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डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ष 2050 तक वन्यजीवों की पुनर्बहाली

  • 17 Sep 2020
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये 

विश्व वन्यजीव कोष (WWF), जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCBD)

 मेन्स के लिये 

जैव-विविधता के संरक्षण के लिये उठाए जा सकने वाले कदम 

चर्चा में क्यों? 

विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund-WWF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में वन्यजीवों की आबादी में दो-तिहाई से अधिक की कमी आई है। वैश्विक स्तर पर नदियों और झीलों में जीवों की तीव्र कमी दर्ज की गई है। ताजे जल में निवास करने वाले वन्यजीवों की संख्या में वर्ष 1970 के पश्चात् से 84 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। 

प्रमुख बिंदु  

  • ‘जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (United Nations Convention on Biological Diversity-UNCBD) में स्थलीय वन्यजीवों में हो रही कमी की वैश्विक प्रवृत्तियों को कम करने और वर्ष 2050 या उससे पूर्व इसे पुनर्बहाल करने के लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं।
  • प्राचीन वन भूमि से लेकर वर्तमान कृषि भूमि/चरागाहों तक भूमि उपयोग में परिवर्तन ने वैश्विक स्तर पर स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता के लिये सबसे बड़ा खतरा उत्पन्न किया  है। 
  • मानव समाजों के विकास और समृद्धि में वृद्धि को बनाए रखते हुए 21 वीं सदी के दौरान जैव विविधता को संरक्षित और पुनर्बहाल करना एक बड़ी चुनौती है।  
  • प्रकृति और मानव के स्वास्थ्य सहज रूप से परस्पर संबंधित हैं। COVID-19 जैसी संक्रामक महामारी के उद्भव को वनों और परिस्थितिक तंत्र के विनाश से जोड़कर देखा जा रहा है। स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं और समाजों का आधार है।  
  • अधिक संख्या में प्रजातियों के विलुप्त होने से सभ्यताओं के लिये आवश्यक जीवन समर्थन प्रणालियों (Life Support Systems) के समक्ष खतरा उत्पन्न होने लगता है। विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) द्वारा विश्व के समक्ष नौ बड़े खतरों को चिन्हित किया गया है, जिनमें से छः प्रकृति के विनाश से संबंधित हैं।

Historical

उठाए जा सकने वाले कदम 

  • संपूर्ण विश्व स्तर पर सरकारों द्वारा जैव-विविधता के संरक्षण के लिये वैश्विक हॉटस्पॉट्स में बड़े पैमाने पर संरक्षण क्षेत्रों को स्थापित करने की आवश्यकता है। दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति वाले छोटे द्वीपों को संरक्षित किया जाना चाहिये।
  • वन्यजीवों के निवास करने और स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाले इन संरक्षण क्षेत्रों को संपूर्ण विश्व की कम से कम 40% भूमि पर विस्तृत किये जाने की आवश्यकता है, जिससे विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों और संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र में हो रही गिरावट को रोककर वक्र को मोड़ा (Bending the Curve) जा सके। 
  • इन संरक्षण क्षेत्रों के भौगोलिक विस्तार से अधिक महत्त्वपूर्ण इनकी भौगोलिक अवस्थिति और इनको प्रबंधित करने का तरीका है। अतः इन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। 
  • ऐसे स्थान जहाँ प्रजातियों के आवास विलुप्त होने के कगार पर हैं, वहाँ वन्यजीवों के आवासों की पुनर्बहाली और संरक्षण के प्रयासों को लक्षित करने की आवश्यकता है। आगामी 30 वर्ष पृथ्वी पर जैव विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण होंगे।
  • वर्तमान खाद्य प्रणालियों को परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है। कम कृषि भूमि पर अधिक उत्पादन करने का प्रयास किया जाना चाहिये। यदि प्रत्येक किसान कृषि में उपलब्ध सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करे तो खाद्य उत्पादन के लिये कृषि भूमि के कुल क्षेत्रफल का केवल आधा भाग ही आवश्यक होगा। 
  • परिवहन और खाद्य प्रसंस्करण के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट की मात्रा को कम करके भी बहुत सी अन्य अक्षमताओं की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
  • अवनायित भूमि की पुनर्बहाली के साथ-साथ बड़े पैमाने पर भोजन की बर्बादी को कम करके भी मानव समाज इस प्रयास में मदद कर सकता है।  
  • वर्ष 2050 तक विश्व की 8% भूमि को प्राकृतिक रूप में पुनः परिवर्तित किया जा सकता है। शेष भूमि का उपयोग करने के लिये उचित योजना बनाए जाने की आवश्यकता है, ताकि खाद्य उत्पादन और अन्य उपयोगों को वन संधाधनों के संरक्षण के साथ संतुलित किया जा सके।
  • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये भी बड़े पैमाने पर प्रयास किये जाने चाहिये क्योंकि इस शताब्दी में जलवायु परिवर्तन द्वारा संपूर्ण विश्व स्तर पर वन्य जीवन को सर्वाधिक बुरी तरीके से प्रभावित करने की संभावना है। मानव के भूमि के साथ संबंधों को परिवर्तित करने और  प्रदूषण में कमी लाने वाले नीतिगत उपायों को अपनाया जाना चाहिये। 

जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन

  • जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन वर्ष 1992 में रियो-डी-जनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाई गई एक बहुपक्षीय संधि है। यह सतत् विकास के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( The United Nations Environment Programme-UNEP) के अंतर्गत आता है।
  • जैव विविधता पर सम्मेलन (CBD) 29 दिसंबर, 1993 को लागू हुआ। इसके 3 मुख्य उद्देश्य हैं:
    •  जैव विविधता का संरक्षण।
    •  जैव- विविधता के घटकों का सतत् उपयोग।  
    • आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण। 

आगे की राह

  • रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन और भूमि उपयोग नियोजन जैव विविधता के संरक्षण और पुनर्बहाली में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संरक्षण के उपर्युक्त उपाय भूमि का न केवल पुनः प्राकृतिक रूप में परिवर्तन करने में सक्षम हैं, बल्कि ये जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने, जल संसाधनों पर दबाव कम करने और  नाइट्रोजन प्रदूषण को सीमित कर मानव स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के क्रम में भी महत्त्वपूर्ण हैं। 

विश्व वन्यजीव कोष

(World Wildlife Fund for Nature-WWF)

  • WWF का गठन वर्ष 1961 में हुआ था तथा यह पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रख-रखाव संबंधी विषयों पर कार्य करता है।
  • इसका उद्देश्य पृथ्वी पर पर्यावरण के अवनयन को रोकना और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना है जिसमें मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके।
  • WWF द्वारा लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट (Living Planet Report), लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (Living Planet Index) तथा इकोलॉजिकल फुटप्रिंट कैलकुलेशन (Ecological Footprint Calculation) प्रकाशित की जाती है।
  • इसका मुख्यालय ग्लैंड (स्विट्ज़रलैंड) में है।

 स्रोत: डाउन टू अर्थ

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