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डेली न्यूज़

  • 29 Jan, 2025
  • 49 min read
सामाजिक न्याय

किशोरों पर स्मार्टफोन के इस्तेमाल का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

चिंता, प्रज्ञाता दिशानिर्देश, ई-पीजी पाठशाला, मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, चाइल्डलाइन 1098, ज्ञान साझा करने हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन

मेन्स के लिये:

डिजिटल प्लेटफॉर्म और बच्चों पर इसका प्रभाव, साइबर सुरक्षा और गोपनीयता, प्रौद्योगिकी और समाज।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

सैपियन लैब्स द्वारा "द यूथ माइंड: राइजिंग अग्रेसन एंड एंगर" शीर्षक से एक अध्ययन, भारत और अमेरिका में 13-17 वर्ष की आयु के किशोरों में कम उम्र में स्मार्टफोन के उपयोग और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के बीच चिंताजनक संबंध पर प्रकाश डालता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • स्मार्टफोन का उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य: किशोरों के माइंड हेल्थ कोशेंट (Mind Health Quotient- MHQ) पर आधारित अध्ययन से पता चलता है कि स्मार्टफोन के शुरुआती उपयोग और किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है, जिसमें आक्रामकता, क्रोध, चिड़चिड़ापन और मतिभ्रम जैसे लक्षणों में वृद्धि हो रही है।
    • जो किशोर छोटी उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग करना शुरू करते हैं, उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ अधिक गंभीर होती हैं।
    • अवसाद और चिंता के अलावा, अंतर्वेधी विचार (Intrusive Thoughts) और वास्तविकता से अलगाव जैसे नए लक्षण भी देखे गए, जो एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का संकेत देते हैं।
  • ऑनलाइन जोखिम: स्मार्टफोन तक कम उम्र में पहुँच से युवा अनुपयुक्त सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं, नींद में व्यवधान पड़ता है, तथा वैयक्तिक संपर्क में कमी आती है, जो सामाजिक कौशल विकसित करने और संघर्षों से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • लैंगिक भेदभाव: अध्ययन से पता चलता है कि महिलाएँ विशेष रूप से असुरक्षित हैं, तथा लड़कियों में आक्रामकता और क्रोध अधिक देखा जा रहा है।
    • उल्लेखनीय रूप से 65% किशोरियों ने संकट की बात कही, जो लड़कों की तुलना में काफी अधिक है।
  • सांस्कृतिक अंतर: अमेरिका की तुलना में भारत में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट मंद है।
    • अमेरिका में पुरुषों और महिलाओं दोनों में मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट स्पष्ट है, लेकिन भारत में केवल महिलाओं में ही गिरावट देखी गई है, जबकि पुरुषों में कुछ पहलुओं में सुधार हुआ है।
  • समाधान के रूप में शैक्षिक प्रौद्योगिकी: अध्ययन में मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के संभावित समाधान के रूप में शैक्षिक प्रौद्योगिकी और अभिभावकों के नियंत्रण के साथ स्मार्टफोन तक सीमित पहुँच का सुझाव दिया गया है।

Mind_Health_Quotient

माइंड हेल्थ कोशेंट (Mind Health Quotient- MHQ)

  • परिचय: MHQ मानसिक कार्य के 47 पहलुओं का एक व्यापक मूल्यांकन है, जिसे छह आयामों (मनोदशा और दृष्टिकोण, अनुकूलनशीलता और लचीलापन, सामाजिक आत्म, ड्राइव और अभिप्रेरणा, अनुभूति और मन-शरीर संबंध) में मापा जाता है। 
    • समग्र MHQ स्कोर कार्यात्मक उत्पादकता से संबंधित है, जिसमें उच्च स्कोर अधिक उत्पादक दिनों से जुड़ा हुआ है। 
    • "मानसिक कल्याण" के विपरीत, जो भावनात्मक अवस्थाओं पर केंद्रित है, "मानसिक स्वास्थ्य" भावनात्मक और कार्यात्मक दोनों पहलुओं को शामिल करता है, तथा जीवन की चुनौतियों का सामना करने और उत्पादकता बनाए रखने की क्षमता पर ज़ोर देता है।
  • MHQ बनाम IQ और EQ: माइंड हेल्थ कोशेंट (MHQ) बुद्धि लब्धि (IQ) (संज्ञानात्मक क्षमताओं को मापता है) और भावनात्मक लब्धि (EQ) (भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) को मापता है) से भिन्न है।
    • MHQ मानसिक कार्यों की एक व्यापक शृंखला को समाहित करता है, जिसमें मनोदशा, लचीलापन और मन-शरीर संबंध शामिल हैं।

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बच्चों तक शीघ्र डिजिटल पहुँच का क्या प्रभाव होगा?

  • इंटरनेट और सोशल मीडिया का प्रसार बच्चों के लिये दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ इसने लाखों लोगों के लिये शिक्षा को लोकतांत्रिक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ इसने बच्चों को हानिकारक और विषाक्त व्यवहारों के संपर्क में ला दिया है।
  • सकारात्मक प्रभाव: 
    • उन्नत शिक्षण अवसर: डिजिटल पहुँच से शैक्षिक संसाधनों विविध स्रोत उपलब्ध होते है तथा भारत की पहलें जैसे कि शैक्षिक सामग्री से पूर्व-लोड किये गए टैबलेट सेट और PRAGYATA दिशा-निर्देश यह सुनिश्चित करते हैं कि विद्यार्थी विचलित करने वाली सामग्री को सीमित करते हुए अधिगम पर ध्यान केंद्रित करें।
      • E-PG पाठशाला विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों के छात्रों के लिये ऑनलाइन पाठ्यक्रम और सहयोगात्मक शिक्षण तक पहुँच प्रदान करती है।
    • व्यक्तिगत शिक्षण: आवश्यकता तैयार की गई शैक्षिक सामग्री के साथ मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता- आधारित प्लेटफॉर्म छात्रों की सीखने की शैली के अनुसार अनुकूलित होते हैं
      • गेम, सिमुलेशन और इंटरैक्टिव प्लेटफॉर्म जैसे डिजिटल उपकरण अधिगम को अधिक आकर्षक बना सकते हैं, जिससे बच्चों को गणित, भाषा तथा विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों में कौशल विकसित करने में मदद मिल सकती है।
    • कौशल विकास: डिजिटल प्रौद्योगिकी के संपर्क से बच्चों को समस्या-समाधान, कोडिंग और डिजिटल साक्षरता जैसे महत्त्वपूर्ण कौशल विकसित करने में मदद मिल सकती है, जो वर्तमान की प्रौद्योगिकी-संचालित विश्व में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
      • हाल के वर्षों में, "किडफ्लूएंसर्स" ने सोशल मीडिया विज्ञापन उद्योग को तेज़ी से आगे बढ़ाया है, जिसमें प्रायोजित सामग्री के माध्यम से बच्चे अच्छी मात्रा में धन अर्जित कर रहे हैं।
  • सामाजिक संपर्क: बच्चों को परिवार और मित्रों से योजित रखते हुए एकाकीपन को कम करने में मदद करता है।
  • सहायता का अभिगम: यह मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों और सामना करने की रणनीतियों तक आसान पहुँच प्रदान करता है।
  • नकारात्मक प्रभाव: 
    • शारीरिक निष्क्रियता: किशोरावस्था भावात्मक प्रवृत्तियों के विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जिसमें निंद्रा, शारीरिक गतिविधि, मुकाबला करने के कौशल और समर्थ संबंध जैसे कारक कल्याण को बढ़ावा देते हैं। 
      • हालाँकि, डिजिटल माध्यमों तक बच्चों की समय से पहले पहुँच के कारण निष्क्रिय व्यवहार की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है, जिससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
      • स्मार्टफोन के अत्यधिक इस्तेमाल से चिंता, अवसाद, नींद की समस्याएँ और ब्रेन रॉट हो सकता है, जिससे मानसिक स्थिरता और संज्ञानात्मक प्रकार्य प्रभावित हो सकता है।
  • निजता: तकनीकी कंपनियों, हैकर्स या विज्ञापनदाताओं द्वारा किये गए उल्लंघन से पहचान की चोरी, धोखाधड़ी, हेरफेर और हानिकारक सामग्री के संपर्क में आने की संभावना हो सकती है।
    • साइबर-धमकी: अल्प आयु में ही स्मार्टफोन के उपयोग से बच्चों की ऑनलाइन उत्पीड़न के प्रति सुभेद्यता बढ़ जाती है, जिससे उनके आत्म-सम्मान पर प्रभाव पड़ता है।
      • इस दशा में बच्चे उन दुर्जन द्वारा जबरन वसूली या ऑनलाइन शोषण का शिकार हो सकते हैं जो व्यक्तिगत जानकारी या एक्सप्लिसिट सामग्री का उपयोग कर उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं या उन्हें धमकाते हैं।
      • चूँकि बिना फिल्टर की गई सामग्री के कारण आकस्मिक संपर्क या लक्षित शोषण हो सकता है इसलिये इंटरनेट के कारण बच्चों का पोर्नोग्राफी के संपर्क में आने का जोखिम रहता है, जिससे गंभीर विधिक, मनोवैज्ञानिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
      • मेटावर्स और वर्चुअल रियलिटी के क्षेत्र में, वर्चुअल प्रिडेटर धोखाधड़ी, उत्पीड़न और भेदभाव के माध्यम से बच्चों का शोषण करते हैं, जिससे साइबरबुलिंग के लिये अनुकूल परिवेश तैयार होता है।
    • FOMO: सोशल मीडिया पर प्रायः एक आदर्श जीवन दर्शाया जाता है, जिसके कारण युवा वर्ग को ऐसा अनुभव होता है कि वे कुछ खो रहे हैं (सुअवसर खो जाने का भय- FOMO), जिसके कारण चिंता, तनाव और अपूर्णता का भाव उत्पन्न होता है।
    • सामाजिक संपर्क में कमी: फोन के अत्यधिक उपयोग से प्रत्यक्ष संवाद में कमी आ सकती है, जिससे सामाजिक कौशल में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • हिंसा: हिंसक खेलों और ग्राफिक सामग्री सहित ऑनलाइन हिंसा के संपर्क में आने से बच्चे असंवेदनशील हो सकते हैं जिससे उनके लिये आक्रामकता सामान्य हो सकती है तथा वह भयभीत हो सकते हैं और उनकी संवेगात्मक व्यथा बढ़ सकती है।

ऑनलाइन बाल सुरक्षा सांख्यिकी

  • मानसिक स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 7 में से 1 किशोर मानसिक विकार का सामना करता है, जो इस वर्ग में वैश्विक रोग भार का 15% है, जिसमें अवसाद, चिंता और व्यवहार संबंधी विकार प्रमुख कारण हैं और अल्प आयु में डिजिटल माध्यमों तक बच्चों की पहुँच इसका प्रमुख कारक है।
    • किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करने से स्थायी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे संतुष्ट वयस्क जीवन के अवसर सीमित हो सकते हैं।
  • साइबर धमकी: 30 देशों में एक तिहाई से अधिक युवा साइबर धमकी का शिकार होते हैं, जिनमें से 5 में से 1 इसके कारण स्कूल छोड़ देता है।
  • ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार या शोषण: 25 देशों में 80% बच्चे ऑनलाइन यौन दुर्व्यवहार या शोषण के खतरे को महसूस करते हैं।
    • इंटरनेट के उपयोग में तेज़ी से वृद्धि और हानिकारक सामग्री की उपलब्धता के कारण भारत में बच्चों को बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) के संपर्क में आने का उच्च जोखिम है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्तर पर 32 मिलियन CSAM में से भारत में 5.6 मिलियन रिपोर्टें दर्ज की गईं है, जो एक महत्त्वपूर्ण समस्या को उजागर करता है।

बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और डिजिटल पहुँच के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • ऑनलाइन अपराधों से बच्चों का संरक्षण: 
    • POSCO अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम), 2012: POSCO अधिनियम में बच्चों को ऑनलाइन यौन अपराधों से बचाने के प्रावधान हैं, जिनमें अनिवार्य रिपोर्टिंग और बच्चों के अनुकूल प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
    • चाइल्डलाइन 1098: यह देखभाल और संरक्षण की आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिये एक राष्ट्रीय, 24 घंटे की आपातकालीन टोल फ्री फोन सेवा है। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक परियोजना है।
    • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम : शिक्षा मंत्रालय और सीबीएसई ने बच्चों को सुरक्षित इंटरनेट उपयोग के बारे में शिक्षित करने के लिये स्कूल पाठ्यक्रम में साइबर सुरक्षा को शामिल किया है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: IT अधिनियम की धारा 67B, CSAM को ऑनलाइन प्रकाशित करने या देखने पर कठोर दंड का प्रावधान करती है।
  • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर अपराध रोकथाम (CCPWC): CCPWC एक निर्भया फंड पहल है, जो साइबर फोरेंसिक क्षमताओं में सुधार करती है, जागरूकता बढ़ाती है तथा कानून प्रवर्तन क्षमताओं को मज़बूत करती है।
  • डिजिटल पहुँच: 

आगे की राह

  • बाल ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट: बच्चों से संबंधित उपकरणों में बाल ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट स्थापित हो जिससे युवा उपयोगकर्त्ताओं को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने के क्रम में एक व्यवहारिक तथा व्यापक दृष्टिकोण मिल सके। 
    • यह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन (UNCRC) जैसे अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे के अनुरूप है तथा साइबर-धमकी, भावनात्मक बुद्धिमत्ता एवं मानसिक स्वास्थ्य जैसे प्रमुख मुद्दों पर केंद्रित है।
  • स्मार्टफोन के स्वामित्व को विलंबित करने (कम से कम 8 वीं कक्षा तक) से किशोरों में आक्रामकता, चिंता और आत्महत्या की दर को कम करने में मदद मिल सकती है जिसके लिये माता-पिता, स्कूलों तथा सरकारों से कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है।
  • कड़े नियमन: ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों ने पहले ही 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर बच्चों की सुरक्षा के लिये कदम उठाए हैं।
    • डेटा संरक्षण नियम, 2025 के मसौदे को लागू करना चाहिये जिसके माध्यम से भारत ने 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये सोशल मीडिया तक पहुँच के क्रम में आयु सत्यापन एवं माता-पिता की सहमति की आवश्यकताएँ निर्धारित की हैं।
  • जागरूकता: डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे बच्चों को ऑनलाइन स्थानों के संभावित खतरों के बारे में जागरूक करने के साथ उन्हें हानिकारक सामग्री एवं साइबर धमकी की पहचान करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • मानसिक स्वास्थ्य सहायता: बच्चों और किशोरों हेतु राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, किरण हेल्पलाइन और मानस मोबाइल ऐप जैसे सुलभ मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों में निवेश करना चाहिये, जो ऑनलाइन शोषण से प्रभावित लोगों के लिये परामर्श प्रदान करने की रणनीति पर केंद्रित हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: कम उम्र में स्मार्टफोन का उपयोग किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह प्रभाव डाल सकता है? इन प्रभावों को कम करने से संबंधित निहितार्थों और संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने हेतु, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस एवं पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022)


सामाजिक न्याय

ASER 2024 और प्रारंभिक शिक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

गैर सरकारी संगठन, वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER), आँगनवाड़ी, डिजिटल साक्षरता, प्रारंभिक शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, पीएम श्री स्कूल

मेन्स के लिये:

वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024 के निष्कर्ष, प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित चिंताएँ और आगे की राह

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

गैर सरकारी संगठन प्रथम फाउंडेशन ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूली छात्रों के अधिगम के परिणामों पर वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024 जारी की। 

  • यह रिपोर्ट वर्ष 2024 में 605 ग्रामीण ज़िलों के 17,997 गाँवों में किये गये सर्वेक्षण पर आधारित है। 
  • इसमें 3 से 16 वर्षीय आयु वर्ग के 649,491 बच्चों का डेटा है और 5 से 16 वर्षीय आयु वर्ग के 500,000 से अधिक बच्चों के पढ़ने और अंकगणित कौशल का परीक्षण किया गया।

ASER क्या है?

  • परिचय: ASER एक राष्ट्रव्यापी, नागरिक-नेतृत्व वाला घरेलू सर्वेक्षण है जो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूली शिक्षा और उनके अधिगम की गहन जानकारी प्रदान करता है। 
    • वर्ष 2005 में शुरू किये गए ASER के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक प्रवृत्तियों और विद्यमान चुनौतियों की निगरानी की जाती है तथा इस रिपोर्ट के कवरेज, फोकस और आवृत्ति को आवश्यकतानुसार अनुकूलित किया जाता है।
  • फोकस क्षेत्र: 
    • नामांकन: ASER के अंतर्गत स्कूल और प्रीस्कूल नामांकन प्रवृत्तियों को ट्रैक किया जाता है तथा राज्य तथा आयु वर्ग के अनुसार संबंधित सुधारों एवं चुनौतियों पर प्रकाश डाला जाता है।
    • अधिगम के परिणाम: इसमें मूल रूप से पढ़ने और अंकगणित कौशल की क्षमता का आकलन किया जाता है तथा प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बच्चों की प्रगति का विवरण दिया जाता है।
    • डिजिटल साक्षरता: ASER 2024 में अपेक्षाकृत अधिक आयु के बच्चों के स्मार्टफोन कौशल का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें अलार्म सेट करना, ब्राउज़िंग और संदेश भेजने जैसे कार्यों को शामिल किया गया है।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • प्री-प्राइमरी (3 से 5 वर्षीय आयु वर्ग):
    • नामांकन: पूर्व-प्राथमिक संस्थानों (आँगनवाड़ी, सरकारी पूर्व-प्राथमिक कक्षा, या निजी एलकेजी/यूकेजी) में होने वाले नामांकन में वर्ष 2018 से निरंतर वृद्धि हो रही है।  
      • उदाहरण के लिये, 3 वर्ष के बच्चों का नामांकन वर्ष 2018 में 68.1% था जो वर्ष  2024 में बढ़कर 77.4% हो गया।
    • पूर्व-प्राथमिक संस्थान: आँगनवाड़ी केंद्र पूर्व-प्राथमिक शिक्षा के मुख्य प्रदाता हैं, जहाँ 3-4 वर्ष की आयु के आधे से अधिक बच्चे दाखिला लेते हैं, जबकि 5 वर्ष की आयु के एक तिहाई बच्चे निजी स्कूलों या प्रीस्कूलों में जाते हैं।
  • प्राथमिक (आयु समूह 6-14 वर्ष):
    • कुल नामांकन: नामांकन वर्ष 2022 में 98.4% से थोड़ा कम होकर वर्ष 2024 में 98.1% तथा सरकारी स्कूल में नामांकन 7.9 % से घटकर 66.8% हो गए हैं।
    • पठन एवं अंकगणित कौशल: वर्ष 2024 में, सरकारी स्कूलों में कक्षा III के 23.4% बच्चे कक्षा II स्तर की पाठ्य सामग्री पढ़ सकेंगे, जो वर्ष 2022 में 16.3% से अधिक है।
      • वर्ष 2024 में, कक्षा आठ के 45.8% विद्यार्थी बुनियादी अंकगणितीय समस्याओं को हल कर सकेंगे, जो कि मामूली सुधार दर्शाता है।
      • पढ़ने के कौशल की तुलना में अंकगणितीय क्षमताओं में अधिक सुधार हुआ है तथा सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की तुलना में अधिक तेज़ी से प्रगति हुई है।
  • बड़े बच्चे (आयु समूह 15-16 वर्ष):
    • नामांकन: 15-16 वर्ष के बच्चों के लिये स्कूल छोड़ने की दर वर्ष 2018 में 13.1% से घटकर वर्ष 2024 में 7.9% हो गई है, जिसमें लड़कियों की दर 8.1% अधिक है।
  • स्मार्टफोन तक पहुँच और उपयोग ( डिजिटल साक्षरता ) :
    • पहुँच: 14-16 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 90% बच्चों के पास स्मार्टफोन तक पहुँच है, तथा लड़के (85.5%), लड़कियों (79.4%) की तुलना में इसका अधिक उपयोग करते हैं।
    • स्वामित्व: 14 वर्ष के 27% बच्चों और 16 वर्ष के 37.8% बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं।
    • उपयोग: 82.2% बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जिनमें से 57% शिक्षा के लिये और 76% सोशल मीडिया के लिये उपयोग करते हैं।
    • डिजिटल सुरक्षा: 62% बच्चे जानते हैं कि प्रोफाइल को कैसे ब्लॉक/रिपोर्ट करना है, और 55.2% जानते हैं कि प्रोफाइल को निज़ी उपयोग हेतु कैसे बनाना है।
  • स्कूल अवलोकन: 
    • आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN): 80% से अधिक स्कूलों ने FLN गतिविधियों को क्रियान्वित किया, इनमें से 75% स्कूलों में कम-से-कम एक शिक्षक को FLN प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
    • उपस्थिति: छात्र उपस्थिति वर्ष 2018 में 72.4% से बढ़कर वर्ष 2024 में 75.9% हो गई है और शिक्षकों की उपस्थिति 85.1% से बढ़कर 87.5% हो गई।
    • स्कूल सुविधाएँ: बुनियादी स्कूल सुविधाओं की उपलब्धता में मामूली सुधार हुआ:
      • बालिकाओं के लिये उपयोग योग्य शौचालयों की संख्या वर्ष 2018 में 66.4% से बढ़कर वर्ष 2024 में 72% हो जाएगी।
      • पेयजल की उपलब्धता 74.8% से बढ़कर 77.7% हो गई है।
      • छात्रों द्वारा गैर-पाठ्यपुस्तक पुस्तकों (जैसे, उपन्यास, लघु कथाएँ, लोक कथाएँ) का उपयोग 36.9% से बढ़कर 51.3% हो गया है।
      • खेल के मैदान वाले स्कूलों का प्रतिशत लगभग 66% पर स्थिर रहा।
  • परिणाम में अंतर: कोविड-19 महामारी के बाद से अधिगम के परिणामों और सुधार में राज्य-स्तरीय महत्त्वपूर्ण अंतर हैं। 
    • कक्षा III में, आधे से अधिक राज्यों में पढ़ने की क्षमता वर्ष 2018 के स्तर से पीछे रही, लेकिन छह को छोड़कर सभी में अंकगणित में सुधार हुआ।
    • कक्षा V और VIII में, कई राज्य अंकगणित में भी पूर्व-महामारी के स्तर तक नहीं पहुँच पाए।

प्रारंभिक शिक्षा क्या है?

  • परिचय: प्रारंभिक शिक्षा संपूर्ण शैक्षिक प्रणाली की नींव है, जो आमतौर पर छह वर्ष की आयु से शुरू होती है। 
    • यह औपचारिक शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक है, जो बच्चे के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • महत्त्व: 
    • भविष्य की शिक्षा के लिये आधार: यह उच्च शिक्षा और करियर के लिये आवश्यक मूल कौशल (पढ़ना, लिखना, गणित, समस्या समाधान) प्रदान करता है।
    • सामाजिक कौशल का विकास: बच्चे सहपाठियों और शिक्षकों के साथ अंतः क्रिया के माध्यम से टीम वर्क, संचार और सहानुभूति सीखते हैं।
    • व्यक्तिगत और भावनात्मक विकास: इससे आत्मविश्वास और प्रेरणा बढ़ती है, तथा बच्चों को अपनी क्षमता और रचनात्मकता का पता लगाने का अवसर मिलता है।
    • मोटर कौशल का संवर्द्धन: खेल और रचनात्मक अभिव्यक्ति जैसी गतिविधियाँ सूक्ष्म और स्थूल मोटर कौशल का विकास करती हैं।
    • सामाजिक जागरूकता का निर्माण: बच्चे स्वच्छता, सामाजिक ज़िम्मेदारियों और नागरिक कर्त्तव्यों के बारे में सीखते हैं, जिससे वे भविष्य के जागरूक नागरिक बनते हैं।
    • दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव: प्रारंभिक शिक्षा में निवेश आर्थिक विकास, नवाचार और उत्पादकता को बढ़ाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • निम्नस्तरीय स्कूल अवसंरचना: भारत में 14.71 लाख से अधिक स्कूलों में से 1.52 लाख में विद्युत् की सुविधा नहीं है, जिससे शिक्षण में कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी के उपयोग में बाधा आ रही है।
      • 67,000 स्कूलों में, जिनमें 46,000 सरकारी स्कूल शामिल हैं, कार्यात्मक शौचालयों का अभाव है। केवल 3.37 लाख सरकारी स्कूलों (33.2%) में दिव्यांगों के अनुकूल शौचालय हैं, जिनमें से एक तिहाई से भी कम क्रियाशील हैं।
    • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: केवल 43.5% सरकारी स्कूलों में शिक्षण के लिये कंप्यूटर हैं, जबकि निजी, गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में यह संख्या 70.9% है।
    • निम्नस्तरीय शिक्षक-छात्र अनुपात: भारत में लगभग एक लाख स्कूल ऐसे हैं जिनमें प्रत्येक में केवल एक शिक्षक है।
    • सामाजिक विभाजन: जाति-वर्ग, ग्रामीण-शहरी, धार्मिक और लैंगिक असमानताएँ जैसी सामाजिक विभाजनकारी स्थितियाँ शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
    • भाषा संबंधी बाधाएँ: क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों और सामग्री की कमी के कारण हिंदी/अंग्रेज़ी माध्यम में दक्षता न रखने वालों के लिये शिक्षा तक पहुँच सीमित हो जाती है।

शिक्षा से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं? 

 आगे की राह

  • शीघ्र हस्तक्षेप: सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों पर ध्यान केंद्रित करके प्रतिधारण बढ़ाने के लिये तत्काल हस्तक्षेप किया जाना चाहिये।
    • उन बच्चों के लिये अनुकूल, अंशकालिक शिक्षा शुरू करनी चाहिये जिन्हें कार्य करना पड़ता है या घर पर सहायता करनी पड़ती है।
  • गैर-नामांकित बच्चों के लिये साक्षरता: उन बच्चों के लिये पूरक साक्षरता कार्यक्रम शुरू करना चाहिये जो स्कूल छोड़ चुके हैं या स्कूल नहीं जा पाए हैं। 
  • जवाबदेहिता में सुधार: स्थानीय शैक्षिक योजना और विकास के लिये ज़िला स्कूल बोर्ड की स्थापना करनी चाहिये। निरीक्षण एवं शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये स्कूल निरीक्षकों की संख्या बढ़ानी चाहिये।
  • स्कूलों का प्रावधान: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अधिक स्कूल स्थापित करके 1 किमी (पैदल दूरी) के अंदर स्कूल की पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • अभिभावक शिक्षा: अभिभावकों को शिक्षा के महत्त्व (विशेष रूप से बालिकाओं के लिये) तथा शिक्षा किस प्रकार उनके बच्चों के भविष्य को बेहतर बना सकती है, के बारे में शिक्षित करने के लिये अभियान चलाने चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति पर चर्चा कीजिये? भारत में प्राथमिक शिक्षा को मज़बूत करने हेतु किन संरचनात्मक एवं नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1.   राज्य के नीति निदेशक तत्त्व
  2.    ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकाय
  3.    पंचम अनुसूची
  4.    षष्टम अनुसूची
  5.    सप्तम अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और  5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर- (d)


मेन्स

प्रश्न 1. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न 2. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

KMGBF 2022 लक्ष्य प्राप्त करने हेतु OECMs

प्रिलिम्स के लिये:

अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (OECM), अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ, संरक्षित क्षेत्रों पर विश्व आयोग, विश्व वन्यजीव कोष, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, जैवविविधता, संरक्षित क्षेत्र, सवाना, सतत् विकास लक्ष्य (SDG), आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ

मेन्स के लिये:

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) 2022 को प्राप्त करने में अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (OECM) की भूमिका। 

स्रोत: IUCN

चर्चा में क्यों?

IUCN, विश्व संरक्षित क्षेत्र आयोग (WCPA) और WWF द्वारा "अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (OECM) पर मार्गदर्शन" शीर्षक से एक नई रिपोर्ट जारी की गई है।

  • इसमें शामिल दिशानिर्देश के तहत कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) 2022 के GBF लक्ष्य संख्या 3 को प्राप्त करने के लिये भूमि, जल एवं समुद्री क्षेत्रों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने पर प्रकाश डाला गया है ताकि वर्ष 2030 तक इन क्षेत्रों के 30% का संरक्षण किया जा सके।

OECM क्या हैं?

  • परिचय: OECM को ऐसे भौगोलिक क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो संरक्षित क्षेत्र नहीं है लेकिन जिसे जैवविविधता के संरक्षण के क्रम में सकारात्मक, निरंतर, दीर्घकालिक परिणाम प्राप्त करने के लिये शासित और प्रबंधित किया जाता है। 
    • ये क्षेत्र सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक-आर्थिक या अन्य स्थानीय मूल्यों सहित पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों और सेवाओं के संरक्षण पर केंद्रित हैं।
    • उदाहरण कृषि भूमि, लकड़ी के लिये वन आदि।
  • OECM की पहचान हेतु मानदंड:

4_Criteria_for_Identifying_OECMs

  • मुख्य विशेषताएँ :
    • संरक्षित क्षेत्र में शामिल न होना: OECM औपचारिक संरक्षित क्षेत्र (PAs) नहीं हैं लेकिन जैवविविधता संरक्षण में इनकी भूमिका रहती है।
    • प्रबंधन में लचीलापन: OECM का प्रबंधन सरकारों, निजी समूहों, स्थानीय लोगों या स्थानीय समुदायों द्वारा किया जा सकता है।
    • बहुउद्देश्यीय उद्देश्य : OECM जल प्रबंधन या कृषि जैसे लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, तथा जैवविविधता संरक्षण को द्वितीयक लाभ के रूप में शामिल कर सकते हैं।
    • सतत् संरक्षण: OECM को प्रभावी शासन और प्रबंधन के माध्यम से स्व-स्थाने जैवविविधता संरक्षण सुनिश्चित करना चाहिये।
    • स्वैच्छिक पहचान: किसी साइट को OECM के रूप में पहचानना स्वैच्छिक है और इसके लिये शासी प्राधिकरण की सहमति आवश्यक है।
  • महत्त्व: OECM जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण स्थलों को मान्यता देते हैं जो औपचारिक रूप से संरक्षित नहीं हैं।
    • OECM वैश्विक संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क का विस्तार करते हैं, तथा सख्त औपचारिकताओं के बिना जैवविविधता कवरेज़ को बढ़ावा देते हैं।
  • केस स्टडीज़:
    • लॉस एमिगोस कंजर्वेशन एरिया: यह पेरू के लॉस एमिगोस जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है और विश्व स्तर पर संकटग्रस्त 12 प्रजातियों, 12 प्राइमेट प्रजातियों और 550 से अधिक पक्षी प्रजातियों का आश्रय स्थल है। 
    • विट्स रूरल फैसिलिटी: यह दक्षिण अफ्रीका में स्थित है और इसका प्रबंधन मुख्यतः सवाना और नदी आवासों को बरकरार रखते हुए किया जाता है।
    • नार्थ टिंडल प्रोटेक्टेड वाटर एरिया: यह स्थानीय वनस्पति को बनाए रखने और हानिकारक भूमि उपयोगों पर रोक लगाकर जैवविविधता संरक्षण के लिये नोवा स्कोटिया, कनाडा में स्थित है।
  • भारत में OECM:

OECMs_in_India

  • OECM और PA के बीच अंतर:

पहलू

संरक्षित क्षेत्र (PA)

अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (OECM)

परिभाषा

प्रकृति के दीर्घकालिक संरक्षण हेतु समर्पित क्षेत्र।

साइट जैवविविधता का संरक्षण करती है, लेकिन जरूरी नहीं कि यह प्राथमिक लक्ष्य हो।

प्राथमिक उद्देश्य

जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और सांस्कृतिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना।

जैवविविधता एक द्वितीयक या आकस्मिक परिणाम के रूप में।

विधिक मान्यता

औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त और विधिक रूप से संरक्षित।

स्वैच्छिक, औपचारिक संरक्षण का अभाव हो सकता है।

संरक्षण नेटवर्क में भूमिका

संरक्षण नेटवर्क का मूल, दीर्घकालिक सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण।

PA का पूरक, पारिस्थितिकी संपर्क को बढ़ाता है।

संरक्षण परिणाम

जैवविविधता संरक्षण के लिये सख्त नियम।

जैवविविधता का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित नहीं करते।

पूरक भूमिका

संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्रीय (जैसे, वर्ष 2030 तक 30%)।

पारिस्थितिक प्रतिनिधित्व और संपर्क को बढ़ाता है।

OECM के दिशा-निर्देश वाले आठ खंड कौन-से हैं?

Guidelines_for_OECMs

KMGBF 2022 क्या है?

  • परिचय: दिसंबर 2022 में CoP 15 (मॉन्ट्रियल, कनाडा) में अपनाए गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक जैवविविधता हानि रोकथाम करना और इसकी पुनः प्राप्ति करना है।
    • यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप है और जैवविविधता हेतु रणनीतिक योजना 2011-2020 से प्राप्त उपलब्धियों और सीख पर आधारित है।
  • उद्देश्य: इसमें वर्ष 2030 तक तत्काल कार्रवाई के लिये 23 कार्य-उन्मुख वैश्विक लक्ष्य शामिल हैं, जिनका लक्ष्य कम-से-कम 30% क्षीण स्थलीय, अंतर्देशीय जल और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुत्थान करना है।
    • इस लक्ष्य का तात्पर्य वैश्विक प्रयासों से है, न कि प्रत्येक देश के लिये अपनी भूमि और जल का 30% आवंटित करने की आवश्यकता से।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: इस रूपरेखा में जैवविविधता संरक्षण और सतत् उपयोग पर वर्तमान कार्यों और नीतियों का मार्गदर्शन करते हुए वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये सामूहिक प्रतिबद्धता की परिकल्पना की गई है।

CBD_COP_15

नोट: CBD COP-16 का आयोजन वर्ष 2024 में कोलंबिया के कैली में "पीस विद नेचर" थीम के साथ किया गया था।

KMGBF के अंतर्गत भारत का जैवविविधता लक्ष्य क्या है? 

  • संरक्षण क्षेत्र: जैवविविधता को बढ़ाने के लिये 30% क्षेत्र को संरक्षित किये जाने का लक्ष्य।
  • आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक विदेशी प्रजातियों में 50% की कमी लाने का लक्ष्य।
  • अधिकार और भागीदारी: संरक्षण में मूल समुदाय के लोगों, स्थानीय समुदायों, महिलाओं और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • सतत् उपभोग: सतत् उपभोग को बढ़ावा देना और खाद्यान्न की होने वाली कुल बर्बादी को 50% तक कम करना।
  • लाभ साझाकरण: आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान से प्राप्त लाभ के उचित बँटवारे को प्रोत्साहित करना।
  • प्रदूषण स्तर में कमी लाना: पोषक तत्त्वों की हानि और कीटनाशक जोखिम को कम करते हुए प्रदूषण कम करना।
  • जैवविविधता नियोजन: उच्च जैवविविधता वाले क्षेत्रों की हानि की रोकथाम करने हेतु क्षेत्रों का प्रबंधन करना।

IUCN:

  • वर्ष 1948 में स्थापित IUCN विश्व का सबसे बड़ा और सर्वाधिक विविधता वाला पर्यावरण नेटवर्क है।
  • IUCN एक सदस्यता संघ है जिसमें 1,400 से अधिक संगठन शामिल हैं, जिनमें सरकारी और नागरिक समाज समूह दोनों शामिल हैं।
  • IUCN संरक्षण डेटा, आकलन और विश्लेषण का अग्रणी प्रदाता है, जो वैश्विक पर्यावरणीय प्रयासों को समर्थन देने के लिये उपकरण और ज्ञान प्रदान करता है।
  • यह IUCN रेड डाटा बुक (जिसे अब संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट के रूप में जाना जाता है) तैयार करता है, जिसमें प्रजातियों को उनके विलुप्त होने के जोखिम के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है, जैसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त, संकटग्रस्त आदि।

IUCN विश्व संरक्षित क्षेत्र आयोग (WPCA)

  • यह संरक्षित एवं परिरक्षित क्षेत्रों पर विशेषज्ञता का विश्व का अग्रणी नेटवर्क है, जिसके 140 देशों में 2,500 से अधिक सदस्य हैं।
  • यह संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना, प्रबंधन और सुदृढ़ीकरण पर नीति निर्माताओं को रणनीतिक सलाह प्रदान करता है।

WWF:

  • वर्ष 1961 में स्थापित WWF एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है, जो पर्यावरण संरक्षण और कमज़ोर प्रजातियों एवं पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा पर केंद्रित है।
  • इसका लक्ष्य पर्यावरणीय क्षरण को रोकना तथा ऐसे भविष्य का निर्माण करना है, जिसमें लोग प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर रह सकें।

निष्कर्ष: 

IUCN और WWF द्वारा OECM दिशा-निर्देशों का जारी होना कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचे का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% भूमि, जल और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना है। भारत के जैवविविधता लक्ष्य संरक्षण को बढ़ाने, आक्रामक प्रजातियों को कम करने और सतत् उपभोग को बढ़ावा देने के वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (OECM) क्या हैं? वे संरक्षित क्षेत्रों से किस प्रकार भिन्न हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा शुरू की गई थी? (2018) 

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल
(b) UNEP सचिवालय
(c) UNFCCC सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)

व्याख्या:


मेन्स

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)


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