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डेली न्यूज़

  • 28 Jul, 2021
  • 68 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अफगानिस्तान में संयुक्त कार्रवाई: चीन-पाकिस्तान

प्रिलिम्स के लिये: 

अफगानिस्तान की अवस्थिति 

मेन्स के लिये: 

अफगानिस्तान का भू-राजनीति में महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन और पाकिस्तान ने युद्धग्रस्त देश को आतंकवाद का केंद्र बनने से रोकने के लिये अफगानिस्तान में संयुक्त कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त कार्रवाई: इसे पाँच क्षेत्रों में रेखांकित किया गया है:
    • युद्ध के विस्तार से बचने और अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर गृहयुद्ध की स्थिति को रोकने के लिये।
    • सरकार और तालिबान के बीच अंतर-अफगान वार्ता को बढ़ावा देना तथा "एक व्यापक एवं समावेशी राजनीतिक संरचना" स्थापित करना।
    • आतंकवादी ताकतों का डटकर मुकाबला करना और अफगानिस्तान में सभी प्रमुख ताकतों को आतंकवाद के खिलाफ एक स्पष्ट रेखा खींचने के लिये प्रेरित करना।
    • अफगानिस्तान के पड़ोसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और उनके बीच सहयोग के लिये एक मंच के निर्माण का पता लगाना।
    • अफगान मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मिलकर काम करना।

आवश्यकता:

  • पाकिस्तान में आतंकवाद:
    • पाकिस्तान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को लेकर चिंतित है, जो कई सालों से देश के खिलाफ विद्रोह कर रहा है।
  • उइगर उग्रवादियों में वृद्धि:
    • चीन शिनजियांग प्रांत के उइगर उग्रवादियों के फिर से संगठित होने से चिंतित है, जो पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के तत्वावधान में काम करते हैं, इसे लेकर बीजिंग का आरोप है कि उसके अल-कायदा के साथ संबंध हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सेंक्शन मॉनीटरिंग टीम की हाल ही में जारी 12वीं रिपोर्ट ने अफगानिस्तान में ईटीआईएम आतंकवादियों की मौजूदगी की पुष्टि की है।
  • आर्थिक हित:
    • अगर अफगानिस्तान में हालात और बिगड़ते हैं तो पाकिस्तान के साथ-साथ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी खतरे में पड़ जाएगा। साथ ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कई अन्य चीनी परियोजनाओं को भी खतरा होगा।
      • पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के ऊपरी कोहिस्तान ज़िले के दसू इलाके में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक शटल बस पर हाल ही में एक बम हमला हुआ था, यहाँ एक चीनी कंपनी सिंधु नदी पर 4320 मेगावाट क्षमता का बाँध बना रही है।
      • भारत ने सीपीईसी का विरोध किया है, जो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) से होकर गुज़रता है, हालाँकि चीन ने परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है और पीओके में अपना निवेश बढ़ाया है।
  • अफगानिस्तानी स्थिति की पृष्ठभूमि:
    • 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों (9/11) में लगभग 3,000 लोग मारे गए थे।
      • इस्लामिक आतंकवादी समूह अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को इसके लिये दोषी माना गया।
    • तालिबान, कट्टरपंथी इस्लामवादी, जो उस समय अफगानिस्तान में सक्रिय थे, ने बिन लादेन की रक्षा की और उसे सौंपने से इनकार कर दिया। इसलिये  9/11 के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान (ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम) के खिलाफ हवाई हमले शुरू किये।
    • हमलों के बाद उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) गठबंधन सैनिकों ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
    • अमेरिका ने तालिबान शासन को उखाड़ फेंका और अफगानिस्तान में एक संक्रमणकालीन सरकार की स्थापना की।
    • जुलाई 2021 में अमेरिकी सैनिकों ने 20 साल के लंबे युद्ध के बाद अफगानिस्तान के सबसे बड़े एयरबेस से देश में अपने सैन्य अभियानों को प्रभावी ढंग से समाप्त करने की घोषणा की।
    • अमेरिका की वापसी ने तालिबान के पक्ष में युद्ध के मैदान में शक्ति संतुलन को बदल दिया है।
  • भारत के हित:
    • निवेश:
      • अफगानिस्तान में अपने अरबों के निवेश की रक्षा करना।
    • तालिबान:
      • भविष्य के तालिबान शासन को पाकिस्तान का मोहरा बनने से रोकना।
    • पाकिस्तान के आतंकी केंद्र:
      • यह सुनिश्चित करना कि पाकिस्तान समर्थित भारत विरोधी आतंकवादी समूहों को तालिबान का समर्थन न मिले।

आगे की राह:

  • भारत की अफगान नीति एक ऐसी स्थिति में हैं; अफगानिस्तान में और उसके आसपास हो रहे 'ग्रेट गेम' में अपनी संपत्ति की सुरक्षा के साथ-साथ प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को अपनी अफगानिस्तान नीति को मौलिक रूप से पुनर्परिभाषित करना होगा।
  • भारत को अपने फैसलों का पुनर्मूल्यांकन करने की ज़रूरत है और अफगानिस्तान के भविष्य के लिये सभी केंद्रीय ताकतों से निपटने हेतु अपने दृष्टिकोण को अधिक सर्वव्यापी बनाना होगा।
  • इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, भारत को अपने राष्ट्रीय हित के मद्देनज़र तालिबान के साथ 'खुली बातचीत' शुरू करनी चाहिये क्योंकि असामंजस्य वाले आधे-अधूरे बैकचैनल परिचर्चाओं का समय समाप्त हो गया है।
  • बदलती राजनीतिक व सुरक्षा स्थिति के लिये भारत को अपनी अधिकतमवादी स्थिति को अपनाने तथा तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के लिये और अधिक खुलेपन की नीति पर विचार करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता विधेयक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता विधेयक, 2021, प्रकाश स्तंभ अधिनियम, 1927, पोत यातायात सेवा

मेन्स के लिये:

नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता विधेयक, 2021 के विभिन्न प्रावधान एवं इसकी आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद ने नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता विधेयक, 2021 पारित किया है। यह विधेयक प्रकाश स्तंभ अधिनियम, 1927 को निरस्त कर उसका स्थान लेगा, जो कि पारंपरिक नौवहन सहायता यानी लाइटहाउस को नियंत्रित करने वाला नौ दशक पुराना कानून है।

प्रमुख बिंदु

प्रष्ठभूमि:

  • अब तक भारत में सुरक्षित नेविगेशन हेतु लाइटहाउस और लाइटशिप का प्रशासन एवं प्रबंधन प्रकाश स्तंभ अधिनियम, 1927 द्वारा शासित है।
  • प्रकाश स्तंभ दो मुख्य उद्देश्यों- नौवहन सहायता के रूप में और नौकाओं को खतरनाक क्षेत्रों की चेतावनी देने का काम करते हैं।
    • यह समुद्र पर यातायात संकेत की तरह है।
  • हालाँकि जैसे-जैसे तकनीक विकसित हुई, वैसे-वैसे सिस्टम लगाए गए और रडार एवं अन्य सेंसर की मदद से जहाज़ों को स्थिति के बारे में सलाह दी जाने लगी।
    •  इस प्रकार पोत यातायात सेवा (VTS) अस्तित्व में आई और इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली।
  • समुद्री नौवहन प्रणालियों के लिये इन आधुनिक व तकनीकी रूप से बेहतर सेवाओं ने उनकी स्थिति को 'निष्क्रिय' सेवा से ‘इंटरैक्टिव' सेवा में बदल दिया है।
  • इसे एक उपयुक्त वैधानिक ढाँचा प्रदान करने के लिये नए अधिनियम की आवश्यकता है जो नेविगेशन के लिये समुद्री सहायता की आधुनिक भूमिका को दर्शाता है और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत भारत के दायित्वों का अनुपालन करता है।

    विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

    • प्रमुख उद्देश्य
      • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकी विकास को शामिल करना।
      • नौचालन के लिये सामुद्रिक सहायता के क्षेत्र में भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का समायोजन करना।
      • विधायी ढाँचे को उपयोगकर्त्ता के अनुकूल बनाना।
      • व्यापकता व सुगमता को बढ़ावा देना।
    • कानून का दायरा: यह विधेयक क्षेत्रीय जल, महाद्वीपीय शेल्फ और विशेष आर्थिक क्षेत्र सहित समग्र भारत पर लागू होता है।
    • परिभाषित तंत्र: यह ‘नेविगेशन के लिये सहायता’ को एक उपकरण, प्रणाली या सेवा के रूप में परिभाषित करता है, जिसे जहाज़ों के बाह्य स्वरुप, व्यक्तिगत जहाज़ों और पोत यातायात के सुरक्षित एवं कुशल नेविगेशन को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन और संचालित किया जाता है।
      • पोत यातायात सेवा का अर्थ पोत यातायात की सुरक्षा और दक्षता में सुधार एवं पर्यावरण की रक्षा के लिये अधिनियम के तहत लागू की गई सेवा है।
    • संस्थागत तंत्र: विधेयक में प्रावधान है कि केंद्र सरकार एक महानिदेशक की नियुक्ति करेगी, जो नेविगेशन में सहायता से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देगा।
      • यह ज़िला स्तर के लिये उप-महानिदेशकों और निदेशकों की नियुक्ति का भी प्रावधान करता है।
    • हेरिटेज लाइटहाउस: विधेयक केंद्र सरकार को अपने नियंत्रण में नेविगेशन के लिये किसी भी सहायता को ‘विरासत लाइटहाउस’ के रूप में नामित करने का अधिकार देता है।
      • नौवहन सहायक के रूप में उनके कार्य के अलावा ऐसे प्रकाश स्तंभ शैक्षिक, सांस्कृतिक और पर्यटन उद्देश्यों के लिये विकसित किये जाएंगे।
    • अपराध और दंड: इसमें अपराधों की एक नई अनुसूची शामिल है, साथ ही नेविगेशन में सहायता को बाधित करने और नुकसान पहुँचाने तथा केंद्र सरकार एवं अन्य निकायों द्वारा जारी निर्देशों का पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी किया गया है।

    लाभ:

    • इसमें नौचालन के लिये सहायता एवं पोत परिवहन सेवाओं से संबद्ध मामलों हेतु बेहतर कानूनी ढाँचा और समुद्री नौचालन के क्षेत्र में भावी विकास शामिल है।
    • नौवहन की सुरक्षा एवं दक्षता बढ़ाने और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये पोत परिवहन सेवाओं का प्रबंधन।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ‘नौचालन के लिये सहायता’ और पोत परिवहन सेवाओं के ऑपरेटरों हेतु प्रशिक्षण तथा प्रमाणन के माध्यम से कौशल विकास।
    • वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रशिक्षण और प्रमाणन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये संबद्ध संस्थानों की लेखापरीक्षा एवं प्रत्यायन।
    • सुरक्षित और प्रभावी नौचालन के उद्देश्य से डूबे हुए/फँसे हुए जहाज़ों की पहचान करने के लिये जल में “मलबे”  को चिह्नित करना।
    • शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के उद्देश्य से प्रकाश स्तम्भों का विकास, जो कि तटीय क्षेत्रों की पर्यटन क्षमता का दोहन करते हुए उनकी अर्थव्यवस्था में योगदान देगा।

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारतीय विरासत और संस्कृति

    भारत का 40वाँ विश्व धरोहर स्थल: धौलावीरा

    प्रिलिम्स लिम्स के लिये:

    यूनेस्को, रामप्पा मंदिर,  कच्छ के महान रण

    मेन्स के लिये:

    धौलावीरा स्थल की विशिष्ट विशेषताएँ एवं इस स्थल के पतन के प्रमुख कारण, गुजरात में अन्य हड़प्पा स्थल 

    चर्चा में क्यों?   

    हाल ही में यूनेस्को ने गुजरात के धौलावीरा शहर को भारत के 40वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया है। यह प्रतिष्ठित सूची में शामिल होने वाली भारत में सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus Valley Civilisation- IVC) की पहली साइट है।

    • इस सफल नामांकन के साथ भारत अब विश्व धरोहर स्थल शिलालेखों के लिये सुपर-40 क्लब (Super-40 Club for World Heritage Site Inscriptions) में प्रवेश कर गया है।
    • भारत के अलावा इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन और फ्रांँस में 40 या अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं।
    • भारत में कुल मिलाकर 40 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित स्थल शामिल है। रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) भारत का 39वांँ विश्व धरोहर स्थल था।

    प्रमुख बिंदु

    धौलावीरा के बारे में:

    • यह दक्षिण एशिया में सबसे अनूठी और अच्छी तरह से संरक्षित शहरी बस्तियों में से एक है।
    • इसकी खोज वर्ष 1968 में पुरातत्त्वविद् जगतपति जोशी द्वारा की गई थी।
    • पाकिस्तान के  मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला और हड़प्पा तथा भारत के हरियाणा में राखीगढ़ी के बाद धौलावीरा सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) का पांँचवा सबसे बड़ा महानगर है।
      • IVC जो कि आज पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में पाई जाती है, लगभग 2,500 ईसा पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग में फली-फूली। यह मूल रूप से एक शहरी सभ्यता थी तथा लोग सुनियोजित और अच्छी तरह से निर्मित कस्बों में रहते थे, जो व्यापार के केंद्र भी थे।
    • साइट में एक प्राचीन आईवीसी/हड़प्पा शहर के खंडहर हैं। इसके दो भाग हैं: एक चारदीवारी  युक्त शहर और शहर के पश्चिम में एक कब्रिस्तान।
      • चारदीवारी वाले शहर में एक मज़बूत प्राचीर से युक्त एक दृढ़ीकृत गढ़/दुर्ग और अनुष्ठानिक स्थल तथा दृढ़ीकृत दुर्ग के नीचे एक शहर स्थित था।
      • गढ़ के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की एक शृंखला पाई जाती है।

    अवस्थिति:

    • धोलावीरा का प्राचीन शहर गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले में एक पुरातात्त्विक स्थल है, जो ईसा पूर्व तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी तक का है।
    • धौलावीरा कर्क रेखा पर स्थित है।
    • यह कच्छ के महान रण में कच्छ रेगिस्तान वन्यजीव अभयारण्य में खादिर बेट द्वीप पर स्थित है।
    • अन्य हड़प्पा पूर्वगामी शहरों के विपरीत, जो आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के पास स्थित हैं, धौलावीरा खादिर बेट द्वीप पर स्थित है।
      • यह साइट विभिन्न खनिज और कच्चे माल के स्रोतों (तांबा, खोल, एगेट-कारेलियन, स्टीटाइट, सीसा, बैंडेड चूना पत्थर तथा अन्य) के दोहन हेतु महत्त्वपूर्ण थी।
      • इसने मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक एवं  बाहरी व्यापार को भी सुगम बनाया।

    पुरातात्त्विक परिणाम: 

    • यहाँ पाए गए कलाकृतियों में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने और तांबे के गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ, उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण बर्तन शामिल हैं।
      • तांबे के स्मेल्टर या भट्टी के अवशेषों से संकेत मिलता है कि धौलावीरा में रहने वाले हड़प्पावासी धातु विज्ञान जानते थे।
      • ऐसा माना जाता है कि धौलावीरा के व्यापारी वर्तमान राजस्थान, ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात से तांबा अयस्क प्राप्त करते थे और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते थे।
      • यह अगेट (Agate) की तरह कौड़ी (Shells) एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों से बने आभूषणों के निर्माण का भी केंद्र था तथा इमारती लकड़ी का निर्यात भी करता था।
    • सिंधु घाटी लिपि में निर्मित 10 बड़े पत्थरों के शिलालेख है, शायद यह दुनिया का सबसे पुराने साइन बोर्ड है।
    • प्राचीन शहर के पास एक जीवाश्म पार्क है जहाँ लकड़ी के जीवाश्म संरक्षित हैं।
    • अन्य IVC स्थलों पर कब्रों के विपरीत धौलावीरा में मनुष्यों के किसी भी नश्वर अवशेष की खोज नहीं की गई है।

    धौलावीरा स्थल की विशिष्ट विशेषताएँ:

    • जलाशयों की व्यापक शृंखला।
    • बाहरी किलेबंदी।
    • दो बहुउद्देश्यीय मैदान, जिनमें से एक उत्सव के लिये और दूसरा बाज़ार के रूप में उपयोग किया जाता था।
    • अद्वितीय डिज़ाइन वाले नौ द्वार।
    • अंत्येष्टि वास्तुकला में ट्यूमुलस की विशेषता है - बौद्ध स्तूप जैसी अर्द्धगोलाकार संरचनाएँ।
    • बहुस्तरीय रक्षात्मक तंत्र, निर्माण और विशेष रूप से दफनाए जाने वाली संरचनाओं में पत्थर का व्यापक उपयोग।

    धौलावीरा का पतन: 

    • इसका पतन मेसोपोटामिया के पतन के साथ ही हुआ, जो अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण का संकेत देता है।
      • हड़प्पाई, जो समुद्री लोग थे, ने मेसोपोटामिया के पतन के बाद एक बड़ा बाज़ार खो दिया जो इनके स्थानीय खनन, विनिर्माण, विपणन और निर्यात व्यवसायों को प्रभावित करते थे ।
    • जलवायु परिवर्तन और सरस्वती जैसी नदियों के सूखने के कारण धौलावीरा को गंभीर शुष्कता का परिणाम देखना पड़ा।
      • सूखे जैसी स्थिति के कारण लोग गंगा घाटी की ओर या दक्षिण गुजरात की ओर तथा महाराष्ट्र से आगे की ओर पलायन करने लगे।
    • इसके अलावा कच्छ का महान रण, जो खादिर द्वीप के चारों ओर स्थित है और जिस पर धोलावीरा स्थित है, यहाँ पहले नौगम्य हुआ करता था, लेकिन समुद्र का जल धीरे-धीरे पीछे हट गया और रण क्षेत्र एक कीचड़ क्षेत्र बन गया।

    गुजरात में अन्य हड़प्पा स्थल 

    • लोथल: धौलावीरा की खुदाई से पहले अहमदाबाद ज़िले के ढोलका तालुका में साबरमती के तट पर सरगवाला गाँव में लोथल, गुजरात सबसे प्रमुख सिंधु घाटी स्थल था।
      • इसकी खुदाई वर्ष 1955-60 के बीच की गई थी और इसे प्राचीन सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह शहर माना जाता था, जिसमें मिट्टी की ईंटों से बनी संरचनाएँ थीं।
      • लोथल के एक कब्रिस्तान से 21 मानव कंकाल मिले हैं।
      • यहाँ से तांबे के बर्तन की भी खोज की गई है।
      • इस स्थल से अर्द्ध-कीमती पत्थर, सोने आदि से बने आभूषण भी मिले हैं।
    • सुरेंद्रनगर ज़िले में भादर (Bhadar) नदी के तट पर स्थित रंगपुर, राज्य का पहला हड़प्पा स्थल था जिसकी खुदाई की गई थी।
    • राजकोट ज़िले में रोजड़ी, गिर सोमनाथ ज़िले में वेरावल के पास प्रभास
    • जामनगर में लखबावल और कच्छ के भुज तालुका में देशलपार, राज्य के अन्य हड़प्पा स्थल हैं।

    गुजरात में अन्य विश्व साइट्स

    •  गुजरात में धौलावीरा के अलावा 3 अन्य यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
      • अहमदाबाद का ऐतिहासिक शहर
      • रानी की वाव, पटना
      • चंपानेर और पावागढ़ी

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    जैव विविधता और पर्यावरण

    गंगा बेसिन में शहरों को जल संवेदनशील बनाने की पहल

    प्रिलिम्स के लिये 

     राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, अटल भूजल योजना, जल जीवन मिशन, जल शक्ति अभियान

    मेन्स के लिये 

    गंगा बेसिन में शहरों को जल संवेदनशील बनाने का उद्देश्य एवं महत्त्व, जल संवेदनशील शहरी डिज़ाइन और योजना की विशेषताएँ

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) के सहयोग से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) द्वारा 'गंगा बेसिन में शहरों को जल संवेदनशील’ बनाने पर एक नई क्षमता निर्माण पहल का शुभारंभ किया गया।

    प्रमुख बिंदु 

    पहल के बारे में:

    •  उद्देश्य: इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा बेसिन शहरों में बेहतर नदी स्वास्थ्य के लिये स्थायी शहरी जल प्रबंधन को बढ़ावा देने हेतु क्षमता निर्माण तथा कार्रवाई व अनुसंधान करना है। 
    • मुख्य केंद्रित क्षेत्र :
      •  जल संवेदनशील शहरी डिज़ाइन और योजना।
      • शहरी जल दक्षता और संरक्षण।
      • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल शोधन और स्थानीय रूप से इसका पुन: उपयोग। 
      • शहरी भूजल प्रबंधन।
      • शहरी जल निकाय/झील प्रबंधन ।
    • अभिसरण प्रयास:
    • हितधारक: यह कार्यक्रम सभी हितधारकों को जोड़ता है जिसमें शामिल हैं:
      •  राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूह, नमामि गंगे (SPMGs), नगर निगम, तकनीकी और अनुसंधान स्थिरांक, अंतर्राष्ट्रीय संगठन तथा स्थानीय ज़मीनी स्तर के समुदाय।
    • जल संवेदनशील शहरी डिज़ाइन और योजना (WSUDP) : यह एक उभरता हुआ शहरी विकास प्रतिमान है जिसका उद्देश्य पर्यावरण पर शहरी विकास के जलविज्ञान  (Hydrological) संबंधी प्रभावों को कम करना है। इनमें शामिल हैं:
      • जल के इष्टतम उपयोग के लिये शहरी क्षेत्रों की योजना बनाने और डिज़ाइन तैयार करने की विधि।
      • हमारी नदियों और खाड़ियों को होने वाले नुकसान को कम करना।
      • संपूर्ण जल प्रणालियों (पेयजल, तूफान के जल का बहाव, जलमार्ग का रखरखाव, सीवरेज शोधन और पुनर्चक्रण) के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना।

    अन्य संबंधित पहलें:

    • नदी शहरों की योजना बनाने में एक आदर्श बदलाव आया है।
      • "रिवर सिटीज़ एलायंस" नदी बेसिन के शहरों के सतत् विकास और क्षमता निर्माण के माध्यम से सामूहिक रूप से नदी के कायाकल्प करने की दिशा में सहयोग के लिये एक अनूठा मंच प्रदान करेगा।
    • वर्षा जल संचयन के लिये शुरू की गई जल शक्ति मंत्रालय की 'कैच द रेन' पहल ने सभी हितधारकों को वर्षा जल संचयन संरचनाओं (Rain Water Harvesting Structures- RWHS) को जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल बनाने तथा वर्षा जल संचयन हेतु उप-भूमि स्तर को बनाए रखने के लिये प्रेरित किया है।

    The-Ganga-River-Map

    आगे की राह

    • वर्षों से बारिश की तीव्रता में वृद्धि हुई है लेकिन बारिश के दिनों की संख्या में कमी देखी गई  है, जिससे जल प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है।
    • शहरी निर्माण प्रतिरूप जिसमें भू-दृश्य और शहरी जल चक्र भी शामिल हैं के बीच एकीकरण के लिये एक रूपरेखा की आवश्यकता है।
    • नदियों की खराब स्थिति के लिये बड़े पैमाने पर शहरों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है और इसलिये कायाकल्प के प्रयासों में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी।
    • शहरों के लिये योजना बनाते समय नदी संवेदनशील दृष्टिकोण को मुख्यधारा में शामिल करने की आवश्यकता है। 

    स्रोत: पी.आई.बी.


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देना

    प्रिलिम्स के लिये:

    ब्लॉकचेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, राज्यसभा

    मेन्स के लिये:

    डिजिटल बैंकिंग का महत्त्व एवं चुनौतियाँ

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में कहा है कि सरकार ने डिजिटल बैंकिंग, डोरस्टेप बैंकिंग सेवाओं (Doorstep Banking Service) और डिजिटल लेंडिंग प्लेटफॉर्म (Digital Lending Platform) की सुविधा के लिये कई कदम उठाए हैं।

    प्रमुख बिंदु

    डिजिटल बैंकिंग:

    • यह उन सभी पारंपरिक बैंकिंग गतिविधियों, कार्यक्रमों व सेवाओं का डिजिटलीकरण है जो ऐतिहासिक रूप से केवल ग्राहकों के लिये तब उपलब्ध थे।
    • इसमें मनी डिपॉजिट, विदड्रॉल और ट्रांसफर, चेकिंग/सेविंग अकाउंट मैनेजमेंट, फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स के लिये अप्लाई करना, लोन मैनेजमेंट, बिल पे, अकाउंट सर्विसे जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।

    चुनौतियाँ:

    • डिजिटल भुगतान को अपनाने में इंटरनेट का उपयोग ही एकमात्र बाधा नहीं है।
    • उपयोगकर्त्ताओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।

    प्रमुख पहलें:

    • EASE सुधार एजेंडा: इसे सरकार और PSB द्वारा संयुक्त रूप से जनवरी 2018 में लॉन्च किया गया था।
      • इसे इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के माध्यम से कमीशन (Commission) किया गया था और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा इसकी संकल्पना की गई थी।
      • EASE एजेंडा का उद्देश्य स्वच्छ और स्मार्ट बैंकिंग को संस्थागत बनाना है।
      • EASE रिफॉर्म्स इंडेक्स: इंडेक्स 120+ ओब्ज़ेक्टिव मेट्रिक्स (120+ Objective Metric) पर प्रत्येक PSB के प्रदर्शन को मापता है। इसका लक्ष्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करके परिवर्तन को जारी रखना है।
      • EASE 1.0: इस रिपोर्ट ने पारदर्शी रूप से गैर-निष्पादित परिसंपतियों (Non Performing Asset- NPA) के समाधान में PSB के प्रदर्शन में महत्त्वपूर्ण सुधार दिखाया।
      • EASE 2.0: यह EASE 1.0 की नींव पर बना है और इसने सुधार यात्रा को अपरिवर्तनीय बनाने, प्रक्रियाओं एवं प्रणालियों को मज़बूत करने तथा परिणामों के संचालन के लिये  छः विषयों में नए सुधार पेश किये।
        • EASE 2.0 के छः विषय हैं: उत्तरदायी बैंकिंग, ग्राहक प्रतिक्रिया, क्रेडिट ऑफ-टेक, उद्यमी मित्र के रूप में PSB (MSME के क्रेडिट प्रबंधन के लिये सिडबी पोर्टल), वित्तीय समावेशन और डिजिटलीकरण एवं शासन तथा मानव संसाधन।
      • Ease 3.0: यह प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सभी ग्राहक अनुभवों में बैंकिंग को आसान बनाने का प्रयास करता है जिनमें डायल-ए-लोन (Dial-a-loan), फिनटेक (Fintech) एवं ई-व्यापार कंपनियों से साझेदारी, क्रेडिट@क्लिक (Credit@Click), कृषि-ऋण में तकनीकी का प्रयोग, ईज़ बैंकिंग आउटलेट आदि शामिल हैं ।
      • Ease 4.0: इस वित्तीय वर्ष में सुधार एजेंडे के हिस्से के रूप में Ease 4.0 को राज्य द्वारा संचालित बैंक गैर-बैंकिंग फर्मों के साथ सह-ऋण, डिजिटल कृषि वित्तपोषण, सहक्रियाओं और 24x7 बैंकिंग सुविधाओं के लिये तकनीकी लचीलापन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शुरू किया गया है।
    • PSBloansin59 minutes.com:
      • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ऋणों के लिये सैद्धांतिक रूप से ऑनलाइन अनुमोदन प्रदान करने हेतु क्रेडिट ब्यूरो, आयकर और वस्तु एवं सेवा कर (GST) डेटा के त्रिभुज का उपयोग करते हुए PSBloansin59minutes.com के माध्यम से डिजिटल ऋण की शुरुआत को संपर्क रहित बनाया गया है।
    • व्यापार प्राप्य बट्टाकरण/छूट प्रणाली (TReDS) प्लेटफॉर्म :
      • MSMEs के लिये ऑनलाइन बिल छूट को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के माध्यम से TReDS प्लेटफॉर्म पर ऑनबोर्डिंग के ज़रिये प्रतिस्पर्द्धी आधार पर सक्षम किया गया है तथा ऑनलाइन रियायती बिलों का अनुपात तेज़ी से बढ़ा है।
        • बिल डिस्काउंटिंग या छूट एक व्यापारिक गतिविधि है जिसमें एक कंपनी के अवैतनिक चालान, जिन्हें भविष्य में भुगतान किया जाना है, एक फाइनेंसर (एक बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान) को बेचे जाते हैं।
    • जीवन प्रमाण पहल:
      • पेंशनभोगियों के लिये इस पहल ने वरिष्ठ नागरिक पेंशनभोगियों को अपने वार्षिक जीवन प्रमाण पत्र को ऑनलाइन अपडेट करने की सुविधा प्रदान की है।
    • डोरस्टेप बैंकिंग सेवाएँ: 
      • PSB एलायंस, जो सभी PSBs और भारतीय बैंक संघ की एक पहल है, ने सभी ग्राहकों के लिये डोरस्टेप बैंकिंग सेवाएंँ शुरू की हैं।
      • डोरस्टेप बैंकिंग' के माध्यम से ग्राहक अपने घर से ही प्रमुख बैंकिंग लेन-देन सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।

    वर्तमान स्थिति:

    • वर्तमान में PSB के लगभग 72% वित्तीय लेन-देन डिजिटल चैनलों के माध्यम से किये जाते हैं, जिसमें डिजिटल चैनलों पर सक्रिय ग्राहकों की संख्या वित्त वर्ष 2019-20 के 3.4 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 7.6 करोड़ हो गई है।
    • घरेलू और मोबाइल चैनलों के माध्यम से किये गए वित्तीय लेन-देनों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-19 में 29% थी जो वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 76% हो गई है।

    आगे की राह: 

    • डिजिटल माध्यम ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। ब्लॉकचेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) जैसी नई तकनीकों को अपनाकर बैंकों को इन आधुनिक तकनीकों से जुड़ना होगा।
    • बड़े डेटा के बल पर संचालित इंटेलिजेंट एनालिटिक्स के माध्यम से क्रॉस-सेलिंग और विभिन्न ग्राहकों की ज़रूरतों के अनुसार क्यूरेटेड उत्पाद (Curated Product) वे उत्पाद हैं जो बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऑफर्स से अलग हैं।

    स्रोत: पी.आई.बी. 


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    आर्थिक उदारीकरण के 30 वर्ष

    प्रिलिम्स के लिये:

    क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट, आर्थिक उदारीकरण, भुगतान संतुलन, राजकोषीय घाटा

    मेन्स के लिये:

    तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में आर्थिक उदारीकरण सुधारों की आवश्यकता एवं वर्तमान परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में आर्थिक उदारीकरण सुधारों की 30वीं वर्षगाँठ पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की वृहद्-आर्थिक स्थिरता पर चिंता व्यक्त की।

    • उनके अनुसार, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न मौजूदा आर्थिक संकट वर्ष 1991 के आर्थिक संकट की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है और राष्ट्र को सभी भारतीयों के लिये एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने हेतु प्राथमिकता के क्षेत्रों को पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी।

    प्रमुख बिंदु

    1991 का संकट और सुधार:

    • 1991 का संकट: वर्ष 1990-91 में भारत को गंभीर भुगतान संतुलन (BOP) संकट का सामना करना पड़ा, जहाँ उसका विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 दिनों के आयात के वित्तपोषण हेतु पर्याप्त था। साथ ही अन्य कई कारक भी थे जो BOP संकट का कारण बने:
      • राजकोषीय घाटा: वर्ष 1990-91 के दौरान राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8.4% था।
      • खाड़ी युद्ध-I: वर्ष 1990-91 में कुवैत पर इराक के आक्रमण के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि से स्थिति विकट हो गई थी।
      • कीमतों में वृद्धि: मुद्रा आपूर्ति में तेज़ी से वृद्धि और देश की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मुद्रास्फीति दर 6.7% से बढ़कर 16.7% हो गई।
    • 1991 के सुधारों की प्रकृति और दायरा: वर्ष 1991 में वृहद्-आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिये भारत ने एक नई आर्थिक नीति शुरू की, जो एलपीजी या उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण मॉडल पर आधारित थी।
      • तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह वर्ष 1991 के ऐतिहासिक उदारीकरण के प्रमुख वास्तुकार थे।
      • LPG मॉडल के तहत व्यापक सुधारों में शामिल हैं:
        • औद्योगिक नीति का उदारीकरण: औद्योगिक लाइसेंस परमिट राज का उन्मूलन, आयात शुल्क में कमी आदि।
        • निजीकरण की शुरुआत: बाज़ारों का विनियमन, बैंकिंग सुधार आदि।
        • वैश्वीकरण: विनिमय दर में सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और व्यापार नीतियों को उदार बनाना, अनिवार्य परिवर्तनीयता संबंधी कारण को हटाना आदि।
      • वर्ष 1991 से 2011 तक देखी गई उच्च आर्थिक वृद्धि और वर्ष 2005 से 2015 तक गरीबी में पर्याप्त कमी के लिये इन सुधारों को श्रेय दिया जाता है तथा उनकी सराहना की जाती है।

    10-Reforms

    वर्ष 2021 का संकट:

    • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट (World Economic Outlook Report), 2021 में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2021 में 12.5% और वर्ष 2022 में 6.9% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
      • हालाँकि महामारी के कारण अनौपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी और दशकों की गिरावट के बाद गरीबी बढ़ रही है।
    • स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्र पिछड़ गए हैं जिनमें पुनः सुधार करने में हमारी आर्थिक प्रगति असमर्थ साबित हो रही है।
      • महामारी के दौरान बहुत से लोगों की जान चली गई, साथ ही कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी जो कि काफी दुखद अनुभव रहा।
    • इंस्पेक्टर राज (Inspector Raj) ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिये नीति के माध्यम से वापसी करने के लिये तैयार है।
    • भारत, राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से अत्यधिक उधार लेने या धन (लाभांश के रूप में) निकालने जैसी स्थित में पहुँच गया है।
    • प्रवासी श्रम संकट ने विकास मॉडल में रुकावट डाल दी है।
    • भारतीय विदेश व्यापार नीति फिर से व्यापार उदारीकरण पर संदेह कर रही है, क्योंकि भारत पहले ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से बाहर निकलने का फैसला कर चुका है।

    आगे की राह

    • वर्ष 1991 के सुधारों ने अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने में मदद की। यह समय नए सुधार एजेंडे की रूपरेखा तैयार करने का है जो न केवल जीडीपी को पूर्व-संकट के स्तर पर वापस लाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि विकास दर महामारी में प्रवेश करने के समय की तुलना में अधिक हो।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    भारतीय अर्थव्यवस्था

    वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक

    प्रिलिम्स के लिये

    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व आर्थिक आउटलुक

    मेन्स के लिये

    भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और सुधार संबंधी उपाय

    चर्चा में क्यों?

    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ के नवीनतम संस्करण में वर्ष 2021 के भारत विकास अनुमान को 12.5% (अप्रैल 2021) ​​से घटाकर 9.5% कर दिया गया है।

    • ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ ने अपने पूर्वानुमान में परिवर्तन करते हुए मुख्यतः दो कारकों यथा- टीकों तक पहुँच और नए कोरोना-वेरिएंट के जोखिम पर ध्यान केंद्रित किया है।

    प्रमुख बिंदु

    भारतीय अर्थव्यवस्था:

    • वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.5% की दर से और वर्ष 2022 में 8.5% (अप्रैल में अनुमानित 6.9% से अधिक) की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
      • वर्ष 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 8% का अनुमानित संकुचन देखा गया था।
    • ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ ने कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण भारत की विकास के अनुमान में कटौती की है, क्योंकि इसके कारण रिकवरी की गति प्रभावित हुई है और साथ ही उपभोक्ता विश्वास एवं ग्रामीण मांग को भी नुकसान पहुँचा है।

    वैश्विक अर्थव्यवस्था:

    • वर्ष 2021 के लिये वैश्विक विकास पूर्वानुमान को 6% पर बरकरार रखा गया है और वर्ष 2022 के लिये इसके 4.9% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
      • वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.3% का संकुचन हुआ था।

    वैश्विक व्यापार मात्रा

    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वैश्विक व्यापार की मात्रा में वृद्धि के अपने अनुमान को भी वर्ष 2021 के लिये 130 bps से बढ़ाकर 9.7% कर दिया है, वहीं वर्ष 2022 के लिये यह 50 bps बढ़कर 7% पर पहुँच गया है।
      • आपूर्ति पक्ष में तेज़ी आने और वैश्विक व्यापार संभावनाओं में अपेक्षित वृद्धि से भारत को भी काफी लाभ प्राप्त होगा।

    सुझाव:

    • सख्त बाहरी वित्तीय स्थितियाँ:
      • उभरते बाज़ारों को जहाँ संभव हो ऋण परिपक्वता अवधि को बढ़ाकर और बिना बचाव वाले विदेशी मुद्रा ऋण के निर्माण को सीमित करके संभवत: सख्त बाहरी वित्तीय स्थितियों (Tighter External Financial Condition) के लिये तैयार रहना चाहिये।
    • समय से पूर्व सख्त नीतियों से बचना:
      • केंद्रीय बैंकों को अस्थायी मुद्रास्फीति (Inflation) दबावों का सामना करने के लिये समय से पहले सख्त नीतियों से बचना चाहिये, लेकिन अगर मुद्रास्फीति के संकेत दिखाई देते हैं, तो इन्हें जल्दी प्रतिक्रिया हेतु तैयार रहना चाहिये।
    • स्वास्थ्य खर्च को प्राथमिकता दें:
      • राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) को स्वास्थ्य व्यय (टीका उत्पादन और वितरण बुनियादी ढाँचे, कर्मियों तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों) को बढ़ावा देने के लिये प्राथमिकता देना जारी रखना चाहिये।
        • राजकोषीय नीति वह साधन है जिसके द्वारा सरकार किसी देश की अर्थव्यवस्था की निगरानी और उसे प्रभावित करने के लिये अपने खर्च के स्तर तथा कर दरों को समायोजित करती है।

    अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

    • इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के पश्चात् युद्ध प्रभावित देशों के पुनर्निमाण में सहायता के लिये विश्व बैंक (World Bank) के साथ की गई थी।  
      • इन दोनों संगठनों की स्थापना के लिये अमेरिका के ब्रेटन वुड्स में आयोजित एक सम्मेलन में सहमति बनी। इसलिये इन्हें ‘ब्रेटन वुड्स ट्विन्स’ (Bretton Woods Twins) के नाम से भी जाना जाता है।
    • वर्ष 1945 में स्थापित IMF विश्व के 189 देशों द्वारा शासित है तथा यह अपने निर्णयों के लिये इन देशों के प्रति उत्तरदायी भी है। भारत 27 दिसंबर, 1945 को IMF में शामिल हुआ था।   
    • IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है। अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली से आशय विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान की उस प्रणाली से है जो देशों (और उनके नागरिकों) को एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाती है।
      • IMF के अधिदेश में वैश्विक स्थिरता से संबंधित सभी व्यापक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों को शामिल करने के लिये वर्ष 2012 में इसे अद्यतन/अपडेट किया गया था।
    • IMF द्वारा जारी महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट:

    वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक

    • यह IMF का एक सर्वेक्षण है जिसे आमतौर पर अप्रैल और अक्तूबर के महीनों में वर्ष में दो बार प्रकाशित किया जाता है।
    • यह भविष्य के चार वर्षों तक के अनुमानों के साथ निकट और मध्यम अवधि के दौरान वैश्विक आर्थिक विकास का विश्लेषण तथा भविष्यवाणी करता है।
    • पूर्वानुमान के अपडेट्स की बढ़ती मांग को देखते हुए वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक अपडेट जनवरी और जुलाई में प्रकाशित किया जाता है, जो आमतौर पर अप्रैल और अक्तूबर में प्रकाशित होने वाली मुख्य WEO रिपोर्टों के बीच का समय है।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    GRB 200826A: गामा-किरण विस्फोट

    प्रिलिम्स के लिये

    GRB 200826A: गामा-किरण विस्फोट, राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन 

    मेन्स के लिये

    GRB 200826A: गामा-किरण विस्फोट की खोज का महत्त्व

    चर्चा में क्यों:

    हाल ही में खगोलविदों के एक समूह ने उच्च-ऊर्जा विकिरण के एक बहुत ही कम अवधि के ऐसे शक्तिशाली विस्फोट का पता लगाया है जिसे गामा-किरण विस्फोट (Gamma-Ray Bursts- GRB) के रूप में भी जाना जाता है जो लगभग एक सेकंड तक हुआ था।

    प्रमुख बिंदु

    गामा-किरण विस्फोट:

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    • परिचय:
      • ये ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली घटनाएँ हैं, जिनका पता अरबों प्रकाश-वर्षों में लगाया जा सकता है।
      • एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है जब प्रकाश की किरण एक पृथ्वी वर्ष या 9.5 ट्रिलियन किलोमीटर में यात्रा करती है।
      • खगोलविद् उन्हें दो सेकंड से अधिक या कम समय तक चलने के आधार पर लंबे या छोटे के रूप में वर्गीकृत करते हैं।
    • लंबे GRB:
      • वे बड़े सितारों की मृत्यु के समय लंबे समय तक हुए विस्फोट का निरीक्षण करते हैं।
      • जब सूर्य से बहुत अधिक विशाल तारे का ईंधन समाप्त हो जाता है, तो उसका केंद्रीय भाग (कोर) अचानक ढह जाता है और एक कृष्ण विवर (ब्लैक होल) बन जाता है। 
        • ब्लैक होल्स अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता।
      • जैसे ही पदार्थ ब्लैक होल की ओर घूमता है, उसमें से कुछ अंश दो शक्तिशाली धाराओं (जेट) के रूप में बाहर की ओर निकल जाते हैं और जो फिर विपरीत दिशाओं में लगभग प्रकाश की गति से बाहर की ओर भागते हैं।
      • खगोलविद् GRB का ही पता केवल तब लगा पाते हैं जब इनमें से एक प्रवाह लगभग सीधे पृथ्वी की ओर जाने का संकेत दे देता है।
      • तारे के भीतर से प्रस्फुटित प्रत्येक धारा (जेट) से गामा किरणों का एक स्पंदन उत्पन्न होता है, जो प्रकाश का ऐसा उच्चतम-ऊर्जा रूप है जो कई मिनटों तक चल सकता है। 
      • विस्फोट के बाद विखंडित तारा फिर तेज़ी से एक सुपरनोवा के रूप में फैलता है। 
        • सुपरनोवा एक विस्फोट करने वाले तारे को दिया गया नाम है जो अपने जीवन के अंत तक पहुँच गया है।
    • लघु GRB:
      • लघु GRB तब बनते हैं जब संघटित (कॉम्पैक्ट) वस्तुओं के जोड़े- जैसे न्यूट्रॉन तारे, जो तारों के टूटने के दौरान भी बनते हैं- अरबों वर्षों में अंदर की ओर सर्पिल रूप में घूर्णन करते रहते हैं और आपस में टकराते हैं
        • एक न्यूट्रॉन तारा उच्च द्रव्यमान वाले सितारों के संभावित विकासवादी अंत-बिंदुओं में से एक होता है।

    GRB 200826A:

    • यह केवल 0.65 सेकंड तक चलने वाले उच्च-ऊर्जा उत्सर्जन का एक तीव्र विस्फोट था।
      • विस्तारित ब्रह्मांड के माध्यम से काफी लंबे समय तक यात्रा करने के बाद फर्मी के गामा-रे बर्स्ट मॉनीटर (Fermi’s Gamma-ray Burst Monitor) द्वारा पता लगाए जाने के समय तक यह संकेत (सिग्नल) लगभग एक-सेकंड लंबा हो गया था। 
      • यह हमारे ब्रह्मांड की वर्तमान आयु की लगभग आधी उम्र से पृथ्वी की ओर दौड़ रहा था।
    • एक विशाल तारे की मृत्यु के कारण हुआ यह सबसे छोटा गामा-रे विस्फोट था।

    GRB 200826A का महत्त्व:

    • इसने गामा-किरणों के विस्फोट से संबंधित लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को हल करने में मदद की है। साथ ही यह अध्ययन संख्या घनत्व को बेहतर ढंग से सीमित करने हेतु ऐसी सभी ज्ञात घटनाओं का पुन: विश्लेषण करने के लिये प्रेरित करता है।

    शोधकर्ता: 

    • इस समूह में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ (ARIES), द इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे (IUCAA), नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स - टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, पुणे (NCRA) और आईआईटी मुंबई के भारतीय खगोलविद् शामिल थे। 

    फर्मी गामा-रे स्पेस टेलीस्कोप:

    • परिचय:
      • पूर्व में इसे गामा-रे लार्ज एरिया स्पेस टेलीस्कोप (GLAST) कहा जाता है, यह एक अंतरिक्ष वेधशाला है जिसका उपयोग पृथ्वी की निचली कक्षा से गामा-किरणों संबंधी खगोलीय अवलोकन के लिये किया जाता है।
      • इसे जून 2008 में लॉन्च किया गया था। इसका नाम एक इटैलियन-अमेरिकी वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने उच्च-ऊर्जा भौतिकी में अग्रणी काम किया था।
    • सहयोग:
      • फर्मी एक खगोल भौतिकी और कण भौतिकी साझेदारी है, जिसे अमेरिकी ऊर्जा विभाग के सहयोग  तथा  फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, स्वीडन और यू.एस. में शैक्षणिक संस्थानों व भागीदारों के महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ विकसित किया गया है।
    • प्रमुख कार्य:
      • यह प्रत्येक तीन घंटे में संपूर्ण आकाश का मानचित्रण करता है। यह ब्रह्मांड की सबसे चरम घटनाओं के मामले में महत्त्वपूर्ण पहुँच प्रदान करता है, जैसे जीआरबी, ब्लैक-होल जेट और पल्सर।
        • पल्सर एक प्रकार के न्यूट्रॉन तारे होते हैं जो नियमित अंतराल पर रेडियो तत्त्वों का उत्सर्जन करते हैं।

    गामा किरणें

    • ये ब्रह्मांड में अत्यधिक ऊर्जा वाली प्रकाश किरणें हैं। इनमें हमारी आँखों को दिखाई देने वाले प्रकाश की तुलना में एक अरब गुना अधिक ऊर्जा होती है।
    • ये ब्रह्मांड में सबसे गर्म और सबसे ऊर्जावान वस्तुओं द्वारा निर्मित हैं, जैसे- न्यूट्रॉन तारे और पल्सर, सुपरनोवा विस्फोट तथा ब्लैक होल के आसपास का क्षेत्र।
    • गामा किरणों में उच्च ऊर्जा होती है; इनमें किसी भी लेंस या दर्पण के माध्यम से सीधे गुजरने  की क्षमता होती है, जिससे उन्हें एक दृश्य-प्रकाश दूरबीन में केंद्रित करना बहुत मुश्किल होता है।

    पृथ्वी पर गामा किरणें:

    • पृथ्वी पर, गामा किरणें परमाणु विस्फोट, बिजली तथा कम  रेडियोधर्मी क्षय की गतिविधि से उत्पन्न होती हैं।
    • गामा-किरण गामा किरणों का खगोलीय अवलोकन है जिसमें 100 केवी (किलो इलेक्ट्रॉन वोल्ट) से ऊपर फोटॉन ऊर्जा होती है।
    • गामा किरणें इतनी ऊर्जावान होती हैं कि वे पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक होती हैं।
    • पृथ्वी का वायुमंडल गामा किरणों को अवशोषित कर लेता है, जिससे वह इन गामा किरणों को पृथ्वी पर पहुँचने से पहले ही अवशोषित कर जीवन को प्रभावित करने से रोकता है।
      • इसलिये गामा-किरण स्रोतों का खगोलीय अवलोकन पृथ्वी के वायुमंडल के सुरक्षात्मक आवरण के ऊपर उच्च ऊँचाई पर उड़ने वाले गुब्बारों या उपग्रहों के साथ किया जाता है।

    स्रोत: पी.आई.बी.  


    विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

    रूस का ‘नौका’ मॉड्यूल

    प्रिलिम्स के लिये

    इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन, ‘नौका’ मॉड्यूल

    मेन्स के लिये 

    अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ (ISS) में ‘नौका’ नाम की अपनी सबसे बड़ी अंतरिक्ष प्रयोगशाला लॉन्च की है।

    ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ (ISS) 

    • ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ एक निवास योग्य कृत्रिम उपग्रह है, जो कि पृथ्वी की निचली कक्षा में सबसे बड़ी मानव निर्मित संरचना है।
    • यह पाँच अंतरिक्ष एजेंसियों: नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन), रॉसकॉसमॉस (रूस), जाक्सा (जापान), ESA (यूरोप) और CSA (कनाडा) के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है।
    • एक अंतरिक्ष स्टेशन मुख्य रूप से एक बड़ा अंतरिक्षयान है, जो लंबी अवधि के लिये पृथ्वी की निम्न कक्षा में रहता है।
    • यह अंतरिक्ष में एक बड़ी प्रयोगशाला की तरह है, जो अंतरिक्ष यात्रियों को माइक्रोग्रैविटी में वैज्ञानिक परीक्षण करने और हफ्तों या महीनों तक रहने की अनुमति देता है।

    अन्य अंतरिक्ष स्टेशन

    • चीन ने अपने स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन का एक मानव रहित मॉड्यूल ‘तियानहे’ लॉन्च किया है, जिसके वर्ष 2022 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है।
    • भारत वर्ष 2030 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जिससे भारत अमेरिका, रूस और चीन की एक विशिष्ट सूची में शामिल हो जाएगा।

    प्रमुख बिंदु

    नौका मॉड्यूल: 

    • रूसी भाषा में ‘नौका’ का अर्थ विज्ञान है। यह अंतरिक्ष में रूस की सबसे महत्त्वाकांक्षी अनुसंधान सुविधा है और इसमें ऑक्सीजन जनरेटर, रोबोट कार्गो क्रेन, एक शौचालय तथा रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के लिये बिस्तर शामिल है।
    • इसे एक प्रोटॉन रॉकेट (रूस में रॉकेट समूह- रूस की अंतरिक्ष सूची में सबसे शक्तिशाली) का उपयोग करके कक्षा में भेजा गया है और इसे ISS तक पहुँचने में आठ दिन लगेंगे।
      • इस दौरान इंजीनियर और फ्लाइट कंट्रोलर अंतरिक्ष में नौका का परीक्षण करेंगे तथा अंतरिक्ष स्टेशन पर इसके आगमन की तैयारी करेंगे।
    • यह ‘पर्स’ की जगह लेगा और महत्त्वपूर्ण ‘ज़्वेज़्दा मॉड्यूल’ से जुड़ा होगा जो सभी अंतरिक्ष स्टेशन को जीवन समर्थन प्रणाली प्रदान करता है एवं रूसी कक्षीय खंड (ROS) के संरचनात्मक व कार्यात्मक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
      • ‘पर्स’ सितंबर 2001 से अंतरिक्ष स्टेशन का हिस्सा रहा है, जो रूसी अंतरिक्षयान के लिये ‘डॉकिंग पोर्ट’ और रूसी स्पेसवॉक के लिये एक ‘एयरलॉक’ के रूप में कार्य कर रहा है।

    महत्त्व:

    • यह ISS के रहने योग्य आयतन को बढ़ाकर 70 घन मीटर कर देगा। इसका प्रयोग अंतरिक्ष यात्री अतिरिक्त जगह का प्रयोग करने और कार्गो स्टोर करने के लिये करेंगे।
    • नौका भविष्य के संचालन के लिये एक नई ‘साइंस फैसिलिटी’, डॉकिंग पोर्ट और स्पेसवॉक एयरलॉक के रूप में काम करेगी।
    • 20 से अधिक वर्षों से लोग सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण स्थितियों के तहत अनुसंधान कर रहे हैं जो पृथ्वी पर संभव नहीं है, यह मॉड्यूल किये जा रहे शोध कार्यों को बढ़ाने में मदद करेगा।
      • जीव विज्ञान, मानव शरीर क्रिया विज्ञान, भौतिकी और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विभिन्न विषयों में अनुसंधान किया जा रहा है।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


    सामाजिक न्याय

    निमोनिया

    प्रिलिम्स के लिये

     निमोनिया और डायरिया प्रगति रिपोर्ट,

    मेन्स के लिये 

     निमोनिया के लक्षण और प्रभाव,  निमोनिया से संबंधित पहल 

    चर्चा में क्यों?

    हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि शिशु मृत्यु के मामले में 16.9 प्रतिशत का कारण निमोनिया है तथा यह शिशु मृत्यु दर का दूसरा सबसे बड़ा कारण है (समय से पहले जन्म और कम वज़न के बाद)

    प्रमुख बिंदु

    परिचय :

    • निमोनिया फेफड़ों का एक तीव्र श्वसन संक्रमण है। यह एक न्यूमोकोकल रोग भी है जो स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया या न्यूमोकोकस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

    कारण: 

    • इसके फैलने का एक कारण नहीं है- यह हवा में बैक्टीरिया, वायरस या कवक से विकसित हो सकता है।

    भेद्यता:

    •  जिन बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली अपरिपक्व (अर्थात् नवजात शिशु) या कमज़ोर होती है, जैसे कि अल्पपोषण, या एचआईवी रोग- निमोनिया के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।

    विस्तार:

    • निमोनिया संक्रामक है और खाँसने या छींकने से फैल सकता है। यह तरल पदार्थों के माध्यम से भी फैल सकता है, जैसे बच्चे के जन्म के दौरान रक्त, या दूषित स्थानों से।

    टीका:

    • भारत ने यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) की तर्ज़ पर ही PCV की  राष्ट्रव्यापी शुरुआत की है।
    • बैक्टीरिया के कारण होने वाले निमोनिया को टीकों से आसानी से रोका जा सकता है। इसे रोकने के लिये प्राथमिक टीके  ‘न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन’ (Pneumococcal Conjugate Vaccine-PCV)  की 3 खुराक दी जाती है।
    • निमोनिया के मुख्य संक्रमण कारणों हेतु एक नया टीका विकसित किया जा रहा है।

    रोग भार:

    • वैश्विक स्तर पर: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों में आधे से अधिक निमोनिया के कारण होती हैं।
    • सालाना, भारत में निमोनिया से होने वाली अनुमानित मौतें 71% हैं  और गंभीर निमोनिया के 57% मामले देखे जाते हैं।

    निमोनिया से संबंधित पहल:

    • निमोनिया को सफलतापूर्वक रोकने हेतु सामाजिक जागरूकता और कार्रवाई (SAANS): इसका उद्देश्य निमोनिया के कारण बाल मृत्यु दर को कम करना है, जो सालाना पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के मामले में लगभग 15% है।
      • सरकार ने बच्चों में निमोनिया से होने वाली मौतों के नियंत्रण हेतु वर्ष 2025 तक प्रति 1000 जीवित बच्चों पर मौतों को 3 से कम करने का लक्ष्य रखा है।
    • वर्ष 2014 में भारत ने डायरिया और निमोनिया से संबंधित पाँच वर्ष से कम उम्र की मौतों की रोकथाम के लिये सहयोगात्मक प्रयास करने हेतु 'निमोनिया और डायरिया की रोकथाम और नियंत्रण संबंधी एकीकृत कार्ययोजना (Integrated Action Plan for Prevention and Control of Pneumonia and Diarrhoea- IAPPD) शुरू की है।
      • WHO और UNICEF ने निमोनिया एवं डायरिया की रोकथाम के लिये एक एकीकृत वैश्विक कार्ययोजना (GAPPD) शुरू की थी।

    स्रोत: पी.आई.बी.


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