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सामाजिक न्याय

भारत में मानसिक स्वास्थ्य

  • 23 Aug 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, तंबाकू, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस, निमहंस (NIMHANS), मानसिक स्वास्थ्य, किरण हेल्पलाइन, मनोदर्पण

मेन्स के लिये:

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित भारत सरकार की पहल।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा ज़ारी मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट-2024, भारत में मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चिंताजनक आँकड़ों पर प्रकाश डालती है।

मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • तनाव का उच्च स्तर: 84% स्नातकोत्तर (PG) छात्र मध्यम से उच्च स्तर के तनाव का अनुभव करते हैं। 64% छात्र बताते हैं कि कार्यभार उनके मानसिक स्वास्थ्य को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।
    • 27.8% स्नातक मेडिकल छात्रों और 15.3% स्नातकोत्तर छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य विकार का निदान किया गया है, जो व्यापक मानसिक स्वास्थ्य संकट को दर्शाता है, जिसके लिये तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • 16.2% स्नातक (UG) छात्रों और 31.2% स्नातकोत्तर (PG) छात्रों में आत्महत्या के विचार आए हैं, जो गंभीर मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को दर्शाता है।
  • प्रमुख तनाव:
    • मेडिकल छात्र विशेष रूप से स्नातकोत्तर, प्रतिदिन लंबे समय तक काम करते हैं, जो प्रायः सप्ताह में 60 घंटे से अधिक होते हैं। इससे उन्हें पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता और थकावट होती है।
    • प्रायः अपर्याप्त ब्रेक के साथ, ड्यूटी पर निरंतर उपस्थित रहने की आवश्यकता मेडिकल छात्रों के बीच तनाव और थकान को काफी हद तक बढ़ाती है।
    • मेडिकल संस्थानों के भीतर पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली व अवसंरचनात्मक कमी से छात्र अपने तनाव से निपटने और मानसिक स्वास्थ्य को प्रबंधित करने के लिये उचित संसाधनों से वंचित रह जाते हैं।
      • लगभग 19% PG छात्रों ने कहा कि वे तनाव कम करने के लिये तंबाकू, शराब, भांग और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। यह पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य प्रणालियों की कमी और स्वस्थ निरीक्षण तंत्र पर शिक्षा की आवश्यकता का सूचक है।
    • चिकित्सा शिक्षा का उच्च व्यय और अपर्याप्त छात्रवृत्ति, छात्रों के लिये वित्तीय तनाव को बढ़ा देती है, विशेष रूप से उन छात्रों के लिये जो आर्थिक रूप से परिवार पर आश्रित हैं या जिनके पास छात्र ऋण है।
      • 33.9% स्नातक छात्र अत्यधिक वित्तीय तनाव का सामना कर रहे हैं, जिनमें से 27.2% ने शैक्षिक ऋण ले रखा है और पुनर्भुगतान के दबाव से जूझ रहे हैं।
      • 72.2% PG छात्रों को उनकी छात्रवृत्ति अपर्याप्त लगती है, जिससे छात्रवृत्ति नीतियों की समीक्षा की आवश्यकता उजागर होती है।
    • चिकित्सा प्रशिक्षण में तीव्र प्रतिस्पर्द्धा, असफलता का भय और उच्च शैक्षणिक अपेक्षाएँ छात्रों को अत्यधिक दबाव में डाल देती हैं, जिससे उनमें टालमटोल, पूर्णतावाद और चरम मामलों में आत्महत्या के विचार आते हैं।
    • छात्र लिंग, जाति, नस्ल और स्थान के आधार पर भेदभाव का अनुभव करते हैं, साथ ही वरिष्ठों और शिक्षकों द्वारा रैगिंग और उत्पीड़न के मामले छात्रों के मनोवैज्ञानिक तनाव को बढ़ाते हैं।

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission)

  • यह भारत में चिकित्सा शिक्षा और अभ्यास के लिये सर्वोच्च नियामक निकाय है, जिसे वर्ष 2020 में भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India- MCI) के स्थान पर स्थापित किया गया था।
    • इसमें चार स्वायत्त बोर्ड और एक चिकित्सा सलाहकार परिषद शामिल है, जो प्रमुख स्क्रीनिंग परीक्षाओं (जैसे NEET-UG) की देखरेख, चिकित्सा शिक्षा तथा प्रशिक्षण, चिकित्सकों के पंजीकरण एवं नैतिकता, तथा संस्थानों के मूल्यांकन व रेटिंग को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • NMC ने प्रतिष्ठित विश्व चिकित्सा शिक्षा महासंघ (World Federation for Medical Education- WFME) मान्यता प्राप्त कर ली है, जिससे इसकी चिकित्सा डिग्रियों की वैश्विक मान्यता सुनिश्चित हो गई है।

भारत का व्यापक मानसिक स्वास्थ्य परिदृश्य कैसा दिखता है?

  • उच्च प्रचलन दर: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Mental Health Survey- NMHS) 2015-16 के अनुसार, भारत में 10.6% वयस्क मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं।
    • मानसिक विकारों के लिये उपचार अंतराल विकार के आधार पर 70% से 92% के बीच भिन्न होता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों (4.3%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापकता (13.5%) अधिक है।
    • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training- NCERT) द्वारा स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सर्वेक्षण में पाया गया कि महामारी के दौरान 11% छात्रों ने चिंता महसूस की, 14% ने अत्यधिक भावनाओं का अनुभव किया, और 43% ने मनोदशा में उतार-चढ़ाव का अनुभव किया।
  • आर्थिक प्रभाव: मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण अनुपस्थिति, दिव्यांगता और स्वास्थ्य देखभाल व्यय में वृद्धि होती है जिससे उत्पादकता में भारी कमी आती है।
    • गरीबी से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ता है, जिससे तनावपूर्ण जीवन और वित्तीय अस्थिरता के कारण मनोवैज्ञानिक पीड़ा बढ़ती है।

मानसिक स्वास्थ्य से निपटने में नीतिगत चुनौतियाँ क्या हैं?

  • नीतिगत उपेक्षा: मानसिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं के लिये कम प्राथमिकता वाला विषय बना हुआ है, जिसका आंशिक कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और मानसिक स्वास्थ्य प्रबंधन हेतु इंटरवेंशन में ज्ञान का अभाव है।
  • मुख्य संकेतकों की कमी: अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय स्वास्थ्य मीट्रिक में मुख्य संकेतकों की अनुपस्थिति या कम प्रतिनिधित्व के कारण मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को अक्सरअनदेखा कर दिया जाता है।
    • यह अनदेखी मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी अवसरंचना, अनुसंधान और सेवाओं में संसाधनों एवं निवेश के प्रभावी आवंटन को रोकती है।
  • बजट की बाधाएँ: 93,000 करोड़ रुपए से अधिक की अनुमानित आवश्यकता के मुकाबले मानसिक स्वास्थ्य बजट वर्ष 2023 में केवल 1,000 करोड़ रुपए था, जिसमें अधिकांश धनराशि तृतीयक संस्थानों को दी गई, जिससे समुदाय-आधारित पहलों के लिये बहुत कम धनराशि बची।
  • कानूनी कमियाँ: वर्ष 2014 की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन एवं संसाधन आवंटन में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।
  • मानव संसाधन नियोजन: भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी है। मनोचिकित्सकों जैसे कुछ विशेषज्ञों पर निर्भरता, इस धारणा को कायम रखती है कि मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का अनिवार्य घटक न होकर एक विलासिता है।
  • रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: नीति निर्माण में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता है, जैसा दृष्टिकोण भारत द्वारा ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV) - एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम (AIDS) के खिलाफ लड़ाई के दौरान अपनाया गया था।

भारत की HIV-AIDS रणनीति से सबक

  • भारत का HIV-AIDS कार्यक्रम वास्तविक समय के आँकड़ों और निगरानी पर आधारित था। स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों और समूहों के लिये रणनीतियाँ तैयार की गईं थी।
    • बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा समुदायों को शामिल करने और सामाजिक पूर्वाग्रह  को दूर करने के लिये आवंटित किया गया था, जो एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसे मानसिक स्वास्थ्य रणनीतियों में दोहराया जाना चाहिये।
  • सांसदों, मीडिया, न्यायपालिका और अन्य प्रमुख क्षेत्रों की भागीदारी से व्यापक जागरूकता तथा समर्थन प्राप्त करने में सहायता मिली।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल क्या हैं?

नोट: 

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्य (SDG) लक्ष्य 3.4 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक गैर-संचारी रोगों से होने वाली असामयिक मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करना है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

आगे की राह 

  • समुदाय-आधारित मॉडल: सहकर्मी-नेतृत्व वाले हस्तक्षेप और आपातकालीन देखभाल केंद्रों जैसी साक्ष्य-आधारित रणनीतियों को बढ़ाना । 
    • तमिलनाडु में बरगद के होम अगेन कार्यक्रम जैसे सफल मॉडल का अनुकरण करना, जो मानसिक रूप से बीमार, बेघर महिलाओं के लिये उपचार, पुनर्वास और पुनः एकीकरण को जोड़ता है। 
  • सहायता प्रणाली: कॉलेजों में परामर्श केंद्र स्थापित करना, मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम लागू करना और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित छात्रों का समर्थन हेतु सहकर्मी सहायता समूहों की सुविधा प्रदान करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या में वृद्धि: मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों और प्रोत्साहनों का विस्तार करना। 
  • एक स्वायत्त एजेंसी की स्थापना: HIV-AIDS के लिये राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) की तरह, मानसिक स्वास्थ्य के लिये एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना, संसाधनों का समन्वय करने, सामुदायिक हितधारकों को शामिल करने और मानसिक स्वास्थ्य रोगियों की देखभाल में मदद कर सकता है। 
  • सेवाओं का विकेंद्रीकरण: पहुँच को बेहतर बनाने के लिये ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ स्थापित करना। संसाधन आवंटन और सेवा वितरण को बढ़ाने हेतु सहयोग और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।  

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये विभिन्न पहलों के बावजूद, महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने में प्रमुख नीतिगत चुनौतियों की पहचान कीजिये और इन चुनौतियों से निपटने के लिये रणनीतियाँ प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)   

मेन्स 

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिये, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस एवं पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2020)

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