक्षा साझेदारी, जम्मू और कश्मीर में लिथियम भंडार, खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड। 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व, भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

केंद्रीय बजट 2024-25 में ऊर्जा सुरक्षा को एक प्रमुख प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया गया है, जहाँ लिथियम सहित विभिन्न महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये लक्षित सीमा शुल्क छूट का प्रस्ताव किया गया है। यह रणनीतिक कदम इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर भारत के संक्रमण को तेज़ करने और अपनी शून्य-उत्सर्जन महत्त्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। चूँकि लिथियम-आयन बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण और लागत-गहन घटक बनी हुई है, इसलिये इस छूट का उद्देश्य संसाधन एवं उत्पादन लागत को कम करना, विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी समाधानों में नवाचार को प्रोत्साहित करना है।

लिथियम और अन्य महत्त्वपूर्ण खनिजों के आयात एवं शोधन पर भारत की भारी निर्भरता गंभीर चुनौतियाँ पेश करती है। भारत महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रति अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर अपनी आर्थिक प्रगति को पर्यावरण संरक्षण के साथ बेहतर ढंग से संरेखित कर सकता है और सतत ऊर्जा एवं इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर वैश्विक संक्रमण के बीच अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।

महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) क्या हैं?

  • परिचय: महत्त्वपूर्ण खनिज वे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक होते हैं।
    • इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों तक ही इनकी उपलब्धता, निष्कर्षण या प्रसंस्करण की सीमितता के कारण आपूर्ति शृंखला में भेद्यता और व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • आधुनिक प्रौद्योगिकी के लिये आवश्यक: महत्त्वपूर्ण खनिज स्वच्छ ऊर्जा (सौर पैनल, पवन टर्बाइन, इलेक्ट्रिक वाहन) से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक विभिन्न प्रौद्योगिकियों में अपरिहार्य घटक होते हैं।
    • भू-राजनीतिक महत्त्व: उनकी आपूर्ति प्रायः कुछ ही देशों में केंद्रित है, जिससे वे आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • पर्यावरणीय प्रभाव: यदि इन खनिजों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण का प्रबंधन ज़िम्मेदारी से नहीं किया गया तो इसके महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
  • भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज: खान मंत्रालय ने 30 ऐसे खनिजों की पहचान की है जो भारत के प्रौद्योगिकीय और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन, अंतर-मंत्रालयी परामर्श और अनुभवजन्य विश्लेषण के माध्यम से इन खनिजों का आकलन एवं निर्धारण करने के लिये एक समिति का गठन किया गया था।
      • समिति ने महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये उत्कृष्टता केंद्र की (Centre of Excellence) स्थापना की सिफारिश की ताकि महत्त्वपूर्ण खनिजों की सूची को समय-समय पर अद्यतन और रणनीतिक बनाया जा सके तथा प्रभावी मूल्य शृंखलाएँ विकसित की जा सकें।
    • भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज: एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, कॉपर, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हैफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नायोबियम, निकेल, प्लैटिनम समूह के तत्व (PGE), फॉस्फोरस, पोटाश, दुर्लभ मृदा तत्व (REE)), रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम, कैडमियम।

इन खनिजों को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?

  • ऊर्जा संक्रमण और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी: महत्त्वपूर्ण खनिज, विशेषकर लिथियम, स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर भारत के संक्रमण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • देश का लिथियम आयात वित्त वर्ष 2022 में 13,673.15 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 23,171 करोड़ रुपए हो गया, जो इसकी बढ़ती मांग को रेखांकित करता है।
    • भारत ने अपने इलेक्ट्रिक वाहन विज़न (EV Vision) के तहत वर्ष 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहन पैठ का लक्ष्य रखा है, जिसके लिये इन खनिजों तक सुरक्षित पहुँच का होना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • बजट 2024 में महत्त्वपूर्ण खनिजों पर सीमा शुल्क में छूट के प्रस्ताव से यह प्रदर्शित होता है कि सरकार EVs अंगीकरण में तेज़ी लाने और उत्पादन लागत को कम करने में इनके महत्त्व को चिह्नित करती है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रौद्योगिकी: भारत का महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसमें ‘गगनयान’ जैसे मिशन शामिल हैं, महत्त्वपूर्ण खनिजों पर अत्यधिक निर्भर करता है।
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहा है, जहाँ वह वर्ष 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना रखता है।
    • दुर्लभ मृदा तत्व और अन्य महत्त्वपूर्ण खनिज उपग्रहों एवं अंतरिक्ष यानों में प्रयुक्त उच्च-प्रदर्शन चुंबकों, विशेष मिश्रधातुओं और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स के विनिर्माण के लिये आवश्यक हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना: महत्त्वपूर्ण खनिज भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
    • इंडियम, गैलियम और टेल्यूरियम जैसे खनिज सोलर पीवी (solar PV) प्रौद्योगिकी के लिये आवश्यक हैं, जबकि दुर्लभ मृदा तत्व पवन टर्बाइनों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इन संसाधनों को सुरक्षित करना न केवल जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी, जिसका भारत के व्यापार संतुलन और ऊर्जा स्वायत्तता पर व्यापक सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था और दूरसंचार: चूँकि भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में वृद्धि होगी।
  • ‘सिलिकॉन हार्ट’ की महत्त्वपूर्ण खनिजों पर निर्भरता: आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के मस्तिष्क होने की स्थिति रखने वाले सेमीकंडक्टर्स महत्त्वपूर्ण खनिजों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं।
    • सिलिकॉन हार्ट (Silicon Heart) से तात्पर्य है सिलिकॉन आधारित उपकरण (जैसे सेमीकंडक्टर्स, चिप्स आदि), जो महत्त्वपूर्ण खनिज पर निर्भर होते हैं।
    • सिलिकॉन, जर्मेनियम और गैलियम जैसे तत्व सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिये मूलभूत हैं।
    • भारत के सेमीकंडक्टर मिशन का उद्देश्य घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जो प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और आयात निर्भरता को कम करने में इन खनिजों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
      • इसके अलावा, राष्ट्रीय क्वांटम मिशन और इंडिया-एआई (IndiaAI) मिशन भी सिलिकॉन पर अत्यधिक निर्भर हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: महत्त्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और सौदेबाज़ी की शक्ति को बढ़ाएगी।
    • खनिज सुरक्षा साझेदारी (Minerals Security Partnership- MSP) जैसे वैश्विक मंचों में देश की भागीदारी और हाल ही में भारत-ऑस्ट्रेलिया महत्त्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी (India-Australia Critical Minerals Investment Partnership) जैसे द्विपक्षीय समझौते, इसके अग्रसक्रिय दृष्टिकोण को परिलक्षित करते हैं।
    • ये पहलें न केवल आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करती हैं, बल्कि भारत को वैश्विक खनिज कूटनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती हैं।

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भारत की आयात निर्भरता: महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आयात पर भारत की भारी निर्भरता गंभीर आर्थिक एवं रणनीतिक जोखिम उत्पन्न करती है।
    • इन संसाधनों के भू-राजनीतिक संकेंद्रण को देखते हुए यह निर्भरता विशेष रूप से चिंताजनक है।
    • इन खनिजों के प्रसंस्करण में चीन का प्रभुत्व (लिथियम का 67%, कोबाल्ट का 73%, ग्रेफाइट का 70% और मैंगनीज का 95%) भारत की आपूर्ति शृंखला सुरक्षा के लिये गंभीर जोखिम पैदा करता है।
    • यह एकाधिकारवादी नियंत्रण भारत को आपूर्ति व्यवधान, मूल्य अस्थिरता और संभावित भू-राजनीतिक लाभ के प्रति संवेदनशील बना देता है।
  • अन्वेषण की समस्या: हाल के प्रयासों के बावजूद, महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये भारत का घरेलू अन्वेषण अभी भी प्रारंभिक अवस्था में ही है।
    • देश के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों ने जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में संभावित भंडारों की पहचान की है, लेकिन बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक निष्कर्षण अभी तक संभव नहीं हो पाया है।
    • अन्वेषण की धीमी गति जटिल भूविज्ञान, उन्नत अन्वेषण प्रौद्योगिकियों की कमी तथा नियामक बाधाओं जैसी चुनौतियों के कारण और भी गंभीर हो गई है।
  • मूल्य शृंखला में लुप्त कड़ियाँ: महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रसंस्करण और शोधन में भारत की सीमित क्षमता एक महत्त्वपूर्ण बाधा प्रस्तुत करती है।
    • देश को कच्चा माल प्राप्त हो भी जाए तो घरेलू प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण परिष्कृत उत्पादों के लिये उसे अन्य देशों (मुख्यतः चीन) पर निर्भर रहना पड़ेगा।
    • मूल्य शृंखला में यह अंतराल न केवल लागत बढ़ाता है, बल्कि इन संसाधनों की पूर्ण आर्थिक क्षमता का दोहन कर सकने की भारत की क्षमता को सीमित करता है।
    • सुदृढ़ घरेलू प्रसंस्करण उद्योग का अभाव बैटरी उत्पादन और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण जैसे डाउनस्ट्रीम विनिर्माण क्षेत्रों के विकास में भी बाधा उत्पन्न करता है, जबकि ‘मेक इन इंडिया’ और राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना जैसी पहलों के लिये उनका विकास अत्यंत आवश्यक है।
  • निष्कर्षण और पारिस्थितिकी में संतुलन: महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण से प्रायः गंभीर पर्यावरणीय लागत भी जुड़ी होती है।
    • खनन कार्यों से पर्यावास विनाश, जल प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।
    • भारत पहले से ही पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है और उसे अपनी महत्त्वपूर्ण खनिज आवश्यकताओं को पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ संतुलित करने की दुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण के लिये, लद्दाख के पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में संभावित लिथियम खनन से जल की कमी और जैव विविधता की हानि के बारे में चिंता पैदा होती है।
      • उल्लेखनीय है कि एक औसत सिलिकॉन चिप विनिर्माण संयंत्र प्रतिदिन 10 मिलियन गैलन अतिशुद्ध जल का उपयोग कर सकता है।
    • इन खनिजों की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए पर्यावरण की दृष्टि से संवहनीय खनन पद्धतियों का विकास करना नीति निर्माताओं और उद्योग दोनों के लिये एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है।
  • मूल्य अस्थिरता - एक दोधारी तलवार: महत्त्वपूर्ण खनिज बाज़ार अत्यधिक मूल्य उतार-चढ़ाव की प्रवृत्ति रखता है, जिससे भारत की विनिर्माण लागत और प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।
    • हाल के वर्षों में लिथियम की कीमतों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।
    • मूल्य अस्थिरता निवेशकों और इन खनिजों पर निर्भर उद्योगों के लिये अनिश्चितता पैदा करती है, जिससे दीर्घकालिक योजना-निर्माण और निवेश में बाधा उत्पन्न होती है।

भारत के महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये शुद्ध आयात निर्भरता (2020)

महत्त्वपूर्ण खनिज 

प्रमुख आयात स्रोत (2020)

लिथियम 

चिली, रूस, चीन, आयरलैंड, बेल्जियम

कोबाल्ट 

चीन, बेल्जियम, नीदरलैंड, अमेरिका, जापान

निकेल 

स्वीडन, चीन, इंडोनेशिया, जापान, फिलीपींस

वैनेडियम 

कुवैत, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, थाईलैंड

नियोबियम 

ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया

जर्मेनियम 

चीन, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, अमेरिका

रेनियम 

रूस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, चीन

बेरिलियम 

रूस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, चीन

टैंटालम 

ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, अमेरिका

जिरकोनियम 

ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया, अमेरिका

ग्रेफाइट (प्राकृतिक) 

चीन, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, वियतनाम, तंजानिया

मैंगनीज 

दक्षिण अफ्रीका, गैबॉन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, चीन

क्रोमियम 

दक्षिण अफ्रीका, मोजाम्बिक, ओमान, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की

सिलिकॉन 

चीन, मलेशिया, नॉर्वे, भूटान, नीदरलैंड

स्ट्रोंटियम

चीन, अमेरिका, रूस, एस्टोनिया, स्लोवेनिया

नोट:

खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज और खनन को बढ़ाने के लिये प्रमुख सुधार प्रस्तुत करता है।

  • परमाणु खनिजों से छह खनिजों को हटाया गया: निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने और उत्पादन बढ़ाने के लिये लिथियम-युक्त, टाइटेनियम-युक्त, बेरिलियम-युक्त, नियोबियम-युक्त, टैंटालम-युक्त और जिरकोनियम-युक्त खनिजों को परमाणु खनिजों की सूची से हटा दिया गया है।
  • केंद्र सरकार द्वारा नीलामी: केंद्र सरकार विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये खनिज रियायतों की नीलामी करेगी, जिससे राज्य सरकारों को राजस्व का लाभ प्राप्त होगा।
  • अन्वेषण लाइसेंस: गहराई में अवस्थित और महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये नए अन्वेषण लाइसेंस पेश किये जाएँगे, जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और जूनियर खनन कंपनियों को आकर्षित करना तथा अन्वेषण एवं उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाना है।

भारत अपनी महत्त्वपूर्ण खनिज आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिये कौन-से उपाय कर सकता है?

  • महत्त्वपूर्ण खनिज संबंधी कूटनीति: संसाधन सुरक्षा के लिये वैश्विक गठबंधन (Global Alliances for Resource Security) का निर्माण करना। भारत को महत्त्वपूर्ण खनिज संबंधी कूटनीतिक प्रयासों को तेज़ करना चाहिये और संसाधन संपन्न देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी स्थापित करनी चाहिये। इसमें शामिल हो सकते हैं:
    • सरकार के स्तर पर (Government-to-Government – G2G) और भी सौदों को संपन्न करने के लिये वार्ता के लिये खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड के अधिदेश का विस्तार किया जाए।
    • वैश्विक रुझानों और अवसरों पर नज़र रखने के लिये एक महत्त्वपूर्ण खनिज खुफिया इकाई (Critical Minerals Intelligence Unit) का गठन किया जाए।
    • खनिजों तक अधिमान्य पहुँच सुनिश्चित करने के लिये तकनीकी विशेषज्ञता, अवसंरचना विकास या अन्य प्रोत्साहनों (incentives) की पेशकश की जाए।
  • चक्रीय खनिज अर्थव्यवस्था (Circular Mineral Economy): निम्नलिखित उपायों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये एक सुदृढ़ चक्रीय अर्थव्यवस्था का विकास किया जाए:
    • बहुमूल्य खनिजों की पुनर्प्राप्ति के लिये उन्नत ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों को क्रियान्वित करना।
    • ऐसे EOL उत्पादों (end-of-life products) का राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करना जिनमें महत्त्वपूर्ण खनिज उपस्थित हों।
    • भारत प्रमुख शहरों में विशेष पुनर्चक्रण क्षेत्र स्थापित कर सकता है, जो ई-अपशिष्ट से महत्त्वपूर्ण खनिजों को निकालने के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों से सुसज्जित हों। ये त्यक्त इलेक्ट्रॉनिक्स से दुर्लभ मृदा तत्वों के 50-60% तक को पुनः प्राप्त कर सकेंगे।
  • खनिज तकनीक में प्रगति करना: निम्नलिखित उपायों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण खनिज के निष्कर्षण और प्रसंस्करण में तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा दिया जाए:
    • सफल रहे अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों की तरह ‘महत्त्वपूर्ण खनिज प्रौद्योगिकी मिशन’ (Critical Minerals Technology Mission) की स्थापना करना।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान एवं विकास निवेश के लिये कर प्रोत्साहन (tax incentives) की पेशकश करना।
    • अत्याधुनिक निष्कर्षण और प्रसंस्करण तकनीकों के विकास पर केंद्रित उद्योग-अकादमिक साझेदारियों का निर्माण करना।
    • खनिज प्रसंस्करण में वैश्विक अग्रणी देशों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को सुविधाजनक बनाना।
  • जियो-मैपिंग क्रांति (GeoMapping Revolution): निम्नलिखित उपायों के साथ घरेलू खनिज अन्वेषण प्रयासों को तीव्र एवं आधुनिक बनाया जाए:
    • AI और मशीन लर्निंग सहित उन्नत भूवैज्ञानिक मानचित्रण तकनीकों का उपयोग करना।
    • संभावित खनिज समृद्ध क्षेत्रों का व्यापक हवाई और उपग्रह सर्वेक्षण करना।
    • जोखिम-साझाकरण तंत्र के माध्यम से अन्वेषण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • अन्वेषण लाइसेंस प्रदान करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना।
  • हरित खनन पहल (Green Mining Initiative): निम्नलिखित उपायों के साथ भारत के अद्वितीय पारिस्थितिक संदर्भ के अनुरूप  खनन पद्धतियों का विकास किया जाए:
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों के खनन के लिये सख्त पर्यावरण मानकों को लागू करना।
    • खनन स्थलों के लिये एक व्यापक भूमि पुनर्वास कार्यक्रम विकसित करना।
    • खनन कार्यों के लिये संवहनीयता रेटिंग प्रणाली का निर्माण करना।
    • लद्दाख जैसे शुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त जल-संरक्षक लिथियम निष्कर्षण विधियों के विकास का समर्थन करने के लिये ‘हरित खनन नवाचार कोष’ (Green Mining Innovation Fund) की स्थापना करना ।
  • महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये ‘स्किल इंडिया’: निम्नलिखित उपायों के साथ महत्त्वपूर्ण खनिज क्षेत्र में कौशल अंतराल को दूर किया जाए:
    • तकनीकी संस्थानों में महत्त्वपूर्ण खनिज भूविज्ञान, निष्कर्षण और प्रसंस्करण में विशेष पाठ्यक्रम शुरू करना।
    • खनिज समृद्ध क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करना।
    • महत्त्वपूर्ण खनिज संबंधी पेशेवरों के लिये एक राष्ट्रीय प्रमाणन कार्यक्रम शुरू करना।
  • खनिज प्रसंस्करण पार्क: निम्नलिखित उपायों के साथ घरेलू क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिये समर्पित खनिज प्रसंस्करण क्षेत्र स्थापित किये जाएँ:
    • इन क्षेत्रों में कर प्रोत्साहन और सरलीकृत विनियामक प्रक्रियाएँ प्रदान करना।
    • बिजली, जल और लॉजिस्टिक्स सहायता सहित विश्व-स्तरीय अवसंरचना सुनिश्चित करना।
    • तालमेल के निर्माण के लिये संबंधित उद्योगों की सह-अवस्थिति को प्रोत्साहित करना।
  • खनिज-बाज़ार गलियारे (Mineral-to-Market Corridors): निम्नलिखित उपायों के साथ खनिज समृद्ध क्षेत्रों को प्रसंस्करण केंद्रों और बाज़ारों से जोड़ने के लिये समर्पित अवसंरचना गलियारे बनाए जाएँ:
    • रियल-टाइम ट्रैकिंग क्षमताओं के साथ स्मार्ट लॉजिस्टिक्स हब स्थापित करना।
    • इन गलियारों को ऊर्जा प्रदान करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करना।
    • IoT और स्मार्ट माइनिंग अनुप्रयोगों के लिये डेटा कनेक्टिविटी अवसंरचना को शामिल करना।
    • उदाहरण के लिये, लद्दाख से गुजरात के विनिर्माण केंद्रों तक, सौर ऊर्जा संचालित लॉजिस्टिक्स केंद्र और संपूर्ण क्षेत्र में 5G कनेक्टिविटी के साथ, ‘लिथियम कॉरिडोर’ का विकास किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। उनकी आपूर्ति शृंखला की भेद्यताओं से जुड़े संभावित जोखिमों का मूल्यांकन कीजिये और इन जोखिमों को कम करने के लिये रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. इस देश में विद्यमान विधि के अनुसार रेत एक ‘गौण खनिज’ है।
  2. गौण खनिजों के खनन पट्टे प्रदान करने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है, किन्तु गौण खनिजों को प्रदान करने से संबंधित नियमों को बनाने के बारे में शक्तियाँ केन्द्र सरकार के पास हैं।
  3. गौण खनिजों के अवैध खनन को रोकने के लिए नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)

  1. खनिज समृद्ध ज़िलों में खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देना  
  2. खनन कार्यों से प्रभावित व्यक्तियों के हितों की रक्षा करना  
  3. राज्य सरकारों को खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु अधिकृत करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न : गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द) (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद विकास के लिये कोयला खनन अभी भी अपरिहार्य है"। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

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