जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में संरक्षित क्षेत्रों का संरक्षण
- 09 Nov 2024
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प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL), हूलोंगापार गिब्बन अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), सामुदायिक रिज़र्व, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC), वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, WWF इंडिया, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT)। मेन्स के लिये:संरक्षित क्षेत्रों और वन्यजीव आवास के संरक्षण का महत्त्व। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) ने असम के हूलोंगापार गिब्बन अभयारण्य में तेल अन्वेषण हेतु एक कंपनी की सहायक कंपनी के प्रस्ताव को विलंबित कर दिया, जो लुप्तप्राय हूलॉक गिब्बन का आवास स्थल है।
- भारत की एकमात्र वानर प्रजाति के आवास के रूप में इस अभयारण्य का महत्त्व, तथा अतिक्रमण और विकास पर बढ़ती चिंताओं के कारण विकास एवं संरक्षण के बीच संतुलन बनाने पर चर्चा की जा रही है।
भारत में संरक्षित क्षेत्र और संबंधित विनियम क्या हैं?
- परिचय:
- संरक्षित क्षेत्र (PA) ऐसे निर्दिष्ट क्षेत्र हैं जिनका उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण करना और वन्यजीवों को मानवीय हस्तक्षेप से बचाना है।
- वर्गीकरण और विनियमन:
- राष्ट्रीय उद्यान: राष्ट्रीय उद्यान भारत में सर्वाधिक संरक्षित क्षेत्र हैं, जो उच्च स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- इन क्षेत्रों का संरक्षण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972 के तहत किया जाता है, तथा वैज्ञानिक अनुसंधान एवं नियंत्रित पर्यटन को छोड़कर, इनकी सीमाओं के भीतर किसी भी मानवीय गतिविधियों की अनुमति नहीं है।
- खनन, लकड़ी काटना और पशुओं को चराना जैसी विकासात्मक गतिविधियाँ सख्त वर्जित हैं।
- राष्ट्रीय उद्यानों के प्रबंधन का कार्य राज्य सरकार का है, लेकिन राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) भी इसमें, विशेष रूप से बाघों जैसी विशिष्ट प्रजातियों के लिये, महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वन्यजीव अभयारण्य: वन्यजीव अभयारण्य भी WPA, 1972 के अंतर्गत आते हैं, लेकिन राष्ट्रीय उद्यानों की तुलना में कुछ अधिक फ्लेक्सिबिटी प्रदान करते हैं।
- वे कुछ मानवीय गतिविधियों, जैसे चराई और वन उत्पादों के संग्रहण की अनुमति देते हैं, बशर्ते कि वे वन्यजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
- अभयारण्यों का प्रबंधन वन्यजीव संगठनों और विशेषज्ञों के सहयोग से राज्य वन विभागों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- संरक्षण रिज़र्व: संरक्षण रिज़र्व WPA के तहत निर्दिष्ट क्षेत्र हैं जहाँ वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षित है, लेकिन मानव गतिविधियों, जैसे चराई और जलाऊ लकड़ी संग्रह, को विनियमन के तहत अनुमति दी जाती है।
- इन क्षेत्रों का निर्माण महत्त्वपूर्ण आवासों को सुरक्षित रखने, वन्यजीव गलियारों की रक्षा करने तथा अत्यधिक संरक्षित क्षेत्रों के बाहर जैव विविधता को संरक्षित करने के लिये किया गया है।
- ये क्षेत्र स्थानीय समुदायों को स्थायी आजीविका बनाए रखते हुए संरक्षण प्रयासों में भाग लेने की अनुमति देते हैं।
- राज्य सरकार स्थानीय हितधारकों और संरक्षणवादियों की भागीदारी से इन क्षेत्रों का प्रबंधन करती है।
- सामुदायिक रिज़र्व: सामुदायिक रिज़र्व संरक्षण हेतु निर्दिष्ट क्षेत्र हैं, जिनमें प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीव के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भागीदारी शामिल होती है।
- ये रिज़र्व निजी या सामुदायिक स्वामित्व वाली भूमि पर स्थापित किये जा सकते हैं, जिनका लक्ष्य जैव विविधता संरक्षण एवं सतत् संसाधन प्रबंधन में सुधार करना है।
- पर्यटन, कृषि और छोटे पैमाने पर वन उत्पाद निष्कर्षण जैसी गतिविधियाँ तब तक अनुमेय हैं जब तक वे संरक्षण लक्ष्यों के अनुरूप हों।
- इसका प्रबंधन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है, लेकिन इसमें स्थानीय समुदायों और गैर सरकारी संगठनों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
- राष्ट्रीय उद्यान: राष्ट्रीय उद्यान भारत में सर्वाधिक संरक्षित क्षेत्र हैं, जो उच्च स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
विनियामक प्राधिकरण
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC): MoEFCC राष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीव संरक्षण एवं वन प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार शीर्ष निकाय है।
- यह संरक्षित क्षेत्रों के विकास और रखरखाव के लिये नीतियाँ, दिशा-निर्देश तैयार करता है तथा वित्तपोषण उपलब्ध कराता है।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत वन्यजीव विभाग वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की देखरेख करता है तथा WPA के अनुपालन को सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL): NBWL एक सलाहकार निकाय है जो संरक्षित क्षेत्रों में या उसके आसपास परियोजनाओं के अनुमोदन सहित संरक्षण के मुद्दों पर सिफारिशें प्रदान करता है।
- यह नए संरक्षित क्षेत्रों और उनकी प्रबंधन योजनाओं को मंजूरी देने के लिये भी ज़िम्मेदार है।
- राज्य वन विभाग: प्रत्येक राज्य का अपना वन विभाग होता है जो अपने अधिकार क्षेत्र में संरक्षित क्षेत्रों का प्रबंधन करता है। यह विभाग दिन-प्रतिदिन के कार्यों, संरक्षण कानूनों के प्रवर्तन और वन्यजीव आबादी की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- ये विभाग वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 को लागू करने के लिये भी ज़िम्मेदार हैं, जो संरक्षित क्षेत्रों में आने वाले वन क्षेत्रों सहित वनों की कटाई और भूमि उपयोग परिवर्तन को नियंत्रित करता है।
- वन्यजीव संरक्षण सोसायटी और गैर सरकारी संगठन: विभिन्न वन्यजीव संरक्षण संगठन, जैसे कि भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI) और WWF इंडिया, संरक्षित क्षेत्रों की ज़मीनी सुरक्षा, अवैध गतिविधियों की निगरानी तथा मज़बूत संरक्षण कानूनों के समर्थन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संरक्षित क्षेत्रों से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ क्या हैं?
- अतिक्रमण और विकासात्मक गतिविधियाँ: सड़कें, औद्योगिक क्षेत्र, खनन कार्य और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ संरक्षित क्षेत्रों पर अधिक से अधिक दबाव डाल रही हैं।
- उदाहरण के लिये, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से होकर सड़क निर्माण और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य के पास औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना के प्रस्तावों ने आवास विनाश के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।
- प्रवर्तन और निगरानी का अभाव: PA के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन का अभाव है।
- कुछ मामलों में, संरक्षित क्षेत्र अपर्याप्त जनशक्ति, खराब निगरानी प्रणाली और भ्रष्टाचार के कारण अवैध गतिविधियों को रोकने में असमर्थ हैं।
- संरक्षण और विकास के बीच संघर्ष: संरक्षण और विकास हितों के बीच तनाव अक्सर नीतिगत संघर्षों को जन्म देता है।
- उदाहरण के लिये, असम में हूलोंगापार गिब्बन अभयारण्य और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य चर्चा का विषय रहे हैं, जहाँ उद्योगपति ऐसी परियोजनाओं पर ज़ोर दे रहे हैं, जो इन क्षेत्रों की पारिस्थितिक अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
- राजनीतिक और संस्थागत विफलताएँ: संरक्षित क्षेत्रों में उल्लंघनों के विरुद्ध समय पर और प्रभावी कार्रवाई करने में स्थानीय सरकारों तथा वन विभागों की विफलता के कारण भी संरक्षण प्रयासों में कमी आई है।
- राजनीतिक दबाव कभी-कभी पर्यावरणीय चिंताओं पर भारी पड़ जाते हैं, जैसा कि असम में बराक भुबन वन्यजीव अभयारण्य से होकर गुजरने वाली सड़क के लिये विवादास्पद मंजूरी या काज़ीरंगा के निकट नियोजित होटल निर्माण के मामले में देखा जा सकता है।
- सामुदायिक प्रतिरोध और भूमि अधिकार: संरक्षण नियमों के लागू होने से अक्सर स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष होता है, खासकर तब जब उनकी पारंपरिक आजीविका बाधित होती है।
- जलवायु परिवर्तन और आवास की क्षति: कई संरक्षित क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रहे हैं, जो आवासों प्रभावित, प्रजातियों के क्षेत्रों को स्थानांतरित, तथा चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति को बढ़ा रहा है।
आगे की राह:
- प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना: अतिक्रमण और अवैध गतिविधियों को रोकने के लिये संरक्षित क्षेत्रों की प्रभावी निगरानी, गश्त एवं नियंत्रण आवश्यक है।
- उदाहरण के लिये बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में हाथियों की हाल ही में हुई मौत वन्यजीव प्रबंधन में गंभीर चूक को उज़ागर करती है। संरक्षित क्षेत्रों में भविष्य में होने वाली त्रासदियों को रोकने के लिये इस तरह की लापरवाही को दूर किया जाना चाहिये।
- विकास परियोजनाओं के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश: संरक्षित क्षेत्रों के निकट या अंदर विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिये अधिक पारदर्शी एवं मज़बूत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- दिशा-निर्देशों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि किसी भी प्रस्तावित परियोजना का पर्यावरणीय प्रभाव का गहन मूल्यांकन किया जाए, तथा वन्यजीव आवासों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिये विशिष्ट उपाय किये जाएं।
- समावेशी संरक्षण मॉडल: स्थानीय समुदायों को संरक्षण में संलग्न होना चाहिये, तथा विस्तारित संरक्षण एवं सामुदायिक आरक्षित मॉडल के माध्यम से सतत् आजीविका को बढ़ावा देना चाहिये।
- इन मॉडलों में क्षमता निर्माण कार्यक्रम शामिल होने चाहिये ताकि समुदायों को वैकल्पिक आय स्रोत विकसित करने में मदद मिल सके जो वन्यजीवों के लिये हानिकारक न हों।
- कानूनी और संस्थागत सुधार: मौजूदा कानूनी ढाँचे व्यापक होने के बावजूद बेहतर क्रियान्वयन की ज़रूरत है। वन (संरक्षण) अधिनियम और WPA को उल्लंघन के लिये सख्त दंड के साथ मज़बूत किया जाना चाहिये, और स्थानीय सरकारी संस्थानों को संरक्षण कानूनों को बनाए रखने में विफल रहने के लिये जवाबदेह बनाया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उल्लंघनों को दूर करने में सक्रिय भूमिका दिखाई है, लेकिन कानूनी प्रक्रियाओं की गति में सुधार की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटना: जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील संरक्षित क्षेत्रों को बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिये अनुकूली संरक्षण रणनीतियों की आवश्यकता है।
- जन जागरूकता और समर्थन: संरक्षित क्षेत्रों एवं वन्यजीवों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है। गैर सरकारी संगठनों, कार्यकर्त्ताओं एवं मीडिया को संरक्षण पर प्रकाश डालना चाहिये तथा विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने पर संवाद को बढ़ावा देना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: संरक्षित क्षेत्रों के निकट विकास संबंधी परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों और मज़बूत तंत्र की आवश्यकता का मूल्यांकन कीजिये, तथा ऐसे उपाय वन्यजीव आवासों को होने वाले नुकसान को कैसे रोक सकते हैं? |
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