भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति
- 27 Nov 2024
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भारतनेट, सामान्य सेवा केंद्र, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY), भारतनेट परियोजना, MUDRA, SFURTI, स्टार्ट-अप इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्मार्ट सिटीज़ मिशन, AMRUT, रूर्बन मिशन, eNAM, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना मेन्स के लिये:ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति, ग्रामीण विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये पहल, ग्रामीण विनिर्माण से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिला स्वामित्व वाले गैर-कृषि उद्यमों की भूमिका, ग्रामीण भारत से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ। |
स्रोत: इकोनाॅमिक एंड पॉलिटिकल वीकली
चर्चा में क्यों?
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था गरीबी, बेरोज़गारी और कृषि संकट सहित कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इन मुद्दों को हल करने के लिये ग्रामीण औद्योगीकरण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता (विशेष रूप से महिलाओं के स्वामित्व वाले गैर-कृषि उद्यमों पर) है।
- ऐसे उद्यमों के विस्तार से सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में (विशेषकर महिलाओं के लिये) रोज़गार के अवसरों में सुधार हो सकता है।
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति है?
- ग्रामीण जनसांख्यिकी:
- जनगणना 2011 के अनुसार, भारत की 68.85% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और नीति आयोग का अनुमान है कि वर्ष 2045 में भी यह आँकड़ा 50% से अधिक (जो देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में ग्रामीण भारत के महत्त्व को दर्शाता है) रहेगा।
- रहन-सहन का स्तर:
- जनगणना 2011 के अनुसार, लगभग 39% ग्रामीण परिवार एक कमरे वाले आवास में रहते हैं, तथा केवल 53.2% के पास विद्युत् की सुविधा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह सुविधा 92.7% है।
- 86% ग्रामीण परिवारों द्वारा खाना पकाने के लिये लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधन का उपयोग किया जाता था, तथा केवल 30.8% परिवारों के पास नल के जल की सुविधा थी, जिससे बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में चुनौतियों पर प्रकाश पड़ता है।
- ग्रामीण गरीबी:
- तेंदुलकर विधि से पता चलता है कि वर्ष 2004-05 में ग्रामीण गरीबी 41.8% के स्तर पर चिंताजनक रूप से उच्च थी, जो वर्ष 2011-12 में घटकर लगभग 25% हो गयी।
- हालाँकि, वर्ष 2011-12 में 6 राज्यों में गरीबी अनुपात अभी भी 35% से अधिक था।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय (MPCE) शहरी स्तरों की तुलना में काफी कम है, जो सीमित उपभोग क्षमता और तीव्र गरीबी को दर्शाता है।
- तेंदुलकर विधि से पता चलता है कि वर्ष 2004-05 में ग्रामीण गरीबी 41.8% के स्तर पर चिंताजनक रूप से उच्च थी, जो वर्ष 2011-12 में घटकर लगभग 25% हो गयी।
- रोज़गार:
- PLFS रिपोर्ट 2023-24 में बताया गया है कि ग्रामीण रोज़गार मुख्य रूप से स्वरोज़गार (53.5%) और आकस्मिक श्रम (25.6%) की विशेषता है।
- ग्रामीण श्रमिकों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (58.4%) कृषि में लगा हुआ है (जो मौसमी रोज़गार प्रदान करता है)।
- ग्रामीण क्षेत्रों में वेतनभोगी नौकरियाँ कुल कार्यबल का केवल 12% हैं, तथा इनमें से अधिकांश पदों पर अनुबंध, सवेतन अवकाश और नौकरी की सुरक्षा का अभाव है।
- ILO की भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 से पता चलता है कि शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई है, जिसमें महिलाओं (76.7%) को पुरुषों (62.2%) की तुलना में अधिक बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है।
- वर्ष 2017-18 से वर्ष 2023-24 तक, भारत में 150 मिलियन नौकरियाँ जुड़ीं, जिसमें ग्रामीण महिलाओं ने इस वृद्धि में 54% योगदान दिया, विशेष रूप से कृषि में।
- वर्ष 2023-24 में ग्रामीण महिला कार्यबल भागीदारी 12.5% बढ़कर 34.8% हो गई।
- PLFS रिपोर्ट 2023-24 में बताया गया है कि ग्रामीण रोज़गार मुख्य रूप से स्वरोज़गार (53.5%) और आकस्मिक श्रम (25.6%) की विशेषता है।
- कृषि संकट:
- छोटे और सीमांत किसान, जो कृषि आबादी का 86% हिस्सा हैं, के पास केवल 43% कृषि भूमि है, जबकि आर्थिक जोत वाले बड़े किसान 53% भूमि का प्रबंधन करते हैं।
- कृषि मज़दूर, जो भूस्वामियों की तुलना में ग्रामीण कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं, उन्हें मौसमी काम, कम मज़दूरी और चिकित्सा सहायता और पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों की कमी का सामना करना पड़ता है।
भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं?
- बुनियादी ढाँचा विकास:
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY),
- भारतनेट परियोजना
- दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) ने ग्रामीण विद्युतीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे 18,000 से अधिक गाँवों में बिजली आपूर्ति प्रदान की है और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।
- MSME के लिये सहायता:
- ग्रामीण उद्यमिता और रोज़गार को बढ़ावा देना:
- ग्रामीण-शहरी संबंधों को मजबूत करना
- ग्रामीण विनिर्माण के लिये नीतिगत रूपरेखा:
भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता आई है, जो वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद में केवल 15% का योगदान देगा, जो वर्ष 2014-15 में 16.1% से कम है।
- स्थानिक नियोजन चुनौती: भारत में कृषि से विनिर्माण की ओर बदलाव धीमा और असमान रहा है, यहाँ 40% से अधिक कार्यबल अभी भी कृषि में कार्यरत है, जबकि चीन में यह 20% और अमेरिका में 2% है।
- अवसंरचना संबंधी मुद्दे: भारत में विनिर्माण के वि-शहरीकरण ने संगठित विनिर्माण को शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया है, जिससे लागत में कमी आई है, लेकिन अपर्याप्त ग्रामीण अवसंरचना के कारण विकास में बाधा उत्पन्न हुई है।
- छोटे शहर और ग्रामीण क्षेत्र भारत में आर्थिक विकास के इंजन के रूप में उभर रहे हैं, जहाँ शहरी आबादी का आधा से अधिक हिस्सा रहता है, और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक इसमें उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- निवेश की चुनौतियाँ: ग्रामीण विनिर्माण में निजी निवेश सीमित है। खराब भौतिक बुनियादी ढाँचा, विश्वसनीय भूमि अभिलेखों की कमी और विकृत पूंजी बाज़ार जैसे कारक इस कम निवेश में योगदान करते हैं।
- कुशल संसाधन आवंटन तंत्र के अभाव ने नए, अधिक कुशल उद्यमों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है।
भारत में ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: विनिर्माण वृद्धि और आर्थिक विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने हेतु सड़क, बिजली और दूरसंचार सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश आवश्यक है।
- MSMEs को बढ़ावा देना: नीतियों को ऋण, भूमि और कौशल विकास कार्यक्रमों तक आसान पहुँच सुनिश्चित करके सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- MSMEs को प्रोत्साहित करने से उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा और रोज़गार सृजित होंगे, विशेष रूप से वे रोज़गार जो ग्रामीण आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- संतुलित क्षेत्रीय विकास और शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने के लिये छोटे शहरों को औद्योगिक केंद्रों के रूप में विकसित करने की दिशा में नीतिगत बदलाव महत्त्वपूर्ण है।
- कौशल विकास पर ध्यान: ग्रामीण कार्यबल, विशेष रूप से गैर-कृषि क्षेत्रों में, की रोज़गार क्षमता को बढ़ाने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की ज़रूरतों के अनुरूप बनाया जाना चाहिये।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि वे ग्रामीण औद्योगिकीकरण से उत्पन्न संभावनाओं के लिये तैयार हैं।
- महिला स्वामित्त्व वाली गैर-कृषि उद्यम को बढ़ावा देना: ये उद्यम उद्यम, आय में विविधता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
- भारत को 2030 तक 8% की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर हासिल करने के लिये, नव सृजित रोज़गार में आधे से अधिक महिलाएँ शामिल होना चाहिये।
- इन उद्यमों को औपचारिक बनाना और व्यावसायिक क्षेत्र ऋण के माध्यम से लक्ष्य व्यवसाय एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है।
- डिजिटल अवसंरचना में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट रीच और मोबाइल कनेक्टिविटी सहित डिजिटल अवसंरचना का विस्तार करने से गैर-कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी शामिल होगी।
- इससे महिलाओं को बेहतर वित्तीय पहुँच और कुशल व्यवसाय प्रबंधन के लिये फिनटेक समाधानों का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के ग्रामीण उद्योग की स्थिति पर चर्चा कीजिये और ग्रामीण उद्योग के समाधान के लिये आने वाली योजना पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: C प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (वर्ष 2011) (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (D) |