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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 26 Jul, 2021
  • 11 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स : 26 जुलाई, 2021

भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल: रामप्पा मंदिर

India’s 39th World Heritage Site: Ramappa Temple

हाल ही में तेलंगाना के मुलुगु ज़िले में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर (जिसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है) को यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया है।

Ramappa-Temple

प्रमुख बिंदु

रुद्रेश्वर या रामप्पा मंदिर के विषय में: 

  • रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने कराया था। 
  • यहाँ के स्थापित देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। 
  • 40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। 
  • मंदिर छह फुट ऊँचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है।
  • इसकी नींव "सैंडबॉक्स तकनीक" से बनाई गई है, जिसमें फर्श ग्रेनाइट पत्थरों से है और स्तंभ बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित हैं।
  • मंदिर का निचला हिस्सा लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है जबकि सफेद गोपुरम को हल्की ईंटों से बनाया गया है जो कथित तौर पर पानी पर तैर सकती हैं।
  • एक शिलालेख के अनुसार मंदिर के निर्माण की तिथि माघ माह की अष्टमी (12 जनवरी, 1214) शक-संवत 1135 है।
  • मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों (Kakatiya) की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिये अद्वितीय है, दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है।
  • यूरोपीय व्यापारी और यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे तथा ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया था कि मंदिर “दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” था।

सैंडबॉक्स तकनीक:

  • इस तकनीक में इमारतों के निर्माण से पहले गड्ढे को भरना शामिल है- जिसमे  नींव रखने के लिये खोदे गए गड्ढों को  रेत-चूने, गुड़ (बांधने ले लिये) और करक्कया ( हरड़ का काला फल) के मिश्रण के साथ भरा जाता है।
  •  भूकंप की स्थिति में सैंडबॉक्स तकनीक से निर्मित यह नींव एक कुशन (Cushion)के रूप में कार्य करती है।
  • भूकंप के कारण होने वाले अधिकांश कंपन इमारत की वास्तविक नींव तक पहुँचने से पहले ही  रेत से गुज़रते समय ही क्षीण हो जाते हैं।

विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 26 जुलाई, 2021

पावर आइलैंडिंग सिस्टम 

भारत बिजली ग्रिड पर संभावित साइबर और हैकिंग हमलों से महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की रक्षा के लिये कई शहरों में ‘पावर आइलैंडिंग सिस्टम’ बनाने की योजना पर विचार कर रहा है। बंगलूरू, जिसे भारत की सिलिकॉन वैली के रूप में जाना जाता है और जामनगर, जहाँ भारत की दो सबसे बड़ी तेल रिफाइनरियाँ मौजूद हैं, जैसे महत्त्वपूर्ण शहरों में ‘पावर आइलैंडिंग सिस्टम’ की स्थापना की जाएगी। इसके अलावा नई दिल्ली व मुंबई जैसे शहरों में स्थापित मौजूदा व्यवस्थाओं में सुधार किया जा जाएगा। गौरतलब है कि एक पावर आइलैंडिंग सिस्टम में उत्पादन क्षमता होती है और पावर आउटेज की स्थिति में मुख्य ग्रिड से स्वचालित रूप से अलग हो सकता है। पिछले वर्ष भारत के वित्तीय केंद्र- मुंबई में एक प्रमुख पावर आउटेज देखने को मिला था, जिसके कारण शहर की तमाम गतिविधियाँ रुक गई थीं, विशेषज्ञों का मानना था, यह पावर आउटेज साइबर हमले से प्रेरित था। इससे एक वर्ष पूर्व देश के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में कंप्यूटर सिस्टम पर मैलवेयर के माध्यम से साइबर हमलों की रिपोर्ट की गई थी। दुनिया भर में पावर ग्रिड्स को तेज़ी से डिजिटल किया जा रहा है, जिसके कारण वे साइबर हमलों के प्रति और अधिक संवेदनशील हो गए हैं। ‘पावर आइलैंडिंग सिस्टम’ का उद्देश्य इसी संवेदनशीलता को कम करना है।

गोल्डन राइस

हाल ही में फिलीपींस आनुवंशिक रूप से संशोधित ‘गोल्डन राइस’ के वाणिज्यिक उत्पादन को मंज़ूरी देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि फिलीपींस द्वारा लिया गया निर्णय देश में खाद्य असुरक्षा की चुनौती को संबोधित करेगा और बच्चों में कुपोषण की समस्या को कम करेगा। इसके अलावा विटामिन-ए (बीटा कैरोटीन) से भरपूर होने के कारण ‘गोल्डन राइस’ दृष्टिहीनता और कैंसर जैसे रोगों से बचाव के लिये भी महत्त्वपूर्ण हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों की मानें तो विटामिन-ए की कमी के कारण प्रतिवर्ष बचपन में अंधेपन के 5,00,000 मामले सामने आते हैं, जिनमें से आधे लोगों की 12 माह के भीतर ही मृत्यु हो जाती है। गौरतलब है कि चावल, गेहूँ और सोयाबीन जैसी फसलों के साथ-साथ कई फलों और सब्जियों में प्राकृतिक रूप से कुछ आनुवंशिक कमियाँ मौजूद होती हैं, जिसके कारण उनकी उत्पादकता में भारी कमी आती है। ऐसे में उनके पदार्थ को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया जाता है, ताकि फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो सके तथा फसल को कीट प्रतिरोधी अथवा सूखा रोधी बनाया जा सके। हालाँकि स्थानीय लोगों द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित इस किस्म का विरोध किया जा रहा है, क्योंकि यह जैविक चावल की परंपरागत किस्मों को प्रतिस्थापित करके पर्यावरण और कृषकों की आजीविका को खतरे में डाल सकता है। 

विश्व मस्तिष्क दिवस

दुनिया भर में मस्तिष्क स्वास्थ्य से संबंधित जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 22 जुलाई को ‘विश्व मस्तिष्क दिवस’ का आयोजन किया जाता है। गौरतलब है कि यह दिवस 22 जुलाई, 1957 को ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी’ की स्थापना के उपलक्ष में मनाया जाता है। 22 सितंबर, 2013 को ‘वर्ल्ड काॅन्ग्रेस ऑफ न्यूरोलॉजी’ की ‘पब्लिक अवेयरनेस एंड एडवोकेसी कमेटी’ ने प्रतिवर्ष 22 जुलाई को ‘विश्व मस्तिष्क दिवस’ अथवा ‘वर्ल्ड ब्रेन डे’ के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव रखा था, जिसके पश्चात् 22 जुलाई, 2014 को पहली बार इस दिवस का आयोजन किया गया था। इस वर्ष ‘विश्व मस्तिष्क दिवस’ की विषय-वस्तु ‘स्टॉप मल्टीपल स्केलेरोसिस’ है, जो ‘मल्टीपल स्केलेरोसिस’ के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने पर ज़ोर देती है। ‘वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी’ द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 2.8 मिलियन से अधिक लोग ‘मल्टीपल स्केलेरोसिस’ रोग से पीड़ित हैं। दुनिया के कई हिस्सों के लोगों की इलाज और प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों तक पहुँच नहीं है। 

‘अलेक्जेंडर डेलरिम्पल’ पुरस्कार

भारत के प्रमुख हाइड्रोग्राफर वाइस एडमिरल ‘विनय बधवार’ को हाल ही में ब्रिटिश सरकार द्वारा हाइड्रोग्राफी और नॉटिकल कार्टोग्राफी के क्षेत्रों में उनके द्वारा किये गए कार्यों हेतु प्रतिष्ठित ‘अलेक्जेंडर डेलरिम्पल’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वाइस एडमिरल विनय बधवार के लिये वर्ष 2019 में इस पुरस्कार की घोषणा की गई थी, किंतु मौजूदा कोविड-19 महामारी के कारण पुरस्कार समारोह आयोजित नहीं किया जा सका था। वर्ष 1982 में भारतीय नौसेना में शामिल होने वाले वाइस एडमिरल ‘विनय बधवार’ को हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण का व्यापक अनुभव है। ‘एलेक्जेंडर डेलरिम्पल’ पुरस्कार की स्थापना वर्ष 2006 में ‘यूनाइटेड किंगडम हाइड्रोग्राफिक ऑफिस’ द्वारा की गई थी और इसका नाम ब्रिटिश नौवाहन विभाग के पहले हाइड्रोग्राफर ‘अलेक्जेंडर डेलरिम्पल’ के नाम पर रखा गया था। पुरस्कार प्राप्तकर्त्ताओं का चयन हाइड्रोग्राफिक ऑफिस की कार्यकारी समिति द्वारा दुनिया भर में हाइड्रोग्राफी, कार्टोग्राफी और नेविगेशन के मानकों को बढ़ाने के प्रयासों के लिये किया जाता है।


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