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भारतीय अर्थव्यवस्था

आनुवंशिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा हेतु WIPO संधि

  • 01 Jun 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन, बौद्धिक संपदा अधिकार, बायोपाइरेसी, आयुर्वेद, GI टैग, ट्रेडमार्क

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकार, जैवविविधता और पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, भारतीय आनुवंशिक संसाधन और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान से संबंधित मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

बौद्धिक संपदा, आनुवंशिक संसाधनों और संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO) संधि, भारत सहित ग्लोबल साउथ के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

  • इस संधि को बहुपक्षीय मंच पर 150 से अधिक देशों की सहमति से अपनाया गया है, जिनमें अधिकांशतः विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं।

WIPO संधि का महत्त्व क्या है?

  • वैश्विक आईपी प्रणाली में परंपरागत ज्ञान और बुद्धि का अंकन: यह संधि पहली बार है कि पारंपरिक ज्ञान और बुद्धि प्रणालियों को वैश्विक बौद्धिक संपदा (आईपी) प्रणाली में शामिल किया जा रहा है।
    • यह संधि आनुवंशिक संसाधन और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान के प्रदाता देशों के लिए आईपी प्रणाली के भीतर अभूतपूर्व वैश्विक मानक निर्धारित करती है।
  • जैवविविधता का संरक्षण: WIPO संधि का उद्देश्य जैवविविधता और पारंपरिक ज्ञान से समृद्ध देशों के अधिकारों को वैश्विक बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights- IPR) प्रणाली के साथ संतुलित करना है।
  • समावेशी नवोन्मेषण: यह स्थानीय समुदायों और उनके GR और ATK के बीच संबंध को मान्यता देते हुए समावेशी नवोन्मेषण को प्रोत्साहित करती है।
  • यह संधि औषधीय पौधों, कृषि और जीवन के अन्य पहलुओं पर पीढ़ियों से चली आ रही पारंपरिक ज्ञान संपदा को दुरुपयोग से बचाती है।
  • प्रकटीकरण बाध्‍यताएँ: अनुसमर्थन पर संधि और लागू होने के लिये अनुबंध करने वाले पक्षों को पेटेंट आवेदकों के लिये आनुवंशिक संसाधनों के मूल देश या स्रोत का खुलासा करने हेतु तब अनिवार्य प्रकटीकरण दायित्वों की आवश्यकता होगी, जब प्रतिपादित आविष्कार आनुवंशिक संसाधनों या संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर आधारित हो। 
  • दुरुपयोग की रोकथाम: यह संधि अनिवार्य प्रकटीकरण दायित्वों की स्थापना करती है, जो मौजूदा प्रकटीकरण कानूनों के बिना देशों में आनुवंशिक संसाधनों और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग को रोकने के लिये अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है।
    • यह मान्यता इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अतीत में कई पारंपरिक जड़ी-बूटियों और उत्पादों को विदेशी आविष्कार बताकर गलत दावा किया गया है, जिसके कारण पेटेंट आवेदनों पर विवाद हुआ।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO):

  • यह बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) सेवाओं, नीति, सूचना और सहयोग के लिये वैश्विक मंच है। यह संयुक्त राष्ट्र की एक स्व-वित्तपोषित एजेंसी है, जिसमें भारत सहित 193 देश सदस्य हैं।
  • इसका उद्देश्य एक संतुलित और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय IP प्रणाली के विकास का नेतृत्व करना है जो सभी के लाभ के लिये नवाचार/नवोन्मेषण और रचनात्मकता को सक्षम बनाता है।
  • WIPO पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge- TK) को ज्ञान, तकनीकी जानकारी, कौशल और प्रथाओं के रूप में परिभाषित करता है, जो एक समुदाय के भीतर विकसित एवं प्रबंधित होते हैं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ते हैं, साथ ही प्रायः उस समुदाय की सांस्कृतिक या आध्यात्मिक पहचान का हिस्सा बन जाते हैं।

नोट:

  • आनुवंशिक संसाधनों (Genetic Resources- GRs) को जैविक विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity-CBD), 1992 में पादप, जंतु, सूक्ष्मजीव या अन्य मूल की आनुवंशिक सामग्री के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें आनुवंशिकता की कार्यात्मक इकाइयाँ शामिल हैं, जो वास्तविक या संभावित रूप से मूल्यवान होते हैं।
  • उदाहरण- औषधीय पौधे, कृषि फसलें और पशु नस्लें आदि।

IPR में पारंपरिक ज्ञान और आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित पिछले मामले क्या हैं?

  • पारंपरिक ज्ञान के आधार पर:
    • हल्दी केस: हल्दी (Turmeric), भारत की एक जड़ी बूटी है, जिसका देश में औषधीय, पाककला और रंगाई के उद्देश्यों के लिये व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग रक्त शोधक के रूप में, सामान्य सर्दी के इलाज हेतु और त्वचा के संक्रमण के लिये एक एंटीपैरासिटिक के रूप में किया जाता है।
      • वर्ष 1995 में अमेरिका ने घाव भरने के लिये हल्दी पाउडर के उपयोग हेतु मिसिसिपी मेडिकल सेंटर (Mississippi Medical Center) विश्वविद्यालय को पेटेंट जारी किया था, लेकिन बाद में भारतीय विज्ञान और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council for Science and Industrial Research- CSIR) द्वारा उपलब्ध कराए गए पूर्व कला साक्ष्य के आधार पर इसे रद्द कर दिया गया था।
    • नीम केस: इसने नीम के पौधे से प्राप्त सक्रिय घटक एज़ाडिरेक्टिन का उपयोग करने वाले एक फार्मूलेशन के लिये डब्ल्यू.आर. ग्रेस नामक कंपनी को दिये गए पेटेंट पर विवाद खड़ा कर दिया।
      • आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों ने लंबे समय से नीम के औषधीय एवं कीटनाशक गुणों को मान्यता दी है।
      • हालाँकि, पेटेंट ने कंपनी को एक विशिष्ट भंडारण समाधान में एज़ाडिरेक्टिन (नीम के पेड़ से प्राप्त फल का अर्क) का उपयोग करने का विशेष अधिकार प्रदान किया।
      • इस पर काफी विरोध हुआ तथा यूनाइटेड स्टेट्स पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस (United States Patent and Trademark Office- USPTO) और यूरोपियन पेटेंट ऑफिस (European Patent Office- EPO) में पुनः जाँच एवं विरोध की कार्यवाही शुरू हुई। जबकि USPTO ने पेटेंट को बरकरार रखा, EPO ने अंततः इसके खिलाफ निर्णय सुनाया, जिसमें कहा गया कि इसमें नवाचार की कमी है।
  • आनुवंशिक संसाधन:
    • गेहूँ की किस्मों का मामला (2003): यह मामला नैप हाल (Nap Hal) और नैप हाल-49 नामक भारतीय गेहूँ की किस्मों की बायोपायरेसी से संबंधित है, जिनका आविष्कारक करने का दावा करते हुए एक यूरोपीय कंपनी ने इन्हें पेटेंट कराया था।
      • भारतीय अधिकारियों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और साक्ष्य प्रस्तुत किये कि ये गेहूँ की किस्में मूल रूप से भारत की थीं और ये भारत के प्राकृतिक संसाधन तथा फसल में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं और ये यूरोपीय कंपनी की खोज नहीं है, परिणामस्वरूप पेटेंट रद्द कर दिये गए।
    • बासमती चावल मामला (2000): इसमें एक अमेरिकी कंपनी को USPTO द्वारा बासमती चावल के लिये पेटेंट प्रदान किया गया था।
      • आवेदकों ने नई किस्म का आविष्कार करने का झूठा दावा किया, जिसके कारण भारतीय और अमेरिकी कृषि संगठनों के बीच टकराव उत्पन्न हो गया।
      • अंततः पेटेंट का दावा तब सीमित हो गया जब आवेदकों ने स्वीकार किया कि उन्होंने बासमती चावल का आविष्कार नहीं किया था।

पारंपरिक ज्ञान और आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

  • पारंपरिक ज्ञान:
    • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी:
      • TKDL विभिन्न भाषाओं में औषधीय फॉर्मूलेशन का एक व्यापक डेटाबेस है।
      • वर्ष 2001 में स्थापित TKDL की स्थापना हल्दी और नीम जैसे पारंपरिक उपचारों पर पेटेंट को समाप्त करने में भारत की चुनौतियों के जवाब में की गई थी।
      • CSIR और आयुष विभाग का संयुक्त प्रयास है, जिसका उद्देश्य भारत के समृद्ध औषधीय ज्ञान को गलत तरीके से पेटेंट होने से बचाना है, जिसकी वृद्धि प्रतिवर्ष अनुमानित 2,000 मामलों से हो रहा था।
      • TKDL भारत की पारंपरिक औषधीय प्रणालियों को वैश्विक स्तर पर दुरुपयोग से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
    • पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005: इसका उद्देश्य पेटेंट आवेदकों को उनके आविष्कारों में जैविक संसाधनों की उत्पत्ति का खुलासा करने के लिये बाध्य करके स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है। 
      • इस जानकारी का खुलासा न करने पर, विशेष रूप से टीके से संबंधित, पेटेंट अस्वीकार किये जा सकते हैं।
    • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999: ट्रेडमार्क विभेदीकरण और भ्रम से बचने के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं। ये वस्तुओं में अंतर करते हैं और उत्पाद के स्रोत के बारे में उत्पन्न होने वाले भ्रम को रोकते हैं।
      • यह अधिनियम कृषि और जैविक उत्पादों, जिनमें स्वदेशी समुदायों के उत्पाद भी शामिल हैं, के संरक्षण की अनुमति देता है।
      • स्वदेशी समूह अपने ब्रांड को अलग पहचान दिलाने तथा अद्वितीय गुणवत्ता की गारंटी देने के लिये ट्रेडमार्क पंजीकरण का उपयोग कर सकते हैं।
    • जैवविविधता अधिनियम, 2002 इसे जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत् उपयोग तथा जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के उपयोग से उत्पन्न लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारे के लिए अधिनियमित किया गया था।

    • भौगोलिक संकेत (GI)यह एक ऐसा पदनाम है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले उत्पादों पर लागू होता है, जो यह दर्शाता है कि उत्पादों की गुणवत्ता या प्रतिष्ठा स्वाभाविक रूप से उस विशेष उत्पत्ति से जुड़ी हुई है।
  • आनुवंशिक संसाधन:
    • राष्ट्रीय जीन बैंकइसकी स्थापना 1996 में भावी पीढ़ियों के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों (पीजीआर) के बीजों को संरक्षित करने के लिये की गई थी। इसमें बीजों के रूप में लगभग दस लाख जर्मप्लाज़्म (जीवित ऊतक जिससे नए पौधे उगाए जा सकते हैं) को संरक्षित करने की क्षमता है।
    • पौधा किस्म और कृषक अधिकार (PPV और FR) अधिनियम, 2001: नई किस्मों के विकास के लिये पौध आनुवंशिक संसाधन (Plant Genetic Resources- PGR) उपलब्ध कराने वाले पादप प्रजनकों और किसानों को वाणिज्यिक लाभ का उचित हिस्सा मिलना चाहिये।
    • राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Bureau of Plant Genetic Resources- NBPGR):यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) के तहत काम करने वाला एक भारतीय संस्थान है। यह भारत में कृषि की जाने वाली पौधों और उनके जंगली समकक्षों की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने और उनकी रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Bureau of Animal Genetic Resources- NBAGR): ICAR के एक भाग के रूप में, NBAGR का उद्देश्य भारत में सतत् पशुधन विकास के लिये पशु आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण, लक्षण वर्णन और उपयोग करना है। यह राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के जीनबैंक भंडार का रखरखाव करता है।
    • सूक्ष्मजीव एवं कीट जैवविविधता: राष्ट्रीय कृषि महत्त्वपूर्ण कीट ब्यूरो (National Bureau of Agriculturally Important Insects- NBAII) कृषि महत्त्वपूर्ण कीट संसाधनों के संग्रह, लक्षण-वर्णन, दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण, विनिमय और उपयोग के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।

GR और TK की पहुँच और लाभ-साझाकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय पहल

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा से संबंधित भारत की पहलों का मूल्यांकन कीजिये। ये पहल भारत के समृद्ध औषधीय ज्ञान और जैवविविधता संसाधनों की सुरक्षा में किस प्रकार योगदान देती हैं?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स :

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।
  2. औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के विनियमन के लिये केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है।
  2. भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है।
  3. पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न: वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014)

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